बदनसीब रण्डी

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Re: बदनसीब रण्डी

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सबेरे 5 बजे चिराग की आंख खुली तो फुलवा उस पर अपना बदन रगड़ते हुए भूख से तिलमिला रही थी। हालांकि वह अब भी नींद में थी पर उसकी चूचियां नुकीली बन कर चिराग के सीने को खरोंचने की कोशिश कर रही थी। चिराग ने अपनी मां को नींद में ही आहें भरते हुए उसे पुकारते हुए पाया। चिराग को अब पता चला कि कल सुबह किस हालत में उठकर उसकी मां ने उसे राहत दिलाते हुए उससे आभार व्यक्त किया था।


चिराग ने अपनी मां को थोड़ा धकेला और वह अपनी पीठ के बल पैरों को फैलाए सो गई। फुलवा की चूत पर चिराग का तौलिया वीर्य से सुख कर चिपक गया था और अब मां की भूख से दुबारा भीग रहा था। चिराग ने धीरे से अपनी मां की चूत पर चिपका तौलिया उठाया तो चूत के फूले हुए होंठ खींच गए।


फुलवा ने नींद में आह भरी, “बेटा!!…”


चिराग को तय करना था कि वह अपनी मां को उठाकर उसे अपनी भूख के बारे में आगाह करते हुए उसे शर्मसार करे या अपनी मां की भूख उसकी नींद में पूरी कर उसे खुश रखे। चिराग ने अपनी मां को खुश रखना बेहतर समझते हुए अपने खड़े खंबे पर अपनी लार लगाकर चिकनाहट दी।


चिराग ने अपने बाएं हाथ से अपने ऊपरी हिस्से को हवा में उठाए रखते हुए अपने दाएं हाथ से लौड़े के सुपाड़े को अपनी मां की तेजी से गीली होती चूत के मुंह को छेड़ा। फुलवा ने उत्तेजना की आह के साथ अपनी कमर हिलाते हुए चिराग को पुकारा। फुलवा की चूत में से यौन रसों का बहाव होने लगा और चिराग का सुपाड़ा फुलवा के यौन रसों में भीग कर चमकने लगा।


चिराग से और रहा नहीं गया। चिराग ने अपने लौड़े पर हल्का जोर दिया और उसके लौड़े ने फुलवा की अनुभवी चूत में अपना दूसरा गोता लगाया। चिराग ने धीरे धीरे अपने लौड़े को अपनी मां की गरमी में भरा और फुलवा ने आह भरते हुए अपनी जांघों को खोल कर उसका स्वागत किया।


फुलवा अब भी गहरी नींद में सो रही थी। उसका चुधवाना बिलकुल उसकी यौन तड़प की तरह नैसर्गिक और बिना किसी सोच के था। चिराग ने अपने हाथ पर से वजन कम करते हुए अपनी कोहनियों पर आ गया।


चिराग के सीने के बाल उसकी मां की सक्त चूचियों को छू रहे थे। हर सांस के साथ उसकी मां की चूचियां उसके खुरतरे सीने पर से होती उत्तेजित हो जाती। फुलवा की चूचियां इस एहसास को पाने से उत्तेजित हो गईं और फुलवा की सांसे तेज हो गई। तेज सांसों से चूचियां और रगड़ने लगी और फुलवा को उत्तेजना और बढ़ती चली गई। चिराग अपनी मां की हालत देखता बिना हिले उसकी चूत में अपने लौड़े को सेंकता रहा।


फुलवा तेज सांसे लेते हुए अपनी कमर हिला कर अपनी चूत चुधवात हुए अपनी चुचियों को अपने बेटे के सीने पर रगड़ रही थी। अचरज की बात यह थी की वह अब भी सो रही थी।


फुलवा के सपने में चिराग उसे चोद रहा था पर उसके चेहरे के पीछे एक और धूसर चेहरा छुपा हुआ था। अपनी जवानी की भूख मिटाने की कोशिश करते हुए उस दूसरे चेहरे को पहचानना मुमकिन नहीं था और फुलवा बेबसी में अपना सर हिलाते हुए अपने प्रेमी से कुछ चाहती थी।


फुलवा को यकीन था की वह अपने जलते बदन को ठंडक और प्यासी जवानी की राहत चाहती थी। फुलवा ने अपने बेटे को पुकारा और झड़ गई। यौन उत्तेजना की सवारी से उतरते हुए फुलवा की नींद उड़ गई और उसे एहसास हुआ की वह सच में लौड़ा अपने अंदर लिए झड़ चुकी थी।


फुलवा हड़बड़ाकर जाग गई और उसने अपने बेटे को मुस्कुराते हुए देखा।


चिराग, “मैं पूछना चाहता हूं कि सपना कैसा था पर जान चुका हूं कि बहुत मजेदार था!”


फुलवा अपने बेटे की शैतानी पर हंस पड़ी और उसे हल्के से चाटा मारा।


फुलवा, “इस बात की तुम्हें सजा देनी होगी!”


फुलवा ने अपने पैरों को उठाकर अपनी एड़ियों को अपने बेटे की कमर के पीछे अटका दिया। इस से चिराग का लौड़ा फुलवा की गहराई में दब गया। फुलवा ने फिर चिराग को कोहनियों को धक्का देकर उसका पूरा वजन अपने ऊपर लेते हुए अपनी कोहनियों को चिराग के बगल के अंदर से घुमाकर उसके बालों को पकड़ा।


फुलवा चिराग की आंखों में देख कर, “आजादी चाहते हो?”


चिराग मुस्कुराकर, “नहीं!!… मुझे तो यही गुलामी पसंद है!… लेकिन मीटिंग की वजह से जाना होगा।”


फुलवा चिराग के होंठों को चूम कर, “मुझे भर दो और अपने लिए कुछ देर की रिहाई खरीद लो!”


चिराग फुलवा को चूमते हुए, “नेकी!!…
ऊंह!!…
और !!…
ऊंह!!…
पूछ!!…
ऊंह!!…
पूछ!!…
उम्म्ह!!…”


फुलवा ने अपने बेटे को अपनी जीभ से चूमते हुए उसकी आह में अपनी आह मिलाई। चिराग ने अपनी मां को चोद कर अपने जवानी की पूरी गर्मी को महसूस किया। रात में दो बार झड़कर भी वह सुबह बिलकुल तयार था। चिराग ने अपनी मां से चुम्बन तोड़ा और उसके गालों को चूमने लगा।


चिराग, “मां!!…
मां!!…
आह!!…
मां!!…
मां!!…
उम्न्ह!!…
ऊंह!!…
अन्ह्ह!!…
मां!!…
आन्ह!!…”


फुलवा भी अपनी चूत की गरमी में घिसते अपने बेटे के यौवन को महसूस कर दुबारा कामुत्तेजना की शिखर पर पहुंची। फुलवा ने चिराग को अपने सीने से लगाया और उसने अपने तेज झटके लगते हुए अपनी मां के कान की बालि को अपने दांतों में पकड़कर हल्के से दबाया।


कान में उठे हल्के दर्द ने फुलवा को यौन शिखर से गिरा दिया और वह रोते हुए चिराग को पुकारते हुए झड़ने लगी। फुलवा की चूत में से यौन रसों का झरना नदी बन कर चिराग के लौड़े को धोते हुए निचोड़ने लगा। चिराग अपनी जवानी के हाथों मजबूर अपनी मां को बाहों में भर कर तड़पते हुए झड़ने लगा।


चिराग की गरमी ने फुलवा की कोख में भरकर सेंकते हुए दोनों की जलती जवानी को ठंडा कर दिया। फुलवा अपने बेटे को अपने बदन पर चढ़ाकर पड़ी रही।


चिराग चुपके से फुलवा के कान में, “माफ करना मां! मैंने आप को भूख से तड़पते हुए देखा और आप की इजाजत के बगैर आप को…”


फुलवा मुस्कुराकर, “चोदने लगा? मजे लूटने आ गया? मौका देख कर चढ़ गया?”


चिराग को समझ नहीं आ रहा था कि उसकी मां उस पर गुस्सा है या नहीं।


चिराग, “आप मुझे जो सजा देना चाहो, दे दीजिए! बस मुझ पर गुस्सा नहीं होना!”


फुलवा, “एक सजा है! पर तुम उसे बर्दाश्त नहीं कर पाओगे!”


फुलवा ने अपने बेटे के कान को चूमा और चुपके से कहा,
“मेरी गांड़ मारो!!…”

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Re: बदनसीब रण्डी

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चिराग जवान था पर था तो मर्द ही। उसके लौड़े ने मां की बात मानने की पूरी कोशिश की पर नया माल बनाने के लिए गोटियों को वक्त चाहिए था और लौड़े को हार माननी पड़ी।


फुलवा चिराग का गिरा हुआ चेहरा देख कर हंस पड़ी। चिराग के गाल को चूमते हुए फुलवा ने उसकी चुटकी ली।


फुलवा, “शैतान कहीं के! कुछ तो शर्म करो! मुझे सुधारने निकले हो और खुद बिगड़ रहे हो? मेरे भोले आशिक जरा अपने बदन को वक्त दो की तुम्हारा उड़ाया पानी फिर बन जाए! एक और बात! अब हम प्रेमी हैं और हमारा एक दूसरे के बदन पर हक्क़ है पर अगर मैं या तुम रुको कहें तो दूसरे को रुकना होगा। मंजूर?”


चिराग अपनी मां की बात सुन कर शरमाया और मान भी गया। फुलवा फिर वापस नहाकर बाहर आई तो चिराग ने कुछ कपड़े बाहर निकाले थे।


फुलवा, “कहीं जा रहे हो?”


चिराग ने बताया की होटल में कसरत का कमरा है इस लिए दोनों को कसरत करने जाना है। फुलवा की भूख मिट चुकी थी और वह सच में कसरत करना चाहती थी।


दोनों T shirt और ट्रैक पैंट पहने कसरत करने गए तो वहां के लोगों को कसरत की खास पोशाक में पाया। चिराग और फुलवा बातें करते हुए अपनी कसरत करने लगे। बातों बातों में चिराग ने ठगने वाले व्यापारी से सौदे की बात की और फुलवा ने अपने अनुभव बताए।


SP किरण की मदद से जब फुलवा ने कैंटीन चलाया था तब एक सब्जीवाला उन्हें सब्जियां बहुत महंगी बेचने की कोशिश कर रहा था। दूसरा सब्जीवाला नही था तो फुलवा ने तरकीब इस्तमाल कर उसे ही ठग लिया। फिर उस सब्जीवाले ने कभी फुलवा के कैंटीन को तकलीफ नहीं दी। चिराग फुलवा की बात सुनकर सोच में पड़ गया।


1 घंटे तक अच्छे से कसरत करने के बाद मां बेटे रेस्टोरेंट में गए और नाश्ता किया। फुलवा ने juice और फल की प्लेट लेकर कल रात का देखा अपना रूप बदलने की ठानी। चिराग ने हमेशा की तरह दूध, उबले अंडे और पैनकेक लेकर अपनी मां के बने नाश्ते की तारीफ की।


मां बेटे को रेस्टोरेंट में देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि इन्हीं दोनों ने रात को क्या खेल खेले थे। चिराग ने अपनी मां से जल्दी जाते हुए उसे अकेले छोड़ने की माफी मांगी।


फुलवा चुपके से, “चिराग मुझे कुछ पैसे दे सकते हो? यहां तुम सब को सौ सौ रुपए देते हो। तुम्हारे जाने के बाद मुझे बाहर जाना पड़ा तो…”


चिराग ने अपनी मां के हाथ पर अपना हाथ रखा और मुस्कुराया।


चिराग, “मां यह पूरी जायदाद आपकी है! चलो मैं आप को क्रेडिट कार्ड इस्तमाल करना सिखाता हूं।”


चिराग ने रेस्टोरेंट का बिल चुकाते हुए फुलवा को कार्ड इस्तमाल करना सिखाया और कार्ड मां को देकर मीटिंग की तयारी में लग गया।


फुलवा ने तयार होकर निकले अपने सुंदर बेटे को गले लगाया और शुभ कामनाएं देकर भेजा। चिराग ने अपनी मां से वादा किया कि वह शाम को 6 बजे तक लौट आएगा।


फुलवा ने घड़ी में 9 बजते ही अपने अच्छे कपड़े पहने और होटल के दरवाजे के बगल में बनी बड़ी मेज पर गई। वहां की खूबसूरत लड़की ने मदद करनी चाही तो फुलवा ने अच्छे कपड़े खरीदने की दुकान पूछी। कुछ ही देर में एक गाड़ी फुलवा को लेकर एक चकाचौंध दुकानों की इमारत में गई। फुलवा ने लड़की के बताए दुकान का रास्ता पूंछा और वहां पहुंच गई।


Passion Dreams Boutique में कपड़ों से भरी खुली अलमारियां कतार में खड़ी थी। फुलवा हर बार एक सुंदर कपड़ा देख कर उसकी कीमत देखती और अचानक अपना हाथ पीछे कर लेती। फिर अपने आप को समझाकर दुबारा देखती। उसकी इस हरकत पर एक नजर पड़ी और वह औरत फुलवा की ओर बढ़ी।


औरत, “कुछ पसंद नहीं आ रहा?”


फुलवा संकोच करती, “असल में सब कुछ बहुत सुंदर है पर…”


औरत, “क्या हुआ?”


फुलवा शर्माकर डरते हुए, “मैंने कभी कपड़े खरीदे नहीं है! मुझे नहीं पता कैसे…”


औरत चौंककर, “कैसे मुमकिन है!!”


उस औरत का चेहरा इतना दोस्ताना और सच्चा था कि फुलवा उसे अपनी कहानी कुछ हद्द तक बताने लगी। फुलवा ने बताया की उसके बड़ा भाई उसके लिए बचपन में ही पैसा कमाने बाहर निकल गए। भाइयों ने पैसे कमाकर उसे 18वे साल लेने आने का वादा किया था। पर गरीब और अकेली लड़की को पहचान के आदमी ने भाइयों के शहर ले जाने के नाम पर कोठे पर बेचा। वहीं उसे बच्चा भी हुआ जो बाद में अनाथ पला बढ़ा। उसे एक कैद से दूसरे कैद में घुमाया गया जब एक दिन उसके जवान बेटे ने उसे ढूंढ कर बचाया। बाद में दोनों को पता चला की भाई एक्सीडेंट में गुजर चुके थे पर उन्होंने अपने दोस्त के पास उसके लिए कुछ पैसा छोड़ा था। अब फुलवा ने पहने कपड़े भी उसी दोस्त ने मदद करते हुए दिए कपड़े थे।


औरत के आंखों में आंसू थे पर होंठों पर निश्चय की मुस्कान।


औरत, “आप का बेटा किधर है?”


फुलवा, “उसे अपनी विरासत के साथ नई नौकरी मिली है। आज शाम तक वह मीटिंग में व्यस्त रहेगा!”


औरत, “फूलवाजी, मेरा नाम हनीफा है और मैं जानती हूं मर्दों के हाथों कैद होना कैसा होता है। आप मुझे एक दिन दीजिए और हम आपको बिकुल नया बना देंगे! सबसे पहले ब्यूटी पार्लर!!”


फुलवा, “लेकिन कपड़े?”


हनीफा हंसकर, “यह मेरी दुकान है! जब मैं चाहूं तब हमें कपड़े मिल सकते हैं!”


फुलवा को कुछ पता चलने से पहले उसे दूसरे दुकान के खास कमरे में ले जा कर उसके सारे कपड़े उतार दिए गए। फुलवा की बगलों और पैरों के बीच के जंगल को देख वहां की औरत कुछ बोली।


हनीफा, “बिना तराशे हुए हीरे को तुम्हारे हाथ में दोस्ती की वजह से दिया है! बोलो, कहीं और पूछूं?”


फुलवा के बगल के बालों और नीचे के बालों को हटाया गया तब तक वहां और तीन औरतें आ गई थी।


हनीफा, “फूलवाजी, इनसे मिलो! यह हैं मीना सोलंकी जो कुछ बड़े अस्पताल की मालिक हैं। यह हैं साफिया जो एक ऐसी कंपनी की साझेदार और चलाती हैं जो आप ना जाने तो बेहतर! (फुलवा चौंक गई और बाकी औरतें इस मजाक पर हंस पड़ी लेकिन किसी ने उसे गलत नहीं कहा) और आखिर में यह हैं रूबीना, मेरी मां!”


फुलवा चौंक कर, “मां?”


रूबीना अपने मंगलसूत्र को छू कर, “कम उम्र में निकाह कराया गया पर अब मैं अपने सच्चे प्यार के साथ हूं। आप को हमसे डरने की कोई जरूरत नहीं!”


बाकी का दिन पांच औरतों ने बातें करते, हंसते, चिढ़ाते और मर्द जात को गालियां देते हुए बिताया। फुलवा को सच में सहेलियां मिल गई जिन्होंने खुद दर्द, धोखा और प्यार पाया था। सब औरतों को जोड़ता एक मर्द था जो सबसे ज्यादा गलियों और किस्सों का हक्कदार था। जिसे सब दानव कहती थी पर उनके आवाज में दोस्ती और प्यार झलक रही थी।


फुलवा ने ब्यूटी पार्लर से वापस बुटीक में जाते हुए, “आप उसे दानव क्यों कहती हो?”


तीन औरतों ने आह भरते हुए अपनी नाभि के नीचे दबाया तो साफ़िया ने अपनी आंखें बंद कर मुंह बनाया।


साफ़िया, “आप को डरने की जरूरत नहीं! वह अब सब कुछ अपनी सौतेली बेटी को देकर खुद आराम की जिंदगी जी रहा है!”


बात वहां से जरूरी मुद्दों पर आ गई।


हनीफा, “फूलवाजी, आप को अपनी अंडरवियर अभी बदलनी होगी! जिसने भी इन्हें खरीदा है वह या तो अंधा था या आप को देखा ही नहीं था! आओ मेरे साथ!”


फुलवा को अपने बदन की नुमाइश करने की आदत थी पर जब एक छोटे कमरे में 4 औरतें मिलकर तय करें की क्या HOT और क्या NOT है तो जरा मुश्किल हो जाता है। शाम ढलते हुए फुलवा के पास न केवल उसे चाहिए थे वैसे कसरत के कपड़े थे पर उनके साथ रोज के इस्तमाल के लिए, घूमने के लिए, पार्टी के लिए, समारोह के लिए और हाथ लगे तो मर्द को रिझाने के लिए भी!


फुलवा के दिल की धड़कने तेज होने लगी थीं और उसका बदन गरमा रहा था जब उसने होटल में वापस कदम रखा। फुलवा नहीं जानती थी कि वह अपनी बीमारी से भूखी हो रही थी या अपने बेटे को सब दिखाने के लिए!


फुलवा ने अपने गॉगल साफिया की तरह अपने सर पर रखे और अपने सेट किए बालों को रूबीना की तरह लहराते हुए होटल की मेज पर अपनी चाबी मांगी तो वहां के आदमी की आंखें लगभग बाहर निकल आईं। किसी ने उसे धक्का देते हुए फुलवा का सामान उठाते हुए बताया की सर ऊपर जा चुके हैं। फुलवा ने उसे एक मुस्कान देते हुए मीना की तरह इठलाते हुए लिफ्ट में चढ़ गई। आदमी फुलवा को किसी जानी मानी मॉडलिंग एजेंसी के बारे में बता रहा था जब चिराग ने मुस्कुराते हुए रूम का दरवाजा खोला।


चिराग के चेहरे पर आए हैरानी के भाव देख कर फुलवा के अंदर की औरत इतराई। चिराग ने आदमी के हाथ में 100 की नोट थमाकर फुलवा को अंदर खींच लिया।


चिराग ने अपनी मां को देखा और देखता रह गया। फुलवा ने चिराग के गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा,
“बेटा भूख लगी है। कुछ खिला सकते हो?”

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Re: बदनसीब रण्डी

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चिराग, “ओह मां, माफ करना…”

चिराग ने अपनी मां के गालों को छू कर चुपके से, “मुझे डर है कि मैं आप को छू कर आप को चोट लगाऊंगा!”


फुलवा चिढ़ाते हुए कमरे में जाते हुए, “आजमा कर देख लो! लेकिन शायद मेरे बच्चे को तयार होने से पहले कुछ और आराम की जरूरत है! क्यों न मैं उस समान उठने वाले को थोड़ी देर के लिए…
आह!!…
मां!!… ”

चिराग ने अपनी मां को उठाकर सजाए हुए बेड पर पटक दिया। फुलवा बेड पर अपने पेट के बल गिर गई और उसकी साड़ी का पल्लू गिर गया।

फुलवा चौंक कर पीछे देखते हुए, “बेटा क्या कर रहे हो?”


चिराग ने आव देखा ना ताव और झट से अपनी पैंट को घुटनों तक उतार कर अपनी मां पर कूद पड़ा। फुलवा ने बेड पर से उठने की कोशिश की पर साड़ी में उसे पहले अपनी कलाई और घुटनों पर खड़ा होना पड़ा। चिराग ने तुरंत एक तकिया अपनी मां के पेट पर दबाते हुए उसे पीछे से धक्का दिया। फुलवा वापस बेड पर गिर गई पर अब उसकी कमर कुछ हद्द तक हवा में उठी हुई थी।


चिराग ने अपनी मां के संवारे हुए बालों को अपनी बाईं मुट्ठी में पकड़ कर खींचा और वह चीख पड़ी। फुलवा की साड़ी को चिराग के दाएं हाथ ने कमर तक उठा लिया था तो फुलवा को अपनी खुली टांगों पर AC की सर्द हवा चुभ गई।


फुलवा ने अपनी फैली हुई टांगें मारते हुए चिराग को रोकने की कोशिश की। चिराग ने अपनी मां की बातों को नजरंदाज करते हुए उसकी नई पतली लगभग पारदर्शी पैंटी को उसके दाएं कूल्हे पर सरका दिया।


फुलवा, “नही!!…
नहीं!!…
बेटा!!…
नही!!…
दर्द होगा!!…
नही!!…
बेटा नहीं!!…
मैं तुम्हारी…
मां!!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!…”


चिराग का पूरा सुखा लौड़ा एक ही चाप में फुलवा की भूखी गीली चूत में समा गया। फुलवा की आंखों के सामने तारे चमकने लगे। इस मीठे दर्द से फुलवा कराह उठी और उसके कूल्हे उठ कर चिराग को जगह देने लगे।


चिराग का लौड़ा इस तरह फुलवा को चोदते हुए उसकी चूत के सामने वाले हिस्से को सुपाड़े से रगड़ता उसे मज़ा दे रहा था पर चिराग को चूत में कुछ अधूरा एहसास हो रहा था। चिराग ने अपनी मां के यौन रसों से भीगे लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकाल कर जड़ तक पेलते हुए अपनी मां की चीखों को आहें बना दिया था।


फुलवा ने मुड़कर अपने बेटे को देखते हुए, “बेटा!!…
इतना गुस्सा…
आह!!!…
आ!!…
आ!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!!…
हा!!…
हा!!…
हा!!…”


चिराग ने अपनी मां की आंखों में देखते हुए अपने लौड़े की दिशा कुछ कोन से बदल दी जिस से चिराग का पूरा लौड़ा अपनी पहली गांड़ में दब गया।


फुलवा, “नहीं!!…
नही!!…
नही!!…
यह तूने क्या किया…
आ!!…
आ!!…
आह!!…
बेटा!!…
आ!!…
आ!!…
अन्ह!!…”


चिराग ने अपनी मां की गांड़ को आराम का मौका नहीं दिया। चिराग ने अपने लौड़े को सुपाड़े से जड़ तक तेजी से पेलना जारी रखा। चिराग जब भी अपने लौड़े की जड़ को फुलवा की गांड़ में दबाता फुलवा के नरम गद्देदार गोले दबकर उसकी नई पैंटी खींच जाती। पैंटी की मुड़ी हुई किनार फुलवा की बहती हुई चूत के ऊपर उभरे हुए दाने का रगड़ती और फुलवा बेबसी में उत्तेजित होकर रो पड़ती। फुलवा की गांड़ आज कई सालों बाद चुधते हुए भी बिना किसी मदद के फुलवा को झड़ने के लिए मजबूर कर रही थी।


फुलवा बेबसी में रोते हुए, “नहीं!!…
नही बेटा!!…
नही!!…
नहीं!!…
न…
ई!!…
ई!!…
ई!!…
ईई!!…
आ!!…
आह!!…
आह!!…
हा!!…
हा!!…
हां!!…
हां!!…
हां बेटा!!…
बेटा!!…
बे…
आअंह…”

फुलवा तकिए पर झड़ते हुए बेसुध होकर गिर गई और उसकी गांड़ ने चिराग को निचोड़ते हुए ऐसे कस लिया की बेचारा झड़ते हुए एक भी बूंद बहा नहीं पाया।


चिराग ने अपने लौड़े को अपनी मां की गांड़ में दबाए रखते हुए उसे घुमाया। फुलवा अब तकिए पर अपनी गांड़ रखे पीठ के बल लेटी हुई थी।


चिराग ने अपने लौड़े को फुलवा की गांड़ में रख कर अपने स्खलन पर काबू रखते हुए अपनी मां का नया ब्लाउज खोल। ब्लाउज के अंदर की लगभग पारदर्शी ब्रा में से फुलवा की चूचियां ललचाते तरीके से छुपी हुई थीं। चिराग को यह बात कतई मंजूर नहीं थी।


चिराग ने अपनी मां की ब्रा के कप को नीचे खींचते हुए उसकी लज्जतदार चूचियों को आजाद किया। चिराग ने फिर अपनी मां के पैरों को उठाते हुए उसके घुटनों को अपनी कोहनियों में फंसाया और खुद अपनी मां के बदन पर लेट गया।


फुलवा के पैर फैल कर उठ गए। फुलवा की गांड़ और खुलकर उठ गई। फुलवा की आह निकल गई और आंखें खुल गईं।


फुलवा चिराग को अपने चेहरे के करीब देखते हुए, “क्या कर रहे हो बेटा?”


चिराग अच्छे बेटे की तरह, “मैं आप की गांड़ मार रहा हूं, मां!!”


फुलवा, “बेटा मैं तेरी मां…
आ!!…
आ!!…
आह!!…
हूं!!…”

चिराग, “हां…
मां…
इसी…
लिए…
आप…
की…
गांड…
पर…
कब्जा…
कर…
रहा…
हूं!…”


फुलवा ने अपने बेटे के बालों को पकड़ कर, “पर…
यह…
आह!…
गलत…
उम्म्म!!…
गलत…
ऊंह!!…
है!…
बेटा!!…
नहीं!!…
नही!!…
न…
ई!!…
ई!!…
ईई!!!…
ईह!!…
आह!!…
आह!!…
आँह!!…
हा!!…
हा!!…
हां!!…
हां!!…
हां!!…
आह!!…
हां!!…”


फुलवा अपने यौन शिखर पर दुबारा उड़ने लगी और आखिर में चीख कर बेहोश हो गई। फुलवा की गांड़ दुबारा चिराग के लौड़े को कस कर निचोडते हुए ढीली पड़ गई।


चिराग का लौड़ा फट पड़ा और उसके गोटियों ने अपना बना माल फुलवा की भूखी आतों में उड़ेल दिया। चिराग अपनी मां के घुटनों को अपनी कोहनियों में लिए उसे अपनी बांहों में भर कर उसकी चूचियों को चूसता पड़ा रहा।


फुलवा ने होश में आते हुए आह भरी तो चिराग ने अपनी मां के पैरों को आज़ाद किया। फुलवा अपने बेटे को अपनी चूचियां चूसते हुए महसूस कर उसके बालों में उंगलियां फेरते पड़ी रही।


चिराग डरकर, “मां, मैंने आप को चोट पहुंचाई! आप के साथ जबरदस्ती की! आप बस रुकने को कहती तो…”


फुलवा ने चिराग को हल्के से चाटा मारा।


फुलवा आह भरते हुए, “हर औरत चाहती है कि उसका मर्द उसके ऊपर अपना हक़ बताए हमें थोड़ा चीखने चिल्लाने पर मजबूर करे!”


चिराग सोचते हुए, “पर आपने तो कहा था की औरत की इजाजत के बगैर…”


फुलवा हंस पड़ी और चिराग के माथे को चूम लिया।


फुलवा, “वह भी सच है। हम ऐसी ही हैं! और हमें कब कैसा मन हो रहा है यही असली पहेली है!”


चिराग का हक्का बक्का चेहरा देख कर फुलवा दिल खोल कर हंस पड़ी और उसे एक ओर धक्का देकर बेड पर से उठ गई। चिराग बेड पर कुछ देर पड़ा रहा और फिर अपनी मां को देखने लगा।


फुलवा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपनी गांड़ धोने के बाद नए ब्रा पैंटी का सेट निकाला।


चिराग, “मां, यह सारे कपड़े, मेकअप…
कैसे?”


फुलवा ने एक और पारदर्शी जोड़ी पहनते हुए। मैं कसरत करने के कपड़े खरीदने गई और कुछ औरतों से दोस्ती की! कैसे लग रही हूं?”


चिराग मुस्कुराकर, “अगर इस बात का मुझे जवाब देना पड़ेगा तो पिछला आधा घंटा बिलकुल बेकार गया!”


चिराग को फुलवा ने चूमा और चिराग कराह उठा।


चिराग, “रुको मां!! (फुलवा अचरज में रुक गई) मैंने हमारे लिए फिल्म के टिकट निकाले हैं! अभी निकले तो खाना खाकर फिल्म देख सकते हैं!”


फुलवा ने चिराग के कंधे पर चाटा मारा।


फुलवा, “तुमने मेरी हालत बिगाड़ दी! उसे ठीक करने में एक घंटा जायेगा! खाना ऊपर मंगा लो! तब तक मैं तयार हो जाती हूं। (जरा रुक कर) क्या पहनूं?”


चिराग शैतानी मुस्कान से, “कुछ ऐसा जिसे देख कर सिनेमा हॉल में भगदड़ मच जाए!”


फुलवा ने अपने शरारती बेटे को शरारती मुस्कान दी और सजने लगी।

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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: बदनसीब रण्डी

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फुलवा के साथ जब चिराग थिएटर पहुंचा तो वहां लोगों को उन्हें देखते रहने के अलावा कोई काम नहीं सूझा। फुलवा समझ चुकी थी कि मोहनजी ने जब उन दोनों के लिए घर बनाया उन्हें चिराग के बारे में कुछ अंदाज तो था पर फुलवा की जेल की तस्वीरें छोड़ कोई तरीका नहीं था।


फिल्म की कहानी कुछ खास नहीं थी पर नाच गाने के हावभाव देखकर फुलवा को हंसी आई। शोर शराबे में 3 घंटे आराम से गुजर जाते अगर बीच में ही फुलवा ने झुककर चिराग के कान में भूख लगने की बात न कही होती। अगला एक घंटा दोनों एक दूसरे को छू कर अपनी आग भड़काते रहे। अगर फुलवा की हल्की आह निकल जाती तो वह अक्सर फिल्म के शोर में दब जाती। फिल्म खत्म हुई तो मां बेटे को कहानी की भनक भी नहीं थी।


जाहिर सी बात थी कि जब दोनों के पीछे होटल का कमरा बंद हुआ तो भूखी शेरनी अपने खाने पर झपट पड़ी। शेरनी ने अपने शिकार को नीचे दबाकर दबोच लिया और रास्ते में आती रुकावटों को हटाकर अपनी भूख मिटाने लगी। शिकार ने पहले कुछ हाथापाई कर नियंत्रण पाने की कोशिश की पर आखिर में अपनी हार मान कर शेरनी का निवाला बना।


शेरनी की भूख मिटने तक कमरे में से सिर्फ जंगली गुर्राहट और शिकार की आहें बन रही थी। जब शेरनी का पेट शिकार की गर्मी से भर गया तब शेरनी ने जीत की आह भरते हुए सुस्ताना शुरू किया। शिकार बेचारा कब का पस्त होकर बस अपनी सांसे गिन रहा था।


फुलवा ने अपने बेटे की सीने पर सर रखकर उसके गले को चूमा। चिराग ने अपनी मां के पसीने से भीगे बदन को अपनी बाहों में लेकर उसके बालों को चूमा।


चिराग, “मां, अगर बुरा न मानो तो एक बात कहूं?”


फुलवा चिराग की धड़कने सुनते हुए, “बोलो बेटा!”


चिराग, “फर्श बहुत ठंडी है। क्या हम बिस्तर पर जाएं?”


दोनों ने हंसते हुए अपने बिखरे हुए कपड़े उठाए और बिस्तर में लेट गए।


फुलवा चिराग के सीने पर हाथ घुमाते हुए, “मीटिंग कैसी हुई?”


चिराग अपनी मां को बाहों में लेकर, “मजेदार!”


फुलवा चौंक कर, “मतलब?”


चिराग मां के माथे को चूम कर, “गंगाराम डाइज के मालिक को मिलने से पहले मैं बाजार में घुमा और कच्चेमाल की कीमत जानी। फिर मशीन की कीमत, चलाने का खर्चा और बाकी लागत को गिनकर सही हिसाब से मुनाफा जोड़ा।”


फुलवा बड़ी उत्सुकता से अपने बेटे से मीटिंग के किस्से सुन रही थी।


चिराग, “गंगाराम डाइज का मालिक साढ़े छह फीट का सांड जैसा आदमी है। उसे मिलकर कर लगा जैसे कोई बच्चा जो एक ही खेल से ऊब गया हो पर फिर भी खेल रहा हो।”


फुलवा, “कैसा खेल?”


चिराग सोचते हुए, “आसान जवाब होगा पैसा पर असलियत में लोग! यह आदमी इंसान की कमजोरियां पहचानकर उन्हें हराता है। पैसा तो बस हार जीत की निशानी है!”


फुलवा अपनी हथेली पर सर रखकर देखते हुए, “तुम हारे?”


चिराग मुस्कुराया, “उसकी भी एक कमजोरी है! वह खेल में इतना खो जाता है कि वह सिर्फ एक बात पर ध्यान केंद्रित करता है। मैं मुद्दे बदलता रहा! कभी डाई की कीमत, कभी ट्रांसपोर्ट तो कभी स्पेयर पार्ट्स। कॉन्ट्रैक्ट लिखे गए तब तक उसने मेरी तय कीमत पर डाइज बेची और अगले 3 साल स्पेयर पार्ट्स को तय कीमत पर देना भी मान गया।”


फुलवा मुस्कुराते हुए, “इतनी आसानी से हार गया?”


चिराग नटखट मुस्कान से, “पर उसने अपनी असली चाल चली नहीं थी! बीच में एक बार उस से मिलने उसकी बेटी आई थी। 27 साल की है पर कोई बोल के दिखाए की उसके 2 बच्चे हैं! जब उसे यह पता चला कि मैंने उसे हराया तो वह खुश हो गया। बोला की बच्चे होने के बाद दामाद बेटी से अच्छे पति का बर्ताव नहीं करता। अगर मैं उसकी बेटी को दो दिन की खुशी दूं तो वह मुझे वापस जाने के लिए अपनी 3 करोड़ रूपए की गाड़ी देगा!”


फुलवा का हाथ फिसला और वह बेड पर गिर गई।


फुलवा चौंक कर, “उसने तुम्हें 2 रात के लिए 3 करोड़ रुपए दिए!! क्या हुआ है बेटी को?”


चिराग दूर देखते हुए, “क्या कहूं मां! उसे ईश्वर ने छुट्टी लेकर तराशा है! कुदरत ने ममता से पकाया है! इतनी कम उम्र में अपने पिता के पूरे कारोबार की एक छत्र मल्लिका बनी है बस अपनी बेरहम अकल और ठोस ईमानदारी के जोर पर! मां, बस इतना समझ लो कि मानव शाह को मना करना शायद इस जिंदगी का सबसे घाटे का सौदा होगा!”


फुलवा जल भुन उठी और उसने ने चिराग के कंधे को काटते हुए उसकी गोटियां दबाई।


चिराग चीख पड़ा, “मां!!…
मां!!…
मैंने मना किया ना!!…”


फुलवा ईर्षा से, “इतना दुख हो रहा है तो हां कहा होता!”


चिराग ने अपनी मां को चूमते हुए, “दानव सुधर जाए तो भी उसकी सारी बातों पर यकीन नहीं करते! दानव शाह के बारे में जानकारी जुटाकर ही मैं उस से मिलने गया था। गंगाराम उसके भाई का एक नाम था जो दानव की कृपा से उम्रकैद मना रहा है। भाई का कसूर था लालच! ऐसे आदमी से मिला शहद भी थोड़ा ही चखना चाहिए!”


फुलवा, “अगर वह इतना बुरा है तो मोहनजी ने तुम्हें क्यों भेजा? और उसने तुम्हें अपनी बेटी क्यों देनी चाही?”


चिराग ने अपनी रूठी हुई मां के नंगे बदन को सहलाकर उसे मानते हुए, “अमीर लोगों की आदतें समझना मुश्किल है! शायद मैं गधा हूं या शायद यह कोई इम्तिहान है? कल हमें खाने पर बुलाया है तब तुम बता देना!”


फुलवा सोचते हुए, “दानव मानव शाह…
सुधर गया है…
बेटी को जायदाद दे दी…”

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Re: बदनसीब रण्डी

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