संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा
लेखक
विशाल"वरुणपाश"
संक्रांति काल - पाषाण युग
परिचय
यह उस काल की कहानी है जब मनुष्य और पशु में
ज्ञान का अंतर नहीं था । अंतर सिर्फ ताकत पर आधारित होता था । कभी भक्षक, भक्ष्य बन जाता तो कभी भक्ष्य भक्षक । पुरुष अपनी शिकार की योग्यता के आधार पर मालिक बनकर रहता था और मादा उसकी भोग्य वस्तु जो उसके लिए माँस पकाती और उस के लिए संतान पैदा
करती थी ।
चूँकि शिकार करने की योग्यता पर पुरुषों का वर्चस्व माना जाता था साथ ही गुफा की सुरक्षा उसी की जिम्मेदारी थी ,इसीलिए एक से अधिक मादा संतानों का पालन पोषण करना व्यर्थ का व्यय माना जाता था। पहली मादा संतान के बाद में उत्पन्न मादा संतानों को देवता के सुपुर्द कर दिया
जाता था । सिर्फ पुरुष संतानों को ही पालन पोषण मिलता था ।
मादा से यही अपेक्षा की जाती थी की वह मजबूत पुरुष संतान उत्पन्न करे और गुफा के सामर्थ्य को बढाए। जिस गुफा में पुरुष कमजोर होते थे या मादाओं की संख्या ज्यादा होती थी ,उस गुफा पर दुसरी गुफा के मजबूत गुफा पुरुष अधिकार कर लेते थे और उसकी मादाओ के मालिक बन जाते थे।
स्त्री और पुरुष का संबंध मालिक और सेविका का ही माना जाता था ।पुरुष स्त्री की रक्षा और पोषण के बदले उसके देह का इस्तेमाल करता था ।
मालिक शिकार करता है मादा को प्रसन्न करने के लिए
वो मादा को अच्छे से अच्छा शिकार लाता है तो बदले में उम्मीद रखता है की वो रात को उसकी नींदों को हसीन
बनाए ,साथ ही उसके अहं को संतुष्टि दे ।
वो थक जाता है शिकार कर के और अगले दिन के शिकार के लिए उसे शक्ति की आवश्यकता होती थी अतः मादा शिकार को पका कर गुफा के सभी पुरुषों के लिए खाना तैयार करती है ।साथ ही पुरुष की कुंठाओं को भी अपने
प्रेम से शांत करती है।
संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा
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Re: संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा
अम्बी
वो पहली मादा थी जिसने मादा को नारी की पहचान
दिलाई जिसने विचार करना सीखा जिसने देवता की अनुभूति की और अपने अन्तर्मन में देवता के आदेशों
को समझा। वही पहली मादा थी, जिसने देवता का
विधान बताकर , मानव के जीवन में उन नियमों का प्रति
-पादन किया.. ..जो पुरुष की स्वच्छंदता को बाँधते थे
मर्यादा के घेरे में । पशु और मानव में बुद्धि का फर्क उसी
ने उजागर किया था ।
मादा को भी मानव श्रेणी में डालने का श्रेय उसे ही जाता है उसी ने तो सिद्ध किया की मादा भी स्वयं में क्षमता रखती है , खुद के लिए शिकार भी कर सकती है और अपनी इच्छा से अपना पुरुष चुन सकती है ।
पुरुष के शक्तिप्रदर्शन का इनाम नहीं है मादा वो जीवन रखती है वही जीवन देती है वही पालन भी करती है और वही गुरू बनकर पोषण भी कर सकती है ।
हाँ उसका नाम अम्बी था प्रथम क्रांति की प्रणेता
अम्बी ।
वो विचार करती थी यह उसकी विशेष योग्यता थी , जिसके आधार पर मादा के आत्मसम्मान के सिद्धान्त
को उसने प्रतिपादित किया था ।
उसने अन्तर्मन के इशारों को समझना सीख लिया था।
सभी पुरुष उसके मालिक नहीं बन सकते अम्बी का
अंतर्मन कह रहा था, वही एक उसका मालिक है जिसके
संग से उसने मजबूत पुरुष व सौम्य मादा संतान उत्पन्न
की हैं । जिसके साथ की वजह से गुफा की शक्तियाँ
बहुत उन्नत हो गयी हैं ,जिसके साथ मिलकर ,अम्बी ने
अपने से उत्पन्न संतानों को सम्मान करना सिखाया था
अपने उत्पत्तिकर्ता का और अपने पोषक का , साथ ही सम्मान करना अपनी जननी का ।
उसने अपनी संतानों को सिखा़या की वे सम्मान करें
अपने देवता का और देवता के बनाए नियमों का।
अम्बी के पुत्र और पुत्रियाँ जानते थे की-देवता खुद अम्बी
को नियमों का आदेश देते हैं । देवता सबसे शक्तिशाली
है और उसके नियम तोड़ने पर भारी दंड देता है ।
अम्बी और जादोंग अपने से पोषित उन नौजवानों पाँच नवयोवनाओं के परिवार को देख प्रफुल्लित हैं ।पास ही
सारकी व गौरांग भी बैठे मुस्कुरा रहे हैं । पालन पोषण
का अधिकार भले ही अम्बी ने अपने पास रखा ,परन्तु
उन युवाओं और युवतियों में , उनकी संतति भी तो
सम्मिलित हैं । परंतु उनका चुनाव अपने शारीरिक सुख
की पूर्ति करना था ,जबकि अम्बी ने एक परिवार और
एक समाज बनाने के लिए अपना चुनाव किया ।
निश्चित तौर पर वह पहली मादा थी ,जिसने मानवीय
रिश्तों की स्थापना की और संतानों की परवरिश के
तौर तरीके विकसित किए ,उन्हें श्रेष्ठ बनाने के लिए ।
वो पहली मादा थी जिसने मादा को नारी की पहचान
दिलाई जिसने विचार करना सीखा जिसने देवता की अनुभूति की और अपने अन्तर्मन में देवता के आदेशों
को समझा। वही पहली मादा थी, जिसने देवता का
विधान बताकर , मानव के जीवन में उन नियमों का प्रति
-पादन किया.. ..जो पुरुष की स्वच्छंदता को बाँधते थे
मर्यादा के घेरे में । पशु और मानव में बुद्धि का फर्क उसी
ने उजागर किया था ।
मादा को भी मानव श्रेणी में डालने का श्रेय उसे ही जाता है उसी ने तो सिद्ध किया की मादा भी स्वयं में क्षमता रखती है , खुद के लिए शिकार भी कर सकती है और अपनी इच्छा से अपना पुरुष चुन सकती है ।
पुरुष के शक्तिप्रदर्शन का इनाम नहीं है मादा वो जीवन रखती है वही जीवन देती है वही पालन भी करती है और वही गुरू बनकर पोषण भी कर सकती है ।
हाँ उसका नाम अम्बी था प्रथम क्रांति की प्रणेता
अम्बी ।
वो विचार करती थी यह उसकी विशेष योग्यता थी , जिसके आधार पर मादा के आत्मसम्मान के सिद्धान्त
को उसने प्रतिपादित किया था ।
उसने अन्तर्मन के इशारों को समझना सीख लिया था।
सभी पुरुष उसके मालिक नहीं बन सकते अम्बी का
अंतर्मन कह रहा था, वही एक उसका मालिक है जिसके
संग से उसने मजबूत पुरुष व सौम्य मादा संतान उत्पन्न
की हैं । जिसके साथ की वजह से गुफा की शक्तियाँ
बहुत उन्नत हो गयी हैं ,जिसके साथ मिलकर ,अम्बी ने
अपने से उत्पन्न संतानों को सम्मान करना सिखाया था
अपने उत्पत्तिकर्ता का और अपने पोषक का , साथ ही सम्मान करना अपनी जननी का ।
उसने अपनी संतानों को सिखा़या की वे सम्मान करें
अपने देवता का और देवता के बनाए नियमों का।
अम्बी के पुत्र और पुत्रियाँ जानते थे की-देवता खुद अम्बी
को नियमों का आदेश देते हैं । देवता सबसे शक्तिशाली
है और उसके नियम तोड़ने पर भारी दंड देता है ।
अम्बी और जादोंग अपने से पोषित उन नौजवानों पाँच नवयोवनाओं के परिवार को देख प्रफुल्लित हैं ।पास ही
सारकी व गौरांग भी बैठे मुस्कुरा रहे हैं । पालन पोषण
का अधिकार भले ही अम्बी ने अपने पास रखा ,परन्तु
उन युवाओं और युवतियों में , उनकी संतति भी तो
सम्मिलित हैं । परंतु उनका चुनाव अपने शारीरिक सुख
की पूर्ति करना था ,जबकि अम्बी ने एक परिवार और
एक समाज बनाने के लिए अपना चुनाव किया ।
निश्चित तौर पर वह पहली मादा थी ,जिसने मानवीय
रिश्तों की स्थापना की और संतानों की परवरिश के
तौर तरीके विकसित किए ,उन्हें श्रेष्ठ बनाने के लिए ।
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Re: संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा
आज ये गुफा मानव एक सामाजिक जीवन जीना
प्रारंभ कर चुके हैं, वह इनके बर्ताव में स्पष्ट नजर आ
रहा है । सम्मान ,मर्यादाएं ,आपसी व्यवहार में प्रेम
व सौहार्द ,ये सब तो कभी कल्पनाओं में भी ना सोचा
था हमारी विचारशील नायिका अम्बी ने । सबसे बड़ी
बात कि ये सम्मान स्त्रियों के प्रति भी स्पष्ट दृष्टिगत हो
रहा था ,जो पहले मात्र तब दिखाई देता था जब पुरुष
अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए उसके समीप आता
था । वाकई यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन था , वाकई
यह संक्रांति काल था वैचारिक परिवर्तनों का।
उस काल में मादा संतानों का भी पोषण करके अम्बी
ने एक नई परंपरा की शुरुआत की। जिसने मादा को
नारीत्व का सम्मान दिलाया। अभी तक किसी और गुफा
ने इतनी वृद्धि नहीं की पर इस उन्नति की असली वजह
अम्बी की विचार शक्ति है ।
प्रारंभ कर चुके हैं, वह इनके बर्ताव में स्पष्ट नजर आ
रहा है । सम्मान ,मर्यादाएं ,आपसी व्यवहार में प्रेम
व सौहार्द ,ये सब तो कभी कल्पनाओं में भी ना सोचा
था हमारी विचारशील नायिका अम्बी ने । सबसे बड़ी
बात कि ये सम्मान स्त्रियों के प्रति भी स्पष्ट दृष्टिगत हो
रहा था ,जो पहले मात्र तब दिखाई देता था जब पुरुष
अपनी कामेच्छा की पूर्ति के लिए उसके समीप आता
था । वाकई यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन था , वाकई
यह संक्रांति काल था वैचारिक परिवर्तनों का।
उस काल में मादा संतानों का भी पोषण करके अम्बी
ने एक नई परंपरा की शुरुआत की। जिसने मादा को
नारीत्व का सम्मान दिलाया। अभी तक किसी और गुफा
ने इतनी वृद्धि नहीं की पर इस उन्नति की असली वजह
अम्बी की विचार शक्ति है ।
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Re: संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा
◆◆◆◆◆◆【2】◆◆◆◆◆◆
जननी की पीड़ा
अम्बी ने बचपन में ,अपनी जननी के दर्द को ,बहुत गहराई से महसूस किया था । उसे उसकी जननी का अनेक पुरुषों द्वारा शिकार के एवज में नोंचा जाना आज भी खयालों में डराता है !
उसने देखा था पहले सिर्फ राखा (उसका पिता ) उसकी माँ धारा के साथ संसर्ग करता था पर उसके जाने के बाद में उसने अपने भाईयों के अंदर का शिकारी देखा ,जो पहले बड़ा शिकार लाने की होड करते और फिर जो भी सबसे बड़ा शिकार लाता वही धारा को भोगता ।
उस दिन का मंजर याद आते ही अम्बी के रौंगटे खडे हो जाते हैं । सब से बडा कुआंग बड़ा शिकार नहीं ला पाया था ..और ओमांग जो उत्पत्ति के आधार पर चौथे स्थान पर था गर्व प्रदर्शन करता सबके सामने बड़ा शिकार कंधे पर डाले कैसा तनकर आ रहा था । उसके हाव भाव देखकर अम्बी और धारा दोनों ही हंस पड़ी थीं ।
कुआंग को ये अपमान महसूस हुआ , और उसने ओमांग
पर कुल्हाडे़ से वार किया ,एक ही वार में ओमांग ढेर हो गया था।
धारा अपने शरीर के अंश को तड़पता देख कुआंग पर बरस पडी़ और शायद इसे इशारा मान बाकि पाँचों कुआंग पर टूट पड़े थे ,पर एक एक कर कुआंग ने बाकि पाँचों को भी मार दिया ।
धारा को तो समझ ही नहीं आया की ये संसार जो इतने वर्ष लगे थे बसने में ,पुरुष के जरा से आवेश से कैसे ध्वस्त हो गया । टूटे कदमों से धारा और अम्बी ने मिलकर ओमांग समेत बाकि पाँचों को पहाड़ की चोटी पर ले जाकर देवता
के सुपुर्द किया ।
कुआंग घंटों तक घुटनों में सर डाले बैठा रहा । अम्बी को समझ नहीं आ रहा था की कल तक ये सभी तो धारा को भोगते वक्त इतना दर्द देते थे कई दिनों तक निशान नहीं जाते थे और आज वो नहीं हैं , तो भी धारा उतनी ही पीड़ा में क्यों ?
और कुआंग जो कभी धारा को किसी के साथ सहन नहीं
कर पाता था वो क्यों दुखी है ..? जबकि सारे प्रतिद्वंदी उसने स्वयं अपने हाथों से समाप्त कर दिए थे अब तो
वो धारा पर पूर्ण अधिकार जता सकता था ।
शायद ,कुआंग ने आवेश में अपने भाईयों को मार तो डाला पर अब उनके बिना अकेलापन उसे निगल रहा था !
दो ही दिन में उसका बलिष्ठ शरीर पीला पड़ गया ,धारा ने उसे सम्हालने का यत्न किया पर वो इतनी तकलीफ में था कि धारा का आकर्षण भी उसमें उमंग नहीं भर सका।
अगली सुबह , अपने थके शरीर के साथ ,कुआंग शिकार पर गया फिर वापस नहीं आया !शायद,अपनी टूटी देह को देवता को समर्पित कर दिया था उसने !
अब गुफा में मात्र दो प्राणी रह गए थे धारा और अम्बी ।
धारा चिंता में थी सारा माँस खत्म हो गया था , गुफा
में कोई पुरुष भी नहीं था जो माँस ला सके । भूख का
डर तो था ही ,उससे बड़ा डर था सुरक्षा का , अनजाने
पुरुष चेहरों से सुरक्षा का , भयानक पशुओं से सुरक्षा का।
साथ ही डर था एकमात्र संतान अंबी के भावी जीवन का।
अम्बी जिसके जीवन में ..किसी पुरुष का आगमन
नहीं हुआ था ।
जननी की पीड़ा
अम्बी ने बचपन में ,अपनी जननी के दर्द को ,बहुत गहराई से महसूस किया था । उसे उसकी जननी का अनेक पुरुषों द्वारा शिकार के एवज में नोंचा जाना आज भी खयालों में डराता है !
उसने देखा था पहले सिर्फ राखा (उसका पिता ) उसकी माँ धारा के साथ संसर्ग करता था पर उसके जाने के बाद में उसने अपने भाईयों के अंदर का शिकारी देखा ,जो पहले बड़ा शिकार लाने की होड करते और फिर जो भी सबसे बड़ा शिकार लाता वही धारा को भोगता ।
उस दिन का मंजर याद आते ही अम्बी के रौंगटे खडे हो जाते हैं । सब से बडा कुआंग बड़ा शिकार नहीं ला पाया था ..और ओमांग जो उत्पत्ति के आधार पर चौथे स्थान पर था गर्व प्रदर्शन करता सबके सामने बड़ा शिकार कंधे पर डाले कैसा तनकर आ रहा था । उसके हाव भाव देखकर अम्बी और धारा दोनों ही हंस पड़ी थीं ।
कुआंग को ये अपमान महसूस हुआ , और उसने ओमांग
पर कुल्हाडे़ से वार किया ,एक ही वार में ओमांग ढेर हो गया था।
धारा अपने शरीर के अंश को तड़पता देख कुआंग पर बरस पडी़ और शायद इसे इशारा मान बाकि पाँचों कुआंग पर टूट पड़े थे ,पर एक एक कर कुआंग ने बाकि पाँचों को भी मार दिया ।
धारा को तो समझ ही नहीं आया की ये संसार जो इतने वर्ष लगे थे बसने में ,पुरुष के जरा से आवेश से कैसे ध्वस्त हो गया । टूटे कदमों से धारा और अम्बी ने मिलकर ओमांग समेत बाकि पाँचों को पहाड़ की चोटी पर ले जाकर देवता
के सुपुर्द किया ।
कुआंग घंटों तक घुटनों में सर डाले बैठा रहा । अम्बी को समझ नहीं आ रहा था की कल तक ये सभी तो धारा को भोगते वक्त इतना दर्द देते थे कई दिनों तक निशान नहीं जाते थे और आज वो नहीं हैं , तो भी धारा उतनी ही पीड़ा में क्यों ?
और कुआंग जो कभी धारा को किसी के साथ सहन नहीं
कर पाता था वो क्यों दुखी है ..? जबकि सारे प्रतिद्वंदी उसने स्वयं अपने हाथों से समाप्त कर दिए थे अब तो
वो धारा पर पूर्ण अधिकार जता सकता था ।
शायद ,कुआंग ने आवेश में अपने भाईयों को मार तो डाला पर अब उनके बिना अकेलापन उसे निगल रहा था !
दो ही दिन में उसका बलिष्ठ शरीर पीला पड़ गया ,धारा ने उसे सम्हालने का यत्न किया पर वो इतनी तकलीफ में था कि धारा का आकर्षण भी उसमें उमंग नहीं भर सका।
अगली सुबह , अपने थके शरीर के साथ ,कुआंग शिकार पर गया फिर वापस नहीं आया !शायद,अपनी टूटी देह को देवता को समर्पित कर दिया था उसने !
अब गुफा में मात्र दो प्राणी रह गए थे धारा और अम्बी ।
धारा चिंता में थी सारा माँस खत्म हो गया था , गुफा
में कोई पुरुष भी नहीं था जो माँस ला सके । भूख का
डर तो था ही ,उससे बड़ा डर था सुरक्षा का , अनजाने
पुरुष चेहरों से सुरक्षा का , भयानक पशुओं से सुरक्षा का।
साथ ही डर था एकमात्र संतान अंबी के भावी जीवन का।
अम्बी जिसके जीवन में ..किसी पुरुष का आगमन
नहीं हुआ था ।
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Re: संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा
धारा बहुत गहरे सोच में थी अम्बी उसकी गोद में सर रखकर लेटी हुई उसके भावों को समझने का ,प्रयास कर
रही थी ।अचानक अम्बी उठकर बैठ गई शायद वो
धारा की निराशा को समझ गई थी,इसलिए बिना उसे
बताए वह कुआंग का अस्त्र लेकर पहाडी के पास के
वन की ओर निकल गई ।
धारा पूरा दिन उसे तलाशती रही ,वही एक तो रह गई थी जिसके साथ वो अपना अकेलापन बाँटती थी। काफी दूर तक भटकने पर भी जब अम्बी का कोई पता ना चला तो ,आखिरकार , थककर गुफा के बाहर आकर बेठ
गई !
गुफा में घुटनों पर अपना चेहरा टिकाए बेठी धारा ने जब
उसे बाहर से आते देख उसके टूटे शरीर में प्राण आ गए ,
और उसने लपककर बाँहो में जकड लिया अंबी को !
अम्बी को आज के उसके स्पर्श में अलग सी ही ,सुखद अनुभूति हो रही थी।शायद ,ममत्व के भावों से वो पहली
ही बार परिचय हुआ था अम्बी का । इससे पहले भी
धारा कभी कभी अपना प्रेम प्रदर्शित करने हेतु उसे सहलाती थी पर आज का स्पर्श परवाह की अति तक व्याख्या
कर रहा था।
उसने आँखों के इशारे से धारा को लाया हुआ शिकार
दिखाया जिसे उसने पका कर तैयार कर दिया था ,खाने
के लिए। धारा देवता को धन्यवाद दे रही थी की अम्बी
पुरुषों की तरह शिकार में माहिर भी है और एक मादा
की तरह माँस भी पकाना जानती है ।
रही थी ।अचानक अम्बी उठकर बैठ गई शायद वो
धारा की निराशा को समझ गई थी,इसलिए बिना उसे
बताए वह कुआंग का अस्त्र लेकर पहाडी के पास के
वन की ओर निकल गई ।
धारा पूरा दिन उसे तलाशती रही ,वही एक तो रह गई थी जिसके साथ वो अपना अकेलापन बाँटती थी। काफी दूर तक भटकने पर भी जब अम्बी का कोई पता ना चला तो ,आखिरकार , थककर गुफा के बाहर आकर बेठ
गई !
गुफा में घुटनों पर अपना चेहरा टिकाए बेठी धारा ने जब
उसे बाहर से आते देख उसके टूटे शरीर में प्राण आ गए ,
और उसने लपककर बाँहो में जकड लिया अंबी को !
अम्बी को आज के उसके स्पर्श में अलग सी ही ,सुखद अनुभूति हो रही थी।शायद ,ममत्व के भावों से वो पहली
ही बार परिचय हुआ था अम्बी का । इससे पहले भी
धारा कभी कभी अपना प्रेम प्रदर्शित करने हेतु उसे सहलाती थी पर आज का स्पर्श परवाह की अति तक व्याख्या
कर रहा था।
उसने आँखों के इशारे से धारा को लाया हुआ शिकार
दिखाया जिसे उसने पका कर तैयार कर दिया था ,खाने
के लिए। धारा देवता को धन्यवाद दे रही थी की अम्बी
पुरुषों की तरह शिकार में माहिर भी है और एक मादा
की तरह माँस भी पकाना जानती है ।
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