'लगड़ा प्रेत'
लेखक:- राजभारती
यह उसी सनसनीखेज भूतहा कहानी का क्लाइमेक्स है जो आप 'स्वाहा ।' में पढ़ चुके हैं। लगंड़े प्रेत की चाहत, आक्रोश क प्रतिशोध की यह कथा आपको एकन बार फिर प्रेतलोक की अविश्वसनीय घटनाओं के भंवरजाल चाहत की आग में सुलगते असहाय किरदारों का हाहाकार क प्रेतलोक के मायावी ससार में अब इस बामी सब कुछ नया क रोमाचंक ही पाओगे...राजभारती
वो लम्बी तगड़ी देवकाय औरत तहखाने के दरवाजे तक रेखा के साथ आई।
सामने दो हथियारवंद निगरान मौजूद थे वो उनको देखकर वापिस लौट गई। लंगड़ा प्रेत राकल आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ता रहा। वे दोनों दरबान आगे-आगे चलने लगे।
प्रेतलोक की हर बात ही निराली थी।
रेखा जैसे किसी प्राचीन युग कंs किसी जालिम निर्दयी राजा के राज्य में पहुंची हुई थी। उन दो सशस्त्र निगराना के पीछे-पीछे जब राकल इस मायावी भवन के बड़े दरवाजे के सामने पहुंचा तो एक दरबान ने चींखकर कहा-
"दरवाजा खोल राकल आया है। सरदार कोलाना के कारिन्दे से मिलना चाहता है।"
यह ऐलान सुनकर छः आदमी उस विशाल दरवाजे के दाहिने ओर और छः आदमी बायें ओर की कोठड़ी से बरामद हुए और इन बारह आदमियों ने मिलकर उस वड़े और भारी दरवाजे को दरवाजा खुला तो सामने घोड़े पर सवार इस मायावी दुनिया के सरदार कोलाना का कारिन्दा नजर आया। वह सांवली रंगत का एक अजीब से चेहरे का व्यक्ति था । कल को देख वह फौरन घोड़े से नीचे उतर आया व गर्वित चाल चलता हुआ राकल के निकट पहुचा।
"हां बोल सरदार कोलाना के कारिन्दे कैसे आया?"
"क्या तू जानता है कि तुझसे कितनी बड़ी गलती हुई है?" सरदार कालाना का हरकारा बोला।
"तू सरदार का कारिन्दा है, कारिन्दा ही रह सरदार न बन जो पैगाम लाया है वह कह, बेकार बातें न कर।"
"काला चिराग कहां है?" हरकारे ने पूछा।
"कौन काला चिराग ? यह नाम मेरे लिए नया है।" राकल अनजान बन गया।
"राकल-फिर बकाल भी तेरे लिये नया नाम होगा?" हरकारा उसे घूरते हुए बोला।
"बकाल मेरी बहन है।" राकल कुछ परेशान दिखने लगा।
"क्या तू जानता है कि इस वक्त बकाल कहां है?"
"क्या मतलब?" उसकी परेशानी बढ़ गई।
"मेरी बात का जवाब दे ताकि मैं तुझे सरदार का पैगाम सुना सकूं।"
"यही है। मेरे पास सुनहरे खण्डहर में। "
" और काला चिराग कहां है?"
"मैंने कहा ना कि मैं किसी काले चिराग को नहीं जानता।" "कहीं ऐसा न हो कि तुझे अपनी बहन बकाल की तलाश में सरदार कोलाना के पास जाना पड़े और फिरसरदार ऐसा ही जवाब देगा कौन वकाल यह नाम तो मेरे लिए नया है। "
"तू कहना क्या चाहता है?" राकल ने कदरे गुस्से से कहा।
"जो मैं कहना चाहता हूं-वह तू अच्छी तरह समझ गया है, राकल ! तुझे अगर अपनी बहन बकाल प्यारी हो तो काले चिराग को सरहद पर पहुंचा देना। तुझे डेढ़ दिन दिया जाता है। वक्त गुजरने के बाद तू यह बात अच्छी तरह जानता है कि क्या होगा।"
लंगडा प्रेत
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Re: लंगडा प्रेत
लगड़ा प्रत
"क्या होगा?" राकल यह बात अच्छी तरह जानता था, फिर भी सवाल किया उसने।
"न तू रहेगा और ना बकाल।"
"मैं इसे एलाने जंग समझें।"
"बिल्कुल इसमें कोई शक नहीं।" कारिन्दे ने पुष्टि कर दी। "लेकिन यह एलाने जंग उस वक्तही तो मुकम्मल होगा जब तू सरदार कोलाना को जाकर बताएगा कि तूने राकल को पैगाम दे दिया है।" राकल बोला।
'तू ठीक कहता है।" "
" और अगर पैगाम देने वाला वापिस ही न जा सके तब?" कारिन्दा उसका आशय समझ तेजी से बोला- "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। तू इस तरह की हिमाकत नहीं कर सकता। तू अच्छी तरह जानता है कि सरदार कोलाना कितना
ताकतवर हुक्मरान है? फिर तुझे यह भी मालूम होगा कि तेरी बहन बकाल उसके कब्जे में है। वो ईट-से-ईट बजा
देगा। "
राकल दुविधा का शिकार नजर आने लगा। अपनी बहन बकाल के बारे में उसे कुछ भी तो मालूम नहीं था कि वह कहां है और अगर वह वाकई सरदार के कब्जे में थी तो फिर इस कारिन्दे का किस्सा निपटाना-हिमाकत ही थी! बकाल की जिन्दगी खतरे में पड़ जानी थी। राकल को अपनी बहन से बहुत प्यार था और वह उसे किसी कीमत पर भी खोना नहीं चाहता था।
राकल के लिए जरूरी था कि वह कोई कदम उठाने से पहले वह अपनी बहन की गिरफ्तारी का सबूत मांगे। सबूत मिलने पर इस कारिन्दे को जाने दे और उसकी दी हुई मौहलत में ही सरदार के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने की सोचे।
वह कारिन्दे से बोला- "सरदार कोलाना के हरकारे! क्या सरदार ने बकाल की गिरफ्तारी का कोई सबूत भी भेजा
है?"
"हां, भेजा है।" हरकारा मुस्कराते हुए बोला और उसने अपने लिबास में हाथ डालकर कोई चीज निकाली और कल की तरफ उछाल दी।
काल के साथ आने वाले दरबानों में से एक ने इस चीज को लपक लिया और फिर बड़े सम्मान के साथ राकल को पेश किया। कल ने इस चीज को उलट-पुलट कर देखा। यह बकाल की अंगूठी थी। यह अंगूठी राकल ने ही उमे दी थी। इस अंगूठी में नग की जगह उल्लू की आंख की पुतली लगी थी। यह आंख की किसी हीरे की मानिन्द ही चमक रही और इस मायालोक यह अंगूठी हर भाई, बहन के जवान होने पर उसे पहचानता था। किसी लड़की के हाथ में यह अंगूठी देखकर ही कोई लड़का, लड़की की तरफ आकर्षित होता था और बाद में अपना रिश्ता भिजवाता था।
इस अंगूठी को देखकर राकल को यकीन आ गया कि उसकी बहन वाकई सरदार कोलाना के कब्जे में है, क्योंकि इस इस अंगूठी को एक बार पहन लेने के बाद कोई भी लड़की शादी से नहीं उतारती थी। जाहिर था यह अंगूठी बकाल की उंगली से जबरदस्ती ही उतारी गई होगी।
राकल के तेवर बदल गए, पर वह अपना रोष दबाते हुए बोला- "सरदार कोलाना से कहना कि उसने मेरी बहन पर कब्जा करके अच्छा नहीं किया।"
"वह मुजरिम है।"
वैसे, क्या मैं पूछ सकता हूं कि उसका क्या है?" हरकारे ने पूछा।
" और राकल, क्या तूने काला चिराग को गिरफ्तार करके अच्छा किया है?" हरकारे ने आंखें दिखाई। "चल, तूने उसके अपने पास होने का इकरार तो किया। थोड़ी देर पहले तक तो तू उसके नाम से भी वाकिफ न था ।
"वो खामखाह बकाल पीछे लगा हुआ है। "
"क्या होगा?" राकल यह बात अच्छी तरह जानता था, फिर भी सवाल किया उसने।
"न तू रहेगा और ना बकाल।"
"मैं इसे एलाने जंग समझें।"
"बिल्कुल इसमें कोई शक नहीं।" कारिन्दे ने पुष्टि कर दी। "लेकिन यह एलाने जंग उस वक्तही तो मुकम्मल होगा जब तू सरदार कोलाना को जाकर बताएगा कि तूने राकल को पैगाम दे दिया है।" राकल बोला।
'तू ठीक कहता है।" "
" और अगर पैगाम देने वाला वापिस ही न जा सके तब?" कारिन्दा उसका आशय समझ तेजी से बोला- "नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। तू इस तरह की हिमाकत नहीं कर सकता। तू अच्छी तरह जानता है कि सरदार कोलाना कितना
ताकतवर हुक्मरान है? फिर तुझे यह भी मालूम होगा कि तेरी बहन बकाल उसके कब्जे में है। वो ईट-से-ईट बजा
देगा। "
राकल दुविधा का शिकार नजर आने लगा। अपनी बहन बकाल के बारे में उसे कुछ भी तो मालूम नहीं था कि वह कहां है और अगर वह वाकई सरदार के कब्जे में थी तो फिर इस कारिन्दे का किस्सा निपटाना-हिमाकत ही थी! बकाल की जिन्दगी खतरे में पड़ जानी थी। राकल को अपनी बहन से बहुत प्यार था और वह उसे किसी कीमत पर भी खोना नहीं चाहता था।
राकल के लिए जरूरी था कि वह कोई कदम उठाने से पहले वह अपनी बहन की गिरफ्तारी का सबूत मांगे। सबूत मिलने पर इस कारिन्दे को जाने दे और उसकी दी हुई मौहलत में ही सरदार के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने की सोचे।
वह कारिन्दे से बोला- "सरदार कोलाना के हरकारे! क्या सरदार ने बकाल की गिरफ्तारी का कोई सबूत भी भेजा
है?"
"हां, भेजा है।" हरकारा मुस्कराते हुए बोला और उसने अपने लिबास में हाथ डालकर कोई चीज निकाली और कल की तरफ उछाल दी।
काल के साथ आने वाले दरबानों में से एक ने इस चीज को लपक लिया और फिर बड़े सम्मान के साथ राकल को पेश किया। कल ने इस चीज को उलट-पुलट कर देखा। यह बकाल की अंगूठी थी। यह अंगूठी राकल ने ही उमे दी थी। इस अंगूठी में नग की जगह उल्लू की आंख की पुतली लगी थी। यह आंख की किसी हीरे की मानिन्द ही चमक रही और इस मायालोक यह अंगूठी हर भाई, बहन के जवान होने पर उसे पहचानता था। किसी लड़की के हाथ में यह अंगूठी देखकर ही कोई लड़का, लड़की की तरफ आकर्षित होता था और बाद में अपना रिश्ता भिजवाता था।
इस अंगूठी को देखकर राकल को यकीन आ गया कि उसकी बहन वाकई सरदार कोलाना के कब्जे में है, क्योंकि इस इस अंगूठी को एक बार पहन लेने के बाद कोई भी लड़की शादी से नहीं उतारती थी। जाहिर था यह अंगूठी बकाल की उंगली से जबरदस्ती ही उतारी गई होगी।
राकल के तेवर बदल गए, पर वह अपना रोष दबाते हुए बोला- "सरदार कोलाना से कहना कि उसने मेरी बहन पर कब्जा करके अच्छा नहीं किया।"
"वह मुजरिम है।"
वैसे, क्या मैं पूछ सकता हूं कि उसका क्या है?" हरकारे ने पूछा।
" और राकल, क्या तूने काला चिराग को गिरफ्तार करके अच्छा किया है?" हरकारे ने आंखें दिखाई। "चल, तूने उसके अपने पास होने का इकरार तो किया। थोड़ी देर पहले तक तो तू उसके नाम से भी वाकिफ न था ।
"वो खामखाह बकाल पीछे लगा हुआ है। "
- SATISH
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Re: लंगडा प्रेत
"वह बकाल से मुहब्बत करता है और मुहब्बत करना कोई जुर्म नहीं है। "
"उसकी यह जुर्रत पसन्द नहीं। "
"खैर, यह मसला मेरा है ना तेरा है। यह मसला काले चिराग और बकाल के बीच का है। मैंने तुझे सरदार का पैगाम दे दिया। उसकी दी हुई निशानी भी तुझे दिखा दी। अब तू बता क्या कहता है ?"
"मैं कल सूरज निकलते ही काले चिराग को सरहद पर पहुंचा दूंगा।"
"ठीक है। बकाल की निशानी मुझे लौटा दे।" यह कहते हुए हरकारे ने अपना हाथ बढा दिया। राकल ने वह अंगूठी उसकी तरफ उछाल दी जिसे उसने बड़ी दक्षता के साथ लपक ली।
फिर वह तेजी से वापिस मुड़ा-दौड़कर अपने घोड़े के निकट पहुंचा उछलकर सवार हुआ ऐड़ लगाई और यूं पलक झपकते ही आंखों से ओझल हो गया।
कल ने एक ठण्डा और गहरा सांस लिया।
उसका दिमाग चकरा रहा था। वह सोचने लगा यह सब क्या हो गया? सरदार ने कैसे जान लिया कि काला चिराग उसके कब्जे में है, फिर उसने बकाल को कहां से और कैसे अगवा कर लिया? लगता है, उसने बकाल को रेगिस्तान से अगवा करवाया है। वह जरूर इन्द्रजीत से मिलने गई होगी। इस पागल के इश्क ने तो उसे कहीं का नहीं छोड़ा। अब उसे काले चिराग को छोड़ना ही होगा, वरना सरदार कोलाना ऐसा सिरफिरा शख्स है कि वो सुनहरे खण्डहर पर चढ़ाई भी कर सकता है।
हरकारे के जाने के बाद उन बारह आदमियों ने यंत्रवत् ही प्राचीर के भारी फाटक को बन्द कर दिया। दरवाजे की आवाज होने पर राकल चौंका। वह वापिस मुद्रा और सीढ़ियां चढ़ने लगा। उसके सशस्त्र दरबान उसके आगे थे।
"उसकी यह जुर्रत पसन्द नहीं। "
"खैर, यह मसला मेरा है ना तेरा है। यह मसला काले चिराग और बकाल के बीच का है। मैंने तुझे सरदार का पैगाम दे दिया। उसकी दी हुई निशानी भी तुझे दिखा दी। अब तू बता क्या कहता है ?"
"मैं कल सूरज निकलते ही काले चिराग को सरहद पर पहुंचा दूंगा।"
"ठीक है। बकाल की निशानी मुझे लौटा दे।" यह कहते हुए हरकारे ने अपना हाथ बढा दिया। राकल ने वह अंगूठी उसकी तरफ उछाल दी जिसे उसने बड़ी दक्षता के साथ लपक ली।
फिर वह तेजी से वापिस मुड़ा-दौड़कर अपने घोड़े के निकट पहुंचा उछलकर सवार हुआ ऐड़ लगाई और यूं पलक झपकते ही आंखों से ओझल हो गया।
कल ने एक ठण्डा और गहरा सांस लिया।
उसका दिमाग चकरा रहा था। वह सोचने लगा यह सब क्या हो गया? सरदार ने कैसे जान लिया कि काला चिराग उसके कब्जे में है, फिर उसने बकाल को कहां से और कैसे अगवा कर लिया? लगता है, उसने बकाल को रेगिस्तान से अगवा करवाया है। वह जरूर इन्द्रजीत से मिलने गई होगी। इस पागल के इश्क ने तो उसे कहीं का नहीं छोड़ा। अब उसे काले चिराग को छोड़ना ही होगा, वरना सरदार कोलाना ऐसा सिरफिरा शख्स है कि वो सुनहरे खण्डहर पर चढ़ाई भी कर सकता है।
हरकारे के जाने के बाद उन बारह आदमियों ने यंत्रवत् ही प्राचीर के भारी फाटक को बन्द कर दिया। दरवाजे की आवाज होने पर राकल चौंका। वह वापिस मुद्रा और सीढ़ियां चढ़ने लगा। उसके सशस्त्र दरबान उसके आगे थे।
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Re: लंगडा प्रेत
Satish bhai kamini ne is kahani ke dono paart ko bahut samay pahle 2018 me hi post kar rakha hai
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