"मैं जानती हूँ। मुझे काला चिराग ने सबकुछ बता दिया है। पूरी आप बीती सुना दी है आपकी...।"
"काला चिराग बहुत ही नेकदिल आटमी है। वह मुझसे आकर मिला था और उसी ने मुझे बारे में बताया है... तुम्हारे आने की इत्तला दी थी और अब पहले जब तुम यहां आइ धी और अन्दर आने की बजाय वापस पलट गई थीं तो में तुम्हें अन्दर से देख रहा था। मैंने तुम्हें देखकर ही कहा था कि डरों मत, अन्दर आ जाओ। लेकिन अन्दर नहीं आई थी। शायद तुम्हें काले चिराग ने अन्दर आने रोक दिया था और तुम्हें अपने साथ ले गया था। मैं जानता हूँ कि उसने तुम्हें अन्दर आन से क्यों रोका था...।" इन्द्रजीत बहुत धीरे-धीरे बोल रहा था। जैसे बरसों का मरीज हो वह और .उससे बोला न जा रहा हो।
"सच कहूँ भैया! मुझे उसकी यह हरकत बिल्कुल अच्छी नहीं लगी थी लेकिन अब सोचती हूँ कि उसने मुझे अपने साथ ले जाकर अच्छा ही किया था। अगर में आपके बारे में सबकुछ जानने के बिना ही आपको देख लेती तो मुझे तीव्र दिमाग शॉक लगना था। खुश तो खैर में अब भी नहीं हूँ। आपका यह सूखा हाथ आपके स्वास्थ्य का पता दे रहा है। खैर, कोई बात नहीं। मैं अब आपको अपने साथ ले जाऊंगी।"
" शीना एक बात बताओ। तुम्हारा यह नाम किसने रखा... जरूर दादा जी की ख्याहिश पर ही रखा गया होगा। पापा- दादा जी की इस ख्वाहिश का जिक्र अक्सर किया करते थे कि वो अपनी पोती का नाम शीना रखना चाहते थे।"
"हां, भैया ! मेरा यह नाम उन्हीं की ख्याहिश पर रखा गया था।" रेखा ने बताया, लेकिन अब मेरा नाम शीना नहीं... रेखा है। मुझे शीना कोई नही कहता खुद मुझे भी मालूम नहीं था कि मेरा नाम शीना है।
'अच्छा! हैरत है।'
"मैं जब अपनी कहानी सुनाऊंगी तो आप और भी हैरान रह जाएंगे। आपके लापता हो जाने के बाद पापा एकदम सहम गये थे। उन्होंने चाचा के डर से मुझे कभी अपनी बेटी नहीं कहा। मैं गैरों में पली-बड़ी... इसलिए मेरा नाम भी बदल दिया गया। पापा ने मेरे लिए बड़ी कुर्बानी दी...।" रेखा का स्वर भर्रा गया था।
"कैसे हैं पापा और मम्मी का क्या हाल है। मम्मी तो मेरी गुमशदगी पर रो-रो कर पागल ही हो गई होंगी।"
रेखा के दिल में आया कि बता दे कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं पर फिर यह सोचकर रुक गई कि अभी यह खबर इन्द्र के लिए तीव्र सदमे का कारण बन जाएगी पहले ही सूखकर दृष्टियों का ढांचा बना हुआ है-मां-बाप की मौत की सूचना उसे मिट्टी का ढेर बना देगी।
"वे दोनों सकुशल हैं, भैया!" उसने सफेद झूठ बोला- "और आपको बहुत याद करते हैं।"
" और वो शैतान... कमीना शख्स?" इन्द्र के लहजे में नफरत भर आई।
"कौन? चाचा रमाकांत...?"
"हां, उसी की बात कर रहा हूँ।"
"वह हमारे प्रतिशोध का इंतजार कर रहा है।"
इन्द्रजीत भड़ककर बोला- "ठीक कहा तुमने रेखा । तुम देखोगी मैं उससे ऐसा इंतकाम लूंगा कि उसकी रूह तक काप जाएगी।"
रेखा सजल आंखों से उसे देखने लगी। इन्द्रजीत अभी तक पूरी तरह चादर ओढ़े बैठा था। बस, उसकी सिर्फ एक आंख जरूर दिखाई दे रही थी। रेखा समझ नहीं पा रही थी कि उसने अपना चेहरा चादर में क्यों छिपा रखा है।
"भाई, एक बात पूछूं?" रेखा बोली।
"हां, पूछो।"
"आप बुरा तो नहीं मानोगे?"
स्वाहा
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Re: स्वाहा
"नहीं, हर्गिज नहीं...।"
"यह आपने अपना चेहरा चादर में क्यों छिपाया हुआ है?"
"वह हवा लगती हैं ना, उससे बचने के लिए।" इन्द्र ने शायद बात बनाने की कोशीश को था।
"लेकिन झोंपड़ी मे तो इस वक्त काफी गर्मी हो रही है और आप हैं कि न केवल चादर ओढ़े वैठें हैं बल्कि अपना मुंह भी ढक रखा है भैया ! अपने चेहरे से चादर हटाईये न करा अपनी बहन को चेहरा भी नहीं दिखायेंगे?" रेखा बेहद 'जज्बाती अंदाज में बोली रेखा की इस ख्याहिश पर इन्द्रजीत भीतर ही भीतर कांप उठा। वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी बहन को किस तरह बताए कि अब उसका चेहरा देखने लायक ही नहीं रहा है। एक वक्त था लड़कियां उसका चेहरा देखते नहीं थकती थीं... नजरें हटाना भी भूल जाती थीं और अब वह वक्त आ गया था कि आज अगर कोई लड़की उसका चेहरा देखती तो फिर जीवन भर न देखने की कसम खा लेती।
हां ऐसा ही हो गया था उसका चेहरा।
"रेखा, अगर तुम मेरा चेहरा न ही देखो तो अच्छा है।" इन्द्रजीत ने व्यथित लहजे में जैसे अनुरोध किया था।.
"क्यों आखिर... मैं अपने भाई का चेहरा क्यों न देखूं? क्या हुआ है आपके चेहरे को ? चादर हटाएं...।" कहते हुए रेखा ने चादर की तरफ हाथ भी बढ़ा दिया था।
"पछताओगी।" कराहती सी आवाज में बोला था इन्द्र ।
"मेरा दिल पत्थर का है।" रेखा उसका आशय समझकर बोली- "प्लीज चादर हटाने दें भैया!"
"अच्छा, ठहरो मैं खुद उतारता हूँ चादर सिर से...।"
"ठीक है, हटाएं...।" रेखा ने अपने हाथ गिरा लिए।
और अब इन्द्रजीत ने अपने दोनों हाथ चादर से निकाले और फिर अपने चेहरे से घूंघट उठा दिया।
उसका चेहरा देखकर रेखा की चींख निकल गई।
इन्द्रजीत ने फौरन ही अपना चेहरा दोबारा ढांप लिया और कांपते हुए व्यथित स्वर में बोला- "मैंने तुमसे कहा था न कि मेरा चेहरा मत देखो। मगर तुम नहीं मानी।"
"यह... यह सब क्या है, भैया! यह आपके चेहरे को क्या हुआ है?" रेखा की आंखों से आंसू छलक आए थे।
इन्द्रजीत का आधा चेहरा बिल्कुल ठीक था लेकिन आधा चेहरा किसी दीमक लगी लकड़ी की तरह हा गया था। मांस में छोटे-बड़े बेशुमार सुराख थे और यूं लगता था जैसे हाथ लगाने पर आधा चेहरा झड़कर नीचे गिर जाएगा।
"मैं कुछ नहीं जानता रेखा, मेरी बहन ! मैं तो बस जिन्दगी का श्राप काट रहा हूँ।" इन्द्र का गला भर आया था, "जाने किस जन्म के पापों का प्रकोप है यह। "
"मेरा जी चाह रहा है कि उस कमीनी बकाल को कत्ल कर दूं।" रेखा अपने आसूं साफ करते हुए बोली। वह सम्भल- चुकी थी और दुःख रोष में बदल चुका था।
"उसे कत्ल करना इतना आसान नहीं है। फिर में तुम्हें उसे कत्ल करने भी नहीं दूंगा।" यह काले चिराग की आवाज
थी।
रेखा ने पीछे मुड़कर देखा तो वह उसके पीछे खड़ा हुआ था। अंदर आते हुए उसने रेखा की बात सुन ली थी। "आप जरा देखें तो उसने भैया की क्या दुर्गत बना रखी है। क्या इसके बाद भी उसे जिंदा रहने का हक ?"
"तुम ठीक कहती हो । उसका यह अपराध वास्तव में ही बहुत बड़ा है। बड़ा और जघन्य ! वह इसी योग्य है कि उसका
"यह आपने अपना चेहरा चादर में क्यों छिपाया हुआ है?"
"वह हवा लगती हैं ना, उससे बचने के लिए।" इन्द्र ने शायद बात बनाने की कोशीश को था।
"लेकिन झोंपड़ी मे तो इस वक्त काफी गर्मी हो रही है और आप हैं कि न केवल चादर ओढ़े वैठें हैं बल्कि अपना मुंह भी ढक रखा है भैया ! अपने चेहरे से चादर हटाईये न करा अपनी बहन को चेहरा भी नहीं दिखायेंगे?" रेखा बेहद 'जज्बाती अंदाज में बोली रेखा की इस ख्याहिश पर इन्द्रजीत भीतर ही भीतर कांप उठा। वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी बहन को किस तरह बताए कि अब उसका चेहरा देखने लायक ही नहीं रहा है। एक वक्त था लड़कियां उसका चेहरा देखते नहीं थकती थीं... नजरें हटाना भी भूल जाती थीं और अब वह वक्त आ गया था कि आज अगर कोई लड़की उसका चेहरा देखती तो फिर जीवन भर न देखने की कसम खा लेती।
हां ऐसा ही हो गया था उसका चेहरा।
"रेखा, अगर तुम मेरा चेहरा न ही देखो तो अच्छा है।" इन्द्रजीत ने व्यथित लहजे में जैसे अनुरोध किया था।.
"क्यों आखिर... मैं अपने भाई का चेहरा क्यों न देखूं? क्या हुआ है आपके चेहरे को ? चादर हटाएं...।" कहते हुए रेखा ने चादर की तरफ हाथ भी बढ़ा दिया था।
"पछताओगी।" कराहती सी आवाज में बोला था इन्द्र ।
"मेरा दिल पत्थर का है।" रेखा उसका आशय समझकर बोली- "प्लीज चादर हटाने दें भैया!"
"अच्छा, ठहरो मैं खुद उतारता हूँ चादर सिर से...।"
"ठीक है, हटाएं...।" रेखा ने अपने हाथ गिरा लिए।
और अब इन्द्रजीत ने अपने दोनों हाथ चादर से निकाले और फिर अपने चेहरे से घूंघट उठा दिया।
उसका चेहरा देखकर रेखा की चींख निकल गई।
इन्द्रजीत ने फौरन ही अपना चेहरा दोबारा ढांप लिया और कांपते हुए व्यथित स्वर में बोला- "मैंने तुमसे कहा था न कि मेरा चेहरा मत देखो। मगर तुम नहीं मानी।"
"यह... यह सब क्या है, भैया! यह आपके चेहरे को क्या हुआ है?" रेखा की आंखों से आंसू छलक आए थे।
इन्द्रजीत का आधा चेहरा बिल्कुल ठीक था लेकिन आधा चेहरा किसी दीमक लगी लकड़ी की तरह हा गया था। मांस में छोटे-बड़े बेशुमार सुराख थे और यूं लगता था जैसे हाथ लगाने पर आधा चेहरा झड़कर नीचे गिर जाएगा।
"मैं कुछ नहीं जानता रेखा, मेरी बहन ! मैं तो बस जिन्दगी का श्राप काट रहा हूँ।" इन्द्र का गला भर आया था, "जाने किस जन्म के पापों का प्रकोप है यह। "
"मेरा जी चाह रहा है कि उस कमीनी बकाल को कत्ल कर दूं।" रेखा अपने आसूं साफ करते हुए बोली। वह सम्भल- चुकी थी और दुःख रोष में बदल चुका था।
"उसे कत्ल करना इतना आसान नहीं है। फिर में तुम्हें उसे कत्ल करने भी नहीं दूंगा।" यह काले चिराग की आवाज
थी।
रेखा ने पीछे मुड़कर देखा तो वह उसके पीछे खड़ा हुआ था। अंदर आते हुए उसने रेखा की बात सुन ली थी। "आप जरा देखें तो उसने भैया की क्या दुर्गत बना रखी है। क्या इसके बाद भी उसे जिंदा रहने का हक ?"
"तुम ठीक कहती हो । उसका यह अपराध वास्तव में ही बहुत बड़ा है। बड़ा और जघन्य ! वह इसी योग्य है कि उसका
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Re: स्वाहा
कझ कर दिया जाए। लेकिन मेरी विवशता यह है कि मैं उससे प्रेम करता हूँ। मैं तो उसे कोई क्षति पहुंचाने की सोच भी नहीं सकता।"
"कुछ देखकर तो प्रेम किया होता।" रेखा झल्लाकर बोली- "ऐसी बुरी और दुष्ट औरत से मुहब्बत कर बैठे।" "प्रेम देखकर कब किया जाता है-प्रेम हो जाता है।" काले चिराग के होठों पर मुस्कान तैर आई थी।
"ओह! तो आप लोगों की दुनिया में भी मुहब्बत का यही दर्शन है...। यही मानते हैं आप भी?" रेखा ने पूछा। "हमारे तुम्हारे यहां क्या यह तो प्रेम का विश्वव्यापी दर्शन है।" काले चिराग न ठहरे हुए सहज में कहा- "दिल और
दिल से जुड़ी भावनाएं भी क्या जुदा होती हैं।" रेखा कुछ क्षण खामोश रही फिर बोली-
"अब बकाल का क्या करें? उसने तो मेरे भाई को कहीं का नहीं छोड़ा है।" रेखा परेशान थी। उसकी आंखों में बार-बार आंसू छलक आते थे।
"परेशान न हो, मेरी बहन! सब ठीक हो जाएगा।" इन्द्र ने सर्द आह भरी थी। "आप बैठ जाएं।" रेखा काले चिराग से सम्बोधित हुई।
''अब बैठने का वक्त नहीं है।" काले चिराग ने रेखा के बराबर बैठते कहा "अब कुछ कर गजरने का वक्त है।" " बताईये, क्या किया जाए ।" रेखाँ बोली- "मैं इस नर्क से अपने भैया की मुक्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ।" "मैं... मै डरता हूँ रेखा, कि कहीं तुम भी किसी मुसीबत में न फंस जाओ।" इन्द्र बोला ।
और इसका जवाब काले चिराग ने दिया।
"इन्द्रजीत ! अगर तुम्हें बकाल के चुंगल से कोई बचा सकता है तो तुम्हारी बहन ही है। वरना वह दिन अधिक नहीं जब तुम्हारे तेहरे की यह दीमक तुम्हारे पूरे शरीर पर फैल जाएगी।"
"हाय, नहीं ।" रेखा चीख ही तो उठी थी, "मैं अपने भाई पर वह दिन कभी नहीं आने दूंगा...!"
"मैं अपने स्वस्थ... अपनी आजादी और अपनी जिन्दगी के लिए अपनी बहन को किसी नर्क-कुण्ड में नहीं झौंक सकता।" इन्द्रजीत बोला, फिर उसने अपनी बहन को सम्बोधित करके कहा- "रेखा, तुम वापस चली जाओ। तुम एक सीधी-साधी लड़की हो। तुम इन मायावियों का मुकाबला नहीं कर सकोगी। मैं एक जादूगर होकर भी बकाल का कुछ नहीं बिगाड़ सका। तुम तो कोई चीज ही नहीं हो। तुम यहां तक आ गई, मैंने तुम्हें देख लिया, मुझे चैन मिल गया। बाकी जिन्दगी में इसी मुलाकात की कल्पना में काट दूंगा। मेरी बहन, मेरा कहना मानो, वापस चली जाओ। तुम बकाल को नहीं जानतीं, वह एक बहुत ही ताकतवर और अम्पार औरत है। उसका मुकाबला आसान नहीं, फिर तुम इसी से बकाल की ताकत का लगा लो कि यह काला चिराग आज तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। उसके मुकाबले के लिए यह तुम्हें तो इनिया से ले आए हैं, लेकिन अपनी दुनिया के प्राणी को खुद कोइ अकुश नहीं लगा सके हैं। है न आश्चय की बात। जबकि यह बकाल से मुहब्बत के भी दावेदार हैं।"
"देखे, मेरे प्यार का मजाक न उड़ाओ।" काले चिराग ने रूखे लहजे में कहा- "जो बात तुम नहीं जानते उस बारे में इस विश्वास से बात करना स्वयं को धोखा देना है। में बकाल से प्यार करता हूँ-इसमें कोई सन्देह नहीं है। रह गई यह बात कि बकाल का मुकाबला मैंने स्वयं क्यों नहीं किया और इसके लिए में तुम्हारी बहन को क्यों लेकर आया हूँ? तो इन्द्रजीत, सुन लो कि बकाल ने महीनों मुझे इस बात का पता ही नहीं चलने दिया कि वह तुम्हे जंगल सं उठा लाई है और तुम पर आसक्त है। जब मुझे संदेह हुआ और में उसका पीछा करते हुए यहां तक पहुंचा तो यह सच्चाई मेरे सामने आई।"
"फिर...?" रेखा बोली।
"और फिर जब मैंने इस समस्या पर बकाल को पकड़ क की पकड़ की तो उसने दवा काली का नाम लिया और राज मदारी का
"कुछ देखकर तो प्रेम किया होता।" रेखा झल्लाकर बोली- "ऐसी बुरी और दुष्ट औरत से मुहब्बत कर बैठे।" "प्रेम देखकर कब किया जाता है-प्रेम हो जाता है।" काले चिराग के होठों पर मुस्कान तैर आई थी।
"ओह! तो आप लोगों की दुनिया में भी मुहब्बत का यही दर्शन है...। यही मानते हैं आप भी?" रेखा ने पूछा। "हमारे तुम्हारे यहां क्या यह तो प्रेम का विश्वव्यापी दर्शन है।" काले चिराग न ठहरे हुए सहज में कहा- "दिल और
दिल से जुड़ी भावनाएं भी क्या जुदा होती हैं।" रेखा कुछ क्षण खामोश रही फिर बोली-
"अब बकाल का क्या करें? उसने तो मेरे भाई को कहीं का नहीं छोड़ा है।" रेखा परेशान थी। उसकी आंखों में बार-बार आंसू छलक आते थे।
"परेशान न हो, मेरी बहन! सब ठीक हो जाएगा।" इन्द्र ने सर्द आह भरी थी। "आप बैठ जाएं।" रेखा काले चिराग से सम्बोधित हुई।
''अब बैठने का वक्त नहीं है।" काले चिराग ने रेखा के बराबर बैठते कहा "अब कुछ कर गजरने का वक्त है।" " बताईये, क्या किया जाए ।" रेखाँ बोली- "मैं इस नर्क से अपने भैया की मुक्ति के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ।" "मैं... मै डरता हूँ रेखा, कि कहीं तुम भी किसी मुसीबत में न फंस जाओ।" इन्द्र बोला ।
और इसका जवाब काले चिराग ने दिया।
"इन्द्रजीत ! अगर तुम्हें बकाल के चुंगल से कोई बचा सकता है तो तुम्हारी बहन ही है। वरना वह दिन अधिक नहीं जब तुम्हारे तेहरे की यह दीमक तुम्हारे पूरे शरीर पर फैल जाएगी।"
"हाय, नहीं ।" रेखा चीख ही तो उठी थी, "मैं अपने भाई पर वह दिन कभी नहीं आने दूंगा...!"
"मैं अपने स्वस्थ... अपनी आजादी और अपनी जिन्दगी के लिए अपनी बहन को किसी नर्क-कुण्ड में नहीं झौंक सकता।" इन्द्रजीत बोला, फिर उसने अपनी बहन को सम्बोधित करके कहा- "रेखा, तुम वापस चली जाओ। तुम एक सीधी-साधी लड़की हो। तुम इन मायावियों का मुकाबला नहीं कर सकोगी। मैं एक जादूगर होकर भी बकाल का कुछ नहीं बिगाड़ सका। तुम तो कोई चीज ही नहीं हो। तुम यहां तक आ गई, मैंने तुम्हें देख लिया, मुझे चैन मिल गया। बाकी जिन्दगी में इसी मुलाकात की कल्पना में काट दूंगा। मेरी बहन, मेरा कहना मानो, वापस चली जाओ। तुम बकाल को नहीं जानतीं, वह एक बहुत ही ताकतवर और अम्पार औरत है। उसका मुकाबला आसान नहीं, फिर तुम इसी से बकाल की ताकत का लगा लो कि यह काला चिराग आज तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। उसके मुकाबले के लिए यह तुम्हें तो इनिया से ले आए हैं, लेकिन अपनी दुनिया के प्राणी को खुद कोइ अकुश नहीं लगा सके हैं। है न आश्चय की बात। जबकि यह बकाल से मुहब्बत के भी दावेदार हैं।"
"देखे, मेरे प्यार का मजाक न उड़ाओ।" काले चिराग ने रूखे लहजे में कहा- "जो बात तुम नहीं जानते उस बारे में इस विश्वास से बात करना स्वयं को धोखा देना है। में बकाल से प्यार करता हूँ-इसमें कोई सन्देह नहीं है। रह गई यह बात कि बकाल का मुकाबला मैंने स्वयं क्यों नहीं किया और इसके लिए में तुम्हारी बहन को क्यों लेकर आया हूँ? तो इन्द्रजीत, सुन लो कि बकाल ने महीनों मुझे इस बात का पता ही नहीं चलने दिया कि वह तुम्हे जंगल सं उठा लाई है और तुम पर आसक्त है। जब मुझे संदेह हुआ और में उसका पीछा करते हुए यहां तक पहुंचा तो यह सच्चाई मेरे सामने आई।"
"फिर...?" रेखा बोली।
"और फिर जब मैंने इस समस्या पर बकाल को पकड़ क की पकड़ की तो उसने दवा काली का नाम लिया और राज मदारी का
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Re: स्वाहा
स्वाहा किस्सा सुनाया। उसने मुझे बताया कि वह देवा काली के आदेशानुसार, राजू मदारी की इच्छा पर इसे दण्ड दे रहो है। इसमें कोई संदेह नहीं कि बकाल तुम्हारे साथ जिस तरह पेश आ रही है वह किसी प्रकोप से कम नहीं। लेकिन इस सजा में उसके लिए आत्म-तृप्ति और सन्तुष्टि है। उसने अपने स्वार्थ हेतु तुम्हें जीवित रखा हुआ है और यह एक गम्भीर घिनौना अपराध है। हमारी दुनिया का कानून इस बात की इजाजत नहीं देता और फिर मेरे लिए तुम्हें...।" उसने इन्द्र की तरफ इशारा किया, खत्म करना कोई कठिन काम नहीं अब भी खत्म कर सकता हूँ और कल भी खत्म कर सकता था। तुम्हारी मौत के साथ ही बकाल का यह खेल समाप्त हो जाता, लेकिन तुम्हारी हत्या बकाल से नहीं छिपती । वह जान जाती नतीजे में मेरी दुश्मन हो जाती और यूं मेरा प्यार खाक में मिल जाता। इसलिए मैंने यह • रास्ता नहीं अपनाया, सोचता रहा कि क्या करना चाहिये ।
"... समय बीतता रहा। एक बात तुम्हे और बता दूं। हमारे प्रेतलोक के वक्त में और तुम्हारी दुनिया वक्त में बहुत अन्तर है तुम्हारी गणना के अनुसार बकाल की कैद में तुम्हें सत्रह- अट्ठारह बरस होते हैं लेकिन मेरी गणना से केवल सात-आठ माह । खैर, जब मैंने तुम्हारी दुनिया में जाकर तुम्हारे खानदान की खोज लगाई तो मुझे तुम्हारी बहन रेखा नजर आई और मैंने तत्काल ही अपनी योजना बना डाली और इसे यहां ले उसया। क्योंकि यह रेखा ही एकमात्र जरिया है, तुम्हारी का और तुम्हारी मुक्ति में मेरी मुक्ति भी है। यह जो तुम्हारी चेहरे को दीमक लग गई है... यह धीरे-धीरे फैलती हुई तुम्हारे पांव के अंगूठे तक पहुंच जाएगी। अगर ऐसा हो गया तो दुनिया की कोई भी ताकत तुम्हें इस विपदा से मुक्ति नहीं दिला सकेगी। तुम्हारा रोग बढ़ता जाएगा और तुम हमेशा-हमेशा के लिए बकाल के हो जाओगे | और यूं मेरे प्यार मेरी चाहत की मौत हो जाएगी। में किसी की मौत नहीं चाहता। न अपनी न तुम्हारी। मैं चाहता हूँ कि रेखा को उसका भाई मिल जाए और मुझे मेरी बकाल ।"
"मैं क्षमा चाहता हूँ कि मेरी बात से आपको दुःख पहुंचा । " इन्द्र शर्मिन्दा था। "कोई बात नहीं। मुझे अब खेद इस बात का है कि मुझे अपनी दुनिया के कुछ रहस्य खोलने पड़े।" काले चिराग ने कहा।
कुछ क्षण खामोशी रहे, और इस खामोशी को रेखा ने तोड़ा, उसने पूछा- "फिर अब करना क्या है, बताइये? मुझे बस
अपना भाई चाहिये... जीवित, स्वस्थ । "
"मेरी तो यही कोशिश है।" काले चिराग नें ठण्डा सांस लेकर कहा- "अतु हमें...।" वह कुछ कहते-कहते अचानक खामोश हो गया। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं। तभी पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई दी। यूं लगा जैसे कोई पक्षी झोपड़ी की छत पर आ बैठा हो। "लगता है, बकाल आ गई।" काला चिराग मुश्किल से ही बोल सका था।
"क्या हुआ...?" रेखा उसे परेशान देखकर खुद भी परेशान हो गई।
"अब क्या होगा?" रेखा एकदम घबरा गई।
"यह तो बहुत बुरा हुआ।' इन्द्र भी सहम गया था।
"मैं देखता हूँ क्या मामला है।" काला चिराग उठता हुआ बोला "अगर बकाल ही आई है तो वह अभी तक अन्दर क्यों नहीं आई।" वह कांपते कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
रेखा और इन्द्रजीत की निगाहें उसी पर टिकी हुई थीं।
काला चिराग दरवाजे के पास पहुंचकर जैसे ही बाहर जाने के लिए झुका तो कुक्षेक क्षणों के लिए झुका का झुका रह गया। फिर वह खौफजदा होकर पीछे हटा और तेजी से पलटकर इन दोनों के निकट आ गया।
" मारे गए।" उसके मुंह से निकला था।
"क्या हुआ? कौन है बाहर...?" रेखा ने पूछा।
"... समय बीतता रहा। एक बात तुम्हे और बता दूं। हमारे प्रेतलोक के वक्त में और तुम्हारी दुनिया वक्त में बहुत अन्तर है तुम्हारी गणना के अनुसार बकाल की कैद में तुम्हें सत्रह- अट्ठारह बरस होते हैं लेकिन मेरी गणना से केवल सात-आठ माह । खैर, जब मैंने तुम्हारी दुनिया में जाकर तुम्हारे खानदान की खोज लगाई तो मुझे तुम्हारी बहन रेखा नजर आई और मैंने तत्काल ही अपनी योजना बना डाली और इसे यहां ले उसया। क्योंकि यह रेखा ही एकमात्र जरिया है, तुम्हारी का और तुम्हारी मुक्ति में मेरी मुक्ति भी है। यह जो तुम्हारी चेहरे को दीमक लग गई है... यह धीरे-धीरे फैलती हुई तुम्हारे पांव के अंगूठे तक पहुंच जाएगी। अगर ऐसा हो गया तो दुनिया की कोई भी ताकत तुम्हें इस विपदा से मुक्ति नहीं दिला सकेगी। तुम्हारा रोग बढ़ता जाएगा और तुम हमेशा-हमेशा के लिए बकाल के हो जाओगे | और यूं मेरे प्यार मेरी चाहत की मौत हो जाएगी। में किसी की मौत नहीं चाहता। न अपनी न तुम्हारी। मैं चाहता हूँ कि रेखा को उसका भाई मिल जाए और मुझे मेरी बकाल ।"
"मैं क्षमा चाहता हूँ कि मेरी बात से आपको दुःख पहुंचा । " इन्द्र शर्मिन्दा था। "कोई बात नहीं। मुझे अब खेद इस बात का है कि मुझे अपनी दुनिया के कुछ रहस्य खोलने पड़े।" काले चिराग ने कहा।
कुछ क्षण खामोशी रहे, और इस खामोशी को रेखा ने तोड़ा, उसने पूछा- "फिर अब करना क्या है, बताइये? मुझे बस
अपना भाई चाहिये... जीवित, स्वस्थ । "
"मेरी तो यही कोशिश है।" काले चिराग नें ठण्डा सांस लेकर कहा- "अतु हमें...।" वह कुछ कहते-कहते अचानक खामोश हो गया। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं। तभी पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई दी। यूं लगा जैसे कोई पक्षी झोपड़ी की छत पर आ बैठा हो। "लगता है, बकाल आ गई।" काला चिराग मुश्किल से ही बोल सका था।
"क्या हुआ...?" रेखा उसे परेशान देखकर खुद भी परेशान हो गई।
"अब क्या होगा?" रेखा एकदम घबरा गई।
"यह तो बहुत बुरा हुआ।' इन्द्र भी सहम गया था।
"मैं देखता हूँ क्या मामला है।" काला चिराग उठता हुआ बोला "अगर बकाल ही आई है तो वह अभी तक अन्दर क्यों नहीं आई।" वह कांपते कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
रेखा और इन्द्रजीत की निगाहें उसी पर टिकी हुई थीं।
काला चिराग दरवाजे के पास पहुंचकर जैसे ही बाहर जाने के लिए झुका तो कुक्षेक क्षणों के लिए झुका का झुका रह गया। फिर वह खौफजदा होकर पीछे हटा और तेजी से पलटकर इन दोनों के निकट आ गया।
" मारे गए।" उसके मुंह से निकला था।
"क्या हुआ? कौन है बाहर...?" रेखा ने पूछा।
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Re: स्वाहा
"हम घेर लिए गये हैं।" बाहर बकाल के कारिन्दे मौजूद हैं।"
" और बकाल?" इन्द्रजीत ने पूछा। ने
"वह मुझे सामने दिखाई नहीं दी है। पर वह भी आस-पास ही होगी। मेरा ख्याल है आना ही चाहती है, यह अच्छा नहीं हुआ। उसने मेरे जाल फेंकने से पहले ही अपना जाल फेंक दिया।" काला चिराग अपना खौफ छिपा नहीं पा रहा था।
इन्द्रजीत कुछ पूछने ही वाला था कि बाहर से आवाज आई और यह आवाज निःसंदेह बकाल की ही थी।
“झोपड़ी में बैठकर मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रचने वालो, सुनी! मैं आ गई है। तुम क्या समझते हो तुम डेढ़-दो आदमी मुझे अपने जाल में फसा लोगे। भूल है यह तुम्हारी, में तुम्हारी यह साजिश कभी सफल नहीं होने दूंगी। और सुन लो, चमगादड़ के बच्चे । अब तू बाहर आ जा तुझे हिरासत में लिया जाता है...।"
बकाल कुछेक क्षण चुप रही, फिर आगे बोली "चल, जल्दी कर! फौरन बाहर आ जा....।"
यह घोषणा सुन काले चिराग ने बड़े निराशा के साथ ही रेखा और इन्द्र की तरफ देखा और धीरे से बोला- "अच्छा में चलता हूँ। मेरे पंख कट गए हैं। मैं अब न अपने लिए कुछ कर सकता हूँ और न तुम्हारे लिए। मेरे लिए दुआ करना। जीवन रहा तो फिर मिलेंगे...।”
"जल्दी कर ओ चमगादड़ के बच्चे।" बाहर से बकाल की फुंफकारती आवाज आई।
" और बकाल?" इन्द्रजीत ने पूछा। ने
"वह मुझे सामने दिखाई नहीं दी है। पर वह भी आस-पास ही होगी। मेरा ख्याल है आना ही चाहती है, यह अच्छा नहीं हुआ। उसने मेरे जाल फेंकने से पहले ही अपना जाल फेंक दिया।" काला चिराग अपना खौफ छिपा नहीं पा रहा था।
इन्द्रजीत कुछ पूछने ही वाला था कि बाहर से आवाज आई और यह आवाज निःसंदेह बकाल की ही थी।
“झोपड़ी में बैठकर मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रचने वालो, सुनी! मैं आ गई है। तुम क्या समझते हो तुम डेढ़-दो आदमी मुझे अपने जाल में फसा लोगे। भूल है यह तुम्हारी, में तुम्हारी यह साजिश कभी सफल नहीं होने दूंगी। और सुन लो, चमगादड़ के बच्चे । अब तू बाहर आ जा तुझे हिरासत में लिया जाता है...।"
बकाल कुछेक क्षण चुप रही, फिर आगे बोली "चल, जल्दी कर! फौरन बाहर आ जा....।"
यह घोषणा सुन काले चिराग ने बड़े निराशा के साथ ही रेखा और इन्द्र की तरफ देखा और धीरे से बोला- "अच्छा में चलता हूँ। मेरे पंख कट गए हैं। मैं अब न अपने लिए कुछ कर सकता हूँ और न तुम्हारे लिए। मेरे लिए दुआ करना। जीवन रहा तो फिर मिलेंगे...।”
"जल्दी कर ओ चमगादड़ के बच्चे।" बाहर से बकाल की फुंफकारती आवाज आई।
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