ससुरजी का महाराज

Post Reply
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

ससुरजी का महाराज

Post by SATISH »

मेरा नाम खुशी है और अब मेरी उम्र 22 साल है. मैं एक बहुत सुंदर और जवान स्त्री हूँ, मेरा कद 5 फुट 6 इंच है और मेरा रंग बहुत साफ़ है. मेरा जिस्म बिल्कुल किसी कारीगर की तराशी हुई संगमरमर की मूर्ति की तरह है, लोग मुझे इस डर से नहीं छूते कि मेरे शरीर पर कोई दाग ना लग जाए. मेरा फिगर 36-24-36 है और मेरी चूचियाँ मस्त गोल, सुडौल और सख्त हैं, गोरे रंग की चूचियों पर गहरे भूरे रंग की डोडियाँ बहुत सुंदर लगती हैं.

मेरी शादी हुए दो साल हो गए हैं और मेरा एक बेटा है, जो कि मेरी शादी के एक साल तीन माह बाद हुआ था और अब नौ माह का है. जब वह चार माह का था तब मेरे मेरे पति का तबादला अमरीका हो गया था. क्योंकि उनका कार्य आणविक क्षेत्र में था इसलिए वह परिवार को अपने साथ नहीं ले जा सकते थे. उन्हें हर ग्यारह माह के बाद एक माह के लिए भारत अपने परिवार के पास आने की इज़ाज़त थी. विदेश जाना उनकी एक मजबूरी थी, इसलिए मुझे और मेरे चार माह के बेटे को अकेला छोड़ के गए. हम अकेले ना रहें, इसके लिए मेरे पति ने मेरे ससुर (यानि पापाजी) को हमारे साथ रहने के लिए गांव से शहर बुला दिया था.

मेरे ससुर, जब हमारे साथ रहने के लिए आए तब उनकी उम्र 48 साल थी. वह हमसे अलग, गांव में रहते थे. मेरी सास की मृत्यु डेढ़ साल पहेले हो गई थे और पिछले एक साल से वह ज़्यादातर वहीं गांव वाले घर में अकेले ही रहते थे. पापाजी आर्मी में मेजर रह चुके थे और रिटायर्ड होने के बाबजूद वह बहुत फुर्तीले थे. आर्मी के तौर तरीके और तहज़ीब वह अभी तक नहीं भूले थे. गांव में रहने और खेतीबाड़ी करने तथा गांव के शुद्ध वातावरण के कारण उनका शरीर बहुत गठीला था और इस आयु में भी वह एकदम 28-30 साल के जवान लगते थे. पहले जब भी कभी वह सासू माँ के साथ हमारे पास आकर रहते थे तो मेरी पड़ोसनें उन्हें मेरे पति के बड़े भाई ही समझती थी.

पति के जाने के बाद, पिछले सात माह से वह हमारे साथ ही रह रहे हैं. पढ़े लिखे होने के कारण उनका उठना-बैठना और पहनावा भी शहर वासियों जैसा है, इसलिए मेरे साथ घर में बहुत जल्दी एडजस्ट हो गए हैं. घर के काम में और बच्चे की देखभाल में भी मेरा हाथ बटा देते हैं.

मुझे और मेरे पति को सेक्स बहुत पसंद है और शादी के बाद कोई दिन भी ऐसा नहीं था जब हम एक बार या उससे ज्यादा बार चुदाई ना करते हों. अब मेरे पति को अमरीका गए लगभग सात माह हो चुके हैं और इन सात माह में से पहले दो माह तो मुझे एक बार भी सेक्स करने को नहीं मिला था इसलिए मैं इतनी बेचैन रहती थी और सारा दिन सेक्स के लिए तड़पती रहती थी. चूत मरवाने की लालसा लिए किसी को ढूंढती रहती थी, पर कोई भरोसे का नज़र नहीं आता था. लेकिन पांच माह पहले मुझे अचानक ही एक ऐसा अवसर मिला जिससे मुझे जिंदगी में अत्यंत खुशी मिली और वह अभी भी ज़ारी है.

यह उस दिन बात है जब मैं घर का सफाई करती हुई पापाजी जी के कमरे गई तो मैंने पाया कि वह कमरे में नहीं हैं. मुझे समझ में नहीं आया कि वह कहाँ गए होंगे, इसलिए मैं इधर उधर देखने लगी और तभी मुझे उनके बाथरूम की लाइट जलती हुई नज़र आई, मैं जिज्ञासा वश उस तरफ चली गई. वहाँ मैंने देखा कि बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ है और अंदर से उहं ऊँह की आवाज़ आ रही हा. मैं सुन कर घबरा गई और सोचा कि शायद पापाजी जी कि तबियत ठीक नहीं है या वह किसी तकलीफ में हैं.

मैं घबराहट में जल्दी से बाथरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर झांक के देखने लगी.

अंदर का नज़ारा देख के मेरे तो होश उड़ गए, पापाजी जी अपने नौ इंच लंबे और ढाई इंच मोटे लण्ड महाराज की बड़ी तस्सली से मालिश कर (मुठ मार) रहे थे. इससे पहले मैं अपने आप को संभालती तभी मैंने देखा कि पापाजी जी ने आह्ह्ह की आवाज़ निकाल कर अपने लण्ड महाराज से रस की पिचकारी छोड़ी जो कि दो फुट दूर दीवार पर जा पड़ी. पापाजी जी का ढेर सारा गाढ़ा रस, इतना ज्यादा और इतनी जोर से, निकलते हुए देख कर मेरी जोर से एक लंबी साँस निकल गई जिसे सुन कर पापाजी ने पलट कर देखा और मुझे देखते ही गुस्से में पूछा- तू यहाँ क्या कर रही है?

उनकी गुस्से से भरी आवाज़ सुन कर मैं डर गई और बिना जवाब दिए वहाँ से भाग गई.

इस घटना के दो घंटे बाद तक तो मैं उनके सामने भी नहीं गई. लेकिन दोपहर को खाना बनाने के समय बेटा तंग कर रहा था तो मुझे मजबूर हो कर उसे उनको देने के लिए जाना पड़ा, तब वह बिल्कुल सामान्य तरीके से पेश आए. इससे मेरी जान में जान आई और मैं भी उनके सामने आने जाने लगी तथा सामान्य तरीके से व्यहवार करने लगी.

लेकिन उस घटना के बाद अगले दिन भी मैं उस नज़ारे के बारे में ही सोचती रहती. मेरे पति का लण्ड तो केवल सात इंच लंबा और दो इंच मोटा है तथा अत्यंत आनन्द देता है, लेकिन पापाजी का यह लण्ड महाराज कैसे मज़े देगा मैं इसके सपने लेने लगी थी तथा अपनी चूत उस को डलवाने की योजना बनाती रही.
अगले दिन, रात को सोने के समय मेरा बेटा बहुत रोने लगा. जब वह चुप नहीं हुआ तो मैं उसे पापाजी के कमरे में ले गई और उन्हें देकर उनसे उसे चुप कराने का आग्रह किया. पापाजी ने उसे गोद में लिया और मुझे तेल लाने को कहा. मैंने उन्हें तेल ला कर दिया तो उन्होंने मेरे बेटे के पेट पर मलना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में बेटा चुप होकर उनकी गोद में खेलने लगा.

पोते को दादा के पास छोड़ कर मैं अपने कपड़े बदलने चली गई.

तभी मेरे दिमाग में योजना आई कि अगर मैं पापाजी को अपने यौवन की झलक दिखाऊँ तो शायद कुछ बात बन जाए और मेरी लण्ड महाराज से चुदने की इच्छा भी पूरी हो जाए. मैंने झट से ब्रा और पेंटी सहित अपने सारे कपड़े उतारे और अपना गुलाबी रंग का पारदर्शी सा नाईट गाउन पहना. मैंने गाउन के ऊपर के दो और नीचे के तीन बटन खुले छोड़ दिए और बेटे को लेने पापाजी के कमरे में गई.

जब मैं चलती थी तो जांघों तक मेरी टाँगे नंगी हो रहीं थी और मेरी डोलती हुई चूचियों और उस पर खड़ी चूरे रंग की डोडियाँ गाउन में से झलक रहीं थी.

पापाजी ने मुझे उन कपड़ों में देखा और एकटक देखते ही रहे. उनकी आँखों की चमक बता रही थी कि वह मेरे बिछाये जाल में फँस जायेंगे, मुझे सिर्फ कुछ इंतज़ार करना पड़ेगा. जब मैंने पापाजी से बेटे को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उनका ध्यान मेरी चूचियों की तरफ गया और वह उन्हें देखते हुए एकदम स्थिर हो गए.

मैंने कहा- पापाजी, यह सो गया है, लाइए मैं इस इसके बिस्तर पर सुला दूँ.
तब हड़बड़ा कर उन्होंने कहा- यह अभी-अभी सोया है, कच्ची नींद में है इसलिए इसे अभी यहीं सोने दे.
मैं ‘हाँ जी’ कहती हुई अपने कमरे में चली गई. मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं बहुत देर तक ऐसे ही लेटी करवटें बदलती रही.
तभी मुझे याद आया कि मैंने बेटे को दूध तो पिलाया ही नहीं.

मैं उठी और पापाजी के कमरे में गई तो पाया कि वह भी सो गए हैं. तब मेरे मन में आया कि मैं भी इसी कमरे में सो जाती हूँ और मैं उनके साथ वाले बेड पर लेट गई. बेटे को अपने पास खींचा और गाउन में से चूचियाँ निकाल कर उसे दूध पिलाने लगी. इतने में पापाजी ने नींद में ही करवट बदली और सीधे हो कर सोने लगे, तब मेरी नज़र उनकी लुंगी पर गई जो खुल कर अलग हो गई थी और वह बिल्कुल नग्न लेटे हुए थे, उनका लण्ड महाराज बड़े आराम से उनकी जांघों पर सोया हुआ था.

मेरा ध्यान बच्चे को दूध पिलाने में कम और लण्ड महाराज की ओर ज्यादा आकर्षित हो गया. मैं बहुत ध्यान से उसे और उसकी बनावट को देखती रही. पापाजी का लण्ड महाराज तो बहुत ही आकर्षक था. उसका आकार तो मैं ऊपर बता चुकी हूँ, पर उनके टट्टे भी तो कमाल के थे, लगभग तीन इंच साइज़ के गेंदों के बराबर होंगे. उनका लण्ड महाराज सोये होने के बाबजूद भी पांच इंच लंबा लग रहा था. ऊपर का सुपाड़ा तो ढका हुआ था लेकिन उसके आगे के आधा इंच भाग के ऊपर मांस नहीं था और उनका मूत्र और रस निकलने का छिद्र बिल्कुल साफ नज़र आ रहा था.

मेरे बेटे का पेट भर चुका था इसलिए उसने चूची को छोड़ दिया था और सो गया था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी.

मैंने बच्चे को अलग से सुला दिया और वहीं बैठ कर पापाजी के उस हथियार को निहारती रही जो वहाँ लेटे लेटे मुझे चिढ़ा रहा था.


User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: ससुरजी का महाराज

Post by SATISH »

मैंने महसूस किया कि मैं अपनी तृष्णा को अब और नहीं दबा सकती थी और उस लण्ड महाराज को चूसना और उसे अपनी चूत में लेकर जिंदगी का मजा लेना चाहती हूँ, मैं अपना अकेलापन दूर करना चाहती हूँ, अपनी सेक्स की भूख मिटाना चाहती हूँ.

इसके लिए अब मुझे मेरे पति कि गैरहाजरी में भरोसे का और पूरा संतुष्ट करने वाला पुरुष और उसका यह हथियार मिल गया था. अब मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती थी और इसलिए मैंने अपनी सारी झिझक छोड़ी, अपना गाउन उतारा और सरक कर पापाजी की जांघों के पास आकर बैठ गई.

पापाजी जाग ना जाएँ इसलिए मैंने उनके लण्ड महाराज को हाथ से नहीं छुआ और अपने मुहँ को उसके पास ले जा कर उसे चूमने और जीभ से उसे चाटने लगी. शायद यह लण्ड महाराज चूमने और चाटने से खुश होने वाले नहीं थे और उसे तो चुसाई चाहिए थी, इसलिए उसने हिलना शुरू कर दिया.

उसकी इस हरकत से मैं थोड़ा घबराई, लेकिन फिर हिम्मत बांध कर लण्ड महाराज को हाथ से पकड़ा, ऊपर का मांस पीछे सरका कर सुपारे को बाहर निकाला और उसे अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू किया.
कुछ ही क्षणों में लण्ड महाराज खुश हो कर तन गए. तभी पापाजी का हाथ मेरे सिर पर पड़ा और वह उसे नीचे दबाने लगा और देखते ही देखते लण्ड महाराज मेरे मुँह से होते हुए मेरे गले तक पहुँच गया.

मेरी हालत पतली हो गई थी, मेरी साँस उखड़ रही थी. फिर भी मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी और चुसाई चालू रखी. करीब एक मिनट के बाद पापाजी का हाथ मेरे सिर से हट कर नीचे आ गया और वे मेरी चूचियों को पकड़ कर उन्हें दबाने लगे.

उनकी इस हरकत से मैं बहुत ही प्रसन हुई और मेरी चूत गीली होने लगी. फिर उन्होंने मेरी डोडियों को अपनी ऊँगलियों में दबा कर मसला, जिससे मैं गर्म होने लगी और मैं एक हाथ से अपनी चूत में खुजली एवं उंगली करने लगी.

मुझे अभी मजा आना शुरू ही हुआ था कि पापाजी उठ के बैठ गए. मेरी चूची से निकले दूध के कारण उनके हाथ गीले होने लगे थे, जिस से उनकी नींद खुल गई थी.

उन्होंने मुझे झटके के साथ अपने लण्ड महाराज से अलग कर दिया. फिर उन्होंने उठ कर लाईट जलाई और भौचक्के से मेरे नग्न शरीर को देखने लगे.
तभी उन्हें अपने नंगे होने का अहसास हुआ और फुर्ती से अपनी लुंगी उठा के पहन ली एवं मेरा गाउन मुझे पकड़ा दिया और बोले- यह क्या कर रही थी? जाओ कपड़े पहनो.

‘पापाजी मैं तो वही कर रही थी जो आप चाहतें हैं.’ मैंने जवाब दिया.
‘मैंने ऐसा करने को कब कहा?’ पापाजी बोले.

‘मैं तो बेटे को ले जाने के लिए आई थी, आपकी खुली हुई लुंगी देख कर उसे आपके ऊपर औढ़ा रही थी, तब आपने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने महाराज पर दबा दिया. मैं समझी कि आप इसकी मालिश चाहते हैं.’ मैंने एकदम से झूठ बोल दिया.

‘तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था और साफ़ मना कर देना चाहिए था.’ पापाजी फिर बोले.
‘मैंने आज तक आपका कोई भी आदेश या इशारा, कभी नहीं टाला तो यह कैसे न मानती?’ मैंने उत्तर दिया.
‘अरे मैं तो नींद के सपने में था जिसमें यह सब तुम्हारी सास कर रही थी, इसलिए मैंने ऐसा इशारा किया होगा.’ पापाजी ने कहा.
‘पापाजी तो क्या हो गया अगर मैंने इशारे को आपका आदेश समझ कर आपकी यह सेवा भी कर दी. आपका सपना और मेरा कर्तव्य दोनों पूरे हो गए.’ मैंने कहा.
‘अरी, तू मेरी बात क्यों नहीं समझ रही है. मैं तेरे साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकता.’ वे बोले.
‘अब तो हम दोनों एक साथ यह कदम उठा चुके हैं, दोनों में से कोई एक भी कदम पीछे ले जाता है तो दूसरे को बुरा लगेगा. बताइये, अब हम यहाँ से आगे बढ़ने के अलावा और क्या कर सकते हैं?’ मैं नादान बनते हुए बोली.

इससे पहले कि वह कुछ कहें और बात ज्यादा बिगड़े, मैं उठ कर खड़ी हो गई और अंगड़ाई लेते हुए, अपने जिस्म की नुमाइश करती हुई उनके पास आकर उनके हाथों को पकड़ा और अपनी चूचियों पर रख दिए. फिर उनके लण्ड महाराज को पकड़ कर हिलाती हुई बोली- पापाजी, अब तो आपका यह महाराज भी गर्म है और मेरी महारानी में भी आग लगी हुई है इसलिए मैं आपके पांव पड़ती हूँ और विनती करती हूँ कि कृपया सब कुछ भूल जाएँ और जो खेल शुरू किया था उसे आगे खेलते रहिए! प्लीज़ इस महारानी की जलन को बुझाने के लिए इसमें अपने महाराज से बौछार करा दीजिए.

उन्हें आगे कुछ बोलने का कोई मौका दिए बिना, मैं उनके पैरों को पकड़ कर नीचे बैठ गई और उनका महाराज मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगी.

पापाजी कुछ नहीं बोले और चुपचाप खड़े रहे. मैं समझ गई कि अब लोहा गरम हो रहा है और चोट मारने का समय आ गया है. मैंने झट से उनके हाथों को खींच कर अपनी चूचियों पर रख दिया.

बस फिर तो ऐसा लगा कि जंग जीत ली, क्योंकि पापाजी मेरी चूचियों को मसलने लगे, पर उनमें से दूध न निकलने लगे इसलिए उन्होंने डोडियों को नहीं मसला. फिर वह बेड पर बैठ कर लण्ड महाराज चुसाने लगे और अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया. वह कभी उसके अंदर उंगली करने लगे और कभी छोले को रगड़ने लगे.

User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: ससुरजी का महाराज

Post by SATISH »

बस मैं तो सातवें आसमान पर पहुँच गई, अब तो मूसल चंद से रगड़ाई के झटकों का इंतज़ार था. मेरी तेज तेज चुसाई से पापाजी के लण्ड महाराज का अत्यंत स्वादिष्ट प्रथम रस (प्री-कम) मेरे मुहँ में आना शुरू हो गया था, यह महसूस कर के पापाजी बोले- कैसा लग रहा इसका स्वाद?
मैं बोली- बहुत स्वादिष्ट है, कुछ मीठा और कुछ नमकीन.
वह बोले- क्या मेरा सारा रस तुम मुफ़्त में पी जाओगी और एवज मुझे कुछ नहीं दोगी? उठो और बेड के ऊपर आकर लेटो ताकि मैं भी तुम्हरी महारानी का रस पी सकूँ.
‘अच्छा पापाजी!’ मैंने कहा और झट से बेड पर आ कर लेट गई.

फिर तो पापाजी 69 की अवस्था में लेट कर मेरी टाँगे चौड़ी कर के मेरी चूत रानी को चूसने लगे और मैं उनके लण्ड राजा को. पापाजी कभी चूत में अपनी जीभ डालते तो कभी उसके अन्दरूनी होंठ चूसते लेकिन जब वह छोले पर जीभ चलाते तो मेरी चूत के अंदर अजीब सी गुदगदी होती और मुझे लगता कि मैं स्वर्ग में पहुँच गई हूँ.

हम दोनों की इस चुसाई से उत्तेजित होकर हमारे दोनों के मुहँ से ऊँहह्ह… ऊँहह्ह्ह्… और आह.. आह्ह्ह… की आवाजें निकलने लगी थीं.

मेरा तो यह हाल था कि मेरी चूत का पानी भी निकलने लगा था, जिसे पापाजी बड़े मजे से पी रहे थे और डकार भी नहीं ले रहे थे.

अचानक पापाजी ने मेरे छोले पर कस कर जीभ फ़ेरी और मेरी चूत एकदम से सिकुड़ी और का रस फव्वारा पापाजी के मुँह पर छोड़ दिया.

उनका हालत देखने का थी, उनका पूरा चेहरा मेरी चूत रानी की इस शरारत से भीग गया था. वह एकदम उठ खड़े हुए और कहने लगे- लगता है इस शरारती रानी को कुछ तो सबक सिखाना ही पड़ेगा, कोई सजा देनी पड़ेगी.

मैं इससे पहले उनका महाराज मुँह से निकालती, उन्होंने एक छोटी सी पिचकारी मेरे मुहँ में छोड़ दी. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी इसलिए कुछ रस तो मेरे गले से नीचे उतर गया लेकिन बाकी का सारा रस मेरे पूरे चेहरे तथा मेरी गर्दन पर फ़ैल गया. फिर वह अलग हट गये.

मैंने उठ कर अपने आप को और पापाजी को पौंछा और पापाजी की ओर आँखें फाड़ कर देखने लगी.

पापाजी हँसते हुए बोले- मिल गई न तुझे शरारत की सजा. चिंता मत कर, अभी तो इससे भी बड़ी सजा इस रानी को देनी है.
मैंने अनजान बनते हुए पूछा- पापाजी और कैसी बड़ी सजा देंगे?

तो उन्होंने अपनी बलिष्ठ बाजुओं से उठा कर मुझे मेरे कमरे में ले जाकर बेड पर पटक दिया और मेरे चूतड़ों के नीचे एक तकिया रख दिया. तब मैंने देखा कि रस छूटने के बाद भी पापाजी का लण्ड महाराज अभी भी लोहे की छड़ की तरह अकड़ा हुआ है और वह अगली चढ़ाई के लिए तैयार है. उन्होंने मेरी टांगे चौड़ी करके चूत महारानी को देखने लगे और बोले- यह तो बहुत नाज़ुक सी लग रही है. क्या यह इस महाराज को झेल पायेगी?

मैं तुरंत बोल पड़ी- पापाजी आप कोशिश तो करिये. आगे जो होगा, देखा जाएगा.

तब वह मेरी टांगों के बीच में आकर बैठ गए और अपने महाराज को मेरी महारानी के छोले पर रगड़ने लगे.
इससे मेरी हालत बहुत खराब होने लगी, मैंने कहा- पापाजी, अब और मत चिढ़ाओ और इसे जो सजा देनी है वह जल्दी से दे दीजिए.
तब पापाजी बोले- चिंता मत कर ज़रा सजा के लिए इसे तैयार तो कर लूँ!

इसके बाद उन्होंने अपना लण्ड महाराज, जो इस समय अपने पूरे उफान पर था और पूरे आकार का हो चुका था, मेरी चूत के मुँह के पास रख दिया और हलके से धक्के मार कर उसे चूत के अंदर घुसेड़ने लगे. मेरी चूत तो उस समय लण्ड की इतनी भूखी थी कि उसका मुँह अपनेआप खुलने लगा और देखते ही देखते उसने पापाजी के महाराज के सुपारे को निगलना शुरू कर दिया. पापाजी महारानी की यह हिमाकत देख कर बहुत हैरान हुए और जोश में आ कर एक जोर का धक्का दे मारा.

फिर क्या था महरानी की तो चूं बोल गई और मेरे मुहँ से एक जोर की चीख आईईईईए… निकल गई.

पापाजी एकदम मेरे ऊपर झुक गए और मेरे समान्य होने तक वैसे ही रुके रहे. वह मेरी चूचियों को दबाते रहे तथा मुझे जोर से चूमते रहे.

जब मैं कुछ ठीक हुई तब मैंने उनसे पूछा- कितना गया?
तो वे बोले- अभी तो आधी सजा मिली है. बाकी आधी सजा के लिए तैयार हो तो बताओ.

जब मैंने हामी भर दी तब उन्होंने कस कर एक और धक्का मारा और अपना पूरा महाराज मेरी महारानी के बाग में पहुँचा दिया.
मैं एक बार दर्द के मारे फिर ‘आईईईईए… आईईईईए… कर के चिल्ला उठी. मुझे लगा कि मेरी चूत फट गई है और इसीलिए इतना दर्द हो रहा है.

मेरी चूत की सील टूटने पर और बेटे के होने पर भी इतनी दर्द नहीं हुई थी जितनी कि अब हो रही थी. पापाजी मेरी तकलीफ को समझते हुए रुक गए थे और अपना दाहिना हाथ मेरी चूत के ऊपर उगे हुए बालों के उपर रखा और थोड़ा दबाया और मेरे ऊपर लेट गए. बाएं हाथ से मेरी चूची को मसलते हुए पूछा- अब कैसा लग रहा है? अगर तुम कहती हो तो मैं निकाल लेता हूँ नहीं तो जब कहोगी तभी आगे सजा दूंगा.
User avatar
SATISH
Super member
Posts: 9811
Joined: 17 Jun 2018 16:09

Re: ससुरजी का महाराज

Post by SATISH »

और इसके बाद अपने होंटों को मेरे होंटों पर रख कर उन्हें चूसने एवं चूसाने लगे.

हम करीब पांच मिनट ऐसे ही पड़े रहे और मैं अपनी किस्मत को इतना लंबा मोटा और सख्त लण्ड से चुदाई के लिए सहराने लगी. मेरी चुदने की तमन्ना कितनी अच्छी तरह पूरी हो रही है इससे मैं बहुत खुश थी.

जब मुझे लगा कि मैं आगे के झटके सह लूंगी तब मैंने पापाजी से कहा- मैं आपकी देने वाली बाकी कि सजा अब काटने को तैयार हूँ. चलिए शुरू हो जाइये.

मेरा इतना कहना था कि पापाजी ने अपनी गाड़ी स्टार्ट करी और धक्के लगाने लगे. पहले फर्स्ट गियर लगाया, फिर सेकंड गियर और इसके बाद थर्ड गियर में चलने लगे और मुझसे पूछने लगे- क्यों कोई तकलीफ तो नहीं हो रही?

मैंने कहा- नहीं, मुझे तो अभी मज़े आने शुरू ही हुए है. आप अभी इसी स्पीड से मेरी चुदाई करते रहें. जब स्पीड बढ़ानी होगी मैं बता दूँगी.

अगले दस मिनट हम दोनों इसी तरह चुदाई करते रहे और जब मैंने महसूस किया कि स्पीड बढ़ाने का समय आ गया है, तब मैंने भी अपने जिस्म को पापाजी की स्पीड के हिसाब से हिलाना शुरू कर दिया और बोली- पापाजी, अब अपनी गाड़ी को चौथे गियर में डालिए.

फिर क्या था पापाजी ने थोड़ी स्पीड और बढ़ा दी और हमारी चुदाई के आनन्द को चार गुना कर दिया. मैं अब उछल उछल कर चुद रही थी और पापाजी झटके पर झटके मार कर चुदाई करे जा रहे थे.

हम दोनों के मुँह से ऊँहह्ह्ह… ऊँहह्ह्ह… और आहह्ह्ह… आह्हह्ह्ह… की तेज तेज आवाजें निकलने लगी थीं. इस डर से कि आवाजें बाहर न सुनाई दे हम दोनों ने अपने होंट अपने दांतों के नीचे दबा रखे थे.

अब मेरी चूत में खलबली मचने लगी थी और वह भिंच कर पापाजी के लण्ड को जकड़ने लगी थी. इतने में चूत के अंदर खिंचाव होना शुरू हो गया और उसकी चूत में से पानी भी रिसना शुरू हो गया. मैं दो बार तो छुट भी गई थी और अब तीसरा खिंचाव आने वाला था.

अब मुझसे और नहीं सहा जा रहा था इसलिए मैंने पापाजी से कहा- अब जल्दी से टॉप गियर लगा दीजिए.

मेरे कहने पर उन्होंने फुल स्पीड कर दी और मेरी चूत में वह इस जिंदगी के सबसे तेज झटके लगाने लगे. उनका लण्ड महाराज मेरे चूत की गहराइयों को पार कर मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस गया था.

अब मेरे से नहीं रहा गया, मैं चिल्ला उठी- पापाजी, और तेज, और तेज, आह.. आह.. मैं गईईईए.. गईईईए.. गईईईए.. गईईई..

मेरा जिस्म अकड़ गया और चूत लण्ड से चिपक गई. इसी समय पापाजी की भी हुंकार सुनाई पड़ी और उनका लण्ड मेरी चूत में फड़फड़ाया. एक ज़बरदस्त पिचकारी छूटी और मैं तो उस समय के आनन्द में पापाजी के रस की नदी में बह गई. इसके बाद पापाजी मेरे ही ऊपर लेट गए और हम दोनों को मालूम ही नहीं रहा के हम इस तरह कितनी देर ऐसे ही पड़े रहे.

फिर हम उठे और अपने आप को एक दूसरे से अलग किया और हम दोनों के रसों का चूत-शेक निकल के मेरी जांघों से नीचे की ओर बहने लगा.

मैं बाथरूम की ओर भागी और पापाजी मेरे पीछे वहीं आ गए. मेरी जांघों पर बहते हुए चूत-शेक को देख कर मुस्करा रहे थे. तभी मेरी नज़र पापाजी के लण्ड पर पड़ी और मैंने देखा की उनका लण्ड बाथरूम की रोशनी में ऐसे चमक रहा था जैसे उस पर चांदी का वर्क चढ़ा दिया था.

असल में चूत से निकालने पर उसके ऊपर चूतशेक का लेप हो गया था और वह चमक रहा था. मेरे से रहा नहीं गया और मैंने उस अपने मुँह में लिया और चूसने लगी.

मैंने जब लण्ड को चाट के साफ कर दिया तो पापाजी ने पूछा- स्वाद कैसा है?
मैंने जवाब दिया- मलाई जैसा है.

तब पापाजी ने अपनी दो ऊँगलियों मेरी चूत में डाल कर बाहर निकालीं और उसमें लगे चूतशेक को चाटने लगे, फिर बोले- हाँ, तुम ठीक कह रही हो, यह तो मलाई ही है, मेरी और तुम्हारी. आज तो यह बह गई पर अगली बार इसे इकठा करके खाएँगे.
फिर हम दोनों एक दूसरे को धोने और साफ़ करने लगे.

जब हम एक दूसरे का लण्ड/चूत पौंछ रहे थे, तभी बेटे के रोने की आवाज़ आई. मैं भाग कर उसके पास लेट गई और उसके मुहँ में चूची दे दी, वह चुपचाप दूध पीने लगा. पापाजी भी मेरे पास आकर लेट गए और मैंने बेटे को दूध पिलाने के साथ साथ एक हाथ से पापाजी के लण्ड को भी पकड़ लिया.

जब बेटे ने दूध पीना बंद कर दिया तो मैंने उसे बेड पर लिटा कर पापाजी के पास उनके साथ चिपक कर उन्ही के बेड पर लेट गई. मेरी चुदाई की इच्छा पूरी हुई थी इसलिए मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं आगे क्या करूँ.

तभी पापाजी ने कहा- खुशी, मैं थक गया हूँ और मुझे भूख भी लग आई है इसलिए थोड़ा गर्म दूध ला दो. तुम भी थोड़ा पी लो, बच्चे को भी तो पिलाती हो.
मैंने झट से कहा- नहीं पापाजी, मुझे तो बिल्कुल भूख नहीं है, मेरा पेट तो आप की मलाई और सजा के आनन्द से भर गया है.
फिर मैंने कहा- पापाजी, मेरी चुचियों में बहुत दूध है आप उसे पीकर अपनी भूख मिटा लीजिए.
वह बोले- यह कैसे हो सकता है, बच्चे के लिए कम हो जाएगा.
मैंनेकहा- अभी तो यह अपना पेट भर के सो गया है और अब सुबह सात बजे ही उठेगा. तब तो इसे गाय का दूध देना है, मेरी चूचियों के दूध की बारी तो करीब सुबह दस बजे के बाद आयगी. तब तक तो मेरी चूचियाँ पूरी भर जाएँगी और कोई कमी नहीं रहेगी.

यह सुन कर पापाजी मान गए, वह मेरी डोडियाँ बारी बारी से चूसने लगे और मेरा दूध पीने लगे.
जब दोनों तरफ की थैलियाँ खाली कर दी तब ही वह अलग हुए और अपने खड़े लण्ड को पकड़ कर मुझे दिखाने लगे.
मैंने कहा- हाँ, मैं जानती हूँ कि आपके महाराज को आराम के लिए गद्देदार और गर्म जगह चाहिए, इसका इंतजाम मैं अभी कर देती हूँ. अब इसके साथ साथ हमें भी आराम करना चाहिए, नहीं तो आपकी कमर का दर्द आपको परेशान कर देगा.
अब यह मज़े तो हम आगे जिंदगी भर लेते रहेंगें.

इसके बाद मैं उठ के पापाजी के ऊपर आ गई और उनके खड़े लण्ड पर जाकर बैठ गई और उनका लण्ड मेरी चूत की गहराइयों की नर्म और मुलायम जगह आराम करने पहुँच गया था.
फिर मैं पापाजी के ऊपर ही उनकी खूंटी में अटकी हुई लेट गई. हम दोनों को कब नींद आ गई हमें पता ही नहीं चला.

User avatar
rajaarkey
Super member
Posts: 10097
Joined: 10 Oct 2014 10:09
Contact:

Re: ससुरजी का महाराज

Post by rajaarkey »

बहुत ही शानदार अपडेट है दोस्त

😠 😱 😘

😡 😡 😡 😡 😡 😡
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
Post Reply