२७
रहमान साहब खामोशी से इमरान को घूरते रहे.
"हां आपने क्यों बुलाया था?"
"ये बताने केलिए कि तुम गधे हो..."
"ये तो मैं बचपन ही से सुनता आ रहा हूँ.......वैसे अगर आप ने ऊँट या उद्बिलाउ कहा होता तो मैं कोशिश करता कि मुझे चिंता हो जाए...."
"सुनो....मैने ये कहने केलिए बुलाया है कि अगर तुम्हें उस पॅकेट का राज़ पता चल जाए तो तुम क्या कर सकोगे?"
"उसका राज़ मुझे पता चल चुका है..." इमरान ने लापरवाही से कहा.
"तुम बकवास करते हो..."
"मेरी समझ से मैने पैदाइश से अब तक कभी कोई ढंग की बात नहीं की..."
"इसलिए मैं मशवरा दूँगा कि चुप चाप यहाँ से चले जाओ......मेक अप कर लेना, कुच्छ केसस को सुलझा लेना कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है."
"मेरे लिए वो रेड पॅकेट भी कोई बड़ी बात नहीं है....और मैं आपको यही बताने आया हूँ कि अब मुझे उस पॅकेट की थोड़ी सी भी परवाह नहीं है....."
"क्यों...?"
"मैं डॉक्टर डावर से भी उसके बारे मे जानकारी ले सकता हूँ...."
"ओह्ह...." रहमान साहब का मूह खुल गया.....वो हैरत से इमरान की आँखों मे देख रहे थे.
"तुम्हें कैसे पता चला...? मैने ये बात सर सुल्तान को भी नहीं बताई थी...."
"बस हो गया पता....लेकिन आप उस गोलडेन स्पंज के बारे मे अब तक क्या मालूम कर सके हैं?"
"रहमान साहब ने एक लंबी साँस ली. अचानक उनके तेवर का तीखापन गायब हो गया. उनके होंटो पर हल्की सी मुस्कुराहट दिखाई दी.......और यही इमरान की सब से बड़ी जीत थी.
मुस्कुराहट......और रहमान साहब के होंटो पर.......विशेष कर इमरान केलिए......ये तो अनहोनी बात थी.
"मैं उसे अभी तक नहीं समझ सका." उन्होने धीरे से कहा. "बैठ जाओ...." और वो खुद भी बैठ गये.
इमरान बैठता हुआ बोला...."उसे निकालिए.....मैं कोशिश करूँगा कि आप उसे समझ सकें..."
रहमान साहब उठ कर चले गये. अंदाज़ से यही लग रहा था कि वो खाली हाथ नहीं लौटेंगे. इमरान ने चेविन्गुम का पॅकेट फाडा और एक पीस मूह मे डाल कर उसे धीरे धीरे कुचलने लगा. कुच्छ ही देर बाद रहमान साहब वापस आ गये. उनके हाथ मे एक छोटा सा रेड पॅकेट था.
उन्होने उसे टेबल पर रख दिया और एक चेअर खीच कर वहीं पर बैठ गये.
"अनुमति है...?" इमरान पॅकेट की तरफ हाथ बढ़ाता हुआ बोला.
"ठहरो..." रहमान साहब ने पॅकेट पर हाथ रखते हुए कहा...."डॉक्टर डावर मेरा पुराना दोस्त है.....वो पर्सनली इस गोल्डन स्पंज के बारे मे जानकारी प्राप्त करना चाहता था....और चाहता था कि ये जिन लोगों से संबंधित है उन्हें खोज निकाला जाए."
"ये जिन लोगों से संबंध रखता है वो भी मेरी नज़रों मे हैं...."
"गैर-ज़िम्मेदारी वाली बात मैं पसंद नहीं करता." रहमान साहब उसे घूरते हुए गुर्राए.
"ओके...एनीवे.....आप डॉक्टर के बारे मे ये कह रहे थे कि अभी वो अफीशियली इसकी जाँच-पर्ताल नहीं कराना चाहते...."
"हां.....लेकिन अब ये अफीशियल केस बन चुका है..."
"इस से कोई फ़र्क नहीं पड़ता.....आप निश्चिंत रहें.....मैं इस पॅकेट की डिमॅंड आप से नहीं करूँगा. लेकिन आपको ये ज़रूर बताउन्गा कि इस पॅकेट को अपने पास रखना आपके लिए अत्यंत ख़तरनाक भी हो सकता है. अगर आप अनुमति दें तो मैं आपको इसके कुच्छ जोहर दिखाउ..."
"चलो.....जल्दी करो.....मुझे सोना भी है. आजकल मैं बहुत थकान महसूस कर रहा हूँ...ओह्ह....लेकिन ठहरो....तुम ने उस टॅक्सी ड्राइवर से इसके बारे मे जानकारी ली होगी..."
"लेकिन यही कितना कठिन काम था डॅडी......कि मैने 6 आदमियों मे से एक को चुन लिया और वही काम का आदमी निकला...."
"मगर वो अब कहाँ है?"
"सीक्रेट सर्विस वालों के क़ब्ज़े मे..."
"तुम उनके लिए काम करते हो...?"
"जी हां..."
"क्या मिलता है?" रहमान साहब ने कटुता भरे स्वर मे पुछा.
"धक्के..." इमरान बुरा सा मूह बना कर बोला...."कभी आपकी डाँट....और कभी सूपर फ़ैयाज़ की लाल पीली आँखें..."
"फिर इस बेकारी से क्या लाभ?"
"अनुभव हासिल कर रहा हूँ..." इमरान ने लापरवाही से कहा.
रहमान साहब केवल दाँत पीस कर रह गये.
"हां.....तो फिर अनुमति है?"
प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल
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Re: प्यासा समुन्दर
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: प्यासा समुन्दर
२८
"हुन्न्ह..." रहमान साहब होन्ट भींच कर दूसरी तरफ देखने लगे. ना जाने क्यों वो अत्यधिक खिन्न से लगने लगे थे.
इमरान ने पॅकेट खोल डाला. अंदर से सुनहरे रंग के स्पंज का एक टुकड़ा निकला. इमरान ने उसे दबा कर देखा.....और फिर छोड़ दिया. उस ने स्पंज ही की तरह दब कर पुनः अपना पुराना आकार ले लिया था. मगर वो सोने का था. सौ प्रतिशत सोने का. इमरान ने यही अनुमान लगाया. वो साधारण स्पंज से कुच्छ अधिक भारी भी था.
अब इमरान ने एक ग्लास उठाया और अपने कोट के भीतरी पॉकेट से एक शीशी निकाली जिसमे काले रंग जैसा कोई लिक्विड था. उसने वो लिक्विड ग्लास मे उंड़ेल दी.
"ये क्या है...?" रहमान साहब ने पुछा.
"एक कॉंपाउंड जो असेटिक आसिड और अमोनिया से तैयार किया गया है...." इमरान ने उत्तर दिया......और दूसरे ही पल मे सुनहरा स्पंज उठा कर ग्लास मे डाल दिया.
"अर्रे.....ये क्या किया.....क्यों इसे नष्ट कर रहे हो?"
"अगर इसका वेट कम हुआ या इसके रंग मे कोई अंतर आया तो मुझे यहीं गोली मार दीजिएगा....."
अचानक रहमान साहब ने देखा कि ग्लास से हल्के पिंक कलर का धुँआ उठ रहा है. लेकिन उसमे किसी प्रकार की स्मेल नहीं थी. और देखते ही देखते उनके चहरे पर हैरत के भाव भी दिखाई देने लगे. क्योंकि उस धुवें से मक्खियों की भीनभीनाहट जैसी आवाज़ें आने लगी थीं.
फिर अचानक कोई सॉफ आवाज़ मे बोलने लगा. लेकिन आवाज़ इतनी हल्की थी कि टेबल से अधिक दूर तक नहीं फैल सकती थी. मगर वो कॉन सी भाषा थी? दोनों एक दूसरे का मूह देख रहे थे.
रहमान साहब ने कुच्छ कहने केलिए होन्ट हिलाए ही थे कि इमरान ने हाथ उठा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया. फिर सुनहरा स्पंज ग्लास से निकाल लिया......और उसे निचोड़ता हुआ बोला.
क्या आपके लिए ये भाषा नयी नहीं थी?"
"बिल्कुल नयी..." रहमान साहब दायां हाथ अपने माथे पर रगड़ते हुए बोले. "लेकिन ये है क्या बला?"
"शुक्र ग्रह के निवासियों का ट्रांसमीटर."
"फिर बकवास शुरू कर दी तुम ने...."
"अभी तक की यही जानकारी है. शुक्र ग्रह वाले हमारी पृथ्वी को हरामी.....अर्ररर.....रयामी कहते हैं.....और शुक्र ग्रह को स्परसिया."
"क्या बक रहा है गधे...." रहमान साहब गरजे.
"अभी तक की जानकारी इतनी ही है डॅडी....अगर मैं इसमे कोई नयी बात पैदा कर सका तो वो आप से छुपि नहीं रहेगी.....अब आप इस सुनहरे स्पंज के संबंध मे अपना निर्णय मुझे बताइए..."
"मैं चाहता हूँ कि ये डॉक्टर डावर ही के पास पहुच जाए. आज सुबह उसने मुझे फोन किया था. जब उसे ये पता चला कि मुझ पर होने वाला हमला इसी से जुड़ा हुआ था तब उसने कहा कि ये उसे वापस भेज दिया जाए...."
"मैं ये इस सेवा को भली भाँति अंजाम दे सकूँगा...."
"तुम अभी अभी मुझे इसके ख़तरे से आगाह कर चुके हो..."
"जी हां.....मैं आपका साया अपने सर पर कायम रखना चाहता हूँ.....इसलिए निवेदन किया हूँ. वैसे मेरा साया आज तक किसी कुत्ते के पिल्ले के सर पर भी नहीं पड़ सका.......इसलिए मेरी बात और है....'
"क्या बकता है...."
"इमरान पॅकेट को उठा कर जेब मे रखता हुआ बोला....."अब आप अनुमति दीजिए....मैं आपकी कार आपके ऑफीस तक ले जाउन्गा. वहाँ से ड्राइवर वापस ले आएगा."
"ले जाओ......मगर देखो....." रहमान साहब कुच्छ कहते कहते रुक गये.
"जी हां...?''
"कुच्छ नहीं.......वास्तव मे ये स्पंज किसी दूसरे के द्वारा भिजवा दूँगा...."
"इस से अच्छा और क्या होगा.....इसी बहाने डॉक्टर डावर का विश्वास प्राप्त कर सकूँगा.....क्या आप ये समझते हैं कि रयामी के नागरिक स्परसिया वालों से डर जाएँगे....? अर्रे मैं तो शुक्र ग्रह मे ही जाकर अपना बिज़्नेस स्टार्ट कर दूँगा.....मलिहाबाद के आम ले जाउन्गा....अल्लहाबाद के अमरूद.....और....अब इजाज़त दीजिए."
"इमरान मैं फिर समझता हूँ तुम इन चक्करों मे ना पडो. ये अत्यंत ख़तरनाक लोग लगते हैं.....उसी X2 को भुगतने दो...."
"हाएँन्न्.....आप X2 को जानते हैं?"
"नहीं....केवल इतना जानता हूँ कि उन लोगों का चीफ X2 कहलाता है."
"बड़ा भयानक आदमी है डॅडी...." इमरान ने मूर्खों की तरह आँखे नचा कर कहा.
"होगा...." रहमान साहब के स्वर मे लापरवाही थी.
"अच्छा डॅडी....अब मैं दुबारा मेक-अप करूँगा....इसलिए आप जाने दें.... "
"जाओ...." रहमान साहब मुर्दा सी आवाज़ मे बोले.
"इमरान बाहर निकल गया. रहमान साहब ने अपना चेहरा दोनों हाथों मे छुपा लिया. अब वो बेहद दुखी लग रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे उनके चेहरे पर कभी कठोरता दिखी ही ना हों.
"हुन्न्ह..." रहमान साहब होन्ट भींच कर दूसरी तरफ देखने लगे. ना जाने क्यों वो अत्यधिक खिन्न से लगने लगे थे.
इमरान ने पॅकेट खोल डाला. अंदर से सुनहरे रंग के स्पंज का एक टुकड़ा निकला. इमरान ने उसे दबा कर देखा.....और फिर छोड़ दिया. उस ने स्पंज ही की तरह दब कर पुनः अपना पुराना आकार ले लिया था. मगर वो सोने का था. सौ प्रतिशत सोने का. इमरान ने यही अनुमान लगाया. वो साधारण स्पंज से कुच्छ अधिक भारी भी था.
अब इमरान ने एक ग्लास उठाया और अपने कोट के भीतरी पॉकेट से एक शीशी निकाली जिसमे काले रंग जैसा कोई लिक्विड था. उसने वो लिक्विड ग्लास मे उंड़ेल दी.
"ये क्या है...?" रहमान साहब ने पुछा.
"एक कॉंपाउंड जो असेटिक आसिड और अमोनिया से तैयार किया गया है...." इमरान ने उत्तर दिया......और दूसरे ही पल मे सुनहरा स्पंज उठा कर ग्लास मे डाल दिया.
"अर्रे.....ये क्या किया.....क्यों इसे नष्ट कर रहे हो?"
"अगर इसका वेट कम हुआ या इसके रंग मे कोई अंतर आया तो मुझे यहीं गोली मार दीजिएगा....."
अचानक रहमान साहब ने देखा कि ग्लास से हल्के पिंक कलर का धुँआ उठ रहा है. लेकिन उसमे किसी प्रकार की स्मेल नहीं थी. और देखते ही देखते उनके चहरे पर हैरत के भाव भी दिखाई देने लगे. क्योंकि उस धुवें से मक्खियों की भीनभीनाहट जैसी आवाज़ें आने लगी थीं.
फिर अचानक कोई सॉफ आवाज़ मे बोलने लगा. लेकिन आवाज़ इतनी हल्की थी कि टेबल से अधिक दूर तक नहीं फैल सकती थी. मगर वो कॉन सी भाषा थी? दोनों एक दूसरे का मूह देख रहे थे.
रहमान साहब ने कुच्छ कहने केलिए होन्ट हिलाए ही थे कि इमरान ने हाथ उठा कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया. फिर सुनहरा स्पंज ग्लास से निकाल लिया......और उसे निचोड़ता हुआ बोला.
क्या आपके लिए ये भाषा नयी नहीं थी?"
"बिल्कुल नयी..." रहमान साहब दायां हाथ अपने माथे पर रगड़ते हुए बोले. "लेकिन ये है क्या बला?"
"शुक्र ग्रह के निवासियों का ट्रांसमीटर."
"फिर बकवास शुरू कर दी तुम ने...."
"अभी तक की यही जानकारी है. शुक्र ग्रह वाले हमारी पृथ्वी को हरामी.....अर्ररर.....रयामी कहते हैं.....और शुक्र ग्रह को स्परसिया."
"क्या बक रहा है गधे...." रहमान साहब गरजे.
"अभी तक की जानकारी इतनी ही है डॅडी....अगर मैं इसमे कोई नयी बात पैदा कर सका तो वो आप से छुपि नहीं रहेगी.....अब आप इस सुनहरे स्पंज के संबंध मे अपना निर्णय मुझे बताइए..."
"मैं चाहता हूँ कि ये डॉक्टर डावर ही के पास पहुच जाए. आज सुबह उसने मुझे फोन किया था. जब उसे ये पता चला कि मुझ पर होने वाला हमला इसी से जुड़ा हुआ था तब उसने कहा कि ये उसे वापस भेज दिया जाए...."
"मैं ये इस सेवा को भली भाँति अंजाम दे सकूँगा...."
"तुम अभी अभी मुझे इसके ख़तरे से आगाह कर चुके हो..."
"जी हां.....मैं आपका साया अपने सर पर कायम रखना चाहता हूँ.....इसलिए निवेदन किया हूँ. वैसे मेरा साया आज तक किसी कुत्ते के पिल्ले के सर पर भी नहीं पड़ सका.......इसलिए मेरी बात और है....'
"क्या बकता है...."
"इमरान पॅकेट को उठा कर जेब मे रखता हुआ बोला....."अब आप अनुमति दीजिए....मैं आपकी कार आपके ऑफीस तक ले जाउन्गा. वहाँ से ड्राइवर वापस ले आएगा."
"ले जाओ......मगर देखो....." रहमान साहब कुच्छ कहते कहते रुक गये.
"जी हां...?''
"कुच्छ नहीं.......वास्तव मे ये स्पंज किसी दूसरे के द्वारा भिजवा दूँगा...."
"इस से अच्छा और क्या होगा.....इसी बहाने डॉक्टर डावर का विश्वास प्राप्त कर सकूँगा.....क्या आप ये समझते हैं कि रयामी के नागरिक स्परसिया वालों से डर जाएँगे....? अर्रे मैं तो शुक्र ग्रह मे ही जाकर अपना बिज़्नेस स्टार्ट कर दूँगा.....मलिहाबाद के आम ले जाउन्गा....अल्लहाबाद के अमरूद.....और....अब इजाज़त दीजिए."
"इमरान मैं फिर समझता हूँ तुम इन चक्करों मे ना पडो. ये अत्यंत ख़तरनाक लोग लगते हैं.....उसी X2 को भुगतने दो...."
"हाएँन्न्.....आप X2 को जानते हैं?"
"नहीं....केवल इतना जानता हूँ कि उन लोगों का चीफ X2 कहलाता है."
"बड़ा भयानक आदमी है डॅडी...." इमरान ने मूर्खों की तरह आँखे नचा कर कहा.
"होगा...." रहमान साहब के स्वर मे लापरवाही थी.
"अच्छा डॅडी....अब मैं दुबारा मेक-अप करूँगा....इसलिए आप जाने दें.... "
"जाओ...." रहमान साहब मुर्दा सी आवाज़ मे बोले.
"इमरान बाहर निकल गया. रहमान साहब ने अपना चेहरा दोनों हाथों मे छुपा लिया. अब वो बेहद दुखी लग रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे उनके चेहरे पर कभी कठोरता दिखी ही ना हों.
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Re: प्यासा समुन्दर
२९
सफदार क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग की छत पर अंधेरे मे आँखें फाड़ता फिर रहा था. वो कॉरिडोर की छत पर था और सीने के बल रेंगता हुआ कमरों के रौशन्दानो मे झाँकता फिर रहा था. कमरों की छत कॉरिडोर की छत से कम से कम 3 फीट उपर थीं. इसलिए वो रौशन्दानो से भली भाति कमरों के भीतर का हाल देख सकता था. वास्तव मे उसे तनवीर की खोज थी.
एक कमरे मे वो मिल ही गया. मगर तनवीर अकेला नहीं था. दो सुंदर लड़कियाँ उसके नज़दीक बैठी हुई हंस रही थीं. तनवीर भी हंस रहा था. सामने टेबल पर शराब की बोतलें और ग्लास रखे हुए थे. तनवीर की आँखों से सॉफ लग रहा था कि वो नशे मे है.
लड़कियाँ उसे छेड़ छेड़ कर खुद भी हंस रही थीं.......और उसे भी हंसा रही थीं. वैसे सफदार इस समय भी यही महसूस कर रहा था कि तनवीर किसी उलझन मे हो.
"तो फिर चलोगे मेरे साथ....?" एक लड़की ने तनवीर से पुछा.
"ये बहुत कठिन है..." तनवीर बोला. "वास्तव मे बात ये है कि कभी लड़कियों के साथ बाहर नहीं गया.....मुझे शर्म आती है."
"क्या शर्म आती है.....?" लड़कियों ने गुस्से से पुछा जैसे तनवीर ने उसे गाली दी हो.
"स....समझने की कोशिश करो..." तनवीर उंगली उठा कर बोला....."मैं बचपन ही से अलग थलग रहा हूँ....इसलिए लड़कियों से मुझ शर्म आती है."
"तो तुम अभी शरमा रहे हो..."
"हान्ं...."
अचानक दो आदमी सफदार पर टूट पड़े. सफदार उधर से सचेत नहीं था. इसलिए पहले तो वो दोनों उस पर छा ही गये......लेकिन सफदार आसानी से काबू मे आने वाला नहीं था. वो उच्छल कर दूर जा खड़ा हुआ......और दूसरे ही पल रिवॉल्वार निकाल कर बोला..."हॅंड्ज़ अप्प...."
"जैसे ही हम अपने हाथ उपर उठाएँगे....नीचे से तुम्हें गोली मार दी जाएगी...." एक ने कहा...."तुम चार राइफलों के निशाने पर हो....अच्छा यही होगा कि रिवॉल्वार नीचे डाल दो...."
अचानक सफदार बिजली की फुर्ती से नीचे गिरा और गिरते हुए एक पर फाइयर कर दिया. वो चीख कर गिरा.......और दूसरा बोखला कर बराबर वाली छत पर कूद गया. लेकिन नीचे से एक भी फाइयर नहीं हुआ. सफदार ने सोचा कि अब वहाँ रुकना मूर्खता ही होगी.
वो तेज़ी से उस तरफ आया जिधर से वॉटर पाइप के सहारे वो उपर चढ़ा था. वो तेज़ी से नीचा आया लेकिन उसे महसूस हुआ कि वो चारों तरफ से घिर चुका है. लेकिन शायद वो लोग उसे देख नहीं पाए थे. बॅस...."पकड़ना...भागने ना पाए...." का शोर दूर दूर तक फैल रहा था.
वैसे अगर उन मे से कोई भी टॉर्च जला लेता तो सफदार किसी चूहे की तरह मारा जाता. सफदार ज़मीन पर सीने के बल किसी साँप की तरह तेज़ी से रेंगता हुआ मैन गेट की तरफ बढ़ रहा था. कॉंपाउंड के गेट तक जाने वाले रास्ते के दोनों तरफ बड़े बड़े पौधे लगे हुए थे जिनके कारण वो सुरक्षित था.
लेकिन गेट पर तीन आदमी पहले से चौकसी कर रहे थे. सफदार रुक गया. वो अब भी अंधेरे ही मे था. ना जाने क्यों उन लोगों ने गेट की लाइट भी ऑफ कर दी थी.
तभी सफदार ने टटोल कर एक बड़ा सा पत्थर उठा लिया......दूसरे ही पल उसने नौकरों के क्वॉर्टर्स की तरफ पत्थर को उच्छाल दिया. वो सुबह ही देख चुका था कि उन क्वॉर्टर्स मे टीन के छत थे. पत्थर एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ किसी छत पर गिरा और गेट पर दिखाई देने वाले तीनों आदमी बेतहाशा दौड़ते हुए उसी तरफ भागे.
बॅस इधर मैदान सॉफ था और सफदार गेट के बाहर. अंदर का शोर अब भी जारी था.
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सफदार क्वीन्स रोड की 18थ बिल्डिंग की छत पर अंधेरे मे आँखें फाड़ता फिर रहा था. वो कॉरिडोर की छत पर था और सीने के बल रेंगता हुआ कमरों के रौशन्दानो मे झाँकता फिर रहा था. कमरों की छत कॉरिडोर की छत से कम से कम 3 फीट उपर थीं. इसलिए वो रौशन्दानो से भली भाति कमरों के भीतर का हाल देख सकता था. वास्तव मे उसे तनवीर की खोज थी.
एक कमरे मे वो मिल ही गया. मगर तनवीर अकेला नहीं था. दो सुंदर लड़कियाँ उसके नज़दीक बैठी हुई हंस रही थीं. तनवीर भी हंस रहा था. सामने टेबल पर शराब की बोतलें और ग्लास रखे हुए थे. तनवीर की आँखों से सॉफ लग रहा था कि वो नशे मे है.
लड़कियाँ उसे छेड़ छेड़ कर खुद भी हंस रही थीं.......और उसे भी हंसा रही थीं. वैसे सफदार इस समय भी यही महसूस कर रहा था कि तनवीर किसी उलझन मे हो.
"तो फिर चलोगे मेरे साथ....?" एक लड़की ने तनवीर से पुछा.
"ये बहुत कठिन है..." तनवीर बोला. "वास्तव मे बात ये है कि कभी लड़कियों के साथ बाहर नहीं गया.....मुझे शर्म आती है."
"क्या शर्म आती है.....?" लड़कियों ने गुस्से से पुछा जैसे तनवीर ने उसे गाली दी हो.
"स....समझने की कोशिश करो..." तनवीर उंगली उठा कर बोला....."मैं बचपन ही से अलग थलग रहा हूँ....इसलिए लड़कियों से मुझ शर्म आती है."
"तो तुम अभी शरमा रहे हो..."
"हान्ं...."
अचानक दो आदमी सफदार पर टूट पड़े. सफदार उधर से सचेत नहीं था. इसलिए पहले तो वो दोनों उस पर छा ही गये......लेकिन सफदार आसानी से काबू मे आने वाला नहीं था. वो उच्छल कर दूर जा खड़ा हुआ......और दूसरे ही पल रिवॉल्वार निकाल कर बोला..."हॅंड्ज़ अप्प...."
"जैसे ही हम अपने हाथ उपर उठाएँगे....नीचे से तुम्हें गोली मार दी जाएगी...." एक ने कहा...."तुम चार राइफलों के निशाने पर हो....अच्छा यही होगा कि रिवॉल्वार नीचे डाल दो...."
अचानक सफदार बिजली की फुर्ती से नीचे गिरा और गिरते हुए एक पर फाइयर कर दिया. वो चीख कर गिरा.......और दूसरा बोखला कर बराबर वाली छत पर कूद गया. लेकिन नीचे से एक भी फाइयर नहीं हुआ. सफदार ने सोचा कि अब वहाँ रुकना मूर्खता ही होगी.
वो तेज़ी से उस तरफ आया जिधर से वॉटर पाइप के सहारे वो उपर चढ़ा था. वो तेज़ी से नीचा आया लेकिन उसे महसूस हुआ कि वो चारों तरफ से घिर चुका है. लेकिन शायद वो लोग उसे देख नहीं पाए थे. बॅस...."पकड़ना...भागने ना पाए...." का शोर दूर दूर तक फैल रहा था.
वैसे अगर उन मे से कोई भी टॉर्च जला लेता तो सफदार किसी चूहे की तरह मारा जाता. सफदार ज़मीन पर सीने के बल किसी साँप की तरह तेज़ी से रेंगता हुआ मैन गेट की तरफ बढ़ रहा था. कॉंपाउंड के गेट तक जाने वाले रास्ते के दोनों तरफ बड़े बड़े पौधे लगे हुए थे जिनके कारण वो सुरक्षित था.
लेकिन गेट पर तीन आदमी पहले से चौकसी कर रहे थे. सफदार रुक गया. वो अब भी अंधेरे ही मे था. ना जाने क्यों उन लोगों ने गेट की लाइट भी ऑफ कर दी थी.
तभी सफदार ने टटोल कर एक बड़ा सा पत्थर उठा लिया......दूसरे ही पल उसने नौकरों के क्वॉर्टर्स की तरफ पत्थर को उच्छाल दिया. वो सुबह ही देख चुका था कि उन क्वॉर्टर्स मे टीन के छत थे. पत्थर एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ किसी छत पर गिरा और गेट पर दिखाई देने वाले तीनों आदमी बेतहाशा दौड़ते हुए उसी तरफ भागे.
बॅस इधर मैदान सॉफ था और सफदार गेट के बाहर. अंदर का शोर अब भी जारी था.
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Re: प्यासा समुन्दर
३०
इमरान डॉक्टर डावर के रिसर्च सेंटर के निकट पहुच चुका था. लेकिन उसे पता था कि वो आसानी से भीतर नहीं जा पाएगा. क्योंकि कॉंपाउंड के गेट पर सेक्यूरिटी वालों की पूरी टीम रहती थी.
ये भी संभव नहीं था कि वो रहमान साहब का रीफ्रेन्स देकर अंदर जाने की कोशिश करता. वो बाहर रहमान साहब का नाम भी लेना नहीं चाहता था. उसने सोचा कि क्यों ना बिल्डिंग के बॅक साइड से कोई रास्ता ढूँढा जाए. आख़िर वो रहस्सयमयी लोग भी अंदर कैसे जाते होंगे. मेन गेट से उनकी पहुच संभव ही नहीं थी. ये सोच कर उसने गेट की तरफ जाने का निश्चय छोड़ दिया.
अब वो पिछे की तरफ जा रहा था. इधर कुच्छ ही दूरी पर समंदर की लहरें किनारे से टकराती थीं. लेकिन ये लहरें इतनी सुस्त थी कि उन के टकराने से रात का सन्नाटा भंग नहीं हो रहा था.
तभी इमरान चलते चलते रुक गया. उसे ऐसा लगा जैसे निकट ही कहीं दो आदमी लड़ रहे हों. गुर्राहट किसी आदमी जैसी ही थी.
उसने जेब से टॉर्च निकाली और उस की रौशनी आवाज़ की तरफ डाली. टॉर्च की रौशनी दो आदमियों पर पड़ी जो एक दूसरे से गुत्थे हुए थे.
उन मे से एक के शरीर पर गोताखोरी का लिबास (डाइविंग ड्रेस) था. उसका चेहरा सेफ्टी कवर मे छुपा हुआ था. दूसरा एक अधेड़ उमर का आदमी था. उसके चेहरे पर घनी दाढ़ी थी......और बाल उलझे हुए थे. ड्रेस जगह जगह से फॅट गया था. उसकी हालत अच्छी नहीं थी फिर भी वो किसी निम्न वर्ग का व्यक्ति नहीं लगता था. उसके लड़ने के अंदाज़ से भी यही लग रहा था कि वो केवल अपनी शारीरिक शक्ति के कारण जमा हुआ है. लड़ाई भिड़ाई का अनुभव नहीं रखता. जैसे ही उन पर टॉर्च की रौशनी पड़ी गोताखोर उच्छल कर पीछे हट गया......और इसी बीच उसने रिवॉल्वार भी निकाल लिया. लेकिन इमरान भी सावधान था. पहल उसने ही कर दी.
उसके रिवॉल्वार से फाइयर हुआ और गोताखोर का रिवॉल्वार दूर जा गिरा. अधेड़ व्यक्ति ज़मीन पर पड़ा हाँफ रहा था.
अगले ही पल गोताखोर ने पानी मे छलान्ग लगा दी और देखते ही देखते निगाहों से ओझल हो गया. इमरान ने झपट कर अधेड़ व्यक्ति को ज़मीन से उठाया. उठते समय उसके कंठ से हल्की कराह की आवाज़ भी निकल रही थी.
इमरान ने उसके निकट ही गोताखोरी का एक ड्रेस पड़ा हुआ देखा और उलझन मे पड़ गया.
"वो.....वो...." अधेड़ व्यक्ति हांफता हुआ बोला. "मुझे ज़बरदस्ती गोताखोरी का ड्रेस पहनाना चाहता था."
"आप कॉन हैं?" इमरान ने पुछा.
"ओह्ह.....मैं.....मैं...." अधेड़ व्यक्ति खामोश हो गया.
"हां....कहिए आप कॉन हैं और वो कॉन था? मेरी समझ से मैं सही समय पर ही पहुचा था...."
"म्म.....मैं डॉक्टर डावर हूँ...." उस व्यक्ति ने बिल्डिंग की तरफ हाथ उठा कर कहा...."इस रिसर्च सेंटर का इंचार्ज."
"ओह्ह...." इमरान की आँखें हैरत से फैल गयीं. वो उसे घूरता हुआ गोताखोरी का ड्रेस उठा लिया.
"मैं आप का आभारी हूँ....." डॉक्टर ने कहा.
"और मैं आप ही से मिलना चाहता था." इमरान बोला...."मुझे रहमान साहब ने भेजा है..."
"ओह्ह.....तो आओ....आओ. इसे पानी मे फेक दो....ये ड्रेस उसी के पास था."
"आप चलिए सर....." इमरान ने डाइविंग ड्रेस को अपने हाथ मे पकड़े हुए कहा. "मुझे रहमान साहब ने भेजा है इसलिए इसे पानी मे नहीं फेक सकूँगा..."
डॉक्टर डावर आगे बढ़ गये. वो लॅबोरेटरी की तरफ जा रहे थे. इमरान उनके पिछे चलता रहा. लेकिन डॉक्टर डावर मेन गेट की तरफ नहीं जा रहे थे. वो नरकुल की झाड़ियों के समीप पहुच कर रुक गये.....और इमरान की तरफ मूड कर बोले...."चले आओ..."
इमरान उनके साथ ही झाड़ियों मे घुस गया. पीछे की दीवार से मिली हुई एक सीढ़ी दिखाई दी. दोनों उपर चढ़ते चले गये. उपर पहुच कर वो एक छोटे से दरवाज़े मे घुस गये.
इमरान बोला...."शायद वो लोग इसी रास्ते से घुसे होंगे....ये सुरक्षित नहीं है..."
"बिल्कुल सुरक्षित है. ये रास्ता भी अंदर से ही बनाया जा सकता है. सीढ़िया मकेनिज़्म पर हैं. ये देखो....बाहर देखो...."
इमरान ने बाहर देखा.....सीढ़िया उपर की तरफ उठती जा रही थीं......और डॉक्टर डावर का हाथ दीवार से लगे एक स्विच बोर्ड पर था. सीढ़ियाँ छत की तरफ जाकर गायब हो गयीं.
"और अब ये दरवाज़ा भी जा रहा है....पिछे हट जाओ...."
इमरान पिछे हटा ही था कि दीवार बराबर हो गयी. उसने एक लंबी साँस लेकर कहा...
"मगर आप उधर गये क्यों थे?"
"मुझे संदेह हुआ था कि पानी की सतह पर कोई असाधारण चीज़ है...."
"फिर भी आपको अकेले नहीं जाना चाहिए था."
"मैं पागल हो जाता हूँ जब ये शक हो जाए कि कोई मेरे आविष्कारों पर हाथ सॉफ करना चाहता है. आजकल ऐसी ही परिस्थिति है......मगर तुम्हें रहमान साहब ने क्यों भेजा है? तुम कॉन हो?"
"मेरी समझ से आप पहले ड्रेस चेंज कर लें...."
"नहीं.....तुम इसकी चिंता मत करो.....फटे हुए कपड़े मेरे व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते..."
"आप ज़ख़्मी हैं......मैं आपके शरीर पर काई जगह खराश देख रहा हूँ..."
"अरे भाई.....तुम बताओ कि तुम्हें रहमान ने क्यों भेजा है?"
"मैं आपका रेड पॅकेट वापस लाया हूँ." इमरान एकदम गंभीर हो गया था. वो डॉक्टर डावर से गंभीरता से परे बातें नहीं करना चाहता था.
"लाओ..." डॉक्टर दावर के चेहरे पर चिंता के भाव थे.
"लेकिन मैं आप से माफी चाहूँगा.....क्योंकि मैने इस सुनहरे स्पंज पर एक प्रयोग किया था जो 100% सफल रहा...."
"प्रयोग.....? तुमने....?? सफल रहा...???" डॉक्टर डावर ने रुक रुक कर हैरत से कहा.....फिर अचानक चौंक कर बोले..."लाओ पॅकेट कहाँ है?"
इमरान डॉक्टर डावर के रिसर्च सेंटर के निकट पहुच चुका था. लेकिन उसे पता था कि वो आसानी से भीतर नहीं जा पाएगा. क्योंकि कॉंपाउंड के गेट पर सेक्यूरिटी वालों की पूरी टीम रहती थी.
ये भी संभव नहीं था कि वो रहमान साहब का रीफ्रेन्स देकर अंदर जाने की कोशिश करता. वो बाहर रहमान साहब का नाम भी लेना नहीं चाहता था. उसने सोचा कि क्यों ना बिल्डिंग के बॅक साइड से कोई रास्ता ढूँढा जाए. आख़िर वो रहस्सयमयी लोग भी अंदर कैसे जाते होंगे. मेन गेट से उनकी पहुच संभव ही नहीं थी. ये सोच कर उसने गेट की तरफ जाने का निश्चय छोड़ दिया.
अब वो पिछे की तरफ जा रहा था. इधर कुच्छ ही दूरी पर समंदर की लहरें किनारे से टकराती थीं. लेकिन ये लहरें इतनी सुस्त थी कि उन के टकराने से रात का सन्नाटा भंग नहीं हो रहा था.
तभी इमरान चलते चलते रुक गया. उसे ऐसा लगा जैसे निकट ही कहीं दो आदमी लड़ रहे हों. गुर्राहट किसी आदमी जैसी ही थी.
उसने जेब से टॉर्च निकाली और उस की रौशनी आवाज़ की तरफ डाली. टॉर्च की रौशनी दो आदमियों पर पड़ी जो एक दूसरे से गुत्थे हुए थे.
उन मे से एक के शरीर पर गोताखोरी का लिबास (डाइविंग ड्रेस) था. उसका चेहरा सेफ्टी कवर मे छुपा हुआ था. दूसरा एक अधेड़ उमर का आदमी था. उसके चेहरे पर घनी दाढ़ी थी......और बाल उलझे हुए थे. ड्रेस जगह जगह से फॅट गया था. उसकी हालत अच्छी नहीं थी फिर भी वो किसी निम्न वर्ग का व्यक्ति नहीं लगता था. उसके लड़ने के अंदाज़ से भी यही लग रहा था कि वो केवल अपनी शारीरिक शक्ति के कारण जमा हुआ है. लड़ाई भिड़ाई का अनुभव नहीं रखता. जैसे ही उन पर टॉर्च की रौशनी पड़ी गोताखोर उच्छल कर पीछे हट गया......और इसी बीच उसने रिवॉल्वार भी निकाल लिया. लेकिन इमरान भी सावधान था. पहल उसने ही कर दी.
उसके रिवॉल्वार से फाइयर हुआ और गोताखोर का रिवॉल्वार दूर जा गिरा. अधेड़ व्यक्ति ज़मीन पर पड़ा हाँफ रहा था.
अगले ही पल गोताखोर ने पानी मे छलान्ग लगा दी और देखते ही देखते निगाहों से ओझल हो गया. इमरान ने झपट कर अधेड़ व्यक्ति को ज़मीन से उठाया. उठते समय उसके कंठ से हल्की कराह की आवाज़ भी निकल रही थी.
इमरान ने उसके निकट ही गोताखोरी का एक ड्रेस पड़ा हुआ देखा और उलझन मे पड़ गया.
"वो.....वो...." अधेड़ व्यक्ति हांफता हुआ बोला. "मुझे ज़बरदस्ती गोताखोरी का ड्रेस पहनाना चाहता था."
"आप कॉन हैं?" इमरान ने पुछा.
"ओह्ह.....मैं.....मैं...." अधेड़ व्यक्ति खामोश हो गया.
"हां....कहिए आप कॉन हैं और वो कॉन था? मेरी समझ से मैं सही समय पर ही पहुचा था...."
"म्म.....मैं डॉक्टर डावर हूँ...." उस व्यक्ति ने बिल्डिंग की तरफ हाथ उठा कर कहा...."इस रिसर्च सेंटर का इंचार्ज."
"ओह्ह...." इमरान की आँखें हैरत से फैल गयीं. वो उसे घूरता हुआ गोताखोरी का ड्रेस उठा लिया.
"मैं आप का आभारी हूँ....." डॉक्टर ने कहा.
"और मैं आप ही से मिलना चाहता था." इमरान बोला...."मुझे रहमान साहब ने भेजा है..."
"ओह्ह.....तो आओ....आओ. इसे पानी मे फेक दो....ये ड्रेस उसी के पास था."
"आप चलिए सर....." इमरान ने डाइविंग ड्रेस को अपने हाथ मे पकड़े हुए कहा. "मुझे रहमान साहब ने भेजा है इसलिए इसे पानी मे नहीं फेक सकूँगा..."
डॉक्टर डावर आगे बढ़ गये. वो लॅबोरेटरी की तरफ जा रहे थे. इमरान उनके पिछे चलता रहा. लेकिन डॉक्टर डावर मेन गेट की तरफ नहीं जा रहे थे. वो नरकुल की झाड़ियों के समीप पहुच कर रुक गये.....और इमरान की तरफ मूड कर बोले...."चले आओ..."
इमरान उनके साथ ही झाड़ियों मे घुस गया. पीछे की दीवार से मिली हुई एक सीढ़ी दिखाई दी. दोनों उपर चढ़ते चले गये. उपर पहुच कर वो एक छोटे से दरवाज़े मे घुस गये.
इमरान बोला...."शायद वो लोग इसी रास्ते से घुसे होंगे....ये सुरक्षित नहीं है..."
"बिल्कुल सुरक्षित है. ये रास्ता भी अंदर से ही बनाया जा सकता है. सीढ़िया मकेनिज़्म पर हैं. ये देखो....बाहर देखो...."
इमरान ने बाहर देखा.....सीढ़िया उपर की तरफ उठती जा रही थीं......और डॉक्टर डावर का हाथ दीवार से लगे एक स्विच बोर्ड पर था. सीढ़ियाँ छत की तरफ जाकर गायब हो गयीं.
"और अब ये दरवाज़ा भी जा रहा है....पिछे हट जाओ...."
इमरान पिछे हटा ही था कि दीवार बराबर हो गयी. उसने एक लंबी साँस लेकर कहा...
"मगर आप उधर गये क्यों थे?"
"मुझे संदेह हुआ था कि पानी की सतह पर कोई असाधारण चीज़ है...."
"फिर भी आपको अकेले नहीं जाना चाहिए था."
"मैं पागल हो जाता हूँ जब ये शक हो जाए कि कोई मेरे आविष्कारों पर हाथ सॉफ करना चाहता है. आजकल ऐसी ही परिस्थिति है......मगर तुम्हें रहमान साहब ने क्यों भेजा है? तुम कॉन हो?"
"मेरी समझ से आप पहले ड्रेस चेंज कर लें...."
"नहीं.....तुम इसकी चिंता मत करो.....फटे हुए कपड़े मेरे व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकते..."
"आप ज़ख़्मी हैं......मैं आपके शरीर पर काई जगह खराश देख रहा हूँ..."
"अरे भाई.....तुम बताओ कि तुम्हें रहमान ने क्यों भेजा है?"
"मैं आपका रेड पॅकेट वापस लाया हूँ." इमरान एकदम गंभीर हो गया था. वो डॉक्टर डावर से गंभीरता से परे बातें नहीं करना चाहता था.
"लाओ..." डॉक्टर दावर के चेहरे पर चिंता के भाव थे.
"लेकिन मैं आप से माफी चाहूँगा.....क्योंकि मैने इस सुनहरे स्पंज पर एक प्रयोग किया था जो 100% सफल रहा...."
"प्रयोग.....? तुमने....?? सफल रहा...???" डॉक्टर डावर ने रुक रुक कर हैरत से कहा.....फिर अचानक चौंक कर बोले..."लाओ पॅकेट कहाँ है?"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: प्यासा समुन्दर
31
"ओह्ह.....जी हां.....ये रहा...." इमरान ने पॅकेट निकाल कर उनकी तरफ बढ़ा दिया. उन्होने उसे खोल कर देखा......और दुबारा बंद करते हुए इमरान की आँखों मे देखने लगे.
"इमरान अब एकदम मूर्ख दिखाई देने लगा था. डॉक्टर डावर पलकें झपका कर उसे देख रहे थे जैसे उन्हें विश्वास नहीं हुआ हो कि रहमान साहब ने किसी ऐसे मूर्ख व्यक्ति पर भरोसा कर लिया होगा.
"तुम ने इस पर प्रयोग किया था?"
"बस किया था........आपके सामने भी कर सकता हूँ.....बस असीटिक आसिड और लिक्फीड अमोनिया का कॉंपाउंड मुझे मंगवा दीजिए...."
ये एक विशाल कमरा था और यहाँ चारों तरफ दीवारों पर बड़े बड़े चार्ट और मॅप्स दिखाई दे रहे थे. यहाँ उनकी उपस्थिति इमरान को समझ मे नहीं आई.
एक तरफ एक बड़ा टेबल भी था......जिसके निकट कुच्छ चेयर्स पड़ी हुई थीं. डॉक्टर डावर ने स्विच बोर्ड पर एक बटन पर उंगली रख दी और इमरान से बोले...."बैठ जाओ..." फिर उन्होने पुचछा...."हां दोनों की मात्रा...?"
"10-10 म्ल काफ़ी होगा...." इमरान ने उत्तर दिया.
डॉक्टर डावर ने बटन से उंगली हटाई ही थी कि एक आदमी कमरे मे आया.
डॉक्टर डावर ने पॅड पर कुच्छ लिखा और पेपर फाड़ कर उसकी तरफ बढ़ा दिया.
उस व्यक्ति के जाने के बाद इमरान ने कहा "क्या आप उस आदमी के बारे मे कुच्छ बता सकेंगे जो आपको गोताखोरी का ड्रेस पहनाना चाहता था?"
"उसके बारे मे मैं क्या बता सकूँगा. वैसे मेरी समझ से वो मुझे भी पानी मे ले जाता."
"तब फिर किसी ना किसी पर आपको संदेह ज़रूर होगा."
"मुझे तो आजकल सारी दुनिया पर संदेह है. इसे अभी अलग ही रखो. ये मेरे लिए कोई नयी बात नहीं है. किसी देश के जासूस मेरे कार्यों पर कड़ी निगाह रखते हैं. मैं तुम से उस प्रयोग के बारे मे बात करना चाहता हूँ. पहले ये बताओ कि तुम्हारा रहमान साहब से क्या संबंध है?"
"अभी तो इतना ही समझ लीजिए कि मेरे द्वारा रेड पॅकेट आप तक पहुचाना चाहते थे."
"लेकिन तुम ने उसे रास्ते मे ही खोल डाला...." डॉक्टर डावर ने खिन्न स्वर मे कहा "और यही नहीं बल्कि अब मुझ किसी प्रयोग की कहानी भी सुनाने वाले हो."
"आप इस सुनहरे स्पंज के बारे मे जानकारी चाहते थे?"
"केवल इसी हद तक कि वो किन लोगों से रिलेटेड है..."
"स्परसिया के लोगों से...." इमरान ने धीरे से कहा.
"स्परसिया....?" डॉक्टर डावर ने पलकें झपकाइं.
"जी हां वीनस वाले अपने ग्रह को स्परसिया कहते हैं. और हमारी पृथ्वी को रयामी कहते हैं."
"क्या बकवास कर रहे हो तुम?"
"केमिकल आ जाने दीजिए......मैं साबित कर दूँगा."
"मैं कहता हूँ तुम ने रहमान साहब की अनुमति के बिना पॅकेट खोला ही क्यों?"
"ओह्हो.....ये प्रयोग तो मैने उनके सामने ही किया था."
"साची बात कह दो..." डॉक्टर दावर उसे घूरते हुए बोले.
"फोन सामने है." इमरान ने टेबल पर रखे फोन की तरफ इशारा किया. "अगर आप को रहमान साहब के नंबर याद नहीं हों तो मैं बता दूं..."
डॉक्टर डावर की आँखों मे उलझन थी. ना उन्होने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया और ना कुच्छ बोले. लेकिन वो इमरान को बहुत ध्यान से देख रहे थे.
इतने मे वही आदमी एक बीकर मे असीटिक आसिड और लिक्विफाइड अमोनिया ले आया. बीकर टेबल पर रख दिया गया. आदमी डॉक्टर डावर के इशारे पर बाहर चला गया.
अब आप खुद ही इस स्पंज को इसमे डाल दीजिए.
"रियली..." डॉक्टर डावर ने टेबल के ड्रॉयर मे हाथ डालते हुए कहा. फिर उसमे से उनका हाथ खाली नहीं निकला. उसमे रिवॉल्वार था. रिवॉल्वार का रुख़ इमरान की तरफ था.
"मैं गोल्डन स्पंज को इस केमिकल मे डालने जा रहा हूँ." उन्होने गूँज भरी आवाज़ मे कहा. लेकिन अगर ये नष्ट हुआ तो बेझिझक तुम पर फाइयर कर दूँगा."
"मगर ये कैसा इंसाफ़ होगा डॉक्टर साहब.....नष्ट ये होगा और आप गोली मुझे मारेंगे...."
डॉक्टर डावर ने स्पंज उस सल्यूशन मे डाल दिया. लेकिन जल्दी ही उनका रिवॉल्वार वाला हाथ खुद नीचे झुक गया. बेध्यानी मे रिवॉल्वार भी उनके हाथ से अलग हो गया.
वो टेबल पर दोनों हाथ टेके हुए बड़े ध्यान से बीकर से निकलने वाले गुलाबी रंग के धुवें को देख रहे थे. भीनभीनाहट की आवाज़ आई फिर वो किसी अपरिचित भाषा के शब्दों मे बदल गयी. वो कुच्छ बोलना चाहते ही थे कि इमरान ने इशारे से उन्हें रोक दिया. कुच्छ देर बाद इमरान ने स्पंज को बीकर से निकाल कर पॅकेट मे रखते हुए कहा.
"अगर इसमे से कण भी नष्ट हुआ हो तो मुझे गोली मार दीजिए..."
"तुम कोन हो लड़के....?" डॉक्टर डावर ने भर्राई हुई आवाज़ मे कहा.
"बस एक जिगयासू स्टूडेंट कह लें. मुझे ऐसी चीज़ों से दिलचस्पी है."
"आख़िर तुम ने किस आधार पर ये प्रयोग कर डाला था?"
"बॅस यूँ ही...."
डॉक्टर डावर ने फोन पर किसी के नंबर डाइयल किए लेकिन इमरान का अनुमान सही था....उन्होने रहमान साहब को संबोधित किया था. वो तीन चार मिनिट बात करते रहे. बातें इमरान से ही संबंधित थीं. रिसीवर रख कर डॉक्टर डावर मुस्कुराए.
"तो......तुम इमरान हो..."
"ज्ज....जी....हहाँ..." इमरान कुच्छ इस ढंग से बोखला कर बोला जैसे अचानक उठ कर भाग निकलेगा.
"मगर बेटे.....इस प्रयोग का विचार कैसे आया तुम्हारे दिमाग़ मे?"
"पता नहीं......मुझे खुद भी हैरत है...."
"मैं नहीं मानता."
"एनीवे.....हां अभी आपने जो आवाज़ें सुनी थीं उसके बारे मे क्या विचार हैं आपके?'
"क्या कह सकता हूँ.....जबकि वो भाषा मेरी समझ से बाहर की थी. मैं दुनिया की कयि भाषा जानता हूँ....लेकिन ये उनमे से कोई नहीं थी. मेरा ख़याल है कि ये सिरे से कोई भाषा ही नहीं थी. हो सकता है कि ये केवल वाय्स कोड हों. क्या इसी आधार पर तुम ग्रहों की कहानी ले बैठे थे? नहीं बच्चे.......तुम नहीं समझ सकते.......ये साइंटिफिक फ्रॉड का ज़माना है."
"साइंटिफिक फ्रॉड....?"
"हां....मैं इसे साइंटिफिक फ्रॉड का पीरियड ही कहूँगा. अब ये जो आर्टिफिशियल सॅटलाइट्स का चक्कर चल रहा है ये क्या है? क्या ये एक इंटरनॅशनल फ्रॉड नहीं है? इन मे थोड़ी सी सच्चाई होती है और बाकी पब्लिसिटी. इस फील्ड मे अपनी सूपररमसी दिखा कर दूसरों को प्रभावित करना या दूसरों को धोके मे डाल कर किसी अत्यंत ख़तरनाक हथियार का एक्सपेरिमेंट करना. तुम ये समझते हो कि ये बनावटी उपग्रह की चाल के भी वही आधार हैं जो जो अंतरिक्ष के अन्य ग्रहों के हैं? कभी नहीं. ये उपग्रह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की सीमा के भीतर है. इसलिए इनके द्वारा चक्कर लगाना खुद उन्हीं की मकेनिज़्म पर डिपेंड है. और मैने तो उन उपग्रहों को अंतरिक्ष मे रुकते भी देखा है. ये वास्तव मे वायरलेस के द्वारा कंट्रोल किए जाते हैं. वहीं एक ऐसा रडार भी है जिस पर उनकी लोकेशन दिखाई देती रहती है."
(..........जारी)
"ओह्ह.....जी हां.....ये रहा...." इमरान ने पॅकेट निकाल कर उनकी तरफ बढ़ा दिया. उन्होने उसे खोल कर देखा......और दुबारा बंद करते हुए इमरान की आँखों मे देखने लगे.
"इमरान अब एकदम मूर्ख दिखाई देने लगा था. डॉक्टर डावर पलकें झपका कर उसे देख रहे थे जैसे उन्हें विश्वास नहीं हुआ हो कि रहमान साहब ने किसी ऐसे मूर्ख व्यक्ति पर भरोसा कर लिया होगा.
"तुम ने इस पर प्रयोग किया था?"
"बस किया था........आपके सामने भी कर सकता हूँ.....बस असीटिक आसिड और लिक्फीड अमोनिया का कॉंपाउंड मुझे मंगवा दीजिए...."
ये एक विशाल कमरा था और यहाँ चारों तरफ दीवारों पर बड़े बड़े चार्ट और मॅप्स दिखाई दे रहे थे. यहाँ उनकी उपस्थिति इमरान को समझ मे नहीं आई.
एक तरफ एक बड़ा टेबल भी था......जिसके निकट कुच्छ चेयर्स पड़ी हुई थीं. डॉक्टर डावर ने स्विच बोर्ड पर एक बटन पर उंगली रख दी और इमरान से बोले...."बैठ जाओ..." फिर उन्होने पुचछा...."हां दोनों की मात्रा...?"
"10-10 म्ल काफ़ी होगा...." इमरान ने उत्तर दिया.
डॉक्टर डावर ने बटन से उंगली हटाई ही थी कि एक आदमी कमरे मे आया.
डॉक्टर डावर ने पॅड पर कुच्छ लिखा और पेपर फाड़ कर उसकी तरफ बढ़ा दिया.
उस व्यक्ति के जाने के बाद इमरान ने कहा "क्या आप उस आदमी के बारे मे कुच्छ बता सकेंगे जो आपको गोताखोरी का ड्रेस पहनाना चाहता था?"
"उसके बारे मे मैं क्या बता सकूँगा. वैसे मेरी समझ से वो मुझे भी पानी मे ले जाता."
"तब फिर किसी ना किसी पर आपको संदेह ज़रूर होगा."
"मुझे तो आजकल सारी दुनिया पर संदेह है. इसे अभी अलग ही रखो. ये मेरे लिए कोई नयी बात नहीं है. किसी देश के जासूस मेरे कार्यों पर कड़ी निगाह रखते हैं. मैं तुम से उस प्रयोग के बारे मे बात करना चाहता हूँ. पहले ये बताओ कि तुम्हारा रहमान साहब से क्या संबंध है?"
"अभी तो इतना ही समझ लीजिए कि मेरे द्वारा रेड पॅकेट आप तक पहुचाना चाहते थे."
"लेकिन तुम ने उसे रास्ते मे ही खोल डाला...." डॉक्टर डावर ने खिन्न स्वर मे कहा "और यही नहीं बल्कि अब मुझ किसी प्रयोग की कहानी भी सुनाने वाले हो."
"आप इस सुनहरे स्पंज के बारे मे जानकारी चाहते थे?"
"केवल इसी हद तक कि वो किन लोगों से रिलेटेड है..."
"स्परसिया के लोगों से...." इमरान ने धीरे से कहा.
"स्परसिया....?" डॉक्टर डावर ने पलकें झपकाइं.
"जी हां वीनस वाले अपने ग्रह को स्परसिया कहते हैं. और हमारी पृथ्वी को रयामी कहते हैं."
"क्या बकवास कर रहे हो तुम?"
"केमिकल आ जाने दीजिए......मैं साबित कर दूँगा."
"मैं कहता हूँ तुम ने रहमान साहब की अनुमति के बिना पॅकेट खोला ही क्यों?"
"ओह्हो.....ये प्रयोग तो मैने उनके सामने ही किया था."
"साची बात कह दो..." डॉक्टर दावर उसे घूरते हुए बोले.
"फोन सामने है." इमरान ने टेबल पर रखे फोन की तरफ इशारा किया. "अगर आप को रहमान साहब के नंबर याद नहीं हों तो मैं बता दूं..."
डॉक्टर डावर की आँखों मे उलझन थी. ना उन्होने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया और ना कुच्छ बोले. लेकिन वो इमरान को बहुत ध्यान से देख रहे थे.
इतने मे वही आदमी एक बीकर मे असीटिक आसिड और लिक्विफाइड अमोनिया ले आया. बीकर टेबल पर रख दिया गया. आदमी डॉक्टर डावर के इशारे पर बाहर चला गया.
अब आप खुद ही इस स्पंज को इसमे डाल दीजिए.
"रियली..." डॉक्टर डावर ने टेबल के ड्रॉयर मे हाथ डालते हुए कहा. फिर उसमे से उनका हाथ खाली नहीं निकला. उसमे रिवॉल्वार था. रिवॉल्वार का रुख़ इमरान की तरफ था.
"मैं गोल्डन स्पंज को इस केमिकल मे डालने जा रहा हूँ." उन्होने गूँज भरी आवाज़ मे कहा. लेकिन अगर ये नष्ट हुआ तो बेझिझक तुम पर फाइयर कर दूँगा."
"मगर ये कैसा इंसाफ़ होगा डॉक्टर साहब.....नष्ट ये होगा और आप गोली मुझे मारेंगे...."
डॉक्टर डावर ने स्पंज उस सल्यूशन मे डाल दिया. लेकिन जल्दी ही उनका रिवॉल्वार वाला हाथ खुद नीचे झुक गया. बेध्यानी मे रिवॉल्वार भी उनके हाथ से अलग हो गया.
वो टेबल पर दोनों हाथ टेके हुए बड़े ध्यान से बीकर से निकलने वाले गुलाबी रंग के धुवें को देख रहे थे. भीनभीनाहट की आवाज़ आई फिर वो किसी अपरिचित भाषा के शब्दों मे बदल गयी. वो कुच्छ बोलना चाहते ही थे कि इमरान ने इशारे से उन्हें रोक दिया. कुच्छ देर बाद इमरान ने स्पंज को बीकर से निकाल कर पॅकेट मे रखते हुए कहा.
"अगर इसमे से कण भी नष्ट हुआ हो तो मुझे गोली मार दीजिए..."
"तुम कोन हो लड़के....?" डॉक्टर डावर ने भर्राई हुई आवाज़ मे कहा.
"बस एक जिगयासू स्टूडेंट कह लें. मुझे ऐसी चीज़ों से दिलचस्पी है."
"आख़िर तुम ने किस आधार पर ये प्रयोग कर डाला था?"
"बॅस यूँ ही...."
डॉक्टर डावर ने फोन पर किसी के नंबर डाइयल किए लेकिन इमरान का अनुमान सही था....उन्होने रहमान साहब को संबोधित किया था. वो तीन चार मिनिट बात करते रहे. बातें इमरान से ही संबंधित थीं. रिसीवर रख कर डॉक्टर डावर मुस्कुराए.
"तो......तुम इमरान हो..."
"ज्ज....जी....हहाँ..." इमरान कुच्छ इस ढंग से बोखला कर बोला जैसे अचानक उठ कर भाग निकलेगा.
"मगर बेटे.....इस प्रयोग का विचार कैसे आया तुम्हारे दिमाग़ मे?"
"पता नहीं......मुझे खुद भी हैरत है...."
"मैं नहीं मानता."
"एनीवे.....हां अभी आपने जो आवाज़ें सुनी थीं उसके बारे मे क्या विचार हैं आपके?'
"क्या कह सकता हूँ.....जबकि वो भाषा मेरी समझ से बाहर की थी. मैं दुनिया की कयि भाषा जानता हूँ....लेकिन ये उनमे से कोई नहीं थी. मेरा ख़याल है कि ये सिरे से कोई भाषा ही नहीं थी. हो सकता है कि ये केवल वाय्स कोड हों. क्या इसी आधार पर तुम ग्रहों की कहानी ले बैठे थे? नहीं बच्चे.......तुम नहीं समझ सकते.......ये साइंटिफिक फ्रॉड का ज़माना है."
"साइंटिफिक फ्रॉड....?"
"हां....मैं इसे साइंटिफिक फ्रॉड का पीरियड ही कहूँगा. अब ये जो आर्टिफिशियल सॅटलाइट्स का चक्कर चल रहा है ये क्या है? क्या ये एक इंटरनॅशनल फ्रॉड नहीं है? इन मे थोड़ी सी सच्चाई होती है और बाकी पब्लिसिटी. इस फील्ड मे अपनी सूपररमसी दिखा कर दूसरों को प्रभावित करना या दूसरों को धोके मे डाल कर किसी अत्यंत ख़तरनाक हथियार का एक्सपेरिमेंट करना. तुम ये समझते हो कि ये बनावटी उपग्रह की चाल के भी वही आधार हैं जो जो अंतरिक्ष के अन्य ग्रहों के हैं? कभी नहीं. ये उपग्रह पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की सीमा के भीतर है. इसलिए इनके द्वारा चक्कर लगाना खुद उन्हीं की मकेनिज़्म पर डिपेंड है. और मैने तो उन उपग्रहों को अंतरिक्ष मे रुकते भी देखा है. ये वास्तव मे वायरलेस के द्वारा कंट्रोल किए जाते हैं. वहीं एक ऐसा रडार भी है जिस पर उनकी लोकेशन दिखाई देती रहती है."
(..........जारी)
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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