Incest सपना-या-हकीकत

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rajan
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Re: Incest सपना-या-हकीकत

Post by rajan »

शाम के 3 बज गए थे और आज मैने मा को चोदा नही था मैने मा को इशारा भी किया तो वो मुस्कुरा कर अनुज की तरफ इशारा करते हुए ना बोल देती ।

मै थोडा उदास चेहरा बना कर उनसे गुजारिश करने लगा
मा मुस्करा कर - अनुज बेटा ऐसा कर अब तू जा थोडा टहल ले

अनुज दुकान मे लगी घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हुए इधर उधर घुमा रहा था - नही मा मुझे यही अच्छा लग रहा है

मा - अरे बेटा थोडा बहुत घुमना खेलना भी चाहिये जिससे देह मे ताकत बनी रहती है ,,, जा थोडी देर अपने दोस्तो के साथ खेल ले

अनुज उदास सा मुह बनाकर -- नही मा मै नही जाऊंगा ,,,वो सब बहुत गंदे है
मा - क्या मतलब गंदे है
अनुज रुआस सा होकर - नही मा मै नही ब्ताऊगा बस

मा थोडा सख्ती से अनुज के कन्धे हिला कर - बता क्या बात है अनुज

अनुज कुर्सी पर बैठे बैठे गरदन नीची किये आसू बहा रहा था - लेकिन कुछ बोला नही

वही मै अनुज के गंदे दोस्तो का मतलब समझ गया था ।
समय के साथ अनुज बड़ा हो गया था और इस साल 9वी मे पढ भी रहा था तो मुहल्ले और स्कूल के लडके कैसे आपस मे बाते करते है मै समझ सकता था ।
ये वो दौर होता है जब बच्चे अपने युवा अवस्था मे अपने कदम रखते है । उनके तन मन मे यौवन का बीज फलना सुरु हो जाता है , लिंग के आस पास झाटो के रोए निकलना शुरु हो जाते है , हल्की मूछ के बाल भी दिखने लगते है ।
इसी समय लड़को को अपने हमउम्र की लड़कियो के प्रति उनकी शर्ट और कुर्ती मे निकले छातियो के उभारो पर आकर्षण होने लगता है ,,,वही पहली महवारी मे आते ही लडकीया अपने से बडे दिदी या क्लास की लडकियो के संपर्क मे आकर समय से पूर्व ही सजना सवरना शुरू कर देती है। जिनसे इस दौरान लड़को मे होड़ भी सुरु हो जाती है कि कौन किसकी है ।
वही दुसरी तरफ लडके गाव या एरिया के लोगो के संगत मे आकर सेक्स की बाते करना सुरु कर देते है । धीरे धीरे महज एक साल का अंतर एक नादान बच्चे को युवा वर्ग मे ला देता है ।
ये सब मेरे मासूम अनुज के साथ भी हो रहा था और पहले मेरे साथ भी हुआ था तो मै उसके दिल की बात समझ सकता था कि कैसे कोई लड़का सीधा सेक्स के मुद्दो पे बाते करे ।

लेकिन मा उसे बार बार सख्ती से बोल रही थी और वो बस सर निचे किये रो रहा था

मै - अरे मा रहने दो क्यू डाट रही हो ,,अच्छा है कि वो उन गंदे दोस्तो के साथ नही जाना चाहता था
मा - लेकिन राज

मै मा को इशारा करके बोला की मै बात करूँगा
मै - चलो अनुज जाओ तुम मुह धुल कर आओ फिर तुम्हे दुकान मे बैठना है मै कोचिंग जाऊंगा ना

अनुज मेरी बाते सुन के सर उपर किया तो उस्का चेहरा पुरा आसुओ से चखत गया था

अनुज - हा ठीक है भैया आता हू

फिर वो छत पर गया
मा - राज तुने मुझे रोका क्यू

मै - मा मै जानता हू वो क्या बात होगी जो अनुज नही बोल रहा है आपके सामने ,, याद मै जब इसकी उम्र का था तो मै भी आवारा दोस्तो का साथ छोड दिया था

मा - हा अचानक से कयू
मै मा को आश्व्त कर - वो मै बाद मे ब्ताऊगा और आज अनुज को लिवा कर मै नये घर सोने जाउँगा ताकि वो मुझे खुल कर अपनी बाते बताये ।

मा खुश होकर - ठीक है बेटा ,,, कितना ख्याल रखता है तू सबका

मै - मा वो मेरा ही भाई है और समय रहते मुझे उसे गलत रास्ते पे जाने से रोकना भी मेरा फर्ज है ।

मा - हा सही कह रहा है तू , और मुझे लग रहा है कि वो जरुर आवारा लड़को ने कुछ गलत बात बोली होगी तभी मेरा अनुज नही जाता है घुमने

मै - हो सकता है मा या नही भी , अब वो अनुज से बात करने पर पता चलेगी ।
मै - आप चिन्ता ना करे मै उसे समझा दूँगा ।

फिर अनुज निचे आया और मै तैयार होने उपर चला गया ।
और समय से दिदी के साथ कोचिंग चला गया
शाम को कोचिंग से घर आया तो पापा भी आ गये थे और दुकान मे मा से बाते कर रहे थे ।
मुझे आता देख पापा ने मुझे दुकान मे ही रोक लिया जबकि दिदी उपर चली गयी ।

मै - पापा क्या हुआ आप बात किये वो वकिल अंकल से
पापा - हा बेटा मैने तुम लोगो के जाने के बाद सुभाष से बात की थी और बोला है कि कागज विमला जी के नाम पर करवाने के लिए वो कागज कोर्ट मे पेश करना जरुरी है तभी बात आगे बढ़ पायेगी
मै थोडा सोच मे पड़ गया कि अब क्या होगा क्योकि कागज तो महेश के पास है और वो देगा नही इतनी आसानी से
मै - पापा लेकिन कागज तो उस महेश के पास है ना

पापा - हा बेटा पता है हमे
मै - तो फिर कैसे बात आगे बढेगी
पापा मुस्कुरा कर - वो मैने सोच लिया है बेटा तू फिकर ना कर

मै खुश होकर - तो बताओ ना पापा कैसे मिलेगा
पापा थोडा संकोच करते हुए कभी मुझे तो कभी मा को देख कर हस रहे थे

मै - प्लीज पापा बताओ ना
पापा - बेटा वो मै तुझे अभी नही बता सकता
मै - क्यू पापा
पापा - अरे भई समझ , सब कुछ तुझे नही जानना चाहिये ।
मै थोडा अजीब सा मुह बना कर - ऐसा क्या बात है जो मै नही जान सकता

पापा - देख बेटा ये काम निकलवाने के लिए मैने मेरे मित्र संजीव ठाकुर की मदद ली है

मै सन्जीव ठाकुर का नाम सुन कर चौक गया क्योकि उसके पिता राजीव ठाकुर चमनपुरा के सबसे बड़े और समृध इन्सान थे । चमनपुरा क्या आस पास जितनी बस्तिया थी वो सब के मालिकार भी थे । उसी राजीव ठाकुर की नातिन थी मालती जिसका दीवाना मेरा लंगोटीया यार चंदू था ।

मै खुश होकर भी अचरज मे - लेकिन संजीव ठाकुर से आपकी दोस्ती कैसे हुई

पापा थोडा गर्व और मुझे इत्मिनान देते हुए - बस कुछ रिश्तो की कोई वजह नही होती बेटा वो खुद ब खुद बन जाते है । मेरे जवानी के समय मे मैने एक बार संजीव भाई की जान बचाई थी ।

मै - लेकिन कब और कैसे
पापा - बेटा वो हुआ यू था कि संजीव भाई अपनी राजदूत मोटरसाइकिल से किसी रिश्तेदार के यहा से आ रहे थे लेकिन बरसात के मौसम मे उनकी गाड़ी चमनपुरा की सीमा पर फिसल गयी और उनको बहुत चोट लगी ।
उस दिन मै अपने बाऊजी के साथ खेत मे घान की रोपाई करवा कर लौट रहा था और मेरी नजर उन पे गयी तो वो राजदूत के नीचे दबे हुए थे और पैर मे काफी चोट लग गई थी ,,,उस दिन मैने और बाऊजी ने मिल के उनको पास के गाव के हस्पताल ले गये । बस उस दिन से उन्होने मुझे अपना दोस्त बना लिया

मै - वाह पापा
मै - तो फिर आगे बताओ ना कैसे ये काम होगा

पापा - वो सब तू मुझ पर छोड दे । किस्मत ने साथ दिया बस कुछ ही हफ्तो मे ये काम हो जायेगा ।

मै - लेकिन मुझे भी बताईये न
मा - बेटा जिद मत कर तेरे पापा ने जो सोचा होगा अच्छा ही सोचा होगा ।

मै खुश होकर - ठीक है पापा जैसा आपको ठीक लगे लेकिन काम खत्म होने के बाद मुझे बताना जरुर

पापा हस्ते हुए - अच्छा ठीक है अब जा फ्रेश हो ले और कुछ चाय नासता कर ले
फिर मै उपर चला गया और रात के खाने के बाद अनुज को भी अपने साथ लिवा कर नये घर पर सोने चला गया ।


देखते हैं दोस्तो कहानी आगे जाकर क्या मोड लेती है ।

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