२२
सुबह हो रही थी. इमरान की आँखें बोझिल थीं और वो फोन पर झुका हुआ कह रहा था...."ब्लॅक ज़ीरो....कहीं तुम्हारा दिमाग़ तो खराब नहीं हो गया या तुम जादुई कहानियाँ पढ़ते रहे हो...या सुबह होते होते आँख लग जाने पर कोई भयानक सपना तो नहीं देख लिए हो...."
"विश्वास कीजिए सर.....मैं अकेला नहीं था....सफदार भी था मेरे साथ. उस पर तो आपको बहुत भरोसा है."
"तुम डफर हो बिल्कुल. भला उस से मैं कैसे पुच्छ सकता हूँ जबकि तुम पिच्छली रात X2 का रोल कर रहे थे...."
"इमरान साहब की हैसियत से पुच्छ लीजिए...."
"अच्छा मैने विश्वास कर लिया..." इमरान ने एक लंबी साँस ली.
"लेकिन सर.....मैं खुद भी हैरत मे हूँ कि वो बच्चा कैसा था. स्परसिया क्या बला है, रयामी किस चिड़िया का नाम है....उसने कहा था.....जी हां वीनस ही कहा था.....अर्थात वो वीनस का निवासी है. इसका मतलब ये हुआ कि वीनस वालों ने अपने ग्रह का नाम स्परसिया रखा है."
"क्या फ़िज़ूल बकवास शुरू कर दी तुम ने. अर्रे डफर वो किसी प्रकार का ट्रांसमीटर रहा होगा."
"मैं नहीं मानूँगा....कभी नहीं..." ब्लॅक ज़ीरो ने कहा. "सफदार का कहना है कि उसके हाथ मे गर्म गर्म माँस ही था. उसने उसे गर्दन से पकड़ कर उठाया था....और उस समय भी वो बच्चों की तरह हाथ पैर फेक रहा था."
"प्लास्टिक के जितने पुतले कहो बना कर तुम्हें दे सकता हूँ.....वो तुम्हें माँस ही माँस लगेंगे."
"लेकिन आप उन मे प्राण नहीं डाल सकते." ब्लॅक ज़ीरो ने खिन्नता प्रकट की.
"इस मशीनी युग मे कुच्छ भी असंभव नहीं है. तुम उसे प्राण और जानदार नहीं कह सकते. वो किसी प्रकार का मचनिस्म ही रहा होगा. ये आर्टिफिशियल सॅटलाइट का ज़माना है ब्लॅक ज़ीरो. क्या कभी तुम सोच भी सकते थे कि मानव निर्मित उपग्रह पृथ्वी का चक्कर लगाएँगे."
"आप कुच्छ भी कहिए.......लेकिन...."
"तुम संतुष्ट नहीं हो सकोगे.....देखो.....वो तो केवल बच्चा था......तुम तो काफ़ी पहलवान हो. मैं तुम्हें उठा कर पटकता हूँ.....लेकिन अगर धमाका नहीं हुआ तो मैं तुम्हें क़तल कर दूँगा....."
"मैं नहीं समझा....."
"शायद उसी धमाके के साथ तुम्हारी किस्मत भी फूट चुकी है. अक़ल को अपनी जगह पर लाओ वरना मैं कोई दूसरा कदम उठाउँगा...."
"वैसे आप रात को दिन कहें तब भी मुझे उस से इनकार नहीं होगा....." ब्लॅक ज़ीरो ने रूठे हुए अंदाज़ मे कहा.
"ईडियट....." इमरान ने कहा और फोन काट दिया.
"कुच्छ देर बाद सर सुल्तान के नंबर डाइयल कर रहा था. उसे कुच्छ देर इंतेज़ार भी करना पड़ा क्योंकि सर सुल्तान वॉशरूम मे थे. लगभग 10 मिनिट बाद उनसे बात हो सकी.
"आप ने क्या किया....?"
"ओह्ह......रहमान साहब ने पिच्छली रात खुद भी फोन किया था. मैने उन्हें समझा दिया है कि वो तुम से ना उलझें. और वो टॅक्सी ड्राइवर उनके हवाले नहीं किया जा सकता क्योंकि सीक्रेट सर्विस वालों ने उसे किसी मामले पर पूछ गच्छ करने केलिए रोक लिया है........और ये कि तुम आजकल सीक्रेट सर्विस वालों केलिए काम कर रहे हो...."
"रेड डब्बे की चर्चा आई थी?"
"हां.....लेकिन उन्होने इस बारे मे कुच्छ भी नहीं बताया. यही कहते रहे कि वो उनका एक पर्सनल मामला है."
"उस पॅकेट केलिए बहुत से लोगों की जाने भी जा सकती हैं...."
"क्या मतलब....?"
इमरान ने पिच्छली रात के धमाके की पूरी कहानी सुना दी.
"नहिन्न्न......तुम नशे मे तो नहीं हो....?"
"आप जानते हैं कि नशे से मुझे कोई लगाव नहीं है...."
"फिर ये क्या बकवास थी....?'
"वास्तविकता थी.....और उसका सत्यापन इस तरह हो सकता है कि दौलत नगर के निवासियों से उस धमाके के बारे मे पुछा जाए...."
"ओह्हो....ठहरो....क्या ये घटना दौलत नगर ही मे घटी है?"
"जी हान्ं..."
"तब फिर मुझे धमाके की सूचना मिल चुकी है.....मगर इमरान तुम्हारी कहानी पर विश्वास करने को दिल नहीं चाहता."
"अच्छी बात है तो अब मैं भी हाथ पर हाथ रख कर बैठूँगा.......लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी किस पर होगी? आप डॅडी को मजबूर कीजिए कि वो उस पॅकेट का राज़ प्रकट करें. आप उन्हें मजबूर कर सकते हैं.....क्योंकि जिस वास्तु से आम नागरिकों की जान पर ख़तरा हो उसे पर्सनल घोषित करके क़ानून के नियंत्रण से नहीं बचा जा सकता."
"हां....मैं स्वीकार करता हूँ लेकिन तुम्हारी कहानी.....सवाल ये है कि मिस्टर रहमान के अनुसार ये कहानी अगर केवल उस डब्बे के बारे मे जानकारी लेने हेतु गढ़ी गयी है तो.......?"
"तब भी ये ऐसी कोई बुरी बात ना होगी.....क्योंकि आप मेरी सच्चाई पर शक नहीं कर सकते. क्लियर बात है कि एक झगड़े को ख़तम करने केलिए ऐसा कर रहा हूँ........और ये तो आप जल्दी ही देख लेंगे कि इस कहानी मे कितनी वास्तविकता थी..."
"तुम्हारा क्या ख़याल है....उस पॅकेट मे क्या होगा?"
"अगर मुझे यही पता होता तो आपको क्यों कष्ट देता.....और फिर ये डॅडी का मामला है.....इसलिए आपको कष्ट दे रहा हूँ......वरना ऐसे मामूली काम अपने सब से गधे जैसे स्टाफ से भी ले लेता हूँ....मैं नहीं चाहता कि डॅडी की शान मे मुझ से कोई गुस्ताख़ी हो जाए...."
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Re: प्यासा समुन्दर
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: प्यासा समुन्दर
२३
"बड़े नेक और आग्यकारी दिखाई दे रहे हो आजकल....."
"हमेशा से हूँ सररर.....मगर उन्हें क्या पड़ी है कि मुझे समझने की कोशिश करें. उनके अपने सिद्धांत की कीमल ज़िंदा आदमियों से अधिक है....."
"बाप बेटों के झगड़े मेरे लिए बहुत कष्ट-दायक होते हैं...."
"इसलिए आप याद रखिए कि स्नेह रखने वाला बाप होना औलाद के लिए अति आवश्यक है."
"अर्रे तुम मुझे अब लेसन देने बैठे हो!"
"आ गया गुस्सा......इसी को तो आन कहते हैं सर......और यही चीज़ बच्चों को तबाह कर देती है....अगर किसी बच्चे का सजेशन आपके अनुभवों पर भारी हो तो उसे खुद भी तौलने की कोशिश कीजिए.....उसे अनसुना कर के आप बच्चे को ग़लत राहों पर डाल देते हैं...."
"मैने अभी नाश्ता नहीं किया......सुबह ही सुबह मुझ से झगड़ा ना करो...." सर सुल्तान ने शर्मिंदगी भरी हँसी के साथ कहा.
"ऑल राइट सर.....प्लीज़ उस डब्बे........"
"मैं अपनी हर कोशिश करूँगा...." सर सुल्तान ने कहा और इमरान ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.
************
*********
तनवीर बोखला कर उठ बैठा......क्योंकि उसने किसी औरत की चीखें सुनी थी....."लाश.......लाश......" और आँखें खुलते ही उसे भयानक दुर्गंध का अहसास हुआ. वो उच्छल कर खड़ा हो गया.
लोग हर तरफ से दौड़ पड़े थे......और तनवीर ने महसूस किया कि वो सड़क के किनारे एक ऐसे ड्रम मे खड़ा हुआ है जिसमे लोग कूड़ा करकट और गंदगियाँ फेक्ते थे.
अचानक वो इतना नर्वस हो गया कि ड्रम से बाहर निकलना भी भूल गया.
गंदगी से भरे उस ड्रम के आस पास भीड़ जमा हो गयी थी. लोग तनवीर से तरह तरह के सवाल कर रहे थे. लेकिन तनवीर की समझ मे नहीं आ रहा था कि वो क्या उत्तर दे. अगर वो मैले कुचैले और घटिया ड्रेस मे होता तो निम्न वर्ग के शराबियों जैसीहरकतें करने का प्रयास करता. लेकिन वो तो कीमती सूट मे था और शकल से भी किसी बड़ी पोज़िशन का व्यक्ति लगता था.
उसकी बोखलाहट पर लोगों की बेचैनी और बढ़ रही थी. वो जल्दी से जल्दी उसके बारे मे जानना चाहते थे.
तभी एक गोरा विदेशी भीड़ को हटाता हुआ ड्रम के पास आया.
"आओ." वो तनवीर का हाथ पकड़ता हुआ बोला...."तुम परेशान लगते हो..."
उस समय तनवीर को ये व्यक्ति ईश्वर की तरफ से भेजा गया दूत लगा. वो ड्रम के बाहर कूद आया. लोग इधर उधर बिखर गये. क्योंकि विदेशी ने क्रोध भरे ढंग से उन्हें डांटा था.
तनवीर चुप चाप उसके साथ चलता रहा. उसका हाथ अभी तक उस अग्यात विदेशी के हाथ मे था. वो उसे एक शानदार कार के निकट लाया और अगली सीट का गेट खोलता हुआ इंग्लीश मे बोला....."बैठ जाओ..."
लेकिन तनवीर को उसका लहज़ा अँग्रेज़ों जैसा नहीं लगा था. वो कार मे बैठ गया. अजनबी दूसरी तरफ से जाकर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा. कार चल पड़ी.
"तुम मुझे कोई शरीफ और अच्छे परिवार के आदमी लगते हो..." उसने सहानुभूति वाले स्वर मे कहा.
"ऐसी हालत मे क्या कहूँ...." तनवीर भर्राई हुई आवाज़ मे बोला. वो सोच रहा था कि उसे क्या बताएगा. वैसे वो उसका आभारी ज़रूर था. क्योंकि उसने उसे एक बहुत बड़ी उलझन से छुटकारा दिलाया था.
"मैं नहीं समझ सकता कि तुम किन परिस्थितियों से दो-चार हो. मुझे तुम से बहुत हमदर्दी है."
"मैं......अप...नी.....सौतेली माँ के ज़ुल्म का शिकार हूँ." तनवीर हकलाया. लेकिन इस अनायास मूह से निकल पड़े झूट पर तनवीर को ग्लानि भी हुई. वैसे बिना सोचे हुए ये बात मूह से निकल पड़ी थी. अगर अब वो इसको रद्द करता तब क्या कहता. इसलिए उसने उसी बयान पर बने रहने का फ़ैसला किया.
"मेरा बाप बहुत धनी है.....अरब-पति समझ लो. मैं उसकी इकलौती संतान हूँ. लेकिन मेरी माँ सौतेली है.....जिनकी अपनी कोई औलाद नहीं है. इस कारण वो मुझ से दुश्मनी रखती है. अक्सर मुझे परेशान करती रहती है. पिच्छली रात मैं अधिक शराब पी गया था. इतनी कि मुझे होश ना रहा. और उसने मौका देख कर मुझे उस गंदगी से भरे ड्रम मे फेकवा दिया. वो प्रायः इसी प्रकार की हरकतें करती रहती है.....ताकि मेरी बदनामी हो."
"ओह्ह....ओह्ह..." अजनबी ने दुख प्रकट किया. "ये तो बहुत बुरी बात है. तुम्हारी उमर क्या होगी?"
"35 साल..."
"तुम्हारे बाप की?"
"60 साल..."
"तुम्हारी सौतेली माँ?"
"लगभग 25 साल..." तनवीर ने ठंडी साँस लेकर कहा.
"ओह्हो.....तुम से 10 साल छोटी....और निश्चित रूप से वो बहुत सुंदर होगी.....तभी तो उस बूढ़े ने......"
"अर्रे इस्स ढंग से उनके बारे मे मत कहो....." तनवीर ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा. "वो मेरे पेरेंट्स हैं...और तुम उनका अपमान कर रहे हो...."
"ओह्ह.." अजनबी बुरा सा मूह बना कर बोला..."तुम पूरब वाले बड़े मूर्ख होते हो. तुम अपने पैरों पर क्यूँ नहीं खड़े हो जाते...."
"किस तरह? मेरे पास मेरी अपनी पूंजी नहीं है.....और किसी की नौकरी मुझ से नहीं हो सकेगी क्योंकि मेरी आदत सब पर शासन करने की है."
"स्वाभाविक बात है.....क्यूंकी तुम धनी बाप के बेटे हो..."
"फिर मैं अपने पैरों पर किस प्रकार खड़ा हो सकता हूँ?"
"मैं बताउन्गा....तुम्हारी सहायता करूँगा. मुझे तुम से बहुत ही सहानुभूति है. लेकिन फिर तुम्हें अपने पेरेंट्स के पास वापस नहीं जाने दूँगा..."
तनवीर सोच मे पड़ गया.
"अच्छी बात है..." उसने कहा. "तुम मुझे अपना अड्रेस बता दो मैं आज शाम को तुम से मिल लूँगा..."
"नहीं.....अभी तुम मेरे साथ मेरे घर चल रहे हो...तुम्हें ब्रेक फास्ट मेरे साथ करना है. मैं बूढ़ा आदमी हूँ. संभव है मेरे साथ रह कर तुम बोर हो जाओ......लेकिन घर पर तुम्हें जवान लोग भी मिलेंगे......और तुम्हारी बोरियत दूर हो जाएगी. ओह्ह....माइ गोड्ड़....तुम सारी रात गंदगी के ढेर मे पड़े रहे थे...."
तनवीर कुछ ना बोला. बोलता भी क्या.
"बड़े नेक और आग्यकारी दिखाई दे रहे हो आजकल....."
"हमेशा से हूँ सररर.....मगर उन्हें क्या पड़ी है कि मुझे समझने की कोशिश करें. उनके अपने सिद्धांत की कीमल ज़िंदा आदमियों से अधिक है....."
"बाप बेटों के झगड़े मेरे लिए बहुत कष्ट-दायक होते हैं...."
"इसलिए आप याद रखिए कि स्नेह रखने वाला बाप होना औलाद के लिए अति आवश्यक है."
"अर्रे तुम मुझे अब लेसन देने बैठे हो!"
"आ गया गुस्सा......इसी को तो आन कहते हैं सर......और यही चीज़ बच्चों को तबाह कर देती है....अगर किसी बच्चे का सजेशन आपके अनुभवों पर भारी हो तो उसे खुद भी तौलने की कोशिश कीजिए.....उसे अनसुना कर के आप बच्चे को ग़लत राहों पर डाल देते हैं...."
"मैने अभी नाश्ता नहीं किया......सुबह ही सुबह मुझ से झगड़ा ना करो...." सर सुल्तान ने शर्मिंदगी भरी हँसी के साथ कहा.
"ऑल राइट सर.....प्लीज़ उस डब्बे........"
"मैं अपनी हर कोशिश करूँगा...." सर सुल्तान ने कहा और इमरान ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.
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तनवीर बोखला कर उठ बैठा......क्योंकि उसने किसी औरत की चीखें सुनी थी....."लाश.......लाश......" और आँखें खुलते ही उसे भयानक दुर्गंध का अहसास हुआ. वो उच्छल कर खड़ा हो गया.
लोग हर तरफ से दौड़ पड़े थे......और तनवीर ने महसूस किया कि वो सड़क के किनारे एक ऐसे ड्रम मे खड़ा हुआ है जिसमे लोग कूड़ा करकट और गंदगियाँ फेक्ते थे.
अचानक वो इतना नर्वस हो गया कि ड्रम से बाहर निकलना भी भूल गया.
गंदगी से भरे उस ड्रम के आस पास भीड़ जमा हो गयी थी. लोग तनवीर से तरह तरह के सवाल कर रहे थे. लेकिन तनवीर की समझ मे नहीं आ रहा था कि वो क्या उत्तर दे. अगर वो मैले कुचैले और घटिया ड्रेस मे होता तो निम्न वर्ग के शराबियों जैसीहरकतें करने का प्रयास करता. लेकिन वो तो कीमती सूट मे था और शकल से भी किसी बड़ी पोज़िशन का व्यक्ति लगता था.
उसकी बोखलाहट पर लोगों की बेचैनी और बढ़ रही थी. वो जल्दी से जल्दी उसके बारे मे जानना चाहते थे.
तभी एक गोरा विदेशी भीड़ को हटाता हुआ ड्रम के पास आया.
"आओ." वो तनवीर का हाथ पकड़ता हुआ बोला...."तुम परेशान लगते हो..."
उस समय तनवीर को ये व्यक्ति ईश्वर की तरफ से भेजा गया दूत लगा. वो ड्रम के बाहर कूद आया. लोग इधर उधर बिखर गये. क्योंकि विदेशी ने क्रोध भरे ढंग से उन्हें डांटा था.
तनवीर चुप चाप उसके साथ चलता रहा. उसका हाथ अभी तक उस अग्यात विदेशी के हाथ मे था. वो उसे एक शानदार कार के निकट लाया और अगली सीट का गेट खोलता हुआ इंग्लीश मे बोला....."बैठ जाओ..."
लेकिन तनवीर को उसका लहज़ा अँग्रेज़ों जैसा नहीं लगा था. वो कार मे बैठ गया. अजनबी दूसरी तरफ से जाकर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा. कार चल पड़ी.
"तुम मुझे कोई शरीफ और अच्छे परिवार के आदमी लगते हो..." उसने सहानुभूति वाले स्वर मे कहा.
"ऐसी हालत मे क्या कहूँ...." तनवीर भर्राई हुई आवाज़ मे बोला. वो सोच रहा था कि उसे क्या बताएगा. वैसे वो उसका आभारी ज़रूर था. क्योंकि उसने उसे एक बहुत बड़ी उलझन से छुटकारा दिलाया था.
"मैं नहीं समझ सकता कि तुम किन परिस्थितियों से दो-चार हो. मुझे तुम से बहुत हमदर्दी है."
"मैं......अप...नी.....सौतेली माँ के ज़ुल्म का शिकार हूँ." तनवीर हकलाया. लेकिन इस अनायास मूह से निकल पड़े झूट पर तनवीर को ग्लानि भी हुई. वैसे बिना सोचे हुए ये बात मूह से निकल पड़ी थी. अगर अब वो इसको रद्द करता तब क्या कहता. इसलिए उसने उसी बयान पर बने रहने का फ़ैसला किया.
"मेरा बाप बहुत धनी है.....अरब-पति समझ लो. मैं उसकी इकलौती संतान हूँ. लेकिन मेरी माँ सौतेली है.....जिनकी अपनी कोई औलाद नहीं है. इस कारण वो मुझ से दुश्मनी रखती है. अक्सर मुझे परेशान करती रहती है. पिच्छली रात मैं अधिक शराब पी गया था. इतनी कि मुझे होश ना रहा. और उसने मौका देख कर मुझे उस गंदगी से भरे ड्रम मे फेकवा दिया. वो प्रायः इसी प्रकार की हरकतें करती रहती है.....ताकि मेरी बदनामी हो."
"ओह्ह....ओह्ह..." अजनबी ने दुख प्रकट किया. "ये तो बहुत बुरी बात है. तुम्हारी उमर क्या होगी?"
"35 साल..."
"तुम्हारे बाप की?"
"60 साल..."
"तुम्हारी सौतेली माँ?"
"लगभग 25 साल..." तनवीर ने ठंडी साँस लेकर कहा.
"ओह्हो.....तुम से 10 साल छोटी....और निश्चित रूप से वो बहुत सुंदर होगी.....तभी तो उस बूढ़े ने......"
"अर्रे इस्स ढंग से उनके बारे मे मत कहो....." तनवीर ने नाराज़गी दिखाते हुए कहा. "वो मेरे पेरेंट्स हैं...और तुम उनका अपमान कर रहे हो...."
"ओह्ह.." अजनबी बुरा सा मूह बना कर बोला..."तुम पूरब वाले बड़े मूर्ख होते हो. तुम अपने पैरों पर क्यूँ नहीं खड़े हो जाते...."
"किस तरह? मेरे पास मेरी अपनी पूंजी नहीं है.....और किसी की नौकरी मुझ से नहीं हो सकेगी क्योंकि मेरी आदत सब पर शासन करने की है."
"स्वाभाविक बात है.....क्यूंकी तुम धनी बाप के बेटे हो..."
"फिर मैं अपने पैरों पर किस प्रकार खड़ा हो सकता हूँ?"
"मैं बताउन्गा....तुम्हारी सहायता करूँगा. मुझे तुम से बहुत ही सहानुभूति है. लेकिन फिर तुम्हें अपने पेरेंट्स के पास वापस नहीं जाने दूँगा..."
तनवीर सोच मे पड़ गया.
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Re: प्यासा समुन्दर
२४
इमरान ने फोन का रिसीवर उठाया और दूसरी तरफ से उसने अपने डॅडी रहमान साहब की आवाज़ सुनी.
"यहाँ ऑफीस मे आ जाओ..." उन्होने कहा. लेकिन इमरान समझ नहीं पाया कि की आवाज़ मे गुस्सा था या बेज़ारी.....या फिर हर प्रकार के भाव से खाली.
"क्यों...?"
"तुम से बात करनी है..."
"मैं खुले-आम आप से मिल कर खेल नहीं बिगाड़ना चाहता. मगर बात क्या है? कुच्छ संकेत मे बताइए..."
"कुच्छ नहीं.....तुम मेरे पास आओ..."
"रात को घर आउन्गा....वरना थोड़ी सी भी असावधानी मुझे मौत के मूह मे ले जाएगी...."
"तुम दौलत नगर के धमाके के बारे मे क्या जानते हो...?"
"मैने सुना था कि धमाका हुआ था...बस."
"मगर सर सुल्तान..."
"किसी का नाम ना लीजिए....मैं रात को आप से मिल लूँगा..."
"अच्छी बात है..." दूसरी तरफ से नर्म स्वर मे कहा गया. फोन कट चुका था.
इमरान ने रिसीवर रख दिया. वो बैठने भी नहीं पाया था कि सुलेमान ने प्राइवेट फोन पर कॉल आने की सूचना दी. वो उठ कर दूसरे कमरे मे आया. फोन पर दूसरी तरफ जुलीना फिट्ज़वॉटर थी.
"एक बहुत ही इंपॉर्टेंट इन्फर्मेशन है सर....इसके बदले आप मुझे माफ़ कर देंगे..."
"हुन्न.....कहो..."
"मैं आज सुबह आपके द्वारा बताई हुई जगह पर गयी थी. वहाँ मैने तनवीर को गंदगी भरे ड्रम मे खड़ा पाया. इसके पास भीड़ जमा थी."
"और वो बहुत खुश दिखाई दिया होगा..."
"जी हां बहुत...." जूलीया हंस पड़ी.
"पहले बात पूरी करो..." इमरान X2 की हैसियत से गुर्राया.
"जी हां उसे वहाँ से एक गोरा विदेशी अपनी कार मे ले गया."
"कहाँ ले गया?"
"क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग मे..."
"तुम सपना तो नहीं देख रही?"
"बाद के इन्वेस्टिगेशन से पता चला कि वो विदेशी हफ ड्रॅक ही था...."
"तुम्हें विश्वास है वो तनवीर ही था?"
"आपको पता ही होगा कि इमरान ने उसे कहाँ डाला था..."
"हां...ओके...पिच्छली रात तनवीर बेहोश हो गया था और इमरान उसे कचरे के एक ड्रम मे डाल आया था...."
"जी हां......और हफ ड्रॅक उसे उसी ड्रम से निकाल कर साथ ले गया है."
"इस समय उस इमारत की निगरानी कौन कर रहा है?"
"कॅप्टन खावीर..."
"दौलत नगर के धमाके के बारे मे तुम क्या जानती हो?"
"ओह्ह.....वो रहस्सयमय धमाका....उस से वहाँ की दर्ज़नों बिल्डिंग्स मे क्रॅक आ गया है और ज़मीन पर एक जगह गुफा सा बन गया है जिस के आस पास झुलसने के निशान मिले हैं...."
"और कुच्छ....?"
"धमाके का कारण अभी तक पता नहीं चल सका है. विशेषग्यो का एकमत फ़ैसला है कि वो कोई बॉम्ब नहीं था. इंफ्लॅमबल मेटीरियल के बारे मे वो खामोश हैं. अभी तक नहीं बता सके कि वो ज्वलनशील पदार्थ क्या थे."
"गुड.....तुम्हारा काम संतोष-जनक है."
"थॅंक यू सर....लेकिन क्या आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया?"
"कर दिया..." इमरान ने नर्म स्वर मे कहा. "लेकिन भविश्य मे ये याद रहे कि आपस के मामलों मे मुझे मत शामिल करना....अब मुझे देखना है कि तनवीर पर क्या बीती."
सफदार पहले ही से इस चिंता मे है. मैं उसे तनवीर के संबंध मे निर्देश दे चुकी हूँ.....मैं यही समझती थी कि तनवीर आपके निर्देश पर ही उस इमारत मे गया है. लेकिन तनवीर की हालत से ये नहीं पता चल रहा है. वो बहुत परेशान और नर्वस लग रहा है. और फिर मैने उसे ड्रम से निकलते भी देखा था. उस से पहले एक बूढ़ी औरत उस ड्रम मे कूड़ा फेकने गयी थी फिर लाश लाश चीखने लगी थी.
इसलिए मैने यही अनुमान लगाया कि हफ ड्रॅक और तनवीर की मुलाकात केवल संयोग वश ही हुई थी या फिर हम लोग उसकी नज़रों से छुपे नहीं रह पाए हों. अर्थात वो जानता हो कि तनवीर सीक्रेट सर्विस से संबंध रखता है...इसी लिए मैने आपको सूचित किए बिना ही सफदार को उसके बारे मे निर्देश दे दिया था."
"गुड.....मैं यही चाहता हूँ कि तुम लोगों मे कॉन्फिडेन्स आ जाए. अब मैने तुम्हें बिल्कुल माफ़ कर दिया......वैसे तुम्हारी हरकत दिलचस्प ज़रूर थी. इमरान बुरी तरह बोखला गया था." इमरान X2 की आवाज़ मे हंसा फिर बोला "अब.....तुम्हें क्या करना है?"
"सफदार से जो कुछ पता चलेगा उस से आप को अवगत कराउन्गि. वो आज किसी ना किसी तरह उस बिल्डिंग मे घुसेगा..."
"मुझे विश्वास है....वो बहुत चालाक है. मुझे अपने कुच्छ साथियों पर गर्व है."
इमरान ने फोन रख दिया. कुच्छ देर बाद वो बाहर जाने केलिए ड्रेस चेंज कर रहा था. नीचे आकर उसने कार संभाली और एक तरफ चल पड़ा.
************
इमरान ने फोन का रिसीवर उठाया और दूसरी तरफ से उसने अपने डॅडी रहमान साहब की आवाज़ सुनी.
"यहाँ ऑफीस मे आ जाओ..." उन्होने कहा. लेकिन इमरान समझ नहीं पाया कि की आवाज़ मे गुस्सा था या बेज़ारी.....या फिर हर प्रकार के भाव से खाली.
"क्यों...?"
"तुम से बात करनी है..."
"मैं खुले-आम आप से मिल कर खेल नहीं बिगाड़ना चाहता. मगर बात क्या है? कुच्छ संकेत मे बताइए..."
"कुच्छ नहीं.....तुम मेरे पास आओ..."
"रात को घर आउन्गा....वरना थोड़ी सी भी असावधानी मुझे मौत के मूह मे ले जाएगी...."
"तुम दौलत नगर के धमाके के बारे मे क्या जानते हो...?"
"मैने सुना था कि धमाका हुआ था...बस."
"मगर सर सुल्तान..."
"किसी का नाम ना लीजिए....मैं रात को आप से मिल लूँगा..."
"अच्छी बात है..." दूसरी तरफ से नर्म स्वर मे कहा गया. फोन कट चुका था.
इमरान ने रिसीवर रख दिया. वो बैठने भी नहीं पाया था कि सुलेमान ने प्राइवेट फोन पर कॉल आने की सूचना दी. वो उठ कर दूसरे कमरे मे आया. फोन पर दूसरी तरफ जुलीना फिट्ज़वॉटर थी.
"एक बहुत ही इंपॉर्टेंट इन्फर्मेशन है सर....इसके बदले आप मुझे माफ़ कर देंगे..."
"हुन्न.....कहो..."
"मैं आज सुबह आपके द्वारा बताई हुई जगह पर गयी थी. वहाँ मैने तनवीर को गंदगी भरे ड्रम मे खड़ा पाया. इसके पास भीड़ जमा थी."
"और वो बहुत खुश दिखाई दिया होगा..."
"जी हां बहुत...." जूलीया हंस पड़ी.
"पहले बात पूरी करो..." इमरान X2 की हैसियत से गुर्राया.
"जी हां उसे वहाँ से एक गोरा विदेशी अपनी कार मे ले गया."
"कहाँ ले गया?"
"क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग मे..."
"तुम सपना तो नहीं देख रही?"
"बाद के इन्वेस्टिगेशन से पता चला कि वो विदेशी हफ ड्रॅक ही था...."
"तुम्हें विश्वास है वो तनवीर ही था?"
"आपको पता ही होगा कि इमरान ने उसे कहाँ डाला था..."
"हां...ओके...पिच्छली रात तनवीर बेहोश हो गया था और इमरान उसे कचरे के एक ड्रम मे डाल आया था...."
"जी हां......और हफ ड्रॅक उसे उसी ड्रम से निकाल कर साथ ले गया है."
"इस समय उस इमारत की निगरानी कौन कर रहा है?"
"कॅप्टन खावीर..."
"दौलत नगर के धमाके के बारे मे तुम क्या जानती हो?"
"ओह्ह.....वो रहस्सयमय धमाका....उस से वहाँ की दर्ज़नों बिल्डिंग्स मे क्रॅक आ गया है और ज़मीन पर एक जगह गुफा सा बन गया है जिस के आस पास झुलसने के निशान मिले हैं...."
"और कुच्छ....?"
"धमाके का कारण अभी तक पता नहीं चल सका है. विशेषग्यो का एकमत फ़ैसला है कि वो कोई बॉम्ब नहीं था. इंफ्लॅमबल मेटीरियल के बारे मे वो खामोश हैं. अभी तक नहीं बता सके कि वो ज्वलनशील पदार्थ क्या थे."
"गुड.....तुम्हारा काम संतोष-जनक है."
"थॅंक यू सर....लेकिन क्या आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया?"
"कर दिया..." इमरान ने नर्म स्वर मे कहा. "लेकिन भविश्य मे ये याद रहे कि आपस के मामलों मे मुझे मत शामिल करना....अब मुझे देखना है कि तनवीर पर क्या बीती."
सफदार पहले ही से इस चिंता मे है. मैं उसे तनवीर के संबंध मे निर्देश दे चुकी हूँ.....मैं यही समझती थी कि तनवीर आपके निर्देश पर ही उस इमारत मे गया है. लेकिन तनवीर की हालत से ये नहीं पता चल रहा है. वो बहुत परेशान और नर्वस लग रहा है. और फिर मैने उसे ड्रम से निकलते भी देखा था. उस से पहले एक बूढ़ी औरत उस ड्रम मे कूड़ा फेकने गयी थी फिर लाश लाश चीखने लगी थी.
इसलिए मैने यही अनुमान लगाया कि हफ ड्रॅक और तनवीर की मुलाकात केवल संयोग वश ही हुई थी या फिर हम लोग उसकी नज़रों से छुपे नहीं रह पाए हों. अर्थात वो जानता हो कि तनवीर सीक्रेट सर्विस से संबंध रखता है...इसी लिए मैने आपको सूचित किए बिना ही सफदार को उसके बारे मे निर्देश दे दिया था."
"गुड.....मैं यही चाहता हूँ कि तुम लोगों मे कॉन्फिडेन्स आ जाए. अब मैने तुम्हें बिल्कुल माफ़ कर दिया......वैसे तुम्हारी हरकत दिलचस्प ज़रूर थी. इमरान बुरी तरह बोखला गया था." इमरान X2 की आवाज़ मे हंसा फिर बोला "अब.....तुम्हें क्या करना है?"
"सफदार से जो कुछ पता चलेगा उस से आप को अवगत कराउन्गि. वो आज किसी ना किसी तरह उस बिल्डिंग मे घुसेगा..."
"मुझे विश्वास है....वो बहुत चालाक है. मुझे अपने कुच्छ साथियों पर गर्व है."
इमरान ने फोन रख दिया. कुच्छ देर बाद वो बाहर जाने केलिए ड्रेस चेंज कर रहा था. नीचे आकर उसने कार संभाली और एक तरफ चल पड़ा.
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प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: प्यासा समुन्दर
25
लगभग चार बजे इमरान ने दानिश मंज़िल से जूलीया को फोन किया. दूसरी तरफ से जल्दी ही उत्तर मिला.
"मैं कयि बार आपको रिंग कर चुकी हूँ सर...."
"मैं दानिश मंज़िल से बोल रहा हूँ....क्या खबर है?"
"सफदार बिल्डिंग मे प्रवेश करने मे सफल हो गया है."
"किस तरह?"
"उसने किसी तरह बिल्डिंग की फोन लाइन खराब करवा दी. फिर टेलिफोन डिपार्टमेंट के टेक्नीशियन के रूप मे इमारत मे प्रवेश किया......और अब तक वहीं है..."
"क्या मतलब?"
"वो वहाँ से वापस नहीं आया. बल्कि इमारत ही मे छुप गया है..."
"मगर क्या उसने ये हरकत टेलिफोन डिपार्टमेंट के सहयोग से किया है?"
"जी हां....मेरे विचार से वो कभी कोई काम अधूरा नहीं करता. चूँकि उसे इमारत मे ही छुप कर रहना था....इसलिए उसने टेलिफोन डिपार्टमेंट के किसी ऑफीसर से गठजोड़ कर के ये हरकत की थी. वरना बाद मे असली टेक्नीशियन के पहुचने पर भांडा फूट जाता.....और वो लोग सतर्क हो जाते."
"सच मुच वो बहुत चालाक है."
"तनवीर का मामला अभी तक उसकी समझ मे नहीं आ सका. इसलिए मैने उसे निर्देश दिया है कि खुद को तनवीर पर प्रकट ना करे..."
"जूलीया....तुम तो बहुत जीनियस होती जा रही हो...." इमरान ने कहा. "लेकिन क्या तनवीर वहाँ से निकल आना चाहता है?"
"सफदार की रिपोर्ट है कि वो बहुत उकताया हुआ सा लगता है..."
इमरान खामोश ही रहा. कुच्छ देर रुक कर उसने उसे ब्लॅक ज़ीरो का नंबर बता कर कहा...."अब मुझे इस नंबर पर रिंग करना...."
"ऑल राइट सर..."
इमरान ने फोन काट दिया. आज रात उसे बहुत व्यस्त रहना था. इसी लिए उसने जूलीया को ब्लॅक ज़ीरो का नंबर दिया था. वो X2 की हैसियत से जूलीया के कॉल्स रिसीव कर के इन्फर्मेशन्स नोट करता रहता फिर जब भी मौका मिलता इमरान सीधे उस से जानकारी ले लेता.
इमरान अब साउंड प्रूफ कमरे मे आया जहाँ वो टॅक्सी ड्राइवर क़ैद था.
"क्यों....क्या तुम चुप ही रहोगे...?" इमरान गुर्राया.
"मैं कुच्छ नहीं जानता सर.....जो कुच्छ जानता था सब आपको बता चुका हूँ...."
"तुम हफ ड्रॅक को भी नहीं जानते....?"
"हफ ड्रॅक...!" वो धीरे से बुदबूदाया. फिर इमरान ने उसके चेहरे चेहरे का रंग पीला होते देखा. उसकी आँखों से डर झाँक रहा था.
"आब्ब्ब....." वो निढाल से स्वर मे कहा..."अगर आपने मुझे छोड़ भी दिया तो ये मेरे लिए व्यर्थ बल्कि अत्यंत ख़तरनाक होगा...."
"क्यों...?"
"अगर आप हफ ड्रॅक तक पहुच गये हैं.....और उसे किसी भी तरह पता चल गया तो वो यही समझेगा कि आपकी जानकारी का सोर्स मैं ही हूँ......फिर परिणाम मेरे लिए अत्यंत भयावह होगा...."
"क्या होगा..."
"वो लोग मुझे पाताल से भी ढूँढ कर मार डालेंगे....वो कुच्छ ऐसे ही ख़तरनाक लोग हैं...."
"तो तुम ऐसी परिस्थिति मे खुद को यहाँ सुरक्षित समझते हो...."
"उसी समय तक.....जब तक उन लोगों की पहुच यहाँ तक नहीं होती है..."
"यहाँ उनकी पहुच असंभव है...."
"तब मैं अपना शेष जीवन इसी क़ैदखाने मे काट लेना अच्छा समझूंगा."
"लेकिन उनके बारे मे कुच्छ बताना भी नहीं चाहोगे...."
"मुझ जो कुच्छ पता है वो अब ज़रूर बताउन्गा.....वो अत्यंत रहस्सयमयी और आश्चर्य-जनक लोग हैं. उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है. मैं आपको उनके बारे मे अपनी जानकारी की सीमा तक बता भी दूँगा.....तो आप उनके खिलाफ सबूत नहीं जमा कर सकेंगे."
"तुम उसकी चिंता मत करो......मैं खुद सब से आश्चर्य-जनक हूँ...."
"वो थोड़ी देर तक चुप रहा फिर बोला....."उनके पास विचित्र चीज़ें हैं. चीज़ों से मतलब वैज्ञानिक आविष्कार से है. और मैं अब तक ये नहीं जान सका कि वो किस देश के जासूस हैं......और क्या चाहते हैं. वैसे इन डींपं उनके आकर्षण का केन्द्र डॉक्टर डावर का अटॉमिक रिसर्च सेंटर है."
इमरान ने एक लंबी साँस लेकर अपनी पलकें झपकाई.
वो कहता रहा..."वो लोग चोरों की तरह डॉक्टर डावर के लब मे घुस कर कोई चीज़ तलाश करते हैं. डॉक्टर डावर को संदेह हो गया है. इसलिए वो आजकल रातें भी लॅबोरेटरी मे ही बिताते हैं. लेकिन ये लोग उनकी उपस्थिति मे भी लॅब मे घुस जाते हैं. उनके पास एक छोटी सी मशीन होती है जिसके द्वारा वो बाहर से ही लॅब के अंदर एक प्रकार की रंग-हीन और गंध-हीन गॅस फैला देते हैं. बॅस अंदर जो कोई भी होता है वो गॅस के प्रभाव से निश्चित रूप से सो जाता है.
एक दिन उनकी कोई वास्तु लॅब मे गिर गयी, जिसका पता उन्हें उस समय नहीं हो सका. लेकिन जब वो वस्तु एक रेड पॅकेट मे रख कर सीआइबी के डीजी मिस्टर रहमान को भिजवाई गयी तब उन्हें इसका पता चल गया. वो लोग उसे वापस प्राप्त करने केलिए प्रयास करने लगे. वो वस्तु डॉक्टर डावर ने अपने इस संदेह के कारण डीजी सहाब को भिजवाई थी कि लॅब मे कोई अग्यात व्यक्ति रहस्सयमयी ढंग से घुस कर उनकी मशीन्स का निरीक्षण करता है."
"वहाँ गिर जाने वाली वस्तु क्या थी?" इमरान ने पुछा.
"ऐसी ही वस्तु थी कि डॉक्टर डावर जैसे साइंटिस्ट की भी समझ मे नहीं आ सकी थी."
"ओह्ह.....बोलो भी क्या चीज़ थी?"
"नाम मैं भी नहीं जानता, लेकिन मैने उसे देखा ज़रूर है.....और उसका प्रयोग भी जानता हूँ. लेकिन मुझे शायद उनकी अन्भिग्यता मे ही उसका उसे पता चल गया था. वरना वो लोग मुझे उसकी हवा भी नहीं लगने देते. आज भी उन्हें पूरा विश्वास होगा कि अगर मैं उस रेड पॅकेट को पा सका तो बिना खोले उनके हवाले कर दूँगा."
इसके बाद वो इमरान को उस वस्तु के बारे मे पूरा डीटेल बता दिया.
तभी सामने वाली दीवार पर ग्रीन बल्ब जलने बुझने लगा. जिसका मतलब था कि ऑपरेशन रूम मे किसी की कॉल आ रही है. वो उसे हाथ से वेट करने का इशारा करता हुआ साउंड प्रूफ कमरे से बाहर निकल गया.
************
*******
सुनहरी लड़की ने सिम्मी की फोर्हेड पर किस किया और फेग्राज़ज़ मे जा बैठी. आज भी उसने उसका दिल तोड़ दिया था. उसके साथ उसके घर जाने पर तैयार नहीं हुई थी. सिम्मी को बहुत दुख था. आज भी वो नौकरों को बंग्लो से टाल देने मे सफल हो गयी थी......और सारी व्यवस्था पूरी थी.
आज भी सुनहरी लड़की ने बातों ही बातों मे सारा समय ख़तम कर दिया था. और फिर अचानक चौंक कर बोली थी कि अब उसे वापस चले जाना चाहिए.
सिम्मी दूर हट गयी थी. फेग्राज़ज़ ज़मीन से उपर उठा लेकिन केवल एक मीटर की उँचाई पर ही हवा मे टंगा रह गया. सिम्मी हैरत से आँखें फाडे देखती रही. अचानक वो फिर ज़मीन पर गिरा और किसी गेंद की तरह लुढ़कता हुआ समुद्र की तरफ जाने लगा. देखते देखते फेग्राज़ज़ समुद्र के पानी मे प्रवेश कर गया.
सिम्मी ने टॉर्च जलाया और गिरती पड़ती किनारे की तरफ भागी. लेकिन पानी की सतह पर कुच्छ भी दिखाई ना दिया. बड़ी बड़ी लहरों के छल्ले दूर दूर तक फैल रहे थे.
तो वो डूब गयी.......सिम्मी ने सोचा.....और बुरी तरह काँपने लगी. टॉर्च अब भी उसके उसके हाथों मे जल रहा था और रौशनी पानी पर जा रही थी. सिम्मी का दिल भर आया......और उसके गालों पर मोटी मोटी बूँदें ढालकने लगीं. उसका दिल चाह रहा था कि वो दहाड़ें मार मार कर रोए. लेकिन उसने अपने पर नियंत्रण किए रखा.
वो सोच रही थी कि सुनहरी लड़की केलिए क्या करे. क्या वो अब उसे दुबारा कभी नहीं मिलेगी?
"नहिन्न्न.....नहिंन्न्न्" ऐसी कल्पना भी उसके लिए अत्यंत कष्ट दायक थी.
लगभग चार बजे इमरान ने दानिश मंज़िल से जूलीया को फोन किया. दूसरी तरफ से जल्दी ही उत्तर मिला.
"मैं कयि बार आपको रिंग कर चुकी हूँ सर...."
"मैं दानिश मंज़िल से बोल रहा हूँ....क्या खबर है?"
"सफदार बिल्डिंग मे प्रवेश करने मे सफल हो गया है."
"किस तरह?"
"उसने किसी तरह बिल्डिंग की फोन लाइन खराब करवा दी. फिर टेलिफोन डिपार्टमेंट के टेक्नीशियन के रूप मे इमारत मे प्रवेश किया......और अब तक वहीं है..."
"क्या मतलब?"
"वो वहाँ से वापस नहीं आया. बल्कि इमारत ही मे छुप गया है..."
"मगर क्या उसने ये हरकत टेलिफोन डिपार्टमेंट के सहयोग से किया है?"
"जी हां....मेरे विचार से वो कभी कोई काम अधूरा नहीं करता. चूँकि उसे इमारत मे ही छुप कर रहना था....इसलिए उसने टेलिफोन डिपार्टमेंट के किसी ऑफीसर से गठजोड़ कर के ये हरकत की थी. वरना बाद मे असली टेक्नीशियन के पहुचने पर भांडा फूट जाता.....और वो लोग सतर्क हो जाते."
"सच मुच वो बहुत चालाक है."
"तनवीर का मामला अभी तक उसकी समझ मे नहीं आ सका. इसलिए मैने उसे निर्देश दिया है कि खुद को तनवीर पर प्रकट ना करे..."
"जूलीया....तुम तो बहुत जीनियस होती जा रही हो...." इमरान ने कहा. "लेकिन क्या तनवीर वहाँ से निकल आना चाहता है?"
"सफदार की रिपोर्ट है कि वो बहुत उकताया हुआ सा लगता है..."
इमरान खामोश ही रहा. कुच्छ देर रुक कर उसने उसे ब्लॅक ज़ीरो का नंबर बता कर कहा...."अब मुझे इस नंबर पर रिंग करना...."
"ऑल राइट सर..."
इमरान ने फोन काट दिया. आज रात उसे बहुत व्यस्त रहना था. इसी लिए उसने जूलीया को ब्लॅक ज़ीरो का नंबर दिया था. वो X2 की हैसियत से जूलीया के कॉल्स रिसीव कर के इन्फर्मेशन्स नोट करता रहता फिर जब भी मौका मिलता इमरान सीधे उस से जानकारी ले लेता.
इमरान अब साउंड प्रूफ कमरे मे आया जहाँ वो टॅक्सी ड्राइवर क़ैद था.
"क्यों....क्या तुम चुप ही रहोगे...?" इमरान गुर्राया.
"मैं कुच्छ नहीं जानता सर.....जो कुच्छ जानता था सब आपको बता चुका हूँ...."
"तुम हफ ड्रॅक को भी नहीं जानते....?"
"हफ ड्रॅक...!" वो धीरे से बुदबूदाया. फिर इमरान ने उसके चेहरे चेहरे का रंग पीला होते देखा. उसकी आँखों से डर झाँक रहा था.
"आब्ब्ब....." वो निढाल से स्वर मे कहा..."अगर आपने मुझे छोड़ भी दिया तो ये मेरे लिए व्यर्थ बल्कि अत्यंत ख़तरनाक होगा...."
"क्यों...?"
"अगर आप हफ ड्रॅक तक पहुच गये हैं.....और उसे किसी भी तरह पता चल गया तो वो यही समझेगा कि आपकी जानकारी का सोर्स मैं ही हूँ......फिर परिणाम मेरे लिए अत्यंत भयावह होगा...."
"क्या होगा..."
"वो लोग मुझे पाताल से भी ढूँढ कर मार डालेंगे....वो कुच्छ ऐसे ही ख़तरनाक लोग हैं...."
"तो तुम ऐसी परिस्थिति मे खुद को यहाँ सुरक्षित समझते हो...."
"उसी समय तक.....जब तक उन लोगों की पहुच यहाँ तक नहीं होती है..."
"यहाँ उनकी पहुच असंभव है...."
"तब मैं अपना शेष जीवन इसी क़ैदखाने मे काट लेना अच्छा समझूंगा."
"लेकिन उनके बारे मे कुच्छ बताना भी नहीं चाहोगे...."
"मुझ जो कुच्छ पता है वो अब ज़रूर बताउन्गा.....वो अत्यंत रहस्सयमयी और आश्चर्य-जनक लोग हैं. उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है. मैं आपको उनके बारे मे अपनी जानकारी की सीमा तक बता भी दूँगा.....तो आप उनके खिलाफ सबूत नहीं जमा कर सकेंगे."
"तुम उसकी चिंता मत करो......मैं खुद सब से आश्चर्य-जनक हूँ...."
"वो थोड़ी देर तक चुप रहा फिर बोला....."उनके पास विचित्र चीज़ें हैं. चीज़ों से मतलब वैज्ञानिक आविष्कार से है. और मैं अब तक ये नहीं जान सका कि वो किस देश के जासूस हैं......और क्या चाहते हैं. वैसे इन डींपं उनके आकर्षण का केन्द्र डॉक्टर डावर का अटॉमिक रिसर्च सेंटर है."
इमरान ने एक लंबी साँस लेकर अपनी पलकें झपकाई.
वो कहता रहा..."वो लोग चोरों की तरह डॉक्टर डावर के लब मे घुस कर कोई चीज़ तलाश करते हैं. डॉक्टर डावर को संदेह हो गया है. इसलिए वो आजकल रातें भी लॅबोरेटरी मे ही बिताते हैं. लेकिन ये लोग उनकी उपस्थिति मे भी लॅब मे घुस जाते हैं. उनके पास एक छोटी सी मशीन होती है जिसके द्वारा वो बाहर से ही लॅब के अंदर एक प्रकार की रंग-हीन और गंध-हीन गॅस फैला देते हैं. बॅस अंदर जो कोई भी होता है वो गॅस के प्रभाव से निश्चित रूप से सो जाता है.
एक दिन उनकी कोई वास्तु लॅब मे गिर गयी, जिसका पता उन्हें उस समय नहीं हो सका. लेकिन जब वो वस्तु एक रेड पॅकेट मे रख कर सीआइबी के डीजी मिस्टर रहमान को भिजवाई गयी तब उन्हें इसका पता चल गया. वो लोग उसे वापस प्राप्त करने केलिए प्रयास करने लगे. वो वस्तु डॉक्टर डावर ने अपने इस संदेह के कारण डीजी सहाब को भिजवाई थी कि लॅब मे कोई अग्यात व्यक्ति रहस्सयमयी ढंग से घुस कर उनकी मशीन्स का निरीक्षण करता है."
"वहाँ गिर जाने वाली वस्तु क्या थी?" इमरान ने पुछा.
"ऐसी ही वस्तु थी कि डॉक्टर डावर जैसे साइंटिस्ट की भी समझ मे नहीं आ सकी थी."
"ओह्ह.....बोलो भी क्या चीज़ थी?"
"नाम मैं भी नहीं जानता, लेकिन मैने उसे देखा ज़रूर है.....और उसका प्रयोग भी जानता हूँ. लेकिन मुझे शायद उनकी अन्भिग्यता मे ही उसका उसे पता चल गया था. वरना वो लोग मुझे उसकी हवा भी नहीं लगने देते. आज भी उन्हें पूरा विश्वास होगा कि अगर मैं उस रेड पॅकेट को पा सका तो बिना खोले उनके हवाले कर दूँगा."
इसके बाद वो इमरान को उस वस्तु के बारे मे पूरा डीटेल बता दिया.
तभी सामने वाली दीवार पर ग्रीन बल्ब जलने बुझने लगा. जिसका मतलब था कि ऑपरेशन रूम मे किसी की कॉल आ रही है. वो उसे हाथ से वेट करने का इशारा करता हुआ साउंड प्रूफ कमरे से बाहर निकल गया.
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सुनहरी लड़की ने सिम्मी की फोर्हेड पर किस किया और फेग्राज़ज़ मे जा बैठी. आज भी उसने उसका दिल तोड़ दिया था. उसके साथ उसके घर जाने पर तैयार नहीं हुई थी. सिम्मी को बहुत दुख था. आज भी वो नौकरों को बंग्लो से टाल देने मे सफल हो गयी थी......और सारी व्यवस्था पूरी थी.
आज भी सुनहरी लड़की ने बातों ही बातों मे सारा समय ख़तम कर दिया था. और फिर अचानक चौंक कर बोली थी कि अब उसे वापस चले जाना चाहिए.
सिम्मी दूर हट गयी थी. फेग्राज़ज़ ज़मीन से उपर उठा लेकिन केवल एक मीटर की उँचाई पर ही हवा मे टंगा रह गया. सिम्मी हैरत से आँखें फाडे देखती रही. अचानक वो फिर ज़मीन पर गिरा और किसी गेंद की तरह लुढ़कता हुआ समुद्र की तरफ जाने लगा. देखते देखते फेग्राज़ज़ समुद्र के पानी मे प्रवेश कर गया.
सिम्मी ने टॉर्च जलाया और गिरती पड़ती किनारे की तरफ भागी. लेकिन पानी की सतह पर कुच्छ भी दिखाई ना दिया. बड़ी बड़ी लहरों के छल्ले दूर दूर तक फैल रहे थे.
तो वो डूब गयी.......सिम्मी ने सोचा.....और बुरी तरह काँपने लगी. टॉर्च अब भी उसके उसके हाथों मे जल रहा था और रौशनी पानी पर जा रही थी. सिम्मी का दिल भर आया......और उसके गालों पर मोटी मोटी बूँदें ढालकने लगीं. उसका दिल चाह रहा था कि वो दहाड़ें मार मार कर रोए. लेकिन उसने अपने पर नियंत्रण किए रखा.
वो सोच रही थी कि सुनहरी लड़की केलिए क्या करे. क्या वो अब उसे दुबारा कभी नहीं मिलेगी?
"नहिन्न्न.....नहिंन्न्न्" ऐसी कल्पना भी उसके लिए अत्यंत कष्ट दायक थी.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: प्यासा समुन्दर
अचानक उसे लगा जैसे कोई तैरता हुआ किनारे की तरफ आ रहा है. सिम्मी का दिल धड़कने लगा.....और फिर वो डर गयी....क्योंकि वो एक विचित्र प्रकार का सामुद्री जानवर था. ओक्टोपस जैसा. फिर वो पूरी तरह टॉर्च की रौशनी मे आ गया.
फिर उस कर डर भी दूर हो गया क्यूंकी वो स्विम्मिंग ड्रेस मे कोई आदमी ही था.....जो पानी से निकल आया था.
फिर अचानक सिम्मी का दिल खुशी से नाच उठा. क्योंकि आने वाले ने अपने चेहरे से सेफ्टी कवर हटा दिया था. ये सुनहरी लड़की थी. लेकिन उसके चेहरे से अत्यधिक परेशानी झलक रही थी. सिम्मी उस से लिपट गयी.
फिर उसने उसकी सिसकियाँ सुनी. सुनहरी लड़की किसी नन्ही बच्ची की तरह रो रही थी.
"चलो.....चलो....अब तो चलो. मेरे विचार से तुम्हारी उड़ने वाली मशीन डूब गयी."
लड़की ने कोई उत्तर नहीं दिया. सिम्मी ने सोचा कि वो उत्तर देती भी कैसे. क्योंकि उसके कानों मे कपल टॅगेस के हेड फोन नहीं थे.
सिम्मी उसे घर की तरफ खिचने लगी. सुनहरी लड़की जाने केलिए अब भी राज़ी नहीं थी.....लेकिन सिम्मी के द्वारा खीछे जाने पर उसके साथ चलती रही. सिम्मी उसे बंग्लो मे ले आई......सीधी अपने बेडरूम मे लेकर चली गयी.
सुनहरी लड़की बहुत अधिक परेशान लग रही थी. अब वो रो तो नहीं रही थी लेकिन उसकी आँखें अंगारे जैसी हो रही थीं.
सिम्मी ने इशारे से उसे गोताखोरी वाला ड्रेस उतारने को कहा.....और सुनहरी लड़की इस तरह चौंकी जैसे उसे अब पता चला कि उसके शरीर पर अब भी गोताखोरी वाला ड्रेस है.
उसने वो ड्रेस उतार दिया.....लेकिन अब उसके जिस्म पर वही लिबास नज़र आ रहा था जिसे देख कर कुच्छ दिन पहले सिम्मी ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं. उसने अपना स्लीपिंग गाउन उसकी तरफ बढ़ा दिया. सिम्मी सोच रही थी कि अब वो उसका गम कैसे बान्टेगि. क्योंकि विचारों के कम्यूनिकेशन जोड़ने वाली मशीन कपल टॅगेस अब उसके पास नहीं है. बेचारी लड़की.......सिम्मी का दिल भर आया. लेकिन वो कोशिश कर रही थी कि आँसू ना निकले. सुनहरी लड़की सर झुकाए बैठी थी.
तभी अचानक वो उठी और स्विम्मिंग ड्रेस को उलटने लगी. फिर उसके भीतरी भाग मे बने हुए एक पॉकेट से कपल टॅगेस के सेट निकाली.
"ओह्हो.....ये बहुत अच्छा हुआ....कि तुम इन्हें बचा लाई...." सिम्मी बोल पड़ी.
उसने झपट कर एक सेट उस के हाथों से ले लिया....दूसरे ही पल वो उसे अपने सर पर और कानों पर चढ़ा रही थी.
दूसरी तरफ सुनहरी लड़की भी अपना सेट पोज़िशन मे ला रही थी.
"मैं बर्बाद हो गयी.....तबाह हो गयी अच्छी लड़की...." उसने कहा.
"क्या हुआ...? ये क्या हुआ था...." सिम्मी ने भी बेचैनी से पुछा.
"फेग्राज़ज़ समंदर मे डूब गया. अब मेरे फरिश्ते भी उसे नहीं निकाल सकते..."
"लेकिन ये हुआ कैसे....?"
"अचानक उसमे कोई खराबी आ गयी थी. अब मैं क्या करूँगी....मैं कैसे वापस जाउन्गि...."
"मैं तुम्हारे लिए बहुत दुखी हूँ.....पापा से कहूँगी वो तुम्हें अपनी बेटी बना लें..."
"नामुमकिन.....मैं किसी के सामने नहीं आ सकती. कभी नहीं.....मैं आत्महत्या कर लूँगी..."
"ज़िद्द मत करो..."
"कुच्छ भी हो ये किसी तरह संभव नहीं है...."
"मगर क्यों?"
"बॅस वैसे ही....मुझे इस पर मजबूर मत करो. मेरे लिए अब मर जाने के अलावा और कोई ऑप्षन नहीं है..."
"अच्छा....अगर मैं तुम्हें दूसरों से छुपाति रहूं....?"
"इस स्थिति मे हो सकता है मैं कुच्छ दिन और जीवित रह सकूँ...."
सिम्मी ने सोचा कि वो उसे धीरे धीरे रास्ते पर ले आएगी. अभी इस बात पर उस से बहस नहीं करनी चाहिए...उसे वो तहख़ाने याद आ गये जिसे डॉक्टर डावर ने इस बंग्लो के नीचे ऐसे साइंटिफिक ढंग से बनवाए थे कि उन मे घुटन का एहसास नहीं होता था......और महीनों आसमान देखने की इच्छा किए बिना उन मे रहा जा सकता था. वो तहख़ाने क्यों बनवाए गये थे ये सिम्मी को नहीं मालूम था.
"मैं तुम्हें इस तरह छुपाउन्गि की किसी परिंदे की भी नज़र तुम पर नहीं पड़ सकेगी...." सिम्मी ने उस से कहा.
"ये कैसे संभव है?" सुनहरी लड़की बोली.
"वेरी सिंपल..." सिम्मी ने कहा. "इस बिल्डिंग के नीचे बहुत आरामदायक तहख़ाने हैं. तुम उन मे यही महसूस करोगी कि अपने कमरे मे बैठी हुई हो. उन मे एरकॉनडिशनर और ना जाने क्या क्या लगे हुए हैं. एनीवे.....उसमे घुटन थोड़ा सा भी नहीं होता......चाहे तुम सालो साल उसमे रहती रहो."
सुनहरी लड़की सिम्मी का हाथ चूमने लगी.
*************
********
रहमान साहब अपने बेडरूम मे पहुचे लेकिन वहाँ इमरान को देख कर उनकी हैरत की कोई सीमा ना रही. वो बड़े ही निश्चिंत ढंग से सोफे पर अढ़लेटा सा था. रहमान साहब को देख कर खड़ा हो गया.
"तुम यहाँ कैसे....?"
"मैं तो आप के साथ ही आया था..."
"क्या बकते हो.....संजीदगी से बात करो.....वरना....."
"विश्वास कीजिए.....मैं आजकल इतना गंभीर हूँ कि कभी कभी खुद मुझे अपनी गंभीरता पर रोना आता है. मैं आपके साथ ही ऑफीस से घर आया था...."
"बकवास मत करो.....मुझे बताओ कि तुम कैसे अंदर आए....कोठी के चारों तरफ मिलिटेरी फोर्स का पहरा है. मुझे वो रास्ता बताओ जिधर से आए हो......ताकि उस गॅप को बंद किया जा सके...."
"आप को मैं ही घर लाया था..."
"ईम्रन्न्न्न्न....!!"
"विश्वास ना हो तो ड्राइवर से पुच्छ लीजिएगा.....मैने आप के ऑफीस ही में उसे रोक दिया था. वो इस समय आराम से वहाँ ऑपरेशन रूम मे बैठा होगा. और शायद उसके सोने की व्यवस्था भी हो जाए. दाढ़ी वाले ड्राइवर से यही लाभ है कि मेक-अप मे बहुत आसानी हो जाता है...."
"तुम ड्राइवर के मेक अप मे आए थे...?"
"जी हां...."
रहमान साहब की आँखों से अब भी अविश्वास झलक रहा था. लेकिन वो चुप ही रहे. इमरान कहता रहा...."इसके अलावा और कोई चारा ही ना था. क्योंकि हर उस व्यक्ति की निगरानी होने लगती है जो आप से मिलता हो. लेकिन मैं उन लोगों की निगाह मे नहीं आना चाहता जो आप के पिछे पड़े हुए हैं.
फिर उस कर डर भी दूर हो गया क्यूंकी वो स्विम्मिंग ड्रेस मे कोई आदमी ही था.....जो पानी से निकल आया था.
फिर अचानक सिम्मी का दिल खुशी से नाच उठा. क्योंकि आने वाले ने अपने चेहरे से सेफ्टी कवर हटा दिया था. ये सुनहरी लड़की थी. लेकिन उसके चेहरे से अत्यधिक परेशानी झलक रही थी. सिम्मी उस से लिपट गयी.
फिर उसने उसकी सिसकियाँ सुनी. सुनहरी लड़की किसी नन्ही बच्ची की तरह रो रही थी.
"चलो.....चलो....अब तो चलो. मेरे विचार से तुम्हारी उड़ने वाली मशीन डूब गयी."
लड़की ने कोई उत्तर नहीं दिया. सिम्मी ने सोचा कि वो उत्तर देती भी कैसे. क्योंकि उसके कानों मे कपल टॅगेस के हेड फोन नहीं थे.
सिम्मी उसे घर की तरफ खिचने लगी. सुनहरी लड़की जाने केलिए अब भी राज़ी नहीं थी.....लेकिन सिम्मी के द्वारा खीछे जाने पर उसके साथ चलती रही. सिम्मी उसे बंग्लो मे ले आई......सीधी अपने बेडरूम मे लेकर चली गयी.
सुनहरी लड़की बहुत अधिक परेशान लग रही थी. अब वो रो तो नहीं रही थी लेकिन उसकी आँखें अंगारे जैसी हो रही थीं.
सिम्मी ने इशारे से उसे गोताखोरी वाला ड्रेस उतारने को कहा.....और सुनहरी लड़की इस तरह चौंकी जैसे उसे अब पता चला कि उसके शरीर पर अब भी गोताखोरी वाला ड्रेस है.
उसने वो ड्रेस उतार दिया.....लेकिन अब उसके जिस्म पर वही लिबास नज़र आ रहा था जिसे देख कर कुच्छ दिन पहले सिम्मी ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं. उसने अपना स्लीपिंग गाउन उसकी तरफ बढ़ा दिया. सिम्मी सोच रही थी कि अब वो उसका गम कैसे बान्टेगि. क्योंकि विचारों के कम्यूनिकेशन जोड़ने वाली मशीन कपल टॅगेस अब उसके पास नहीं है. बेचारी लड़की.......सिम्मी का दिल भर आया. लेकिन वो कोशिश कर रही थी कि आँसू ना निकले. सुनहरी लड़की सर झुकाए बैठी थी.
तभी अचानक वो उठी और स्विम्मिंग ड्रेस को उलटने लगी. फिर उसके भीतरी भाग मे बने हुए एक पॉकेट से कपल टॅगेस के सेट निकाली.
"ओह्हो.....ये बहुत अच्छा हुआ....कि तुम इन्हें बचा लाई...." सिम्मी बोल पड़ी.
उसने झपट कर एक सेट उस के हाथों से ले लिया....दूसरे ही पल वो उसे अपने सर पर और कानों पर चढ़ा रही थी.
दूसरी तरफ सुनहरी लड़की भी अपना सेट पोज़िशन मे ला रही थी.
"मैं बर्बाद हो गयी.....तबाह हो गयी अच्छी लड़की...." उसने कहा.
"क्या हुआ...? ये क्या हुआ था...." सिम्मी ने भी बेचैनी से पुछा.
"फेग्राज़ज़ समंदर मे डूब गया. अब मेरे फरिश्ते भी उसे नहीं निकाल सकते..."
"लेकिन ये हुआ कैसे....?"
"अचानक उसमे कोई खराबी आ गयी थी. अब मैं क्या करूँगी....मैं कैसे वापस जाउन्गि...."
"मैं तुम्हारे लिए बहुत दुखी हूँ.....पापा से कहूँगी वो तुम्हें अपनी बेटी बना लें..."
"नामुमकिन.....मैं किसी के सामने नहीं आ सकती. कभी नहीं.....मैं आत्महत्या कर लूँगी..."
"ज़िद्द मत करो..."
"कुच्छ भी हो ये किसी तरह संभव नहीं है...."
"मगर क्यों?"
"बॅस वैसे ही....मुझे इस पर मजबूर मत करो. मेरे लिए अब मर जाने के अलावा और कोई ऑप्षन नहीं है..."
"अच्छा....अगर मैं तुम्हें दूसरों से छुपाति रहूं....?"
"इस स्थिति मे हो सकता है मैं कुच्छ दिन और जीवित रह सकूँ...."
सिम्मी ने सोचा कि वो उसे धीरे धीरे रास्ते पर ले आएगी. अभी इस बात पर उस से बहस नहीं करनी चाहिए...उसे वो तहख़ाने याद आ गये जिसे डॉक्टर डावर ने इस बंग्लो के नीचे ऐसे साइंटिफिक ढंग से बनवाए थे कि उन मे घुटन का एहसास नहीं होता था......और महीनों आसमान देखने की इच्छा किए बिना उन मे रहा जा सकता था. वो तहख़ाने क्यों बनवाए गये थे ये सिम्मी को नहीं मालूम था.
"मैं तुम्हें इस तरह छुपाउन्गि की किसी परिंदे की भी नज़र तुम पर नहीं पड़ सकेगी...." सिम्मी ने उस से कहा.
"ये कैसे संभव है?" सुनहरी लड़की बोली.
"वेरी सिंपल..." सिम्मी ने कहा. "इस बिल्डिंग के नीचे बहुत आरामदायक तहख़ाने हैं. तुम उन मे यही महसूस करोगी कि अपने कमरे मे बैठी हुई हो. उन मे एरकॉनडिशनर और ना जाने क्या क्या लगे हुए हैं. एनीवे.....उसमे घुटन थोड़ा सा भी नहीं होता......चाहे तुम सालो साल उसमे रहती रहो."
सुनहरी लड़की सिम्मी का हाथ चूमने लगी.
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रहमान साहब अपने बेडरूम मे पहुचे लेकिन वहाँ इमरान को देख कर उनकी हैरत की कोई सीमा ना रही. वो बड़े ही निश्चिंत ढंग से सोफे पर अढ़लेटा सा था. रहमान साहब को देख कर खड़ा हो गया.
"तुम यहाँ कैसे....?"
"मैं तो आप के साथ ही आया था..."
"क्या बकते हो.....संजीदगी से बात करो.....वरना....."
"विश्वास कीजिए.....मैं आजकल इतना गंभीर हूँ कि कभी कभी खुद मुझे अपनी गंभीरता पर रोना आता है. मैं आपके साथ ही ऑफीस से घर आया था...."
"बकवास मत करो.....मुझे बताओ कि तुम कैसे अंदर आए....कोठी के चारों तरफ मिलिटेरी फोर्स का पहरा है. मुझे वो रास्ता बताओ जिधर से आए हो......ताकि उस गॅप को बंद किया जा सके...."
"आप को मैं ही घर लाया था..."
"ईम्रन्न्न्न्न....!!"
"विश्वास ना हो तो ड्राइवर से पुच्छ लीजिएगा.....मैने आप के ऑफीस ही में उसे रोक दिया था. वो इस समय आराम से वहाँ ऑपरेशन रूम मे बैठा होगा. और शायद उसके सोने की व्यवस्था भी हो जाए. दाढ़ी वाले ड्राइवर से यही लाभ है कि मेक-अप मे बहुत आसानी हो जाता है...."
"तुम ड्राइवर के मेक अप मे आए थे...?"
"जी हां...."
रहमान साहब की आँखों से अब भी अविश्वास झलक रहा था. लेकिन वो चुप ही रहे. इमरान कहता रहा...."इसके अलावा और कोई चारा ही ना था. क्योंकि हर उस व्यक्ति की निगरानी होने लगती है जो आप से मिलता हो. लेकिन मैं उन लोगों की निगाह मे नहीं आना चाहता जो आप के पिछे पड़े हुए हैं.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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