यह उन दिनों की बात है जब तिब्बत में चीनी शासन लागू हो चुका था और ल्हासा से दलाई लामा को कूच करके किसी मठ में शरण लेनी पड़ी थी। तिब्बत पर चीनी शासकों का यह पहला हमला नहीं था। इससे पूर्व भी उस ओर से सेनाओं ने हमले किये थे।
चंगेजी खानदान का हलाकू खान भी चीन की ओर से आया था। मंगोलियन सरदारों ने वहाँ बहुत लूटमार मचाई थी। बहुत सी पौराणिक कथायें वहाँ प्रचलित थीं और मिस्र की तरह यह प्रदेश भी रहस्यमयी धरती कहा जाता था। लुटेरे सरदार वहाँ तिब्बत की खानकाहों में छिपे खजानों को लूटने आते थे और यहाँ तक कहा जाता है कि तिब्बत में इँसान अमरत्व प्राप्त कर सकता है। इससे बड़ा खजाना हो भी क्या सकता है।
किन्तु तिब्बत के जिस भू-भाग में मैं उन दिनों रह रहा था वहाँ की भूमि किसी भी विदेशी हमले से सुरक्षित थी। सदियों से ये लोग सारी दुनियाँ से कटे हुए अलग-थलग जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्हें सीमाओं पर चौकसी की आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी। आपस में वे भले ही लड़-मर लेते पर बाहरी आक्रमण की कोई गुंजाइश नहीं थी।
यूँ तो मेरी जिंदगी एक दलदल की मानिंद है। जवानी की प्रारम्भिक स्टेज तक तो मैं साधारण सा इँसान था जो एक छोटी सी बाबूगिरी की नौकरी करके जीवन की तन्हाइयों में भी खुश रहता है। उसके दिल में छोटा सा घर बसाने के अलावा बड़ी महत्वाकांक्षायें भी नहीं होती। वह राजाओं के सपने नहीं देखता और उसकी दुनियाँ छोटी सी होती है। अपने शहर के भीतर या यूँ कहिये शहर के उस मोहल्ले के अन्दर जहाँ वह रहता है, वहीं तक उसकी जिंदगी का दायरा होता है। इस छोटे से मोहल्ले में वह शान से जीने तक की कल्पना कर सकता है।
और ऐसे ही इँसान को यदि कोई विश्व सम्राट का तख्त दे दे तो क्या हाल होगा उसका ? शायद तख्तनशीन होने से पहले ही उसका दम निकल जाए। लेकिन यह जीवन है जो करवटें लेता है। वक्त की धाराओं में बहता है। और अगर ऐसी ही घटनाएँ न घटें तो जिंदगी को एक रहस्यमय पहेली क्यों कहा जाता ?
मैं वह आदमी था जिसने जिंदगी की इतनी मंजिल जरा से अरसे में तय की थी। और इसकी शुरुआत उस वक्त हुई थी जब मोहिनी मेरे सिर आयी थी। बेशुमार दौलत आती रही, आती रही। दौलत आती है तो अय्याशियाँ खुद ही चली आती हैं। एक जमाना था जब पूना के रेस मैदान की बादशाहत मैंने प्राप्त कर ली थी। फिर वह वक्त भी आया जब ताँत्रिकों के एक गोल से मेरा मुकाबला हुआ और मुसीबतों का पहाड़ मुझ पर टूट पड़ा। मेरी जिंदगी अँधेरों से घिर गयी। मैंने क्या खोया क्या पाया इसका लेखा-जोखा बहुत लम्बा है और इसे दोहराने से कोई लाभ नहीं। मेरा माजी एक दलदल है। जिंदगी के इतने उतार- चढ़ाव, इतनी मुसीबतें, इतनी दौलत, ऐसे करिश्मे शायद ही किसी के हिस्से में आये हों। मुझे तो अब खुद से भी धोखा होता था। यूँ लगता जैसे मैं किसी गैर दुनियाँ की कोई आत्मा हूँ जिसने इँसानी जिस्म का चोगा पहन रखा है। कौन हूँ मैं ? कहाँ से आया हूँ ? और क्यों ? क्या मैं इस दुनियाँ का इँसान नहीं हूँ ? अगर होता तो मर चुका होता। क्यों मेरा नाम सुनकर बड़े से बड़ा ताँत्रिक थर्राने लगता है ?
हरी आनन्द मेरा सबसे बड़ा दुश्मन था। इंतकाम का एक खौफनाक रिश्ता मुझसे आ जुड़ा था और बस यही एक उद्देश्य जीवन का रह गया था कि जिस हरी आनन्द ने मेरी दुनियाँ वीरान कर दी थी, उसे अपने हाथों से समाप्त कर दूँ। हरी आनन्द मोहिनी के हाथों मारा जा चुका था।
मेरी जिंदगी की सबसे अहम धारणा यह थी कि मैंने मोहिनी देवी के दर्शन कर लिए थे। पहाड़ों की रानी के रूप में वह सशरीर मेरे पास में थी। मेरे सिवा किसी ने पहाड़ों की रानी का चेहरा नहीं देखा। पहाड़ी आदिवासी उसकी पूजा करते थे और उनका कहना था कि जब से यह धरती है तब से पहाड़ों की रानी है। वह सबसे पहले वहाँ आयी थी। जबकि वे लोग सदियों से वहाँ आबाद थे।
तिब्बत के इस भू-भाग में आने के बाद बहुत सी रहस्यमयी गुत्थियाँ मेरे सामने थीं, जिन्हें सुलझा पाने में मेरा दिमाग असमर्थ था। मैं तो जैसे जादुई संसार में पहुँच गया था, जहाँ जादू है– मोहिनी का जादू
!
मोहिनी ने मुझे बताया था कि कदीम जमाने में जब मिस्र में फिरऔन का बोलबाला था, उसने पहली बार इँसानी रूप में अवतार लिया। तब मैं वहाँ एक फिरऔन राजकुमार था और मोहिनी से युद्ध करने गया था। वहाँ एक जाति थी जो मोहिनी की पूजा करती थी। वे मोहिनी देवी को छिपकली की शक्ल में मानते थे और उन पर कोई औरत ही राज करती थी। जो भी औरत उनकी रानी होती वह भी मोहिनी कहलाती थी। यह जाति नील के किनारे पहाड़ों में आबाद थी। फिरऔन सेनाओं से उनका युद्ध एक वर्ष तक चलता रहा, परन्तु फिरऔन जो स्वयं को मिस्र का देवता कहलाता था, वह इस बात को कब बर्दाश्त करता कि मोहिनी नामक औरत खुद को देवी कहलाये। जंग का आखिरी हिस्सा रामोज द्वितीय के जमाने में आया और तब मोहिनी के प्रेम में रामोज द्वितीय के अनगिनत पुत्रों में से एक बहादुर राजकुमार रोमान को जंग पर भेजा गया। मोहिनी उस समय पहली बार स्वयं इँसानी जून में आयी थी और दोनों में प्रेम हो गया था।
फिरऔन राजकुमार ने बगावत कर दी, जिसकी सजा उसे यह मिली कि खुद उसकी बीवी ने उसे जहर देकर मार डाला था।
मोहिनी उस जन्म में कैसे मरी यह मुझे ठीक से ज्ञात न था, न ही मोहिनी ने स्पष्ट बताया था।
मोहिनी कई सदियों बाद तिब्बत में प्रकट हुई। कदाचित यह उसका दूसरा जन्म था। वह एक सेना के साथ तिब्बत में प्रविष्ट हुई थी और बहुत से भिक्षुक लामा उसके भक्त बन गये थे। इसी जमाने में मोहिनी को साधुओं ने तप करके श्राप दिया था कि वह अपने ही मन्दिर में कैद होकर रहेगी और उसे कोई भी इँसान अपना गुलाम बनाकर रख सकेगा। मोहिनी तभी से एक सिर से दूसरे सिर पर गुजरती रही। ताँत्रिक उसे जाप करके प्राप्त कर लेते और वह उसकी गुलाम बन जाती।
लेकिन इन साधुओं का मान भंग हो गया था और मोहिनी अब श्राप से मुक्त हो चुकी थी और इधर तराई की जंग समाप्त हो चुकी थी। परन्तु चीनी सेना के हमले का काँटा बुरी तरह खटक रहा था। और मोहिनी वहाँ न थी। गोरखनाथ मेरे सामने एक विजेता की तरह था।
मैं गोरख से पूछ रहा था।
“क्या पहले उसे वह शक्तियाँ प्राप्त न थीं ?”
“थीं, परन्तु मोहिनी देवी को श्राप जो मिला हुआ था। महाराज! इस दुनियाँ में किसी न किसी कोने में एक स्त्री हर युग में ऐसी होती है जिसे वह शक्ति प्राप्त होती है कि वह मोहिनी देवी का रूप धारण कर सके। एक समय में ऐसी एक ही स्त्री होती है; परन्तु सदियों से यह शक्ति समाप्त हो गयी थी। जिस स्त्री ने तिब्बत में शरण ली थी उसे भी यह शक्ति प्राप्त हुई थी।
“क्या पहाड़ों की रानी वही स्त्री है ?”
“हाँ महाराज! पहाड़ों की रानी वही है।”
“आश्चर्य की बात है! इतनी आयु तक कौन इँसान जीवित रह सकता है ?”
“यहाँ आकर उसने अमरतत्त्व प्राप्त कर लिया था महाराज। परन्तु श्राप होने के बाद वह अपना शरीर खो बैठी थी। वह अमर तो थी पर हड्डियों का पंजर बनकर रह गयी थी और उसका जादू सिर्फ इसी देह तक सीमित होकर रह गया था। मोहिनी रूपी शक्तियाँ कुंद हो चुकी थीं। वह बड़ा दुःख भोग रही थी। वह न तो अपना पिंजर त्याग सकती थी, न मोहिनी बन सकती थी। किन्तु अब वह सब उसी रूप में लौट आया है। जैसा सदियों पहले था और पृथ्वी पर बस एक यही स्त्री है जो मोहिनी देवी का साकार रूप रख सकती है।”
गोरखनाथ के बारे में मेरा अनुमान गलत साबित हुआ। मेरा ख्याल था कि वह इन सब बातों की जानकारी न रखता होगा, पर ऐसा न था। गोरखनाथ मोहिनी देवी का बहुत बड़ा पुजारी था और वह सब कुछ जानता था।
मुझे वह दृश्य याद आ गया जब मैंने औरत का पिंजर देखा था और मेरे देखते-देखते वह एक सुन्दर नारी के रूप में अवतरित हो गयी थी। यह सब कुछ एक डरावने ख्वाब जैसा था।
अब मैं गोरखनाथ से चंद बातों की जानकारी और प्राप्त करना चाहता था।
“परन्तु गोरख, क्या मोहिनी देवी का शरीर कोई इँसान स्पर्श नहीं कर सकता ?”
“हाँ, महाराज ऐसा ही है। उन्हें केवल अदृश्य आत्मायें स्पर्श कर सकती हैं...जो गैर फानी हैं। या फिर वह स्पर्श कर सकता है जिसने अमरत्व प्राप्त किया हो।”
“अमरत्व! यह किस तरह प्राप्त हो सकता है ?”
“इसके बारे में तो देवी ही कुछ जानती होगी। मुझे इसका ज्ञान प्राप्त नहीं।”
“यामदरेग की खानकाह क्या चीज है गोरख ?”
“तिब्बत की एक घाटी में छोटा सा एक टापू आबाद है जो यहाँ का सबसे पौराणिक पवित्र स्थल माना जाता है। बौद्ध भिक्षुओं का बहुत बड़ा मठ, जहाँ तिब्बत की देवी माता का निवास स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि इसी देवी माता ने यहाँ इँसानों की नस्ल पैदा की थी। एक बंदर उसका पति था और तिब्बतवासी उन्हीं की सँतानें हैं।”
“ओह! क्या कभी वहाँ कोई चीनी लुटेरा आया था ?”
“यूँ तो उस खानकाह के खजाने की तलाश में बहुत से लुटेरे तिब्बत आये और दूसरे मठों को ही लूटकर चले गये। परन्तु इस खानकाह तक एक ही लुटेरा पहुँच पाया था। उस लुटेरे का नाम मानोसंग था। यहाँ पहुँचकर वह देवी के प्रेम में गिरफ्तार होकर रह गया और फिर उसी वादी में उसकी मृत्यु हुई। वह वापस न लौट सका। उस जगह एक मकबरा भी है जो मानोसंग का मकबरा है, परन्तु भिक्षु उस मकबरे के बारे में यदि जानते भी हैं तो किसी को उसके बारे में नहीं बताते और वे उसे शैतान का मकबरा समझकर नफरत करते हैं। यह मकबरा उन्हीं पहाड़ियों में कहीं दबा है।” गोरख ने बताया।
“क्या उस स्थान पर भी कोई देवी रहती है ?”
“हाँ...जब उनका त्योहार होता है तो देवी दर्शन देती है; लेकिन वह साल में सिर्फ एक बार दर्शन देती है। फिर अपनी खानकाह में चली जाती है। तिब्बत में तीन भविष्यवाणियाँ बड़ी प्रचलित हैं। एक तो यह कि लुटेरा मानोसंग इस धरती पर दूसरा जन्म लेकर फिर खानकाह तक पहुँचेगा। दूसरी यह कि उसी सदी में चीनी फौजों का हमला होगा और दलाई लामा को शासन छोड़ना पड़ेगा। तीसरी यह कि एक बहुत बड़ा जलजला आएगा और वह पहाड़ ढँक जायेगा जहाँ शैतान का मकबरा छिपा है। यह तीनों घटनाएँ थोड़े समय के अंतराल से घटेंगी। इनमें से एक तो घट ही चुकी है, यानी चीनी फौजों का हमला और तराई की महारानी ने यही बात दोहराकर मोहिनी देवी को भयभीत करने की कोशिश की थी; यानी वह यह साबित करना चाहती थी कि तुम उस चीनी सरदार का कोई दूसरा जन्म हो।”
“हो भी सकता है।” मैंने मुस्कुराकर कहा। “जब मैं मिस्री राजकुमार हो सकता हूँ, तो बेचारे मानोसंग ने ही मेरा क्या बिगाड़ा है।”
मेरे इस व्यंग्य पर गोरखनाथ भी मुस्कुरा दिया।
Fantasy मोहिनी
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Re: Fantasy मोहिनी
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
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Re: Fantasy मोहिनी
आधी रात बीत चुकी थी।
अचानक पहरेदार अन्दर आ गया। हम उस वक्त सोने की तैयारी कर रहे थे। उसे देखकर मैंने चौंककर गोरख को टहोका दिया।
“शायद तुम्हें बुलाने आया है।”
गोरख ने उससे पूछा–“क्या बात है ?”
“आप दोनों को रानी माता ने बुलाया है।”
“इस समय ?”
“जी हाँ, इसी समय और अभी।”
“यह भी कोई समय है मिलने का।” मैं बड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ।
गोरख भी फुर्ती के साथ तुरन्त ही तैयार हो गया और हम पहरेदार के साथ चल पड़े। हमारे आगे-आगे वह चल रहा था। मुझे हैरत इस बात की हुई थी कि वह हमें खेमों की तरफ ले जाने के बजाय पहाड़ी गुफाओं की तरफ ले जा रहा था। यहाँ तक कि हम एक ऐसी शमशान भूमि पर पहुँच गये जहाँ पर इँसानी शवों के पिंजर पड़े थे।
मोहिनी का ऐसे स्थान में जो अत्यंत भयंकर थे, दिलेरी के साथ घूमना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसने हमें यहाँ बुलाया क्यों था ?
हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, इन पिंजरों की सँख्या भी बढ़ती जा रही थी। पिंजर ही पिंजर!
मुझे बड़ा खौफ महसूस हो रहा था। यह भयानक स्थान मैंने पहले कभी न देखा था। यूँ मालूम होता था जैसे पिंजर अभी खड़खड़ाते हुए उठकर खड़े हो जायेंगे और हमारी गर्दनें दबोच लेंगे।
उन इँसानी पिंजरों के बीच हमने अपने सरदारों के बीच घिरी मोहिनी को देखा, तो हमारे दिलों को कुछ शांति महसूस हुई।
“मोहिनी का ऐसे भयंकर स्थान पर रात में आने का क्या कारण है ?” मैंने उससे पूछा।
मोहिनी ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि उसने अपना मुँह इँसानी पिंजरों की ओर किया। दोनों हाथ उनकी ओर फैलाकर कुछ श्लोक पढ़ने लगी।
उसके साथ ही हमारे आस-पास के अँधेरों में कुछ आवाजें आने लगीं। मैंने घूमकर देखा तो आश्चर्य और भय से मेरा बुरा हाल हो गया। क्योंकि हमारे चारों ओर इँसानी पिंजर और खोपड़ियाँ, हड्डियाँ अपने आप हिलने लगीं थीं। ऐसा लगा जैसे कोई मरी हुई सेना जीवित हो उठी हो।
उफ! मेरे ईश्वर यह सब कुछ क्या है ? इससे भयंकर दृश्य इँसान क्या देख सकता है! यह मोहिनी सचमुच बहुत बड़ी जादूगरनी है। उसके जादू की शक्ति से बचना बहुत कठिन है।
अचानक चौंका देने वाला हाल नजर आया। हड्डियों के ढाँचे खड़े हो गये थे और एकाएक वातावरण में रण हुंकारे गूँजने लगे। ये ढाँचे हमारे सैनिकों के साथ लड़ रहे थे।
दोनों ओर से युद्ध शुरू हो गया था और मेरी समझ में कुछ भी न आ रहा था कि यह हुआ क्या ? दोनों सेनाएँ एक-दूसरे पर टूट पड़ी थीं।
“देखो सरदार! इस व्यक्ति की पूरी रक्षा हो। इसे जरा सी भी चोट न लगने पाए।”
मैं चौंका। यह आवाज़ तो मोहिनी की न थी! बल्कि तराई की रियासत की महारानी की थी!
इसका अर्थ साफ था।
यह सब महारानी का फैलाया हुआ जाल था और उसने धोखे से हमें पकड़ लिया था।
❑❑❑
अचानक पहरेदार अन्दर आ गया। हम उस वक्त सोने की तैयारी कर रहे थे। उसे देखकर मैंने चौंककर गोरख को टहोका दिया।
“शायद तुम्हें बुलाने आया है।”
गोरख ने उससे पूछा–“क्या बात है ?”
“आप दोनों को रानी माता ने बुलाया है।”
“इस समय ?”
“जी हाँ, इसी समय और अभी।”
“यह भी कोई समय है मिलने का।” मैं बड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ।
गोरख भी फुर्ती के साथ तुरन्त ही तैयार हो गया और हम पहरेदार के साथ चल पड़े। हमारे आगे-आगे वह चल रहा था। मुझे हैरत इस बात की हुई थी कि वह हमें खेमों की तरफ ले जाने के बजाय पहाड़ी गुफाओं की तरफ ले जा रहा था। यहाँ तक कि हम एक ऐसी शमशान भूमि पर पहुँच गये जहाँ पर इँसानी शवों के पिंजर पड़े थे।
मोहिनी का ऐसे स्थान में जो अत्यंत भयंकर थे, दिलेरी के साथ घूमना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसने हमें यहाँ बुलाया क्यों था ?
हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, इन पिंजरों की सँख्या भी बढ़ती जा रही थी। पिंजर ही पिंजर!
मुझे बड़ा खौफ महसूस हो रहा था। यह भयानक स्थान मैंने पहले कभी न देखा था। यूँ मालूम होता था जैसे पिंजर अभी खड़खड़ाते हुए उठकर खड़े हो जायेंगे और हमारी गर्दनें दबोच लेंगे।
उन इँसानी पिंजरों के बीच हमने अपने सरदारों के बीच घिरी मोहिनी को देखा, तो हमारे दिलों को कुछ शांति महसूस हुई।
“मोहिनी का ऐसे भयंकर स्थान पर रात में आने का क्या कारण है ?” मैंने उससे पूछा।
मोहिनी ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि उसने अपना मुँह इँसानी पिंजरों की ओर किया। दोनों हाथ उनकी ओर फैलाकर कुछ श्लोक पढ़ने लगी।
उसके साथ ही हमारे आस-पास के अँधेरों में कुछ आवाजें आने लगीं। मैंने घूमकर देखा तो आश्चर्य और भय से मेरा बुरा हाल हो गया। क्योंकि हमारे चारों ओर इँसानी पिंजर और खोपड़ियाँ, हड्डियाँ अपने आप हिलने लगीं थीं। ऐसा लगा जैसे कोई मरी हुई सेना जीवित हो उठी हो।
उफ! मेरे ईश्वर यह सब कुछ क्या है ? इससे भयंकर दृश्य इँसान क्या देख सकता है! यह मोहिनी सचमुच बहुत बड़ी जादूगरनी है। उसके जादू की शक्ति से बचना बहुत कठिन है।
अचानक चौंका देने वाला हाल नजर आया। हड्डियों के ढाँचे खड़े हो गये थे और एकाएक वातावरण में रण हुंकारे गूँजने लगे। ये ढाँचे हमारे सैनिकों के साथ लड़ रहे थे।
दोनों ओर से युद्ध शुरू हो गया था और मेरी समझ में कुछ भी न आ रहा था कि यह हुआ क्या ? दोनों सेनाएँ एक-दूसरे पर टूट पड़ी थीं।
“देखो सरदार! इस व्यक्ति की पूरी रक्षा हो। इसे जरा सी भी चोट न लगने पाए।”
मैं चौंका। यह आवाज़ तो मोहिनी की न थी! बल्कि तराई की रियासत की महारानी की थी!
इसका अर्थ साफ था।
यह सब महारानी का फैलाया हुआ जाल था और उसने धोखे से हमें पकड़ लिया था।
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Re: Fantasy मोहिनी
रियासत की महारानी ने मुझे अपने महल में कैद कर लिया था। हालाँकि मुझे अधिक चोटें नहीं आयी थीं, फिर भी मैं जख्मी था। उस कैदखाने में मेरा तीसरा दिन था और इस बीच मैं बराबर युद्ध की घन-गरज सुनता रहा था। युद्ध का यह शोर निरन्तर निकट आता जा रहा था।
“वह चुड़ैल हमारी सेना को मारती-काटती आगे बढ़ रही है; और किसी भी समय इस महल तक पहुँच सकती है।” महारानी किसी नागिन की तरह फुफकार रही थी। “मेरी मौत लिखी जा चुकी है। मैं उसकी जादुई शक्तियों का मुकाबला नहीं कर सकती। यह मैं अच्छी तरह जानती थी, परन्तु जीत वह भी नहीं सकेगी, बोलो राज ठाकुर, क्या तुम युद्ध समाप्त होने से पहले मुझसे विवाह करोगे ?”
“विवाह! इससे क्या होगा महारानी ? अगर तुम्हारी मौत लिखी जा चुकी है, तो क्या यह विवाह करना तुम्हें बचा लेगा ?”
“हाँ! एक ही सूरत है मेरे बचने की। अगर तुम मुझसे विवाह कर लो तो मोहिनी की सेनाएँ मार-काट रोक देंगी और उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ेगा। यही मेरी सबसे बड़ी जीत होती कि मैं उसके प्रेमी को जीतने में सफल हो गयी। तुम यहाँ के राजा कहलाओगे और वह तुम्हारे विरुद्ध कभी युद्ध नहीं लड़ेगी।”
“यानी मुझे ढाल बनाकर तुम उसे शिकस्त देना चाहती हो ?”
“जंग और मोहब्बत में सब कुछ जायज होता है। कुँवर! बोलो अब भी वक्त है।”
“मेरा जवाब पहले की तरह इनकार में होगा।”
“तो फिर तुम भी सुन लो, यह धरती तबाह हो जाएगी। मेरी रूह उस चुड़ैल से भयानक इंतकाम लेगी। अगर मैं मर गयी तो जानते हो मैंने तुम लोगों की तबाही का क्या सामान जुटाया है ? इसे मोहिनी भी न जानती होगी कि मेरी मौत की खबर पाते ही हमारा बूढ़ा राज ज्योतिषी चीनी सेनाधिकारियों से जा मिलेगा। मोहिनी उसे रोक नहीं सकती। क्योंकि वह रियासत की सरहदों से बाहर जा चुका है और मेरे आखिरी सन्देश की प्रतीक्षा करेगा।”
मैं चौंक पड़ा। यह एक खतरनाक स्थिति थी। एक बार अगर चीनी सेनाएँ यहाँ पहुँच गयीं तो मोहिनी की मुट्ठी भर सेना उनके आधुनिक शस्त्रों का मुकाबला न कर सकेगी। और अगर मोहिनी ने उन पर अपनी जादुई शक्तियों से हमला किया तो स्थिति और भी भयानक हो जाएगी। वे लोग अपनी समस्त शक्ति मोहिनी के विरुद्ध झोंक सकते थे।
“जानते हो कुँवर, चीनी शासकों ने तिब्बत की धरती पर क्यों आक्रमण किया था ? मैं बताती हूँ।” महारानी पागलों के से अन्दाज में कह रही थी। “एक बार चीनी शासकों के हाथ ऐसा भिक्षु आ गया जो पूरे दो सौ पचास साल का था और जवान था। वह भिक्षु इन्हीं पहाड़ियों में रहा करता था और मोहिनी का पुजारी था। हालाँकि चीन के शासक उससे इस धरती के बारे में कुछ भी न जान सके थे; परन्तु उन्हें इतना इल्म जरूर हो गया था कि तिब्बत में कोई जगह ऐसी अवश्य है जहाँ अमर तत्त्व प्राप्त किया जा सकता है। तिब्बत पर हमला करने का पहला कारण यही बना। इस धरती की खोज का दूसरा कारण था यांगदेरम की खानकाह का वह मकबरा जिसे शैतान का मकबरा कहा जाता है। यह मकबरा एक चीनी लुटेरे का है, जिसने खानकाह का बहुत बड़ा खज़ाना प्राप्त कर लिया था। परन्तु वह ले न जा सका। वह खजाना इसी मकबरे में दफन है जो उस काल की देवी की इच्छा से चोरी छिपे वहाँ गाड़ दिया गया था।
“देवी माता उससे प्रेम करने लगी थी। उसने अपनी मृत्यु के समय यह रहस्य प्रकट किया था। उसके प्रेमी सरदार की यही अंतिम इच्छा थी कि जिस खजाने के लिए वह आया था, जिसे वह ले जा न सका था, उसे कोई न ले जा सके और वह उसी के पास रहे। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह मिस्र के पिरामिडों में फिरऔन अपने साथ खजाना भी दफनाने का आदेश देते थे। ऐसा ही कुछ उसके साथ भी हुआ।
“और चीनी शासकों को उस खजाने का पता किसी तरह चल गया। उसे ये चीन की सम्पत्ति मानते हैं। परन्तु अभी तक उन्हें यह नहीं मालूम हो सका कि वह मकबरा कहाँ है। वे यांगदेरम की खानकाह तक भी नहीं पहुँच पाए हैं और मैंने उनके पास संदेश भिजवाया है कि वह दोनों काम मैं कर सकती हूँ। यह संदेशा उस वक़्त उनके हाथों में पड़ेगा जब मेरी मृत्यु हो चुकी होगी। मैंने उन्हें बताया है कि यदि वे इस जादूगरनी को समाप्त करने में सफल हो गये तो सारी चीजें उन्हें मिल जायेंगी।”
पागलों की तरह वह हँसी।
“तुम इस पवित्र धरती की सबसे बड़ी गद्दार हो।” मैं चीख पड़ा। “तुम्हारी आत्मा कभी चैन से नहीं रहेगी।”
“मेरी आत्मा को चैन मिला ही कब है रामोन ? मेरे राजकुमार, मैं तो इस चुड़ैल के कारण जन्म-जन्मान्तर से दुःख भोग रही हूँ और मैं उसी के हाथों मरना पसन्द करूँगी। उसके बाद वह देखेगी कि किस तरह मेरी आत्मा इंतकाम लेती है। पहले भी वह इसी तरह समाप्त हुई थी क्योंकि उसने मेरा लहू पी लिया था। वह कहानी अब फिर दोहराई जाएगी। तब वह फिरऔन सेनाओं से लड़ती हुई मारी गयी थी। अब चीन के आग उगलने वाले हथियार उसके विनाश का कारण बनेंगे। मैंने उन्हें सब समझा दिया है कि यह चुड़ैल जादूगरनी है, इसलिए इसके जादू की काट साथ लेकर आयें। वे कच्चा काम नहीं करेंगे। बोलो, क्या अब भी तुम मुझसे शादी नहीं करोगे ?”
“हरगिज नहीं।” मेरे भीतर से जैसे मोहिनी का प्रेम बोल उठा।
“तो फिर तुम पछताओगे। सारी उम्र पछताओगे। तुमने इतना बड़ा ताजोतख्त ठुकराया है। एक ऐसी बूढ़ी जादूगरनी के लिए जिसकी बाँहों का स्पर्श तुम्हें जलाकर खाक कर सकता है। तुम्हें उससे कुछ भी हासिल नहीं होगा और एक दिन तुम्हें चीनी दरिन्दे पकड़कर ले जायेंगे, तब तुम मुझे याद करना।”
काश कि मैं उस वक्त महारानी की बात मान लेता तो वह सब कुछ न होता जो उस धरती के लिए पवित्र पुस्तकों में लिखा जा चुका था। हर युग में औरत ही इतनी बड़ी तबाही का कारण बनी है।
मेरे जेहन पर तो मोहिनी का प्रेम, मोहिनी का नशा हावी था। मेरी सोच अब मोहिनी की सोच थी, कोई मुझे उससे जुदा नहीं कर सकता था। मैंने बहुत दुःख उठाए थे इसी मोहिनी के कारण और अब जीवन कि कोई आकांक्षा भी शेष नहीं रही थी। सोचने का ढंग कुछ यूँ हो गया था कि अगर मेरा दम निकले तो मोहिनी की गोद में निकले।
एक बार फिर कैदखाने की तन्हाईयाँ मुझे कचोटने लगीं।
उसके बाद महारानी मुझसे मिलने नहीं आयी थी। महल में भी मुझे सन्नाटा सा छाया प्रतीत होता। न जाने पहरेदार भी कहाँ चले गये थे। वहाँ मुझे खाने-पीने को पूछने वाला भी कोई नहीं था।
युद्ध की आवाजें करीब और करीब आती जा रही थीं। मेरा दिल तेज-तेज धड़क रहा था। फिर एक रात मैंने जबरदस्त धमाकों और बिजली की कड़क जैसी विप्लवकारी आवाजें सुनी। यह आखिरी शोर था जो बहुत उग्र था। उसके बाद एकदम से खामोशी छा गयी।
अजीब थी यह खामोशी जिसमें शमशान की सी खामोशी जैसा भय छिपा था। मुझे यूँ लगा जैसे मेरे इर्द-गिर्द सैकड़ों लाशों का मरघट है जहाँ मैं तन्हा खड़ा हूँ। मेरी तलवार से खून टपक रहा है और उन लाशों में मैं किसी जिंदा इँसान को खोजता फिर रहा हूँ। लेकिन मुझसे बात करने वाला कोई नहीं है। सर्वत्र मौत की खामोशी फैली है।
फिर चौथा रोज बीता। भूख-प्यास के कारण मेरा बुरा हाल हो रहा था। इँसान भूखा तो कुछ दिन बिता सकता है, परन्तु प्यास! प्यास एक दो रोज में ही अच्छे-अच्छों का हौसला पस्त कर देती है।
चार दिन में मेरी यह हालत हो गयी कि मैं कैदखाने के फर्श से जा लगा और अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगा।
फिर कुछ आवाजें कानों में पड़ीं...हल्की सी; परन्तु इतना होश मुझे कहाँ था कि मैं उन आवाजों को ठीक से सुन पाता। मुझ पर बेहोशी के दौरे पड़ रहे थे। मेरे शरीर के छोटे जख्म भी फोड़े की मानिंद दुख रहे थे और फिर वह आवाजें भी गुम हो गयीं। शायद यह बेहोशी थी...गहरी बेहोशी।
जब मुझे होश आया तो मैं कैदखाने में न था।
वह एक खूबसूरत शयनागार था जिसके मखमली बिस्तर पर मैं पड़ा था। मैंने पलकें खोल दी थीं और टकटकी लगाये छत को देखता रहा। जेहन अब भी सोया-सोया था। फिर बीती घटनाओं की याद आने लगी और मैंने चौंककर दाएँ-बाएँ देखा।
“मैं कहाँ हूँ ?” मेरे मुँह से एक कराह के साथ निकला।
देखा तो सामने एक अजनबी चेहरा नजर आया।
चोगा पहने एक वृद्ध पुरुष मेरे सामने बैठा था। उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट उजागर हुई।
“खतरे की कोई बात नहीं।” वह स्थानीय भाषा में बोला–“मैं राजवैद्य हूँ। अब आप स्वस्थ हैं महाराज।”
“ओह! मगर यह जगह... ?”
“राजमहल है...वही राजमहल जहाँ आप कैद थे। यह उसी का शयनागार है।”
“और महारानी ?”
“उसके भाग्य में मृत्यु-योग था और पराजय के बाद उसका मर जाना ही उचित था। अन्यथा वह बहुत कष्ट उठाती। रियासत में बहुत खून बहा है। परन्तु अब धीरे-धीरे स्थिति में सुधार आता जा रहा है। फिर स्वयं महात्मा देवी माँ ने शासन की बागडोर सँभाल ली है। जानता में जो आतंक की लहर युद्ध के कारण दौड़ रही थी, वह अब सामान्य होती जा रही है। अधिकांश सेनाएँ मर-खप गयीं। दिन-रात लाशों को ढोने और उन्हें दफनाने का कार्य चल रहा है। महारानी के कुछ भगोड़े सैनिकों का एक टुकड़ी पीछा कर रही है। शायद आप यही सब जानना चाहते थे न ?”
“परन्तु मोहिनी देवी इस समय कहाँ हैं ?” मैंने पूछा।
“इतनी बड़ी जंग के बाद सामान्य हालात बनाना, लोगों में फिर से विश्वास जगाना इतना आसान काम तो नहीं। देवी माता को शायद ही इतना परिश्रम कभी करना पड़ा हो। जगह-जगह वह भाषण देने जाती हैं। इसके अलावा नए पदाधिकारियों का चुनाव, सेना को एक नया रूप देना, बहुत सारी जिम्मेदारियाँ हैं और उन्हें एक पल की भी फुर्सत नहीं मिल पा रही है।”
“महारानी को मरे हुए कितने दिन बीत चुके हैं ?”
“आज सातवाँ रोज है।”
“वह चुड़ैल हमारी सेना को मारती-काटती आगे बढ़ रही है; और किसी भी समय इस महल तक पहुँच सकती है।” महारानी किसी नागिन की तरह फुफकार रही थी। “मेरी मौत लिखी जा चुकी है। मैं उसकी जादुई शक्तियों का मुकाबला नहीं कर सकती। यह मैं अच्छी तरह जानती थी, परन्तु जीत वह भी नहीं सकेगी, बोलो राज ठाकुर, क्या तुम युद्ध समाप्त होने से पहले मुझसे विवाह करोगे ?”
“विवाह! इससे क्या होगा महारानी ? अगर तुम्हारी मौत लिखी जा चुकी है, तो क्या यह विवाह करना तुम्हें बचा लेगा ?”
“हाँ! एक ही सूरत है मेरे बचने की। अगर तुम मुझसे विवाह कर लो तो मोहिनी की सेनाएँ मार-काट रोक देंगी और उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ेगा। यही मेरी सबसे बड़ी जीत होती कि मैं उसके प्रेमी को जीतने में सफल हो गयी। तुम यहाँ के राजा कहलाओगे और वह तुम्हारे विरुद्ध कभी युद्ध नहीं लड़ेगी।”
“यानी मुझे ढाल बनाकर तुम उसे शिकस्त देना चाहती हो ?”
“जंग और मोहब्बत में सब कुछ जायज होता है। कुँवर! बोलो अब भी वक्त है।”
“मेरा जवाब पहले की तरह इनकार में होगा।”
“तो फिर तुम भी सुन लो, यह धरती तबाह हो जाएगी। मेरी रूह उस चुड़ैल से भयानक इंतकाम लेगी। अगर मैं मर गयी तो जानते हो मैंने तुम लोगों की तबाही का क्या सामान जुटाया है ? इसे मोहिनी भी न जानती होगी कि मेरी मौत की खबर पाते ही हमारा बूढ़ा राज ज्योतिषी चीनी सेनाधिकारियों से जा मिलेगा। मोहिनी उसे रोक नहीं सकती। क्योंकि वह रियासत की सरहदों से बाहर जा चुका है और मेरे आखिरी सन्देश की प्रतीक्षा करेगा।”
मैं चौंक पड़ा। यह एक खतरनाक स्थिति थी। एक बार अगर चीनी सेनाएँ यहाँ पहुँच गयीं तो मोहिनी की मुट्ठी भर सेना उनके आधुनिक शस्त्रों का मुकाबला न कर सकेगी। और अगर मोहिनी ने उन पर अपनी जादुई शक्तियों से हमला किया तो स्थिति और भी भयानक हो जाएगी। वे लोग अपनी समस्त शक्ति मोहिनी के विरुद्ध झोंक सकते थे।
“जानते हो कुँवर, चीनी शासकों ने तिब्बत की धरती पर क्यों आक्रमण किया था ? मैं बताती हूँ।” महारानी पागलों के से अन्दाज में कह रही थी। “एक बार चीनी शासकों के हाथ ऐसा भिक्षु आ गया जो पूरे दो सौ पचास साल का था और जवान था। वह भिक्षु इन्हीं पहाड़ियों में रहा करता था और मोहिनी का पुजारी था। हालाँकि चीन के शासक उससे इस धरती के बारे में कुछ भी न जान सके थे; परन्तु उन्हें इतना इल्म जरूर हो गया था कि तिब्बत में कोई जगह ऐसी अवश्य है जहाँ अमर तत्त्व प्राप्त किया जा सकता है। तिब्बत पर हमला करने का पहला कारण यही बना। इस धरती की खोज का दूसरा कारण था यांगदेरम की खानकाह का वह मकबरा जिसे शैतान का मकबरा कहा जाता है। यह मकबरा एक चीनी लुटेरे का है, जिसने खानकाह का बहुत बड़ा खज़ाना प्राप्त कर लिया था। परन्तु वह ले न जा सका। वह खजाना इसी मकबरे में दफन है जो उस काल की देवी की इच्छा से चोरी छिपे वहाँ गाड़ दिया गया था।
“देवी माता उससे प्रेम करने लगी थी। उसने अपनी मृत्यु के समय यह रहस्य प्रकट किया था। उसके प्रेमी सरदार की यही अंतिम इच्छा थी कि जिस खजाने के लिए वह आया था, जिसे वह ले जा न सका था, उसे कोई न ले जा सके और वह उसी के पास रहे। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह मिस्र के पिरामिडों में फिरऔन अपने साथ खजाना भी दफनाने का आदेश देते थे। ऐसा ही कुछ उसके साथ भी हुआ।
“और चीनी शासकों को उस खजाने का पता किसी तरह चल गया। उसे ये चीन की सम्पत्ति मानते हैं। परन्तु अभी तक उन्हें यह नहीं मालूम हो सका कि वह मकबरा कहाँ है। वे यांगदेरम की खानकाह तक भी नहीं पहुँच पाए हैं और मैंने उनके पास संदेश भिजवाया है कि वह दोनों काम मैं कर सकती हूँ। यह संदेशा उस वक़्त उनके हाथों में पड़ेगा जब मेरी मृत्यु हो चुकी होगी। मैंने उन्हें बताया है कि यदि वे इस जादूगरनी को समाप्त करने में सफल हो गये तो सारी चीजें उन्हें मिल जायेंगी।”
पागलों की तरह वह हँसी।
“तुम इस पवित्र धरती की सबसे बड़ी गद्दार हो।” मैं चीख पड़ा। “तुम्हारी आत्मा कभी चैन से नहीं रहेगी।”
“मेरी आत्मा को चैन मिला ही कब है रामोन ? मेरे राजकुमार, मैं तो इस चुड़ैल के कारण जन्म-जन्मान्तर से दुःख भोग रही हूँ और मैं उसी के हाथों मरना पसन्द करूँगी। उसके बाद वह देखेगी कि किस तरह मेरी आत्मा इंतकाम लेती है। पहले भी वह इसी तरह समाप्त हुई थी क्योंकि उसने मेरा लहू पी लिया था। वह कहानी अब फिर दोहराई जाएगी। तब वह फिरऔन सेनाओं से लड़ती हुई मारी गयी थी। अब चीन के आग उगलने वाले हथियार उसके विनाश का कारण बनेंगे। मैंने उन्हें सब समझा दिया है कि यह चुड़ैल जादूगरनी है, इसलिए इसके जादू की काट साथ लेकर आयें। वे कच्चा काम नहीं करेंगे। बोलो, क्या अब भी तुम मुझसे शादी नहीं करोगे ?”
“हरगिज नहीं।” मेरे भीतर से जैसे मोहिनी का प्रेम बोल उठा।
“तो फिर तुम पछताओगे। सारी उम्र पछताओगे। तुमने इतना बड़ा ताजोतख्त ठुकराया है। एक ऐसी बूढ़ी जादूगरनी के लिए जिसकी बाँहों का स्पर्श तुम्हें जलाकर खाक कर सकता है। तुम्हें उससे कुछ भी हासिल नहीं होगा और एक दिन तुम्हें चीनी दरिन्दे पकड़कर ले जायेंगे, तब तुम मुझे याद करना।”
काश कि मैं उस वक्त महारानी की बात मान लेता तो वह सब कुछ न होता जो उस धरती के लिए पवित्र पुस्तकों में लिखा जा चुका था। हर युग में औरत ही इतनी बड़ी तबाही का कारण बनी है।
मेरे जेहन पर तो मोहिनी का प्रेम, मोहिनी का नशा हावी था। मेरी सोच अब मोहिनी की सोच थी, कोई मुझे उससे जुदा नहीं कर सकता था। मैंने बहुत दुःख उठाए थे इसी मोहिनी के कारण और अब जीवन कि कोई आकांक्षा भी शेष नहीं रही थी। सोचने का ढंग कुछ यूँ हो गया था कि अगर मेरा दम निकले तो मोहिनी की गोद में निकले।
एक बार फिर कैदखाने की तन्हाईयाँ मुझे कचोटने लगीं।
उसके बाद महारानी मुझसे मिलने नहीं आयी थी। महल में भी मुझे सन्नाटा सा छाया प्रतीत होता। न जाने पहरेदार भी कहाँ चले गये थे। वहाँ मुझे खाने-पीने को पूछने वाला भी कोई नहीं था।
युद्ध की आवाजें करीब और करीब आती जा रही थीं। मेरा दिल तेज-तेज धड़क रहा था। फिर एक रात मैंने जबरदस्त धमाकों और बिजली की कड़क जैसी विप्लवकारी आवाजें सुनी। यह आखिरी शोर था जो बहुत उग्र था। उसके बाद एकदम से खामोशी छा गयी।
अजीब थी यह खामोशी जिसमें शमशान की सी खामोशी जैसा भय छिपा था। मुझे यूँ लगा जैसे मेरे इर्द-गिर्द सैकड़ों लाशों का मरघट है जहाँ मैं तन्हा खड़ा हूँ। मेरी तलवार से खून टपक रहा है और उन लाशों में मैं किसी जिंदा इँसान को खोजता फिर रहा हूँ। लेकिन मुझसे बात करने वाला कोई नहीं है। सर्वत्र मौत की खामोशी फैली है।
फिर चौथा रोज बीता। भूख-प्यास के कारण मेरा बुरा हाल हो रहा था। इँसान भूखा तो कुछ दिन बिता सकता है, परन्तु प्यास! प्यास एक दो रोज में ही अच्छे-अच्छों का हौसला पस्त कर देती है।
चार दिन में मेरी यह हालत हो गयी कि मैं कैदखाने के फर्श से जा लगा और अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगा।
फिर कुछ आवाजें कानों में पड़ीं...हल्की सी; परन्तु इतना होश मुझे कहाँ था कि मैं उन आवाजों को ठीक से सुन पाता। मुझ पर बेहोशी के दौरे पड़ रहे थे। मेरे शरीर के छोटे जख्म भी फोड़े की मानिंद दुख रहे थे और फिर वह आवाजें भी गुम हो गयीं। शायद यह बेहोशी थी...गहरी बेहोशी।
जब मुझे होश आया तो मैं कैदखाने में न था।
वह एक खूबसूरत शयनागार था जिसके मखमली बिस्तर पर मैं पड़ा था। मैंने पलकें खोल दी थीं और टकटकी लगाये छत को देखता रहा। जेहन अब भी सोया-सोया था। फिर बीती घटनाओं की याद आने लगी और मैंने चौंककर दाएँ-बाएँ देखा।
“मैं कहाँ हूँ ?” मेरे मुँह से एक कराह के साथ निकला।
देखा तो सामने एक अजनबी चेहरा नजर आया।
चोगा पहने एक वृद्ध पुरुष मेरे सामने बैठा था। उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कुराहट उजागर हुई।
“खतरे की कोई बात नहीं।” वह स्थानीय भाषा में बोला–“मैं राजवैद्य हूँ। अब आप स्वस्थ हैं महाराज।”
“ओह! मगर यह जगह... ?”
“राजमहल है...वही राजमहल जहाँ आप कैद थे। यह उसी का शयनागार है।”
“और महारानी ?”
“उसके भाग्य में मृत्यु-योग था और पराजय के बाद उसका मर जाना ही उचित था। अन्यथा वह बहुत कष्ट उठाती। रियासत में बहुत खून बहा है। परन्तु अब धीरे-धीरे स्थिति में सुधार आता जा रहा है। फिर स्वयं महात्मा देवी माँ ने शासन की बागडोर सँभाल ली है। जानता में जो आतंक की लहर युद्ध के कारण दौड़ रही थी, वह अब सामान्य होती जा रही है। अधिकांश सेनाएँ मर-खप गयीं। दिन-रात लाशों को ढोने और उन्हें दफनाने का कार्य चल रहा है। महारानी के कुछ भगोड़े सैनिकों का एक टुकड़ी पीछा कर रही है। शायद आप यही सब जानना चाहते थे न ?”
“परन्तु मोहिनी देवी इस समय कहाँ हैं ?” मैंने पूछा।
“इतनी बड़ी जंग के बाद सामान्य हालात बनाना, लोगों में फिर से विश्वास जगाना इतना आसान काम तो नहीं। देवी माता को शायद ही इतना परिश्रम कभी करना पड़ा हो। जगह-जगह वह भाषण देने जाती हैं। इसके अलावा नए पदाधिकारियों का चुनाव, सेना को एक नया रूप देना, बहुत सारी जिम्मेदारियाँ हैं और उन्हें एक पल की भी फुर्सत नहीं मिल पा रही है।”
“महारानी को मरे हुए कितने दिन बीत चुके हैं ?”
“आज सातवाँ रोज है।”
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
- Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी
सात दिन...मैं सोचने लगा। काफी समय बीत चुका है। इतने समय में अवश्य ही महारानी का संदेशा चीनी जानवरों तक पहुँच चुका होगा और इसकी संभावना भी हो सकती है कि उन्होंने तेज़ी से आक्रमण की तैयारियाँ प्रारम्भ कर दी होंगी। अगर महारानी ने सच कहा था तो।
“मैं तुरन्त मोहिनी देवी से मुलाकात करना चाहता हूँ।” मैंने वैद्य से कहा।
“परन्तु महाराज, यह कैसे सम्भव है ? उचित होगा कि आप विश्राम करें। देवी माता की भी यही इच्छा है।”
“वैद्य जी! मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ और मुझे और अधिक विश्राम की जरूरत भी नहीं। आप मेरा सन्देश तुरन्त देवी तक पहुँचा दें कि मैं तुरन्त मिलना चाहता हूँ। बहुत जरूरी बात करनी है। या फिर आप मुझे बतायें कि वह इस समय कहाँ हैं, मैं स्वयं जाकर उनसे मिल लूँगा।”
“इसका तो मुझे कोई ज्ञान नहीं कि देवी माता इस समय कहाँ होंगी; परन्तु मैं आपका संदेश सेनापति तक पहुँचा सकता हूँ। संदेश पहुँचाने में भी दो दिन लगेंगे। क्योंकि सेनापति पूरब की बस्तियों में ठहरे हुए हैं। शायद उन्हें मालूम होगा कि देवी माता इस समय कहाँ होंगी।”
“ओह!”
मेरा दिल तेज-तेज धड़कने लगा। मन ही मन मैं मोहिनी को पुकार रहा था–‘मोहिनी तुम जहाँ भी हो फौरन मेरे पास चली आओ।’
परन्तु यह वह मोहिनी नहीं थी जो मेरी बाँदी हुआ करती थी और मेरी पुकार पर जहाँ भी होती पलक झपकते मेरे सिर पर आ जाती।
मैं कर भी क्या सकता था।
सही रास्ता यही था कि सेनापति गोरखनाथ को संदेशा पहुँचा दूँ। जैसे ही मोहिनी को पहली फुर्सत मिलेगी, मुझसे मिल लेगी।
मैंने संदेशा लिखवा दिया और राजवैद्य उसे लेकर बाहर चला गया।
❑❑❑
आठवें रोज सेनापति गोरखनाथ राजमहल में आया। जितने दिन बीतते जाते थे, मेरी बेचैनी बढ़ती जाती थी। मोहिनी को मुझसे शीघ्र मिलना चाहिए था, परन्तु वह अब तक नहीं आयी थी।
“गोरख, क्या तुम्हें मेरा संदेशा मिल गया था ?”
“मिल गया था।” गोरख ने थकी-थकी आवाज में कहा।
“और तुमने मोहिनी तक संदेश पहुँचा दिया था ?”
“हाँ महाराज, पहुँचा दिया था!”
“फिर वह अब तक मुझसे क्यों नहीं मिली ?”
“मोहिनी देवी पीकिंग की यात्रा पर गयी हैं, महाराज।”
“पीकिंग की यात्रा पर ?” मैं चौंक पड़ा।
“जी हाँ महाराज! वहाँ वह अपना कोई राजदूत नियुक्त करके आएँगी।”
“कब तक लौटने की सम्भावना है ?”
“जैसे ही वह लौटेंगी आपसे उनकी भेंट अवश्य हो जाएगी।”
“लेकिन गोरख, क्या तुम्हें जानकारी है कि इस धरती पर किसी भी समय चीनी आक्रमण हो सकता है ?”
“चीनी आक्रमण! यह सूचना आपको कहाँ से प्राप्त हुई है ?”
मैंने गोरख को सारी बातें समझाईं तो वह परेशान नजर आने लगा। उसने तुरन्त ही सेना के सरदारों को बुलाया और सेनाएँ अभी एक युद्ध की थकान मिटा भी नहीं सकीं थीं कि उन्हें सीमाओं पर तैयार होने की तैयारियाँ करनी पड़ गयीं।
उसी दिन जासूस ने सूचना दी कि चीनी फौजें बड़ी तादाद में बढ़ी चली आ रही हैं और उनकी सँख्या हजारों में है। जंग का खतरा निरन्तर बढ़ता जा रहा था।
और जैसे ही सीमा पर युद्ध प्रारम्भ हुआ, मुझे मोहिनी के लौटने का समाचार मिला।
“आपको तुरन्त पहाड़ों के मन्दिर में देवी ने बुलाया है।” गोरखनाथ ने मुझे सूचना दी। “चीनी सेनाएँ तेज़ी के साथ आगे बढ़ रही हैं। उन्हें मार्ग में पड़ने वाले कबीलों का समर्थन प्राप्त है।”
मुझे तुरन्त ही वहाँ से रवाना होना पड़ा। मेरे साथ एक सैनिक दस्ता था जो मेरी रक्षा के लिए था। जब हम पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ रहे थे तो दो विमानों ने अचानक बमबारी शुरू कर दी। धमाकों से पहाड़ियाँ गूँज उठीं। निश्चित रूप से वह चीनी विमान थे जो आधे घंटे तक बमबारी करने के उपरान्त वापस पलट गये।
“मैं तुरन्त मोहिनी देवी से मुलाकात करना चाहता हूँ।” मैंने वैद्य से कहा।
“परन्तु महाराज, यह कैसे सम्भव है ? उचित होगा कि आप विश्राम करें। देवी माता की भी यही इच्छा है।”
“वैद्य जी! मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ और मुझे और अधिक विश्राम की जरूरत भी नहीं। आप मेरा सन्देश तुरन्त देवी तक पहुँचा दें कि मैं तुरन्त मिलना चाहता हूँ। बहुत जरूरी बात करनी है। या फिर आप मुझे बतायें कि वह इस समय कहाँ हैं, मैं स्वयं जाकर उनसे मिल लूँगा।”
“इसका तो मुझे कोई ज्ञान नहीं कि देवी माता इस समय कहाँ होंगी; परन्तु मैं आपका संदेश सेनापति तक पहुँचा सकता हूँ। संदेश पहुँचाने में भी दो दिन लगेंगे। क्योंकि सेनापति पूरब की बस्तियों में ठहरे हुए हैं। शायद उन्हें मालूम होगा कि देवी माता इस समय कहाँ होंगी।”
“ओह!”
मेरा दिल तेज-तेज धड़कने लगा। मन ही मन मैं मोहिनी को पुकार रहा था–‘मोहिनी तुम जहाँ भी हो फौरन मेरे पास चली आओ।’
परन्तु यह वह मोहिनी नहीं थी जो मेरी बाँदी हुआ करती थी और मेरी पुकार पर जहाँ भी होती पलक झपकते मेरे सिर पर आ जाती।
मैं कर भी क्या सकता था।
सही रास्ता यही था कि सेनापति गोरखनाथ को संदेशा पहुँचा दूँ। जैसे ही मोहिनी को पहली फुर्सत मिलेगी, मुझसे मिल लेगी।
मैंने संदेशा लिखवा दिया और राजवैद्य उसे लेकर बाहर चला गया।
❑❑❑
आठवें रोज सेनापति गोरखनाथ राजमहल में आया। जितने दिन बीतते जाते थे, मेरी बेचैनी बढ़ती जाती थी। मोहिनी को मुझसे शीघ्र मिलना चाहिए था, परन्तु वह अब तक नहीं आयी थी।
“गोरख, क्या तुम्हें मेरा संदेशा मिल गया था ?”
“मिल गया था।” गोरख ने थकी-थकी आवाज में कहा।
“और तुमने मोहिनी तक संदेश पहुँचा दिया था ?”
“हाँ महाराज, पहुँचा दिया था!”
“फिर वह अब तक मुझसे क्यों नहीं मिली ?”
“मोहिनी देवी पीकिंग की यात्रा पर गयी हैं, महाराज।”
“पीकिंग की यात्रा पर ?” मैं चौंक पड़ा।
“जी हाँ महाराज! वहाँ वह अपना कोई राजदूत नियुक्त करके आएँगी।”
“कब तक लौटने की सम्भावना है ?”
“जैसे ही वह लौटेंगी आपसे उनकी भेंट अवश्य हो जाएगी।”
“लेकिन गोरख, क्या तुम्हें जानकारी है कि इस धरती पर किसी भी समय चीनी आक्रमण हो सकता है ?”
“चीनी आक्रमण! यह सूचना आपको कहाँ से प्राप्त हुई है ?”
मैंने गोरख को सारी बातें समझाईं तो वह परेशान नजर आने लगा। उसने तुरन्त ही सेना के सरदारों को बुलाया और सेनाएँ अभी एक युद्ध की थकान मिटा भी नहीं सकीं थीं कि उन्हें सीमाओं पर तैयार होने की तैयारियाँ करनी पड़ गयीं।
उसी दिन जासूस ने सूचना दी कि चीनी फौजें बड़ी तादाद में बढ़ी चली आ रही हैं और उनकी सँख्या हजारों में है। जंग का खतरा निरन्तर बढ़ता जा रहा था।
और जैसे ही सीमा पर युद्ध प्रारम्भ हुआ, मुझे मोहिनी के लौटने का समाचार मिला।
“आपको तुरन्त पहाड़ों के मन्दिर में देवी ने बुलाया है।” गोरखनाथ ने मुझे सूचना दी। “चीनी सेनाएँ तेज़ी के साथ आगे बढ़ रही हैं। उन्हें मार्ग में पड़ने वाले कबीलों का समर्थन प्राप्त है।”
मुझे तुरन्त ही वहाँ से रवाना होना पड़ा। मेरे साथ एक सैनिक दस्ता था जो मेरी रक्षा के लिए था। जब हम पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ रहे थे तो दो विमानों ने अचानक बमबारी शुरू कर दी। धमाकों से पहाड़ियाँ गूँज उठीं। निश्चित रूप से वह चीनी विमान थे जो आधे घंटे तक बमबारी करने के उपरान्त वापस पलट गये।
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