दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली

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jay
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Re: दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली

Post by jay »

फिर मैं अपने आपको सम्हालते हुए अपनी जेब में हाथ डालकर लौड़े को सही करने लगा.. क्योंकि उस समय मैंने सिर्फ लोअर ही पहन रखा था।
मैं जल्दबाज़ी में चड्डी पहनना ही भूल गया था.. तभी मैंने अपने लण्ड को एडजस्ट करते हुए ज्यों ही रूचि की ओर देखा.. तो उसके भी चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान छा चुकी थी.. शायद उसने भी मेरे उभार को महसूस कर लिया था।
मैंने भी उसी समय उससे पूछा- क्या हुआ.. तुम लोग क्यों झगड़ रहे हो?
तो वो बोली- आपको क्या.. आप तो आराम से सोने चले गए.. पर मुझे भाई ने अभी तक काम पर लगाए रखा है.. हद होती है किसी चीज़ की.. पहले अलमारी सही कराई.. मैंने कर दी.. अब इतनी रात को बोल रहा है कि चलो ये कपड़े भी धोओ.. तो मैं बिना कुछ कहे कपड़े मशीन में डालने लगी.. तो बोला मशीन से नहीं.. हाथ से धोओ.. ये भी कोई बात हुई क्या.?
तो मैंने भी बोला- हाँ.. कह तो सही रही हो.. मैं विनोद को समझाता हूँ।
तब तक माया भी वहाँ नाईटी में आ गई.. और मामले को रूचि से समझने लगी।

मैं विनोद के पास बैठकर उसे समझाने में लगा हुआ था कि यार ऐसा न कर.. माना कि हम जीते हैं.. पर है तो वो तेरी बहन ही न.. आराम से काम ले.. जितना आज हो सके उससे.. आज करा.. बाकी कल छोड़कर परसों फिर से करा लियो.. अभी बहुत समय है.. क्यों इतना जल्दिया रहा है.. और वो तो कर भी रही है.. तो उसे अपने हिसाब से करने दे।
विनोद बोला- हाँ यार.. गलती मेरी ही है.. कुछ ज्यादा ही हो गया था शायद.. चल अब नहीं होगा।
तब तक माया भी आई और विनोद से कुछ कहती.. इसके पहले ही मैंने बोला- आंटी.. अब जाने दो.. जो हुआ सो हुआ.. अब कुछ नहीं होगा.. मैंने समझा दिया है।
तो रूचि बोली- अबकी ऐसा हुआ न.. तो मुझे विनोद भाई के साथ नहीं रहना..
मैंने भी बात को सम्हालने के लिए हँसते हुए रूचि से बोला- ओह्हओ.. झाँसी की रानी.. अब ज्यादा न भाव खा.. मैंने उसे समझा दिया है.. अब तंग नहीं करेगा.. जा और जाकर सो जा..
तो वो बोली- अब आप कह रहे हो.. तो कोई नहीं.. पर इससे बोल दियो कि आगे से मैं अपने हिसाब से ही काम करूँगी।
मैंने बोला- ठीक है.. जाओ अब.. तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी.. तुम सो जाओ।
तो वो बोली- ठीक है..
मैं और माया भी कमरे से निकलने लगे।
मैं तो सीधा कमरे में जा कर लेट गया.. पर माया शायद फिर से दरवाज़े के बाहर खड़े हो कर दोनों को समझाने में लगी हुई थी।
अब उसे समझाने दो.. तब तक मैं आपको बताता हूँ कि रूचि में ऐसा मैंने क्या देख लिया था.. जो मेरा लौड़ा फिर से चौड़ा होने लगा था। तो आपको बता दूँ जैसे दरवाज़ा खुला.. तो मेरी पहली नज़र रूचि की जाँघों पर पड़ी.. जो कि चुस्त लैगीज से ढकी थी.. उसकी दूधिया जाँघें उसमें से साफ़ झलक रही थीं और जब मेरी नज़र उसके योनि की तरफ पहुंची तो मैं देखता ही रह गया.. उसने आज नीचे चड्डी नहीं पहने हुई थी। जिससे उसकी चूत भी फूली हुई एकदम गुजिया जैसी साफ़ झलक रही थी।
मैं तो देखते ही खुद पर से कंट्रोल खो बैठा था.. अगर शायद उस वक़्त विनोद वहाँ न होता तो मैं उसकी गुजिया का सारा मीठापन चूस जाता। फिर जब मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी तो वो किसी परी की तरह नज़र आ रही थी। उसके बाल पोनी टेल की तरह बंधे हुए थे और बालों की लेज़र कट उसे खूबसूरत बना रही थी। उसके होंठ भी गजब के लग रहे थे.. मेरा तो जी कर रहा था कि मैं इनका रस अभी चूस लूँ.. मसल के रख दूँ उसकी अल्हड जवानी को।
पर मैं दोस्त के रहते ऐसा कर न सका। हाँ.. इतना जरूर हुआ कि वो भी मेरी चक्षु-चुदाई से बच न सकी.. आँखों ही आँखों में मैंने उसे अपने अन्दर चल रहे उफान को जाहिर कर दिया था.. जिसे रूचि ने मेरे अकड़ते लंड को देखकर जान लिया था। उसकी मुस्कराहट उस पर मोहर का काम कर गई थी।
उस समय उसके चूचे तो क़यामत लग रहे थे। वो टी-शर्ट तो नहीं.. पर हाँ उसके जैसा ही ट्यूनिक जैसा कुछ पहना हुआ था.. जिसमें उसकी चूचियों का उभार आसमान छूने को मचल रहा था। उसकी इस भरी जवानी का मैं कायल सा हो गया था और इन्हीं बातों को सोचते-सोचते मेरी आँखें बंद हो चली थीं।
मेरा हाथ मेरे सामान को सहला रहा था कि तभी माया आंटी अन्दर आईं और ‘धम्म’ से दरवाज़ा बंद किया।
इसी के साथ में स्वप्न की दुनिया से बाहर आया।
अब आगे क्या हुआ यह जानने के लिए उसके वर्णन के लिए अपने लौड़े को थाम कर कहानी के अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा।
तब तक के लिए आप सभी को राहुल की ओर से गीला अभिनन्दन।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली

Post by jay »

जैसे ही मेरी आँखें खुलीं.. तो मैंने आंटी का मुस्कुराता हुआ चेहरा सामने पाया..
मैंने उनसे पूछा- क्या हुआ.. आप इतना मुस्कुरा क्यों रही हो?
तो वो बोलीं- बस ऐसे ही..
मैं बोला- अच्छा.. ऐसा भी भला होता है क्या?
तो वो बोलीं- तुम सो गए थे क्या?
मैंने भी बोला- नहीं.. बस आँखें बंद किए हुए लेटा था..
तो वो बोलीं- क्यों?
मैंने भी बोल दिया- बस ऐसे ही..
बोलीं- तुम भी न.. चूकते नहीं हो.. तुरंत ही कुछ न कुछ कर ही देते हो..
तो मैं बोला- तो फिर बताओ न.. कि अभी क्यों हँस रही थीं?
वो बोलीं- अरे मैं तो इसलिए हँस रही थी.. क्योंकि तुम ऐसे लेटे हुए थे जैसे काफ़ी थक गए हो..
मैं तुरंत ही उठा और उनके चूचे मसलते हुए बोला- अब इनके बारे में क्या सोचोगी।
तो उन्होंने बिना बोले ही अपनी नाइटी उतार दी और मेरे गालों को चूमते हुए मेरे सीने तक आईं और फिर दोबारा ऊपर जाते हुए मेरी गरदन पर अपनी जुबान को फेरते हुए धीरे से बोलीं- अब सोचना नहीं बल्कि करना है.. आज ऐसा चोदो कि मेरा ख़ुद पर काबू न रहे..
तभी एकाएक झटके से मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और उनके ऊपर आ कर उनके होंठों को चूसने लगा।
अब माया भी मेरा भरपूर साथ दे रही थी.. लगातार उसके हाथ मेरी पीठ सहला रहे थे.. उसकी चूत मेरा औज़ार से रगड़ खा रही थी और उसकी टाँगें मेरी कमर पर बँधी हुई थीं।
उसके गुलाबी होंठ मेरे होंठों को चूस और काट कर रहे थे.. माहौल अब इतना रंगीन हो चुका था कि दोनों को भी रुकने का मन नहीं था। अगर कुछ था तो वो था जज्बा.. एक-दूसरे को हासिल करने का।
तभी माया ने देर न लगाते हुए अपने हाथों को मेरे लोवर पर रख दिया और धीरे से उसे नीचे की ओर खींचने लगी।
मैं भी अपने आप को संभालते हुआ खड़ा हुआ और अपना लोवर उतार दिया।
मेरे लोवर उतारते ही आंटी ने मेरा हाथ खींचकर मुझे नीचे लिटा दिया और अपने हाथों से मेरे औज़ार को सहलाते हुए एक शरारती और कातिल मुस्कान दी।
तो मैंने भी उनके मम्मे भींच दिए जिसका उन्हें शायद कोई अंदाजा न था तो उनके मुँह से चीख निकल गई ‘आहह्ह्ह्ह..’
इसी के साथ ही मैंने उनके चूचे छोड़ दिए मेरे चूचे छोड़ते ही वो बोलीं- तूने तो आज जान ही निकाल दी।
वो अपने चूचे को मेरी ओर दिखाते हुए बोलीं- देख तूने इसे लाल कर दिया.. इतनी बेरहमी अच्छी नहीं होती.. आराम से किया कर न..
तो मैंने उनके उसी चूचे के निप्पल को अपनी जुबान से सहलाते हुए बोला- धोखा हो जाता है.. कभी-कभी तेज़ी में गाड़ी चलाते समय तुरंत ब्रेक नहीं लग पाती..
इसी तरह वो झुकी और उन्होंने मेरे होंठों को चूसते हुए पोजीशन में आने लगीं।
मतलब कि उन्होंने मेरे ऊपर लेटते हुए होंठों को चूसते हुए अपने घुटनों को मेरी कमर के बाज़ू पर रखा और चूसने लगीं।
इस चुसाई से मैं इतना बेखबर हो चुका था कि मुझे होश ही न रहा कि कब उन्होंने अपनी कमर उठाई और मेरे सामान को अपनी चूत रूपी सोख्ते से सोख लिया।
उनकी चूत इतनी रसभरी थी और मेरे से चुद-चुद कर उसने मेरे लण्ड की मोटाई भाँप कर मुँह फैलाने लगी थी।
तभी उन्होंने धीरे-धीरे मेरे औज़ार को अन्दर लेते हुए आधा घुसवाया और पुनः बाहर थोड़ा सा निकालकर तेज़ी से जड़ तक निगल लिया।
जिससे मेरे औज़ार ने भी उनकी बच्चेदानी में चोट पहुँचाते हुए उनके मुँह से ‘शीईईई ईएऐ..’ की चीख निकलवा दी।
इसी के साथ उनका दर्द के कारण चुदने का भूत कुछ कम हो गया।
अब मैंने होश में आते हुए अपने दोनों हाथों को उनकी कमर पर जमा दिए.. फिर तभी मैंने हल्का सा सर को ऊपर उठाया और उनकी गरदन को चूसते हुए फुसफुसाती आवाज़ के साथ कहा- अभी आप आगे का मोर्चा लोगी.. या मैं ही कुछ करूँ?
तो वे भी सिसियाते हुए मुझे चूमने लगीं.. और धीरे-धीरे ‘लव-बाइट’ करते हुए अपनी कमर को ऊपर-नीचे करने लगीं।
वे अपने दोनों हाथों को मेरे कन्धे पर टिका कर आराम से चुदाई का आनन्द लेते हुए सिसियाए जा रही थीं ‘आअह्ह्ह.. शीएऐसीईईई..’

मेरे हाथ उनकी पीठ को ऊपर से नीचे की ओर सहला रहे थे और जैसे ही मेरा हाथ उनके चूतड़ों के पास पहुँचता तो मैं उस पर हल्की सी चमेट जड़ देता.. जिससे उनका और मेरा दोनों का ही जोश बढ़ जाता और मुँह से ‘अह्ह्ह्ह..’ की आवाज़ निकल जाती।
इसी तरह मज़े से हमारी चुदाई कुछ देर चली कि अचानक से माया ने अपनी कमर को तेज़ी से मेरी जाँघों पर पटकते हुए मुँह से तरह-तरह की आवाजें निकालना आरम्भ कर दीं ‘अह्ह ह्ह्ह्ह… ऊओऔ.. अम्म म्म्मम.. श्हि.. ऊओह्ह्ह.. ऊऊऊ.. ह्ह्ह्ह्ह..’
जिसके परिणाम स्वरूप मुझे ये समझते हुए देर न लगी कि अब ये अपनी मंज़िल से कुछ पल ही दूर है।
मेरे देखते ही देखते उनके आंखों की चमक उनकी पलकों से ढकने लगी।
‘अह्ह्ह.. आह..’ करते हुए आनन्द के अन्तिम पलों को अपनी आँखों में समेटने लगीं।
उस दिन उनको उनकी जिंदगी में पहली बार इतना बड़ा चरमानन्द आया था.. जो कि उन्होंने बाद में मुझे बताया था।
अब इसके पीछे एक छोटा सा कारण था जो कि मैं आगे बताऊँगा.. अभी आप चुदाई का आनन्द लें।
उनके स्खलन के ठीक बाद मैंने अपनी जाँघों पर गीलापन महसूस किया और इसी के साथ वो अपनी आँखें बंद किए हुए ही मेरे सीने पर सर टिका कर निढाल हो गईं।
मैं उनके माथे को चूमते हुए उनकी चूचियों को दबाने लगा.. जिसे वो छुड़ाने के लिए वो अपनी कोहनी से मेरे हाथ को हटाने लगीं।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस ऐसा लग रहा है.. आज मैं काफी हल्का महसूस कर रही हूँ.. अब बस तुम कहीं भी छू रहे हो तो गुदगुदी सी लग रही है।
मैंने बोला- अच्छा.. तुम्हारा तो हो गया.. पर मेरा अभी बाकी है.. तो क्या मुँह से करोगी?
तो बोलीं- नहीं.. अब मैं कुछ देर हिल भी नहीं सकती.. पर हाँ तुम्हारे लिए मैं एक काम करती हूँ.. थोड़ा कमर उठा लेती हूँ.. तुम नीचे से धक्के लगा लो।
तो मैंने ‘हाँ’ में सर हिला दिया.. तभी उन्होंने अपनी कमर को हल्का सा उचका लिया और अपने मुँह को मेरी गरदन और कंधों के बीच खाली जगह पर ले जाते हुए पलंग के गद्दे से सटा दिया ताकि उनके मुँह की आवाज़ तेज़ न निकले।
अब बारी मेरी थी.. तो मैंने भी उनकी पीठ पर अपने हाथों से फन्दा बनाते हुए अपनी छाती से चिपकाया और तेज़ी से पूरे जोश के साथ अपनी कमर उठा-उठा कर उनकी चूत की ठुकाई चालू कर दी।
इससे जब मेरा लौड़ा चूत में अन्दर जाता तो उनका मुँह थोड़ा ऊपर को उठता और ‘आह ह्ह्ह्ह..’ के साथ वापस अपनी जगह चला जाता। इस बीच उनके मुँह से जो गर्म साँसें निकलतीं.. वो मेरे कन्धे और गरदन से टकरातीं.. जिससे मेरा शरीर गनगना उठता।
‘अह्ह्ह ह्हह्ह.. श्ह्ह्ह्ह.. और तेज़.. फिर से होने वाला है..’ उनकी इस तरह की आवाजें सुनकर मेरा जोश बढ़ता ही चला जा रहा था।
अब शायद उनमें फिर से जोश चढ़ने लगा था.. क्योंकि अब वो भी अपनी कमर हिलाने लगी थीं.. पर मैंने चैक करने लिए उसके चूचे फिर से दबाने चालू किए और इस बार उन्होंने मना नहीं किया।
जबकि पहले वहाँ हाथ भी नहीं रखने दे रही थीं.. पर मैं अब फिर से भरपूर तरीके से उसके मम्मे मसल रहा था।
तभी अचानक वो फिर से झड़ गईं.. तो फिर मैंने उसे अपने नीचे लिटाया और फुल स्ट्रोक के साथ चोदने लगा। फिर कुछ ही धक्कों के बाद ही मेरी भी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और माया की बांहों में खोते हुए उसके सीने से अपने सर को टिका दिया।
अब माया मेरी पीठ सहलाते हुए मेरे माथे को चूमे जा रही थी और जहाँ कुछ देर पहले ‘अह्ह हह्ह्ह्ह.. श्ह्ह्ही.. ईईएऐ.. ऊऊओह.. फक्च.. फ्छ्झ.. पुच.. पुक..’ की आवाजें आ रही थीं.. वहीं अब इतनी शांति पसर चुकी थी.. कि सुई भी गिरे तो उसके खनकने आवाज़ सुनी जा सकती थी।

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Re: दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली

Post by jay »

फिर जब कुछ देर बाद मेरी साँसें थमी तो मैं उनके ऊपर से हटा और अपना लौड़ा साफ़ करने के लिए उनकी पैन्टी खोजने लगा.. तभी मेरी नज़र उनकी चूत के नीचे की ओर चादर पर पड़ी तो मैंने पाया कि चादर इतना ज्यादा भीगी हुई थी कि लग ही नहीं रहा था कि यह चूत रस से भीगी है। मुझे लगा कि शायद इन्होंने मूत ही दिया है.. तो मैं बिना बोले उठा और अटैच्ड वाशरूम में जाकर अपने लौड़े को साफ़ करने लगा।
क्योंकि मेरे मन में बहुत अजीब सी फीलिंग आ रही थी कि क्या वाकयी में माया को होश न रहा था और उसने वहीं सुसू कर दी..
खैर.. मैंने अच्छे से अपने औजार नुमा लिंग को धोकर चमकाया और वापस बिस्तर की ओर चल दिया।
जैसे ही मैं बिस्तर के पास पहुँचा.. तो उन्होंने मेरे से पूछा- क्या हुआ.. कहाँ गए थे?
तो मैंने उन्हें बोला- लौड़ा साफ़ करने गया था।
वो बोली- यहीं कपड़े से पोंछ लेते न.. जाने की क्या जरुरत थी.. तू तो हमेशा मेरी पैन्टी से ही पोंछता है।
तो मैं बोला- हाँ पर आज आपने कुछ ऐसा कर दिया था कि मुझे न चाहते हुए भी जाना पड़ा।
उन्होंने पूछा- क्यों.. क्या हो गया था?
तो मुझसे रहा नहीं गया.. मुझे बताना पड़ा, जबकि मैं नहीं चाहता था कि उन्हें बताऊँ कि आज उन्होंने क्या किया है।
पर मुझे न चाहकर भी उनके बार-बार पूछने पर बताना पड़ा कि मैं जब उठा तो चूत के नीचे इतना गीला पाया कि जैसे अपने सुसू ही कर दी हो.. इसलिए साफ़ करने गया था।
तो उन्होंने बड़े ही प्यार से मेरे मुरझाए हुए लौड़े को सहलाते हुए बोला- ये सुसू नहीं.. बल्कि इस मथानी का कमाल है.. देखो कैसे इसने कैसे मथा है.. अभी तक बहे जा रही है।
जब मैंने ध्यान दिया तो वाकयी में चूत से बूँद-बूँद करके रस टपक रहा था।
मैंने हैरानी से देखते हुए उनसे पूछा- ऐसा क्या हो गया आज.. जो इतना बह रही है।
तो वो बोली- मैं नहीं बता सकती कि मुझे आज क्या हो गया है?
पर मेरे जोर देने पर उन्होंने बोला- यार आज न तूने मुझे जबरदस्त चुदाई का मज़ा तो दिया ही है और जिस तरह तुमने रूचि और विनोद को समझाया था न.. ऐसा लग रहा था जैसे तुम्हीं उन दोनों के बाप और मेरे पति हो। आज तो तूने मुझे पति वाला सुख भी दिया है.. जिससे मेरा रोम-रोम तुम्हारा हो गया और जिंदगी में पहली बार आज मुझे इतना अधिक स्खलन हुआ है। इससे पहले ऐसा कभी न हुआ था। मैं चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रही हूँ.. बस बहता ही जा रहा है। मैंने बहुत कोशिश की.. पर नहीं रोक पाई..
उनकी बात सुनकर मुझे भी उन पर प्यार आ गया और मैं उनके बगल में कुछ इस तरह से लेटा कि मेरा मुँह उनके गले के पास था।
मेरा दाहिना हाथ उनकी पैन्टी पकड़े हुए उनकी जांघ के पास था और बायां हाथ उनके सर के पास था, उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर थे और उनका मुँह मेरे गले के पास था। मेरा सोया हुआ लण्ड उनकी जांघों से सटा हुआ था।
अब इतना जीवंत चित्रांकन कर दिया है ताकि आप लोग ज्यादा से ज्यादा इसका मज़ा ले सकें।
खैर अब वो मेरे पीठ पर हाथ फेरते हुए मुझसे बोल रही थी- तुम्हारा ये गर्म एहसास मुझे बहुत पागल कर देता है.. मेरा खुद पर कोई कंट्रोल नहीं रहता और जब तुम मुझे इतना करीब से प्यार देते हो.. तो मेरा दिल करता है कि मैं तुम्हारे ही जिस्म में समा जाऊँ।
मैं उनके रस को उनकी जांघों से और चूत से पोंछ रहा था और बीच-बीच में उनके चूत के दाने को रगड़ भी देता था जिससे उनके बदन में ‘अह्ह्ह.. ह्ह्ह्ह..’ के साथ सिहरन सी दौड़ जाती.. जिससे उनकी अवस्था का साफ़ पता चल रहा था और वो मेरे गले को भी चूम भी लेती.. जिससे मेरे लौड़े में फिर से तनाव का बुलावा सा महसूस होने लगा था।
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उनके बोलने से जो मेरी गर्दन पर उनकी गर्म साँसें पड़ रही थीं.. उससे मुझे भी सिहरन सी होने लगी थी।
मैं भी बीच-बीच में उनके सर को सहलाते हुए उनके गले को चूमते और चाटते हुए उनके कान के पास और कान के पास चूम लेता था।
मैं कभी कान के नीचे की ओर हल्का-हल्का धीरे से काट भी लेता था.. तो वो मेरी इस हरकत से मचल सा जाती थीं। जिससे उनकी टाँगे फड़कने लगतीं और वे अपने चूचों को मेरी छाती से रगड़ने लगतीं.. जो कि अब बहुत ही कठोर सी हो गई थीं।
उसके चूचों के निप्पल तो ऐसे चुभ रहे थे.. जैसे कोई रबड़ की गोली.. मेरे और उसके बदन के बीच में अटक सी गई हो।

यह फीलिंग मुझे इतना मस्त किए जा रही थी कि अब मैं भी कुछ समझ नहीं पा रहा था। मुझे बस यही लग रहा था कि ये ऐसे ही चलता रहे।
कभी-कभी ज्यादा उत्तेज़ना मैं अपनी छाती से उसके चूचों को इतनी तेज़ से मसल देता कि उसके मुँह ‘अह्हह्ह.. श्ह्हह्हीईई..’ की आवाज़ फूट पड़ती थी।
इसी तरह कुछ देर चलता रहा और अचानक से माया दोबारा जोश में आ गई और अपने बाएं हाथ से मेरी पीठ को सहलाते हुए मेरे लौड़े को अपने दायें हाथ से सहलाते हुए बोली- जान तुम कितने अच्छे हो.. काश ये समा यही थम जाए.. और हम दोनों इसी तरह एक-दूसरे की बाँहों में रहकर प्यार करते रहें।
मैं बोला- काश.. ऐसा हो पाता.. तो ये जरूर होता.. पर सोचो तुम अगर रूचि की बेटी होती.. तो मैं तुमसे शादी करके हमेशा के लिए अपना बना लेता.. पर क्या तेरी जगह रूचि होती.. तो मेरे ये सब साथ करती?
तो वो बोली- पता नहीं..
तो मैं हँसते हुए बोला- पर सोचो अगर वो करने देती.. तो कितना मज़ा आता.. वो भी बहुत मस्त है।
ये बोलते हुए मैंने उनके गालों को चूम लिया..
उन्होंने बोला- अच्छा तो तुझे मेरी बेटी पसंद है?
तो मैं बोला- तुम पसंद की बात कर रही हो यार… वो तो मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छी लगती है।
तो वो बोली- देखो अगर तुम उससे शादी करो.. तो ही उस पर नज़र रखना.. वरना नहीं..
मैं बोला- तुम परेशान मत हो.. जो कुछ भी होगा.. तुम्हें पहले बताऊंगा.. पर अभी जब कुछ ऐसा है ही नहीं.. तो हम क्यों ये फालतू की बात करें।
इस पर वो ‘हम्म्म..’ बोलते हुए.. वो भी मेरी ही तरह मेरे गले.. गाल और कानों को चूमने लगी और मेरे लौड़े को हिलाकर उसकी मालिश सी करने लगी.. जो कि रूचि की बात सोच कर पूरे आकार में आ चुका था।
अब उसे क्या पता.. अगले दिन रूचि ही इसके निशाने पर है। मैंने उसकी सोच छोड़कर.. अब जो हो रहा था.. उस पर सोचने लगा। अब मैं इतना मस्ती में डूब चुका था कि मैं भी नहीं चाह रहा था कि अब ये खेल रुके।
मैं भी पूरी गर्मजोशी के साथ उससे लिपट कर उसे अपने प्यार का एहसास देने लगा।
माया इतनी अदा से मेरे लौड़े को मसल रही थी कि पूछो ही नहीं.. वो अपनी उँगलियों से अपने रस को लेती और मेरे लण्ड पर रस मल देती।
जब मेरा पूरा लौड़ा उसके रस से सन गया. तो वो बहुत ही हल्के हाथों से उसकी चमड़ी को ऊपर-नीचे करते हुए मसाज़ देने लगी। बीच-बीच में वो मेरे लौड़े की चमड़ी को पूरा खोल कर सुपाड़े को सहलाती.. तो कभी उसके टांके के पास सहलाती.. जिससे मेरे पूरे शरीर में हलचल के साथ-साथ मुँह से ‘श्ह्ह्ह्ह्.. ह्ह्ह्हीईई.. अह्ह्ह्ह..’ निकल जाती।
वो मुझसे बोलती- तुम्हें अच्छा लग रहा है न..
मैं ‘हाँ’ बोल कर आँखें बंद करके इस लम्हे का मज़ा लेने लगता।
तभी वो बोली- क्या तुम चाहते हो कि मैं इसी तरह इसे मसाज देते हुए इसे मुँह से भी चूसूँ?
बस मित्रों.. अब अभी के लिए इतना ही काफी है।
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supremo009
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Re: दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली

Post by supremo009 »

Really its one of the hottest story.
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