संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा

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Kamini
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Re: संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा

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◆◆◆◆◆【6】◆◆◆◆◆


आँखों से आँसु ढुलक पड़े अम्बी के जब जादौंग को झरने पर एक दूसरी मादा के साथ संसर्ग करते देखा। जादौंग की पीठ उसकी ओर थी वह चाहती थी की दोनों के मध्य जाकर उन्हे पृथक कर दे ,या जाकर उस मादा को वहीं गुफा के द्वार से पीछे खाई में धकेल दे ! पर वो नहीं कर सकी

उसके चारों तरफ उसे अपने पिता और भाईयों के अट्टाहास करते चेहरे दिखाई देने लगे । वह कानों को बंद करके सन्नाटे में खो जाना चाहती थी ,पर वो चेहरे पुरुष सत्ता का दंभ भरते अब भी वैसे ही अट्टाहास कर रहे थे उनकी हँसी का शोर
कानों में उंगलिया डाल लेने के बाद भी कम नहीं हो पा रहा था ।

पुरुष के जिस कुरूप चेहरे को वह जादोंग के प्रेम में भुला चुकी थी वह आज पुनः उसकी आँखों में उतर आया । उसे लगा की उसके भाई कुआँग ने हँसते हँसते जादौंग पर अपने भारी अस्त्र से प्रहार कर उसे मार दिया उसका पिता जादौंग के साथ संसर्ग करती उस लड़की को नौचने लगा और कुआँग अम्बी को दबोचकर अपनी हिंसक भूख शांत करने लगा । उसके स्पर्श के भय से अनायास ही अम्बी के मुख से चीख निकल गई..!

वो सपने से बाहर आ चुकी थी जादौंग उसके कंधे पर हाथ रख उसके सम्मुख खड़ा मुस्कुरा रहा था उसके बाजू में वो दूसरी औरत ,लगभग जादौंग के कंधों पर झूलती हुई खड़ी मुस्कुरा रही थी वो मुस्कान अम्बी को बुरी तरह से छलनी
कर रही थी अम्बी को लगा वो एक पल और खडी रही तो नीचे गहरी खाई में जा गिरेगी

वह जादौंग के हाथों को झटक कर वापस मुड़ के अपनी गुफा की और भागने लगी । जादौंग ने पीछे से उसे पुकार
कर रोकने का प्रयास किया पर वो अब रुकना नहीं चाहती थी ,वो भागती रही भागती रही जब तक गुफा के द्वार पर नहीं आ पहुँची !

उसे मालूम था की जादौंग को वो दोष दे ही नहीं सकती
थी। वैसे भी उस काल में अभी रिश्तों मेंं मर्यादा और बंधन सिर्फ जरूरतों से जुड़े थे । पुरुष का एक मादा के साथ
वफादार रहना तो विषय ही नहीं था ,क्यूंकि वह तो उसके लिए उस मालिक की तरह था जो उसकी सुरक्षा और भोजन के बदले उसके साथ संसर्ग करता ,उसकी शारीरिक व मानसिक भूख को तृप्त करने का साधन मात्र थी मादा
फिर दगा और बेवफाई जैसा कुछ बचा ही कहाँ ।

"पर नहीं "अम्बी फिर सोचती है "नहीं जादौंग तो ऐसा
नहीं था ,उन दोनों के मध्य तो ऐसा व्यवहार था ही नहीं,
जादौंग का प्रेम महसूस किया है उसने ,वह मात्र भूख नहीं
प्रेम ही था

मगर नहीं ,दोष जादौंग का नहीं है ,दोष खुद उसका है
उसे खुद पहले सोचना था की जब वो जादौंग की जरूरत
पूरी नहीं करेगी तो वो कोई और साथी ढूंढेगा जो उसकी
भूख मिटाए । यह तो स्वाभाविक प्रक्रिया ही तो है । जिससे वह बिलकुल अपरिचित नहीं है । जादोंग को मिलने से पूर्व वह इस प्रक्रिया को रोज ही तो देखा करती थी " निरंतर
चलती विचार प्रक्रिया को विराम दिए बगैर जल्दी जल्दी कदम बढाती अम्बी ,भाऊं के साथ वापस गुफा में आ गई ।

उसके बच्चे भूखे और सहमें हुए बेठे थे उसकी अनुपस्थिति की वजह से । पूरा दिन अजीब सा सन्नाटा गुफा में छाया रहा अम्बी पूरा दिन खामोश बैठ कर विचारमग्न रही उसकी तीनों बड़ी संतान नीमा ,औमन व तार्षा ने ही छोटे भाई बहनों और कुत्तों के खाने के लिए शोरबा और भुनी जडे़ तैयार कर खिला दीं ।

अम्बी ने भी कुछ फल खाए और फिर वन की और निकल पड़ी ।अम्बी का मन ना शिकार करने में लगा ,ना ही वो जडें और जलाने की लकड़ियाँ ही समेट पाई। खाली हाथ ही वापस आ गई थी वो ।

गुफाद्वार पर आते ही अम्बी चीखकर बेसुध हो गई ,आवाज
सुनकर सभी बच्चे भागकर उसके पास आ गए,तीनों कुत्ते
जोर जोर से भौंकने लगे । प्रसव वेदना वक्त से पहले शुरू हो
गई ।

इस रात भी बारिश हुई ,और पूरी रात होती रही ,भयानक तुफानी रात थी वो । बहुत कुछ छीन लिया अम्बी से इस रात

ने । एक बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ ,और दूसरा पैदा होने के
बाद मर गया । पूरी रात गुफा में कोई नहीं सो पाया ,बच्चे
बस अपनी माँ को घेरकर बैठे कुतुहल से मृत शिशुओं को
देखते रहे । आधी रात के पश्चात अंबी को चेत हुआ । जादौंग
को अब तक वापस ना आया देखकर वह और टूट गई ,
मगर वह रो नहीं रही थी ,यहाँ तक कि मृत शिशुओं को देखकर भी आँसु नहीं आए ।

कुछ देर को रुकी बारिश पुनः शुरू हो गई ,सभी गुफा में अन्दर जाने लगे कि, अँधेरे में बिजली चमकी तो हलकी झलक नजर आई ,वे चार साए थे ,दो वयस्क और दो शायद
बच्चों के । जादौंग दूसरी मादा को साथ लिए आ रहा था गुफा की ओर , उनके साथ दो साए और नजर आए अम्बी को वो शायद दो बच्चे थे ।
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Re: संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा

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दो मृत शिशु देख आहत हुआ जादौंग ,मगर साथ ही लज्जित
भी हुआ अम्बी के दुःख से । शिशुओं को देवता के सुपुर्द किया जादौंग ने ।


जादौंग के रहस्योद्घाटन से अम्बी कुछ हद तक संतुष्ट थी। सारकी नाम था उस औरत का जो जादौंग के पुरानी गुफा बस्ती के मुखिया की पसंदीदा मादा थी ..! जादौंग कबीले


का शक्तिशाली शिकारी था और उसके मजबूत कंधे व सुडोल देह की वजह से कबीले की अधिकतर मादाएँ उसे अपना साथी चुनना चाहती थी,पर जादौंग को बस सारकी
ही पसंद थी ।

सारकी भी मन से जादौंग को ही चाहती पर मुखिया के
अस्त्र का भय उन दोनों को निकट नहीं आने देता
मुखिया देवता से वार्तालाप कर सकता था और देवता का भय दिखा कर पूरे कबीले को नियंत्रण में रखता। उसने
देवता का फरमान बताकर सारकी को देवसेवा के लिए अपनी गुफा जिसे वो देवता के आने जाने का मार्ग बताता
था उसमें नजरबंद कर रखा था ।कबीले में कोई उसका विरोध नहीं कर सकता था ,क्योंकि देवता उसी की बात सुनता था ।

उस दिन सारकी की चीखें जिन्हे मुखिया देवता के साथ
के आनंद से निकली ध्वनि बताता था जादौंग के कानों
में पड़ी ।जादौंग अपने भाई गौरांग के साथ शिकार पर निकला था और सारकी की चीख सुनकर मुखिया की
गुफा की तरफ जाने को उद्दत हुआ , गौरांग उसे रोकना चाहता था । गौरांग को धकेलकर जादौंग मुखिया की उस गुफा में प्रवेश कर गया जहाँ कबीले के किसी पुरुष का
आना निषेध कर रखा था मुखिया ने ।

गुफा में सारकी के हाथ और बंधन मेंं थे और मुखिया उसकी
देह से अजीबोगरीब खिलवाड़ कर रहा था । जादौंग उस

दृश्य को देख कर देवता के भय से भयभीत तो हुआ मगर
सारकी की याचना करती दृष्टि और तड़प को भी नहीं सह
सका । उसने बिना कुछ सोचे मुखिया पर आक्रमण कर
दिया ,और उसे जख्मी करके सारकी को वहाँ से निकाल लाया ।

मुखिया ने देवता के अपमान का आरोप लगाकर उसे
कबीले से निष्कासित कर दिया था ।देवता के क्रोध से
डरकर कोई विरोध ना कर पाया । वहाँ से आने के बाद उसकी मुलाकात अम्बी से हुई और वो एक हो गए ।

सारकी के गर्भ में जादौंग के साथ की निशानी पल रही थी इसकी जानकारी नहीं थी उसे पर चालाक मुखिया ताड़ चुका था । उसने सारकी को सबक सिखाने के लिए उसके गर्भ को देवता को समर्पित करने का आदेश कबीले को
सुनाया ,पर सारकी जादौंग के भाई की सहायता से जान बचाकर भाग निकली !

उसके छः माह के बाद सारकी ने वन में दो जुड़वा लडकी
को जन्म दिया , वो कई साल से वन में ही एक घने बड़े पेड़ पर अपना छोटा सा घौंसलेनुमा घर बना कर रहने लगी और जादौंग को तलाश करती रही ।

जादौंग से वह दो रोज पहले ही मिली थी जादौंग के गुफा पर वापस ना आने का भी यही कारण था ।अम्बी ने सारकी और उसकी बेटियों को उनके साथ रहने की अनुमति दे दी ।
पर मन में कई बार द्वेष भाव उत्पन्न हो जाता था पर शीघ्र ही समझ भी आ जाता था की द्वेष करने की वजह है ही नहीं धीरे धीरे वे लोग आपस में एक दूसरे को परिवार मानने लग गए थे ।अम्बी ने सारकी की बेटियों जारा और साना को अपनी बेटियों में ही शुमार कर लिया था और सारकी भी
हर काम में पूरा हाथ बंटाती थी ।

ऐसे ही कई वर्ष गुजर गए । धीरे धीरे स्थितियाँ सामान्य हो गई थी ,जादौंग का परिवार अब सुखी था । शुरुआत में परिवार बढ़ने से आवास के स्थान ,माँस व अन्य मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में कमी पड़ने लगी ,पर कुछ बेहतरीन उपलब्धि या उन्नति व नई खोजों की मदद इस समस्या का कुछ ही दिनों में सटीक समाधान निकाल लिया इस गुफा मानव जादौंग के परिवार ने ।

सारकी ने गुफा में स्थान की कमी का निदान अब लकडी घास व लताओं,आदि के इस्तेमाल से छोटी आरामगाह का निर्माण करना सभी को सिखा दिया था ।लड़कियों ने आराम के लिए चार पाँच मचाननुमा आरामगाह गुफा के आसपास तैयार कर ली थीं । अब उनके पास रहने की जगह के लिए अधिक विकल्प थे और गुफा पर आश्रित रहना आवश्यक नहीं रहा ।

अम्बी ने सारकी की मदद से पेड़ के तने को विशेष आकार में काट कर , शिकार व फलों के वाहन में पहिये लगा कर आवागमन और सुगम कर लिया था । सारकी के पिछले

सामाजिक जीवन का अनुभव यहाँ काम आया ।

साना ,जारा,नीमा,तार्षा और पीयू पाँचों मादा संतान फल , कंदमूल और वनस्पति एकत्र करने अम्बी के साथ गाड़ी ले कर जाती और शाम तक उन्हे पूरा भर कर वापस लाती थीं । तार्षा ने तो पेड़ की लताओं की सहायता से एक झुला
भी बना लिया था ,जिसपर झूलने के लिए बच्चे आपस मे
झगड़ पड़ते थे ।

इसी तरह सभी लड़के जिनमें ओमन सबसे बड़ा था शिकार के लिए जादौंग साथ ले जाता था और लड़कों ने भी अपने लिए अतिरिक्त पाँच छः छकडे तैयार कर लिए थे जिससे अच्छी मात्रा में अस्त्र साथ लेकर जाते और वापसी में काफी बड़ा शिकार भी आसानी से ले आते थे ।बड़ा लाभ यह रहा की पहले जो हड्डियाँ और खालादि कई बार अनुपयोगी समझ छोड़ने पड़ते थे अब साथ ही आ जाते ।

खालों से पहनने योग्य वस्त्र तैयार करने में सारकी और
जारा दोनों बहुत अभ्यस्त थे । पुरुष संतानों में ओमन
मीचेंग,व ओरांग हड्डियों के इस्तेमाल से अस्त्र बनाना सीख गए थे अब वे बेहतर धारदार अस्त्र तैयार करने लग गए थे जो शिकार करने में बहुत कारगर सिद्ध होते थे ।

सबसे महत्वपूर्ण खोज रही कि, वे ऊँटों को पालने लगे ,यह ऊँट खच्चर के आकार के थे ,और छकड़े के साथ आदमी का वजन भी आसानी से खींच लेते थे । एक मादा व एक नर
ऊँट जादौंग गहन वन से पकड़ लाया था । नर ऊँट को वजन
खींचने के लिए काम में लेने लगे ,पर मादा ऊँट ,छकड़े को
नहीं खींचती थी जिससे जादौंग को लगा की वह अनुपयोगी
सिद्ध हो रही है । जादौंग उसे माँस के लिए मारना चाहता था
पर अम्बी ने उसे ऐसा नहीं करने दिया ,दरअसल उसका
प्रसव होने वाला था जिसका अम्बी को भान था । पहले तो
जादौंग नाराज हुआ पर जब उसने शिशु ऊंट को जन्म दिया
तब उसे बहुत खुशी हुई । एक दिन जादौंग को अम्बी ने एक स्वादिष्ट पेय दिया पीने के लिए जिसे पीकर उसे बेहद अच्छा महसूस हुआ , यह मादा ऊँट का दूध था जिसे अम्बी ने खोजा था ।

भोजन ,आवास आदि की समस्या का तो समाधान हो गया
परन्तु एक नई समस्या उत्पन्न हो गई वह थी परिवार में द्वेष भाव की उत्पत्ति ।
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◆◆◆◆◆【7】◆◆◆◆◆

परिवार बढ़ रहा था । जारा और साना भी सरल हृदय से अपने नये परिवार को अपना चुकी थीं ,और सारकी से अधिक अम्बी में उन्हे अपनी जननी नजर आती थी । अम्बी
के मन में तो उसकी स्वाभाविक सरलता ने किसी द्वेष को
बाकि नहीं रखा पर शायद सारकी को अम्बी और जादौंग
का साथ कष्ट देता था ।सारकी के अन्दर पनप रही ईर्ष्या धीरे
धीरे बलवती हो रही थी । उसे लग रहा था की उसकी संतान पर भी अम्बी का नियंत्रण हो रहा है और जादौंग भी अम्बी को ही प्रेम करता है। वह भूल गई की कैसे आसानी से अम्बी ने उसे और उसकी बेटियों को अपना लिया था ।उसे अम्बी की अच्छाईयाँ छल लगने लगी थी । उसके चेहरे से उसके भावों को अम्बी ने अनुभव कर लिया था ।

बच्चों में आपस में परस्पर स्नेह बरकरार था ,बस कभी
कभी अम्बी पर अपना आधिपत्य जताने के लिए उलझ
पड़ते थे । पर अम्बी उन्हे बेहतरीन तरीके से उदाहरण
द्वारा मिलकर रहना सिखाती थी । पर उस दिन साना
की तकरार तार्षा (जादौंग अम्बी से उत्पन्न बडी बेटी ) से
हो रही थी । साना ने अम्बी के लाए फल ,जो सभी बच्चों बेहद पसंद थे ,छिपा दिए थे । तार्षा ने उसे ऐसा करते देख लिया और इसी बात पर दोनो एक दूसरे के बाल खींचती गुत्थमगुत्था हो गईं ।

अम्बी जो कुत्तों को माँस के टुकड़े खिला रही थी बच्चों के कोलाहल को सुन कर वहाँ आ गई उसे खराब लगा की सारकी बच्चों को लड़ते देख हँस रही थी । अम्बी के गुस्से में चिल्लाने पर दोनों लड़कियाँ अलग हो गईं ,और नजरें नीचे कर खडी रहीं । सारकी जो इतनी देर से मजे से देख रही थी वो भी अब गंभीर दिखने का अभिनय करने लगी ।

जारा समैत सारे बच्चे साना की ही गलती मान रहे थे ,क्योंकि
साना ने सबके हिस्से के फल छिपा कर हडप रही थी । तार्षा

ने जब वजह समझाई तब अम्बी ने साना को डांटकर फल
वापस मंगवाए और सभी बच्चों को बाँटकर दे दिए ।

चूँकि साना ने गलती की थी उसको दंड स्वरूप एक भी फल नहीं मिला । साना को दुखी देखकर सारकी उसे अपने साथ
ले कर वन की और चली गई । सब सामान्य हो गया था पर
सारकी ने द्वेषवश साना के मन में अम्बी के प्रति जहर भरने
का प्रयास किया । साना को लगा की अम्बी ने उसके साथ अन्याय किया ,और सारकी भी बार बार उसको यही बोल कर चिढाती रही । मासूम मन को भटकाने में मुश्किल ही क्या होनी थी ।

अब साना ने अम्बी की बात सुनना बंद कर दिया था ,कई
बार तो अम्बी को अपमानित करने के लिए उसकी दी हुई वस्तु उसके सामने ही फैंकने लग जाती । जादौंग को परिवार में क्या घट रहा है अक्सर कम ही ध्यान पड़ता था । पर सारकी की दुर्भावना धीरे धीरे असर दिखाने लगी थी ।

साना ने जारा के मन में भी अम्बी के प्रति नफरत पैदा करने का प्रयास करना शुरू कर दिया था ,पर जारा अधिक समझदार थी और उसको उल्टा समझाती की अम्बी कितनी
भली है । कितना प्यार करती है हम सभी को। अम्बी साना के व्यवहार से दुःखी रहने लगी थी ,वो पूरी कोशिश कर रही थी की उसे समझा सके , पर शायद सारकी ने उसके जहन में जहर कुछ ज्यादा ही भर दिया था।


यह समस्या आसानी से हल ना होती अगर एक घटना पुनः
इस परिवार को साथ नहीं ले आती । कई बार जीवन में आने
वाली मुसीबतें भी कितनी लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं ।


बच्चों के बढते वैमनस्य को खत्म नहीं कर पा रही थी
अम्बी।सारकी के द्वेष से अब अनभिज्ञ नहीं थी वो ।
उसका यही प्रयास रहता कि किसी तरह सारकी सभी
बच्चों के साथ घुल मिल जाए ,और गुफा को अपना
परिवार मानने लगे ।

इस वजह से की सारकी ज्यादा वक्त गुफा मे गुजारे अम्बी
ने शिकार पर जाना पुनः शुरू कर दिया था ।

जादौंग इन बातों पर कम ही ध्यान देता था ,उसको तो
यह वरदान ही मानो कि अम्बी किसी परेशानी को उस
तक पहुंचने ही नहीं देती थी। ज्यादातर परेशानियाँ तो ऊसकी सूझबुझ से हल हो जाती थी।


उस दिन भी अम्बी शिकार के लिए ही निकली थी और घने वनों में पहुँच गई ।अचानक एक हिंसक गुर्राहट ने उसका ध्यान आकृष्ट किया ।उसने सधे पांवों से घूमकर देखा उहहह वही गलीच जानवर । दो लकड़बग्घे शायद किसी
शिकार पर झपटने की पूरी तैयारी में थे। अम्बी ने थोड़ा गौर से देखा तो आँखें अचरज से कुछ चौडी हो गई उसकी । वह एक मानव था जो शायद इतना जख्मी था कि उन लकड -बग्घों को अपनी ओर बढते देखकर भी बचाव का कोई प्रयास नहीं कर रहा था ।

अम्बी ने बिना एक पल की देर किए अपना धारदार भालेनुमा अस्त्र ,निशाना साधकर उन हैवानों पर फैंका
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तेज स्वर करते हुए वो अस्त्र एक लकडबग्घे
को चीरकर धराशायी कर चुका था ।प्रहार इतना तीव्र था
की उस जानवर को तड़पने का भी अवसर नहीं मिला था ।

दूसरे हैवान ने अपने साथी का हश्र देख कर भय और हिंसा क मिश्रित भावों से आक्रमणकारी को देखा । अम्बी को हाथ मे दूसरा अस्त्र उठाए आक्रमण की मुद्रा मे खडी देखकर उसके हौसले पस्त हो चुके थे, एक डरी हुई गुर्राहट जिसमें चेतावनी कम और विनती ज्यादा थी निकालते हुए वो गहन वन की ओर भागकर विलुप्त हो गया ।


जानवर के भागते ही अम्बी दौडकर उस मानव के पास आ गई । पर उस पुरुष के चेहरे पर निगाह पडते हीअम्बी की आँखे और फटती चली गईं। वो पुरुष जो अभी मूर्छित ही पडा था वो दिखने में हूबहू जादौंग की ही शकल का था। अगर अम्बी जादौंग के शरीर के हर हिस्से को करीब से ना जानती होती तो उसे जादौंग ही समझ लेती । जादौंग के
अनुपात मे यह पुरुष कुछ कमजोर था ,और शायद वय भी कम थी उसकी ।


अम्बी ने अनुमान लगाया कि हो ना हो यह जादौंग का
भाई गौरांग है जिसका जिक्र जादौंग करता रहता था ।
तभी अम्बी को उसकी हालत देख कर खयाल आया कि
इसे गुफा पर ले जाना चाहिए । वो अपनी शिकार ढोने
वाली गाड़ी को खींच कर,उस मूर्छित पडे इंसान के पास
ले आई ।

उसे गाड़ी पर डालने के लिए अम्बी ने जब स्पर्श किया तो लगा मानो आग मे हाथ डाल दिया हो। वो बुरी तरह से तप रहा था । अम्बी को मालूम था कि ऐसी तपन पर नियंत्रण
ना किया जाए तो परिणाम घातक हो जाते है ,उसे याद
आया जब वो छोटी थी तब इसी तरह की तपन उसे भी हुई थी,और तब धारा ने उसके पूरे शरीर को ठंडे जल से पौँछ
कर ठंडा किया था ।

अम्बी त्वरित गति से खाल को सिलकर बनाए मशक नुमा पात्र मे जलाशय से पानी भर लाई । एक पतली साफ खाल को भिगोकर अम्बी उस पुरूष की देह को पौंछ कर शीतल करने का प्रयास करने लगी ।ठंडे जल का स्पर्श पाकर पुरुष के जिस्म मे हलचल हुई । अम्बी ने उसे उठाना चाहा और उसकी आँखों व चेहरे को पौंछा एक पल के लिए उसने
आँख खोली पर शायद मूर्छा अधिक थी इसलिए आँख


पुनः मुंद गई ।


किसी तरह काफी प्रयास के बाद अम्बी उस अजनबी को अपनी गाड़ी मे खींच कर गुफा पर ले आई।अम्बी को आते देख सभी लडके लडकियां सभी दौड कर उसके पास आ गए और कोतुहल के साथ गाड़ी पर पडे अजनबी को देखने लगे।जादौंग को आने मे अभी वक्त था,पर सारकी जो अभी अपने कुत्ते को माँस के टुकडे खिला रही थी कोलाहल सुनकर आ गई। अजनबी को देखते ही सारकी के चेहरे पर पहले हर्ष के और फिर तुरंत ही चिंता के भाव स्पष्ट नजर आने लगे । अम्बी ने उसके चेहरे के बदलते भावों को देख
लिया था ,उसने सारकी की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा ।

"गौ रांग ।" ,सारकी के मुख से निकला ,और वो दौड
कर मूर्छित पडे गौरांग के समीप आकर घुटनों के बल बैठ गई। सारकी गौरांग के सीने पर हाथ रखकर शायद उसके जीवित होने की पुष्टि करना चाहती थी तभी उसको छूकर देखने के बाद चेहरे से चिंता के निशान लुप्त हो गए थे।
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(^%$^-1rs((7)
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