Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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Sexi Rebel
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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बम्बई बन्दरगाह पर जहाज से उतर कर राज ने सतीश को अपने आगमन की खबर और कुशल मंगल का बता दिया था, इसलिए पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सतीश और दोनों ही उसके स्वागत के लिए मौजूद थे।

प्लेटफार्म पर कदम रखते ही राज की नजर सबसे पहले ज्योति के हसीन मुखड़े पर पड़ी जो खुशी से चमक रहा था। राज ने महसूस किया था कि एक साल के अर्से में ज्योति का हुस्न कुछ और निखर आया था। उसकी निगाहें ज्योति के चेहरे से फिसलती हुई उसके गले में पड़े हुए सांप जैसे नेकलेस पर जाकर जम गई। फिर एक पल के लिये राज की खोपड़ी घूम कर रह गई। भगवान जाने उस सांप में ऐसी कौन सी शैतानी चीज छुपी हुई थी कि उसे देखकर राज के बदन में सनसनी की लहरें दौड़ने लगती थीं।

"हैलो राज!"
नजर मिलते ही वो मधुर मुस्कराहटों के फूल बरसाती हुई राज की तरफ बढ़ी। तो बिल्कुल उसी तरह हसीन और जवान थी जैसे पहले थी।

"हैलो भामी, कैसी...."

राज इतना ही कह पाया था कि किसी ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख दिया। राज बात अधूरी छोड़कर ही घूम गया। लेकिन घूमते ही खौफ और आतंक से राज की आंखें फैल गईं और वो
" सतीश...।" कह कर अपने दोस्त से लिपट गया।

"यह तुम्हें क्या हो गया है सतीश?" उसने सतीश के कंधे पर हाथ रखकर कहा। सतीश इस एक साल के अर्से में सिर्फ हायों का ढांचा भर रह गया था।

यही वही सतीश था जो एक साल पहले तक पत्थर से तराशी गई एक मूर्ति की तरह सख्त और सुडौल था। वही सतीश इस वक्त राज के सामने एक कंकाल की तरह खड़ा था, जिस पर पतली सी खाल मढ़ दी गई हो। जैसे वो कई सालों से बीमार चला आ रहा हो।

सतीश को इस स्थिति में देखकर खूबसूरत औरत कीमती लिबास में होने के बावजूद ज्योति एक भयानक डायन नजर आने लगी। पांच पतियों को हड़प जाने वाली डायन-जो अब छठे पति का खून चूस रही हो!

अनापेक्षित रूप से सतीश की हालत देखकर राज के होश उड़ गए और कुछ देर बो स्तब्ध सा खड़ा रह गया था। ऐसा लग रहा था कि उसका दिमाग सुन्न हो गया हो। उन दोनों से उसकी क्या-क्या बातें हुईं और वो स्टेशन से घर कैसे पहुंचा, राज को कुछ याद नहीं था।

जब उसके होशों-हवास काबू में आए तो वह सतीश की कोठी के एक भव्य सजे सजाए कमरे में बैठा हुआ था। वो ज्योति और सतीश के दाम्पत्य जीवन के बारे में सोचने लगा। लेकिन शायद व्यर्थ में और वक्त निकल जाने के बाद।
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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कई दिन बीत गए, राज जितना भी उन दोनों के बारे में सोचता, उतना ही परेशान होता रहता। इसमें तो अब राज को शक की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती थी कि ज्योति ही अपने पूर्व पांचों पतियों की मौत की वजह थी। जिसका जीता जागता सबूत मौत के मुंह में लटका उसका पांचवां पति सतीश था। लेकिन सतीश के लिए सबसे बड़ी परेशानी यही थी कि ये सब बातें सही जान और सही मान लेने के बावजूद, उसके पास ऐसा कोई ठोस सबूत तो क्या कच्चा सबूत भी नहीं था, जो ज्योति को मुजरिम ठहरा सके।

राज को यह भी यकीन था कि ज्योति कोई जहर इस्तेमाल नहीं करती अपने पतियों को मारने के लिए-क्योंकि राज का विचार था कि ऐसा कोई जहर नहीं है जो आदमी को धीर-धीरे करके खत्म कर सके और किसी भी टेस्ट में वो जहर न पाया जाए, न मरने के बाद पोस्टमार्टम में जिसकी पता चल पाए।

वो सोच रहा था
अब दूसरी सूरत यही थी कि ज्योति वाकई कोई खतरनाक जादूगरनी थी....या उसके गले का सांप जैसा नेकलेस ही अपने अन्दर कोई शैतानी ताकत रखता है।

इस आखिरी चीज के अलावा राज की समझ कोई बात नहीं आ रही थी। लेकिन समस्या यह थी कि भूतप्रेत, शैतान या अदृश्य शक्ति वाली बातों को उसका दिमाग कबूल नहीं करता था, क्योंकि वो एक पढ़ा-लिखा डॉक्टर था, जो ऐसी बातों को टोटल अंधविश्वास कहते हैं।


सतीश का राज ने कई बार मैडिकल चैकअप भी किया था और डॉक्टर नरेन्द्र गुप्ता से भी कई बार चैकअप करवाया था, उसके बाद वो घंटों सतीश की रहस्मयी बीमारी पर डिसकस करते रहे थे।

लेकिन सब बेकार रहा था, क्योंकि सतीश के जिस्म के भीतरी अंग बिल्कुल ठीक काम कर रहे थे। सतीश को न जाने ऐसी कौन सी बीमारी थी कि वो दिन-ब-दिन घुलता जा रहा था।

अब डॉक्टर गुप्ता भी राज से सहमत होता जा रहा था। जो सन्देह राज ने ज्योति के पांचवे पति बैरिस्टर खोसला के जीवन में जाहिर किए थे और बैरिस्टर खोसला की मौत के बाद उकसी लाश का पोस्टमार्टम करते हुए राज को भी इसलिए साथ रखा ताकि वो ज्योति को निर्दोष साबित कर सके कि ज्योति का पांचवा पति बैरिस्टर खोसला वाकई स्वाभिव मौत मरा और अब वही स्वाभाविक मौत पल-पल सतीश के करीब आती जा रही थी, जिसे देखकर डॉक्टर गुप्ता को राज की बातों पर यकीन करना पड़ा था। मगर दोनों डॉक्टरों को अफसोस था कि सब कुछ जान लेने और सब बातों पर यकीन कर लेने के बाद भी दोनों के दोनों बेबस थे, वो कुछ नहीं कर सकते थे।

देखने में सतीश और ज्योति की वैवाहिक जिन्दगी बड़े प्यार-मोहब्बत और सुख-शांति से गुजर रही थी। सतीश अब भी ज्योति का उसी तरह भक्त था और ज्योति अब भी दीवानों की तरह उसे चाहती नजर आती थी।

उन्हीं दिनों एक बात राज ने और नोट की कि ज्योति अब उस पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान होती जा रही थी। अपने प्रति ज्योति के इस अप्रत्याशित प्यार भरे व्यवहार से राज बहुत परेशान था। "क्या वो मुझे अपनी मोहब्बत के जाल में फांसकर सतीश की तरफ से मेरा ध्यान हटाना चाहती है? वो अक्सर सोचता था कि वो जल्द से जल्द सतीश का किस्सा खत्म कर देगा। या फिर वो अपनी खूबसूरत और खौफनाक मोहब्बत की झलक दिखा कर मेरा मजाक उड़ाना चाहती है?"

लेकिन यह समस्या भी रहस्य में ही रही। दरअसल इस विषय में राज ने ज्यादा विचार नहीं किया था। क्योंकि राज के सोचने के लिए इस वक्त सतीश की जान का सवाल सबसे पहला प्वाईंट था। इस वक्त राज की सारी दिमागी ताकतें सतीश की सम्भाविक मौत के बारे में सोचकर उसे बचाने की तरकीबें ढूंढने में लगी हुई थीं।

आखिर कई दिनों के सोच-विचार के बाद राज को यकीन हो गया कि इस सारे खौफनाक खेल का जिम्मेदार वही मनहूस सांप जैसा नेकलेस है, जो ज्योति की सुराहीदार गर्दन में पड़ा हुआ है।

जरूर वो कोई काले जादू का यंत्र है, जिसके जरिये वो अपने पतियों को मौत के घाट उतार देती है और सब उसका दोस्त सतीश भी उसी की वजह से मौत की घाटी में उतर रहा है।

अपने पर ज्योति की प्यारी मेहरबानियों का अर्थ भी जब कुछ-कुछ राज की समझ में आने लगा था। वो चाहती थी कि जब उसका छठा शिकार, यानि सतीश मौत के मुंह में समा जाए तो उसे सातवें नौजवान शिकार की तलाश में ज्यादा न सिर खपाना पड़े। बल्कि वो फौरन ही उसे अपने शिकंजे में कस ले।

इसीलिए वो एक चतुर मकड़ी की तरह पहले से ही राज के गिर्द प्यार-मोहब्बत का मजबूत जाल बुन देना चाहती थी। इसी असमंजस में राज ने कुछ दिन और गुजाए दिए। हालांकि ये दिन उसके कई बरसों की तरह गुजरे। क्योंकि गुजरने वाला हर पल उसके जिगरी दोस्त को मौत की तरफ धकेल रहा था।

और राज.... सतीश का जिगरी दोस्त हैरान था कि करे तो क्या करे? किस तरह उस बदकिस्मत को मौत के मुंह में जाने से रोके? किस तरह उस खूबसूरत नागिन से अपने दोस्त की जान छीने?

सोचते-सोचते राज का दिमाग थक गया, लेकिन उसकी समझ में यह राज नहीं आया कि आखिर ज्योति के पास ऐसी कौन की गुप्त शक्ति है जिसके जरिये वो अपने शिकार को इस तरह घुला-घुला कर मार देती है?

कई बार ज्योति की अनुपस्थिति में राज ने उसके कमरे की भी तलाशी ली। उसकी आलमारियों को, बक्सों को, बॉक्स बाले बैड को टटोल-टटोल कर देखा कि शायद कोई ऐसी चीज मिल जाए जिससे इस उलझी हुई हुई डोर का कोई सिरा हाथ आ जाए।

लेकिन उसे एक कण भी ऐसा न मिला जो उसे आगे बढ़ने को कोई रास्ता सुझा सके या उसके शक को पुख्ता कर सके। ज्योति के सामान में उसक कपड़े, मेकअप का सामान और कीमती जेवर ही थे, इसके सिवा कुछ नहीं था। बहुत कोशिश के बावजूद उसे कोई ऐसी डायरी कोई लेख, कोई चिी-पत्र नहीं मिली जो इस रहस्य पर से पर्दा हटा सके।

न ही राज को किसी ऐसे रसायन की छोटी-सी शीशी मिली जिसे वो जहर समझ लेता, ने ही कोई ऐसी चीज उसके हाथ लगी जिसे जादू-टोने से सम्बन्धित समझा जाए।

यानि एक चालाक मुजरिम की तरह उसने अपने पीछे कोई निशान नहीं छोड़ रखा था, जिसके जरिए किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके।

इस दौरान एक मामूली सी घटना घटी, जिसने राज को और ज्यादा उलझा दिया।
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