Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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"यह जोखिम का काम तो नहीं?"

"बिल्कुल नहीं-बस, बुढ़िया के दिल में जगह बनानी है।

"मगर यह तो फ्राड हो गया।"

"जिस फ्राड से किसी को नुकसान की जगह फायदा पहुंच रहा हो, उसे फ्राड नहीं कहते ।"

"मगर राजेश कामयाब हो गया तो?"

"तो क्या? वह कामयाब होगा। हम उसे कम्पनी में इंजीनियर की जगह दे ही चुके हैं। उसकी तनख्वाह भी चालू है।"

"अच्छा !"

"हमने उसकी योग्यता को पहचान लिया है...हम चाहते हैं कि उसे और अन्नति मिले...वैसे भी जब हम बिल्कुल बूढ़े हो जाएंगे और जगमोहन को हमारी कुर्सी संभालनी होगी तो उसे राजेश जैसे ही हमदर्द दोस्त की जरूरत होगी।"

"मगर सौदे में ज्यादा देर न लग जाए-राजेश की जुदाई में घुटकर आपके बेटे की खुराक आधी रह गई है।"
"इसलिए अब जगमोहन के अकेलेपन को दूर करने का इन्तजाम करना जरूरी हो गया है।"


"मैं भी तो यही चाहती हूं कि दोनों के सिरों पर साथ-साथ सेहरा बंधे।"

जगमोहन ने शरमाकर सिर झुका लिया-पारो और कमला हंसने लगीं।

"क्यों बेटे...कोई लड़की पसंद की है?"

जगमोहन ने लड़कियों की तरह दोनों हाथों से मुंह छुपा लिया। पारो ने हंसकर कहा-"इसका मतलब है लड़की पसंद है।"

जगमोहन ने बड़ी मुश्किल से कहा-"जी-हां।"

अचानक सेठ दौलतराम को याद आया कि उन्होंने जगमोहन की कार में सुनीता को देखा था-वह बहुत बेचैन हो गए, क्योंकि सुनीता पर डोरे डालने तो उन्होंने राजेश को भेजा था।

"कौन है वह लड़की?" उन्होंने जगमोहन से सीधा पूछा।

जगमोहन ने शरमाकर कहा-"मालूम नहीं।"

"बहुत शर्म आती है...चलो बता दो न।"

"जी अनीता।
DO94%D8:55 pm
KO/E

"अनीता।"
.
"कुछ ऐसा ही नाम था...हमारी क्लासमेट थी।"

दौलतराम ने आराम की सांस ली और बोले-“पता लगाकर बताओ तो तुम्हारी बात पक्की कर सकें।"

"जी-बजाऊंगा।" जगमोहन फिर शरमा गया।

कई दिनों तक सड़को पर भटकने के बाद एक दिन जगमोहन ने सुनीता को एक बस स्टॉप पर देखा तो खुशी से उसका दिल खिल उठा। जल्दी से कार रोककर उसने अंदर बैठे पुकारा
"सुनीता जी...सुनीता जी...!"

सुनीता जगमोहन को देखकर चौंक पड़ी और जल्दी से उसके पास आकर बोली-"अरे जगमोहन जी...आप!"

"हम तो कई दिनों से आपको ढूंढ़ रहे थे।"

"क्यों?"

"वो...क्या है कि हमारे डैडी...हमारी शादी करना चाहते हैं।" कहते-कहते-जगमोहन शरमा गया। सुनीता ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी और मुस्कराकर कहा


"तो...मैं क्या मदद कर सकती हूं?"

"हम आप ही से शादी करना चाहते हैं।"

सुनीता के मस्तिष्क में छनाका-सा हुआ-उसे मालूम था कि जगमोहन बहुत सीधा-सा आदमी है-वह उसका दिल भी दुखाना नहीं चाहती थी इसलिए उसने कहा
"यह तो बड़ी खुशनसीबी है।"

"तो फिर जल्दी से अपना पता बताइए, हम अपने घर बता दें।"

सुनीता ने अपनी एक सहेली जिसका नाम अनीता था, उसका पता बता दिया। जगमोहन ने पता नोट कर लिया और बोला
"अब डैडी आपके घर मां और मौसी के साथ आएंगे।" इतना कहकर जल्दी से गाड़ी बढ़ी दी...फिर झट कुछ सोचकर रूक गया और रिवर्स करके स्टॉप पर आया-सुनीता पास आ गई तो बोला-"हमसे भूल हो गई..हमारे दोस्त ने एक बार हमें डांटा था जब हमने आपको स्टॉप पर छोड़ दिया था...चलिए, आपको घर पहुंचा दूं।"

rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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"धन्यवाद ! मैं इस समय बहुत जरूरी काम से कहीं जा रही हूं..वैसे भी आपके डैडी ने देख लिया तो समझेंगे कितनी निर्लज लड़की है।"

"अच्छी बात है, मगर आप हमसे शादी तो करेंगी न?"

"अरे! आप जैसे अच्छे देवता सरीखे नौजवान से कौन लड़की शादी नहीं करना चाहंगी?"

जगमोहन खुश-खुश कार बढ़ा ले गया। सुनीता ने संतोष की सांस ली-फिर बस की ओर देखने लगी और अचानक ही उसने राजेश को देखा जो कुछ सामान लिए हुए स्टॉप की ओर आ रहा था।

सुनीता का चेहरा खिल उठा...आंखों मे चमका आ गई-वह जल्दी से आगे बढ़कर उससे बोली-"राजेश बाबू!"

राजेश ने चौंककर देखा और पास आकर मुस्कराता हुआ बोला-"अरे आप!"

"मैं जरा एक सहेली के यहां गई थी।"

"मैं नौकरी ढूंढ़ने निकला था-मांजी ने कुछ सामान लिखकर दिया था। वही लेकर आ रहा हूं।"

फिर वह सुनीता के साथ लाइन में लगने लगा तो पीछे से आवाजें आईं-“ऐ,क्या करते हो? पीछे
आकर लगो।"

दोनों लाइन से निकल आए...राजेश ने कहा

"यह मुम्बई है यहां के लोग किसी की इज्जत करना नहीं जानते ।

इतने में पता चला कि बसों की हड़ताल हो गई है-कुछ यात्रियों ने कंडक्टर और ड्राइवर को पीट दिया था, इसलिए जो बस जहां थी वहीं खड़ी हो गई।

"अग क्या होगा? " सुनीता ने घबराकर कहा।

"आटो पकड़ते हैं-पर मेरे पास तो...।"

"मगर मेरे पास हैं।"

दोनों ने दाएं-बाएं देखा, लेकिन कोई ऑटो नहीं मिला...मजबूरन दोनों पैदल चलने लगे-राजेश ने कहा

“लाइए न अपना पर्स मुझे दे दीजिए।"

"क्यों?"

"अरे! मर्द हूं...कोई महिला साथ चले तो अच्छा नहीं लगता ।"

सुनीता हंस पड़ी और बोली-“मेरे पर्स में गृहस्थी का सामान नहीं-केवल बस का किराया है और एक छोटा-से रूमाल ।"

"फिर भी बोझ तो है।"

सुनीता ने हंसकर कहा-“आप कब तक यह बोझ उठाएंगे?"

"जब तक आपका हुक्म हो।"

अचानक सुनीता गंभीर होकर बोली-"अगर मैं कहूं, तमाम उम्र तो?"

राजेश ने चौंककर उसकी ओर देखी और बोला-"क्या आप मुझे इस योग्य समझती हैं?"

"यही सवाल अगर मैं आपसे करूं?"
-
राजेश ने उसे ध्यान से देखा और मद्धिम-सी मुस्कराहट के साथ बोला-“ऐसा बोझ तो मैं सात जन्मों तक उठा सकता हूं।"

"धन्य हो भगवान! मैं समझती थी , अगर मैंने कभी आपसे दिल की बात कह दी तो पता नहीं क्या जवाब देंगे।"

"कमाल है...जो बात मैं इतने दिनों से सोच रहा हूं वही बात आप भी सोच रही हैं।"

"आप भी यही सोचते रहे थे?"

"आप नहीं , तुम..तुम कहिए।"
.
"तुम भी तुम कहो, आप मत कहो।"

फिर दोनों हंसने लगे और उन्होंने एक-दूसरे के हाथ में हाथ डाल लिया।

राजेश ने कहा-"मुहब्बत भी अजीब भाव या भावना है-किसी नटखट बच्चे के समान दिल के किसी कोने में छुपकर बैठ जाती है। पता भी नहीं चलता और उभरती है तो आकाश और समुद्र पार कर जाती है-कभी तारों का झुरमुट कभी लहरों की तरंग।"

सुनीता का चेहरा लाल हो रहा था..किसी अंदर के भाव से।

सेठ दौलतराम ने ढूं-टूं की आवाज सुनी और बटन दबा दिया...फिर हैंडपीस कान से लगाकर बोले
-
"हां...बोलो राजेश।"

“सर! मुझे एक और सफलता मिली।"

"अच्छा ! क्या?"

"सुनीता मुझसे मुहब्बत करने लगी है।"

"बहुत खूब।"

"अगर इजाजत हो तो यह खुशखबरी अपने दोस्त जगमोहन को सुना दूं।"

"अरे! पहले उसकी खुशखबरी पूरी होने दो...फिर एक-दूसरे को सुनाना।"

"क्या मतलब?"

"वह गधा भी एक अकलमंदी कर बैठा था-अनीता नाम की एक लड़की से मुहब्बत करने लगा था।"

"वही...उसकी क्लासमेट?"

"हां...तुम जानते हो उसे?"

"उसी ने मुझे बताया था।"

"आज मैं उस लड़की से उसकी बात पक्की करने जा रहा हूं।"

"वैरी गुड सर! मेरी ओर से बधाई।"

"उसी को देना.और तुम्हारी ओर से कोई विशेष प्रोग्रेस?"

"इससे बड़ी और क्या प्रोग्रेस हो सकती है-सर।"

"ओके-! फिर उन्होंने मोबाइल बंद कर दिया इतने में कार रूक गई तो उन्होंने चौंककर इधर-उधर देखा और बोले

"यह गाड़ी कहां ले आए ड्राइवर?"

"मालिक, यह पता आप ही ने बताया था।"
rajan
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सेठ ने इधर-उधर देखा...वह 'चाल' की बस्ती थी...सेठ ने नाक भौंह सिकोड़कर कहा-"गधे ने लड़की भी पसंद की तो कहां की?"

"मालिक! चलूं?"

"ठहरो! उस लड़के की पसंद जरा देखें तो सही-वैसे एरिया बहुत अच्छा है अगर यह बस्ती हमारे कब्जे में आ जाए तो मजा आ जाए। तुम जरा मालूम तो करो...शंकर लाल कौन है?"

ड्राइवर उतरकर गंदी बस्ती में घुस गया...लगभग पन्द्रह मिनट बाद वह लौटा तो उसके साथ एक चौड़ी छाती वाला, लम्बे कद का, नेवले जैसी मूंछों वाला आदमी था जिसके हाथ में एक गांठो वाली मोटी-सी लाठी थी और बदन पर लुंगी और बनियान।

दोनों कार के पास आकर रूक गए...ड्राइवर ने कहा-"मालिक! यही हैं शंकर लाल जी।"

"ओहो!"

शंकर लाल ने मूंछों पर ताव देकर कहा-"क्या काम है सेठ? किसका खून कराना है?"

ड्राइवर ने कहा-“शंकर लाल जी ! मालिक आपकी बेटी अनीता के बारे में कुछ बात करने आए हैं।"

"क्या बोला?"

अचानक शंकर लाल ने ड्राइवर को गिरेबान से पकड़कर सिर से ऊंचा उठा लिया तो सेठ दौलतराम ने जल्दी से कहा
"अरे...अरे...सुनो तो शंकर।"

"सेठ! दफान हो जाओ यहां से...शंकर लाल इस बस्ती का मालिक है...दूसरों की बहू-बेटियों को अपनी बहू-बेटियों समझता है।"


"अरे भाई...हम अनीता को अपनी बहू बनाने ही तो आए हैं।"

शंकर लाल ने ड्राइवर को छोड़ दिया तो ड्राइवर कार से लगकर शिष्टता से खड़ा हो गया। दौलतराम ने कहा-“दादा! हमारा बेटा जगमोहन और तुम्हारी बेटी अनीता जो कॉलेज में एक ही क्लास में पढ़ते थे, आपस में मुहब्बत करने लगे हैं...हम अनीता को तुमसे मांगने आए हैं।"

"अरे! तो पहले क्यों नहीं बोला?"

"तो फिर हम यह रिश्ता पक्का समझें?"

"पहले अंदर तो आओ...मुंह तो मीठा करो।"

"फिर कभी.अभी हमें जरूरी काम से कोर्ट में जाना है।"

"मेरी ओर से रिश्ता पक्का...जब चाहें मुहूर्त निकलवा लें।"

कुछ देर बाद जब कार सड़क पर दौड़ रही थी तो ड्राइवर ने कहा
“ऐसे घटिया आदमी को समधी बनाएंगे मालिक।"

"बिजनेस...ड्राइवर! सह पूरी बस्ती शंकर लाल की है...जरा सोचो, अगर यह हमारी बन जाए तो कितना शानदार फइव स्टार होटल बन सकता है।"

"यह तो आप ठीक कहते हैं मालिक ।"

मगर जब घर जाकर सेठ दौलतराम ने बताया कि जगमोहन का रिश्ता अनीता से पक्का हो गया है तो जगमोहन रोने लगा।

"अरे! खुश होने की जगह रो रहे हो?"

"डैडी! मैं चाहता था यह खुशी सबसे पहले अपने दोस्त को सुनाऊं।"

"उसे भी सुना देना ।"

"मगर वह है कहां?"

"जहां भी है, कामयाब बिजनेस कर रहा है।" कहते-कहते सेठ की कल्पना में मास्टर जी का बंगला घूम गया।
राजेश क्यारियों में पानी दे रहा था कि एक टैक्सी आकर रूकी।

राजेश देखने लगा...सुनीता और विद्यादेवी भी उधर आकर्षित हो गईं। टैक्सी में से एक सुन्दर नौजवान बड़ी-सी अटैची संभाले हुए उतरा और अंदर आया। अटैची रखकर उसने पहले विद्यादेवी के चरण छुए और सुनीता के सिर पर आशीर्वाद का हाथ फेरा।

"क्षमा करना बेटा। विद्यादेवी ने कहा-"मैंने पहचाना नहीं।"

"मांजी! आपने अशोक को नहीं पहचाना?"

विद्यादेवी और सुनीता दोनों उछल पड़ी।
-
"क्या तुम अशोक भैया हो?"

"हां सुनीता! अब मैं दुबई में इंजीनियर हूं... चालीस हजार रूपए महीना तनख्वाह मिलती है।"
.
.
"हां मांजी! मैं एक अनाथ बेसहारा लड़का...अगर मास्टर जी मुझे शिक्षा न देते तो मैं आज भी बस्ती वालों की तरह फुटपाथ पर बूट पालिश करता या

ठेला चला रहा होता-यह बंगला मेरे जीवन का मोड़ है-मास्टर देवीदयालजी ने मुझे क्या से क्या बना दिया।"

राजेश आश्चर्य से देख रहा था और सुन रहा था।
rajan
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अशोक ने कहा-"यह अटैची है, रख लें...आपके और सुनीता दीदी के लिए कपड़े हैं और कुछ जरूरत की चीजें, मेरी ओर से उपहार और एक लाख रूपए नकद |

"एक लाख!"

"हां, पूज्य मास्टर जी को श्रद्धांजलि..मैं चाहता हूं उनका सपना पूरा हो जाए-यह बंगला हाई स्कूल में बदल जाए जिसमें गरीब बच्चों की मुफ्त पढ़ाई, मुफ्त किताबें और दोपर के भोजन का प्रबंध हो सके..मेरे जैसे और भी अशोक पढ़-लिखकर मास्टर जी के सपने को पूरा करते रहें-मैं खुद हर दूसरे महीने की तनख्वाह से कुछ भेजा करूंगा...आप जब चाहें इस स्कूल का शिलान्यास रखवा दें।"

"बेटे! अबकी मास्टर जी की बरसी पर यह शुभ काम हो जाएगा। मगर तुम्हें भी शामिल होने पड़ेगा।"

"मैं जरूर आऊंगा मांजी।"

राजेश ने कहा-'भाई साहब! आपके पास इतनी दौलत है तो पास की बस्ती के गरीबों की झोंपड़ियों क्यों नहीं बनवा देते ?"

आशोक ने उसे देखा...विद्यादेवी के परिचय कराने पर अशोक ने कहा
"राजेश जी! इन लोगों की झोंपड़ियां बनवाने का मतलब है इन्हें भिखारी और मुहताज बनाना। इनमें शिक्षा और ज्ञान की रोशनी फैल जाए तो वह खुद अपने जीवन को बदलने की कोशिश करेंगे-किसी को भीख देने की बजाए उसे शिक्षित बनाना उसके साथ भलाई करना है।"

राजेश सन्नाटे में रह गया।
'इन लोगों की झोंपड़ियां बनवाने का मतलब है इन्हें भिखारी बनाना।

'इनमें शिक्षा और ज्ञान की रोशनी फैल जाए तो अपने घर और जीवन को बदलने की कोशिश करेंगे।

राजेश के कानों में अशोक की आवाज गूंज रही थी-वह सोच रहा था-'वह भी तो एक ड्राइवर का बेटा था...की रोशनी ने उसे इंजीनियर बना दिया...मुझे बड़ी मां संरक्षण मिल गया...लेकिन हर गरीब को बड़ी मां थोड़े ही मिलती हैं। हां मास्टर जी, मांजी और सुनीता जी बड़ी मांओं के बराबर तो हैं...यह बंगला अच्छा स्कूल बन जाए तो कितने ही गरीब बच्चे...इंजीनियर, डाक्टर और प्रोफेसर बनकर निकल सकते हैं।'

'और...सेठ दौलतराम और प्रेम इस बंगले की जगह बिल्डिंगों में बड़े लोग रहते हैं..शॉपिंग कम्पलैक्स में अमीर आदमी शॉपिंग करते हैं जो महंगी चीजें खरीदते हैं...यह मास्टर जी के साथ कठोर अन्याय है-और इस अन्याय में मैं उनका साथ दे रहा हूं..इस गरीब बच्चों का विकास जरूरी है-यही देश सेवा है...यही महान भक्ति है-मैं इस बंगले को सेठ के हाथों में नहीं जाने दूंगा।'

राजेश ने एक झरझरी-सी ली और अपने आप बड़बड़या
'नहीं...नहीं यह नहीं हो सकता ।'

'मैं सुनीता के प्यार को धोखा नहीं दे सकता।'
-
'मैं मुहब्बत में स्वार्थी नहीं बनूंगा।'
अचानक सुनीता की आवाज आई-"किससे बातें कर रहे हो राजेश?"

राजेश चौंककर मुड़ा और बोला-“एक बात बताओ सुनीता।"

"पूछो।"

"आज आशोक को बातों से मालूम हुआ कि मास्टर जी देवता थे, जनरक्षक थे।"

"क्या मतलब ?"

"पर सेठ दौलराम देवता स्वरूप मास्टरजी पर दस लाख स्पयों की बेईमानी का अभियोग क्यों लगा रहा है?"

सुनीता ने चौंककर कहा-“सेठ दौलतराम...दस लाख रूपए?"

"हां।"

"हर्गिज नहीं... सेठ दौलतराम ने जो बंगला रहन रखने के लिए जबरदस्ती चैक दिया था वो बाबूजी लौटाने गए तो उनके असिस्टैंट प्रेम ने लेकर रख लिया और जब बाबूजी सेठ से बात करने गए तो उनका खून हो गया।"

"यानी वह दस लाख...।"

"अगर हमारे पास होते तो बंगला स्कूल न बन चुका होता ,मगर तुम यह सब कैसे जानते हो?"

"इसलिए कि जिन ड्राइवर कैलाश के हाथों मास्टर जी का खून हुआ था वह मेरे पिता हैं।"

"नहीं...!" सुनीता हड़बड़ाकर पीछे हट गई।

"मैं तुमसे मुहब्बत का नाटक करने आया था सुनीता ताकि इस बंगले पर कब्जा करने सेठ दौलतराम को सौंप सकू, और अपने निर्दोष पिता के जेल जाने का बदला ले सकू।"

"निर्दोष..!"

"हां सुनीता, खून मेरे पिता ने नहीं किया था, बल्कि सेठजी के हाथों खून हुआ था...वह इस लाख जरूर प्रेम ही ने कैश करा लिए थे जिसका दोष मास्टर जी पर लगा और सेठ ने भी इन्हीं को बेईमान समझा।


"क्या प्रमाण है इसका तुम्हारे पास?"

"वह फोटो जो सेठ दौलतराम के हाथों मास्टर जी का खून होते प्रेम ने खींचकर सेठजी को दस बरस ब्लैकमेल किया था.मैंने उस फोटोज के नैगेटिव सेठ को दे दिए थे लेकिन एक-एक कापी अपने पास रख ली थी-आओ, तुम्हें दिखाऊं।"
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