मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम compleet

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jay
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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

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amitraj39621 wrote:Supereb.....
Please Continue........

thnx for your comment
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

Post by jay »

घर पहूंचा दो देखा घड़ी में 7 बजे थे ... मैने कपड़े उतारे और पाजामा पहेन कर फिर सो गया ...फिर करीब 9 बजे तक सोता रहा ...उठने के बाद काफ़ी अच्छा लग रहा था .काफ़ी तरो ताज़ा महसूस कर रहा था ...जैसे शरीर बिल्कुल हल्का हो गया हो ...लगातार दो दिनों की चुदाई से वो भी भारती जैसी लड़की की चूत ...जिस से सिर्फ़ जिस्मानी ही नहीं कुछ भावनात्मक संबंध भी बन गये थे ..बड़ा रिलॅक्सिंग फील हो रहा था ... नाश्ता कर मैं ऑफीस की ओर निकल पड़ा ...पर सीधा नहीं अपने मोहन पान वाले का पड़ाव तो था ही ...

वहाँ पहूंचते ही मोहन का चहेकना शूरू हो गया ...

"लगता है साहेब को भारती बहोत पसंद आ गयी ..."और आँख मार दी

"क्यूँ क्या हुआ ..?? ऐसी कोई खास बात नहीं यार ..."

"अरे साहेब क्यूँ बनते हो..??मुझे सब पता रहता है..कल आप वहाँ थे...कोई बात नहीं अब तो आप सीधे वहाँ चले जाते हो..मुझे बिना बताए ... हां अब मेरी क्या ज़रूरत ...?? हा हा हा हा !" और अपने ट्रेड मार्क ठहाके लगाने लगा ..

"यार बार बार तुम से कहना अच्छा नहीं लगता ... " मैं कहा ...

"अरे बाबा तो मैने कब मना किया ..जाइए जाइए ज़रूर जाइए ... पर साहेब आपकी नज़रें भी बड़ी पैनी हैं ..भारती सही में लाखों में एक है ...हीरे की परख जौहरी को ही होती है ...वो भी किसी को जल्दी क्या ..आज तक किसी को इतना भाव नहीं दिया ...बस अब मस्त रहिए दोनों ..."

और फिर उस ने पान बढ़ाया ..मैने पान लिया और ऑफीस की ओर चल पड़ा ...

ऑफीस में भी आज काम पर ध्यान बना रहा ... आइ वाज़ टोटली रिलॅक्स्ड ...और जो अकेलापन ...बोरियत .. थी सब मिट गये थे ...सही में जिंदगी में किसी का साथ कितना ज़रूरी होता है...यह मैं अच्छी तरेह समझ चूका था ... !

मैं घर पहूंचा ...आज पहली बार मैने अपने क्वॉर्टर के बाहर भी नज़र डाली ...वरना ऑफीस से सीधा अंदर चला जाता ... चूँकि कंपनी क्वॉर्टर था .बाहर काफ़ी जगेह थी ...लॉन था फूल भी लगे थे ...आज पहली बार फूलों की मुस्कुराहट , उनकी सुंदरता , उनकी महक का जायज़ा लिया .. माली ( कंपनी का ) ने अच्छी देख भाल की थी ..


मेरे बागीचे में गुलाब काफ़ी लगे थे हर तरेह के ..उनकी छटा देखते ही बनती ... और भी फूल थे ..पर गुलाब की बात ही कुछ और थी ...मैने सोचा अगली बार भारती को गुलाब का गुल - दस्ता दूँगा ... उसे गुलाब बहोत पसंद थे ...

मैं अंदर गया .फ्रेश हो कर चाइ पी और बाहर वेरामदे में कुर्सी लगा कर बैठ गया ... और बगीचे का आनंद ले रहा था ... और साथ में न्यूज़ पेपर भी देख रहा था ...


तभी गेट खुलने की आवाज़ आई ... मैने न्यूज़ पेपर हटा कर सामने देखा ... लगा जैसे तूफान सामने चली आ रही है .....

एक लंबी तगड़ी औरत सामने हाथ में फ्लवर बास्केट लिए .....गेट खोल कर बेझिझक लंबे लंबे कदमों से मेरी ओर चली आ रही थी , और चेहरे पे ऐसे भाव जैसे मुझ से बरसों की पहचान हो ,

और मेरे पास आते ही चालू हो गयी " ह्म्म.... तो इस घर में आप रहते हैं ..देखिए ना मैं यहाँ रोज आती हूँ आप के बगीचे से फूल तोड़ने ..पर आज तक किसी इंसान को नहीं देखा ...."

जब सामने आ गयीं तो मैं बस देखता ही रह गया ... लंबाई ..चौड़ाई का इतना बढ़िया सेक्सी कॉंबिनेशन मैने आज तक नहीं देखा था ... मुझ से भी ज़्यादा हाइट ..जब कि मैं खूद 5 फ्ट 8इंच का हूँ ..जो अपने यहाँ लंबा ही होता है ... भारी भारी चूचियाँ .जैसे सीने से उछल कर बाहर आने को तैयार ..पर पेट एक दम फ्लॅट ... मोटी पर कसी जंघें और चूतड़ भी भरे भरे जैसे सलवार फाड़ कर अब बाहर तो तब बाहर ... यानी उस ने अपने शरीर के सही जागेह पर सही उभार बनाए रखे थे , कहीं भी ग़लत जगेह से निकलता नज़र नहीं आया ..जैसा कि आम तौर पे होता है ... पेट निकल्ना तो सब से आम बात होती है ..पर पेट बिकलूल फ्लॅट था ... चेहरा भी अट्रॅक्टिव , बड़ी बड़ी आँखें ... सब मिला कर शी वाज़ आ सेक्सी वुमन ऑफ आ टॉल ऑर्डर ... ! उपर से नीचे तक बस सेक्स , सेक्स और सेक्स ....

बातें करते करते उस ने मेरे बगल में रखी कुर्सी को अपनी ओर खींचा और बैठ गयी ....मैं उसकी बेबाक हरकतों को बस देखता ही रह गया ...कुर्सी पर बैठ ते ही इसके पहले की मैं कुछ बोल सकूँ उस ने अपना कहना जारी रखा .." हां तो मैं कह रही थी इस घर में कोई इंसान आज मुझे पहली बार दीखा ...आप कहीं बाहर गये थे क्या ...?""

मन ही मन मैने दुआएँ दीं कि कम से कम उस ने मुझे इंसान तो समझा और कहा "नहीं नहीं मैं तो यहीं था ..पर ज़रा बिज़ी था ....पर आप ...???"

"हा हा !! अरे वाह देखिए ना मैं भी ....मैं आपके पड़ोस में ही रहती हूँ ...वो आपसे एक घर छोड़ वो दूसरा घर है ना शाह साहेब का ..?? मैं उनकी बीबी स्वेता ... " और मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैने अब तक उनके बारे नहीं जान कर कोई बहोत बड़ा अपराध किया हो ...

मैने हाथ जोड़ते हुए कहा "नमस्कार स्वेता जी आप से मिल कर बहोत खुशी हुई ..."

"मुझे भी ...." अपनी दांतें चमकाते हुए उस ने कहा और शायद उसे नमस्कार जैसे सूखे और नीरस शिष्टाचार पर विश्वास नहीं था ..उस ने तपाक से अपने गोरे गोरे गुदाज हाथ बढ़ाए ...मैने उसकी मुलायम हथेली अपनी हथेली में ले लिया ..उस ने बड़ी गर्म जोशी से उसे थाम लिया और हिलाने लगी ...

"क्या हाथ छोड़ने का इरादा नहीं ....?? " मैं हाथ छुड़ाते हुए हँसने लगा .

"हा हा हा !! अब देखते जाइए आप भी हाथ से शूरू हुआ है ...मेरे लंबे हाथ और कहाँ तक पहूंचते हैं .... " उस ने खनखनाती हुई हँसी के साथ कहा ..

"ह्म्‍म्म्म, वो तो मैं देख ही रहा हूँ ..." मैने जवाब दिया .

" अरे वाह क्या देखा आप ने ...मैने अभी तो कुछ दिखाया ही नहीं ...??"

"देखने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं ..स्वेता जी ..!! "

"अच्छा जी ..तो आप क़यामत तक पहून्च चूके हैं..क्या देखा वहाँ ..? और यह "जी " तो ना ही लगाइए मेरे नाम के आगे ....इस भरी जवानी में ..."उस ने तपाक से मुस्कुराते हुए कहा..

"क़यामत नहीं स्वेता ..आपके हाथों का कमाल यहीं देखा मैने ..देखिए ना पहले आप अपने खूबसूरत हाथों से सिर्फ़ खूबसूरत फूलों को ही छूती थीं ..और आज आपने मेरे हाथ भी थाम लिए ..आगे और क्या थामेंगी ..?? "

"ह्म्‍म्म ...आप भी बातें खूब कर लेते हैं ...चलिए मुझे भी कोई तो मिला मेरी बराबरी का ...रही थामने की बात ..तो बस देखते जाइए ..मेरे हाथ का कमाल ... '' और उस ने एक सॅंपल दिखा ही दिया जाते जाते , मुझे आनेवाले दिनों में होनेवाले कमाल का.....


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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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jay
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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

Post by jay »

वो मेरे बगल में बैठी थी... उस ने कुर्सी से उठने की कोशिश में मेरी कुर्सी का हाथ जो उसकी कुर्सी से बिल्कुल लगा था ...का सहारा लिया ..पर यह जान बुझ कर हुआ या धोखे से ..नहीं मालूम ..पर जो हुआ मेरा पूरा जहेन झन झाना उठा ...उस ने सहारा तो लिया पर उसका हाथ फिसल गया कुर्सी के हाथ से और सीधा मेरे पॅंट की ज़िप पर आ कर रूका ....चूँकि मैं पैर फैलाए रिलॅक्स्ड पोज़िशन में था .. उस ने अपने हाथ से वहाँ अच्छी तरह दबाते हुए उसका सहारा लेते हुए उठने की कोशिश की और मेरे लंड का सहारा लेते हुए कोशिश मे कामयाब भी हो गयी ..मेरा लंड तड़प उठा उसकी मुट्ठी में ... उसे भी शायद अंदाज़ा हो गया उसकी मजबूती का .. जब खड़ी हो गयी तो स्वेता के होंठों पर एक संतोष और खुशी की मुस्कान थी और आँखों में चमक ...

"बड़ा अच्छा लगा ...आप से बातें कर .." स्वेता बोली..मुस्कुराते हुए ...

मैं भी अपने क्रॉच को सहलाते खड़ा हो गया ...और कहा "मुझे भी ...."

"ओके अब मैं चलूं ...देर हो रही है ...अब तो हम मिलते रहेंगे ... "

और वो फिर अपनी तूफ़ानी चाल से मेरे बगीचे की ओर चल पड़ी ..कुछ फूल तोड़े और अपने हाथों को हिलाते हुए बाइ किया और बाहर निकल गयी ....पर मेरे अंदर अपने तूफ़ानी चल और हाथ की पकड़ का धमाकेदार असर भी छ्चोड़ दिया ....

उफफफफफफफ्फ़.. क्या चीज़ थी ...एक आँधी आई चिंगारी में आग भड़काई और चली गयी ...मेरे दिलो- दिमाग़ में हलचल सी मची थी ...

कहाँ तो मैं अकेलेपन में बिरहा के गा रहा था ...और अब यह हाल है के भारती के भजन और स्वेता के संगीत का आलम छाया था... वाह रे वाह दिन बदलते भी देर नहीं लगती ...

भारती और स्वेता ..दोनों अपनी जगह बेमिसाल थी .. भारती दशहरी आम थी ...जिसे बस चूस्ते जाओ ..मीठा रस ही निकलेगा ..वहीं स्वेता बनारसी लन्गडे आम की तरह थी ..जिसे खाओ भी चूसो भी ..और मुझे दशहरी और लंगड़ा दोनों आम बहोत पसंद हैं...

मेरे लौडे में अभी भी उसकी मुट्ठी की पकड़ महसूस हो रही थी ,,जिस तरह स्वेता ने उसे दबाया था ..लग रहा थे जैसे उसे निचोड़ लेगी ... जब पहली ही मुलाक़ात में यह हाल ..आगे का हाल सोचते ही मन में झूरजूरी सी हो उठी ...मैं डिन्नर ले कर बीस्तर पर लेटा था और इन्ही विचारो में खोया था ...स्वेता के हाथ के कमाल को मेरे लंड महाराज अभी भी याद कर रहे थे .....पर मैं अभी तक यह समझ नहीं पाया कि स्वेता की हरकत जान बूझ कर थी या सिर्फ़ एक खूबसूरत हादसा ..? यह तो पता लगाना ही पड़ेगा ...वरना लेने के देने हो सकते हैं ...

और इस बात का पता काफ़ी हद तक स्वेता की दूसरी मुलाक़ात से चल गया ...

अगले दिन शाम को मैं उसी तरह चाइ पी कर बाहर बरामदे में बैठा था ...और फिर उसी तरह आँधी आई स्वेता के रूप में ...

आज जब वो मेरे सामने आई ..... मैं देखता ही रहा ... उस ने कल की ही तरह अपनी गुदाज हथेली बढ़ाई मेरी तरफ ....मेरे हाथों को बड़े प्यार से अपने हाथ में लेते हुए मसला और झूक गयी , उस ने बहोत ही लो नेक वाली और टाइट कुरती पहनी थी ...उस की दोनों गोलाइयाँ जैसे बाहर आने को मचल रही थी ..मैं अपनी कुर्सी से पूरी तरेह उठ भी नहीं पाया था ..इसलिए उसकी छाती मेरे चेहरे के बिल्कुल करीब थी ..उस ने बहोत ही लाइट और मादक पर्फ्यूम लगा रखी थी .. उसकी खूशबू का नशीला झोंका मेरे चेहरे पर पड़ा .....मुझे जैसे नशा सा हो गया ...उसकी गोरी गोरी चूचियों की गोलाई साफ दीख रही थी ...आँखों में चूचियों की गोलाई , नाक में उसकी मादक महक और हाथ में उसके गुदाज हाथ ...मैं पागल हो उठा था ...मेरी हालत देख वो मुस्कुराए जा रही थी ...फिर वो मेरे बगल में बैठ गयी ... सलवार भी बिल्कुल टाइट थी ..जैसे उस ने आज पूरी तैय्यारि कर ली थी मुझे घायल करने की ..उसकी कुरती उसके घूटनों तक ही आती थी ...टाइट सलवार के अंदर से मांसल और गदराई जंघें जैसे सलवार फाड़ कर बाहर फैलने को तैयार थीं...मैं बेचैन हो उठा था ...
मैं एक टक स्वेता को देखे जा रहा था ...

" अरे भाई साहेब कहाँ खो गये आप ...?? " उस ने बैठ ते हुए कहा "लगता है बीबी की याद बहोत सता रही है ...?? "

" क..कैसी हैं आप स्वेता भाभी ..." मैं ने अपने आप को नियंत्रित करते हुए कहा ..पर फिर भी मेरा उतावलापन झलक ही गया ...

" हा हा !! मैं जानती हूँ बाबा , जानती हूँ ...ऐसा ही होता है ....हम दोनों की हालत एक जैसी है...." उस ने ठहाका लगाते हुए कहा ...

" क्या मतलब भाभी ..?? "

"अरे क्या करूँ भाई साहेब , आपके शाह साहेब की नौकरी ही ऐसी है...महीने में चार दिन घर रहते हैं और बाकी दिन तौर पर ...अभी दो दिन हुए गये हैं ..पता नहीं कब तक आएँगे ... "उस ने यह इन्फर्मेशन दे कर मेरी आधी मुश्किल हाल कर दी ...

" अच्छा ..?? फिर तो आप अकेली सही में बोर हो जाती होंगी ... पर बच्चे तो होंगे ना ...? " मैने पूछा

यह बात सुन कर उसके चेहरे पर अचानक उदासी छा गयी और वो चूप हो गयी ... फिर सीरीयस होते हुए कहा

" भगवान का दिया सब कुछ है भाई साहेब , पर शादी के 8 साल हो गये हमारे ..पर हम अभी तक दो के दो ही हैं ... अकेला घर जैसे काट ने को दौड़ता है ..."

" ओह्ह सॉरी स्वेता भाभी ... पर इस में आप क्या कर सकती हैं ..." मैने दिलासा देते हुए कहा.. " मैने देखा है कितने कपल्स को शादी के 15 साल बाद भी बच्चे हुए हैं ..."

" ऐसा क्या ... ?? तब तो मुझे होप नहीं छोड़नी चाहिए ..??'" थोड़ी से मुस्कुराहट वापस लाते हुए स्वेता ने कहा

" हां हां बिल्कुल नहीं भाभी ... " मैने कहा और रामू को आवाज़ दी " रामू ... अरे भाई जल्दी चाइ लाओ यार ...मेरे लिए भी .."


मेरी बातों से स्वेता फिर से अपने पुराने मूड में लौट आईं ..मेरे गालों पर चिकोटी काट ते हुए कहा "ओह , यू आर छो च्वीत भाई साहेब ...आप की बातों से मेरा मन कितना हल्का हो गया ... आपका दिल भी आपके बगीचे की ही तरह खूबसूरत है ..."

"थॅंक्स भाभी ..." मैने उनकी तरफ देखते हुए कहा ..और फिर मेरी निगाहें उनकी छाती पर चूचियों के बीच अटक गयीं ....

स्वेता अपने हाथ गले की गोलडेन चैन पर ले गयी और उसे अपने हथेलियों पर ले लिया और उस से खेलने लगी अब उसकी चूचियों की उभार बिल्कुल नंगी थी ...और उसकी धड़कन के साथ उपर नीचे हो रही थी ..मेरी आँखें वहीं चीपक गयीं ...

" अरे आप फिर कहाँ खो गये भाई साहेब ... "उस ने शरारत भरी नज़रों से देखते हुए कहा ..और चेहरे पर एक विजयी मुस्कान भी थी ...

" अरे कहीं नहीं भाभी . बस ऐसे ही कुछ पुराने यादों की गहराई में गोते लगा रहा था ... "

" अच्छा ..तो गहराई में कुछ मोटी मिले या नहीं ...??"

" अब क्या बताऊ मैं भाभी ...मोटी तो इतने हैं के दोनों हाथों से भर लूँ फिर भी ना समायें .." मैने भी नहले पे दहला छोड़ते हुए कहा ...

" कोई बात नहीं भाई साहेब ..एक बार अगर मुत्ठियो में ना भी आयें तो क्या है ..आप जितनी बार चाहें गोते लगाओ .. बार बार मोती मे भरते रहो . जब तक पूरे मोती ना मिल जायें ... "ऐसा कहते हुए स्वेता ने नेकलेस को अपने मुँह में ले लिया और दाँतों के बीच हल्के हल्के काट ने लगी .. अब गले से नीचे तक पूरी छाती नंगी थी ...

मैं एक टक उन्हें निहारे जा रहा था ... और वो मुस्कुराए जा रही थीं ...

तभी रामू चाइ की ट्रे लिए आ गया , और टेबल पर रख चला गया ...

मैं गहराई से वापस चाइ के कप की ओर लौट आया ..और कप स्वेता की ओर बढ़ाया ..

स्वेता ने आगे बढ़ते हुए अपने चेहरे को मेरे चेहरे के बिल्कुल करीब लाते हुए मेरे हाथ से चाइ की कप ली , उसकी सांस मेरे चेहरे को छू रही थी ..मैं मदहोशी के आलम में था ..और उसकी मुस्कुराहट ने अब हँसी का रूप ले लिया ..हंसते हुए उस ने मेरे हाथ से चाइ ली और वापस कुर्सी पर पैर फैला कर बड़े रिलॅक्स्ड मूड में बैठ गयी ...दोनों जांघों के बीच वी शेप मुझे निमंत्रण दे रहा था ..मेरी आँखें अब उसके उपर से नीचे की ओर पहून्च गयी थीं ...

मैने जैसे तैसे चाइ पी .. पर स्वेता बड़े आराम से चाइ की चुस्कियाँ ले रही थी ..

"आप का रामू बड़ी अच्छी चाइ बनाता है ,,खाना भी अच्छा बनाता होगा ..??"

" आप खुद ही टेस्ट कर लीजिए ना उसका खाना ...अभी तो आप अकेली हैं ...कल सनडे है मेरी भी छुट्टी है ...अगर आप को ऐतराज़ नहीं तो लंच हमारे साथ कीजिए ..मुझे भी अकेले खाने की मुसीबत से कम से कम एक दिन तो छूटकारा मिलेगा ..."

" अरे वाह क्या बात कही आप ने ...ठीक है मैं रामू के हाथ का खाना ज़रूर खाउन्गि और कल ही ..आप तैय्यार रहना ... अच्छा अब मैं चलती हूँ .."
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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

Post by jay »

"ठीक है तो कल का लंच हम साथ ले रहें हैं ...पक्का .." कहते हुए मैं उठा ...वो भी उठी और जाते जाते फिर कमाल दिखा दिया ..पर इस बार हाथों का नहीं ...उस के हाथ में चाइ की खाली कप थी ..वो मेरे सामने आ गयी ..उसकी एक जाँघ मेरे सामने थी और दूसरा उसकी कुर्सी के सामने .. कप रखने को वो झूकि और अपने हिप को मेरे क्रॉच से बिल्कुल सटाते हुए कप टेबल पर रख दिया ..मेरा लॉडा उसकी हिप से रगड़ खा रहा था ... उस ने कप रखा और फिर सीधी खड़ी हो गयी ..और मेरे क्रॉच की तरफ देखा जो तंबू का आकर लिए था ...बड़े प्यार से मुस्कुराया और हाथ हिलाया ..पता नहीं यह हाथ हिलाना मेरी लिए था या मेरे तंबू जैसे क्रॉच के लिए ....

" कल तैयार रहना ..मैं आउन्गि ..." यह कहते हुए वो फिर से अपनी तूफ़ानी चाल से बगीचे की ओर चल पड़ी ..कुछ फूल तोड़े और बाहर निकल गयी ...

मैं अपने लौडे को सहला रहा था .......

मैं स्वेता भाभी के कमाल से परेशान था ..पिछले दो दिनों से ...उनके जाने के बाद मेरे लंड महाराज फूँफ़कार्ते रह जाते ...उन्हें बिल की सख़्त ज़रूरत थी .. पर आज तो किसी तरेह शांत होने का नाम ही नहीं था ...मैं बेचारा मरता क्या ना करता ...स्वेता भाभी की गदराई और फूली फूली चूत की कल्पना के सागर में गोते लगाने लगा और बाकी काम हाथ की सफाई से हो गया ...

जिसकी चूत की कल्पना मात्र से एक सीहरन , एक गुदगुदी एक रोमांच सो उठता था ,,जब सामने होगी तो क्या होगा ...ऊऊओह ..मैं सोच सोच कर पागल हो रहा था....पर मन में डर भी रहा था के भाभी कहीं ऐन मौके पे धोखा ना दे दे ..आख़िर एक औरत हैं ..हँसी मज़ाक अपनी जगेह है ..और जब असलियत का सामना हुआ तो कहीं उनकी लोक-लज्जा उन्हें रोक ना ले ..और मैं किसी के साथ कभी भी ज़बरदस्ती सेक्स नहीं करता ...जब तक कि दोनों की मर्ज़ी ना हो....तभी सेक्स का सही मज़ा आता है ...

पर मैने भी सोच लिया था जब बात इतनी आगे बढ़ गयी है ...तो मैं उन्हें राज़ी कर ही लूँगा ...
और सब से बड़ी बात के भाभी ने अपनी तरफ से तो काफ़ी इशारा कर ही दिया था ...और मैं कल आनेवाले सुनहरे पल की कल्पना में खो गया ...


सुबेह थोड़ी देर से उठा और रामू को आवाज़ दी .. और कहा " देख आज कुछ खास मेहमान आ रहें हैं खाने पर ...खाना बढ़िया होना चाहिए ..देख लो किचन में अच्छे से , कुछ और चाहिए तो बता दो ...और हां तुम 12 बजे तक खाना बना लेना ..और ओवेन में रख देना ..प्लेट लगा देना टेबल पर ..उसके बाद तुम्हारी छुट्टी है ..तुम चले जाना .."

"बहुत अच्छा साहेब .." और वो किचन की ओर चला गया ..

मैं नाश्ता करने के बाद बाहर निकल गया और बाज़ार से कुछ बियर और कोल्ड ड्रिंक्स की बॉटल ली और आइस क्रीम का एक बड़ा पॅक भी ले लिया ... और हां मोहन के यहाँ से पान का स्टॉक भी ले लिया आज सनडे होने की वाज़ेह से उसकी दूकान पर कुछ ज़्यादा ही भीड़ थी इस समय ..इसलिए उस से ज़्यादा बात नहीं हुई और मैं उस से ज़्यादा बात करने के मूड में भी नहीं था ..मेरे दिमाग़ में तो बस स्वेता भाभी ही छायि थीं अपनी पूरी लंबाई , उभार और गोलाई सहित ..

घर आ कर आइस क्रीम , बियर और कोल्ड ड्रिंक्स के बोतलों को फ्रीज़र में डाल दिया ..

तब तक रामू ने खाना बना लिया था , सभी काम तरीके से निबटा लिए थे और जाने की इजाज़त माँग रहा था ..मैने भी हां कर दी ...


अब मैं अकेला था और मेरे साथ था स्वेता भाभी का मन में गुदगुदी लाने वाला इंतेज़ार ...


मैं बाहर बरामदे में पेपर पढ़ता हुआ बेसब्री से गेट की ओर देख रहा था ...

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Re: मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदम

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बार बार अपनी रिस्ट . की ओर देखता .. 12 बज गये ....12.15 हो गये ...12.30 ...पर सामने अभी भी सन्नाटा था ...क्या हुआ ...कहीं उन्होने प्रोग्राम चेंज तो नही कर दिया ..कहीं शाह साहेब तौर से वापस तो नहीं आ गये ....मेरी बेसब्री बढ़ती जा रही थी ...कि गेट खुलने की आवाज़ आई ...सामने जो नज़ारा था ...मेरी आँखें खुली की खुली रह गयीं ...

सामने स्वेता भाभी मेरी ओर अपनी तूफ़ानी चाल से आ रहीं थीं ..

उन्होने शिफ्फॉन की झीनी सी सारी पहेन रखी थी ...नाभि से नीचे ... पतले सिल्क का मॅचिंग ब्लाउस ... वी नेक ... और स्लीवेलेस्स ...

और सारी का पल्लू ऐसा डाल रखा था उनके नाभि से उपर तक पूरा पेट नंगा था ... ब्लाउस भी ट्रॅन्स्परेंट ... मैं बस देखता ही जा रहा था ... ब्लाउस के अंदर मॅचिंग कलर का ब्रा ने उनकी चूचियों के उभार को और भी बढ़ा दिया था ... मैं आनेवाले तूफान की कल्पना मात्र से सीहर उठा ...

उन्होने आते ही रोज की तरह मेरे हाथ अपने हाथों में लिए प्यार से सहलाया और पूछा "एक टक क्या देख रहे हो भाई साहेब ... " उनकी आँखों में शरारत थी ..

" भाभी आप तो आज ग़ज़ब ढा रही हैं ..यू लुक सो ब्यूटिफुल आंड स्मार्ट ... "

" अरे छोड़ो भी ..मज़ाक मत करो ..मैं और ब्यूटिफुल ... ?? शाह साहेब तभी तो मुझ से हमेशा दूर ही दूर रहते हैं ..."

" अरे नहीं भाभी मैं झूठ क्यूँ बोलूं ...आप सही में साड़ी में बहोत खूबसूरत लग रहीं हैं , अच्छा है शाह साहेब अभी यहाँ नहीं हैं , वरना ... आप की खैर नहीं थी ..." और मेरे चेहरे पर एक भेद भरी मुस्कान थी ..

" अच्छा जी ... क्या कर लेते ..?? " स्वेता भाभी ने अंजान बनते हुए पूछा ..

" अब मैं क्या बताऊं भाभी ... चलिए अंदर चलते हैं ... वहीं आराम से बताता हूँ ..."

मेरी बात सुन कर स्वेता भाभी जोरों से हँसने लगीं और कहा ,'हां चलो अंदर और अच्छे से बताओ वो क्या करते ... "


वो मेरे से लगभग चीपकते हुए साथ साथ अंदर चलने लगी ...उनकी मदहोश करने वाली पर्फ्यूम मुझ पर जादू का असर कर रही थी ...उनकी पीठ भी नंगी थी ..ब्लाउस का स्ट्रॅप ब्रा के स्ट्रॅप को ढँकने तक ही था ...

साड़ी का यही तो फ़ायदा है ... जितना ढँकता नहीं उस से ज़्यादा उघाड़ देता है ...और यह बात स्वेता भाभी को अच्छे से मालूम था ...

जब वो चल रही थीं झीनी सी शिफ्फॉन की साड़ी के अंदर उनके चूतड़ का उभार बाहर छलक रहा था ..मानो अब बाहर आई ... जांघों का शेप उभर कर साड़ी के अंदर झलक रहा था ...

मैने उन्हें सोफे पर बैठने का इशारा किया और उनके बगल थोड़ा हट कर बैठ गया ...

बैठ ते हुए स्वेता भाभी ने कहा " हां अब चलो बताओ ज़रा ...क्या करते शाह साहेब ... ??"

" अब देखिए भाभी मैं शाह साहेब तो हूँ नहीं ...वो क्या करते यह तो वो जानें या फिर आप ..हां मैं इतना जानता हूँ मैं क्या करता ..." और उनकी तरफ एक टक देखने लगा ..उनकी आँखों में ...
मैने आज का अपना चाल चल दिया ..अब इस के रेस्पॉन्स पर ही आज की मेरी सारी प्लॅनिंग टीकी थी ...

वो जोरों से हंस पड़ीं ,,मेरे और करीब खीसक आईं और कहा .." वेरी स्मार्ट...... चलो ठीक है पर यह बार बार मुझे आप तो ना बोलो ...आज से मैं सिर्फ़ स्वेता हूँ ..समझे ..??? और तुम्हारा फर्स्ट नेम क्या है ..?? "

" प्रीतम ..." मैने फ़ौरन बताया ..

" वाह नाम भी क्या रोमॅंटिक है ... आज तो बस......" और फिर जोरों से हँसने लगी " ओके मैं तुम्हें प्रीत कहूँगी ..कोई ऐतराज ...???""

" बिल्कुल नहीं स्वेता ... "

" ओह छो.... च्वीत ऑफ यू प्रीत .." और फिर जोरों की हँसी ...

और यह हँसी मेरे लिए आज के दिन आगे आनेवाले मज़ेदार पलों की शुरुआत का इशारा था ...

" कम ऑन प्रीत ..अब तो बताओ ना ..प्लज़्ज़्ज़्ज़... !! " वो मेरे और करीब आ गयी ... उसकी और मेरी जांघों के बीच सिर्फ़ मेरे पॅंट और उसकी साड़ी की दूरी थी ..और उसकी शिफ्फॉन की सारी जैसे मेरे जाँघ में फिसल रही थी ...उसके जाँघ की गर्मी , मांसलता और सॉफ्टनेस मैं पूरी तारेह महसूस कर रहा था ..

" बताता हूँ स्वेता , बताता हूँ , पहले यह बताओ क्या पियोगी .. कोक या बियर ..???"

बियर का नाम सूनते ही उसकी आँखे चौड़ी हो गयीं ..और उस ने कहा
" ह्म्म लगता है आज तैयारी जोरदार है ...पर मैने कभी बियर ली नहीं ... मुझे तो बस कोक ही दे दो प्रीत ... "

"अरे यू शुवर स्वेता ..?? एक काम करो ..तुम्हारी कोक में बस थोड़ी सी बियर मिला देते हैं .. ठीक लगे तो ले लेना वरना मैं ले लूँगा और तुम्हें सिर्फ़ कोक ही दूँगा ..ईज़ इट ओके ..???"

"ओके प्रीत ..चलो आज यह भी हो जाए ..पर अगर कुछ हो गया तो फिर तुम जानो .."और फिर जोरों से हंस पड़ी ..
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