३२
"लेकिन कोई ऐसा रडार बनाना बहुत कठिन काम है जिस पर पूरी दुनिया के उपरी वातावरण की जासूसी हो सके."
"हां.....कठिन है लेकिन असंभव नहीं. और ऐसा रडार बनाने का कारण वो उड़ान-तश्तरियाँ बनी हैं जो पिच्छले कयि बरसों से दुनिया के विभिन्न भागों मे देखी जाती रही हैं."
"मैं समझा नहीं सर...."
"आओ....मेरे साथ आओ...मैं तुम्हें सम्झाउन्गा....मुझे खुशी है कि तुम इस तरह मेरे हाथ लग गये हो. मैने पहले भी तुम्हारे बारे मे सुना हैं."
डॉक्टर डावर इमरान को अपने विशाल लब के ऐसे भाग मे लाए जहाँ चारो तरफ विभिन्न प्रकार की मशीनें दिखाई दे रही थीं.......और छत से कुच्छ नीचे बिजली के तारों का जाल बना हुआ था.
लेकिन इमरान तो उस शीशे के पीपे को ध्यान से देखने लगा जिसकी रेडियस लगभग एक फुट ज़रूर रही होगी. ये पाइप एक टेबल से शुरू होकर छत तक चला गया था. बल्कि इमरान का अनुमान था कि वो छत से भी उपर चला गया होगा. पाइप के भीतर टेबल की सतह पर कोई चीज़ जो फुटबॉल से मिलती जुलती थी, रखी हुई थी. उसका साइज़ भी साधारण फुटबॉल से अधिक था.....और उसका रंग ब्राउन ही था.
"आओ....इधर देखो." डॉक्टर ने एक मशीन की तरफ बढ़ते हुए कहा. इमरान चुप चाप उनके नज़दीक चला गया. डॉक्टर डावर कह रहे थे....."कोई कारण नहीं है कि मैं तुम पर विश्वास ना करूँ. मुझे पता है की तुम इस से पहले भी कुच्छ विदेशी जासूसों को क़ानून के हवाले कर चुके हो. मैं तुम्हें एक देश भक्त की हैसियत से जानता हूँ."
इमरान कुच्छ ना बोला. वो उस मशीन पर धुन्द्ले शीशे की एक बड़ी स्क्रीन देख रहा था जिस पर काली रेखाओं और विंदुओं की सहायता से किसी प्रकार का चार्ट बनाया गया था.
"ये है मेरा एक्सपेरिमेंटल रडार......जो अभी मॉडेल की हैसियत से आगे नहीं बढ़ सका. इंटरनॅशनल रडार की तुलना मे इसकी पोज़िशन खिलौने से अधिक नहीं है. एनीवे मैं तुम्हें ये समझाने की कोशिश करूँगा कि इंटरनॅशनल रडार कैसे बनाया जा सकता है............और उधर देखो....."
डॉक्टर डावर ने शीशे के पाइप की तरफ इशारा किया. उसे मेरा आर्टिफिशियल मिनी सॅटलाइट समझ लो. वो जो एक फुटबॉल जैसा दिखाई दे रहा है.....मैं उसे वाइयरलेस से कंट्रोल करता हूँ."
"लेकिन ये रॉकेट कैसा है?" इमरान ने शीशे के पाइप की तरफ इशारा किया.
"ये रॉकेट नहीं है बल्कि वो रास्ता है जिस से गुज़र कर ये मिनी सॅटलाइट आकाश मे उपर उठता है. इसकी दूरी ज़मीन की सतह से इतना अधिक नहीं होता जितना उन सॅटलाइट का होता है......जो आजकल कुच्छ देशों की तरफ से अंतरिक्ष मे फेके जेया रहे हैं. इसलिए रॉकेट उसके लिए अनावश्यक है.....और मेरा ये रडार भी केवल इसी शहर के अट्मॉस्फायर से रिलेटेड है. रूको मैं आज इस पर कुच्छ नयी जगहों को बढ़ा दूँगा. ताकि तुम इसे समझ सको."
प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल
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Re: प्यासा समुन्दर
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Re: प्यासा समुन्दर
मशीन के उपर ही दीवार पर एक फोन लगा हुआ था. डॉक्टर डावर ने रिसीवर उठा कर किसी के नंबर डाइयल किए और माउत पीस मे बोले...."हेलो प्रसाद.....5 मिनट के भीतर सब को इनफॉर्म करो......मैं गगन को छोड़ने जा रहा हूँ.....सब अपने अपने ट्रांसमीटर्स पर चले जाएँ.......और सब तरफ ध्यान रखें......आज मैं कुच्छ नये पथ बनाउन्गा.....इसलिए उनकी गाड़ियाँ भी तैयार रहनी चाहिए....." रिसीवर रख कर वो फिर इमरान की तरफ मुड़े.
5 मिनिट बाद मैं इसे छोड़ूँगा." उन्होने फुटबॉल जैसे मिनी सॅटलाइट की तरफ इशारा किया. इस स्क्रीन पर भी नज़र रखना और उस पर भी."
इमरान बेचैनी से रिस्ट वाच देख रहा था. अचानक उसने चौंक कर कहा...."डॉक्टर साहब हम उस गोताखोरी की ड्रेस को वहीं छोड़ आए हैं."
"रहने दो वहीं..."
"मैं उसे छोड़ नहीं सकता..."
"अगर गायब ही हो गया तो क्या होगा?"
"एक बहुत बड़ा नुकसान.....मैं बहुत दिनों से ये महसूस कर रहा था कि हमारे समुद्रों मे किसी प्रकार की कोई असाधारण गतिविधि हो रही है. आख़िर वो आदमी आपको समुद्र मे ले जाने पर क्यों मजबूर कर रहा था?"
"ओह्हो....मैं तो उस बारे मे भूल ही गया था. हां ये बात तो ध्यान देने लायक है. मुझे उसे ज़रूर महत्त्व देना चाहिए. मगर इमरान मेरा दिमाग़ इस तरह उलझा रहता है कि मैं बहुत सी इंपॉर्टेंट बातें भूल जाता हूँ. लेकिन वो मेरे कार्यों से संबंधित नहीं होतीं. अपने काम तो मुझे छ्होटी से छ्होटी डीटेल के साथ हर समय याद रहते हैं. अच्छा रूको.....अभी थोड़ी देर बाद हम इस समस्या पर भी बात करेंगे......कि वो मुझे गोता लगाने पर क्यों मजबूर कर रहा था."
डॉक्टर डावर ने खामोश होकर उसी मशीन का एक बटन दबाया और उसके एक प्लेन साइड पर एक मिक(माइक्रोफोन) सा उभर आया. डॉक्टर डावर ने उसके पास मूह ले जा कर कहा.
"हेलो....हेलो....क्या तुम सब रेडी हो?"
"यस सर हम सब रेडी हैं..." उसी जालीदार मईक के एक साइड से काई आवाज़ आईं.
अगले ही पल इमरान ने धुंधले शीशे की स्क्रीन को प्रकाशित होते देखा. फिर जैसे ही डॉक्टर डावर ने दूसरे बटन पर हाथ रखा.....फुटबॉल जैसी वास्तु शीशे के पाइप मे धीरे धीरे उपर उठने लगी. डॉक्टर डावर ने स्क्रीन की तरफ इशारा किया.
अब इमरान को स्क्रीन पर एक अकेला, गतिशील और चमकदार विंदु दिखाई दे रहा था और ये विंदु एक ब्लॅक लाइन पर मूव कर रहा था.
देखते ही देखते फुटबॉल जैसी चीज़ शीशे के पाइप के सिरे पर पहुच कर गायब हो गयी.
"अब तुम अपनी नज़र स्क्रीन पर रखो. ये गतिशील विंदु देखो. अब ये इस रेखा पर आ गया है. अर्थात मेरा कृत्रिम उपग्रह अब अपने रास्ते पर लग चुका है. लेकिन अभी ये प्रकाशित नहीं हुआ है. उसकी लाइट रेड होती है ताकि ये आम आदमियों को कोई गुब्बारा लगे. जैसे ही इसका रेड लाइट जलेगा स्क्रीन पर मूव करने वाला पॉइंट भी अपना कलर चेंज कर लेगा. ये भी रेड हो जाएगा. लॅब से डोर निकल जाने पर ही ऐसा हो सकेगा."
डॉक्टर डावर का हाथ मशीन के एक बड़े से नॉब पर था. नॉब के आस पास ब्राइट डाइयल था. उस डाइयल पर डिजिट्स भी लिखे हुए थे. विभिन्न प्रकार के सिंबल्स भी थे. जब भी डॉक्टर उस नॉब को घुमाते.....डाइयल पर एक सुई हरकत करती दिखाई देती.
अब फिर स्क्रीन की तरफ देखो. मूविंग पॉइंट अपना कलर चेंज करने जा रहा है."
अचानक वो पॉइंट रेड हो गया......और ठीक उसी समय मशीन के एक साइड से आवाज़ आई "लाइट जल गयी सर..."
5 मिनिट बाद मैं इसे छोड़ूँगा." उन्होने फुटबॉल जैसे मिनी सॅटलाइट की तरफ इशारा किया. इस स्क्रीन पर भी नज़र रखना और उस पर भी."
इमरान बेचैनी से रिस्ट वाच देख रहा था. अचानक उसने चौंक कर कहा...."डॉक्टर साहब हम उस गोताखोरी की ड्रेस को वहीं छोड़ आए हैं."
"रहने दो वहीं..."
"मैं उसे छोड़ नहीं सकता..."
"अगर गायब ही हो गया तो क्या होगा?"
"एक बहुत बड़ा नुकसान.....मैं बहुत दिनों से ये महसूस कर रहा था कि हमारे समुद्रों मे किसी प्रकार की कोई असाधारण गतिविधि हो रही है. आख़िर वो आदमी आपको समुद्र मे ले जाने पर क्यों मजबूर कर रहा था?"
"ओह्हो....मैं तो उस बारे मे भूल ही गया था. हां ये बात तो ध्यान देने लायक है. मुझे उसे ज़रूर महत्त्व देना चाहिए. मगर इमरान मेरा दिमाग़ इस तरह उलझा रहता है कि मैं बहुत सी इंपॉर्टेंट बातें भूल जाता हूँ. लेकिन वो मेरे कार्यों से संबंधित नहीं होतीं. अपने काम तो मुझे छ्होटी से छ्होटी डीटेल के साथ हर समय याद रहते हैं. अच्छा रूको.....अभी थोड़ी देर बाद हम इस समस्या पर भी बात करेंगे......कि वो मुझे गोता लगाने पर क्यों मजबूर कर रहा था."
डॉक्टर डावर ने खामोश होकर उसी मशीन का एक बटन दबाया और उसके एक प्लेन साइड पर एक मिक(माइक्रोफोन) सा उभर आया. डॉक्टर डावर ने उसके पास मूह ले जा कर कहा.
"हेलो....हेलो....क्या तुम सब रेडी हो?"
"यस सर हम सब रेडी हैं..." उसी जालीदार मईक के एक साइड से काई आवाज़ आईं.
अगले ही पल इमरान ने धुंधले शीशे की स्क्रीन को प्रकाशित होते देखा. फिर जैसे ही डॉक्टर डावर ने दूसरे बटन पर हाथ रखा.....फुटबॉल जैसी वास्तु शीशे के पाइप मे धीरे धीरे उपर उठने लगी. डॉक्टर डावर ने स्क्रीन की तरफ इशारा किया.
अब इमरान को स्क्रीन पर एक अकेला, गतिशील और चमकदार विंदु दिखाई दे रहा था और ये विंदु एक ब्लॅक लाइन पर मूव कर रहा था.
देखते ही देखते फुटबॉल जैसी चीज़ शीशे के पाइप के सिरे पर पहुच कर गायब हो गयी.
"अब तुम अपनी नज़र स्क्रीन पर रखो. ये गतिशील विंदु देखो. अब ये इस रेखा पर आ गया है. अर्थात मेरा कृत्रिम उपग्रह अब अपने रास्ते पर लग चुका है. लेकिन अभी ये प्रकाशित नहीं हुआ है. उसकी लाइट रेड होती है ताकि ये आम आदमियों को कोई गुब्बारा लगे. जैसे ही इसका रेड लाइट जलेगा स्क्रीन पर मूव करने वाला पॉइंट भी अपना कलर चेंज कर लेगा. ये भी रेड हो जाएगा. लॅब से डोर निकल जाने पर ही ऐसा हो सकेगा."
डॉक्टर डावर का हाथ मशीन के एक बड़े से नॉब पर था. नॉब के आस पास ब्राइट डाइयल था. उस डाइयल पर डिजिट्स भी लिखे हुए थे. विभिन्न प्रकार के सिंबल्स भी थे. जब भी डॉक्टर उस नॉब को घुमाते.....डाइयल पर एक सुई हरकत करती दिखाई देती.
अब फिर स्क्रीन की तरफ देखो. मूविंग पॉइंट अपना कलर चेंज करने जा रहा है."
अचानक वो पॉइंट रेड हो गया......और ठीक उसी समय मशीन के एक साइड से आवाज़ आई "लाइट जल गयी सर..."
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Re: प्यासा समुन्दर
33
"अब वो कहाँ है?" डॉक्टर डावर ने कहा.
"पोर्ट ट्रस्ट बिल्डिंग के उपर...." आवाज़ आई.
"ओके..." डॉक्टर डावर बोले. "अब उस पर नज़र रखो......कि वो कहाँ जाता है......मैं उसे उसके रास्ते से हटा रहा हूँ..."
डॉक्टर डावर ने नॉब को थोड़ा सा घुमाया और डाइयल की सुई एक चोकोरे निशान पर रुक गयी. उधर स्क्रीन पर इमरान ने देखा कि रेड पॉइंट ब्लॅक लाइन से हट कर स्क्रीन के सादा भाग की तरफ रेंगने लगा है.
डॉक्टर भी अब स्क्रीन को देखने लगे थे.......और उनके हाथ मे एक पेन्सिल थी.
"अब कहाँ है....?" उन्होने उँची आवाज़ मे कहा.
"ठीक ईगल टवर पर....." आवाज़ आई.....और डॉक्टर ने पेन्सिल की नोक उस गतिशील विदू पर रख दी. वैसे पॉइंट उसके नीचे से निकल गया था और ऐज यूषुयल धीरे धीरे रेंगता हुआ स्क्रीन के उपर ही के हिस्से की तरफ जा रहा था.
डॉक्टर ने जहाँ पेन्सिल की नोक रखी थी वहाँ एक गहरा निशान लगाया और फिर रेग्युलेटिंग नॉब पर हाथ रख दिया. स्क्रीन पर रेड पॉइंट फिर पेन्सिल से लगाए हुए निशान की तरफ वापस आ रहा था.
"अब कहाँ है....?" डॉक्टर डावर ने पुछा. तब तक पॉइंट पेन्सिल के निशान के पास पहुच रहा था.
"ठीक ईगल टवर पर सर.....वो कुच्छ दूर जाकर फिर पलट आया है...."
"ठीक है..."
इसके बाद डॉक्टर डावर स्क्रीन के डिफरेंट भागों से रेड पॉइंट को पेन्सिल के निशान पर लाए और हर बार यही सूचना मिली कि वो "ईगल टवर" पर है. इसके बाद ही पॉइंट का कलर फिर चेंज हो गया और अब वो चमकने लगा था.
"हमारे उपग्रह मे अब अंधेरा हो गया है. डॉक्टर डावर धीरे से बोले.....और उन्होने मईक की तरफ मूह ले जाकर कहा...."एंड टास्क.....डन"
फिर बटन दबाते ही मईक और बॉक्स हल्की सी आवाज़ के साथ अंदर चला गया. चमकदार पॉइंट आप ब्लॅक लाइन पर चल रहा था. फिर वो उस सीधी रेखा पर आ गया जहाँ वो पाइप से गुज़रने के बाद दिखाई दिया था. इमरान की नज़र पाइप की तरफ उठ गयी. कुच्छ ही देर बाद फुटबॉल जैसा मिनी सॅटलाइट पाइप मे दिखाई दिया.....वो धीरे धीरे नीचे आ रहा था. फिर वो अपनी जगह पर रुक गया.....और मशीन की स्क्रीन डार्क हो गयी.
"तुम ने देखा..."
"शानदार...." इमरान जैसे सपने देखते हुए जागा.
"इस प्रकार के डिस्क्स की सहायता से एक इंटरनॅशनल एर जैसा रडार तैयार किया जा चुका है. और उस रडार पर प्लेसस के सही सही लोकेशन भी फिक्स हो चुके हैं. फॉर एग्ज़ॅंपल मान लो कि तुम्हारे शहर पर एक उड़ान तश्तरी दिखाई दी.....और यहाँ से लॅब वालों को इनफॉर्म किया गया. बस दूसरी तरफ के रडार पर तुम्हारे शहर को मार्क कर दिया गया."
"मैं समझ रहा हूँ...." इमरान सर हिला कर कहा.
"उड़ान तश्तरियाँ राज़ बनी रहीं. उनके बारे मे बड़े साइंटिसटिक भी चक्कर मे पड़े हुए थे. अधिक-तर ऐसी ही बातें सुनने मे आती थीं कि वो किसी दूसरे ग्रह एरोप्लेन हैं. चूँकि उस समय उड़ान-तश्तरियों को राज़ ही मे रखना था इसलिए उड़ान-तश्तरियाँ उड़ाने वाले देशों की तरफ से भी अफवाहें ही फैलाई जाती रहीं. जब वो ऐसा रडार बनाने मे सफल हो गये तब घोषणा के साथ उस रडार का परीक्षण किया जाने लगा. इसके लिए आर्टिफिशियल सॅटलाइट की भी आड़ ली गयी. चलो अब इस टॉपिक को ख़तम करो......अब हम उन लोगों के बारे मे बात करेंगे जो विभिन्न समय मे यहाँ रहस्यमई ढंग से घुस कर कुच्छ तलाश करते हैं."
"मेरे विचार से ये स्परसिया......"
"नहीं.....ये ग्रह इत्यादि की कहानी उन लोगों के लिए वॅल्यू रखेगी जो संदेशों को भेजने केलिए ऐसे विचित्र साधन रखते हों." डॉक्टर डावर ने एक लंबी साँस ली और फिर बोले...."वो सुनहरा स्पंज अत्यंत विचित्र है.......और तुम उसे एक विशेष प्रकार का ट्रांसमीटर ही समझ सकते हो."
"मेरा भी यही ख़याल है..."
"मैं समझता हूँ उन्हें जिस चीज़ की तलाश है." डॉक्टर डावर मुस्कुराए...."मगर वो उन्हें यहाँ नहीं मिलेगी....इमरान....वो एक ऐसी खोज(डिस्कवरी) है जिस का ज्ञान अभी मेरे अलावा किसी को नहीं है. अर्थात वो चीज़ किस प्रकार बनती है वो केवल मैं जानता हूँ. वैसे दूसरों को वो चीज़ मेरे पास होने की भनक लग चुकी है. यही कारण है कि यहाँ उसे तलाश करते रहते हैं. इमरान तुम्हें एक काम और भी करना है.....मेरे आदमियों मे से उस चोर का पता लगाओ जो यहाँ के इन्फर्मेशन्स उन लोगों तक पहुचाता है."
"ये मैं कर लूँगा....." इमरान सर हिला कर बोला....."मगर मुझे हैरत है कि आप ने गवर्नमेंट को इस से सूचित क्यों नहीं किया?"
"तुम नहीं समझते....." डॉक्टर डावर धीरे से बोले...."मैं अभी सरकार से इस बारे मे बात नहीं करना चाहता....क्योकि मेरी खोज अभी परीक्षण के स्टेज मे है. रहमान की बात और है.....वो मेरा गहरा दोस्त है. मेरे लिए निजी तौर भी काम कर सकता है..............अगर मैं उन रहस्सयमयी लोगों के बारे मे सरकार को सूचना दूं तो संभव है परीक्षण के स्टेज मे ही मुझे वो चीज़ सामने लानी पड़े. लेकिन ये तो ना मेरे लिए लाभदायक होगा और ना देश के लिए. तुम देख ही रहे हो कि आज की दुनिया अपने एक्सपेरिमेंट्स को कंप्लीट करने केलिए कैसे कैसे ढोंग रचाती है......सिर्फ़ इसलिए कि उनके एक्सपेरिमेंट्स और डिस्कवरीस की भनक भी किसी के कान मे ना पड़ने पाए. क्योंकि एक राज़ दूसरे तक पहुचने मे कुच्छ समय नहीं लगता. मेरी ये खोज भी एक ऐसी ही चीज़ है........बस निकला था किसी चीज़ की तलाश मे लेकिन कुच्छ और मिल गया. अब मुझे चिंता है कि उस का सही उपयोग मालूम करूँ. वैसे वो इतना विध्वंशक है कि..............खैर छोड़ो हटाओ....तुम्हें अब उस चोर को खोजना है जो यहाँ की जासूसी करता है."
"मैं इसी लिए आया हूँ...." इमरान ने कहा और कुच्छ सोचने लगा.
"अब वो कहाँ है?" डॉक्टर डावर ने कहा.
"पोर्ट ट्रस्ट बिल्डिंग के उपर...." आवाज़ आई.
"ओके..." डॉक्टर डावर बोले. "अब उस पर नज़र रखो......कि वो कहाँ जाता है......मैं उसे उसके रास्ते से हटा रहा हूँ..."
डॉक्टर डावर ने नॉब को थोड़ा सा घुमाया और डाइयल की सुई एक चोकोरे निशान पर रुक गयी. उधर स्क्रीन पर इमरान ने देखा कि रेड पॉइंट ब्लॅक लाइन से हट कर स्क्रीन के सादा भाग की तरफ रेंगने लगा है.
डॉक्टर भी अब स्क्रीन को देखने लगे थे.......और उनके हाथ मे एक पेन्सिल थी.
"अब कहाँ है....?" उन्होने उँची आवाज़ मे कहा.
"ठीक ईगल टवर पर....." आवाज़ आई.....और डॉक्टर ने पेन्सिल की नोक उस गतिशील विदू पर रख दी. वैसे पॉइंट उसके नीचे से निकल गया था और ऐज यूषुयल धीरे धीरे रेंगता हुआ स्क्रीन के उपर ही के हिस्से की तरफ जा रहा था.
डॉक्टर ने जहाँ पेन्सिल की नोक रखी थी वहाँ एक गहरा निशान लगाया और फिर रेग्युलेटिंग नॉब पर हाथ रख दिया. स्क्रीन पर रेड पॉइंट फिर पेन्सिल से लगाए हुए निशान की तरफ वापस आ रहा था.
"अब कहाँ है....?" डॉक्टर डावर ने पुछा. तब तक पॉइंट पेन्सिल के निशान के पास पहुच रहा था.
"ठीक ईगल टवर पर सर.....वो कुच्छ दूर जाकर फिर पलट आया है...."
"ठीक है..."
इसके बाद डॉक्टर डावर स्क्रीन के डिफरेंट भागों से रेड पॉइंट को पेन्सिल के निशान पर लाए और हर बार यही सूचना मिली कि वो "ईगल टवर" पर है. इसके बाद ही पॉइंट का कलर फिर चेंज हो गया और अब वो चमकने लगा था.
"हमारे उपग्रह मे अब अंधेरा हो गया है. डॉक्टर डावर धीरे से बोले.....और उन्होने मईक की तरफ मूह ले जाकर कहा...."एंड टास्क.....डन"
फिर बटन दबाते ही मईक और बॉक्स हल्की सी आवाज़ के साथ अंदर चला गया. चमकदार पॉइंट आप ब्लॅक लाइन पर चल रहा था. फिर वो उस सीधी रेखा पर आ गया जहाँ वो पाइप से गुज़रने के बाद दिखाई दिया था. इमरान की नज़र पाइप की तरफ उठ गयी. कुच्छ ही देर बाद फुटबॉल जैसा मिनी सॅटलाइट पाइप मे दिखाई दिया.....वो धीरे धीरे नीचे आ रहा था. फिर वो अपनी जगह पर रुक गया.....और मशीन की स्क्रीन डार्क हो गयी.
"तुम ने देखा..."
"शानदार...." इमरान जैसे सपने देखते हुए जागा.
"इस प्रकार के डिस्क्स की सहायता से एक इंटरनॅशनल एर जैसा रडार तैयार किया जा चुका है. और उस रडार पर प्लेसस के सही सही लोकेशन भी फिक्स हो चुके हैं. फॉर एग्ज़ॅंपल मान लो कि तुम्हारे शहर पर एक उड़ान तश्तरी दिखाई दी.....और यहाँ से लॅब वालों को इनफॉर्म किया गया. बस दूसरी तरफ के रडार पर तुम्हारे शहर को मार्क कर दिया गया."
"मैं समझ रहा हूँ...." इमरान सर हिला कर कहा.
"उड़ान तश्तरियाँ राज़ बनी रहीं. उनके बारे मे बड़े साइंटिसटिक भी चक्कर मे पड़े हुए थे. अधिक-तर ऐसी ही बातें सुनने मे आती थीं कि वो किसी दूसरे ग्रह एरोप्लेन हैं. चूँकि उस समय उड़ान-तश्तरियों को राज़ ही मे रखना था इसलिए उड़ान-तश्तरियाँ उड़ाने वाले देशों की तरफ से भी अफवाहें ही फैलाई जाती रहीं. जब वो ऐसा रडार बनाने मे सफल हो गये तब घोषणा के साथ उस रडार का परीक्षण किया जाने लगा. इसके लिए आर्टिफिशियल सॅटलाइट की भी आड़ ली गयी. चलो अब इस टॉपिक को ख़तम करो......अब हम उन लोगों के बारे मे बात करेंगे जो विभिन्न समय मे यहाँ रहस्यमई ढंग से घुस कर कुच्छ तलाश करते हैं."
"मेरे विचार से ये स्परसिया......"
"नहीं.....ये ग्रह इत्यादि की कहानी उन लोगों के लिए वॅल्यू रखेगी जो संदेशों को भेजने केलिए ऐसे विचित्र साधन रखते हों." डॉक्टर डावर ने एक लंबी साँस ली और फिर बोले...."वो सुनहरा स्पंज अत्यंत विचित्र है.......और तुम उसे एक विशेष प्रकार का ट्रांसमीटर ही समझ सकते हो."
"मेरा भी यही ख़याल है..."
"मैं समझता हूँ उन्हें जिस चीज़ की तलाश है." डॉक्टर डावर मुस्कुराए...."मगर वो उन्हें यहाँ नहीं मिलेगी....इमरान....वो एक ऐसी खोज(डिस्कवरी) है जिस का ज्ञान अभी मेरे अलावा किसी को नहीं है. अर्थात वो चीज़ किस प्रकार बनती है वो केवल मैं जानता हूँ. वैसे दूसरों को वो चीज़ मेरे पास होने की भनक लग चुकी है. यही कारण है कि यहाँ उसे तलाश करते रहते हैं. इमरान तुम्हें एक काम और भी करना है.....मेरे आदमियों मे से उस चोर का पता लगाओ जो यहाँ के इन्फर्मेशन्स उन लोगों तक पहुचाता है."
"ये मैं कर लूँगा....." इमरान सर हिला कर बोला....."मगर मुझे हैरत है कि आप ने गवर्नमेंट को इस से सूचित क्यों नहीं किया?"
"तुम नहीं समझते....." डॉक्टर डावर धीरे से बोले...."मैं अभी सरकार से इस बारे मे बात नहीं करना चाहता....क्योकि मेरी खोज अभी परीक्षण के स्टेज मे है. रहमान की बात और है.....वो मेरा गहरा दोस्त है. मेरे लिए निजी तौर भी काम कर सकता है..............अगर मैं उन रहस्सयमयी लोगों के बारे मे सरकार को सूचना दूं तो संभव है परीक्षण के स्टेज मे ही मुझे वो चीज़ सामने लानी पड़े. लेकिन ये तो ना मेरे लिए लाभदायक होगा और ना देश के लिए. तुम देख ही रहे हो कि आज की दुनिया अपने एक्सपेरिमेंट्स को कंप्लीट करने केलिए कैसे कैसे ढोंग रचाती है......सिर्फ़ इसलिए कि उनके एक्सपेरिमेंट्स और डिस्कवरीस की भनक भी किसी के कान मे ना पड़ने पाए. क्योंकि एक राज़ दूसरे तक पहुचने मे कुच्छ समय नहीं लगता. मेरी ये खोज भी एक ऐसी ही चीज़ है........बस निकला था किसी चीज़ की तलाश मे लेकिन कुच्छ और मिल गया. अब मुझे चिंता है कि उस का सही उपयोग मालूम करूँ. वैसे वो इतना विध्वंशक है कि..............खैर छोड़ो हटाओ....तुम्हें अब उस चोर को खोजना है जो यहाँ की जासूसी करता है."
"मैं इसी लिए आया हूँ...." इमरान ने कहा और कुच्छ सोचने लगा.
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Re: प्यासा समुन्दर
34
जुलीना फिट्ज़वॉटर बहुत बेचैन लग रही थी. क्योंकि उसने अभी अभी सफदार का फोन रिसीव किया था. इसके बाद उसने X2 से संपर्क करना चाहा लेकिन सफलता नहीं मिली. ब्लॅक ज़ीरो के नंबर से भी रिप्लाइ नहीं मिला......जो अक्सर X2 की हैसियत से दूसरे मेंबर्ज़ केलिए निर्देश जारी करता था.
इस इन्फर्मेशन का X2 तक पहुचना बहुत आवश्यक था....कि सफदार नाकाम हो गया और तनवीर अब भी उसी बिल्डिंग मे है.
तभी फोन की घंटी बजी. उसने रिसीवर उठा लिया. दूसरी तरफ बोलने वाला तनवीर था.
"तुम....!!!" वो गुर्राया. "मैं तुम से अच्छी तरह समझूंगा.......वैसे अब मैं रिज़ाइन ही दे दूँगा."
"मगर तुम कहाँ से बोल रहे हो?"
"नर्क से...." तनवीर चिंघाड़ा.
"क्या तुम क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग से निकल आए हो?"
"तुम को कैसे पता?"
"जो कुच्छ भी हुआ है.....X2 के स्कीम से हुआ है.......शायद तुम उस समय भाग निकले जब वहाँ गोलियाँ चल रही थीं...."
"हां.....लेकिन इसका मकसद क्या था?"
"तुम जानते हो कि X2 हमें मकसद कभी नहीं बताता...."
"तो.......मतलब वो चाहता था कि मैं उस इमारत मे उन लोगों के साथ ठहरू..."
"हां....बिल्कुल.....तुम ने वहाँ से निकल कर मूर्खता का सबूत दिया है."
"इस का ज़िम्मेदार मैं नहीं हूँ..." तनवीर गुस्से से बोला..."अगर मुझे हालत का पता पहले से होता तब मैं देखता कि क्या कर सकता हूँ...."
"अच्छा.......अब प्रेज़ेंट्ली तुम अपने साथियों से मिलने की कोशिश मत करना. लेकिन पहले मुझे बताओ कि घर तक तुम्हारा पिच्छा किया गया या नहीं...."
"मैं कुच्छ नहीं जानता."
"ओके.....मैं तुम्हें ऑर्डर देती हूँ कि तुम अपने घर से बाहर कदम भी नहीं निकालना. खुद को वहीं नज़रबंद रखो."
"शट अप...." तनवीर गरजा. "तुम मुझे ऑर्डर देती हो......तुम्हारी क्या हक़ीक़त है?"
"मेरी हक़ीक़त ये है कि तुम सब मेरे चार्ज मे हो.....और इस प्रकार के राइट्स मुझे X2 की तरफ से मिले हैं. तुम घर से बाहर कदम निकाल कर देखो........X2 तुम्हें अपनी पसंद की मौत मरने से भी रोक देगा.......वो सब कुच्छ कर सकता है."
दूसरी तरफ से फोन कट गया. वैसे जूलीया को विश्वास था कि अब तनवीर वही करेगा जिसके लिए उस से कहा गया है."
वो निश्चिंत होकर बेड पर लेट गयी और शायद सो भी गयी थी......लेकिन फोन की घंटी ने उसे इस तरह चौंका दिया जैसे वो बॉम्ब गिरने की आवाज़ रही हो.
"हेलो...." उसने झपट कर रिसीवर उठा कर कहा.
"X2..."
"यस सर..."
"क्या खबर है?"
जूलीया ने सफदार की कहानी सुना दी और ये सूचना भी दी कि तनवीर वहाँ से भाग आया है.
"लेकिन वो लोग तनवीर से क्या चाहते थे?"
"ये अभी नहीं मालूम हो सका. मैं उसे फिर फोन करूँगी..."
"हां.....पता करो.....मैं फिर फोन करूँगा."
दूसरी तरफ से फोन कट गया.
अगले ही पल जूलीया ने तनवीर के नंबर डाइयल किए. उसे यकीन था कि तनवीर सो रहा होगा.
ये सच भी था. क्योंकि कयि बार रिंग जाने पर तनवीर की भर्राई हुई आवाज़ सुनाई दी.
"कॉन है....?" वो किसी कटखने कुत्ते की तरह गुर्राया.
"नींद नहीं आ रही..." जूलीया ने अपनी आवाज़ मे शहद भर कर कहा.
"तो मैं क्या करूँ?" तनवीर ने कहा लेकिन अब उसकी आवाज़ मे गुर्राहट नहीं थी.
"पिच्छली रात तुम ने भी इसी तरह जगा कर बोर किया था."
"ओह्ह.....अच्छा..." तनवीर ने ज़बरदस्ती हँसने की कोशिश की.
"अरे भाई.....मैं ये जान'ने केलिए बेचैन हूँ कि उस इमारत मे तुम पर क्या बीती."
"तुम या X2?"
"ओह्ह.....X2.....मैं उसे फोन कर कर के थक चुकी हूँ.....वो नहीं मिला. उसे तुम्हारे बारे मे भी खबर देनी थी."
"मेरे बारे मे.....एनीवे.....मैं ये सब तुम्हें बता रहा हूँ........मुझे X2 मे अब कोई रूचि नहीं रह गयी...."
"ना हो.....तुम मुझे बताओ..."
"मैं नहीं समझ सका कि वो लोग क्या चाहते थे. वो बूढ़ा जो मुझे ले गया था एक जर्मन है. उसका नाम हफ ड्रॅक है. उसने मेरा काफ़ी सत्कार किया. दो सुंदर लड़कियाँ मेरा दिल बहलाती रहीं."
"और इसके बाद भी तुम निकल भागे.....मुझे हैरत है."
"ओह्ह......वास्तव मे मैं उलझन मे पड़ गया था. क्यूंकी मैने उन्हें अपने बारे मे एक दर्द भरी कहानी सुनाई थी. मैने सोचा कि अगर उन लोगों ने कहानी की सच्चाई का पता करने की कोशिश की तो मेरा क्या अंजाम होगा."
इसके बाद तनवीर ने सौतेली माँ और ज़ालिम बाप की कहानी जूलीया को भी सुनाई.
जूलीया हंस पड़ी और कहा...."पता नहीं उन्हें कैसे विश्वास हुआ कि तुम्हारा बाप ज़िंदा भी हो सकता है."
"क्यों?"
"अरे तुम्हारे चहरे पर तो ऐसी अनाथपन बरसती है कि दूर से ही देख कर किसी को भी दया आ जाए."
"लेकिन तुम्हें दया नहीं आती...." तनवीर बेशार्मों की तरह हंस कर बोला.
"मुझे अनाथों से थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं है. हां तो उन लोगों ने तुझ से कोई इच्छा व्यक्त नहीं की?"
"बिल्कुल नही...." तनवीर ने कहा. "लेकिन बूढ़े के अंदाज़ से यही लगता था कि वो मुझ से कोई काम लेना चाहता है......वो बार बार मुझ से कहता था कि तुम किसी बात की चिंता मत करो. ऐसे युवाओं की सहायता करता हूँ जो अपने पैरों पर खड़े होना चाहते हैं."
"तुम से बड़ी ग़लती हुई...."
"मुझे अपनी इस ग़लती पर खुशी है कि अंजाने मे सही....X2 के काम ना आ सका..."
"तनवीर......पागल मत बनो.....इस नौकरी से अलग रह कर भी तुम चैन से नहीं रह सकोगे...."
"हां मैं जानता हूँ कि X2 एक अनदेखी आसमानी बिजली है......पता नहीं कब और कहाँ टूट पड़े. लेकिन अब मुझे ज़िद्द हो गयी है."
"अभी तुम्हें अपने घर मे सीमित रहना है.....X2 का यही आदेश है."
"तुम्हारी क्या राय है?"
"मैं भी तुम्हें यही राय दूँगी कि तुम वही करो जिसके लिए कहा जा रहा है. वो अपने स्टाफ साथियों को खुश रखने की भी कोशिश करता है."
"मैं तो तभी खुश रह सकता हूँ जब वो मुझे इमरान को क़तल कर देने की अनुमति दे देगा."
जूलीया ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. लेकिन जब वो बोली तो उसकी आवाज़ मे अनगिनत क़हक़हे मचल रहे थे. उसने कहा.....
"मैं भी कयि बार ये ही सोच चुकी हूँ...."
"क्या मतलब?"
"यही कि किसी दिन कोई इमरान की चटनी बना कर रख दे...."
"मुझ पर भरोसा करो.." तनवीर अत्यंत गंभीर स्वर मे बोला...."एक दिन यही होना है."
"ओके......अब तुम आराम करो." जूलीया ने कहा और फोन काट दिया.
जुलीना फिट्ज़वॉटर बहुत बेचैन लग रही थी. क्योंकि उसने अभी अभी सफदार का फोन रिसीव किया था. इसके बाद उसने X2 से संपर्क करना चाहा लेकिन सफलता नहीं मिली. ब्लॅक ज़ीरो के नंबर से भी रिप्लाइ नहीं मिला......जो अक्सर X2 की हैसियत से दूसरे मेंबर्ज़ केलिए निर्देश जारी करता था.
इस इन्फर्मेशन का X2 तक पहुचना बहुत आवश्यक था....कि सफदार नाकाम हो गया और तनवीर अब भी उसी बिल्डिंग मे है.
तभी फोन की घंटी बजी. उसने रिसीवर उठा लिया. दूसरी तरफ बोलने वाला तनवीर था.
"तुम....!!!" वो गुर्राया. "मैं तुम से अच्छी तरह समझूंगा.......वैसे अब मैं रिज़ाइन ही दे दूँगा."
"मगर तुम कहाँ से बोल रहे हो?"
"नर्क से...." तनवीर चिंघाड़ा.
"क्या तुम क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग से निकल आए हो?"
"तुम को कैसे पता?"
"जो कुच्छ भी हुआ है.....X2 के स्कीम से हुआ है.......शायद तुम उस समय भाग निकले जब वहाँ गोलियाँ चल रही थीं...."
"हां.....लेकिन इसका मकसद क्या था?"
"तुम जानते हो कि X2 हमें मकसद कभी नहीं बताता...."
"तो.......मतलब वो चाहता था कि मैं उस इमारत मे उन लोगों के साथ ठहरू..."
"हां....बिल्कुल.....तुम ने वहाँ से निकल कर मूर्खता का सबूत दिया है."
"इस का ज़िम्मेदार मैं नहीं हूँ..." तनवीर गुस्से से बोला..."अगर मुझे हालत का पता पहले से होता तब मैं देखता कि क्या कर सकता हूँ...."
"अच्छा.......अब प्रेज़ेंट्ली तुम अपने साथियों से मिलने की कोशिश मत करना. लेकिन पहले मुझे बताओ कि घर तक तुम्हारा पिच्छा किया गया या नहीं...."
"मैं कुच्छ नहीं जानता."
"ओके.....मैं तुम्हें ऑर्डर देती हूँ कि तुम अपने घर से बाहर कदम भी नहीं निकालना. खुद को वहीं नज़रबंद रखो."
"शट अप...." तनवीर गरजा. "तुम मुझे ऑर्डर देती हो......तुम्हारी क्या हक़ीक़त है?"
"मेरी हक़ीक़त ये है कि तुम सब मेरे चार्ज मे हो.....और इस प्रकार के राइट्स मुझे X2 की तरफ से मिले हैं. तुम घर से बाहर कदम निकाल कर देखो........X2 तुम्हें अपनी पसंद की मौत मरने से भी रोक देगा.......वो सब कुच्छ कर सकता है."
दूसरी तरफ से फोन कट गया. वैसे जूलीया को विश्वास था कि अब तनवीर वही करेगा जिसके लिए उस से कहा गया है."
वो निश्चिंत होकर बेड पर लेट गयी और शायद सो भी गयी थी......लेकिन फोन की घंटी ने उसे इस तरह चौंका दिया जैसे वो बॉम्ब गिरने की आवाज़ रही हो.
"हेलो...." उसने झपट कर रिसीवर उठा कर कहा.
"X2..."
"यस सर..."
"क्या खबर है?"
जूलीया ने सफदार की कहानी सुना दी और ये सूचना भी दी कि तनवीर वहाँ से भाग आया है.
"लेकिन वो लोग तनवीर से क्या चाहते थे?"
"ये अभी नहीं मालूम हो सका. मैं उसे फिर फोन करूँगी..."
"हां.....पता करो.....मैं फिर फोन करूँगा."
दूसरी तरफ से फोन कट गया.
अगले ही पल जूलीया ने तनवीर के नंबर डाइयल किए. उसे यकीन था कि तनवीर सो रहा होगा.
ये सच भी था. क्योंकि कयि बार रिंग जाने पर तनवीर की भर्राई हुई आवाज़ सुनाई दी.
"कॉन है....?" वो किसी कटखने कुत्ते की तरह गुर्राया.
"नींद नहीं आ रही..." जूलीया ने अपनी आवाज़ मे शहद भर कर कहा.
"तो मैं क्या करूँ?" तनवीर ने कहा लेकिन अब उसकी आवाज़ मे गुर्राहट नहीं थी.
"पिच्छली रात तुम ने भी इसी तरह जगा कर बोर किया था."
"ओह्ह.....अच्छा..." तनवीर ने ज़बरदस्ती हँसने की कोशिश की.
"अरे भाई.....मैं ये जान'ने केलिए बेचैन हूँ कि उस इमारत मे तुम पर क्या बीती."
"तुम या X2?"
"ओह्ह.....X2.....मैं उसे फोन कर कर के थक चुकी हूँ.....वो नहीं मिला. उसे तुम्हारे बारे मे भी खबर देनी थी."
"मेरे बारे मे.....एनीवे.....मैं ये सब तुम्हें बता रहा हूँ........मुझे X2 मे अब कोई रूचि नहीं रह गयी...."
"ना हो.....तुम मुझे बताओ..."
"मैं नहीं समझ सका कि वो लोग क्या चाहते थे. वो बूढ़ा जो मुझे ले गया था एक जर्मन है. उसका नाम हफ ड्रॅक है. उसने मेरा काफ़ी सत्कार किया. दो सुंदर लड़कियाँ मेरा दिल बहलाती रहीं."
"और इसके बाद भी तुम निकल भागे.....मुझे हैरत है."
"ओह्ह......वास्तव मे मैं उलझन मे पड़ गया था. क्यूंकी मैने उन्हें अपने बारे मे एक दर्द भरी कहानी सुनाई थी. मैने सोचा कि अगर उन लोगों ने कहानी की सच्चाई का पता करने की कोशिश की तो मेरा क्या अंजाम होगा."
इसके बाद तनवीर ने सौतेली माँ और ज़ालिम बाप की कहानी जूलीया को भी सुनाई.
जूलीया हंस पड़ी और कहा...."पता नहीं उन्हें कैसे विश्वास हुआ कि तुम्हारा बाप ज़िंदा भी हो सकता है."
"क्यों?"
"अरे तुम्हारे चहरे पर तो ऐसी अनाथपन बरसती है कि दूर से ही देख कर किसी को भी दया आ जाए."
"लेकिन तुम्हें दया नहीं आती...." तनवीर बेशार्मों की तरह हंस कर बोला.
"मुझे अनाथों से थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं है. हां तो उन लोगों ने तुझ से कोई इच्छा व्यक्त नहीं की?"
"बिल्कुल नही...." तनवीर ने कहा. "लेकिन बूढ़े के अंदाज़ से यही लगता था कि वो मुझ से कोई काम लेना चाहता है......वो बार बार मुझ से कहता था कि तुम किसी बात की चिंता मत करो. ऐसे युवाओं की सहायता करता हूँ जो अपने पैरों पर खड़े होना चाहते हैं."
"तुम से बड़ी ग़लती हुई...."
"मुझे अपनी इस ग़लती पर खुशी है कि अंजाने मे सही....X2 के काम ना आ सका..."
"तनवीर......पागल मत बनो.....इस नौकरी से अलग रह कर भी तुम चैन से नहीं रह सकोगे...."
"हां मैं जानता हूँ कि X2 एक अनदेखी आसमानी बिजली है......पता नहीं कब और कहाँ टूट पड़े. लेकिन अब मुझे ज़िद्द हो गयी है."
"अभी तुम्हें अपने घर मे सीमित रहना है.....X2 का यही आदेश है."
"तुम्हारी क्या राय है?"
"मैं भी तुम्हें यही राय दूँगी कि तुम वही करो जिसके लिए कहा जा रहा है. वो अपने स्टाफ साथियों को खुश रखने की भी कोशिश करता है."
"मैं तो तभी खुश रह सकता हूँ जब वो मुझे इमरान को क़तल कर देने की अनुमति दे देगा."
जूलीया ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. लेकिन जब वो बोली तो उसकी आवाज़ मे अनगिनत क़हक़हे मचल रहे थे. उसने कहा.....
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"मुझ पर भरोसा करो.." तनवीर अत्यंत गंभीर स्वर मे बोला...."एक दिन यही होना है."
"ओके......अब तुम आराम करो." जूलीया ने कहा और फोन काट दिया.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
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Re: प्यासा समुन्दर
"ओके......अब तुम आराम करो." जूलीया ने कहा और फोन काट दिया.
कुच्छ देर बाद उसने दुबारा X2 की कॉल रिसीव की और उसे तनवीर की कहानी सुनाई.
"इस समय..." दूसरी तरफ से आवाज़ आई."तुम सब अपने अपने मकानो ही तक सीमित रहो. क्वीन्स रोड वाली बिल्डिंग पर निगाह रखने केलिए केवल सफदार काफ़ी होगा. उस से कहो कि वो उस इमारत मे रहने वालों पर नज़र रखे. वैसे वो उस इमारत की भीतरी माप तो अच्छी तरह समझ गया होगा...."
"जी हां सर..." जूलीया ने उत्तर दिया.
"बॅस ठीक है.....तुम सब इसलिए अपने मकानों मे सीमित किए जा रहे हो कि परिस्थिति बहुत जटिल हो गयी है. और मैं किसी समय भी तुम सब को किसी जगह भी बुला सकता हूँ.......मगर ठहरो.....तुम सब इसी समय दानिश मंज़िल मे शिफ्ट हो जाओ.......अपने घरों को छोड़ दो...."
"ऑल राइट सर.......लेकिन तनवीर....."
"हां.....ठीक है तनवीर को वहीं रहने दो.....उसका बाहर निकलना या तुम सब के साथ देखा जाना अभी ठीक नहीं होगा...."
"ओके सर...."
"दानिश मंज़िल के साउंड प्रूफ कमरे मे एक क़ैदी है. उसके किसी प्रकार के सवाल का जवाब नहीं दिया जाए.......और उसे कड़ी निगरानी में रखा जाए...." दूसरी तरफ से कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया गया.
********
डॉक्टर डावर के रिसर्च सेंटर मे आए हुए इमरान को आज आठवाँ दिन था. इस बीच उसने ना जाने कितने पापड बेले लेकिन किसी विशेष परिणाम पर नहीं पहुच सका. एक बार उसने गोताखोरी का वही ड्रेस पहन कर समुद्र की तह भी नापी जो एक अग्यात व्यक्ति छोड़ का भागा था......लेकिन उसकी वो कोशिश भी व्यर्थ ही साबित हुई. पानी मे कयि घंटे बिताने के बाद भी वो नहीं जान सका कि डॉक्टर डावर को गोताखोरी पर मजबूर करने का क्या कारण था.
डॉक्टर डावर ने भी अब चुप्पी साध ली थी. इमरान से कभी ये भी नहीं पुछ्ता कि वो क्या कर रहा है......और उसने आप तक कितनी जानकारियाँ जमा कीं. वैसे इमरान ने उन्हें अक्सर उसी सुनहरे स्पंज पर किसी ना किसी प्रकार का एक्सपेरिमेंट करते ज़रूर देखा था.
वो उन आदमियों की खोज मे भी था जिन पर प्रयोग-शाला के राज़ बाहर पहुचाने का संदेह किया जा सकता. लेकिन अभी तक वो उसमे भी सफल नहीं हो सका था. खावीर और नोमानी भी रिसर्च सेंटर के आस पास ही मौजूद रहते थे. उनके पास ज़ीरो नाइन के मोबाइल ट्रांसमीटर भी थे. ये सेट ऐसे थे कि उन पर ज़ीरो नाइन सेट ही की बातें सुनी जा सकती थीं.......और उनके ट्रांसमीटर से होने वाली बातो को सुनने केलिए भी उसी मेक के ट्रांसमीटर की आवश्यकता पड़ती थी.
इमरान ने अपनी कयि रातें जाग कर काटी थीं. उसने और उसके दोनों स्टाफ ने लॅब के बाहरी भाग पर नज़र रखने की कोशिश की थी लेकिन इन दिनों शायद वहाँ घुसने वाले अग्यात व्यक्तियों ने अपने शेड्यूल मे परिवर्तन कर दिया था. इमरान को किसी रात भी कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखाई दिया.
आज शाम से ही वो काफ़ी चिंतित था क्योंकि उसके लिए ये पहला अवसर था जब किसी केस मे इतने दिन लग जाने के बाद भी कोई काम की बात पता नहीं चली थी.
वो अब्ज़र्वेटरी के नीचे वाली बाल्कनी पर खड़ा शायद समंदर की लहरें गिनने की कोशिश कर रहा था. कोशिश ऐसे कि नीचे अंधेरा था. दिन होता तो वो लहरें गिनने पर मक्खियाँ मारने को अड्वॅंटेज देता. क्योंकि जब हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाने का मौका आ जाए तो इस से बढ़िया काम और क्या हो सकता था.
अचानक उसने अब्ज़र्वेटरी की बड़ी टेलिस्कोप(दूरबीन) के मूव करने की आवाज़ सुनी और सर उठा कर उपर देखने लगा. तारों की छान्व मे उपर उठती हुई टेलिस्कोप उसे सॉफ दिख रही थी. वो 75° आंगल पर रुक गयी. फिर इमरान उसे पश्चिम की तरफ मूव करते देखता रहा. फिर कुच्छ देर बाद वो लगातार झुकती चली गयी.
लेकिन दुबारा वो अपनी पोज़िशन मे इस ढंग से आई जैसे उसे बड़ी लापरवाही से छोड़ दिया गया हो. दूसरे ही पल इमरान ने अब्ज़र्वेटरी की सीढ़ियों पर किसी के कदमों की आवाज़ सुनी. उसे ऐसा लगा जैसे कोई दौड़ कर सीढ़ियों से उतरने की कोशिश कर रहा हो. अब्ज़र्वेटरी की सीढ़ियाँ उस बाल्कनी तक आती थीं फिर यहाँ से नीचे पहुचने की सीढ़ियाँ दूसरी तरफ थीं.
इमरान संयोग से सीढ़ियों के गेट के पास ही था. कोई बहुत तेज़ी से बाल्कनी पर आया.
"कॉन है.....?" आने वाले ने चीख कर पुछा......और इमरान ने आवाज़ पहचान ली. ये डॉक्टर डावर थे.
"इमरान....! ओह्ह....इमरान....तुम हो..." वो हान्फते हुए बोले. "नया ग्रह.....एकदम नया ग्रह......जो दूसरों से एकदम अलग था.....आओ मेरे साथ चलो उपर चलो.....शायद....उफ्फ..ओह्ह.......क्या मैं लूट गया.....तबाह हो गया.....?"
"पर बात क्या है.....?" इमरान उनके पिछे बढ़ता हुआ बोला. वो फिर अब्ज़र्वेटरी की चक्करदार सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे.....और उनकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ थी.
इमरान भी उन्हीं के साथ दौड़ता रहा. वो उपर पहुचे और डॉक्टर डावर ने दुबारा टेलिस्कोप उपर उठाई. इस टेलिस्कोप का डाइयामीटर कम से कम से कम डेढ़ फीट ज़रूर रहा होगा.
"चलो देखो.....वो चमकदार रेखाएँ देखो...." उन्होने इमरान की गर्दन पकड़ कर टेलिस्कोप के सिरे की तरफ धकेलते हुए कहा.
"मैं बर्बाद हो गया.......मैं तुम्हें बताउन्गा.....पहले तुम वो रेखाएँ देखो....."
इमरान ने बहुत दूर आकाश मे चमकदार लकीरों का एक जाल देखा और जाल से एक चमकदार रेखा निकल कर पश्चिमी छितिज तक चली गयी थी. उस रेखा को देखने केलिए इमरान टेलिस्कोप को पश्चिम की तरफ झुकाता चला गया........और फिर उसे एक और चीज़ भी दिखाई दी. ये नीले रंग का अकेला सा शोला था......उसकी गति बहुत तेज़ थी. ये पश्चिमी छितिज से उठ कर पूरब की तरफ आ रहा था. उसके साथ ही साथ इमरान टेलिस्कोप को उठाता चला गया. टेलिस्कोप का मूव्मेंट किसी प्रकार की मेकॅनिसम पर था......वरना इतनी बड़ी टेलिस्कोप को संभालना आदमी के वश की बात नहीं थी.
जैसे ही नीला शोला चमकदार रेखाओं के जाल मे पहुचा उसके चीथड़े उड़ गये. इमरान ने उसे किसी भारी ठोस(सॉलिड) वस्तु की तरह फट'ते देखा था.
"देखा...." डॉक्टर डावर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले.
"देख लिए......मगर एक नीला शोला भी था जिसे मैने फट'ते देखा."
"नीला शोला.......! फट'ते देखा....!!" डॉक्टर डावर रुक रुक कर बोले. ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें कंठ से आवाज़ निकालने मे कठिनाई हो रही हो. उनकी आँखें बाहर की तरफ उबल रही थीं.....उनसे ना हैरत प्रकट हो रही थी ना ही डर....बॅस उनकी आँखें उबली पड़ रही थीं. लेकिन चेहरा हर प्रकार के भाव से खाली था.
फिर इमरान को ऐसा लगा जैसे वो चकरा कर गिर पड़ेंगे. इमरान ने आगे बढ़ कर उन्हें सहारा दिया. वास्तव मे डॉक्टर डावर होश मे नहीं लग रहे थे. इमरान उन्हें चेअर पर बिठा कर दोनों कंधों को पकड़ कर संभाले रहा.
क्रमशः..............................................
कुच्छ देर बाद उसने दुबारा X2 की कॉल रिसीव की और उसे तनवीर की कहानी सुनाई.
"इस समय..." दूसरी तरफ से आवाज़ आई."तुम सब अपने अपने मकानो ही तक सीमित रहो. क्वीन्स रोड वाली बिल्डिंग पर निगाह रखने केलिए केवल सफदार काफ़ी होगा. उस से कहो कि वो उस इमारत मे रहने वालों पर नज़र रखे. वैसे वो उस इमारत की भीतरी माप तो अच्छी तरह समझ गया होगा...."
"जी हां सर..." जूलीया ने उत्तर दिया.
"बॅस ठीक है.....तुम सब इसलिए अपने मकानों मे सीमित किए जा रहे हो कि परिस्थिति बहुत जटिल हो गयी है. और मैं किसी समय भी तुम सब को किसी जगह भी बुला सकता हूँ.......मगर ठहरो.....तुम सब इसी समय दानिश मंज़िल मे शिफ्ट हो जाओ.......अपने घरों को छोड़ दो...."
"ऑल राइट सर.......लेकिन तनवीर....."
"हां.....ठीक है तनवीर को वहीं रहने दो.....उसका बाहर निकलना या तुम सब के साथ देखा जाना अभी ठीक नहीं होगा...."
"ओके सर...."
"दानिश मंज़िल के साउंड प्रूफ कमरे मे एक क़ैदी है. उसके किसी प्रकार के सवाल का जवाब नहीं दिया जाए.......और उसे कड़ी निगरानी में रखा जाए...." दूसरी तरफ से कह कर फोन डिसकनेक्ट कर दिया गया.
********
डॉक्टर डावर के रिसर्च सेंटर मे आए हुए इमरान को आज आठवाँ दिन था. इस बीच उसने ना जाने कितने पापड बेले लेकिन किसी विशेष परिणाम पर नहीं पहुच सका. एक बार उसने गोताखोरी का वही ड्रेस पहन कर समुद्र की तह भी नापी जो एक अग्यात व्यक्ति छोड़ का भागा था......लेकिन उसकी वो कोशिश भी व्यर्थ ही साबित हुई. पानी मे कयि घंटे बिताने के बाद भी वो नहीं जान सका कि डॉक्टर डावर को गोताखोरी पर मजबूर करने का क्या कारण था.
डॉक्टर डावर ने भी अब चुप्पी साध ली थी. इमरान से कभी ये भी नहीं पुछ्ता कि वो क्या कर रहा है......और उसने आप तक कितनी जानकारियाँ जमा कीं. वैसे इमरान ने उन्हें अक्सर उसी सुनहरे स्पंज पर किसी ना किसी प्रकार का एक्सपेरिमेंट करते ज़रूर देखा था.
वो उन आदमियों की खोज मे भी था जिन पर प्रयोग-शाला के राज़ बाहर पहुचाने का संदेह किया जा सकता. लेकिन अभी तक वो उसमे भी सफल नहीं हो सका था. खावीर और नोमानी भी रिसर्च सेंटर के आस पास ही मौजूद रहते थे. उनके पास ज़ीरो नाइन के मोबाइल ट्रांसमीटर भी थे. ये सेट ऐसे थे कि उन पर ज़ीरो नाइन सेट ही की बातें सुनी जा सकती थीं.......और उनके ट्रांसमीटर से होने वाली बातो को सुनने केलिए भी उसी मेक के ट्रांसमीटर की आवश्यकता पड़ती थी.
इमरान ने अपनी कयि रातें जाग कर काटी थीं. उसने और उसके दोनों स्टाफ ने लॅब के बाहरी भाग पर नज़र रखने की कोशिश की थी लेकिन इन दिनों शायद वहाँ घुसने वाले अग्यात व्यक्तियों ने अपने शेड्यूल मे परिवर्तन कर दिया था. इमरान को किसी रात भी कोई संदेहास्पद व्यक्ति नहीं दिखाई दिया.
आज शाम से ही वो काफ़ी चिंतित था क्योंकि उसके लिए ये पहला अवसर था जब किसी केस मे इतने दिन लग जाने के बाद भी कोई काम की बात पता नहीं चली थी.
वो अब्ज़र्वेटरी के नीचे वाली बाल्कनी पर खड़ा शायद समंदर की लहरें गिनने की कोशिश कर रहा था. कोशिश ऐसे कि नीचे अंधेरा था. दिन होता तो वो लहरें गिनने पर मक्खियाँ मारने को अड्वॅंटेज देता. क्योंकि जब हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाने का मौका आ जाए तो इस से बढ़िया काम और क्या हो सकता था.
अचानक उसने अब्ज़र्वेटरी की बड़ी टेलिस्कोप(दूरबीन) के मूव करने की आवाज़ सुनी और सर उठा कर उपर देखने लगा. तारों की छान्व मे उपर उठती हुई टेलिस्कोप उसे सॉफ दिख रही थी. वो 75° आंगल पर रुक गयी. फिर इमरान उसे पश्चिम की तरफ मूव करते देखता रहा. फिर कुच्छ देर बाद वो लगातार झुकती चली गयी.
लेकिन दुबारा वो अपनी पोज़िशन मे इस ढंग से आई जैसे उसे बड़ी लापरवाही से छोड़ दिया गया हो. दूसरे ही पल इमरान ने अब्ज़र्वेटरी की सीढ़ियों पर किसी के कदमों की आवाज़ सुनी. उसे ऐसा लगा जैसे कोई दौड़ कर सीढ़ियों से उतरने की कोशिश कर रहा हो. अब्ज़र्वेटरी की सीढ़ियाँ उस बाल्कनी तक आती थीं फिर यहाँ से नीचे पहुचने की सीढ़ियाँ दूसरी तरफ थीं.
इमरान संयोग से सीढ़ियों के गेट के पास ही था. कोई बहुत तेज़ी से बाल्कनी पर आया.
"कॉन है.....?" आने वाले ने चीख कर पुछा......और इमरान ने आवाज़ पहचान ली. ये डॉक्टर डावर थे.
"इमरान....! ओह्ह....इमरान....तुम हो..." वो हान्फते हुए बोले. "नया ग्रह.....एकदम नया ग्रह......जो दूसरों से एकदम अलग था.....आओ मेरे साथ चलो उपर चलो.....शायद....उफ्फ..ओह्ह.......क्या मैं लूट गया.....तबाह हो गया.....?"
"पर बात क्या है.....?" इमरान उनके पिछे बढ़ता हुआ बोला. वो फिर अब्ज़र्वेटरी की चक्करदार सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे.....और उनकी रफ़्तार काफ़ी तेज़ थी.
इमरान भी उन्हीं के साथ दौड़ता रहा. वो उपर पहुचे और डॉक्टर डावर ने दुबारा टेलिस्कोप उपर उठाई. इस टेलिस्कोप का डाइयामीटर कम से कम से कम डेढ़ फीट ज़रूर रहा होगा.
"चलो देखो.....वो चमकदार रेखाएँ देखो...." उन्होने इमरान की गर्दन पकड़ कर टेलिस्कोप के सिरे की तरफ धकेलते हुए कहा.
"मैं बर्बाद हो गया.......मैं तुम्हें बताउन्गा.....पहले तुम वो रेखाएँ देखो....."
इमरान ने बहुत दूर आकाश मे चमकदार लकीरों का एक जाल देखा और जाल से एक चमकदार रेखा निकल कर पश्चिमी छितिज तक चली गयी थी. उस रेखा को देखने केलिए इमरान टेलिस्कोप को पश्चिम की तरफ झुकाता चला गया........और फिर उसे एक और चीज़ भी दिखाई दी. ये नीले रंग का अकेला सा शोला था......उसकी गति बहुत तेज़ थी. ये पश्चिमी छितिज से उठ कर पूरब की तरफ आ रहा था. उसके साथ ही साथ इमरान टेलिस्कोप को उठाता चला गया. टेलिस्कोप का मूव्मेंट किसी प्रकार की मेकॅनिसम पर था......वरना इतनी बड़ी टेलिस्कोप को संभालना आदमी के वश की बात नहीं थी.
जैसे ही नीला शोला चमकदार रेखाओं के जाल मे पहुचा उसके चीथड़े उड़ गये. इमरान ने उसे किसी भारी ठोस(सॉलिड) वस्तु की तरह फट'ते देखा था.
"देखा...." डॉक्टर डावर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले.
"देख लिए......मगर एक नीला शोला भी था जिसे मैने फट'ते देखा."
"नीला शोला.......! फट'ते देखा....!!" डॉक्टर डावर रुक रुक कर बोले. ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें कंठ से आवाज़ निकालने मे कठिनाई हो रही हो. उनकी आँखें बाहर की तरफ उबल रही थीं.....उनसे ना हैरत प्रकट हो रही थी ना ही डर....बॅस उनकी आँखें उबली पड़ रही थीं. लेकिन चेहरा हर प्रकार के भाव से खाली था.
फिर इमरान को ऐसा लगा जैसे वो चकरा कर गिर पड़ेंगे. इमरान ने आगे बढ़ कर उन्हें सहारा दिया. वास्तव मे डॉक्टर डावर होश मे नहीं लग रहे थे. इमरान उन्हें चेअर पर बिठा कर दोनों कंधों को पकड़ कर संभाले रहा.
क्रमशः..............................................
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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