शैतान से समझौता

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Kamini
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Re: शैतान से समझौता

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विनय कुछ सोचता इसके पहले उसका चौकिदार आ गया और उस कुत्ते को भगा दिया। दिया के साथ डिनर के बाद से वो अर्शिया को भूल ही गया था। पर अब मन में अजीब अजीब खयाल आ रहे थे।
आज ही उसने उस रहस्यमयी बच्ची को अपने बचपन के उस काले
कुत्ते वाली घटना के बारे में बताया था और आज ही एक भयानक काला कुत्ता उसे दिख भी गया! क्या ये महज संयोग था? या कुछ और?
"मैं कुछ जादा ही सोच रहा हूं" उसने खुद को समझाया। वो काफी देर तक दिया से चैट पर बातें करता रहा फिर सो गया।

देर रात उसकी नींद खुली! एक बहुत धीमी ठकठकाने की आवाज़ आ रही थी। वो लिविंग रूम में आ गया।वहां सब शांत था। अंधेरा था। उसने देखा ड्राईंग रूम की बत्ती जल रही थी और वो "ठक ठक" करती आवाज़ भी वहीं से आ रही थी। वो ड्राईंग रूम में पहुंचा और....उसके सदमें की कोई सीमा नहीं थी....
ये नहीं हो सकता...तुम तो मर चुके हो..

सोफे पर उसका सौतेला शराबी बाप बैठा था जो कि कब का मर चुका था। उसके एक हांथ में बेंत थी जिससे वो सामने मेज को ठकठका रहा था। उसने सर उठाया और सीधा विनय की आंखों में देखा...
विनय मानो जड़ हो चुका था! वो तो भूल ही गया था कि सामने बैठे इस इंसान ने उसे कितनी यातनाएं दी थी! उसका बचपन खराब किया था..उसे मारा पीटा था..बचपन में इसके डर से कई बार तो वो घर ही नहीं आता था...
वो सोफे से उठ खड़ा हुआ और गुस्से से घूरता, दांत किटकिटाता हुआ विनय की तरफ बढ़ने लगा...वो बेंत हवा में लहरा रहा था....
विनय का दिमाग शून्य हो चुका था। अचानक उसके सीने में दहशत की ठंडी लहरें उठने लगीं। अब वो उसे मारेगा...तो वो क्या करे? मां को आवाज़ दे? नहीं नहीं...मां आ गई तो ये उसे भी मारेगा...भाग जाता हूं..मैं यहां खड़ा क्यों हूं! मुझे भागना होगा... पर रुको!
"तुम मर चुके हो.." विनय कड़वाहट से बोला और पत्थर की तरह स्थिर खड़ा हो गया .."अब मैं नहीं भागूंगा..तुम मेरा कुछ नहीं
बिगाड़ सकते..."
वो अब विनय के बिलकुल नज़दीक आ चुका था..
उसके सौतेले बाप ने बेंत वाला हाथ उठाया विनय ने आंखें बंद कर ली "नहीं ये सच नहीं है....

उसने आंखे खोली उसका बाप गायब हो चुका था। उसने एक लंबी सांस ली..जाने क्या हो रहा था। अपने बेडरूम में जाने के लिये वो पलटा और चिहुंक के खड़ा हो गया।
पीछे उसका बाप खड़ा था और अब उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट थी।
अचानक उसके चेहरे से.. शरीर से नीली लपटें उठने लगीं। वो जलने लगा और दोनो हाथ फैलाये विनय की तरफ बढ़ने लगा.... "तुम्हें, मुझे बचाना चाहीये था...विनय.." विनय को एक तीखी फुसफुसाहट सुनाई दी जो उस जलते हुए शरीर से आ रही थी...वो बढ़ा चला आ रहा था....

विनय ने भाग के ड्राईंग रूम का बाहरी दरवाज़ा खोला और बाहर आ कर एक झटके से उसे बंद कर दिया। वो उस दरवाजे पर टिक कर जोर जोर सें सांसें लेने लगा। उसके अंदर डर, दर्द, अपराधबोध और पछतावे का एक मिला जुला अहसास था जो घुमड़ रहा था।
ये सब क्या हो रहा है.... वो खीजता सा बोला।

उसकी विधवा मां ने गलती से एक शराबी और खुंदकी इंसान से दुबारा शादी कर ली थी। उस हैवान को विनय को टाॅर्चर करने में बहुत मज़ा आता था जो उस वक्त महज़ सात साल का बच्चा था। वो शराबी एक स्टेशन मास्टर था। एक बार उसकी पोस्टिंग ऐसी जगह हो गई थी जहां स्टेशन पर रात के वक्त एक खतरनाक "मुर्दों की ट्रेन" आती थी। एक रात विनय के देखते देखते उसका बाप उन मुर्दोंं का शिकार हो कर जल गया था। और विनय ने एक चाय की
दुकान में छुप कर अपनी जान बचाई थी!
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Kamini
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Re: शैतान से समझौता

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विनय वो सब भुला चुका था पर आज वो जानी पहचानी सी दहशत फिर से दिलो दिमाग पर हावी होने लगी थी।
उसने आंखें खोलीं और सामने एक और हौलनाक नज़ारा उसका इंतज़ार कर रहा था...
वो अपने घर के बरामदे में नहीं बल्कि उसी चाय की दुकान में खड़ा था। जहां वो उस रात छिप गया था। उसने हैरानी से सब तरफ नज़रें दौड़ाई। सब कुछ तो वैसा ही था!
वो बाहर आ गया और पलट कर घूरने लगा। कई बार पलकें झपकाई और देखा। वो अपने घर को नहीं बल्कि उस चाय दुकान को घूर रहा था। तभी! उसे अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ..वो पलटा और..बस..देखता रह गया.....

सामने सैकड़ों की तादाद में जले हुए मुर्दे खड़े थे। काले चितकबरे डरावने से! सब अपनी मटमैली सफेद आंखों से उसे ही घूर रहे थे। विनय को उनके पीछे के लाल रंग की पुराने ज़माने की ट्रेन की झलक भी मिल रही थी।
अचानक वो मुर्दे अपनी जगह से खिसकने लगे। कोई पीछे से, उनके बीच से निकलता हुआ सामने आ रहा था जिसे वो जगह दे रहे थे।
वो दिया थी!!!

"दि..या..वो फंसी हुई आवाज़ में बोला.."तुम..ये..
दिया बिलकुल उसके सामने आ कर खड़ी हो गई थी। उसने दुल्हन वाला लिबास पहन रखा था। उसका चेहरा भावहीन था मानो वो नींद में चल रही हो।
"तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया..." वो गूंजती हुई आवाज में बड़े ही भावहीन लहजे में बोली।
,
"तुमने मुझे धोखा दिया...झूठ बोला.." वो फिर सपाट लहजे में बोली।
विनय बेचारगी से सर हिलाने लगा..उसका चेहरा दर्द से सफेद पड़ गया था।
"दिया मेरी बात सुनो..दिया! मैं सब बताने ही वाला था...

"अब इन सबका कोई फायदा नहीं विनय..मैं जा रही हूं..भूल जाओ मुझे..." दिया बोली और पलट कर चल दी। सारे मुर्दे भी उसके पीछे चल दिये। वो वापस उसी ट्रेन में जा रहे थे। उसे दिया उनके बीच अब दिख भी नहीं रही थी। पुराने जमाने का भाप वाला इंजन चालू हो गया।

"दिया रूक जाओ दिया...दिया मेरी बात सुनो... विनय ज़ोर से चिल्लाया...

ट्रेन आगे बढ़ रही थी...
"नहीं दिया!!!! दिया!!..." वो पूरी ताकत से चिल्लाया....

किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। वो चिहुंक के पलटा। वो उसका नौकर था।
"साहब! क्या हुआ साहब? आप इतनी रात गए घर से बाहर..? सब खैरीयत तो है???
विनय हड़बड़ाया...चारों तरफ देखने लगा। वो अपने घर के लान में खड़ा था।
वो ट्रेन ? वो मुर्दे? और दिया ? वो सब क्या था!!!!!
उसने हाथ से अपना माथा पोछा। वो पसीने में भीग चुका था। उसका नौकर भी घबराया सा लग रहा था।
"साहब आप चीख रहे थे..?"
"तुम जाओ यहां से..मैं ठीक हूं" विनय बोला और जल्दी से घर के अंदर आ गया।
,
वो अपने ड्राईंग रूम में बैठा था जहां अभी कुछ ही देर पहले उसने अपने शराबी बाप को देखा था। वो अब काफी संभल चुका था। तभी जोर से फोन की घंटी बजी जो रात के सन्नाटे में और भी तेज सुनाई दी। विनय ने फ़ोन उठाया
"हैलो?"
पहले तो कोई आवाज़ नहीं आई फिर ऐसी आवाज आने लगी जैसे लाईन डिस्टर्ब थी।
"हैलो..कौन है??" विनय थोड़ा चिल्लाते हुए बोला।
अब किसी के फुसफुसाने की आवाज आई। न जाने उस फुसफुसाहट में ऐसा क्या था! विनय के रोंगटे खड़े होने लगे।
फिर एक तीखी फुसफुसाहट का स्वर उभरा...

"तुमने झूठ बोला था....
तुम बस उस काले कुत्ते से डरते हो..
तुम्हारे और भी डर हैं जो कि जादा...डरावने हैं..हैं न?"

"कौन हो तुम" विनय सहमी सी आवाज़ में बोला।

"मुझे सब पता है...."

और एक तीखी हंसी का स्वर सुनाई दिया जैसे बहुत सी जंज़ीरें आपस में टकरा रही हों... जिसे सुन कर विनय को लगा मानो किसी बर्फ के टुकड़े ने उसके दिल को भेद दिया हो।

वो भयानक रात किसी तरह गुज़र गई थी। विनय अपने आफिस में बैठा था। वैसा ही मुस्तैद! उसे देख कर कोई नहीं बता सकता था कि पिछली रात उस पर कैसी बीती थी। तभी एक कांस्टेबल आया और उसे एक कागज़ दे गया।
वो उसकी टेलीफोन लाईन का रिकार्ड था।
उसने देखा कि उसमें पिछली रात 2:45 बजे की कोई काल दर्ज ,
नहीं थी!!
फिर फोन पर वो आवाज़ किसकी थी!

उसका अतीत बहुत ही दुखद था। जिससे लड़ते जूझते वो यहां तक पहुंचा था। पर इस बारे में उसने कभी किसी से बात नहीं की थी यहां तक की दिया से भी नहीं! फिर पिछली रात के वो सारे विज़न्स! वो डरता नहीं था पर इन सबसे गुज़रने के बाद उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई पुराना घाव खुल गया हो...
अब उसे पूरा यकीन था कि इन सबके पीछे अर्शिया ही है। स्कूल बस का एक्सीडेंट हो जाना और सिर्फ उसका बच जाना कल तक उसे बहुत सामान्य लग रहा था। पर कुछ गड़बड़ जरूर थी। उसे अर्शिया की बात याद आई...

"वो मेरी हंसी उड़ा रहे थे और मुझे ये पसंद नहीं...

फिर उसे वर्मा परिवार के नौकर की बातें याद आईं। "घर में पूजा होने वाली थी"...हो तो नहीं पाई!!

"नहीं! वो बच्ची सामान्य नहीं है और शायद दूसरों के लिये खतरा भी है! सब पता करना होगा..वो कहां से आई है? कौन है? उसके असली माता पिता कौन है?" विनय ने मन ही मन सोचा...

पर वो नहीं जानता था कि खुद अर्शिया भी यही चाहती थी!
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इंस्पेक्टर विनय ने मनोज वर्मा के आफिस में कदम रखा। मनोज वर्मा अर्शिया नाम की रहस्यमयी बच्ची का पिता था जिसने उस बच्ची को गोद लिया था। लगभग एक हफ्ते पहले विनय ने उस बच्ची की जान बचाई थी(कम से कम उसे तो यही लगता था) तब से विनय का दिमाग उसी बच्ची में उलझा हुआ था। दो दिन पहले जब वो उस बच्ची से मिला था उसी रात उसे बहुत ही डरावने विज़न्स आए थे और वो ठान चुका था कि वो उस बच्ची के बारे में सब पता लगा कर रहेगा।
"अरे आप! फिर से?" मनोज वर्मा थोड़ी नापसंदगी से बोला।
"हां मैं" विनय थोड़ा कठोर स्वर में बोला "ऐनी प्राबलम?"
"मुझे लगा पूछताछ पूरी हो चुकी है, आप अर्शिया से मिले तो थे दो दिन पहले" वो असंतोष से बोला।
"हां पर आज मैं अर्शिया से नहीं आपसे मिलने आया हूं..."
"बैठीये" वो अनमने ढंग से बोला
"तो अर्शिया आपको एक पार्टी में मिली थी? राईट?" विनय ने पूछा।
"इन सबका उस स्कूल बस हादसे से क्या लेना देना?" वो बोला।

विनय ने उसे घूर कर देखा।
"हां वो..मेरे एक क्लाइन्ट की मैरीज एनिवर्सरी की पार्टी थी"
"कहां?" विनय ने पूछा
"भाटिया फार्म हाउस। मिस्टर जयंत भाटिया, मेरे क्लाइंन्ट हैं। यहां से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर रिंग रोड पर उनका फार्म हाऊस है..आलीशान! उसी पार्टी में वो बेचारी बच्ची भटक रही थी। उसने जरा सा खाना क्या चुरा लिया इवेंट मैनेजर ने उसे बहुत डांटा। फिर मेरी रिक्वेस्ट पर मिस्टर भाटिया ने उसे वहीं रूकने दिया। फिर हम उसे घर ले आए आगे तो मैं आपको बता ही चुका हूं"
"तारीख क्या थी तब?" विनय ने पूछा।
"बीस फरवरी"
विनय उसे गौर सा देखता हुआ बोला.."आपके घर में सबकुछ सामान्य है? उस लड़की के आने के बाद से??"
वो साफ साफ परेशान दिखने लगा।
"वो..वो मेरी बीवी उसे पसंद नहीं करती" वो धीरे से बोला।
"क्यों?" विनय ने पूछा।
"बोलते हुए अजीब लग रहा है...पर वो उससे..शायद डरती.."
बाकि की बात उसके मुंह में ही रह गई। विनय चौंकते हुए इतनी तेजी से उठा कि उसकी कुर्सी पीछे गिर गई।
"क्या हुआ?" वो हकबकाया सा पूछा।
मनोज वर्मा जहां बैठा था उसके पीछे एक खिड़की थी। सामने बैठे विनय का पूरा ध्यान मनोज वर्मा पर था..एक सेकेंड को उसकी नज़र खिड़की पर पड़ी तो वो उछल पड़ा।

वहां अर्शिया का अंदर झांकता हुआ चेहरा था!!

"क्या हुआ इंस्पेक्टर?" मनोज वर्मा ने दुबारा पूछा। अर्शिया अब नहीं दिख रही थी। पर विनय धाड़ धाड़ बजते दिल के साथ धीरे धीरे खिड़की के पास आया और वहां से बाहर देखने लगा।

,
वो नौवी मंज़िल की खिड़की थी जो रोड की तरफ खुलती थी जिसके नीचे न कोई सीढ़ी थी और न ही बालकनी!!
वो वहां कैसे पहुंची!!!

"सर आज से लगभग डेढ़ साल पहले बीस फरवरी की रात रिंग रोड पर एक भयानक एक्सीडेंट हुआ था। ट्रक और बस की भिड़ंत हुई थी..बस के सारे यात्री और ट्रक के हेल्पर की आॅन द स्पाट डेथ हो गई थी। वो एक्सीडेंट की लोकेशन भाटीया फार्म हाऊस से तेरह किलोमीटर की दूरी पर है। सर इस एक्सीडेंट के अलावा उस डेट के आस पास भाटीया फार्महाउस से रीलेटेड कोई और खास बात नहीं है" सब इंसपेक्टर अर्जुन बोला।
विनय अपने आफिस में बैठा था जब उसके सब इंस्पेक्टर ने उसे ये जानकारी दी।
"हम्म्म..." विनय आह भरता सा बोला... "तो एक और एक्सीडेंट!!
विनय उस ट्रक ड्राईवर से भी मिलने गया जो कि अब पागल हो चुका था और सरकारी पागलखाने में था। उससे भी कुछ खास पता नहीं चला। बस उसे हर जगह 'एक बच्ची' दिखाई देने लगी थी। इन सबमें तीन दिन बरबाद हुए। विनय वापस लौट रहा था। शाम हो रही थी। उसने दिया से मिलने का सोचा जो उसकी मंगेतर थी।

"ओ...हो! याद आ गई मेरी!" वो थोड़ी नाराज़गी दिखाती हुई बोली। विनय बस अभी उसके फ्लैट पे पहुंचा ही था। शाम हो रही थी। दिया दूर खड़ी उसे घूर रही थी। विनय आगे बढ़ा और उसे बाहों में भर लिया। दिया भी मुस्कुराती हुई उससे लिपट गई। तीन दिनों में पहली बार उसे थोड़ा सुकून महसूस हुआ।
"मम्मी!!!" दिया अचानक चिल्लाई। विनय ने हड़बड़ा कर उसे छोड़ दिया और पलट कर देखने लगा। वहां कोई नहीं था। दिया शरारत से हंसने लगी।
"आज तुम डिनर के लिये रुक रहे हो। मम्मी पापा एक महीने के ,
लिये बाहर गए हैं.." दिया किचन में जाती हुई बोली।
"फिर डिनर क्यों...रात में भी यहीं रुक जाता हूं" विनय डाईनिंग टेबल की एक कुर्सी पर बैठता हुआ शरारत से बोला। जवाब में दिया ने उस पर ग्लास फेंका जो कि उसने लपक लिया। तभी विनय की नज़र टेबल पर पड़े एक बड़े से सफेद कागज़ पर पड़ी। उसने उसे उठा लिया। वो विनय का ही पेंसील स्केच था!
"तुमने मेरी बाइसेप्स कुछ जादा ही नहीं बना दी..इतने के लिये तो मुझे हर रोज़ हंड्रेड डीप्स एक्स्ट्रा मारने होंगे"
"मुझे स्केचिंग कहां आती है.." दिया कमरे में आई। उसके हाथों में काॅफी के दो मग थे।
"वो तो अर्शिया ने बना दिया...
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Re: शैतान से समझौता

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विनय के हाथ से वो स्केच छूट गया। उसे लगा जैसे उसका दिल गले में आकर धड़कने लगा हो। अचानक दिया के मुंह से अर्शिया का नाम सुन कर वो दहल गया।
"अर..शिया..?" वो अनिश्चितता से बुदबुदा।
"अरे हां तुमको कैसे मालूम होगा! तुम तो बाहर थे दो तीन दिन से...बेचारी बच्ची! उसके बाप ने, कोई मनोज वर्मा है उसकी मां अमृता पर जानलेवा हमला किया फिर वो अर्शिया के भी पीछे पड़ गया। वो तो पड़ोसीयों ने बचा लिया वरना अनहोनी हो जाती" वो गंभीर स्वर में बोली।
"तो अब अर्शिया कहां है?" विनय ने पूछा पर वो जवाब सुनने से घबरा रहा था..
"फिलहाल हमारे ही आॅरफनेज(अनाथआश्रम) में और कहां..मैंने बात की है उससे। बहुत ही प्यारी है..."

दिया एक एनजीओ की एक्टिव मेंम्बर थी जो अनाथ बच्चों के लिये काम करता था।
"तुमने बात की उससे?" विनय ने कोशिश की कि उसकी घबराहट उसके चेहरे पर न दिखे।
,
"हां बहुत सारी" दिया अपने काॅफी के मग से खिलवाड़ करती हुई आराम से बोली।
"वो आॅरफनेज में नई थी न और अकेली भी तो मुझे उसे कंफर्टेबल तो करना ही था न..."

विनय को याद आया कि जब वो अर्शिया से मिलकर लौटा था तो उस रात उसकी क्या हालत हुई थी....

"मैं आज रात यहीं रुक रहा हूं.." वो जल्दी से बोला
दिया को काफी पीते हुए जोर का ठसका लगा।
"व्हाट!!! आर यू मैड!!" वो हैरानी से बोली
"एम सीरीयस" विनय गंभीर आवाज़ में बोला।
दिया ने अपनी बाहें उसके गलें में डाल दी
"क्या इरादे हैं दरोगाजी!!!" वो मुदित स्वर में बोली...

रात के दो बज रहे थे। दिया अपने कमरे में आराम से सो रही थी। बाहर लीविंग रूम में सोफे पर विनय लेटा हुआ था। पर उसकी आंखों नींद का नामो निशान न था....

अर्शिया अब दिया तक पहुंच गई थी!!
सैकड़ों अनाथ आश्रम होंगें इस शहर में पर उसे दिया के पास ही आना था!! क्यों?
वो बेचैनी से करवट बदला।

अच्छा खासा मनोज वर्मा! पेशे से लीगल एडवाईज़र! अचानक पागल हो गया और अपनी ही पत्नी पर हमला कर बैठा! ये अर्शिया की ही करतूत होगी...वो लड़की कुछ भी कर सकती है...
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Re: शैतान से समझौता

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उस रात जो हुआ था उसका अंदाजा लगाना अब जादा मुश्किल नहीं था। जरूर अर्शिया ही उस ट्रक-बस हादसे की जिम्मेदार थी। ,
फिर वो भटकती हुई भाटिया फार्महाउस जा पहुंची जो पास ही था। जहां उसे मनोज वर्मा और उसकी पत्नी मिले गए।
बड़ी सज़ा मिली उन बेचारों को एक "बेचारी अनाथ बच्ची" पर दया दिखाने की!

वो उठ कर बैठ गया। नहीं! चाहे कुछ भी हो जाए। वो दिया पर आंच नहीं आने देगा। वो कल सुबह ही दिया से बात करेगा और उसे सबकुछ समझा देगा। अर्शिया किसी जहरीली मकड़ी की तरह उसके ईर्दगिर्द जाले बुन रही थी और वो उसमें फंसता ही जा रहा था...पहले उसके खुद के दिमाग से खिलवाड़ और अब वो दिया तक आ पहुंची थी।और अब जरूरी हो गया था कि अर्शिया के असली मां बाप का पता चले....

तभी बाहर रोड पर कोई वाहन गुजरा जिसकी तेज़ लाईट लीविंग रूम की बालकनी पर पड़ी। विनय चौंक गया।

बालकनी के पर्दों के पीछे एक लंबा काला साया खड़ा था!!!

विनय ने साईड टेबल से अपनी सर्विस रिवाल्वर उठा ली उसका सेफ़्टी कैच हटाया और धीरे धीरे बाल्कनी की तरफ बढ़ने लगा...उसने बालकनी का दरवाज़ा खोला और धीरे से बाहर आया। वहां कोई नहीं था। उसने आस पास चेक किया।
यहीं तो था कोई!! कहां गया!
विनय सोच ही रहा था कि अंदर से फोन की घंटी सुनाई दी। विनय वापस लीविंग रूम में आ गया।
इस वक्त कौन होगा!!

"हैलो!..उसने फोन उठाया और.... एक जानी पहचानी सी दहशत फिर से उसे जकड़ने लगी...
फोन पर फिर से तीखी फुसफुसाहटें सुनाई दे रही थीं जैसे बहुत से ,
लोग आपस में फुसफुसा कर बातें कर रहे हों!
फिर उसे एक साफ...तीखी..कर्कश..फुसफुसाहट सुनाई दी...

"तुम्हें क्या लगता है...साथ रह कर बचा लोगे उसे??

विनय फोन पकड़े पकड़े जड़ हो गया था। वो सांस लेना तक भूल चुका था...
....."और तब क्या होगा जब वो अकेली होगी...
फिर एक हंसी का स्वर उभरा..मानो सैकड़ों जंजीरें आपस में टकरा रही हों.....
एक पल बाद विनय थोड़ा संभला फोन वापस पटका और भाग के दिया के रूम में पहुंचा।
वो दीन दुनिया से बेखबर आराम से सोई पड़ी थी। विनय उसके पास ही एक ईज़ी चेयर पर बैठ गया।

"गुड मार्निंगगग....वो अंगड़ाई लेती हुई मुस्कुराई। सुबह हो गई थी।
"जल्दी उठ गए?" दिया ने पूछा
"हां बस..अभी उठा" विनय बोला। उसने नहीं बताया कि वो रात भर उसके पास बैठा उंघता रहा।

कुछ देर बाद दोनों डाईनिंग टेबल पर चाय के साथ बैठे थे। विनय सोच ही रहा था कि वो कैसे अपनी बात शुरू करे...तभी उसका मोबाईल बजा। कंट्रोलरूम से फोन था। विनय बात करता हुआ खड़ा हो गया।
...ओके ओके...यूनीट तैयार करो मैं बस पहुंच ही रहा हूं.."
वो दिया की तरफ मुड़ा। वो हैरान दिख रही थी।
"दिया मुझे तुरंत पहुंचना होगा। सुनो..मेरी बात ध्यान से सुनो..उस..उस लड़की से दूर रहो..ठीक है! अर्शिया से दूर रहो और हो सके तो उसे दूसरे बच्चों से भी दूर रखो"
"क्या?" दिया अचकचाई "पर हुआ क्या?"
,
"पूरी बात बताने का वक्त नहीं मुझे तुरंत कहीं जाना है पर..." उसने दिया का हाथ अपने हाथों में ले लिया.."प्रामिस मी कि तुम आज उस से दूर रहोगी..मैं शाम को लौट कर तुम्हें सब बताता हूं"
"ओक रिलैक्स" वो उसका हाथ दबाती हुई बोली।
विनय ने एक बार उसे गले लगाया फिर जल्दी से चला गया। उसके आधे चाय को छोड़े हुए कप को देखती दिया सोच रही थी... ये अर्शिया को कैसे जानता है!
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