"आ..आगे म..मत बढ़...बढ़ना म..मैं कहती हूँ आगे मत बढ़ना | somebudy हेल्प".........सौम्य चीख उठी क्यूंकि धीरे धीरे राम की वो ज़िंदा लाश खून से लथपथ बुरी हालत में उसकी तरफ बढ़ रही थी....सौम्य उसके चहेरे को देख नहीं पायी और उसने अपनी नज़रो को फेर लिया...
ठीक उसी पल उसे अहसास हुआ की वो ज़िंदा लाश उसके बेहद करीब खड़ी थी....धीरे धीरे वो अपने ज़ख्म भरे हाथो को सौम्य के तरफ बढ़ा रहा था | सौम्य आँखे कस्सके दबाये हुए थर थर काँप उठ रही थी| और ठीक उसी पल वो जोर से चीखी और उसने राम की लाश को जैसे धक्का दिया...वो आगे बढ़ी तो राम ने उसके कलाई को मजबूती से थाम लिया....सौम्या चीखते हुए अपनी कलाई को उसके मज़बूत हाथो के गिरफ्त से छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर रही थी | उस वक़्त उसने महसूस किया की वो किन खौफनाक निगाहो से उसे घूर रहा था |
"याआआ"......वो दहाड़ते हुए सौम्य को अपनी तरफ खींचते हुए उसपे जैसे झपटने वाला ही था | की सौम्य ने कस्सके अपनी कलाई छुड़वाते हुए वह से भाग उठी| वो कमरे से निकलते हुए सीढ़ियों से निचे उतर ही रही थी की इतने में उस साये से जा टकराई अरुण को जब उसने पहचाना तो सीहमते हुए उसके गले लग गयी....
"अरुण मुझे बचा लो अरुण वो मुझे मुझे मार डालेगा उसने साहिल को भी मार दिया जावेद को भी मार दिया"
"ssshh शांत हो जाओ जस्ट कॉम डाउन ओके जावेद की लाश अब भी सीढ़ियों पे मौजूद है |"
अचानक उसी पल अरुन ने देखा की राम ठीक सीढ़ियों के ऊपर खड़ा उन दोनों को देख रहा था | अरुन ने पाया की वो राम नहीं था उसकी ज़िंदा लाश में जैसे कोई शैतानी रूह थी | उसकी मौत का बयानात उसका जिस्म अपने ज़ख्मो और बेदर्दी सी हुयी मौत की जैसे गवाही दे रहा था |
"म..मैं तुम सब को मार डालूंगा....मार डालूंगा' मैं तुम्हे"...............दोहरी आवाज़ में जैसे ठहाका लगते हुए वो गुस्से भरी निगाहो से राम ने वो शब्द दोहराये उसके गले से निकलती वो आवाज़ इतनी भारी और इतनी भयंकर थी की जैसे पूरा कॉटेज काँप उठा |
"नं..नहीं अ...अरुण नहीं अरुण प्लीज रुक जाओ उसके पास मत जाओ अरुण प्लीज".......उसी पल अरुण ने सौम्य को अपने पीछे किया....सीढ़ियों से एक एक कदम रखते हुए वो वो ज़िंदा लाश अरुण की तरफ बढ़ रही थी |
सौम्य ने देखा की अरुण ने झुककर सीढ़ियों पे रखके हुए उस जलती धाव धाव करती मशाल को उठा लिया था | अरुण ने खामोशी से देखा की राम के हिंसक चेहरे पे दहशत के बदलाव आ रहे थे | पलभर का मौका भी न मिला अरुण को की राम उसपर जैसे झपट पड़ा....वो किसी भाग की तरह उसपे झपटा था....वो तो गनीमत थी की अरुण किनारे की और जा कूदा था वरना अबतक वो राम के गिरफ्त में होता....अरुण ने फुरती से अपनी जलती मशाल के ऊपरी सीढ़ी को उसके जिस्म के आर पार एक ही झटके में कर डाला था|
और उसी पल ऐसी दर्दनाक चीख राम के गले से निकली की सौम्य भी सिहम उठी | "आआह्ह्ह आआह्ह्ह्हह्ह आह्ह्ह्ह"............अरुण ने देखा की उसके गले से वो दोहरी आवाज़ कितने सारे निकल रहे थे....ऐसा लग रहा था जैसे कई रूह का कब्ज़ा राम की लाश पर हो...और धीरे ही धीरे उसके मुंह से निकलती उस काले धुएं में चेहरे के अक्सों को देख अरुण को अहसास हुआ की वो रूहें अब मुक्त हो रही थी | जलती मशाल की आग राम की लाश को लपटों में ले चुकी थी |
उसी पल सौम्य और अरुण सीढ़ियों से निचे उतर गए.....राम की बेजान लाश आग में दहकते हुए सीढ़ियों पे जैसे टूटकर बिखर गयी | "उफ़".........खामोशी से कुछ सेकण्ड्स के लिए अरुण ने चैन की जैसे सांसें ली....सौम्या भी जैसे राहत महसूस कर रही थी | उस वक़्त वो दोनों जैसे लिविंग हॉल में अकेले मौजूद थे | जलती वो मशाल अब भी अरुण के हाथो में थी |
"यही मशाल हमारी हिफाज़त में है ये जबतक जल रही है हम मेहफ़ूज़ है वरना न जाने कौन सी नयी आफत हमारे गले पड़ जाए"
"तुम लोग बचे कैसे?"..........सौम्या के सवाल पूछते ही अरुण ने उसे सबकुछ तफ्सील से ब्यान किया....उसने बताया की उन्होने उस दलदल को बाँध दिया जहाँ से वो रूहें अपना आतंक फैलाती थी|
"लेकिन हमारा खतरा अभीतक टला नहीं है है न?"
"नहीं सौम्या टला तो अभी हमारा खतरा अब भी नहीं है क्यूंकि कुछ लाशें खुदवाई के वक़्त फर्नांडेस ने यहाँ इस कॉटेज की सरज़मीं में गाडी थी"
सुनते ही जैसे सौम्या को दहशत महसूस हुयी....."तो फिर हम यहाँ से अब निकल क्यों नहीं जाते?"....
"हम भाग नहीं सकते सौम्या तुमने देखा नहीं राम का क्या हश्र हुआ वो वो कोई आखरी ही शैतानी ताक़त है जिसे हुम्हे रोकना है उसके थमते ही इस कॉटेज से इस इलाके से दहशत का प्रकोप हमेशा हमेशा के लिए दफा हो जायेगा जावेद और साहिल की लाश कहाँ मौजूद है?"
"वो..वही ऊपर"
"उन्हे जलाना बेहद ज़रूरी है मैं उन्हे जलाने जा रहा हूँ तुम तबतलक दिप के पास ठहरो"......उसी श्रण अरुण को अहसास हुआ की दीप घायल था | जिसे वो लिविंग हॉल में ही लेटाके आया था जब उसने सौम्या की चीख सुनी थी | सौम्या ने देखा की दीप वैसे ही बेसूद सोफे पे लेटा हुआ था | सौम्या जब उसके पास आयी तो उसे जगाने लगी लेकिन वो उठ नहीं रहा था |
"अरुण".......सौम्या ने सीढिया चढ़ते अरुण को आवाज़ दी....जो पलटते हुए सौम्या के पास आया |
सौम्या ने उसे दीप की बिगड़ती हालत बताई...अरुण ने भी जाँचा वो होश में अब नहीं आ रहा था...उसके कंधे से खून अब भी बह रहा था | "ओह नहीं दीप दीप होश में आओ दीप"..........लेकिन दीप को झिंझोड़ने के बावजूद वो होश में नहीं आ रहा था |
अरुन ने पास रखी बोतल से पानी निकालते हुए कुछ बूंदों की छींटे उसके चेहरे पे मारी | "दीप होश में आओ दोस्त तुम्हे जागना होगा तुम्ही हमारा सहारा हो दीप प्लीज फॉर गॉड सेक"..........तभी दो-तीन बार झिंझोड़ने के बाद दीप ने होश में आते हुए एक गहरी सास ली |
उसने कस्सके अरुण की कालर को कांपते हाथो से थाम लिया "अरुण प्लीज अरुण मेरी बात ध...ध्यान से सु..सुनो अरुण मैं ये कहना चाहता हूँ की अब तुम ही इस मनहूसियत का अंत कर सकते हो...लगता है अब मेरा शरीर म..मेरा और साथ नहीं दे रहा तुम ये लो....ये व..वो कील है जिससे तुम उस प्रेत को ख़तम कर सकते हो"............अरुण के हाथ में दीप ने अपनी जेब से एक मोटी कील निकाली जिसपर कई अल्फाज़ो में अरबी में शब्द लिखे हुए थे |
"वो एक हवा है अरुण और रूहो को तुम छू भी नहीं पाओगे.....अबतक वो किसी न किसी पे सवार होती आयी है | और मैं जानता हूँ अरुण की ये ज़मीन ही में वो लाशें अब भी गड़ी हुयी है तुम्हे ना सिर्फ उन नापाक लाशो को खुदवाई के बाद जलाना होगा बल्कि इस पुरे कॉटेज को भी जला देना होगा....अगर तुमने ऐसा नहीं किया....तो ये मौत का सिलसिला यु ही चलता रहेगा अरुण यु ही चलता रहेगा | अ.अरुण मेरी लाश का तुम ही अंतिम संस्कार करोगे अरुण तुम्हे अब अपनी और सौम्या की खुद हिफाज़त करनी है आह्हः हो सके तो मुझे माँफ कर देना आआह ससस अरुण अरुण"..............दीप अपनी आँखे बंद कर चूका था |
"दीप दीप तुम्हे कुछ नहीं होगा दीप"..........दीप ने अरुण का कोई जवाब नहीं दिया |
"अरुण प्लीज अरुण होश से काम लो खुद को सम्भालो तुम वो हुम्हे छोड़ के जा चूका"...........अरुण ने अपनी नम आँखों से सौम्या की बात सुनते हुए उसकी और देखा.....सौम्या भी सुबकते हुए उसके कंधे को सेहला रही थी |
अरुण उठ खड़ा हुआ....उसने अपने गले से ॐ का वो लॉकेट उतारा...और सौम्या के गले में डाल दिया...."अब कोई भी रूह तुम्हारे शरीर में नहीं समाएगी चलो आओ"..........अरुण सौम्या का हाथ पकडे धीरे धीरे सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हुए ऊपर के मंज़िल पे पंहुचा...उस वक़्त एक ठंडी हवा अँधेरे उस हॉल में गूंज रही थी | अरुण और सौम्या सहमे हुए धीरे धीरे उस कमरे की तरफ आये......अरुण की दृष्टि में खौफ्फ़ समां उठा क्यूंकि वह साहिल की लाश मौजूद नहीं थी |
दोनों अभी कुछ समझ पाते..इतने में दरवाजा अपने आप खुलने लगा...चर चराती उस तीखी आवाज़ में वो गुप्त कमरा अपने आप खुल रहा था | अरुण ने मशाल को हवा में ही फिराते हुए उस कमरे में की तरफ अपना कदम बढ़ाया....और ठीक उसी पल उसे फर्नांडेस की लाश दिखी....उसे कमरे में सर्द सी महसूस हुयी एक अजीब सी दोहरी आवाज़ घुटती सी महसूस हुयी | और ठीक उसी पल सौम्या चिल्ला उठी |
"आआआह्ह्ह्ह"........सौम्या पे दिवार पे चढ़ा वो साया उसपर जैसे झपट पड़ा था.....लेकिन तभी उसके बदन को छूते ही वो ३ कदम दूर जा गिरा....घुर्राता हिंसक साहिल उनके सामने खड़ा था | "साहिल मैं कहता हूँ दूर रहो सौम्या से साहिल साहिल".........अरुण की बात को अनसुना किये वो दोनों पे जैसे झपटने को हुआ....की तभी अरुण ने उसके गर्दन पे मशाल दे मारी..."आआआआह".........दोहरी आवाज़ में छटपटाता साहिल किसी तेज जानवर की तरह उस कमरे में दाखिल हो रहा था | वो अरुण से भाग रहा था | "मैं कहता हूँ रुक जाओ"
अरुण उसके पीछे पीछे जैसे ही उस कमरे में दाखिल हुआ उसने पाया की वो अँधेरे कोने में छुपा हुआ था | उसने फिर अरुण पे हमला करना चाहा...अरुण उसके झपटने से सीधे आईने से जा टकराया....और घायल होते हुए फर्श पे जा गिरा...उसके पास वो आखरी अवसर था...और ठीक उसी अवसर का फायदा उठाते हुए...उसने वो मशाल साहिल के चहेरे पे दे मारा..साहिल का चेहरा गलने लगा..वो दहाड़ते चीखते हुए वही बिस्तर पे जा गिरा....अरुण ने देखते ही देखते उस बिस्तर को अपनी जलती मशाल से आग के हवाले कर दिया |
धीरे धीरे साहिल चीख उठा....उसकी दोहरी आवाज़ में वो दर्दनाक चीख गूंज उठी | और ठीक उसी पल बिस्तर की आग के लपटों में उसकी ज़िंदा लाश भी जल उठी....जिसमें अरुण ने साफ़ देखा निकलती उसकी लाश से ूँ रूहों को | वो दर्दनाक चीख अब थम चुकी थी |
अरुण ने पाया की सौम्या दरवाजे पे ही मौजूद थी | वो दोनों सहमे हुए पीछे आग में जल रहे उस बिस्तर को देख वहां से निकल गए | जब वो सीढ़ियों के करीब आये तो एकदम से अरुण ने साफ़ देखा वो सर कटी उस औरत की लाश को........सौम्या चीख उठी अरुन ने उसे अपने पीछे कर लिया | "हाहाहा हाहाहाहा हहहह हाहाहा"............ठहाका लगाती वो अजीब सी भयंकर हसी जैसे पुरे कॉटेज को हिला डाल रही थी | अरुण को अहसास हुआ की ये वो प्रेत था जिसका ज़िकर दीप ने उससे किया था | ये वही शैतानी रूह थी जो उस दर्दनाक हादसे की शिकार हुयी थी | अरुण ने साफ़ देखा वही मैली सी वाइट गाउन और सारे शरीरो पे ताजे ज़ख्मो से निकलता खून लेकिन धढ़ के सिवाह उस अँधेरे में उसने साफ़ पाया की उसकी गर्दन नहीं थी |
वो ठहाका लगाती ही जा रही थी | अरुण ने अपनी मशाल ठीक उसके ऊपर फैक डाली....वो हवा के भाति जैसे गायब हो उठी | "अरुण बचो"........सौम्या चीखी क्यूंकि उसी पल उसे वो रूह अपनी और बढ़ती महसूस हुयी जिसने उसे इस क़दर पीछे की और फैका था की अरुण सीधे दीवारों से लगते हुए फर्श पे जा गिरा....उसका सर चक्र उठा था उसे अहसास हुआ उसके माथे और होंठ से खून निकल रहा था |
सौम्या आतंकित भाव से उस प्रेतनी को देख रही थी | वो एक कदम और आगे बढ़ाती उसी श्रण सौम्या ने अपनी ॐ की लॉकेट उसकी और की........."आआअह्ह्ह"........वो दहशत में जैसे वो सर कटी लाश पीछे को होने लगी...धीरे धीरे सौम्या उसे वो लॉकेट दिखाते हुए उसके करीब हो रही थी....वो काँप भी रही थी | धीरे धीरे सौम्या उसके पीछे जाने लगी.....अरुण ने अपनी पूरी ताक़त लगते हुए खुद को अपने पाव पे खड़ा कर लिया था |
हवाएं तेज चल रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे आज की रात किसी क़यामत की रात जैसी हो | जंगली जानवर चाँद की और देखते हुए जैसे रो रहे थे | लिविंग हॉल में पहुंचते ही खिड़किया दरवाजे अपने आप बंद हो रहे थे खुल रहे थे | बीच बीच में बिजली की चमकती रौशनी में सौम्या ने देखा की वो जैसे जैसे लॉकेट उसके करीब ले जा रही थी वो साया और पीछे होता जा रहा था....लेकिन सौम्या को मालुम नहीं था की ठीक उसके पीछे जावेद की लाश लहूलुहान खड़ी उस तेज धार धार चाक़ू उसके ओर ला रही थी सौम्या की पीठ उसकी तरफ थी | इसलिए सौम्या को अहसास नहीं था | सौम्या को लगा की जरा सा भी अगर उसका ध्यान उस सर कटी लाश से हटा तो शायद वो बच न सके |
ठीक उसी पल जावेद की घुर्राती उस आवाज़ को सुन सौम्या पीछे को जैसे हुयी ठीक उसी पल अरुण ने छलांग लगते हुए जलती उस मशाल को सीधे जावेद के शरीर के आर पार कर दिया....जावेद का शरीर दहाड़ उठा...वो आतंकित चीखो से आग में जलता हुआ खिड़की को जैसे तोड़ते हुए बाहर जा गिरा.....उसी के साथ अरुण ने देखा की उसके पुरे जिस्म का गलती हुए वजूद मिट रहा था |
हो हो करती हवा तेज हो गयी और ठीक उसी पल सौम्या को जैसे एक तेज धक्का लगा सौम्या हवा में उड़ते हुए सीधे उस शीशे के मेज से जा टकराई....अरुण चीख उठा....क्यूंकि उसी पल सौम्या की वो आखरी चीख उसके कानो में गूंज उठी थी | शीशे उसके पीठ में जा घुसे थे | अरुण का ध्यान से मशाल से हटते हुए सौम्या की तरफ हुआ...वो भाउकलाये सौम्या को उठाने लगा | वो कांपते हुए जैसे मुस्कुरा रही थी |
"सौम्या तुम्हे कुछ नहीं होगा सौम्या सौम्या".........सौम्या के खून से स्ने हाथ उसके हाथो पे जैसे गिर पड़े.....अरुण अपने जज्बातो पे काबू न पाते हुए उसकी लाश से लिपटकर रोने लगा |
और ठीक उसी पल उसे अहसास हुआ की उसकी गर्दन को किसी ने कास्कर जकड लिया....."आआआआअह्ह आह्हः छोड़ दो मुझे आअह्ह्ह्ह"..........उसे उसके नाख़ून अपने मांसो में दाखिल होते हुए ेमहसुस हो रहे थे | और ठीक उसी पल उस चीज ने उसे दूसरी ओर दे फैका....सोफे पे गिरते हुए अरुण बदहवास हो गया |
उसने देखा की वो सर कटी रूह उसकी तरफ बढ़ रही थी | और और उसके दोनों हाथ जैसे उसने अरुण के गले की तरफ बढ़ाने को किये | उसी पल अरुण उठ खड़ा हुआ था उसे अहसास हुआ की अब बचने का उसके पास मौका सिर्फ एक ही था जो अगर नाकाम होता तो उसकी मौत के साथ ही उस कॉटेज का राज वैसा ही अधूरा रह जाता |
अरुण ने उस कील को निकाला उसे अहसास हुआ की वो कटा हुआ सर ठीक उसे पीछे घेरे हुए ठहाका लगाए हस्स रहा था | और दूसरी तरफ वो सर कटा लाश अपने दोनों हाथो को उसके ओर लाते हुए बढ़ रहा था | अरुण को दीप की बात जैसे फिर याद आयी....और उसने ठीक उसी पल उस नुकीली सुनहरी रंग की वो पीतल की मोटी कील सीधा कॉटेज के ज़मीन पे दे मारी धढ़ धढ़ अरुण ने मज़बूती से अपने उसे अपने मुट्ठी से इस क़दर जमीन में जा धसा दिया की लकड़ी की उस ज़मीन में वो मोटी कील धस गयी | और ठीक उसी पल सर कटी वो लाश उससे दूर होने लगी.........पीछे ठहाका लगाती वो हस्सी अपने आप दर्दनाक चीख में तब्दील हो गई...."आआआआहहह आअह्ह्ह्ह आआआआह आअह्हह्ह्ह्ह"..........धीरे ही धीरे अरुण ने देखा की वो रूह उसके आँखों से ओझल होती जा रही थी | पूरा कॉटेज कांपने लगा....सारी चीज़ें अपने आप बिखरकर गिरने लगी फर्नांडेस और मैरी की तस्वीर अपने आप गिरके चकनाचूर हो गयी | अरुण को समझ आया की उसने जहाँ कील को धसाया था उस फर्श के निचे ही वो लाशो का ढेर गड़ा हुआ था |
वो छूट पड़ा दरवाजे की तरफ उसने दीप को अपने कंधो में उठा लिया और उसे अपने संग बहार ले आया.....उसने उसकी लाश को गाडी के भीतर रखा और उलटे पाव जैसे ही कॉटेज की तरफ रुख किया उसे अहसास हुआ की वो भूकंप अब थम चूका था | अरुण को उसी पल अहसास हुआ की रात का वो अँधेरा अब छट्ट रहा था | आसमान अब साफ़ हो रहा था | उसने जब कॉटेज में कदम रखा तो उसे वह सब चीज़े वैसे ही बिखरी मिली | उसने एक बार सौम्या की लाश की ओर देखा और फिर उस कील की ओर जो अब भी वही गड़ी हुयी थी | धीरे धीरे कॉटेज में बाहरी रौशनी पड़ने लगी थी | अरुण को अहसास हुआ की अब उसे और घबराने की ज़रूरत नहीं थी | वो सुबह उसकी जीत की उसके नए सवेरे की जैसे निशानी थी | एक नया सवेरा जिसने रात की उस गहराइयो से उसे हिफाज़त से बचा लिया था |
लेकिन अरुण थमा नहीं ओसाका आक्रोश जैसे पूरा नहीं हुआ था | वो जानता था अब उसे क्या करना है? उसने अपनी गाडी का पेट्रोल निकाला फिर राम की गाडी का मुआना करते हुए उससे भी पेट्रोल निकाला....फिर उस भरे डिब्बे से उसने पुरे कॉटेज को जैसे पेट्रोल से गीला कर दिया...हर वो जगह हर वो कमरा हर वो लाशो पे जो अब भी अंदर मौजूद थी | उसे मालूम था सौम्या की लाश को उसे जलाना था वरना वो भी रात होते ही उस नापाक रूह का एक हिंसा बनकर ज़िंदा होने वाली थी | उसने एक बार पलटकर सौम्या की ओर देखा और रट हुए बहार निकल आया....
उसने लाइटर जलाई और उस जलते लाइटर को कॉटेज के ठीक खुले दरवाजे से अंदर फैख डाला....धाव धाव करती हुयी वो कॉटेज आग के लपटों में हो उठी | और कुछ ही दिएर में आग की लपटे इतनी सुलग गयी की उसने उस विशाल लकड़ी के बने कॉटेज को कुछ ही पालो में भस्म कर दिया |
जलती लकड़ी का मलवा गिरने लगा.....अब वहां कॉटेज के बजाय आग में जल रही लकड़ियों का बडा बड़ा मलवा था | अरुण ने खुद खड़े कॉटेज को जलते देख रहा था | जबतक वो आग की लपटों में ढह न गयी | बहुत देर खड़े रहने के बाद धीरे धीरे अरुण ने पाया की सुबह हो चुकी थी सूरज निकल रहा था...और उसकी तेज रौशनी पुरे डेड लेक पे पड़ रही थी |
अरुण वैसे ही पैदल उस वीरानो में चलता हुआ निकल गया....सड़क पे कॉटेज से कोसो दूर निकलने के बाद....उसने वही ठहरे सोचा की शायद कोई गाडी उसे ज़रूर मिलेगी..वो उसी इंतजार में था....जब वो सड़को पे चल रहा था तो उसे अहसास हुआ की उसके बदन में अब और चलने की जैसे जान नहीं थी | वो कुछ कदम और सड़क पे चला था और उसके बाद वही ढेर होक गिर पड़ा | धीरे धीरे उसके आँखों के आगे धुंधलाहट छा गयी थी |
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एक और दर्दनाक चीख complete
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Re: एक और दर्दनाक चीख
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: एक और दर्दनाक चीख
१ साल बाद
वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी की उस सुबह...मास्टर चीफ प्रकाश वर्मा के केबिन में उस शख्स ने दस्तक दी जो रंगत से गोरा ३० साल का युवक था| और जिसके चेहरे पे खुशनुमा मुस्कराहट थी....वो अपनी वर्दी में था | उसी पल "मे आई कम इन".....की आवाज़ सुन प्रकाश जो उस वक़्त सिगरेट का काश ले रहा था उसकी निगाह उस असीपी से रूबरू हुयी...."आइये आइये ऐसीपी आशिफ आपने आने की ज़ेहमत क्यों की? हुम्हे ही याद कर लिया होता? वैसे भी सेक्रेटरी ने जब बताया की आप सुबह ७ बजे ही आने वाले है तो वक़्त से पहले आपसे मुलाक़ात करने यहाँ हाज़िर हो गया"..........आशिफ चेयर पे विराजमान हुआ और मुस्कुरा पड़ा |
"नहीं सर ये तो मेरी खुशकिस्मती की मैं आपके पास आया असल में आपके फर्म एजेंसी के कई किस्से साल्व्ड केसेस के मैंने सुने है....तो सोचा आपसे खुद आके मिलु मैं जिस केस पे करीब १ महीने से काम कर रहा हूँ वो भी सोल्वे हो जायेगा"
"तो फिर आप ही बताइये आखिर वो कौन सा केस है? जिससे हमारे एजेंसी का नाम जुड़ा है?"........ऐशट्रे में अपने अधबुझी सिगरेट को मसलते हुए प्रकाश ने कहा
"जी बिलकुल सर दरअसल ये केस "डेड लेक" के ऊपर है वही जहाँ कई वारदातें घटी मेरी इस केस में उठी तवज्जोह सिर्फ इस बात से हुयी क्यूंकि ये इस शहर का पहला और ऐसा unsolved केस है जिसे आजतक पुलिस डिपार्मेंट ने सॉल्व न कर पाया....आखिर में ये केस हम क्राइम ब्रांच वालो को सौप दिया गया है | खैर १ साल पहले एक डायरेक्टर और उसका क्रू मेंबर उस कॉटेज गया था और ठीक उससे कई दिन पहले एक मर्डर भी हुआ था वही से ये केस मैंने सुना है की आपके डिपार्मेंट को पुलिस ने हैंडल करने दिया था"
प्रकाश वर्मा ने सहमति में अपना सर हिलाया...वो उस वक़्त चुपचाप सुबक रहे थे....आशिफ ने गौर किया की उनके आँखों में घुलते आंसू थे | "आर यू ओके सर?".........आशीफ ने हैरानगी से सवालात किया....
"हाहाहा बस अरुण बक्शी की याद आ गयी मेरा सीनियर डिटेक्टिव अरुण बक्शी जिसे मैंने ये केस सौंपा था मैं भी कितना खुदगर्ज़ हूँ की अपने फायदे के लिए अपने भाई जैसे उस काबिल एजेंट को मैंने इस केस के पीछे लगाया अगर मैं न भी करता तो इस केस के ज़िकर करने के बाद भी वो इंकार नहीं करने वाला था| हाँ अरुण बक्शी और उसके साथ उसका एक परनोर्मलिस्ट शायद उसका नाम मोहद डीप था | अब वो मर चूका है और उसके मर्डर का विटनेस खुद अरुण बक्शी था | दरअसल उस हादसे के बाद जब अरुण वापिस मुझतक पंहुचा तो मैंने उसे बहुत डरा हुआ सेहमा हुआ पाया था |
उसका इलाज हुआ करीब २ महीनो तक वो अस्पताल में भर्ती था | डॉक्टर ने बताया की उसके दिमाग में किसी का चीज़ का बहुत गहरा असर पड़ा था | वो जिस हालत में उस राह चलते मुसाफिर को मिला था उसने बताया की वो बेहोश हालत में था | उसे शहर लाके हॉस्पिटल में एडमिट किया गया और फिर जब मुझे सुचना मिली तो मैं खुद उससे मिलने गया |
आखिर २ महीनो के इलाज के बाद उसमें काफी सुधार आया....वो एक एक वाक़्या जो उसके साथ बीता था उसने मुझे सुनाया | उसकी एक एक बयानात को हमने एक किताब में नोट किया है पहले तो मुझे यकीन न हुआ की वो रूहों से लड़ा था उसने अपनी जान जोखिम में डाली और उसकी मदद करने वाला वो दीप उसकी लाश भी पुलिस को मिली थी वही पे....कॉटेज को उसने अपने हाथो से ही जलाया था | काफी लम्बा केस चला लेकिन आप तो जानते है केस का पहलु भूत प्रेतों पे कभी कानून नहीं मानेगा....वो उसे साज़िश मानते रहे....आखिर में जब पुलिस ने काफी छानबीन की तो उन्हें वहां कुछ हासिल नहीं हुआ | और यही १ साल से बस एक unsolved केस के रूप में आपके सामने शामिल है"
आशिफ चुपचाप उस वक़्त चीफ की बातों को सुन रहा था | "फिर क्या हुआ था?"...........आशिफ ने सवाल किया....
"जब हार पछताके पुलिस को कोई सुराग न मिला वह किसी प्रेत आत्मा जैसी साज़िश के बाबत कुछ मालूम न चला तो बस ढील दे दी.....अरुण को कसूरवार तो पुलिस ठहरा न पायी लेकिन उसकी बात पे भी किसी ने यकीन नहीं किया | लेकिन जो हादसा उसके हाथ घटा था उसपे लोग आँखे मुंडके यकीन करने लगे थे | उसकी रिहाई के बाद अरुण ने दीप की बॉडी को क्लेम किया क्यूंकि उसकी डेडबॉडी कोई लेने आया नहीं था | उसको दफ़नाने के बाद न जाने अरुण कहाँ चला गया? तभी तो कहा मैंने की मैंने उसे खो दिया"..........प्रकाश अपने आँखों को पोछते हुए भरी गले से बोल उठा
"तो वो कहाँ गया?"
"कुछ बताया नहीं कोई इक्तिला करके नहीं गया बस अपने पीछे एक किताब छोड़े गया....उसके आखरी पन्नो में उसने लिखा था की यकीन करने वाले कर लेंगे लेकिन वो अब बहुत दूर जा रहा है उसे दुःख है की वो सौम्या और दीप को बचा न सका वो किसी की जान को न बचा सका सिवाय अपने लेकिन उसे ख़ुशी है की अब कोई भी मासूम उस जगह की भेट नहीं चढ़ेगा उस डेड लेक का राज़ का पर्दा जो बरसो से ढका हुआ था उसे उसने लोगो के सामने से उठा दिया है मानना और न मानना लोगो के हाथ में है | बाकी उसने जो कुछ लिखा है उसे आप उसके उस किताब में पढ़ सकते है जो छोड़े हुए वो चला गया अपनी नौकरी अपना घर सब छोड़े"...........प्रकाश ने गंभीरता से आशिफ की तरफ देखा
कुछ ही दिएर में उसके सामने एक किताब थी...उसे हाथ में लिए जब ऐसीपी आशिफ ने पढ़ना शुरू किया....तो वहां अरुण बक्शी के साथ बीते वो हर घटना को वो अपनी आँखों से जैसे देख रहा था.....आखरी पन्ने को पढ़ते हुए उसने वो किताब बंद किये अपने हाथो में थाम ली....
"थैंक यू सो मच सर आपकी मदद का वैसे मुझे बेहद अफ़सोस है की अरुण बक्शी की बातो पे पुलिस ने यकीन न किया"
आशिफ केबिन से वो किताब लिए बाहर निकल गया....पीछे प्रकाश वर्मा कश्मकश में घेरे चुपचाप वैसे ही खड़ा रह गया |
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"अच्छे से खुदाई करो उस जगह को भी हाँ जल्दी जल्दी शाम होने से पहले का'मौन"................इंस्पेक्टर जीप के पास खड़े ऐसीपी के पास आया...."सर आपके ऑर्डर्स के बाद खुदाई शुरू कर दी है अब देखते है कितनी बाते अरुण बक्शी की सच है? पहले यहाँ डेड लेक पे पुलिस को इस जगह पे कॉटेज के बजाय मलवे का ढेर मिला था....और दीप की लाश अरुण बक्शी के गाडी में मिली थी | और कोई साबुत नहीं मिला था"............आशिफ सुनकर जैसे बड़े ध्यान से मालवो में ढेर उस लकड़ी के मालवो को घुर्र रहा था जो कभी कॉटेज में तब्दील था | जिसे अरुन बक्शी ने जला डाला था |
आशिफ ने पाया की कॉटेज के मलवो को हटाते ही एक सुनहरे रंग का मोटा कील उसे मिला उसे देखते ही आशिफ को आवाज़ सुनाई दी.....वो उस ओर भागा जहा सुखी ज़मीन थी और उसके ठीक ऊपर लाल ब्रिज
"सर सर जैसे जैसे खुदाई कर रहे है लाशो पे लाशें कंकाल मिल रही है"........इंस्पेक्टर ने आशिफ को इशारा करते हुए दिखाया
आशिफ ने खुद देखा की वो ज़मीन वही दलदल थी......और ठीक उनके किनारो पे उसे वही खूटा गड़ा मिला था....धीरे धीरे समय बीत गया और फिर साड़ी लाशो का ढेर न ही सिर्फ उस ज़मीन से बल्कि कॉटेज की ज़मीन से भी बरामद होने लगा |
"लाश काफी पुराणी है और बहुत तो गल गयी है"
"यानी की अरुण की बात सच हुयी | अब इन सब को जला डालो"
"पर सर "
"इट'स माय आर्डर डू इट"...............इंस्पेक्टर अवाक निगाहो से जाते आशिफ को देख रहा था |
सभी लाशो को इकट्ठा किये उन्हें जला दिया गया....उनमें कुछ कंकाल थे और बाकी लाशें......आशिफ चुपचाप खड़ा इस दृश्य को देख रहा था | उसने मुस्कुराते हुए उस किताब को घुरा और वक़्त की तरफ देखा शाम ६ बज चूका था |
ऐसीपी आशिफ और इंस्पेक्टर वह से निकल चुके थे धीरे धीरे हर कोई वह से निकलता चला गया|........पुलिस ने उस जगह के सामने एक बड़ा बोर्ड गाड़ दिया था ठीक सड़क के बीचो बीच..और उसमें लिखा था......"नो एंट्री डेड लेक"....
उस दिन के बाद से कोई हादसा नहीं घटा न कभी कोई वारदात सुनाई देने को मिली......लेकिन आज भी लोगो के दिलो में उस जगह को लेके कई किस्से थे जो वो ब्यान किया करते थे की वहा क्या घटा था क्या हुआ था? उस घटना के विषय ने अपनी जगह किताब के उन पन्नो में ले ली थी....जिसका नाम था "आई विटनेसेड डी डेड लेकस पेनफुल स्क्रीम".....
समाप्त........
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!