फूफी और उसकी बेटी से शादी

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kunal
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Re: फूफी और उसकी बेटी से शादी

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शाजिया भागते हुए टीवी चलाने गई। कयोंकी उसे टीवी देखने में मजा आता है। शायद जब मैं होटेल से आया तब उसने मेरे डर से टीवी बंद कर दिया था, अब वो और मैं बिस्तर पे बैठकर पिक्चर देख रहे थे। मैंने उसे प्यार से पीछे से पकड़ रखा था। थोड़ी देर के बाद में उठा और किचेन में पानी पीने के लिए गया। फूफी खाना बना रही थी। पीछे से उनकी गाण्ड देखकर मेरा मन खराब हो गया।

मैंने उन्हें पीछे से से पकड़ लिया और कहा “खाने में क्या बना रही हो?"

फूफी- "तुम्हारी पसंद का खाना बेटा..."

मेरा हाथ उनके पेट था और सिर उनकी पीठ के थोड़े से नंगे हिस्से पर उन्होंने नाइटी पहन रखी थी इसलिए पूरा शरीर ढका हुआ था। पर पीठ पे थोड़ा सा हिस्सा खुला हुआ था,

मैंने उनकी पीठ पर एक किस किया और कहा- “आप मेरा कितना खयाल रखती हैं?"

फूफी ने कहा- "बेटा ये बात तो मुझे तुमसे कहनी चाहिए। तुमने हम दोनों के लिए बहुत कुछ किया है नहीं तो आजकल के बच्चे अपने माँ बाप को घर से निकाल देते हैं, और तुमने तो अपनी फूफी को घर पर रखा है, जब हमारा तुम्हारे सिवाए कोई नहीं था। तुम्हारा एहसान हम लोग कैसे चायेंगी?"

मैंने कहा- "फूफी मैं मैपसे और शाजिया से बहुत प्यार करता हूँ। मैं आप लोगों को कभी अकेला नहीं छोडूंगा.'
"
फूफी ये सुनकर मेरे तरफ मुड़ी और मुझे गले लगा लिया। उनकी आँखों में थोड़ा-थोड़ा पानी आ गया था हमारी ये बातें शाजिया पीछे खड़े होकर सुन रही थी और जब फूफी ने गले लगाया तो शाजिया ने भी मुझे पीछे से पकड़ लिया। अब मुझे आगे से फूफी ने और पीछे से शाजिया ने पकड़ रखा था।

मुझे बहुत अच्छी फीलिंग आ रही थी। मैंने भी फूफी को कसकर पकड़ लिया फिर मैंने फूफी के आँसू पोछे और उनके गाल पे होठों के करीब किस किया। उनके चेहरा पे शर्म आ गई |

शाजिया हँसते हुए बोली- "मुझे किस नहीं करोगे?"

मैं पलटा और शाजिया का चेहरा पकड़कर उसको भी होठों के करीब किस किया। अब फूफी खाना पकाने लगी और शाजिया और मैं टीवी देखने लगे। खाना तैयार हो गया। मैंने एक-एक कौर दोनों को अपने हाथों से खिलाया


फिर हम तीनों ने एक साथ खाना खाया। खाना खाकर टीवी देख रहे थे।
"
फूफी ने कहा- "वसीम बेटा, शाजिया ने गाँव में 11वीं तक ही पढ़ाई की है। उसका अमिशन यहां किसी स्कूल में करा दो ना....

मैंने कहा- "ठीक है। देखते हैं कोई स्कूल अड्मिशन के लिए" और थोड़ी देर बाद हम सब सो गये ।
………………………..

अगले दिन सुबह मैं तैयार हो रहा था काम पे जाने लिए।

फूफी बोली- "बेटा नाश्ता तैयार है आकर कर लो..."

शाजिया छत पे थी। कपड़े धूप में डाल रही थी। मैंने नाश्ता किया और रेस्टोरेंट के लिए निकला। छत परपे से ही शाजिया ने मुझे बाड़ किया। रेस्टोरेंट में काम बहुत होते हैं। मैं उसी में बिजी हो जाता हूँ मैनेजर मेम के साथ | वो मुझसे कभी-कभी बहुत सी मजाक करती थी। मुझे भी अच्छा लगता था। मेरे साथ काम करने वाले कभी- कभी मुझसे पूछते थे की क्या मेडम मुझसे पटी हुई हैं क्या?

मैं उन्हें डाँट दिया करता था। क्योंकी मेरे मन में मेम के लिए बहुत रेस्पेक्ट थी, और कुछ नहीं। रात होते ही मैं घर के लिए निकल पड़ता हूँ। मुझे जल्दी थी क्योंकी दो हसीन औरतें मेरा इंतजार करती हैं। मैंने रास्ते में एक स्कूल का बोर्ड देखा जो की मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था, उसका अड्रेस लिख लिया और चल दिया। घर में आते ही मैंने उन दोनों को बताया की एक स्कूल है यहां से थोड़ी दूरी पर परसों हम चलेंगी वहां अमिशन के लिए, क्योंकी परसों सनडे है और मेरी छुट्टी है।
शाजिया खुश हो गई।


हम तीनो खाना खा के सोने चले गये। मैं मन में सोच रहा था मुझे मोका ही नहीं मिल पा रहा है बात आगे बढ़ाने का इन दोनों साथ। यही सब सोच-सोचकर मैंमैं सो गया। अगले दिन भी भी वैसा ही रहा जैसा पहला दिन था। घर से होटेल और होटेल से घर सनडे का दिन आया तो मैं और शाजिया तैयार होकर स्कूल के लिए निकले। फूफी घर पर ही थी। स्कूल तो बंद था, पर अड्मिशन का सेशन होने की वजह से स्कूल आफिस खुला था। छोटा सा स्कूल था। उसके आफिस में जाकर अमिशन की सारी बात कर ली। उन लोगों ने एक छोटा सा टेस्ट लिया और अमिशन ले लिया शाजिया का ।

शाजिया पढ़ाई में ठीक-ठाक थी। अब उसके लिए सारी बुक्स और यूनिफार्म वही पास की एक दुकान से ले लिया और घर की तरफ निकल पड़े। घर पहुँच के फूफी को खुशखबरी सुनाई की अमिशन हो गया है। फूफी ये देखकर बहुत खुश थी की मैंने शाजिया और उनकी जिम्मेदारी पूरी तरह से उठा ली है। पूरे दिन भर शाजिया और फूफी के साथ खूब मस्ती की, उन्हें मार्केट घुमाया, होटेल का खाना खिलाया। हम लोग रात में घर आए और जल्दी सो गये।

सुबह में तैयार होकर रेस्टोरेंट पहुँचा तो पता चला की गवर्नमेंट ने अल्कोहाल पे बैन लगाने का फैसला किया है। इसलिए सारे रेस्टोरेंट वाले हड़ताल पे चले गये हैं। जब तक सरकार अपना फैसला नहीं बदलेगी तब तक रेस्टोरेंट नहीं खुलेंगे।

मैंने मन में सोचा- "मुझे जिस मौके की तलाश थी वो मुझे मिल गया। अब जब तक हड़ताल नहीं खतम होगी तब तक मैं घर पर ही रहूँगा फूफी और शाजिया के साथ। मैं वापस घर चला गया। शाजिया का आज पहला दिन था स्कूल में तो वो वहां गई हुई थी।

मैं घर पहुँचकर फूफी को सब बता दिया। मैंने देखा की फूफी ने अभी भी गाँव की साड़ी पहनी हुईथी।

मैं- "आपने मेरी दी हुई साड़ी क्यों नहीं पहनी है?"

फूफी- “बेटा तुम्हें वो साड़ी पसंद है इसलिए तुम्हारे सामने वो साड़ी पहन लेती थी। पर जब तुम्हीं नहीं हो घर पर तो किसके लिए पहनूं?"

मैं- “अब तो पहन लीजिए। मैं आ गया हूँ.

फूफी ने शर्माकर कहा- “ठीक है पहन लेती हूँ." और वो साड़ी पहनने जाने लगी।


मैंने कहा- “फूफी कहां जा रही हैं यही पहन लीजिए ना. *

फूफी- "बेटा तुम्हारे सामने कैसे पहनूं?*

मैं- “गाँव में भी तो आप मेरे सामने कभी-कभी पेटीकोट में रहती थी तो अब क्या हो गया? और अब मुझसे कैसा शर्माना? मैं आपका ही तो हँ..

फूफी- "ठीक है बेटा यही बदल लेती हूँ..." और वो अपनी साड़ी खोलने लगी।

उन्हें देखकर मेरा लण्ड खड़ा हो गया। उनकी नंगी कमर और पीठ मेरे बगल में थी तो मन तो कर रहा था की उन्हें पीछे से पकड़ लूँ। पर मैंने कंट्रोल किया। फूफी अब मेरी दी हुई साड़ी पहनने लगी। वो उस साड़ी में क्यामत लग रही थी। अब यही अच्छा टाइम है इन्हें सिड्यूस करने का।

मैंने कहा- "फूफी शाजिया घर पर नहीं है और वो दोपहर में 3:30 बजे तक आएगी, तो क्यों ना हम कोई पिक्चर देख आएं। मेरा बहुत मन कर रहा है...'
..
फूफी- "लेकिन बेटा अभी तो 11:00 बजे रहे हैं....

मैं- "तो क्या हुआ फूफी?"

फूफी "ठीक है। तुम्हारा मन है तो चलते हैं..."

हम लोग तैयार होकर पिक्चर हाल के लिए निकले। मैं उन्हें एक बी ग्रेड मूवी दिखाने ले जा रहा था। हम हाल में पहुँच के मूवी देखने लगे। मैंने फूफी का हाथ पकड़ रखा था मूवी देखने वक़्त, और उसे सहला रहा था। मुझे महसूस हुआ की हाट सीन आते ही बीच-बीच में फूफी की सांसें तेज हो जाती थी।

मौके का फायदा उठाते हुए मैंने फूफी के कंधे पे हाथ रख दिया। फूफी को भी मेरा कंधे पे हाथ रखना अच्छा लगा और वो थोड़ा सा मेरी तरफ खिसकी। क्योंकी शायद उन्हें ऐसी पिक्चर देखना आक्वर्ड लग रहा था। पर वो एंजाय भी कर रही थी। मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा हुआ था और कभी-कभी उनके कंधे को सहला रहा था। मुझे लगा उन्हें धीरे-धीरे सिड्यूस करना ही ठीक होगा, नहीं तो बात बिगड़ भी सकती है। पिक्चर तो दो घंटे में खत्म हो गई। मैं और फूफी पिक्चर हाल से निकले।

मैंने फूफी से पूछा- कैसी लगी पिक्चर ?"

फूफी के चेहरे पर एक छोटी सी शर्म वाली स्माइल थी। लेकिन मुझे उनके मुँह से सुनना था। इसलिए मैंने फिर से पूछा ।

फूफी ने शर्माकर कहा- "अच्छी लगी. "

मैं समझ गया की मेरा काम तो हो गया। अब हम लोग बाइक से ही घर के लिए निकले। रास्ते में मैं बार-बार ब्रेक लगाने लगा, ताकी फूफी मुझसे टकराएं। हम लोग घर पहुँच गये। शाजिया के आने में अभी टाइम था। फूफी बिस्तर पर लेटकर आराम कर रही थी। उन्होंने साड़ी खोल दी और पेटीकोट में थी।

मैं बगल में बैठा था। उन्हें लेटा हुआ देखकर मेरा मन नाटी होने लगा। मैं भी उनके बगल में लेट गया और अपना हाथ उनके पेट पर रख दिया, और कहा- “फूफी आपको यहां अच्छा तो लग रहा है ना मेरे साथ?"

फूफी ने कहा- "बेटा जितना प्यार तुमने किया है, उतना प्यार दादाजी भी नहीं करते थे। कभी-कभी तो हम लोग दादाजी को बोझ लगते थे, पर वो ऐसा कभी कहते नहीं थे। लेकिन मैं समझ जाती थी..."

मैंने कहा- "लेकिन आप लोग मेरे लिए कभी भी बोझ नहीं बन सकते। क्योंकी आप दोनों से मुझे बहुत प्यार है और आपको और शाजिया को कभी भी अपने से दूर नहीं करूँगा."

फिर मैंने फूफी के माथे पे किस किया और फूफी ने मुझे मेरे गाल पे किस किया। मैंने मन में सोचा की फूफी मुझसे कितना प्यार करती हैं। मैं और फूफी चिपक के आराम ही कर रहे थे की शाजिया आ गई स्कूल से मैंने दरवाजा खोला तो देखकर हैरान हो गया। क्योंकी शाजिया रो रही थी।
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मैंने पूछा- "क्या हुआ शाजिया ?"

शाजिया ने कोई जवाब नहीं दिया तो मुझे लगा कोई सीरियस बात हो गई है तो मैंने उसे घर के अंदर किया
और दरवाजा बंद कर दिया। फूफी शाजिया से पूछने लगी तो वो रोती रोती फूफी के गले लग गई। मैं और फूफी ये सब देखकर डर गये की अचानक शाजिया को क्या हो गया है?

फूफी- "शाजिया क्या हुआ है बेटा बताओ ना?"

शाजिया रोते-रोते कहने लगी- "स्कूल में कुछ लड़के मिलकर मुझे आज पूरे दिन परेशान कर रहे थे...

मैंने पूछा- "क्या किया उन लोगों ने तुम्हारे साथ?"

शाजिया- "उन तीनों ने पहले मेरा बैग छुपा दिया और जब मैं उनसे माँगने गई तो मुझसे झगड़ा करने लगे और मुझे धक्का मार के गिरा दिया। मैं टीचर के पास गई तो उल्टा उन लोगों ने मुझे ही टीचर से डाँट खिलवा दी। मैंने अपना बैग खुद ही ढूँढ़ "

फूफी ने पूछा- "और तो कुछ नहीं किया उन लोगों ने?"

शाजिया- "मैंने जब अपना बैग खोला तो उसमें मेरा टिफिन नहीं था "

फूफी बोली- “तो इसका मतलब तुमने कुछ नहीं खाया है आज दिन भर..."

मुझे ये सब सुनकर बहुत गुसा आ रहा था। मैंने कहा- "शाजिया तुम चिंता ना करो उन सबकी मैं कल प्रिन्सिपल से शिकायत करूँगा "

शाजिया बोली - "नहीं भैया, उन सबकी शिकायत तो पहले भी कई पेरेंट्स कर चुके हैं। पर वो लोग नहीं सुधरते...."

मैं- “कोई बात नहीं। अब उन सबको तो मैं सुधारूंगा। तुम अपने आँसू पुंछो और स्माइल करो...” और मैं उसके पेट में गुदगुदी करने लगा।

उसने थोड़ा सा स्माइल किया और मुझे गले लगा लिया।

मैंने कहा- "तुम चिंता मत करो। कल मैं उन सबको अच्छा सबक सिखाऊँगा" तब जाकर शाजिया शांत हुई

अगले दिन सुबह शाजिया तैयार हो चुकी थी और मैं भी। मेरे दिमाग में एक प्लान था जो मैंने शाजिया को पहले से बता दिया था। हम लोग स्कूल के लिए निकल पड़े। आधे रास्ते में ही हम दोनों रुके और एक घर के पास आकर छुप गये। वो रास्ता स्कूल की ही तरफ जाता था। मैं और शाजिया उन लड़कों का इंतजार कर रहे थे। उन लड़कों के आते ही शाजिया उनके पीछे चलने लगी और मैंनें शाजिया के पीछे। रास्ते में एक छोटी सी गली पड़ती थी। उनके वहां पहुँचते ही शाजिया ने अपने चेहरे पे एक कपड़ा बाँध लिया और पेपर स्प्रे निकाला, जो की मैं लाया था शाजिया के स्कूल से आने के बाद, अपने प्लान के लिए। ये स्प्रे छिड़कने से आँखों में जलन होती है।

शाजिया ने उन तीनों लड़कों को पीछे से आवाज दी। जैसे ही वो लोग पलटे शाजिया ने उनकी आँखों में पेपर स्प्रे छिड़क दिया। वो तीनों इस हमले से हक्के-बक्के हो गये और पेपर स्प्रे की जलन से तड़पने लगे। अब शाजिया ने अपने बैग से कुछ बुक्स नीचे गिरा दी और जोर-जोर से चिल्लाने लगी- "बचाओ... बचाओ.. बचाओ... ये लड़के मुझे छेड़ रहे हैं..."

गली छोटी थी इसलिए शाजिया की आवाज वहां के लोगों ने सुन ली और भागते हुए देखने आए की क्या हुआ है? उन लोगों को आता हुआ देखकर मैं भी शाजिया की तरफ भागा। अब वहां थोड़ी सी भीड़ हो गई थी।

एक आंटी ने पूछा- “क्या हुआ बेटा?"

शाजिया कहने लगी- "आंटी ये लोग मुझे छेड़ रहे थे, इसलिए मैंने इनकी आँखों में पेपर स्प्रे डाल दिया..."

मैंने वहां खड़े लोगों से कहा- "ये लड़की सच बोल रही है। मैंने भी देखा की ये लड़के इसे छेड़ रहे थे. " और ये कहकर मैंने उन तीनों को घसीट के तमाचा मारा ।

फिर क्या था, बाकी लोगों ने भी मारना शुरू कर दिया उन हरामियों को जब सब लोग उन लड़कों को मार रहे थे तब मैं और शाजिया धीरे से पीछे छूट गये और नीचे गिरी हुई बुक्स और बैग को उठाया और वहां से चुपचाप चले गये। मैं बहुत खुश था की शाजिया का बदला पूरा हो गया और उसकी बदनामी भी नहीं हुई। क्योंकी किसी ने उसे देखा भी नहीं था। उसके मुँह पे कपड़ा बँधा हुआ था। इसलिए अब मैं उसे स्कूल ले गया। स्कूल में जाते वक़्त उसने मुझे गले लगाकर थैंक्यू कहा ।

लेकिन मैंने कहा- "सिर्फ थैंक्यू से कुछ नहीं होगा, मुझे एक किस चाहिए गालों पे..."

शाजिया हँसने लगी- “ठीक है। घर आकर एक नहीं 10 किस दे दूंगी." और हँसते हुए स्कूल के अंदर चली गई।

मैं बाइक से घर जाने लगा। घर पर फूफी मेरा इंतजार कर रही थी। मैंने रास्ते में एक सी.डी. शाप से दो बी ग्रेड फिल्मों की डीवीडी खरीद ली। घर पहुँच के फूफी को सारी कहानी बता दी उन लड़कों के बारे में। वो बहुत खुश हुई। थोड़ी देर बाद हम सब नार्मल हो गये। फूफी और मैं टीवी देख रहे थे।

मैंने कहा- "फूफी टीवी पर पिक्चर देखोगी ?"

फूफी ने कहा- "कौन सी पिक्चर ?"

मैं- "वैसी ही जैसी कल देखी थी..."

फूफी शर्माने लगी। मैंने डीवीडी लगा दी। मैं और फूफी बिस्तर पर बैठकर देखने लगे। फूफी ने मेरी दी हुई बैकलेश साड़ी पहन रखी थी। वो मेरे आगे बैठी हुई थी और मैं उनके पीछे में जानबूझ के लेट गया। ताकी फूफी मेरे सामने पड़ जाएं और मुझे टीवी में कुछ ना दिखे।

मैंने कहा- “फूफी लेटकर देखो, मुझे कुछ दिख नहीं रहा है...”

तब फूफी मेरे सामने की तरफ लेट गई और टीवी देखने लगी। मैंने सोचा अच्छा मौका हैं आज इनको अपने इरादा बता दिया जाए। मैंने अपना एक हाथ उनकी कमर पे कर दिया और पिक्चर देखने लगा। मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ सरकने लगा। थोड़ी देर बाद देखा की उन्होंने अपनी आँखें बंद कर रखी है और हाटथ सीन एंजाय कर रही हैं। मैं उठकर उन्हें देखने लगा। ये अच्छा टाइम था उन्हें सिड्यूस करने का। मैंने अपना हाथ उनके पेट पे रख दिया। उन्होंने अपनी आँखें खोल दी।

तब मैंने कहा- “फूफी लग रहा है की आपको खूब मजा आ रहा है..." और अपने हाथ से उनके पेट पर गुदगुदी करने लगा।

उनके चेहरा पे एक नाटी सी हँसी थी।

मैंने पूछा- “फूफी आपको मुझसे कितना प्यार है?"

फूफी कहने लगी- "तुम्हीं मेरे सब कुछ हो, तुम्हारे सिवाए मेरा है ही कौन? शाजिया भी एक दिन शादी करके चली जाएगी..."

मैंने ये सुनकर उनके गालों पे होंठों के पास दो किस किया तो वो शर्माकर पलट गई और हँसने लगी ।
मैंने कहा- "मुझे भी किस चाहिए...'

फूफी मुझे गालों पे किस करने लगी। मेरा हाथ उनके पेट पे था और एक पैर उनके पैर पे था। मौके का फायदा उठाते हुए मैंने उनके गालों पे भी दो किस कर दिया। वो शर्माकर उठ गई। मुझे लगा अभी के लिए काफी सिड्यूसिंग हो गई है। वो बहुत खुश भी नजर आ रही थी। पिक्चर खत्म हो गई और फूफी किचेन में खाना बनाने चली गई। मैं अभी भी डीवीडी से दूसरी मूवी देख रहा था।

थोड़ी देर बाद मैं उठा और बाथरूम में जाकर फूफी का नाम लेकर मूठ मारने लगा। बाथरूम से निकल के मैंने सोचा थोड़ी शेविंग कर ली जाए तो मैं शेविंग करने लगा। मैंने बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ छोड़ रखा था। फूफी खाना बना चुकी थी तो वो कपड़ेधो के लिए बाथरूम में आई। उनकी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा हुआ था। उनको इस तरह से देखकर मेरा मन उनको चोदने को करने लगा पर वो कपड़े धो रही थी।
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Re: फूफी और उसकी बेटी से शादी

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मैं शेविंग करके घर के लिए राशन लेने मार्केट चला गया। मार्केट से आने में एक घंटा लग गया। मैं कुछ ज्यादा ही सामान ले आया था। मार्केट जाते वक़्त ही मैंने फूफी को बता दिया था की आने में टाइम लग जायेगा तो आप सो जाना, मेरे पास घर की दूसरी चाभी है। मैं घर पहुँचा और सारा राशन किचेन में रखने चला गया। थोड़ी देर बाद जब मैं कमरे में आया तो फूफी को बिस्तर पर सोते हुआ देखा। वो सोते समय कोई हाट सी अप्सरा लग रही थी। उनके ब्लाउज़ के दो बटन खुल गये थे, और उनकी चिकनी कमर भी साफ नजर आ रही थी।

मैंने सोचा फूफी आज से पहले तो कभी इस तरह से नहीं सोई। वो हमेशा से अच्छे तरह से सोती थी, शायद ये सब बी ग्रेड मूवीस का असर था।

मैं धीरे से उनके पास गया और उनकी चूचियों पे हाथ रख दिया और उसे धीरे-धीरे दबाने लगा। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, फूफी भी सिड्यूसिंग पोजीशन में सो रही थी। टाइम ना वेस्ट करते हुए मैंने उनकी कमर पर हाथ रख दिया और उसे सहलाने लगा, और फिर अपना हाथ उनके पेट पर रखकर उनकी नाभि से खेलने लगा,
और उनकी नाभि पे किस करने लगा।

किस करते वक़्त फूफी थोड़ी से हिली और उनका शरीर अकड़ने लगा। मुझे लगा शायद फूफी उठ चुकी थी। लेकिन वो कुछ कह नहीं रही थी। इसका मतलब फूफी को अच्छा लग रहा था ये सब मैंने सोचा इन्हें सिड्यूस करना काम आ गया। लेकिन मैंने ये नहीं सोचा था की फूफी इतनी जल्दी सिड्यूस हो जाएंगी। शायद इतने सालों से फूफी जो विधवा धर्म निभा रही थी, लखनऊं आकर उन्होंने वो धर्म तोड़ने का फैसला ले लिया होगा। जो भी हो मैं तो एंजाय कर रहा था।

अब मैं धीरे से फूफी के ऊपर चला गया और उनके पेट पर किस करने लगा। फूफी की सांसें मुझे सुनाई दे रही थीं। क्योंकी वो तेज हो गई थीं। मैं धीरे से उनके चूचियां पे आया और ब्लाउज़ के ऊपर से ही उन्हें किस करने लगा। किस करते-करते उनके चेहरे को पकड़ा और उनके होठों पे कस के किस करने लगा। करीब 6-7 मिनट के बाद मैंने उनके होठों की छोड़ा। अब मैंने अपनी हिम्मत बढ़ाई और फूफी का ब्लाउज़ खोलने लगा।

फूफी पूरी अकड़ चुकी थी और अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़कर रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। उनकी आँखें बंद थी। मैंने उनका ब्लाउज़ खोल दिया। उनकी चूचियां देखकर मेरी आँखों में चमक आ गई। उनकी चूचियां काफी बड़ी-बड़ी थीं। अब मैं उन्हें चूसने लगा।

फूफी के मुँह से आवाजें आना शुरू हो गई। मैं बहुत बुरी तरह से उनकी चूचियां चूस रहा था, जैसे कोई छोटा बच्चा लालिपोप चूस रहा हो। करीब 15 मिनट बाद मैं रुका, मैंने उनके होठों को फिर से किस किया और अब अपने हाथ से उनकी साड़ी उठाने लगा। जैसे ही मेरी नजर उनकी पैंटी पे गई वैसे ही किसी ने दरवाजा खटखटाया।

कौन होगा यार मूड खराब कर रहा है? मैं अपने कपड़े ठीक करके दरवाजा खोलने जा ही रहा था की अचानक मेरी नजर घड़ी पर पड़ी, तो 3:30 बज रहे थे। तब मुझे याद आया की शाजिया आई होगी। फूफी अभी भी आँख बंद करके लेटी हुई थीं, पर वो जाग रहीं थी।

मैंने कहा- "फूफी, शायद शाजिया होगी। अपनी साड़ी ठीक कर लो...”

मैं दरवाजा खोलने गया वो शाजिया ही थी। शाजिया घर के अंदर आई और कुर्सी पे बैठकर आराम करने लगी।

मैंने पूछा- "शाजिया कैसा रहा दिन?"

शाजिया बोली - "बहुत अच्छा... उन तीन लड़कों की पिटाई की खबर सारे स्कूल में फैला दी। सब लोग खुश हो रहे थे..." फिर उसने पूछा- “अम्मी कहा हैं?"

मैं- “वो सो रही हैं। तुम जाकर फ्रेश हो जाओ। मैं तुम्हारा खाना निकालता हूँ"

शाजिया फ्रेश होने चली गई। खाना निकाल के टेबल पे रखा हुआ था। मैंने टीवी ओन कर दी और अपना खाना खाने लगा।

शाजिया आई और बोली- "अपने अपना खाना अभी तक नहीं खाया क्यों?"

मैं मन में- “अब तुम्हें क्या बताऊँ मैं क्या खा रहा था?"

मैंने कहा- "मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था। तुम भूखी हो और में खाना खा लूँ, ऐसा नहीं हो सकता। आखिर मैं तुमसे प्यार जो करता हूँ...
"
शाजिया के चेहरे पे स्माइल थी। हम दोनों खाना खा चुके थे। फूफी अब सो चुकी थी।

शाजिया ने कहा- “भैया मुझे सुबह के लिए आपको थैंक्यू कहना है..."

मैंने कहा- "थैंक्यू किसलिए? तुम तो अपनी हो और मैं अपनों के लिए कुछ भी कर सकता हूँ.

शाजिया थकी हुई थी तो फूफी के बगल में जाकर सो गई। फूफी और शाजिया बेड पे सो चुकी थी तो मैं नीचे बिस्तर बिछाकर सो गया।
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शाम को करीब 7:00 बजे मुझे एक काल आई। वो सुरभि मेम की थी। उन्होंने फारन होटेल आने को कहा।

मुझे लगा शायद गवर्नमेंट ने अपना डिसिशन चेंज कर दिया हो, इसलिए मेडम बुला रही हैं, तो मैं तुरंत होटेल गया। अल्कोहल बैन का स्टेटस जानने के लिये की अब अपना होटेल कब खुलेगा? मैं वहां पहुँचा तो होटेल में केवल वहां के सीनियर्स स्टाफ वाले थे, कोई जूनियर पोस्ट वाला नहीं था। मैंने सोचा की मैं ही एकलौता जूनियर पोस्ट वाला क्यों हूँ बाकी सब कहां हैं?

आफिस रूम से मैडम निकली और मुझे बुलाया।

रूम में जाकर मैंने पूछा- "मेडम यहां क्या हो रहा है? और बैन का क्या हुआ?"

उन्होंने कहा- "अभी बैन खत्म नहीं हुआ है और यहां सालाना प्रमोशन की मीटिंग चल रही थी मालिक के साथ..."

मैंने कहा- "मुझे यहां क्यों बुलाया गया है?"

मेडम चेयर से उठी और मेरे पास आकर मेरे कंधे पे हाथ रखकर बोली- "वसीम तुम्हारा भी प्रमोशन हुआ है...
"


मैं- “लेकिन मेडम ये कैसे हो सकता है? मैं तो एक वेटर हूँ और वेटर को कैसा प्रमोशन?"
मैडम कहने लगी- मैंने तुम्हें अपना असिस्टेंट बनाने का फैसला लिया है। हर मैनेजर के पास ये राइट्स होते हैं की वो अपना पर्सनल असिस्टेंट खुद चुन सके तो मैंने तुम्हें छूना है..."

मुझे बहुत खुशी हो रही थी, कहा- "थैंक यू... थैंक यू वेरी मच मेडम आपने मुझे इस लायक समझा...
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सुरभि मेडम बोली- “इसमें थैंक्यू की क्या बात है? तुम्हारी और मेरी अंडरस्टैंडिंग अच्छी है इसलिए तुमको असिस्टेंट बनाया है। तुम्हारी क्वालीफिकेशन भी ठीक ठाक है। क्योंकी तुम्हारा बी. काम भी कंप्लीट होने वाला है। अब जब भी हड़ताल खत्म होगी, तभी से तुम मेरे असिस्टेंट का काम शुरू कर देना..."

मैं- “जी मॅडम बिल्कुल। आप जब भी कहेंगी काम शुरू कर दूंगा। थैंक यू वन्स अगेन मेडम प्रमोशन के लिए "

मेडम हँसते हुए बोली- “तुमसे कहा ना थैंक्यू मत बोलो..." फिर उन्होंने अपना हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया।

मैंने उनसे हाथ मिलाया और फिर वहां से चल दिया।
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