शापित राजकुमारी

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Kamini
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Re: शापित राजकुमारी

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आज्ञानुसार वीरप्पा की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। लेकिन चक्रधर राजकुमारी के इस फैसले से खुश नही था। चक्रधर को शंका थी कि जरूर राजकुमारी कुछ छुपा रही है।अब शर्त के अनुसार सजा उन्हें ही देनी है तो बोल भी नही सकता। अगले शर्त के अनुसार सेनापति का पद अब राजकुमारी को मिलना था।

मंत्री- महाराज अब सेनापति के पद पर राजकुमारी का तिलक किया जाय।

राजकुमारी- नहीं , मन्त्रिवर! मैं इस पद के अभी योग्य नही हु।
राजकुमारी के इस फैसले से सभी हैरान हो गए। इतना बड़ा पद राजकुमारी यूँ ही छोड़ रही है।

चक्रधर- किंतु राजकुमारी जी, स्पर्धा की शर्त के अनुसार यह पद अब आपको ही सम्भलना होगा।

राजकुमारी- महोदय, मुझे अभी बहुत सी विद्या का अभ्यास करना है। अभी मैं उस लायक नही हूँ कि उस जिमेदारी को संभाल सकू। मैं दराबर से अनुरोध करती हूं कि किसी योग्य व्यक्ति को इस पद की जिम्मेदारी दी जाए। और मैं इस पद के लिए श्रीमान चक्रधर को उचित व्यक्तित्व मानती हूं। बाकी दरबार के विद्वानों की सहमति से जिसे उचित समझो उसे चुना जाए।

दरबार के सभी लोगों ने चक्रधर के समर्थन में हाथ खड़े कर दिए, एक पुनः चक्रधर के सर पर सेनापति का ताज पहनाया गया। लेकिन चक्रधर को राजकुमारी की योजना समझ नही आ रही थी।

राजकुमारी में भी अजीब फैसला लिया था। लेकिन उसके पीछे उनकी सुध सोच थी कि किसी को सजा ज्यादा देने से नही बल्कि गलती का अहसास कराके भी सही मार्ग पर लाया जा सकता है।

आदेसानुर वीरप्पा को दूर एक जंगल मे छोड़ दिया गया। जिसका रास्ता वीरप्पा को नही पता था। और जंगल के मुख्य रास्तो पर पहरा लगा दिया गया ताकि एक वर्ष तक विरप्प इस जंगल से बाहर ना आ सके।

राज्य में अब सब सामान्य हो गया था। लेकिन विरप्पा घने अनजान जंगल में घूम रहा था। दूर दूर तक सिर्फ वनस्पतियाँ ही थी। ना सूरज के दर्शन होते ना कोई प्राणी नजर आता। बस जंगली जानवरों की डरावनी आवाजें ही सुनाई देती थी। शाम तक घूमते घूमते वीरप्पा को पानी तक नही मिला कहीं। कभी बड़े बड़े सर्प मिलते तो कभी कोई जंगली डरावना पशु। ऊपर से पेड़ों से आच्छादित और नीचे से जमीन भी वनस्पति से ढकी हुई। एक पैर भी नीचे नजर किये बिना रखता तो खतरे से खाली नही था और ऊपर ना देखे तो किसी भी पेड़ की कोई टहनी से टकरा सकता था। लेकिन विरप्प ने हिम्मत नही छोड़ी , चलता रहा। कई बार चोट भी लगी तो पैर में कांटे भी चुभे।लेकिन एक ठौर भी तो ढूंढना था ना। आखिर इस भयावह जंगल में कहां रहेगा। विरप्प को पता था कि जंगल के चारो तरफ सैनिक भी मौजूद है , बाहर जाना तो वैसे भी मौत को मासी कहना है।

राजकुमारी ने तो विरप्पा को ज्यादा दण्डित नही किया था। लेकिन फिर वीरप्पा के कुत्सित मष्तिष्क में कलुषित विचार ही पनप रहे थे। वीरप्पा सोच रहा था कि एक वर्ष कैसे भी बिताऊंगा और वापिस राज्य में जाकर राजकुमारी का सर्वनाश करूँगा।

शाम हो गई थी। अंधेरा होने लगा था। कोई ठौर नही मिला। अचानक एक गुफा दिखी जिसमे कुछ रोशनी सी दिखाई दी। वीरप्पा की आंखों में अब चमक आ गई। अचानक ही पैरों की रफ्तार बढ़ गई। और गुफा तक पहुंच गया।


गुफा के पास पहुंचकर विरप्पा चौंक गया। पहरेदार की तरह एक सिंह बैठा था। इससे पहले की वीरप्पा सचेत हो, सिंह ने उस पर हमला बोल दिया। अपने नुकीले पंजे से सिंह ने एक जोरदार खरोंच वीरप्पा के मुहं पर मारी। चेहरा लहूलुहान हो गया। लेकिन वीरप्पा था तो एक कुशल यौद्धा और अब अपमानित भी था तो घायल नर भी सिंह से कम नही होता ।

वीरप्पा ने जवाबी हमला कर दिया। सिंह के अगले दोनो पैर पकड़ कर उल्टा पटक दिया। अब सिंह ने आवेश में आकर एक जोर से दहाड मारी। एकबारगी पूरा जंगल सिहर उठा। पक्षि भय से शोर करने लगे। छोटे जानवर सभी अपने घरों से बाहर निकल गए। लेकिन वीरप्पा तनिक भी नही डरा। अब वो सम्भल चुका था। चेहरे से लहू टपक रहा था लेकिन फिर भी दुगुने जोस से फिर भिड़ गए सिंह से। अबकी बार वीरप्पा ने सिंह के जबड़े पकड़े और एक जोरदार घुस्सा सिंह के दांतों पर मारा। एक खिशियाई आवाज के साथ सिंह निढाल हो गया।

वीरप्पा अब गुफा के अंदर जाने लगा। तभी सिंह खड़ा हुआ और वीरप्पा के फिर सामने आ गया। वीरप्पा बोला,,,, अरे अभी तेरा पेट भरा नही क्या मार खाकर जो वापिस आ गया है। देख तेरे दांत टूट गए, मेरा भी चेहरा तूने खराब कर दिया। अब और लड़ना चाहता है क्या?

सिंह बोल तो नही सकता था लेकिन स्वीकारात्मक गर्दन हिला कर बैठ गया। और एक इसारा विरप्पा को करके आगे चलने लगा। अब वीरप्पा समझ गया था कि वो क्या कहना चाह रहा है। वीरप्पा सिंह के पीछे पीछे चलने लगा। जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे, गुफा और गहरी होती जा रही थी। गुफा में असंख्य सिंह से, लेकिन अब किसी भी सिंह ने वीरप्पा पर हमला नही किया था। वीरप्पा आश्चर्य चकित था। लेकिन बिना बोले चुपचाप पीछे पीछे चल रहा था। कोई एक मील गुफा में चलने के बाद वीरप्पा ने देखा कि एक बड़ा सा अग्नि कुंड है। कमंडल लिए और अर्धनग्न अवस्था मे लंबी दाड़ी वाला एक इंसान बैठा है। ध्यानमग्न अवस्था मे।

आसपास का दृश्य और भी भयानक था। ऊपर देखा तो उल्टे लटके चमगादड़ और बाल बिखेरे हुए कई चुड़ैल भी थी। वीरप्पा को समझ नही आया कि यह क्या हो रहा है। लेकिन सिंह से जंग जितने के बाद वो अब भयभीत नही था। सिंह अग्निकुंड के पास जाकर बैठ गया। तभी एक चमगादड़ तीव्र गति से वीरप्पा की तरफ आया वीरप्पा सचेत था, उंसने एक घुस्सा मारा और चमगादड़ ढेर हो गया। वीरप्पा उस चमगादड़ को देख रहा था तभी एक भयानक हंसी के साथ एक चुड़ैल ने वीरप्पा पर हमला कर दिया। अपने लंबे बालों को वीरप्पा की गर्दन के चारों तरफ लपेट लिया। वीरप्पा की सांस उखड़ने लगी। लेकिन वीरप्पा ने हार नही मानी और गले मे लपेटे हुए बालो को उखाड़ दिया। एक चीख के साथ चुड़ैल गिर पड़ी। अब वीरप्पा पूर्ण सचेत हो गया। नजर तीव्र गति से चारों तरफ चल रही थी।

तभी एक गम्भीर आवाज गूंजी,,,,, शांत हो जाओ दरबारियों।

वीरप्पा ने देखा कि जो महाशय ध्यान में बैठे थे अब खड़े हो गए हैं। और गंभीर आवाज में बोले,,

कौन है यह वीर,, मेरे तीन तीन सेनापतियों को हराने वाला?

वीरप्पा- मेरा नाम वीरप्पा है। मुझे अज्ञातवास मिला हुआ है।लेकिन आप कौन है?

मैं शैतानी शक्तियों वाला चांडाल हुँ।

वीरप्पा- ओह! आपका दराबर भी बहुत शैतान है।

,,, तुमने मुझे खुश कर दिया। तुम्हारी वीरता से मैं प्रशन्न हु, तुम जो चाहो में तुम्हारे लिए कर सकता हु।

वीरप्पा- मुझे एक वर्ष बिताना है, बिना किसी बाधा के।

,,, अवशय,, तुम निश्चिन्त यहां राह सकते हो। लेकिन एक शर्त है।

वीरप्पा- कैसी शर्त!!

,,, यहां तुम्हे चुड़ैलों के साथ रहना होगा। सिंह और चमगादड़ मेरे सिपहसालार है, सभी को अपनाकर ही तुम यहां राह सकते हो।

वीरप्पा- लेकिन कभी सोते वक्त इन सबने मुझ पर हमला कर दिया तो।

,,, नही, तुमने मेरी तीनो सेनाओं को हरा दिया है। अब मेरे दरबार के तुम मुख्य सेनापति हो। वादा है , मेरे सैनिक तुम्हे कोई कष्ट नही पहुँचाएँगे।

वीरप्पा- जी। आपका धन्यवाद।
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Re: शापित राजकुमारी

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चांडाल की सेना का सेनापति बनकर वीरप्पा उनसे शैतानी ताकतों के बारे में सीखने लगा। उधर राजकुमारी के आदेशानुसार सैनिक जंगल के चारो तरफ फैले हुए थे। लेकिन विरप्पा को गूफ़ा से बाहर आने का कोई कार्य भ8 नही था। वो तो अब बस ऐसी जगह डूब गया जहां बस शैतानों का राज था।

चुड़ैलें उसे अलग अलग शरीर धारण करने के बारे में सीखा रही थी तो चमगादड़ उसको अचानक हमला करना और रात के समय भी सब कुछ स्पष्ट देखने जैसी शैतानी शक्तियों से परिपूर्ण कर रहे थे। सिंहों के बीच वीरप्पा अब निर्भय हो गया था। शैतानी शक्तियों के बीच दिन रात रहने से अब उसके अंदर की मानव आत्मा मर चुकी थी। उसके भीतर अब शैतानी आत्माओं का वास हो चुका था। शैतानों का राजा चांडाल उसे तंत्र-मंत्र में पारंगत होना सीखा रहा था।

एक रोज जब शाम के समय वीरप्पा चांडाल के पास बैठा था तो चांडाल ने पूछा ,,,

चांडाल- वीरप्पा तुमने इतनी सारी शैतानी कला सीखी है। तुमने तो कहा था कि तुम्हे सिर्फ एक वर्ष बिताना है।

वीरप्पा- शैतानराज,, मुझे सिर्फ एक वर्ष ही बिताना है, लेकिन मैं यह कला इसलिए सिख रहा हु की मुझे बाहर जाकर सबसे शक्तिशाली बनना है।

चांडाल- यह तुम्हारा भरम है वीरप्पा, ।

वीरप्पा- कैसे?

चांडाल- यहाँ इतना समय बिताने के बाद मेरी सेना तुम्हे बाहर जाने ही नही देगी।

वीरप्पा- (आश्चर्य से) ऐसा क्यों ?

चांडाल- ऐसा इसलिए कि मेरी गुफा में जो आ जाता है वो वापिस बाहर नही जाता है। यहाँ चुड़ैल या चमगादड़ बनकर ही रहता है।

वीरप्पा आश्चर्यचकित हो जाता है। अब तक शोक से शैतानी शक्तियों को ग्रहण करने वाला अचानक पसीने पसीने हो जाता है। अब तक विरप्पा जो कुछ भी कर रहा था वो सिर्फ अपना अज्ञातवास बिताने के लिए कर रहा था। साथ ही वो ताकतवर भी होना चाहता था। लेकिन अब उसका रक्त जम गया था जब उसने यह जाना कि इस गुफा में आने वाला इंसान कभी वापिस इंसान रूप में नही राह सकता। वीरप्पा को रात भर नींद नही आई। उंसने सोचा कि गुफा से निकल जाऊं। चार माह बीत चुके थे तो अब बाकी का समय भी जंगल मे रह कर गुजार लूंगा। यह सोचकर विरपा अब गुफा से निकलना चाहता था।

रात का दूसरा प्रहर बीत रहा था और वीरप्पा को आंखों से नींद कोशों दूर थी। वीरप्पा साहस करके खड़ा हुआ और बाहर की तरफ चला। उंसने सोचा कि इतनी शैतानी शक्तियों को अब वो जानता है तो इन चुड़ैलों को और चमगादड़ो को हरा सकता है। वीरप्पा जैसे ही अग्नि कुंड पार करके आगे बढ़ा तभी चुड़ैलों के एक समूह ने उस पर हमला बोल दिया।

भयानक रूप और डरावनी आवाज के साथ चुड़ैलें वीरप्पा पर टूट पड़ी। वीरप्पा एक क्षण के लिए रुका और बोला,,,

वीरप्पा - अरे क्या क्या कर रही है आप? मैं आपका सेनापति हु और आप सब मुझ पर हमला क्यो कर रही हो।

चुड़ैल- आप सेनापति थे, लेकिन आज आपके मन मे इस साम्राज्य के प्रति प्रेम टूट गया है। हम जानते है कि आप इस गुफा से बाहर जाना चाहते है। और हमारे रहते यह सम्भव नही है।


ऐसा कहकर एक चुड़ैल ने भयानक आवाज निकाली और अगले ही पल एक चमगादड़ो का समूह विरपा पर हमला बोल देता है। वीरप्पा ने अपनी सारी सक्तियाँ लगा दी और सभी चमगादड़ो को बेहोश कर दिया। तभी एक भयावह चुड़ैल आई और वीरप्पा पर बेरहमी से टूट पड़ी। उंसने वीरप्पा को घायल कर दिया। लेकिन साहसी वीरप्पा फिर भी लड़ रहा था। अचानक एक सिंह ने वीरप्पा ले मुहं पर जोरदार पंजे का प्रहार किया और विरपा जमीन पर दीवार की भांति धड़ाम से गिर पड़ा। चुड़ैलों ने उसे घसीट कर उसके कक्ष में लेटा दिया।

सुबह वीरप्पा की आंख खुली तो पूरा शरीर लहूलुहान था। बदन के हर अंग में दर्द हो रहा था। वीरप्पा को रात का भयानक युद्ध याद आया। अब वीरप्पा को अहसास हुआ कि उसने बहुत बाद गलती की है। लेकिन अब उसके हाथ मे कुछ नही था। करे भी तो क्या?

तभी चांडाल आया और बोला,,,

चांडाल- कहो सेनानायक कल रात का समय कैसा कटा आपका?

विरपा-( आश्चर्य से) , मतलब!

चांडाल- मतलब आप बाहर जाना चाहते थे ना,, मेने आपको पहले ही कहा था कि अब बाहर जाना आपके बस की बात नही है। जब आने मेरी सेना को हराया था तब आप इंसान थे और मेरी सेना के साथ मेरी शक्तियां नही थी। अब आप शैतान बन चुके हो और मेरी सेना के साथ मेरी शक्तियां भी है। अब कोई भी इस गुफा से बाहर नही जा सकता।

वीरप्पा- शैतानराज मुझे कैसे भी करके बाहर जाना है। मुझे पता चल गया कि मैं अपनी मर्जी से नही जा सकता लेकिन आपके आदेश से जा सकता हूँ। कृपया करके आप मुझे बहत जाने दे।

वीरप्पा चांडाल के पैरों में पड़कर गिड़गिड़ाने लगा। तब चांडाल ने कहा,,,

चांडाल- वीरप्पा मेरे साम्राज्य का नियम है कि कोई बजी इंसान यहां जिस रूप में आता है वो उसी रूप में बाहर नही जा सकता है। यदि तुमको बाहर जाना है तो अपने इस रूप को छोड़कर दूसरा रूप धारण करना होंगा।

वीरप्पा - लेकिन दूसरा रूप लेकर मैं करूँगा क्या? मेरे अपने मुझे कैसे पहचानेंगे। मैं किसी से बदला भी लेना चाहता हु वो कैसे लूंगा। उसी के लिए तो मैने आपसे शैतानी शक्तियां सीखी थी।

चांडाल- तुमको एक काम करना होगा।

वीरप्पा - कैसा काम?

चांडाल- तुम अपने बदले किसी इंसान को यहाँ छोड़कर जा सकते है।

विरपा -इंसान! इस भयावह जंगल मे इंसान कहाँ से लाऊँ।

चांडाल- वो तुम्हारी समस्या है। मुझे नही पता। इस नियम को तोड़ना मेरे भी हाथ मे नही है।



वीरप्पा अब असमंझस में पड़ गया। ताकतवर बनने के लिए उंसने शैतानी शक्तियों का सहारा लिया लेकिन परिणाम को भूल गया। हालांकि हार मानने वाला तो नही था। अब भी वो सोच रहा था कि बाहर जाना है। चांडाल उसे साफ साफ कह चुका था कि कोई नियम तोड़ने से पहले तीन तीन सेनाओं को परास्त करना है जो वीरप्पा के सामने एक सबसे बड़ी समस्या थी।

लेकिन वीरप्पा ने जो शैतानी विद्या सीखी थी अब वो उसके सहारे इस समस्या का समाधान करना चाह रहा था। लेकिन उसके लिए उसे कम से कम गुफा से बाहर तो आना ही था। वीरप्पा चांडाल के पास जाता है और कहता है कि उसे इंसान लाने के लिए गुफा से बाहर जाने की अनुमति चाहिय। बिना बाहर गए तो कैसे यह सम्भव है। चांडाल भी उसकी बात से सहमत था। लेकिन बिना सेना की इजाजत के चांडाल भी कोई फैसला नही ले सकता था। बाहर जाने के लिए उसे चुड़ैलों और चमगादड़ो से अनुमति लेनी पड़ती थी। सिंह सेना सिर्फ अंदर आने वाले को रोकती थी। तब चांडाल ने अपना दरबार लगाया।
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Re: शापित राजकुमारी

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दरबार मे चांडाल ने वीरप्पा की बात अपनी शैतानी सेना के सामने रखी। एक भयावह चुड़ैल ने अचानक वीरप्पा पर हमला कर दिया। अचानक हुए हमले से वीरप्पा सम्भल नही सका और जमीन पर गिर पड़ा। तभी चांडाल ने उसे रोक दिया।

चांडाल- रुको कुलशी, तुम किसी को बिना वजह यूँ चोटिल नही कर सकती।

कुलशी- लेकिन इसने हमारे दरबार के नियम तोड़ने की कोशिश की है।

चांडाल- हां ,लेकिन हम किसी को ऐसे प्रताड़ित भी नही कर सकते। आखिर हम भी तो इस जैसे इंसान ही है। हमने सिर्फ शैतानी शक्ति से रूप बदला है। बाहर के राज से दुखी होकर हमने कुछ अलग किया है जो हमे स्वयं को सुरक्षित रख सकता है। लेकिन हमारी तरह वीरप्पा भी तो राजतंत्र का शिकार हुआ है।

कुलशी- लेकिन हम किसी को बाहर जाने की इजाजत तो नही दे सकते।

चांडाल- देनी होगी , हमे भी तो बदलना होगा। आखिर वीरप्पा की गलती यही है ना कि इसने अपना नाम, करने के लिए थोड़ा सा छल किया था। अब इसे बाहर नही भेजेंगे तो यह बदला कैसे लेगा। हमने प्रतिशोध नही लिया लेकिन वीरप्पा चाहता है तो इसे मौका दिया जाना चाहिए।

एक चमगादड़ इंसान रूप में आकर बोलता है,,,

चमगादड़- हां सही है। हमने यह नियम बनाकर स्वयं को यहां कैद कर लिया है। हमने कभी प्रतिशोध का नही सोचा, लेकिन जरा सोचो कि बिना बाहर निकले हमारी शक्तियां हमारे किस काम की।

वीरप्पा- यही मैं आपसे कहना चाहता हूं। आप भी मेरा साथ दीजिये। यदि आप लोगों की ताकत मेरे साथ होगी तो फिर बाहर भी हमारा ही राज होगा।

चांडाल-नही हम सब यह नही कर सकते। हमने कहीं ना कहीं गलतियां की थी। हम सब ने मिलकर हमारा एक अनोखा दरबार बनाया है। अब इस दरबार को बंद नही करना है। यदि आप सब इजाजत दो तो सिर्फ वीरप्पा को कुछ समय के लिए बाहर जाने दो। जिससे यह अपना इंतकाम पूरा कर सके।

कुलशी- लेकिन यह भी तो हमारे दरबार के नियम विरुद्ध है।

चांडाल- नहीं , यह सही है।

कुलशी- कैसे?

चांडाल- नियम के अनुसार वीरप्पा ने अभी तक रूप नही बदला है। अभी भी वो मानव रूप में है। तो हम इसे यह इजाजत दे सकते है।

कुलशी- ठीक है, किंतु मैं इसके साथ रहूंगी। जब तक यह आने स्थान पर किसी इंसानी शरीर को इस गुफा में ना लाये तब तक।

चांडाल- ठीक है आप लोगों में से जिसको वीरप्पा पर नजर रखने के लिए साथ जाना है वो जा सकता है। मगर ध्यान रहे यदि अपने मुझे याद किये बिना अपनी शक्तियो का गलत फायदा उठाने की कोशिश की तो आप लोग जीवन भर इसी रूप में बिना किसी शक्ति के रहोगे।

कुलसी- आप निश्चिन्त रहें, हमे पता है कि शैतान की अनुमति के बिना शक्ति का प्रयोग करने का परिणाम क्या होता है।

चांडाल- ठीक है। आप सबको 30 दिन का समय है। इन 30 दिनों में आप वीरप्पा की सहायता कर सकते हो।

वीरप्पा- जय हो शैतानराज कि।


दरबार बर्खास्त हो जाता है। जबकि सहमति से कुलशी और 3 चमगादड़ वीरप्पा पर नजर रखने के लिए बाहर जाते है। गुफा से बाहर निकल कर वीरप्पा सोचता है कि अब क्या किया जाए। शैतान के 4 सिपहसालार उसके साथ थे। जिनसे पार पाना वीरप्पा के लिए नामुमकिन था। हालांकि रणनीति तो वीरप्पा जानता था लेकिन इंसानों की, शैतानों की रणनीति के बारे में वो अभी ज्यादा नही जान पाया था। उंसने रूप बदलने की विद्या सीखी थी। इतने कम समय मे कुलशी जैसा ताकतवर वो नही बन पाया था।


वीरप्पा बाहर आकर एक पेड़ की ठंडी छांव में लेट गया। कुलसी और चमगादड़ जो कि अदृश्य थे, पेड़ पर बैठकर वीरप्पा पर नजर रख रहे थे। वीरप्पा को बहुत दिनों बाद सुकून वाली नींद आई। जब नींद से जागा तो उसका मष्तिष्क कुछ सामान्य हुआ। वीरप्पा के सामने अब प्रश्न यह था कि इन शैतानी ताकतों से छुटकारा पाने के लिए क्या करूँ।
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Re: शापित राजकुमारी

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वीरप्पा को राजकुमारी से ज्यादा तो कुलशी से परेशानी थी। वैसे सही भी है जिसके हृदय में वैर भावना होती है उसको फिर परेशानी का सामना भी तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि राजकुमारी किसी भी प्रकार से गलत नही थी। गलती भी तो वीरप्पा की थी। अब भुगतना भी उसे ही है।

वीरप्पा के कलुषित मष्तिष्क में अब भी सही सोच नही पनप रही थी। अब भी वो राजकुमारी के प्रति दूषित मष्तिष्क लिए बैठा था। वीरप्पा सोचने लगा कि कैसे भी करके राजकुमारी को जंगल मे लाया जाए और फिर उसे कुलशी के हवाले कर दिया जाए तो सारे जीवनभर ही राजकुमारी से पिछा छूट जाए। लेकिन समस्या तो यह भी थी कि राजकुमारी को जंगल मे कैसे लाया जाए । जंगल से बाहर निकल कर जाना भी खतरे से खाली नही था। वीरप्पा के पास ज्यादा समय भी नही था। 30 दिन में ही उसे सब कुछ करना था। और यदी वो सफल नही हुआ तो फिर जीवनभर गुफा में ही रहना पड़ेगा।













वीरप्पा सोचते सोचते राजकुमारी पर आकर अटक गया। वीरप्पा ने सोचा कि अब जीवन मे शैतानी ताकत तो है ही फिर क्यों ना उसका प्रयोग करके राजकुमारी को सबक सिखाया जाय। कुलसी अदृश्य रूप में कहीं भी जा सकती थी तो वीरप्पा ने उसको मनाया और स्वयं ने एक नवयौवना सुंदरी का रूप धारण किया। पहले दोनो ने चमगादड़ से मिलकर जंगल में एक मायावी धूनी रमाई। एक चमगादड़ सफेद ढाढी और केशरी वस्त्र पहने सज्जन सन्त के रूप में धूनी पर बैठ गया। उधर सजी हुई युवती के रूप में वीरप्पा जंगल से बाहर निकलता है। आशा के अनुरूप राज्य के सैनिक मिलते है।

सैनिक- है सुंदरी तुम कौन हो?

सुंदरी- मैं द्रुम ऋषि की कन्या हु, वो आजकल इस जंगल मे कठिन तप कर रहे है। मैं पानी की तलाश में आई हूं। महाशय क्या यहां पीने योग्य पानी मिलेगा?

सैनिक- जी अवश्य मिलेगा। लेकिन अभी राजकुमारी के आने का वक्त है, इस समय कोई इस रास्ते मे नही जा सकता है। आपको थोड़ा इंतजार करना होगा।

सुंदरी- ऋषिराज नाराज हो जाएंगे। आपकी राजकुमारी महोदय कब तक आएंगी।

सैनिक- बस कुछ ही क्षणों में आ रही है। कृपया तनिक इंतजार कीजिये।

कुछ ही पलों में शाही सवारी में राजकुंमारी का आगमन होता है। रथ पर सवार राजकुंमारी को देखते ही सुंदरी के रूप में वीरप्पा की भौंहे तन जाती है लेकिन अगले ही पल वो शांत हो जाता है, योजना के अनुसार उसे राजकुंमारी को जंगल मे ले जाना था। रथ आकर रुकता है। सैनिक के पास एक यौवन से भरपूर सुंदर कन्या को देख कर राजकुंमारी सैनिक से प्रशन्न करती है।

राजकुंमारी- सैनिक , यह आपके साथ लड़की कौन है?

सैनिक बोलता इससे पहले ही सुंदरी बोल पड़ती है।

सुंदरी- राजकुंमारी जी की जय हो। मैं द्रुम ऋषि की पुत्री हूं, वो तपस्या में लीन है। पानी की जरूरत ने मुझे यहां पहुंचा दिया है।

राजकुमारी- पहले तो कभी नही सुना, की इस जगंल में कोई ऋषि रहते है।

सुंदरी- आपके भाग्य से वो यहां आए है, चाहो तो आप उनके दर्शन कर सकते हो। पहले मैं उनके लिए जल ले आऊं।

राजकुमारी की जिज्ञाषा बढ़ी, वो ऋषि से मिलना चाहती थी। राज परिवार वैसे ही सदैव ऋषियों का सम्मान करता आया है। राजकुमारी के आदेश से एक सैनिक ने सुंदरी के हाथ से मटका लिया और पानी का भरकर लाया।

राजकुमारी अपने दो अंगरक्षकों के साथ जंगल मे जाने लगी। तभी एक सैनिक राजकुमारी को टोकता है, लेकिन एक युवती के साथ जाने में कैसा डर यह सफाई देकर राजकुंमारी निर्भय होकर जंगल मे प्रवेश कर गई।

अपनी योजना को सफल होता देख वीरप्पा बहुत खुश हुआ। मायावी धूनी पर पहुंचकर वीरप्पा ने जल का मटका रखा और राजकुमारी को इसारे से ऋषि के सामने बैठने को कहा।

राजकुमारी धुनी के सामने बैठ गई। कुछ दूरी पर दोनो अंगरक्षक खड़े हो गए। सुंदरी के रूप में विरप्पा ने दोनों अंगरक्षकों को नैनो से इसारा करके अपने मोहजाल में फंसा लिया। राजकुमारी अब ध्यान से ऋषि के सामने बैठी थी।उधर वीरप्पा ने दोनों अंगरक्षकों को कहा कि मेरे पांव में छाले पड़ गए है क्या आप ऋषिराज के लिए फल लाकर दे सकते है। दोनो अंगरक्षक सुंदरता से मोहित थे । तुरन्त जंगल मे फल लाने चले गए।

सुंदरी ने कुलसी को इसारा किया और तय योजना के अनुसार ऋषि की आंख खुली, सामने एक रूपवती लड़की को देख कर ऋषि को क्रोध आया और बोले,,

ऋषिराज- दुष्ट कन्या तुम मेरी तपस्या भंग करने आई हो। अपनी सुंदरता से लुभाकर मेरी वर्षो की तपस्या को तोड़ने आई हो। मैं तुम्हे श्राप देता हूं।

राजकुमारी अपनी सफाई में कुछ बोलती उससे पहले ही उसने मायावी जल के छींटे राजकुंमारी पर डाले और पल भर में ही राजकुमारी का रूप चुड़ैल के रूप में परिवर्तित हो गया। वीरप्पा अब अत्यधीक खुश हो गया। अपनी योजना के अनुसार कुलशी राजकुंमारी को लेकर गुफा में चली गई, अंगरक्षकों के वापिस आने से पहले ही वीरप्पा गुफा में चांडाल से आज्ञा लेकर वापिस बाहर आ गया और राजकुमारी का रूप धारण कर लिया।
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Re: शापित राजकुमारी

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चमगादड़ ऋषि बनकर अब भी धूनी पर बैठा था, अंगरक्षक वापिस आये और राजकुमारी बने वीरप्पा के आदेश से उसके साथ वापिस जंगल से बाहर आ गए। वीरप्पा को अब बस यह जानना था कि इन 6 माहिनो में राज्य में हुआ क्या है।

राजमहल व राज्य के बारे में वो सब जानता था। तो वीरप्पा को किसी बात का डर नही था। राजकुमारी के रूप में अब उसे क्या करना था यह योजना उसके मष्तिष्क में पल रही थी। बस पता यह लगाना था कि वीरप्पा के जाने के बाद राज्य में और राजदरबार में राजकुमारी का कद क्या था।

उधर राजकुमारी चुड़ैल के रूप में चांडाल की गूफ में पहुंच चुकी थी। कुलशी ने उसे चांडाल के दरबार के अनुसार रहना बताया जो राजकुमारी को मंजूर नही था। कुलशी के साथ अन्य चांडाल सैनिक राजकुमारी को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।

वीरप्पा अब राजमहल में पहुंच चुका था। एक अलग भेष में, राजकुमारी के रूप में अब वीरप्पा वो करने की सोचने लगा जो शायद वैभवराज ने कभी सपने में भी नही सोचा था। आखिर सोचे भी क्यों! ना वैभवराज ने कोई ऐसा गलत काम कभी किया था और ना ही राजकुमारी ने। लेकिन कलुषित दिमाग मे अब भयानक विचारो के बवंडर के साथ वीरप्पा मानवता से कोशो दूर चांडाल से भी भयावह चांडाल बन गया जो बेकसूर राजकुंमारी के साथ साथ सम्पूर्ण राज्य को दंडित करना चाह रहा था।

महल में आने के साथ ही राजकुमारी के वेश में वीरप्पा सीधा जनाना ड्योढ़ी में जाकर आराम करने के बहाने आगे की योजना के बारे में सोचने लगा। राजकुमारी की बचपन की सहेली और दासी पुत्री सुरषि हमेशा ही राजकुमारी के साथ रहती थी। वीरप्पा को पता था कि राजकुमारी सुरषि के बेहद करीब है तो पिछले 7 महीने में जो कुछ हुआ है वो उसे सुरषि ही बता सकती है। यदि वो सब पता चल जाये तो फिर वीरप्पा की योजना में कोई बाधा नही आएगी।

रात्रि में सोने के समय वीरप्पा ने सुरषि को बुलाया।

राजकुमारी(वीरप्पा)- सुरषि, आज मेरे सर में थोड़ा दर्द है, सर में तेल डाल दे।

सुरषि- क्या हुआ! वैधजी को बुलाऊँ क्या?

राजकुमारी- अरे नही, इतना भी नही है। बस थोड़ी थकान सी हो रही है। तू बस तेल डाल दे।

सुरषि राजकुमारी के रूप में वीरप्पा के सर में तेल डालति है, धीरे धीरे बालो में हाथ मलती है तो मौका पाकर वीरप्पा बोलता है।

राजकुमारी- सुरषि, मैं आज कुछ भूल गई हूं क्या? मुझे ऐसा लगता है कि कोई काम मैं भूल गई हूं। शायद सर में दर्द की वजह से, तुझे कुछ याद है तो बता। ऐसा ना हो कि पिताश्री गुस्सा करें।

सुरषि- नही राजकुमारी जी, मेरी यादाश्त में बारे में आप जानती हो। जहां तक मुझे याद है आप कुछ नही भूले हो। रोज की तरह प्रातःकाल दरबार मे अपने मंत्रियों के विचार सुने, फिर आप सेनापति महोदय जी के साथ तलवार बाजी सीखी, फिर आपने शाहीभोज किया और शाम के समय आप जंगल मे भी गए। लगता है आपको आज ज्यादा थकान हो गई।

राजकुमारी- क्या रोज मैं इतना ही काम करती हूं?

सुरषि- हां तो और क्या। हां कभी कभी आप घुड़सवारी भी करते हो लेकिन रोज नही।

राजकुमारी- ठीक है। लगता है आज ज्यादा थक गई। तुम जाओ, अब दर्द ठीक है मेरा।

सुरषि- राजकुमारी जी आप कहो तो वैधजी को बुला दु ।

राजकुमारी- अरे नही, अब ठीक है। मुझे सोना है। तुम जा सकती हो।

सुरषि चली जाती है। वीरप्पा आगे की योजना बनाते हुए सो जाता है।उधर जंगल मे एक अनोखा वाकया घटित हुआ। जो चमगादड़ ऋषि बनकर तपस्या में बैठा था, वीरप्पा के निकलते ही वहाँ एक साधु आ गए। धूनी देखी तो रुक गए और परिचय किया और चमगादड़ का झूठ पकड़ लिया। आये हुए सन्त ने अपने कमंडल से जल के छींटे चमगादड़ पर डाले और उसे साधु वेश में ही रहने का श्राप दे दिया।

सन्त- मूर्ख तुमने एक बेकसूर कन्या पर जुल्म किया है वो भी पवित्र अग्नि के सामने और साधु वेश में, तेरी यह सजा है कि तू अब साधु ही बना रह। एक माह के पश्चात तेरा शरीर पत्थर का बन जायेगा।

जूठा साधु(चमगादड़) - लेकिन क्यों मेने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। तुम अपना श्राप वापिस ले लो नही तो मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा। तुम जानते नही मेरी शक्तियों को।

सन्त- भलीभांति जानता हूं और तुम भी यह जान लो कि मैं खुद द्रुम ऋषि हुँ, तुमने मेरे नाम से कन्या को प्रताड़ित किया है। तुम सजा के हकदार हो। और अब तेरी सारी शक्तियां नष्ट हो गई है। एक माह के बाद तेरा शरीर भी पत्थर हो जाएगा।

चमगादड़- नही ऐसा मत करो। मैं मेरा दोष स्वीकार करता हु। लेकिन कृपया करके मुझे पत्थर बनने से बचा लो।

सन्त द्रुम- एक शर्त पर मैं तुम्हे पत्थर बनने से बचा सकता हु।

चमगादड़- बोलिये, मैं आपकी शर्त मान लूंगा। लेकिन मुझे पत्थर नाह बनना है।

सन्त द्रुम- तुमको मुझे बताना होगा कि उस कन्या को कहां ले गए और क्यों ले गए।

चमगादड़- ठीक है, मैं आपको सब सच बताता हूं। लेकिन आप अपना श्राप वापिस ले लो।

सन्त द्रुम- पहले मुझे कन्या से मिलवा दो, वादा है कि मैं तुम्हारे जीवन को सुखी बना दूँगा। बल्कि तुमको इस शैतानी चक्र से बाहर निकाल दूँगा।

चमगादड़ अब सन्त की बात से सहमत हो गया और सन्त को गुफा की तरफ ले चला।
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