Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

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jay
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Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

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रमेश की इस बात से और मज़ा आया. मेरी दोनो आँखें मज़े से खुल

नही रही थी. मैं चूत को उचकाती बोली, "कर लिया है." "तो आराम

से चित होकर लेटो." मैं फ़ौरन तकिये पर सर रख टाँग फैलाकर

लेटी. उस समय चूत चुदास से भरी थी. गरम गरम साँसे बाहर

आ रही थी. दो बार झड़ी थी पर मस्ती बरकरार थी. लेटने के साथ

ही उसने लंड को मेरी चूत पर रखा और दोनो चूचियों को दबाता

बोला, "मीना को यह बात ना बताना कि तुमको हमने इस तरह से मज़ा

दिया है. तुम्हारी चूत अच्छी है इसलिए खूब प्यार करने के बाद ही

चोद्कर सयानी करेंगे."

चूत पर तना मोटा लंड का गरम सूपड़ा लगवाकर चूचियों को

डबवाने मैं नया मज़ा था. मैं मस्ती से बोली, "उसे कुच्छ नही

बताएँगे. आप बराबर मेरे पास आया करिए." "जितना हमसे चुद्वओगि

उतनी ही खूबसूरती आएगी." और झुककर बाकी चूची को रसगुल्ले की

तरह मुँह मे ले जो चूसा तो मैं मज़े से भर सिसकार उठी. उसने

एक बार चूस्कर चूची को मुँह से बाहर कर दिया. मैं इस मज़े से

बेकरार होकर बोली, "हाए बड़ा मज़ा आया. ऐसे ही करिए."

"चूचियाँ पिलाओगी तो तुम्हारी भी मीना की तरह जल्दी बड़ी होंगी."

और चूत पर सूपदे को नीचे कर लगाया. "बहुत अच्छा लग रहा है.

बड़ी कर दीजिए मेरी भी." तब वह दोनो गोल गोल खड़े निपल वाली

चूचियों को दोनो हाथ से सहलाता बोला, "पहले चूत का छेद बड़ा

कर्वालो. एक बार इससे रंग लगवा लो फिर चूस्कर खूब प्यार से तेल

लगाकर पेलेंगे. जब तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की चुदवाने को

तैय्यार हो तो मीना को क्यूँ चोदे. देखो जैसे मीना ने अपनी चूत

हाथ से फैलाकर चटाई थी उसी तरह अपनी फैलाओ तो अपने रंग

से इसे नहला दे."

दोस्तो आगे की कहानी अगले पार्ट मे आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः.........

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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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होली पे चुदाई --4

गतान्क से आगे..........

मैने फ़ौरन हाथ से चूत के फाँक खोली तो वह मेरी टाँगो के

बीच घुटने के बल बैठ एक हाथ से लंड पकड़ गरम सूपदे को

चूत के फाँक मे चलाने लगा. मुझे मज़ा आया. 8-10 बार सूपदे

को चूत पर रगड़ने के बाद बोला, "मज़ा आ रहा है?" "जी… हाअए

आआहह." "ऐसे ही फैलाए रहना बस निकलने ही वाला है."

उसने सूपदे को 5-10 बार चूत पर रगड़ा ही था कि गरम गरम पानी

दरार मे आया. उसका लंड फलफाला कर झड़ने लगा. गरम पानी

पाते ही मैं हाए आअहह करने लगी. वह सूपड़ा दबाकर 2 मिनिट तक

झाड़ता रहा. मेरी चूत लपलपा गयी पर लंड से निकले पानी ने बड़ा

मज़ा दिया. झड़ने के बाद उंगली को छेद पर लगा अंदर किया तो लंड

के पानी की वजह से पूरी उंगली सॅट्ट से अंदर चली गयी. जब पूरी

उंगली अंदर गयी तो मैं मज़े से टाँगो को अपने आप उठाती चूत को

उभारती बोली, "हाए रमेश बड़ा मज़ा आ रहा है. उंगली से खूब

करो." रमेश उंगली से चूत को चोद्ता बोला, "इस तरह फैलवा लोगि

तो लंड जाने मैं दर्द नही होगा. इतने प्यार से बिना फाडे कौन चोद्ता

तुमको." "हाए आप सच कह रहे हैं."

चूत मे सक्क सक्क अंदर बाहर आ जा रही उंगली बड़ा मज़ा दे रही

थी. हमको चुदवाने सा मज़ा आ रहा था. वह उंगली को पूरी की पूरी

तेज़ी के साथ पेलता ध्यान से मेरी फैल रही चूत को देख रहा था.

ज्यूँ ज्यूँ वह सेचासट चूत मे उंगली डालने निकालने की रफ़्तार

इनक्रीस कर रहा था त्यु त्यु मैं होली के रंगीन मज़े मैं खोती

अपना तनमन उसके हवाले करती जा रही थी. मैं शायद फिर पानी

निकालने वाली थी कि उसने एक साथ दो उंगली अंदर कर दी. मैं तडपी

तो वह निपल को चुटकी दे बोला, "फटेगी नही."

अब दो उंगली से चूत को चुदवाने मे और मज़ा आ रहा था. लगा कि

दूसरी उंगली से चूत फ़ौरन पानी फेंकेगी. तभी वह बोला, "पानी

निकला?" "जी हाए और चूसिए." "ज़्यादा चुसओगि तो बड़ी बड़ी हो

जाएँगी." "होने दीजिए. हमको पूरा मज़ा लेना है." "चूचियाँ तो

मीना भी खूब पिलाती है पर उसकी चूत मे ज़रा भी मज़ा नही है.

अब जिस दिन तुम नही चुद्वओगि, उसी दिन उसकी चोदेन्गे." "हम रोज़

चुदवाएँगे. घर खाली है, रोज़ आइए. रात मे मेरे घर पर ही

रहिएगा." "पहले आगे के छेद का मज़ा देंगे फिर तुम्हारी गांद भी

मारेंगे. मीना अब गांद भी खूब मरवाती है." उसने गांद के छेद

पर उंगली लगाई.
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फिर रमेश ने तेल की बॉटल मुझे दे कहा, "लो लंड पर और अपनी

चूत पर तेल लगाओ फिर इससे पेल्वाकर जन्नत का मज़ा लो." मैने

उठकर उसके लंड पर हाथ से तेल लगाया और उंगली से अपनी चूत पर

लगाकर फिर चित्त लेट गयी.

उसने गांद के नीचे तकिया लगाकर चूत को उभारा और दोनो टाँगो के

बीच बैठ सूपदे को छेद पर लगा दोनो चूचियों को पकड़ ज़ोर से

पेला. मैने एक आहह के साथ सूपदे को चूत मे दबा लिया. ऐसा लगा

की चूत फॅट गयी हो.

वह धक्के मारकर पेलने लगा और मैं मस्ती मे आआहह सस्स्स्सिईइ

करने लगी.

समाप्त

दा एंड
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friends next storie holi ne meri kholi
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होली ने मेरी खोली पार्ट--1

हेल्लो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए होली के अवसर पर होली की एक मस्त कहानी लेकर हाजिर हूँ

इस होली पर मम्मी पापा बाहर जा रहे थे. रीलेशन मैं एक डेथ हो गयी थी. माँ ने पड़ोस की आंटी को मेरा ध्यान रखने को कह दिया था. आंटी ने कहा था कि आप लोग जाइए सुनीता का हम लोग ध्यान रखेंगे. माँ ने हमे समझाया और फिर चली गयी. पड़ोस की आंटी की एक लड़की थी मीना जो मेरी उमर की ही थी. वह मेरी बहुत फास्ट फ्रेंड थी. वह बोली कि जब तक तुम्हारे मम्मी पापा नही आते तुम खाना हमारे घर ही खाना.

मैं खाना और समय वही बिताती पर रात मैं सोती मीना के साथ अपने घर पर ही थी. दो दिन हो गये और होली आ गयी. सुबह होते ही मीना ने अपने घर चलने को कहा तू मैं रंग से बचने की लिए बहाने करने लगी. मीना बोली,

"मैं जानती हूँ तुम रंग से बचना चाहती हो. नही आई तू मैं खुद आ जाओंगी."

"कसम से आओंगी."

मैं जान गयी कि वह रंग लगाए बगैर नही मानेगी. मैने सोचा कि घर पर ही रहूंगी जब आएगी तू चली जाऊंगी. होली के लिए पुराने कपड़े निकल लिए थे. पुराने कपड़े छ्होटे थे. स्कर्ट और शर्ट पहन लिया. शर्ट छ्होटी थी इसलिए बहुत कसी थी जिससे दोनो चूचियों मुश्किल से सम्हल रही थी. बाहर होली का शोरगुल मच रहा था. चड्डी भी पुरानी थी और कसी थी. कसे कपड़े पहनने मैं जो मज़ा आ रहा था वह कभी शलवार समीज़ मैं नही आया. चलने मैं कसे कपड़े चूचियों और चूत से रगड़ कर मज़ा दे रहे थे इसलिए मैं इधर उधर चल फिर रही थी. मैं अभी मीना के घर जाने को सोच ही रही थी की मीना दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से खटखटते हुवे चिल्लाई,

"अरी सुनीता की बच्ची जल्दी से दरवाज़ा खोल." मैने जल्दी से दरवाज़ा खोला तू मीना के पीछे ही उसका बड़ा भाई रमेश भी अंदर घुस आया. उसकी हथेली मैं रंग था. अंदर आते ही रमेश ने कहा,

"आज होली है बचोगी नही, लगाउन्गा ज़रूर." मीना बचने के लिए मेरे पीछे आई और बोली,

"देखो भयया यह ठीक नही है." मेरी समझ मैं नही आया कि क्या करूँ. रमेश मेरे आगे आया तो ऐसा लगा कि मीना के बजाय मेरे ही ना लगा दे. मैं डरी तो वह हथेली रगड़ता बोला,

"बिना लगाए जाउन्गा नही मीना."

"हाए राम भयया तुमको लड़कियों से रंग खेलते शरम नही आती."

"होली है बुरा ना मानो. लड़कियों को लगाने मैं ही तो मज़ा है. तुम हटो आगे से सुनीता नही तू तुमको भी लगा दूँगा." मैं डर से किनारे थी. तभी रमेश ने मीना को बाँहों मैं भरा और हथेली को उसके गाल पर लगा रंग लगाने लगा. मीना पूरी तरह रमेश की पकड़ मैं थी. वह बोली,

"हाए भयया अब छ्चोड़ो ना."

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