हादसा

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Kamini
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Chapter 4


मनोहर चुपके से वापस घर में दाखिल हुआ. दरवाजा खुला ही था इसलिए उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. अंदर घुसते ही उसे सुरभि, विजय और लोकेश की आवाजें सुनाई दी. तीनों दिखाई नहीं दे रहे थे पर उनकी आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी मनोहर को.

“हमें ऊपर जाना ही नहीं चाहिए था,” सुरभि ने कहा.

“ऊपर जाने का आईडिया लोकेश का था,” विजय बोला.

“चुप कर बे. सारा इल्जाम मुझ पर मत डाल...” लोकेश ने कहा.

मनोहर दबे पाँव आगे बढ़ा. वो तीनों किचन के दरवाजे के पास खड़े थे. मनोहाहर को देखते ही वो चुप हो गए.

“क्या हुआ... आगे बोलिए... देखें तो सही ऐसा क्या गुल खिलाया आप तीनों ने ऊपर की बेचारे विक्की की जान चली गई...” मनोहर ने कहा.

“तुमने दरवाजा लॉक नहीं किया था क्या?” लोकेश धीरे से बोला.

“भूल गया था शायद...” विजय ने कहा.

“दरवाजे को मारिये गोली और पूरी बात बताइये. अगर कुछ भी छुपाया तो अंजाम बुरा होगा,” मनोहर गुस्से में बोला.

“हमने उसे नहीं मारा सर,” सुरभि बोली. अब वो बड़े प्यार से बात कर रही थी.

“वो सब बाद में देखेंगे... आप तीनों विस्तार से बिना कुछ छुपाए सब कुछ बताओ...” मनोहर ने कहा.

विजय, लोकेश और सुरभि ने एक दुसरे की तरफ देखा और सच उगलना शुरू कर दिया.
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Chapter 5


क्या हुआ... कैसे हुआ... सब विस्तार से!

एक हफ्ते पहले की बात है. उस दिन सुबह से ही सुरभि का मन बहुत बेचैन था. उसके दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी और उसके मन में अजीब अजीब ख़याल आ रहे थे. उसकी इस परेशानी की वजह लोकेश था. लोकेश उसके पति विजय के बचपन का दोस्त था. वो उसकी पत्नी और बेटे के साथ भोपाल में रहता था वहाँ उसका कपड़ों का कारोबार था. और अब वो कुछ दिन के लिए उनके घर रहने आ रहा था. उसका यहाँ आना सुरभि को बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था. इस बात की अपनी एक वजह थी.

वो पहली बार उससे अपनी और विजय की शादी में मिली थी. पहली नज़र में तो सुरभि को अच्छा लगा था वो क्योंकि दिखने में वो एकदम स्मार्ट था पर वैसे बड़ा ही बदतमीज़ क़िस्म का आदमी था ये लोकेश. शराफ़त का तो उसमें लेशमात्र भी नहीं था. शादी वाले दिन उस ने शराब पी कर जो हंगामा किया था उसकी बातें आज तक भी सुरभि के मायके में होती थी. वो लोग तो बहुत परेशान हो गए थे उस दिन उसकी हरकतें देख देख कर. वैसे कहने को तो वो विजय का दोस्त था और उसी की शादी में इतना हंगामा किया. यहाँ तक कि विजय भी उसे रोक नहीं पाया. पता नहीं क्यों इतना डरता था विजय लोकेश से जो कुछ नहीं कह पाया उसको उस दिन. वो अक्सर सोचती थी कि ऐसे आदमी से विजय की दोस्ती कैसे हुई होगी.

बस यही वजह थी सुरभि की परेशानी की. जिसे वो पसंद नहीं करती थी वो अब अचानक से उनके घर दिल्ली पता नहीं क्या करने आ रहा था और वो ये भी नहीं जानती थी कि वो कितने दिन के लिए उनके घर रुकेगा. उसे कुछ भी ठीक से पता नहीं था क्योंकि विजय पिछले काफ़ी दिनों से अपने ऑफ़िस के किसी प्रॉजेक्ट में बहुत बिजी था और उसी के सिलसिले में उसे दो हफ़्तों के लिए मुंबई जाना पड़ रहा था .वो आज रात ही मुंबई के लिए निकलने वाला था इसलिए इस बारे में ज़्यादा बात नहीं हो पाई थी. विजय ने उसे आज सुबह बस इतना ही बताया था कि लोकेश कुछ दिनों के लिए उनके घर आ रहा है और फिर वो उसे लेने रेलवे स्टेशन चला गया.

इसीलिए सुरभि को आज ये चिंता सता रही थी कि उसे अकेले ही इस बिन बुलाए मेहमान के साथ रहना पड़ेगा. पता नहीं कैसे कटेंगे उसके ये दिन. ये सोच सोच कर वो बेचैन सी अपने बेडरूम में इधर उधर घूमें जा रही थी.

‘पता नहीं वो यहाँ क्या करने आ रहा है…और आना ही था तो किसी होटल में रुक जाता…ऐसे किसी के घर आने की क्या ज़रूरत थी,’ सुरभि मन ही मन बोली.

तभी एक ज़ोर के हॉर्न की आवाज़ से उसके विचारों की लड़ी टूटी. वो दौड़ कर खिड़की के पास गई और पर्दा हटाकर बाहर झांक कर देखने लगी तो पाया कि विजय की कार बाहर खड़ी थी. वो लोकेश को रेलवे स्टेशन से ले आया था.

कार के गेट को खोलकर लोकेश बाहर निकल आया. वो जरा भी नहीं बदला था. जैसा वो उनकी शादी के टाइम पर दिखता था आज भी वैसा ही लग रहा था. चौड़ा सीना, लम्बा क़द…उसका डील डोल किसी फ़िल्मी हीरो से कम ना था. ब्लू जींस और रेड टीशर्ट में वो और भी स्मार्ट लग रहा था. उसे देखते ही सुरभि की नज़रें अटक गई उसपर.

‘कितना हॉट है ये बंदा. पता नहीं इसकी बीवी इसको बिस्तर में कैसे संभालती होगी,’ वो मन ही मन सोचने लगी और मुस्कुरा पड़ी.

विजय ने लोकेश का सामान कार से निकाल कर बाहर रख दिया और कार साइड में पार्क कर के घर की तरफ़ आने लगा.

“अबे साले ख़ाली हाथ किधर जा रहा है तू? इतनी दूर से थक हार के आया हूँ और तू ये सामान भी मुझ से ही उठवाएगा.” लोकेश ने अधिकार जताते हुए विजय को कहा. सुरभि को हैरानी हुई कि वो कैसे उसके पति पर हुक्म चला रहा था.

“उठा लूँगा भाई... थोडा सब्र करो...”

“तुम्हारी बीवी कहाँ है? उसे मेरे आने के बारे में बताया या नहीं? कहीं नज़र नहीं आ रही. उसको बुला लो ना मदद के लिए,” लोकेश ने दरवाज़े की ओर देखते हुए कहा.

“ये क्या बात हुई …ऐसे भला कौन अपने दोस्त की बीवी के लिए बोलता है,” सुरभि मन ही मन में बड़बड़ाई.

“तुम अंदर जाओ, लोकेश . सामान की चिंता मत करो. मैं ये सब ख़ुद ले आऊँगा,” विजय ने प्यार से कहा.

कितनी अजीब बात थी. इस खडूस बदतमीज़ के साथ विजय इतना दब्बू के जैसे क्यों पेश आ रहा था. पता नहीं वो ऐसा क्यों कर रहा था.

तभी सुरभि ने देखा कि लोकेश घर के सामने खड़ा पूरे घर का बारीकी से मुआयना कर रहा था. वो झट से पर्दा छोड़ कर खिड़की से पीछे हट गई.

कोई लगभग पंद्रह मिनट के बाद नीचे से विजय की आवाज़ आई, “सुरभि,…कहाँ हो तुम? देखो तो कौन आया है.”

“लगता है तुम्हारी बीवी तुम्हारे कहने में नहीं है विजय वरना ये कौन सा तरीक़ा होता है घर आए मेहमान के स्वागत करने का. बताओ…ये क्या बात हुई भला. मेहमान घर पे पहुँच भी गया मेमसाब का कुछ पता ही नहीं. चाय पानी को तो भूल ही जाओ. ,” लोकेश ने कहा.

ये सब सुनकर ग़ुस्से के मारे सुरभि का चेहरा लाल हो गया. वो हैरान थी कि लोकेश इस तरह से उसके बारे में बोल रहा था. पता नहीं कहाँ का महाराजा समझता है ख़ुद को. एक तो बिना बुलाए यहाँ टपक पड़ा था और ऊपर से अनाप शनाप बोल रहा था

“ऐसी बात नहीं है लोकेश. हो सकता है उसकी आँख लग गई हो वरना तो वो यहीं होती,” विजय ने कहा.

“मुझे उल्लू मत बनाओ विजय. मैं सब जानता हूँ कि वो मुझसे कन्नी काट रही है.”

सुरभि ने ग़ुस्से में अपनी गर्दन हिलाई. वो नीचे बिलकुल भी नहीं जाना चाहती थी पर फिर भी सिर्फ़ विजय की ख़ातिर उसने नीचे जाने का मन बनाया.

उसने ग़ुस्से में पैर पटके और फिर नीचे जाने के लिए चल पड़ी. वो धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरती हुई ना चाहते हुए भी बिन बुलाए मेहमान के पास जा रही थी. उतरते हुए उसने देखा कि लोकेश बड़े मजे से लिविंग रूम में सोफ़े पर पसरा हुआ था और विजय नजदीक खड़ा अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था.

“हेलो भाभी जी…कैसी हो?” लोकेश ने सुरभि को सिर से पैर तक देखते हुए पूछा.

“मैं ठीक हूँ… तुम कैसे हो, लोकेश?” सुरभि ने कहा.

“ मैं बिलकुल भी ठीक नहीं हूँ भाभी. ठीक हो भी कैसे सकता हूँ? ना चाय ना पानी…जिस घर में मेहमान का इस तरह स्वागत हो वहाँ भला कोई ठीक कैसे हो सकता है?” लोकेश ने उलाहना देते हुए कहा.

उसकी बात सुन कर वो सकपका गई और बात को संभालते हुए बोली, “ऐसी कोई बात नहीं है, लोकेश. दरअसल मुझे पता ही नहीं चला कि तुम आ गए .”

“मुझे सब पता है... मुझे लगता है आपको मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लग रहा.”

“ऐसा नहीं है लोकेश...”

“चलिए ठीक है कोई बात नहीं...मुझे गरमा गर्म चाय पिला दो. मैं बहुत थका हुआ हूँ,” लोकेश ने मुस्कुराते हुए कहा. बोलते वक्त उसकी नज़रें सुरभि के उभारों पर टिकी थी.

सुरभि को लोकेश की बातें बिलकुल भी अच्छी नहीं लग रही थी. ‘देखने में तो कितना स्मार्ट है पर बातें देखो इसकी …मेरा बस चले तो गरम गरम चाय इसके मुँह पर फेंक दूँ,’ मन ही मन ये सोचती हुई सुरभि किचन की तरफ़ चल दी.

विजय भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा.

“विजय, मैं यहाँ इस पागल आदमी के साथ अकेले नहीं रह सकती. या तो तुम अपना मुंबई का ट्रिप कैंसल करो या इसका इंतज़ाम कहीं और कर दो,” सुरभि ने झल्लाते हुए कहा.

“बस कुछ दिनों की ही तो बात है जानू .तुम तो जानती हो कि वो मेरा बेस्ट फ़्रेंड है.”

“बेस्ट फ़्रेंड है तो क्या कुछ भी बोलता रहेगा …ज़रा भी तमीज़ नहीं है बात करने की इस जाहिल इंसान को,” सुरभि फिर ग़ुस्से में बोली.
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Re: हादसा

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“अरे वो ऐसा ही है बचपन से. किसी को कुछ भी बोल देता है. उसकी बातों को दिल से मत लगाओ...”

“क्यों ना दिल से लगाऊं... ऐसी बातें मैंने कभी नहीं सुनी किसी से. इसे यहाँ से दफा करो या तुम अपना जाना कैंसिल करो...”

“प्लीज़ हनी…तुम तो जानती हो की मुंबई जाना इस वक्त मेरे लिए कितना ज़रूरी है. अगर ऐसा ना होता तो मैं तुम्हें अकेले छोड़ कर कभी ना जाता,” विजय ने कहा.

“अगर तुम नहीं रुक सकते तो उसे भेजो यहाँ से...”

“बात को समझो जानू... ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा. पहली बार हमारे घर आया है वो...”

“तुम्हें उसे बता देना चाहिए था कि तुम बाहर जा रहे हो.... बाद में आओ...”

“ऐसा नहीं कर सकता था मैं...”

“बस ये कर सकते हो कि मुझे उसके साथ छोड़ दो... हैं ना? ऐसा करना बड़ा आसान है तुम्हारे लिए...”

“हाँ आसान तो है...”

“क्यों जी... क्यों आसान है ऐसा करना?”

“मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ... तुम सब संभाल लोगी.”

“कैसे संभाल लूंगी..”

“सच में मुझे पूरा यक़ीन है कि तुम कुछ भी संभाल सकती हो,” उसने उसे प्यार से बाँहों में भरते हुए रोमांटिक अन्दाज़ से कहा.

“बस बस रहने दो…ज़्यादा मक्खन मत लगाओ. मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाली,”सुरभि ने उसकी बाहों से बाहर निकलते हुए कहा.

“मक्खन नहीं लगा रहा. सच बोल रहा हूँ… अच्छा एक बात बताओ... तुम तो हमेशा कहती थी ना कि तुम्हें अल्फ़ा मर्द पसंद है फिर लोकेश से क्यों चिड़ती हो. इसे एक चैलेंज की तरह लोगी तो सब ठीक रहेगा. तुम सब संभाल लोगी.”

विजय सही कह रहा था. सुरभि को ऐसे ही रोबदार स्वभाव के आदमी पसंद थे. ये बात उसने विजय को सुहागरात वाली रात को बताई थी बातों बातों में. उसे रोबदार आदमी इतने पसंद थे की वो उनके साथ बिस्तर पर अलग अलग कल्पनाएँ भी करती रहती थी. ये उसकी सीक्रेट फेंटेसी थी कि इस तरह का अल्फ़ा मर्द उसकी लाइफ़ में हो तो मज़ा ही आ जाए. तो क्या लोकेश के रूप में वही मर्द उसके घर में आ गया था जिसकी कल्पना वो करती रहती थी?

सोचते सोचते सुरभि के तन बदन में गुदगुदी सी होने लगी और उसने अपनी दोनो टाँगे भींच ली उस तड़प को दबाने के लिए जो बहुत ज़ोर से उसके बदन में उठ रही थी. थोड़ी देर बाद उसने ग़हरी साँस लेते हुए गर्दन हिलाई और अपने मन में कहा कि ‘देखते है ऊँट किस करवट बैठेगा.’ अभी तो उसे लोकेश जरा भी पसंद नहीं आ रहा था. क्या होगा और क्या नहीं ये सब सोचना बेकार था.
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Chapter 6


लोकेश की ख़ातिरदारी करने के बाद विजय ने उसे उसका कमरा दिखा कर आराम करने के लिए बोल दिया और वो अपने कमरे में जाकर अपने मुंबई जाने की पैकिंग करने लगा और सुरभि किचन में शाम के खाने की तैयारी करने लगी.

शाम को डिनर करने के बाद विजय ने उबर टैक्सी बुक की और एयरपोर्ट के लिए निकल गया. सुरभि भी लोकेश को गुड नाइट बोलकर जल्दी से अपने कमरे में सोने चली गई.

अगले दिन सुबह क़रीब छः बजे अपने कमरे के दरवाज़े पर सुरभि को ठक ठक़ की आवाज़ सुनाई दी.

“हे भगवान! कौन है जो सुबह सुबह परेशान कर रहा है?” वो बड़बड़ाती हुई उठी. उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि इतनी सुबह-सुबह कौन उसे परेशान कर रहा था. घर में आए बिन बुलाए मेहमान की ओर उसका ध्यान ही नहीं गया.

वो नाइटी पहन के सोई थी. उसके नीचे उसने ब्रा भी नहीं पहनी थी. इसलिए वो फटाफट कपड़े बदलने के बारे में सोच ही रही थी कि दरवाजे पर फिर से ठक ठक की आवाज़ हो गई. वो झल्ला कर उन्ही कपड़ों में दरवाज़ा खोलने चल पड़ी.

दरवाज़ा खोलते ही उसने सामने लोकेश को खड़े पाया. वो नीले रंग के ट्रैक सूट में था. ‘ये यहाँ क्या कर रहा है इस वक्त?’ सुरभि ने मन ही मन सोचा.

“ये क्या बात हुई भाभी जी, आप तो अभी तक सो रही हो. मुझे बैड टी वगेरह कौन देगा.” उसने सुरभि के उभारों की और देखते हुए शिकायती लहजे में कहा.

उस वक्त सुरभि को अहसास हुआ कि काश उसने किसी कुक को रखा होता घर पर तो उसकी लाइफ कितनी आसान होती. पर अब क्या हो सकता था. अगर कूक ढूँढने भी जाएँ तो भी वक्त लग जाएगा. अब ये सब हर हाल में उसे ही झेलना था.

“ओह, आई एम सॉरी…लोकेश. मै अभी चाय बनाकर लाती हूँ, तुम दो मिनट लिविंग रूम में बैठो,” सुरभि ने उससे नज़रें चुराते हुए कहा.

“बस रहने दो…अब तो मैं सैर करने जा रहा हूँ. चाय पिलानी होती तो पहले ही उठ जाती. ख़ैर छोड़ो…मुझे बस यहाँ आस पास किसी पार्क का रास्ता बात दो...”

सुरभि को ग़ुस्सा तो बहुत आया पर अपने मन को शांत रखते हुए उसने लोकेश को नज़दीक के एक पार्क का रास्ता बात दिया.

लोकेश के जाने के बाद सुरभि ने ज़ोर से अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और ग़ुस्से में गर्दन हिलाते हुए अपने बैड पर जा कर लेट गई. वो हैरान थी कि सुबह सुबह लोकेश उसे चाय का ताना मारने के लिए जगा के चला गया. अगर उसे पार्क का रास्ता ही पूछना था तो बाहर निकल कर किसी से भी पूछ लेता. इतनी सी बात के लिए उसका दरवाज़ा पीटने की क्या ज़रूरत थी भला. ये सब सोचते सोचते सुरभि ने एक ग़हरी साँस ली और करवट के बल लेट गई.

अचानक सुरभि को ध्यान आया कि लोकेश कैसे उसके स्तनों की तरफ़ ललचाई नज़रों से देख रहा था. इस ख्याल से ना चाहते हुए भी उसका चेहरा लाल हो गया.

थोड़ी देर वो ऐसे ही मादक ख़्यालों में खोई रही. उसको इनमें अजीब सा मजा आ रहा था.

लोकेश के सैर से वापिस आने के बाद सुरभि किचन में नाश्ता बनाने की तैयारियों में लग गई. लोकेश कब किचन के दरवाज़े पर आ कर खड़ा हो गया सुरभि को पता ही नहीं चला.

थोड़ी देर में जब सुरभि को अहसास हुआ कि लोकेश पीछे खड़ा है तो उसने कुछ देर के लिए उसे अनदेखा किया जैसे कि उसे कुछ भी पता ना हो कि वो पीछे खड़ा है. थोड़ी देर बाद जब वो फ्रिज से कुछ लेने के लिए पलटी तो देखा कि वो पीछे खड़ा उसके नितंबों को देख रहा था और जैसे ही उसने देखा कि सुरभि ने उसे देख लिया तो वो हंसने लगा. सुरभि एक दम से शर्मा गई. और क्या करती. जब कोई अल्फ़ा मर्द आपके गोल गोल नितंबों को देखेगा तो शर्म तो आएगी ही.

“खाने में क्या बना रही हो भाभी जी,” लोकेश ने पूछा. बोलते वक्त उसकी नज़रें सुरभि के उभारों पर टिकी थी.

सुरभि उसकी इस हिम्मत से हैरान तो थी पर ये उसे थोड़ा थोड़ा अच्छा भी लग रहा था.

“क्या चाहिए तुम्हें नाश्ते में?”

“जो आपकी इच्छा हो दे दीजिये...”

सुरभि सब समझ रही थी. वो नाश्ते की बजाए कुछ और ही मांग रहा था. “मैं बस दो मिनट में नाश्ता लगाती हूँ,” उसने लोकेश को कहा.

“ज़रा जल्दी कीजिए भाभी जी…बहुत भूख लगी है जल्दी खाना नहीं मिला तो ऐसा ना हो कि मैं तुम्हें ही खा लूँ,” उसने बेशर्मी से अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा.

सुरभि उसकी ऐसी बात पर शर्मा गई और बोली, “नहीं नहीं …देर नहीं होगी . तुम बस रेडी हो कर आ जाओ तब तक मैं नाश्ता लगाती हूँ”

पाँच मिनट बाद सुरभि ने नाश्ता डाइनिंग टेबल पर रख कर लोकेश को आवाज़ लगाई , “नाश्ता तैयार है आ जाओ लोकेश.”
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लोकेश जिस कमरे में ठहरा था वो डाइनिंग रूम के साथ ही था इसलिए वो एक आवाज़ पर ही बाहर निकल आया. डेनिम शॉर्ट्स और ब्लैक टीशर्ट में वो काफ़ी हॉट लग रहा था .सुरभि उसे बस देखती ही रह गई.

उसके कुर्सी पर बैठने के बाद सुरभि ने आलू का गर्म गर्म पराँठा उसकी प्लेट में परोस दिया और साथ में दही दे दी.

पराँठा खाते खाते लोकेश बोला “वैसे तो मैं कभी किसी की तारीफ़ नहीं करता पर आज…”

सुरभि की आँख़े चमक उठी अपने बनाए नाश्ते की तारीफ़ सुनने के लिए कि वो बीच में ही बोल पड़ी, “पर आज क्या लोकेश?”

“जो मैं कहना चाहता हूँ पता नहीं तुम्हें वो अच्छा भी लगेगा या नहीं..”

“तुम आराम से नाश्ता करो लोकेश ,मैं ज़रा किचन समेट लूँ.” सुरभि को लगा कि शायद वो अब कुछ अजीब बात ही करेगा इसलिए वो मुड कर किचन की तरफ़ जाने लगी

“भाभी सुनो तो...”

लोकेश की तेज आवाज़ सुन कर वो रुक गई और वापिस डाइनिंग टेबल की तरफ़ मुड़ी.

“ये क्या बात है मैं तुम्हें कुछ बताने जा रहा था और तुम चल पड़ी. जल्दी से यहाँ आ कर बैठ जाओ,” लोकेश ने हुकम चलाते हुए कहा और वो आज्ञाकारी बच्चे की तरह कुर्सी पर आकर बैठ गई. वो उसे डोमिनेट कर रहा था और वो ऐसा होने दे रही थी. अजीब सा मजा आ रहा था उसे उसकी बात मन कर.

लोकेश थोड़ी देर चुप रहा फिर पराँठे का टुकड़ा मुँह में लेते हुए बोला, “भाभी… आपको पता है... आप बहुत सुंदर हो...”

सुरभि को अचानक से समझ नहीं आ रहा था वो क्या जवाब दे तो उसने धीरे से बोला, “थैंक यू.”

“तुम्हारी बॉडी बहुत अट्रैक्टिव है. जैसे तुम्हारे उभार हैं वैसे मैंने कभी नहीं देखे. बहुत सुंदर है स्तन तुम्हारे... और तुम्हारी बैक के बारे में तो मैं क्या ही कहूँ. एक दम मस्त है...”

वो इतने आराम से ये सब कह गया जिसे सुनकर सुरभि की आँख़े फटी रह गई. और अचानक ही उसके मुँह से निकल गया, “ये तुम क्या बोल रहे हो लोकेश?”

“वही जो तुमने सुना,भाभी…सच में तुम्हारे सारे अंग कमाल के हैं.”

ये सुनके तो सुरभि का गला ही सूख गया. इस से पहले कि वो ख़ुद को संभाल पाती वो फिर से बोल पड़ा.

“तुम्हारी बैक सच में बड़ी मस्त है भाभी.”

इतना सुनते ही सुरभि ने शर्मा के अपनी नज़रें झुका ली.

“ये सब बातें तुम पहले से ही जानती हो... हैं ना?”

सुरभि इस सवाल पर चुप रही. भला क्या जवाब दे इन बातों का वो उसे.

“बोलो ये सच है ना भाभी,” लोकेश ने फिर पूछा.

“हाँ,” सुरभि ने धीरे से कहा और ये बोलते हुए उसकी योनि में एक अजीब सी हलचल हुई.

“और क्या तुम ये जानती हो भाभी कि तुम्हारी ये रसीली जवानी मुझ पर क्या क़हर बरसा रही है,” लोकेश ने मादक आवाज में पूछा.

“क्या?” वो अचानक ही पूछ बैठी. ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई कठपुतली हो. वो जो कुछ भी बोल रहा था वो सुन रही थी और जो कुछ भी पूछ रहा था उसका जवाब दे रही थी. वो पूरी तरह उस से डोमिनेट हो रही थी.

इतना सुनते ही लोकेश झट से खड़ा हो गया और अपना शॉर्ट्स नीचे सरका कर अपना तना हुआ लिंग बाहर निकाल कर बोला, “देखो क्या हाल कर दिया है तुम्हारे सुंदर बदन ने मेरा.”

ये सब इतनी अचानक से हुआ कि सुरभि को एक पल भी सोचने का मौक़ा नहीं मिला. उसने झट से अपनी आँख़े बंद तो कर ली थी मगर उस विशाल अंग की झलक फिर भी उसकी आँखो को दिख ही गई थी. और इतनी सी झलक देखकर ही वो बता सकती थी कि उसने क्या देख लिया था. लोकेश का ये अंग उसके पति विजय से लगभग दो गुणा बड़ा लग रहा था. और मोटा इतना था कि पूछो मत. सुरभि का गला सुखा जा रहा था और गाल शर्म से लाल हो रहे थे.

“आँख़े खोल कर देखो ना भाभी, देखो तुमने क्या हालत कर दी है इस बेचारे की,” लोकेश बड़ी ही बेशर्मी से बोला.

इस सब ने सुरभि के होश उड़ा दिए. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे या क्या करे. उसने आव देखा ना ताव पलट कर सीढ़ियों की ओर लपकी और एक पल में अपने कमरे में पहुँच कर अंदर से कुंडी लगा ली. उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था और साँसे फूली हुई थी.

जो नजारा वो अभी देख कर आई थी उसे देख कर वो हैरान थी. उसके मन में कई सवाल आ रहे थे.

‘हे भगवान! ये मैंने क्या देख लिया. लोकेश मुझे अपना हथियार क्यों दिखा रहा था? उसके इरादे क्या हैं? क्या वो मेरी……’ पूरा सोचने से पहले ही उसे अपनी टांगो के बीच कुछ नमी सी महसूस हुई और वो अपने बेड पर जा कर लेट गई. धड़कने उसकी अभी भी तेज थी.
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