दरबार मे स्थान पाकर अब वीरप्पा के मष्तिष्क में कुटिलता दिनों दिन बढ़ने लगी। धीरे धीरे वीरप्पा ने अपने पुराने साथी सैनिकों से वापिस जान पहचान की उनको अपनी ताकत से परिचित करवाया। कुछ सैनिक वफादारी से तो कुछ डर से वीरप्पा का साथ देने के लिए तैयार हो गए।
उधर राजकुमार विजयराज की शिक्षा अब पूरी हो चुकी थी। अपने दोस्त पंडित के साथ वो अपने राज्य के लिए निकल गया। रास्ते मे दोनो दोस्तो ने अपनी अपनी विद्या के बारे में एक दूसरे को परिचय करवाया। पंडित पुत्र तंत्र विद्या में पारंगत था। तो विजयराज ने अपनी शास्त्र विद्या का ज्ञान भी पंडित पुत्र को दिया। दोनो में परिचय, होने के पश्चात पता चला कि दोनों के राज्य एक ही रास्ते मे आते है। खुशी खुशी एक साथ चले अपनी राह पर।
उधर राज्य में वीरप्पा अपनी योजना ने अनुरूप सैनिकों को अपनी तरफ करने में कामयाब हो रहा था। राजकुमारी के रूप वो शाही परिवार के प्रत्येक सदस्य को छल रहा था।
एक रोज राजकुमारी के रूप में वीरप्पा चक्रधर के साथ धुनष विद्या का अभ्यास कर रहा था। अचानक राजकुमारी बने वीरप्पा ने चक्रधर से कहा कि महोदय आप मेरे साथ आज तलवारबाजी का अभ्यास करो। चक्रधर अपनी शिष्या को सिखाने के लिए हमेशा तैयार रहता था तो उस दिन भी सहर्ष राजी हो गया। विरप्पा ने तो कुछ और ही सोच रखा था। अभ्यास करते करते राजकुमारी के वेश में वीरप्पा ने चक्रधर की भुजा पर जोर से तलवार का वार कर दिया जिससे चक्रधर की भुजा कटकर गिर पड़ी। साथ मे खड़े सैनिकों और दासियों में अफरातफरी मच गई। जानबूझकर प्रहार करने के पश्चात वीरप्पा ने सहानुभूति के आँशु भी टपकाये और रोने लगा। चूंकि राजकुंमारी के वेश में था तो किसी ने शक नही किया कि यह जनबूझकर किया गया है।
आनन फानन में चक्रधर को राजमहल में पहुंचाया गया। वैधजी को बुलाया गया और उपचार किया गया लेकिन चक्रधर का एक हाथ काट गया। वीरप्पा अपनी योजना में कामयाब हो गया। लेकिन दरबार तो लगना था। जांच होनी थी कि यह सब कैसे हुआ? दरबार लगा, वैभवराज के साथ रानी तारामती और मंत्रिमंडल के सदस्य भी विराजमान हुए।
मंत्री- महाराज की जय हो। आज दराबर में एक अनोखा मामला है, आपकी आज्ञा हो तो सुनवाई आरम्भ की जाए।
वैभवराज- मन्त्रिवर सुनवाई आरम्भ हो।
मंत्री- महाराज कल तलवारबाजी के अभ्यास के दौरान सेनापति चक्रधर का हाथ कट गया जो कि हमारे राज्य की अपूरणीय क्षति है।
वैभवराज- यह बहुत दुखद क्षण है। चक्रधर के प्रति सम्पूर्ण राज्य की सहानुभूति है।
मंत्री- लेकिन महाराज एक समस्या है।
वैभवराज- क्या समस्या मन्त्रिवर?
मंत्री- महाराज यह हादसा राजकुंमारी के हाथों से हुआ है।
वैभवराज- तो इसमें समस्या क्या है मन्त्रिवर! अपराध यदि शाही परिवार का कोई सदस्य करे तो क्या वह अपराध नही होता है! अपराध तो अपराध है। और फिर इतना बड़ा अपराध है सजा तो हमारे दण्ड विधान में सबके लिए एक सम्मान है।
मंत्री- महाराज आपकी बात सही है लेकिन यह राजकुंमारी ने जानबूझकर नही किया । साथ गए सैनिकों और राजकुमारी की सहेलियों जो कि प्रत्यक्षदर्शी है, उनसे हमने पूछताछ की है। पता चला है कि अभ्यास के दौरान राजकुमारी के हाथ से तलवार फिसल गई और सेनापति महोदय की बाजू कट गई।
वैभवराज- प्रत्यक्षदर्शियों को दरबार मे पेश किया जाय।
मंत्री- जी महाराज।
फिर अभ्यास के दौरान वहां उपस्थित सभी सैनिकों और राजकुमारी को सहेलियों को दरबार मे पेश किया जाता है। राजा प्रत्येक से सवाल करता है और उनका जवाब सुनता है। सभी लोगो से सवाल हो जाने के बाद राजा चक्रधर को दरबार मे बुलाता है। दो सैनिको का सहारा लेकर दर्द के साथ सेनापति चक्रधर राजदरबार में हाजिर होता है।
वैभवराज- सेनापति महोदय, आपके साथ हुई इस दुखद घटना का पता चला, हृदय को गहरा आघात पहुंचा है। आप हमारे राज्य के एक अभिन्न अंग हो और हमारे सुभचिंतक भी। अपराध किसी के भी द्वारा किया जाए उसकी सजा इस दरबार द्वारा अवश्य तय की जाती है।
चक्रधर- महाराज, यह कोई अपराध नही है। मानता हूं कि मेरी वजह से आपकी सेना को तनिक नुकसान हुआ है लेकिन मैं यह नही मान सकता कि यह एक अपराध है।
वैभवराज- सेनापति महोदय इसमें आपकी तो कोई गलती ही नही है। आप व्यर्थ में स्वयं को मानसिक कष्ट ना दे। मेने सभी प्रत्येक्षदर्शी से बातचीत की है। पता चला है कि यह अपराध राजकुमारी के हाथों हुआ है।
चक्रधर- लेकिन महाराज राजकुमारी ने यह जानबूझकर नही किया है। यह एक हादसा है जो अभ्यास के दौरान हो गया। मैं इसे राजकुमारी का अपराध नही मानता हूं।
वैभवराज- सेनापति महोदय यह आपकी वफादारी है शाही परिवार के लिए, लेकिन इससे जनता में अनुचित संदेश जाएगा। राजकुमारी को सजा तो मिलनी ही चाहिए। बिना हाथ आप अपने परिवार का भी पालन पोषण नही कर सकते है। आपके जीवन की अपूरणीय क्षति है।
राजकुमारी को दरबार मे पेश किया जाए।
राजकुमारी के वेश में वीरप्पा दरबार मे पेश होता है। हृदय में असीम खुशी और चेहरे पर बनावटी दर्द लिए। गर्दन झुकाए हुए ही वीरप्पा कहता है,,,
राजकुमारी(वीरप्पा)- महाराज सबसे पहले तो में सेनापति महोदय से क्षमायाचना करती हूं, दरबार मे सभी को प्रणाम और मैं मेरे इस अपराध को बिना किसी सुनवाई के स्वीकार करती हूं।
वैभवराज- राजकुमारी आपके अपराध की सुनवाई हो चुकी है, सभी पहलुओं पर गौर किया जा चुका है। बस हम आपसे अंतिम सवाल करना चाहते है।
राजकुमारी- महाराज, मैं अपना अपराध स्वीकार करती हूं, फिर भी आपको कुछ पूछना है तो आप पूछ सकते है।
वैभवराज- क्या अपने किसी वैरभावना या प्रतिशोध के चलते सेनापति से तलवारबाजी की थी?
राजकुमारी- नही महाराज, ऐसा कदापि मेरे जेहन में नही है कि आदरणीय सेनापति महोदय, जो कि मेरे सस्त्र गुरु भी है उनसे कभी मेरा कोई वैर हो सकता है या फिर कभी मैं उनसे किसी तरह का प्रतिशोध लेना चाहती हूं। महाराज हम सिर्फ अभ्यास कर रहे थे और इसी दौरान यह हादसा हो गया। लेकिन मैं समझती हूं कि इसमें मेरी गलती है। अतः मेरा इस दरबार से निवेदन है कि मुझे शाही परिवार की सदस्य समझकर दण्ड विधान का अपमान ना करे। यह दरबार जो भी सजा का मेरे लिए निर्णय करेगा वो मैं सहर्ष स्वीकार करूंगी।
चक्रधर- महाराज मेरा इस दरबार से निवेदन है कि अभ्यास के दौरान हुए इस हादसे को अपराध ना माना जाए और निरपराध राजकुमारी को कोई सजा ना दी जाए।
मन्त्रिवर आपस मे सलाह मशविरा करके महाराज के सामने सुझाव रखते है। रानी तारामती भी इस सलाह में शामिल थी। अंत मे निर्णय हुआ कि सेनापति के पद पर राजकुमारी को रहना होगा और वेतन के रूप में स्वर्णमुद्रा चक्रधर के परिवार को दी जाए साथ हि राजकुमारी स्वयं चक्रधर के परिवार की देखभाल करेगी। इसके साथ कम से कम राजकुंमारी को 1 माह की कैद की सजा दी जाएगी। चक्रधर के मना करने के बाद भी दरबार ने राजकुमारी को कैदखाने भेज दिया।
कैद में पहुंचकर वीरप्पा बहुत प्रशन्न हुआ। वो जो चाहता था उसमें सफल हुआ और अब कैद में वीरप्पा की योजना की अगली सीढ़ी बननी थी। जो अब वीरप्पा के लिए आसान थी।
शापित राजकुमारी
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Re: शापित राजकुमारी
कैद में वीरप्पा न आपानी योजना को आगे बढ़ाना शुरू किया। रात को जब पहरेदार भी सो जाते तो वीरप्पा एक कोठरी के सभी कैदियों को इक्कठा कर उनको शैतानी शक्तियां सिखाता। सभी कैदी जो कि सजा काट रहे थे जाहिर सी बात है कि राजा और शाही परिवार से वैमनस्य रखते थे तो शिघ्र ही वीरप्पा की बाते स्वीकार कर ली और शैतानी शक्तियां सीखने लगे। लेकिन एक माह की कैद में वीरप्पा सिर्फ सभी को कैसे सिखाता और समस्या यह भी थी कि जिस कोठरी में वीरप्पा राजकुमारी के रूप में कैद था उसमें सभी औरते थी।
लेकिन वीरप्पा रूप बदलना भी जानता था। दिन में तो सम्भव नही था लेकिन यह काम उसको रात में ही करना था। रात में वीरप्पा ने चमगादड़ का रूप बनाया और दूसरी कैद कोठरी में गया। एकबारगी सभी डर गए लेकिन वीरप्पा ने सबको विस्वास दिलाया कि मैं आप सबको इस कैद से बाहर निकाल लूंगा बस आपको मेरा काम करना है। मैं आपको एक मंत्र सिखाता हूं जिसे आपको सीखना है। कैद से बाहर आने के लालच में सभी ने वीरप्पा की बात स्वीकार ली और लगे शैतानी शक्तियों को सीखने में।
धीरे धीरे इस तरह वीरप्पा सभी को शैतानी शक्तियों में पारंगत कर दिया और अपनी एक सेना तैयार कर ली। दिन में राजकुमारी के रूप में शांत और रात में अपना शैतानी रूप दिखाकर सबको वीरप्पा ने अपनी तरफ कर लिया। सभी कैदियों को पता चल गया कि यह राजकुमारी नही बल्कि वीरप्पा ही है। पर किसी ने बताया नही क्योंकि वो स्वयं आजाद होना चाहते थे और शक्तिशाली भी। जो वीरप्पा उनको बना रहा था।
उधर गुफा में कुलसी का अत्याचार अब राजकुमारी पर तीव्र होता जा रहा था। भले ही राजकुमारी चुड़ैल रूप में थी लेकिन साहस इतना था कि शैतानी शक्तियों को स्वीकार नही किया। लेकिन कुलसी भी कहाँ हार मानने वाली थी। एक रोज कुलसी राजकुमारी को मना रही थी लेकिन राजकुमारी नही मानी तो कुलसी को गुस्सा आया उसने राजकुंमारी को पीटना शुरू कर दिया।
कुलसी- जब तक तू नही मानेगी मैं तुम्हे छोडूंगी नही।
राजकुमारी- तुम लोग बस इंसानों पर जुल्म करना जानते हो , अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करते हो। लेकिन मैं कदापि तुम्हारी बात नही मानुगी।
कुलसी को अब और क्रोध आ गया। उंसने राजकुमारी को एक काल कोठरी में डाल दिया जहां कुलसी की प्रशिक्षित की हुई चुड़ैलें थी। उन सब के बीच राजकुमारी असहाय थी। चुड़ैलें कभी डराती तो कभी राजकुमारी को पिटती। राजकुमारी ने सामना किया लेकिन अकेली कब तक उनका सामना कर सकती थी। लहूलुहान राजकुमारी के घावों पर चुड़ैलें और अधिक अत्याचार करने लगी। राजकुमारी के पैर में एक बड़ा घाव हुआ जहां चुड़ैल ने अपने नाखून से कुरेदकर दर्द को और असहनीय बना दिया।
इन सबके बीच राजकुमारी रोटी रही। एक कोने में सिमट कर बैठ गई। कुछ देर में चुड़ैलें शांत हुई लेकिन राजकुमारी का दर्द अब और असहनीय हो गया। शरीर पर असंख्य घाव थे। थोड़े थोड़े समय मे कोई ना कोई चुड़ैल आती और घाव पर अपने लंबे नाखून चुभोती। रोटी हुई राजकुमारी को देख कर हंसती, अट्टहास करती फिर वापिस चली जाती।
उधर ऋषि द्रुम गुफा के द्वार पर तो पहुंच गए थे लेकिन शैतान के प्रहरी सिंह से लड़ना ऋषि के लिए कठिन था। सन्त बनी चुड़ैल ने उन सिंघों के बारे में सब बता दिया। ऋषि ने उनसे सीधे लड़ना अपनी मौत को बुलाने जैसा समझा। ऋषि ने सोचा कि यदि बाहर ऐसे शेर है तो गुफा के अंदर तो शैतान की कितनी भयंकर शक्तियां होगी। यदि यहीं मेरी सारी ताकत लगा दूँगा तो अंदर जाकर राजकुमारी की मदद कैसे करूँगा।
द्रुम ऋषि वहीं पास के एक पेड़ के नीचे आग जलाकर बैठ गए और मंत्रोच्चार करने लगे। उन्होंने शेर का सामना करने की नई तरकीब सोची। जिसके लिए ऋषि अग्नि के सामने मंत्रोच्चार करने लग गए।
राजकुमार विजयराज और पंडितपुत्र दोनो अपनी मस्ती में रास्ते मे चल रहे थे। रात का अंधेरा हो गया था। दोनो ने सोचा कि कहीं अच्छी जगह देख कर रात्रि बिताई जाए। तभी दूर एक मशाल जलती दिखाई दी। दोनों तेज गति चले और वहां पहुंचे , देखा कि वहां एक झोंपड़ी थी और एक बुढ़िया बाहर बैठी थी। पास ही चारपाई पर एक बुजुर्ग असहाय से लेते थे। झोंपड़ी से रोने की सी आवाज आ रही थी।
पण्डितपुत्र ने माताजी को नमस्कार किया और अपना परिचय दिया। राजकुमार के बारे में जानकर माताजी ने उनको वहाँ रुकने की सहमति दे दी। जलपान के पश्चात पण्डितपुत्र ने पूछा,,,,
पण्डितपुत्र- माताजी अंदर रोने की आवाज सी सुनाई दे रही है मुझे। बुरा ना मानना, लेकिन मैं जानना चाहता हूं।
बुजुर्ग महिला- बेटा क्या बताऊँ। मेरी बेटी है। पता नही इसको क्या बीमारी है। हेमशा अजीब सा व्यवहार करती है। इसके व्यवहार के चलते जमीदार ने हमे गांव से बाहर निकाल दिया।
पण्डितपुत्र- ओहो फिर आपने किसी वैद्य को दिखाया।
महिला- बहुत से वैद्य को दिखाया लेकिन कोई समाधान नही हुआ।
पण्डितपुत्र-क्या मैं मिल सकता हूं आपकी बेटी से।
महिला- जी ठीक है। लेकिन ध्यान रखना वो किसी इंसान को देख कर अजीब ही हरकत करती है और चिल्लाती भी है।
पण्डितपुत्र- ठीक है आप चिंता मत करो। मैं सम्भाल लूंगा।
पण्डितपुत्र राजकुमार के साथ झोंपड़ी में जाता है, अंदर का दृश्य देखकर चौंक जाता है। अंदर एक 15/16साल की लड़की जिसके हाथ पांव बंधे है और चेहरे पर बहुत से नाखून के निशान है। पण्डितपुत्र और राजकुमार को देखते ही वो छटपटाने लगी और चिल्लाने लगी। पण्डितपुत्र मन कुछ मंत्र बुदबुदाता है और लड़की शांत हो जाती है। फिर राजकुमार को पण्डितपुत्र कान में कुछ कहता है और राजकुमार बाहर चला जाता है। फिर पण्डितपुत्र लड़की के हाथ पांव खोल देता है। राजकुमार पण्डितपुत्र के कहे अनुसार बाहर से कुछ लाता है।
पण्डितपुत्र- राजकुमार तुम मंत्रोचारण के साथ अग्नि में घी की आहुति दो ताकि वातावरण सुध हो जाये। वैसे भी रात्रि का समय है सम्भलकर , मैं एक घण्टे तक कुछ नही बोलूंगा, यदी तुम्हे लगे कि लड़की में कुछ हलचल हो रही है तो जल के छींटे देते रहना।
राजकुमार- पंडित तुम मेरी चिंता मत करना, हालांकि मैं नही जानता कि तुम क्या करने वाले हो लेकिन मैं साहस से काम लूंगा। तुम तनिक भी चिंता ना करना।
इसके बाद पण्डितपुत्र अपनी तंत्रविद्या में लीन हो जाता है और राजकुमार वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए घी की आहुति से वातावरण सुध करता है। लड़की में चेतना का संचार होता है और अत्यधीक छटपटाहट के साथ चिल्लाने लगती है। सामने राजकुमार पर नजर पड़ते ही लड़की राजकुमार पर टूट पड़ती है एयर नाखून से राजकुमार के चेहरे पे घाव कर देती है लेकिन राजकुमार ने साहस का परिचय दिया और लड़की को क्षकर पकड़ लेता है।
कुछ समय के बाद लड़की शांत हो जाती है और निढाल होकर गिर जाती है। एक घण्टे के तंत्र साधना के पश्चात पण्डितपुत्र आंखे खोलता है तो लड़की तुरन्त होश में आ जाती है। पण्डितपुत्र कि तरफ झपटते ही राजकुमार लड़की पर जल की छींटे देना शुरू कर देता है।
बाहर बैठे लड़की के माता पिता बेहाल हो जाते है। राजकुमार बाहर जाना चाहता था लेकिन पण्डितपुत्र के इसारे से रुक जाता है। लड़की फिर निढाल हो जाती है। अब पण्डितपुत्र और राजकुमार दोनो ने लड़की के चारो तरफ जल की एक रेखा बनाई और बाहर आये।
लड़की के माता पिता को सम्भाला।
पण्डितपुत्र- माताजी अब आप चिंता मत कीजिये। सब कुछ ठीक हो गया है।
महिला- बेटा हुआ क्या था मेरी बेटी को।
पण्डितपुत्र- माताजी एक बात बताओ क्या आपके परिवार का कभी किसी साधु से मिलन हुआ था।
महिला- हा , पहले गांव में एक संत रहते थे जो हमेशा हमारे घर पर ही खाना खाता था और मेरी बेटी ही उसे खाना खिलाती थी। लेकिन हुआ क्या?
पण्डितपुत्र- माताजी हर संत रूप में दिखने वाला जरूरी नही की अच्छा इंसान ही होता है। कुछ ढोंगी भी होते है जो अपने स्वार्थ के कारण किसी नादान और भोले इंसानों को गलत राह पर ले जाते है। या उन्हें आपको पुत्री की तरह प्रताड़ित करते है।
महिला- मैं समझी नही,,
पण्डितपुत्र- आपकी पुत्री को किसी डोंगी साधु के द्वारा श्राप मिला हुआ था।
महिला- लेकिन मेरी बेटी की क्या गलती थी कि श्राप मिला उसको।
पण्डितपुत्र- माताजी गलती कुछ नही, लेकिन कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी और को परेशान करते है। तंत्र विद्या का गलत उपयोग करके वो लोग शैतानी ताकत हाशिल करने की चाह में ऐसे नादानों बालको को या भोले भाले लोगों को अपना शिकार बनाते है।
महिला- अब क्या होगा बेटा।
पण्डितपुत्र- अब सब ठीक है। आप चिंता ना करे। हमने आपकी पुत्री को अब ठीक कर दिया है।
महिला- बेटा आपका यह ऋण मैं कैसे चुकाऊं।
पण्डितपुत्र- माताजी आप अपना आशीर्वाद दीजिये की हमे रास्ते मे किसी मुसीबत का सामना करने की हिम्मत मिले। और कुछ नही चाहिए।
महिला- बेटा भगवान आप दोनों को सदा खुश रखे। आप विश्राम करो मैं खाना बना देती हूं।
राजकुमार- जी माताजी बहुत भूख लगी हुई है। जरा जल्दी बना दो।
राजकुमार और पंडित पुत्र ने रात्रि में वहीं विश्राम किया और प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत होकर फिर अपने मार्ग पर चले। राज्य के अब निकट पहुंच गए थे।
उधर ऋषि द्रुम अब तपस्या में लीन थे और सिंह गुफा के द्वार पर कड़ा पहरा दे रहे थे। गुफा के अंदर एक काल कोठरी के कोने में डरी सहमी हुई राजकुमारी बैठी रो रही थी। कुलसी का अत्याचार अब दिन प्रतिदिन बढ़ रहा था। चुड़ैलें आती और राजकुमारी के घावों को नाखून से कुरेदती, तब राजकुमारी चिल्लाती और चुड़ैलें हंसती, अट्टहास करती।
पिछले 3 दिन से राजकुमारी ने कुछ भी नही खाया था। गुफा में उसे तामसी खाना मिला जो राजकुमारी को मंजूर नही था। खाना ना खाने पर कुसली और अधिक सताती लेकिन राजकुमारी ने कहा कि तुम मेरे शरीर को यातना दे सकती हो, वश में कर सकती हो लेकिन मेरी अंतरात्मा मेरे हृदय को तुम कभी इस बुरी प्रवृति के लिए तैयार नही कर सकती।
महल में वीरप्पा राजकुमारी के वेश में कैद खाने में था। अपनी कुटिल सोच को सार्थक करने का भरसक प्रयास कर रहा था। एक तरफ चक्रधर का हाथ काटकर मानो सेना को ही अपंग कर दिया और दूसरी तरफ कैद में सभी कैदियों को शैतानी शक्तियों से मंड दिया। रूप बदलना और अदृश्य होना जैसी विद्या उनको सीखा दी।
ऋषि द्रुम ने मंत्रोच्चार से मायावी हिरणों का झुंड जंगल मे प्रविष्ट कराया। एक एक करके हिरण गुफा के द्वार के सामने से गुजरने लगे। सिंह अब हिरण को देखकर मचल गए। बहुत समय के बाद अपना शिकार देखकर सिंह बेकाबू हो गए। एक सिंह ने हिरण के पीछे दौड़ लगाई तो हिरण कुलांचे भरता भाग गया। तभी दूसरा हिरण सिंह के सामने आकर खड़ा हो गया। सिंह ने जोर से दहाड़ मारी। गुफा के सभी सिंह उस दहाड़ को सुनकर द्वार पर आ गए। सामने हिरणों का झुंड देखकर सभी दहाड़ने लगे।
एक सिंह ने हिरण के पीछे दौड़ लगाई तो हिरण भागने लगे उसे देखकर सभी सिंह हिरणों के पीछे दौड़ने लगे। चूंकि हिरण तो मायावी थे जो सन्त द्रुम की चाल थी। सभी हिरण जंगल से बहुत दूर निकल गए और उनके पीछे सारे सिंह भी। द्रुम अपनी योजना में कामयाब हो गए।
जैसे ही गुफा में प्रवेश करने लगे चमगादड़ ( जो सन्त बना हुआ था)ने उसे रोका।
चमगादड़- महात्मा आपके साथ रहने के बाद मैं सत्य और असत्य , अच्छाई और बुराई को समझ गया हूं। अब इस गुफा के बारे में मैं आपको सब सच बताता हूं। आप इस तरह सीधा अंदर प्रवेश करने की कोशिश ना करे।
द्रुम- अच्छा हुआ तुमने अच्छाई को पहचान,,, लेकिन गुफा मैं अब क्या भय है। सिंह तो द्वार पर है नही और मेरे हिरण उनको इतनी जल्दी वापिस भी नही आने देंगे।
चमगादड़- महात्मा जी, अंदर मेरे जैसे बहुत से लोग है जिन्होंने
चमगादड़ और चुड़ैलों का रूप लेकर एक अलग प्रकार की दुनियां बना रखी है। राजकुमारी भी अंदर है। ऐसे में हमे सोच समझकर अंदर जाना है।
द्रुम - बताओ तो फिर अब हमें क्या करना चाहिए।
चमगादड़- महात्मा जी अंदर जाते ही एक चमगादड़ो का झुंड हम पर हमला बोलेगा,, मुझे तो वो लोग जानते है। उन्हें पता है कि मैंने नया रूप ले रखा है। लेकिन वो लोग आपको भी पहचान लेंगे की आप उनकी दुनियां से अलग है। आप पर हमला करेंगे।
द्रुम- तो हमे क्या करना चाहिए?
चमगादड़- महात्मा जी, शैतानी शक्ति से निपटने का तरीका तो मुझे नही आता। मैं बस आपको आगाह कर रहा हूं, आपको बता सकता हु की अंदर किस तरह की समस्या से आपको सामना करना पड़ेगा।
द्रुम- शैतानी शक्ति का तोड़ तो तंत्र विद्या के द्वारा होता है और मुझे तो मंत्र साधना आती है। इस तरह की गलत विद्या का अध्ययन मेने कभी किया नही है।
चमगादड़- फिर आप कैसे सामना करोगे?
लेकिन वीरप्पा रूप बदलना भी जानता था। दिन में तो सम्भव नही था लेकिन यह काम उसको रात में ही करना था। रात में वीरप्पा ने चमगादड़ का रूप बनाया और दूसरी कैद कोठरी में गया। एकबारगी सभी डर गए लेकिन वीरप्पा ने सबको विस्वास दिलाया कि मैं आप सबको इस कैद से बाहर निकाल लूंगा बस आपको मेरा काम करना है। मैं आपको एक मंत्र सिखाता हूं जिसे आपको सीखना है। कैद से बाहर आने के लालच में सभी ने वीरप्पा की बात स्वीकार ली और लगे शैतानी शक्तियों को सीखने में।
धीरे धीरे इस तरह वीरप्पा सभी को शैतानी शक्तियों में पारंगत कर दिया और अपनी एक सेना तैयार कर ली। दिन में राजकुमारी के रूप में शांत और रात में अपना शैतानी रूप दिखाकर सबको वीरप्पा ने अपनी तरफ कर लिया। सभी कैदियों को पता चल गया कि यह राजकुमारी नही बल्कि वीरप्पा ही है। पर किसी ने बताया नही क्योंकि वो स्वयं आजाद होना चाहते थे और शक्तिशाली भी। जो वीरप्पा उनको बना रहा था।
उधर गुफा में कुलसी का अत्याचार अब राजकुमारी पर तीव्र होता जा रहा था। भले ही राजकुमारी चुड़ैल रूप में थी लेकिन साहस इतना था कि शैतानी शक्तियों को स्वीकार नही किया। लेकिन कुलसी भी कहाँ हार मानने वाली थी। एक रोज कुलसी राजकुमारी को मना रही थी लेकिन राजकुमारी नही मानी तो कुलसी को गुस्सा आया उसने राजकुंमारी को पीटना शुरू कर दिया।
कुलसी- जब तक तू नही मानेगी मैं तुम्हे छोडूंगी नही।
राजकुमारी- तुम लोग बस इंसानों पर जुल्म करना जानते हो , अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करते हो। लेकिन मैं कदापि तुम्हारी बात नही मानुगी।
कुलसी को अब और क्रोध आ गया। उंसने राजकुमारी को एक काल कोठरी में डाल दिया जहां कुलसी की प्रशिक्षित की हुई चुड़ैलें थी। उन सब के बीच राजकुमारी असहाय थी। चुड़ैलें कभी डराती तो कभी राजकुमारी को पिटती। राजकुमारी ने सामना किया लेकिन अकेली कब तक उनका सामना कर सकती थी। लहूलुहान राजकुमारी के घावों पर चुड़ैलें और अधिक अत्याचार करने लगी। राजकुमारी के पैर में एक बड़ा घाव हुआ जहां चुड़ैल ने अपने नाखून से कुरेदकर दर्द को और असहनीय बना दिया।
इन सबके बीच राजकुमारी रोटी रही। एक कोने में सिमट कर बैठ गई। कुछ देर में चुड़ैलें शांत हुई लेकिन राजकुमारी का दर्द अब और असहनीय हो गया। शरीर पर असंख्य घाव थे। थोड़े थोड़े समय मे कोई ना कोई चुड़ैल आती और घाव पर अपने लंबे नाखून चुभोती। रोटी हुई राजकुमारी को देख कर हंसती, अट्टहास करती फिर वापिस चली जाती।
उधर ऋषि द्रुम गुफा के द्वार पर तो पहुंच गए थे लेकिन शैतान के प्रहरी सिंह से लड़ना ऋषि के लिए कठिन था। सन्त बनी चुड़ैल ने उन सिंघों के बारे में सब बता दिया। ऋषि ने उनसे सीधे लड़ना अपनी मौत को बुलाने जैसा समझा। ऋषि ने सोचा कि यदि बाहर ऐसे शेर है तो गुफा के अंदर तो शैतान की कितनी भयंकर शक्तियां होगी। यदि यहीं मेरी सारी ताकत लगा दूँगा तो अंदर जाकर राजकुमारी की मदद कैसे करूँगा।
द्रुम ऋषि वहीं पास के एक पेड़ के नीचे आग जलाकर बैठ गए और मंत्रोच्चार करने लगे। उन्होंने शेर का सामना करने की नई तरकीब सोची। जिसके लिए ऋषि अग्नि के सामने मंत्रोच्चार करने लग गए।
राजकुमार विजयराज और पंडितपुत्र दोनो अपनी मस्ती में रास्ते मे चल रहे थे। रात का अंधेरा हो गया था। दोनो ने सोचा कि कहीं अच्छी जगह देख कर रात्रि बिताई जाए। तभी दूर एक मशाल जलती दिखाई दी। दोनों तेज गति चले और वहां पहुंचे , देखा कि वहां एक झोंपड़ी थी और एक बुढ़िया बाहर बैठी थी। पास ही चारपाई पर एक बुजुर्ग असहाय से लेते थे। झोंपड़ी से रोने की सी आवाज आ रही थी।
पण्डितपुत्र ने माताजी को नमस्कार किया और अपना परिचय दिया। राजकुमार के बारे में जानकर माताजी ने उनको वहाँ रुकने की सहमति दे दी। जलपान के पश्चात पण्डितपुत्र ने पूछा,,,,
पण्डितपुत्र- माताजी अंदर रोने की आवाज सी सुनाई दे रही है मुझे। बुरा ना मानना, लेकिन मैं जानना चाहता हूं।
बुजुर्ग महिला- बेटा क्या बताऊँ। मेरी बेटी है। पता नही इसको क्या बीमारी है। हेमशा अजीब सा व्यवहार करती है। इसके व्यवहार के चलते जमीदार ने हमे गांव से बाहर निकाल दिया।
पण्डितपुत्र- ओहो फिर आपने किसी वैद्य को दिखाया।
महिला- बहुत से वैद्य को दिखाया लेकिन कोई समाधान नही हुआ।
पण्डितपुत्र-क्या मैं मिल सकता हूं आपकी बेटी से।
महिला- जी ठीक है। लेकिन ध्यान रखना वो किसी इंसान को देख कर अजीब ही हरकत करती है और चिल्लाती भी है।
पण्डितपुत्र- ठीक है आप चिंता मत करो। मैं सम्भाल लूंगा।
पण्डितपुत्र राजकुमार के साथ झोंपड़ी में जाता है, अंदर का दृश्य देखकर चौंक जाता है। अंदर एक 15/16साल की लड़की जिसके हाथ पांव बंधे है और चेहरे पर बहुत से नाखून के निशान है। पण्डितपुत्र और राजकुमार को देखते ही वो छटपटाने लगी और चिल्लाने लगी। पण्डितपुत्र मन कुछ मंत्र बुदबुदाता है और लड़की शांत हो जाती है। फिर राजकुमार को पण्डितपुत्र कान में कुछ कहता है और राजकुमार बाहर चला जाता है। फिर पण्डितपुत्र लड़की के हाथ पांव खोल देता है। राजकुमार पण्डितपुत्र के कहे अनुसार बाहर से कुछ लाता है।
पण्डितपुत्र- राजकुमार तुम मंत्रोचारण के साथ अग्नि में घी की आहुति दो ताकि वातावरण सुध हो जाये। वैसे भी रात्रि का समय है सम्भलकर , मैं एक घण्टे तक कुछ नही बोलूंगा, यदी तुम्हे लगे कि लड़की में कुछ हलचल हो रही है तो जल के छींटे देते रहना।
राजकुमार- पंडित तुम मेरी चिंता मत करना, हालांकि मैं नही जानता कि तुम क्या करने वाले हो लेकिन मैं साहस से काम लूंगा। तुम तनिक भी चिंता ना करना।
इसके बाद पण्डितपुत्र अपनी तंत्रविद्या में लीन हो जाता है और राजकुमार वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए घी की आहुति से वातावरण सुध करता है। लड़की में चेतना का संचार होता है और अत्यधीक छटपटाहट के साथ चिल्लाने लगती है। सामने राजकुमार पर नजर पड़ते ही लड़की राजकुमार पर टूट पड़ती है एयर नाखून से राजकुमार के चेहरे पे घाव कर देती है लेकिन राजकुमार ने साहस का परिचय दिया और लड़की को क्षकर पकड़ लेता है।
कुछ समय के बाद लड़की शांत हो जाती है और निढाल होकर गिर जाती है। एक घण्टे के तंत्र साधना के पश्चात पण्डितपुत्र आंखे खोलता है तो लड़की तुरन्त होश में आ जाती है। पण्डितपुत्र कि तरफ झपटते ही राजकुमार लड़की पर जल की छींटे देना शुरू कर देता है।
बाहर बैठे लड़की के माता पिता बेहाल हो जाते है। राजकुमार बाहर जाना चाहता था लेकिन पण्डितपुत्र के इसारे से रुक जाता है। लड़की फिर निढाल हो जाती है। अब पण्डितपुत्र और राजकुमार दोनो ने लड़की के चारो तरफ जल की एक रेखा बनाई और बाहर आये।
लड़की के माता पिता को सम्भाला।
पण्डितपुत्र- माताजी अब आप चिंता मत कीजिये। सब कुछ ठीक हो गया है।
महिला- बेटा हुआ क्या था मेरी बेटी को।
पण्डितपुत्र- माताजी एक बात बताओ क्या आपके परिवार का कभी किसी साधु से मिलन हुआ था।
महिला- हा , पहले गांव में एक संत रहते थे जो हमेशा हमारे घर पर ही खाना खाता था और मेरी बेटी ही उसे खाना खिलाती थी। लेकिन हुआ क्या?
पण्डितपुत्र- माताजी हर संत रूप में दिखने वाला जरूरी नही की अच्छा इंसान ही होता है। कुछ ढोंगी भी होते है जो अपने स्वार्थ के कारण किसी नादान और भोले इंसानों को गलत राह पर ले जाते है। या उन्हें आपको पुत्री की तरह प्रताड़ित करते है।
महिला- मैं समझी नही,,
पण्डितपुत्र- आपकी पुत्री को किसी डोंगी साधु के द्वारा श्राप मिला हुआ था।
महिला- लेकिन मेरी बेटी की क्या गलती थी कि श्राप मिला उसको।
पण्डितपुत्र- माताजी गलती कुछ नही, लेकिन कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी और को परेशान करते है। तंत्र विद्या का गलत उपयोग करके वो लोग शैतानी ताकत हाशिल करने की चाह में ऐसे नादानों बालको को या भोले भाले लोगों को अपना शिकार बनाते है।
महिला- अब क्या होगा बेटा।
पण्डितपुत्र- अब सब ठीक है। आप चिंता ना करे। हमने आपकी पुत्री को अब ठीक कर दिया है।
महिला- बेटा आपका यह ऋण मैं कैसे चुकाऊं।
पण्डितपुत्र- माताजी आप अपना आशीर्वाद दीजिये की हमे रास्ते मे किसी मुसीबत का सामना करने की हिम्मत मिले। और कुछ नही चाहिए।
महिला- बेटा भगवान आप दोनों को सदा खुश रखे। आप विश्राम करो मैं खाना बना देती हूं।
राजकुमार- जी माताजी बहुत भूख लगी हुई है। जरा जल्दी बना दो।
राजकुमार और पंडित पुत्र ने रात्रि में वहीं विश्राम किया और प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत होकर फिर अपने मार्ग पर चले। राज्य के अब निकट पहुंच गए थे।
उधर ऋषि द्रुम अब तपस्या में लीन थे और सिंह गुफा के द्वार पर कड़ा पहरा दे रहे थे। गुफा के अंदर एक काल कोठरी के कोने में डरी सहमी हुई राजकुमारी बैठी रो रही थी। कुलसी का अत्याचार अब दिन प्रतिदिन बढ़ रहा था। चुड़ैलें आती और राजकुमारी के घावों को नाखून से कुरेदती, तब राजकुमारी चिल्लाती और चुड़ैलें हंसती, अट्टहास करती।
पिछले 3 दिन से राजकुमारी ने कुछ भी नही खाया था। गुफा में उसे तामसी खाना मिला जो राजकुमारी को मंजूर नही था। खाना ना खाने पर कुसली और अधिक सताती लेकिन राजकुमारी ने कहा कि तुम मेरे शरीर को यातना दे सकती हो, वश में कर सकती हो लेकिन मेरी अंतरात्मा मेरे हृदय को तुम कभी इस बुरी प्रवृति के लिए तैयार नही कर सकती।
महल में वीरप्पा राजकुमारी के वेश में कैद खाने में था। अपनी कुटिल सोच को सार्थक करने का भरसक प्रयास कर रहा था। एक तरफ चक्रधर का हाथ काटकर मानो सेना को ही अपंग कर दिया और दूसरी तरफ कैद में सभी कैदियों को शैतानी शक्तियों से मंड दिया। रूप बदलना और अदृश्य होना जैसी विद्या उनको सीखा दी।
ऋषि द्रुम ने मंत्रोच्चार से मायावी हिरणों का झुंड जंगल मे प्रविष्ट कराया। एक एक करके हिरण गुफा के द्वार के सामने से गुजरने लगे। सिंह अब हिरण को देखकर मचल गए। बहुत समय के बाद अपना शिकार देखकर सिंह बेकाबू हो गए। एक सिंह ने हिरण के पीछे दौड़ लगाई तो हिरण कुलांचे भरता भाग गया। तभी दूसरा हिरण सिंह के सामने आकर खड़ा हो गया। सिंह ने जोर से दहाड़ मारी। गुफा के सभी सिंह उस दहाड़ को सुनकर द्वार पर आ गए। सामने हिरणों का झुंड देखकर सभी दहाड़ने लगे।
एक सिंह ने हिरण के पीछे दौड़ लगाई तो हिरण भागने लगे उसे देखकर सभी सिंह हिरणों के पीछे दौड़ने लगे। चूंकि हिरण तो मायावी थे जो सन्त द्रुम की चाल थी। सभी हिरण जंगल से बहुत दूर निकल गए और उनके पीछे सारे सिंह भी। द्रुम अपनी योजना में कामयाब हो गए।
जैसे ही गुफा में प्रवेश करने लगे चमगादड़ ( जो सन्त बना हुआ था)ने उसे रोका।
चमगादड़- महात्मा आपके साथ रहने के बाद मैं सत्य और असत्य , अच्छाई और बुराई को समझ गया हूं। अब इस गुफा के बारे में मैं आपको सब सच बताता हूं। आप इस तरह सीधा अंदर प्रवेश करने की कोशिश ना करे।
द्रुम- अच्छा हुआ तुमने अच्छाई को पहचान,,, लेकिन गुफा मैं अब क्या भय है। सिंह तो द्वार पर है नही और मेरे हिरण उनको इतनी जल्दी वापिस भी नही आने देंगे।
चमगादड़- महात्मा जी, अंदर मेरे जैसे बहुत से लोग है जिन्होंने
चमगादड़ और चुड़ैलों का रूप लेकर एक अलग प्रकार की दुनियां बना रखी है। राजकुमारी भी अंदर है। ऐसे में हमे सोच समझकर अंदर जाना है।
द्रुम - बताओ तो फिर अब हमें क्या करना चाहिए।
चमगादड़- महात्मा जी अंदर जाते ही एक चमगादड़ो का झुंड हम पर हमला बोलेगा,, मुझे तो वो लोग जानते है। उन्हें पता है कि मैंने नया रूप ले रखा है। लेकिन वो लोग आपको भी पहचान लेंगे की आप उनकी दुनियां से अलग है। आप पर हमला करेंगे।
द्रुम- तो हमे क्या करना चाहिए?
चमगादड़- महात्मा जी, शैतानी शक्ति से निपटने का तरीका तो मुझे नही आता। मैं बस आपको आगाह कर रहा हूं, आपको बता सकता हु की अंदर किस तरह की समस्या से आपको सामना करना पड़ेगा।
द्रुम- शैतानी शक्ति का तोड़ तो तंत्र विद्या के द्वारा होता है और मुझे तो मंत्र साधना आती है। इस तरह की गलत विद्या का अध्ययन मेने कभी किया नही है।
चमगादड़- फिर आप कैसे सामना करोगे?
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- Kamini
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Re: शापित राजकुमारी
द्रुम - महाशय अब तो मुझे बस किसी तरह राजकुमारी तक पहुंचना है, मुझे नही पता कि आगे क्या होगा लेकिन मुझे बस राजकुमारी की चिंता है।
चमगादड़- महात्मा जी मैं आपकी एक मदद कर सकता हूँ । यदि आप चाहो तो""
द्रुम - किस प्रकार की मदद! तुम जो भी कुछ जानते हो शीघ्र बताओ।
चमगादड़- मैं आपको अदृश्य होने का मंत्र सीखा सकता हूं।
द्रुम ऋषि ने कुछ सोचा, लेकिन सवाल यह था कि कैसे भी राजकुमारी तक पहुंचना है तो किसी भी प्रकार की सहायता मिले वो लेना ऋषि बुरा नही समझते थे। सोच कर ऋषि ने हाँ कर दी।
चमगादड़ ने ऋषि को बताया कि रात्रि के समय तंत्र विद्या की साधना करने से ज्यादा कारगर होती है। ऋषि के मन मे अब धैर्य रखना थोड़ा मुश्किल था लेकिन उनको यह भी पता था कि सब कुछ सोच समझकर करना सही होगा। जल्दबाजी में लिया गया निर्णय किस क़द्र मुसीबत में फंसा देता है वो ऋषि जानते थे।
चमगादड़ ने ऋषि को सामने बैठाया और अपनी तंत्र साधना आरम्भ की। उधर राजकुमार और पण्डितपुत्र अब जंगल मे पहुंच गए थे। एक हिरण अचानक तेज दौड़ते हुए उनके सामने से निकला , उसके पिछे पीछे सिंह भी था। पण्डितपुत्र ने अचानक कहा,,,
पण्डितपुत्र- रुको राजकुमार, जरा सम्भल कर!
राजकुमार- (आश्चर्य से) क्या हुआ दोस्त!
पण्डितपुत्र- दोस्त इस जंगल मे माया अपना काम कर रही है।
राजकुमार- मतलब!
पण्डितपुत्र- मतलब की इस जंगल में कुछ ना कुछ गलत हो रहा है। अभी अपने देखा कि एक हिरण दौड़ते हुए गया है।
राजकुमार- हा दोस्त, लेकिन उसके पीछे सिंह भी तो था। वो अपना शिकार कट रहा था, हिरण जान बचाने के लिए भाग रहा था।
पण्डितपुत्र- नही दोस्त,,,, वो हिरण मायावी था। और वो अकेला नही है , उनका पूरा झुंड है। यहां तक कि जो सिंह उसके पीछे था वो भी कोई सामान्य सिंह नही था।
राजकुमार- तुम कहना क्या चाहते हो, पण्डितपुत्र? अपनी सारी पंडिताई यहीं झाड़ोगे। मुझे डरा रहे हो क्या।
पण्डितपुत्र- नहीं दोस्त, यह मजाक का समय नही है। रात्रि होने वाली है और इस जंगल मे हमे भयानक चीजे देखने को मिलेगी। तुम सम्भल कर चलना।
दोनो मित्र हाथ पकड़ कर चलने लगते है। पण्डितपुत्र कि नजर प्रतिपल इधर उधर दौड़ रही थी। उसको आभास हो गया था।
अंधेरा होने लगा। दोनो मित्र गुफा के नजदीक पहुंच गए। बाहर दो ऋषि साधना में लीन थे। ,,,
राजकुमार- मित्र यह इस जंगल मे सन्त लोग कौन है? सुना है कि प्रखर साधु जंगल मे ही मिलते है। कहीं ऐसा ही तो हम नही देख रहे है।
पण्डितपुत्र- नही मित्र,,, मुझे माया की बू आ रही है। मैने पहले ही कहा था ।
राजकुमार- चलो पास चलकर देखते है।
पण्डितपुत्र- हाँ, लेकिन जरा सम्भलकर।
राजकुमार- निश्चिंत रहो, तुम्हारे साथ इतना तो सीख गया हूं।
दोनो मित्र सावधानी से ऋषि के समीप जाते है। ऋषि द्रुम साधना में लीन थे। उनको चमगादड़ ने अदृश्य होने का मंत्र सीखा रहा था। पास में गुफा को देखकर राजकुमार उत्सुक हो जाता है। अपने मित्र से पूछता है।
राजकुमार- मित्र यह गुफा कैसी है।
पण्डितपुत्र- मित्र यह गुफा मुझे साधारण गुफा नही लगती है। मेरी शंका सही है मित्र।
राजकुमार- क्या किया जाए। ऋषियों को साधना से जगाना भी पाप है।
पण्डितपुत्र- मित्र सही कहा। हम ऋषियों की साधना में व्यवधान नही डालेंगे। लेकिन गुफा के अंदर जरूर जाएंगे। मुझे लगता है कि इस गुफा में बहुत बड़ा राज है।
राजकुमार- क्या हम अंदर जाएं?
पण्डितपुत्र- हाँ, लेकिन जरा सम्भलकर, आप मेरे पीछे रहना राजकुमार।
राजकुमार- ठीक है।
दोनो मित्र गुफा में जाते है। अभी अंदर प्रवेश किया ही था कि एक चमगादड़ तह रफ्तार से आया और पण्डितपुत्र के पर नाखून चुभो गया। पण्डितपुत्र गिर गया। तभी राजकुमार चिल्लने लगा। एक चमगादड़ो के समूह ने राजकुमार को घेर लिया। पण्डितपुत्र ने एक मंत्र पढ़ा और चमगादड़ों की तरफ फूंक मारी। सभी चमगादड़ राख में बदल गए।
दोनो मित्र सम्भले, लेकिन अब उनको समझ मे आया कि अंदर बहुत खतरा है।
पण्डितपुत्र- राजकुमार यह गुफा शैतानी ताकत की एक बड़ी झील है। लेकिन यहां कोई इंसान कैद है।
राजकुमार- मित्र तुम यह पता लगा सकते हो। मुझे तो इस बारे में कोई ज्ञान नही है। लेकिन अब हमें क्या करना चाहिए।
पण्डितपुत्र- मित्र हम आगे जरूर जाएंगे, लेकिन हमें हर कदम पर खतरा मिलेगा। आप घबराना मत।
राजकुमार- हाँ मित्र, हो सकता है अंदर किसी को हमारी सहायता की आवश्यकता हो। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं बिल्कुल नही डरूंगा।
दोनो मित्र गुफा में आगे चलने लगे।
उधर वीरप्पा ने कैदखाने के सभी कैदियों को इतना शक्तिशाली बना दिया कि अब वो किसी भी सेना का सामना कर सकते थे। वीरप्पा ने कहा कि जो भी सैनिक आपको राजपरिवार का वफादार लगे उसको मार डालो। और जो अपनी तरफ आना चाहे उसे अपने साथ मिला लो। अब कैदखाने के प्रहरी कुछ ही दिनों में एल एक करके मरने लगे। ना राजा को समझ आ रहा था और ना ही चक्रधर को। चक्रधर ने कहा कि हो सकता है राजकुंमारी को हमने कैद कर रखा है तो मातारानी का प्रकोप राज्य पर हो रहा हो। क्योंकि आखिर मातारानी को कृपया से ही आपको सन्तान हुई थी।
वैभवराज भी सोच में पड़ गया। मंत्रिमंडल से विचारविमर्श के पश्चात राजकुमारी को आजाद कर दिया गया। वीरप्पा अब खुश हो गया। राजकुमारी के रूप में अब वो आगे की योजना में जुट गया।
महल में एक सेना ऐसी रहती थी जो विकट समय मे कुछ, भी हो लेकिन राजपरिवार के किसी भी सदस्य के लिए जान प्राण भी गवां सकती थी। उस सेना का प्रत्येक सिपाही कुशल प्रशिक्षित यौद्धा था। विरप्पा को पता था कि ना वो सेना कभी राजपरिवार से घात करेगी और ना ही उस सेना को आसानी से जीता जा सकता है।
कैदखाने में दी गई शैतानी ताकत का इस्तेमाल यहां करूँगा तो बाकी की योजना के लिए भी उसको सैनिक चाहिए। क्योंकि की राजा की सेना भी बहुत बड़ी थी।
उधर ऋषि द्रुम ने आंखे खोली और चमगादड़ को कहा कि गुफा में कोई मनुष्य गया है। उस पर खतरा आ सकता है। हमे शीघ्र गुफा में जाना चाहिए।
ऋषि द्रुम शीघ्रता से गुफा में जाना चाहते थे लेकिन चमगादड़ ने उन्हें रोक दिया।
चमगादड़- महात्मा जी आप जल्दबाजी ना करें। अंदर गया हुआ मनुष्य या तो चमत्कारी है या फिर बिल्कुल नादान है।
द्रुम- आपके कहने का अर्थ क्या है?
चमगादड़- महात्मा जी जो अंदर चला गया है उसके पीछे बिना सोचे समझे हमे नही जाना चाहिए। उसे अपनी ताकत का इस्तेमाल करने दीजिये। हम योजनाबद्ध रूप से अंदर जाएंगे। यदि वो इंसान खतरे में भी होगा तो हम उसकी सहायता कर सकते है। लेकिन हम बिना स्थिति को परखे यदि जाएंगे तो हम भी मुसीबत में आ सकते है।
द्रुम- आपकी बात सत्य है। किंतु मुझे चिंता हो रही है। कोई साधारण मनुष्य कैसे इस तरह की शैतानी शक्ति का सामना करेगा। हमें भी चलना चाहिए।
चमगादड़- जी जरूर, लेकिन जरा सम्भलकर। पहले हम दोनों को अदृश्य होना पड़ेगा।
द्रुम- ठीक है।
दोनो अदृश्य हो जाते है और गुफा में प्रवेश करते है। पण्डितपुत्र और राजकुमार दोनो उनसे आगे आगे गुफा में जा रहे थे। ऋषि ने देखा कि रास्ते मे राख का ढेर पड़ा है। ऋषि रुक गए।
द्रुम- यह क्या है? (आश्चर्य से)
चमगादड़- (राख को हाथ मे लेकर) महात्मा जी यह शैतानी चमगादड़ो को राख है। लगता है अंदर जा रहे मनुष्य साधारण नही है। चमगादड़ो ने उन पर हमला किया और उनका यह हाल हो गया।
द्रुम- लेकिन अपने बताया था कि अंदर का प्रत्येक जीव मूलतः मनुष्य ही है।
चमगादड़- हाँ, यह सत्य है। महात्मा जी।
द्रुम- फिर हमें इनको वापिस जिंदा करना चाहिए।
चमगादड़- कैसे! यह जिंदा होंगे तो हम पर ही मुसीबत बन जाएंगे।
चमगादड़- महात्मा जी मैं आपकी एक मदद कर सकता हूँ । यदि आप चाहो तो""
द्रुम - किस प्रकार की मदद! तुम जो भी कुछ जानते हो शीघ्र बताओ।
चमगादड़- मैं आपको अदृश्य होने का मंत्र सीखा सकता हूं।
द्रुम ऋषि ने कुछ सोचा, लेकिन सवाल यह था कि कैसे भी राजकुमारी तक पहुंचना है तो किसी भी प्रकार की सहायता मिले वो लेना ऋषि बुरा नही समझते थे। सोच कर ऋषि ने हाँ कर दी।
चमगादड़ ने ऋषि को बताया कि रात्रि के समय तंत्र विद्या की साधना करने से ज्यादा कारगर होती है। ऋषि के मन मे अब धैर्य रखना थोड़ा मुश्किल था लेकिन उनको यह भी पता था कि सब कुछ सोच समझकर करना सही होगा। जल्दबाजी में लिया गया निर्णय किस क़द्र मुसीबत में फंसा देता है वो ऋषि जानते थे।
चमगादड़ ने ऋषि को सामने बैठाया और अपनी तंत्र साधना आरम्भ की। उधर राजकुमार और पण्डितपुत्र अब जंगल मे पहुंच गए थे। एक हिरण अचानक तेज दौड़ते हुए उनके सामने से निकला , उसके पिछे पीछे सिंह भी था। पण्डितपुत्र ने अचानक कहा,,,
पण्डितपुत्र- रुको राजकुमार, जरा सम्भल कर!
राजकुमार- (आश्चर्य से) क्या हुआ दोस्त!
पण्डितपुत्र- दोस्त इस जंगल मे माया अपना काम कर रही है।
राजकुमार- मतलब!
पण्डितपुत्र- मतलब की इस जंगल में कुछ ना कुछ गलत हो रहा है। अभी अपने देखा कि एक हिरण दौड़ते हुए गया है।
राजकुमार- हा दोस्त, लेकिन उसके पीछे सिंह भी तो था। वो अपना शिकार कट रहा था, हिरण जान बचाने के लिए भाग रहा था।
पण्डितपुत्र- नही दोस्त,,,, वो हिरण मायावी था। और वो अकेला नही है , उनका पूरा झुंड है। यहां तक कि जो सिंह उसके पीछे था वो भी कोई सामान्य सिंह नही था।
राजकुमार- तुम कहना क्या चाहते हो, पण्डितपुत्र? अपनी सारी पंडिताई यहीं झाड़ोगे। मुझे डरा रहे हो क्या।
पण्डितपुत्र- नहीं दोस्त, यह मजाक का समय नही है। रात्रि होने वाली है और इस जंगल मे हमे भयानक चीजे देखने को मिलेगी। तुम सम्भल कर चलना।
दोनो मित्र हाथ पकड़ कर चलने लगते है। पण्डितपुत्र कि नजर प्रतिपल इधर उधर दौड़ रही थी। उसको आभास हो गया था।
अंधेरा होने लगा। दोनो मित्र गुफा के नजदीक पहुंच गए। बाहर दो ऋषि साधना में लीन थे। ,,,
राजकुमार- मित्र यह इस जंगल मे सन्त लोग कौन है? सुना है कि प्रखर साधु जंगल मे ही मिलते है। कहीं ऐसा ही तो हम नही देख रहे है।
पण्डितपुत्र- नही मित्र,,, मुझे माया की बू आ रही है। मैने पहले ही कहा था ।
राजकुमार- चलो पास चलकर देखते है।
पण्डितपुत्र- हाँ, लेकिन जरा सम्भलकर।
राजकुमार- निश्चिंत रहो, तुम्हारे साथ इतना तो सीख गया हूं।
दोनो मित्र सावधानी से ऋषि के समीप जाते है। ऋषि द्रुम साधना में लीन थे। उनको चमगादड़ ने अदृश्य होने का मंत्र सीखा रहा था। पास में गुफा को देखकर राजकुमार उत्सुक हो जाता है। अपने मित्र से पूछता है।
राजकुमार- मित्र यह गुफा कैसी है।
पण्डितपुत्र- मित्र यह गुफा मुझे साधारण गुफा नही लगती है। मेरी शंका सही है मित्र।
राजकुमार- क्या किया जाए। ऋषियों को साधना से जगाना भी पाप है।
पण्डितपुत्र- मित्र सही कहा। हम ऋषियों की साधना में व्यवधान नही डालेंगे। लेकिन गुफा के अंदर जरूर जाएंगे। मुझे लगता है कि इस गुफा में बहुत बड़ा राज है।
राजकुमार- क्या हम अंदर जाएं?
पण्डितपुत्र- हाँ, लेकिन जरा सम्भलकर, आप मेरे पीछे रहना राजकुमार।
राजकुमार- ठीक है।
दोनो मित्र गुफा में जाते है। अभी अंदर प्रवेश किया ही था कि एक चमगादड़ तह रफ्तार से आया और पण्डितपुत्र के पर नाखून चुभो गया। पण्डितपुत्र गिर गया। तभी राजकुमार चिल्लने लगा। एक चमगादड़ो के समूह ने राजकुमार को घेर लिया। पण्डितपुत्र ने एक मंत्र पढ़ा और चमगादड़ों की तरफ फूंक मारी। सभी चमगादड़ राख में बदल गए।
दोनो मित्र सम्भले, लेकिन अब उनको समझ मे आया कि अंदर बहुत खतरा है।
पण्डितपुत्र- राजकुमार यह गुफा शैतानी ताकत की एक बड़ी झील है। लेकिन यहां कोई इंसान कैद है।
राजकुमार- मित्र तुम यह पता लगा सकते हो। मुझे तो इस बारे में कोई ज्ञान नही है। लेकिन अब हमें क्या करना चाहिए।
पण्डितपुत्र- मित्र हम आगे जरूर जाएंगे, लेकिन हमें हर कदम पर खतरा मिलेगा। आप घबराना मत।
राजकुमार- हाँ मित्र, हो सकता है अंदर किसी को हमारी सहायता की आवश्यकता हो। लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं बिल्कुल नही डरूंगा।
दोनो मित्र गुफा में आगे चलने लगे।
उधर वीरप्पा ने कैदखाने के सभी कैदियों को इतना शक्तिशाली बना दिया कि अब वो किसी भी सेना का सामना कर सकते थे। वीरप्पा ने कहा कि जो भी सैनिक आपको राजपरिवार का वफादार लगे उसको मार डालो। और जो अपनी तरफ आना चाहे उसे अपने साथ मिला लो। अब कैदखाने के प्रहरी कुछ ही दिनों में एल एक करके मरने लगे। ना राजा को समझ आ रहा था और ना ही चक्रधर को। चक्रधर ने कहा कि हो सकता है राजकुंमारी को हमने कैद कर रखा है तो मातारानी का प्रकोप राज्य पर हो रहा हो। क्योंकि आखिर मातारानी को कृपया से ही आपको सन्तान हुई थी।
वैभवराज भी सोच में पड़ गया। मंत्रिमंडल से विचारविमर्श के पश्चात राजकुमारी को आजाद कर दिया गया। वीरप्पा अब खुश हो गया। राजकुमारी के रूप में अब वो आगे की योजना में जुट गया।
महल में एक सेना ऐसी रहती थी जो विकट समय मे कुछ, भी हो लेकिन राजपरिवार के किसी भी सदस्य के लिए जान प्राण भी गवां सकती थी। उस सेना का प्रत्येक सिपाही कुशल प्रशिक्षित यौद्धा था। विरप्पा को पता था कि ना वो सेना कभी राजपरिवार से घात करेगी और ना ही उस सेना को आसानी से जीता जा सकता है।
कैदखाने में दी गई शैतानी ताकत का इस्तेमाल यहां करूँगा तो बाकी की योजना के लिए भी उसको सैनिक चाहिए। क्योंकि की राजा की सेना भी बहुत बड़ी थी।
उधर ऋषि द्रुम ने आंखे खोली और चमगादड़ को कहा कि गुफा में कोई मनुष्य गया है। उस पर खतरा आ सकता है। हमे शीघ्र गुफा में जाना चाहिए।
ऋषि द्रुम शीघ्रता से गुफा में जाना चाहते थे लेकिन चमगादड़ ने उन्हें रोक दिया।
चमगादड़- महात्मा जी आप जल्दबाजी ना करें। अंदर गया हुआ मनुष्य या तो चमत्कारी है या फिर बिल्कुल नादान है।
द्रुम- आपके कहने का अर्थ क्या है?
चमगादड़- महात्मा जी जो अंदर चला गया है उसके पीछे बिना सोचे समझे हमे नही जाना चाहिए। उसे अपनी ताकत का इस्तेमाल करने दीजिये। हम योजनाबद्ध रूप से अंदर जाएंगे। यदि वो इंसान खतरे में भी होगा तो हम उसकी सहायता कर सकते है। लेकिन हम बिना स्थिति को परखे यदि जाएंगे तो हम भी मुसीबत में आ सकते है।
द्रुम- आपकी बात सत्य है। किंतु मुझे चिंता हो रही है। कोई साधारण मनुष्य कैसे इस तरह की शैतानी शक्ति का सामना करेगा। हमें भी चलना चाहिए।
चमगादड़- जी जरूर, लेकिन जरा सम्भलकर। पहले हम दोनों को अदृश्य होना पड़ेगा।
द्रुम- ठीक है।
दोनो अदृश्य हो जाते है और गुफा में प्रवेश करते है। पण्डितपुत्र और राजकुमार दोनो उनसे आगे आगे गुफा में जा रहे थे। ऋषि ने देखा कि रास्ते मे राख का ढेर पड़ा है। ऋषि रुक गए।
द्रुम- यह क्या है? (आश्चर्य से)
चमगादड़- (राख को हाथ मे लेकर) महात्मा जी यह शैतानी चमगादड़ो को राख है। लगता है अंदर जा रहे मनुष्य साधारण नही है। चमगादड़ो ने उन पर हमला किया और उनका यह हाल हो गया।
द्रुम- लेकिन अपने बताया था कि अंदर का प्रत्येक जीव मूलतः मनुष्य ही है।
चमगादड़- हाँ, यह सत्य है। महात्मा जी।
द्रुम- फिर हमें इनको वापिस जिंदा करना चाहिए।
चमगादड़- कैसे! यह जिंदा होंगे तो हम पर ही मुसीबत बन जाएंगे।
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- Kamini
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Re: शापित राजकुमारी
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