ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete

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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

Dolly sharma wrote: 03 Nov 2017 23:10 Nice update dear
Ankit wrote: 04 Nov 2017 12:01Superb update
pongapandit wrote: 03 Nov 2017 23:26 ohhhhh super hot story bro
xyz wrote: 06 Nov 2017 13:11nice update
thanks friends
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


Read my fev stories
(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »

यहाँ चाचा राम सिंग के परिवार का परिचय कराना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि उनके चारों बच्चों का अरुण के शुरुआती जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा…

इनके सबसे बड़े बेटे प्रेमचंद, स्कूल टीचर, ये अरुण के सबसे बड़े भाई रोशन लालजी से तकरीवान 4-5 साल और ताऊ के बड़े बेटे भूरे लाल से 3 साल छोटे हैं.

लंबे और इकहरे बदन के प्रेमचंद (मस्टेरज़ी) का विवाह अपने गाओं से करीब 20किमी दूर दूसरे गाओं के स्कूल टीचर की बेटी से हुआ…

लंबे कद की कामिनी भाभी, एक दम गोरी चिट्टी लेकिन भाई साब से थोड़ी भारी भरकम, शुरुआती समय में उनको मोटा तो नही कहा जा सकता था पर अपने पतिदेव से तगड़ी दिखती थी, स्वभाव की तेज, अपने घर में सबको कंट्रोल करने की इच्छा रखने वाली औरत थी, और अपनी सास के मृदुल और शांत स्वाभाव के कारण ये संभव भी हो गया,

चूँकि, अपने घर के बड़े बेटे की बहू होने के कारण मालकिन बन बैठी, यहाँ तक कि उनकी सासू माँ, यानी कि अरुण की चाची भी उनसे डरने लगी..

चाचा के दूसरे बेटे: मेघ सिंग, मीडियम हाइट, लेकिन पहाड़ जैसा मजबूत शरीर, मेहनती इतने की कोई भी मजदूर खेती के कामों में इनकी कभी बराबरी नही कर पाया. रामायण, महाभारत, गीता, जैसे सभी ग्रंथों का अध्ययन नियमित रूप से करना इनका शौक था, इसी कारण इनका नाम स्वामी ही पड़ गया.

ये भी बगल के गाओं के स्कूल में टीचर थे, जिसकी वजह से दोनो ही काम अच्छे से संभाल लेते थे. सरल स्वाभाव लेकिन अगर गुस्सा आ जाए तो किसी बड़े-से-बड़े अधिकारी का इनकी दहाड़ से मूत निकल जाए.

इनकी पत्नी कमला रानी, आहा..हहाअ…. क्या हुश्न था, हल्की सी सावली, इकहरे बदन की मालकिन, स्वाभाव…. किससे उपमा दें ? क्योंकि गाय (काउ) भी कभी-कभी मारने को आती है… उनको अपने जीवन में किसी ने कभी गुस्सा होते नही देखा,

अपनी हिटलर जेठानी के सामने तो ये कभी भूल के भी नही पड़ती थी, सिर्फ़ अपनी सासू माँ के पास ही ज़्यादातर समय रहती. इनकी एक बड़ी बेटी, और छोटा बेटा, बेटे को जन्म देके 6 महीने के बाद ही भगवान को प्यारी हो गई, शायद उनकी अच्छाई भगवान को भी अच्छी लगी होगी.

चाचा के तीसरे बेटे और अरुण के संरक्षक कम सखा, यशपाल शर्मा जी, ये एमससी करके हरियाणा के एक छोटे से शहर में अग्रिकल्चर ऑफीसर हैं, हमेशा फील्ड वर्क रहता है इनका, यथासंभव किसानों की मदद करते रहते हैं, अच्छी ख़ासी सॅलरी है.

इनकी शादी, अपने गाओं के नज़दीक के टाउन से हुई, ये भाभी भी अपनी बड़ी जेठानी की तरह लंबी-चौड़ी हैं, लेकिन नेचर एक-दम ऑपोसिट, वो पूरव तो ये पश्चिम.

यशपाल जी के तीन बेटियों के बाद एक बेटा है, तो स्वाभाविक है, सबका लाड़ला ही होगा, लेकिन बिगदेल नही.

चाचा की बेटी नीणू अपने तीनों भाइयों से छोटी है, सभी उसको बहुत प्यार करते हैं, लंबा कद इकहरा शरीर, थोड़ी सी सावली लेकिन सुंदर दिखती है, उम्र में ये अरुण से 4 या 5 साल और श्याम भाई से 1 साल बड़ी है.

तो ये था अरुण के चाचा की फॅमिली का परिचय,…

दोस्तो…. ज़्यादा बोर तो नही हो रहे, सोच रहे होगे क्या ये पूरी बारात का बही ख़ाता लेके बैठ गया…

खैर में अब और ज़्यादा बोर नही करूँगा, यहाँ से कहानी अब अरुण शर्मा की ज़ुबानी चलेगी…

………………………………………………………………………………..

में भूरी को विदा करके, ट्यूबिवेल के कमरे में चारपाई पर लेटा हुआ काफ़ी देर तक सोचों में डूबा रहा, समय भी बहुत हो गया था, दोपहर के करीब 2 बज रहे थे,

सुबह से कुच्छ खाया भी नही था, पेट में चूहे दौड़ लगा रहे थे, घर जाने का मूड नही था, मैने सोचा ऐसा ही कुच्छ ख़ाके काम चला लेता हूँ,

बाहर जाके गन्ने के खेत से दो तगड़े से गन्ने तोड़े और खाने लगा, दो गन्ने ख़ाके कुच्छ आराम मिला, फिर सामने वाले खेत में सब्जियाँ लगी थी, तो चलो देखते हैं इसमें कुच्छ खाने लायक होगा ही.

सब्जियों के खेत में गोभी, टमाटर, भिंडी, गाजर ये सब थी, शुरू से ही कच्ची सब्जियाँ खाने की आदत थी, सो थोड़ा-थोड़ा सबमें से तोड़े-तोड़के वो खाली, मेरा पेट इतना तो भर ही गया कि मुझे अब घर जाने की ज़रूरत नही लगी.

2-3 घंटे, जो काम पड़ा था वो निपटाया, तब तक शाम के 5 बज गये, सर्दियों के दिन थे, तो शाम जल्दी भी हो जाती है. पॉवर भी चली गई थी तो पंप के चलने का कोई सवाल ही नही था, मेने कमरे को लॉक किया और घर की तरफ चल दिया.

घर पहुँचा तो और किसी को तो मेरी परवाह ही नही थी, लेकिन माँ का दिल, चिल्लाने लगी जोरे-जोरे से…

कहाँ था सारे दिन…. खाना खाने भी नही आया,

मेने कहा में ट्यूबिवेल पर ही था, और किसी को अगर मेरी परवाह होती तो खबर लेता मेरी, कुच्छ नही तो खाना ही भिजवादेते,

माँ बोली… यहाँ तेरी कोई फिकर करने वाला नही है, सब को अपना-अपना दिखता है, तुझे अपनी खुद फिकर करनी चाहिए, अब खाना खले भूखा होगा, सुबह से कुच्छ नही खाया.

मेने कहा… नही मेने खातों से थोड़ा-थोड़ा कुच्छ खा लिया है, में अभी आता हूँ 1-2 घंटे में तब खा लूँगा, इतना बोल के बाहर निकल गया और पहुँच गया अपने अड्डे पे मंदिर के पिछे वाले रूम में.

यहाँ तो महफ़िल जमी हुई थी, उनमें कोई शहर से चरस लेके आया था, चिलम में डालके सुट्टे लग रहे थे, मेने भी 2-3 सुट्टे कस के लगाए, दिमाग़ एक दम झंड हो गया….बोले तो मज़ा आगेया. इस तरह दो-तीन राउंड और चले, सबकी आँखें नशे की वजह से सुर्ख हो रही थी.

एक -डेढ़ घंटे बाद घर आया और चुप-चाप मा से खाना लिया, खाया, डिब्बे में 1 लिटेर दूध और 50ग्राम घी, बूरे के साथ डाला और चल दिया अपने खातों की ओर लटकाए डिब्बे को. आज एक देसी अंडा लेना भूल गया था, ये मेरा रोज़ का रुटीन था इतना…..

घी वाला हल्का गरमा-गरम दूध फेंटा मारा, चढ़ा लिया और तान के चादर लेट गया चारपाई पर, और कोशिश करने लगा सोने की, लेकिन नीद आँखों से कोसों दूर थी…. आज ना जाने रह-रह कर सुवह भाइयों के साथ हुए वार्तालाप को लेकर मेरा मन कुच्छ अशांत सा था…
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना

Post by jay »


देर रात तक पड़ा-पड़ा सोचता रहा अपनी बीती जिंदगी के बारे में, जिसे उसके सगे पिता और भाइयों ने तो कभी समझा ही नही, लेकिन दूसरों ने कभी भुलाया नही उसकी अच्छाइयों को…

दिमाग़ में उसके जन्म से संबंधित बातें, जो उसकी माँ और अन्य घरवालों से पता चली थी, घूमने लगी कि किन विषम परिस्थितियों में उसका जनम हुआ था….? और क्यों…?

रोशन जब 12थ स्टॅंडर्ड में थे तभी उनकी शादी कर दी गयी, उस वक्त श्याम की उम्र करीब 1 साल थी,

बेटे की शादी के 2 साल बाद माँ फिर से गर्भवती हो गयी, ये बात जब उन्होने अपने पति को बताई तो संस्कारी जानकी लाल दुखी हो गये….

ये ठीक नही हुआ पद्मा… बहू क्या सोचेगी हमारे बारे में, लोग कहेंगे कि बुढ़ापे में भी इनको चैन नही है….

अभी तो बहू के बच्चे होने वाले हैं और सास अभी-भी बच्चे पैदा कर रही है…

तो अब क्या करें जी…. पद्मावती पति की बात से सहमत होते हुए बोली…

एक काम करो, तुम गरम चीज़े खाना शुरू करदो, अभी ज़्यादा समय नही हुआ है, हो सकता है गर्भ-पात हो जाए…

ठीक है कोशिश करते है…

गाओं से 35-40 किमी से पहले कोई बड़ा शहर ही नही था जहाँ उचित डॉक्टर की सलाह ली जा सके, सभी लोग देहाती नुस्खे या वैद-हकीम के पास ही इलाज कराते थे ज़्यादातर, और गाओं के वैद जी भी जानकी लाल के गाओं के रिश्ते के बड़े भाई लगते थे, लेकिन शर्म की वजह से उन्होने उन्हें भी पुछ्ना उचित नही समझा और जो उचित लगा वो सलाह दे दी…

उधर माँ अपने पातिदेव की सलाह ध्यान में रख कर उल्टी-सीधी गरम चीगें कूट-कूट के खाने लगी, हालाँकि उन्हें उसका दुष्प्रभाव भी हुआ, लेकिन क्या कर सकती थी वो.

दिन निकलते गये कोई नतीजा नही निकला, अब तो ये भी संभावना नही थी कि बच्चा जिंदा भी है या नही ? लेकिन गर्भ-पात तो नही हुआ. लिहाजा उन्होने वो सब चीगें खाना बंद कर दिया, लेकिन उसका दुष्प्रभाव तो हो चुका था..

सासू जी के गर्भधान के लगभग 4 महीने बाद ही बहू के पाव भी भारी हो गये, जैसे ही ये बात सास-ससुर को पता लगी, वो दोनो बैचैन हो गये, लेकिन दिखाने के लिए खुशियाँ माननी भी ज़रूरी थी,

अंततोगत्वा अपने गर्भ की बात भी माँ को उजागर करनी ही पड़ी, और ना चाहते हुए भी सभी लोगों को स्वीकार भी कर लेना पड़ा…

ख़ासकर उनके दोनों बड़े बेटों को बड़ा बुरा लग रहा था…

अंततः वो समय आ ही गया जब उस अन-चाहे जीव को इस धरती पर आना था..

ज्येष्ठ (मे-जून) का महीना था सुबह के पोने तीन या चार बजे बच्चे का जन्म हुआ, बहुत देर तक बच्चे के मूह से कोई आवाज़ नही निकली, बस थोड़ी सी शरीर में हलचल हुई, और फिर बंद हो गई….

शरीर क्या? बस एक पोना-एक किलो का हल्के पीले कत्थई रंग का बहुत ही पतला सा जैसे कि कोई खिलोना हो और उसपे शरीर के अंग स्केच कर दिए हों बस…

थोड़ी देर टटोल-टटाल ने के बाद दाई को जब कोई प्रतिक्रिया बच्चे की तरफ से नही दिखी, तो उसने उसे मृत घोसित कर दिया…
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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