इसी कशमकश में मैं उठके जैसे ही वापिस मुड़ा मैं चौंक उठा...साँस रुक सी गयी काँप गया हाथ...बाजी मेरे सामने थी और वो जाग चुकी थी वो अज़ीब निगाहो से मेरी ओर देख रही थी...वो घुर्रा रही थी उसकी दबी आवाज़ सुनाई दे रही थी कितना हिंसक चेहरा बन गया था उसका पूरा बदन सफेद वो आख़िर जिंदी कैसे हुई?....वो फर्श टपके खून पे ज़बान फैरने लगी और उस टपकते खून के साथ मेरे पास हाथो के बल आने लगी "ब..आज़्ज़ई बाज़्ज़ििई बाजीज़िी आप ज़िंदा हो आप वापिस आ गयी बाजी".......मैं पागलो की तरह चिल्ला पड़ा और उसके चेहरे को हाथो में लेके सहलाने लगा ना जाने कितनी खुशी के आँसू बहाए ना जाने कैसे शुक्रिया अदा करे? उसने मुस्कुरा कर देखा "देखा भाई मैं आ गयी तुम्हारे पास तुमने मुझे बुलाया पता है मैं कितना बेचैन थी मेरी रूह हरपल तुम्हारे साथ थी".....मैने उसे अपने सीने से लगा लिया और ऐसे बच्चो की तरह दबा लिया मानो जैसे उससे अलग ना हो पाउन्गा "नही बाजी अब तुम कहीं नही जाओगी? तुम मेरे पास रहोगी बोलो बाजी बोलो"......बाजी की आँखे सुर्ख लाल थी और अचानक उनके दाँत बाहर आने लगे
और अचानक उन्होने सख्ती से मेरा हाथ पकड़ा और मेरे कटे खून बहते ज़ख़्मो को चूसने लगी..."बा..आज़्ज़िई क..क्या कर्र रही हो? बाजिी"........बाजी ने मेरा हाथ नही छोड़ा बस मेरे खून को चुस्ती रही....मैं समझ चुका था कि बाजी अब इंसान नही थी...तो क्या वो मुझे भी? मैं खुशी खुशी मौत को स्वीकार करने के लिए तय्यार था...लेकिन उसने जल्द ही मुझे अपने से दूर धकेल दिया और अपने मुँह पे लगे खून को पोन्छा "नहिी मैं ये क्या कर रही हूँ? ये मैं अपने भाई को".......बाजी को सोच की कशमकश में घिरा देख मैं उठा और उन्हें सहारे से खड़ा किया
मैं : बाजी आपको कैसा महसूस हो रहा है?"
बाजी : ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं अंधेरे में रहूं ये खामोशियाँ ये सन्नाटा मुझे बेहद पसंद है मुझे अपने भाई के साथ ही रहना है अपने आसिफ़ के साथ (बाजी की आँखें सुर्ख लाल थी आँखो के कन्चे एकदम लाल उसका चेहरा कोई देखे तो ख़ौफ़ से डर जाए लेकिन मेरी बेहन मेरे पास लौट आई थी कुछ देर बोलते बोलते वो बेहोश हो गयी)
और फिर मैने उन्हें उठाया और बाहों में लिए बिस्तर पे लिटा दिया और खुद भी उनके बगल में लेट गया....वो मेरी आगोश में आ गयी..और मुझसे खुद को लिपटा लिया उसके बाद मुझे हल्की नींद आई थी और मैं सो भी गया था...
मैने एक बात नोटीस कर ली थी कि बाजी के बदलते बर्ताव में बहुत कुछ अज़ीब था जब दूसरे दिन उठा तो वो ना बिस्तर पे थी और उन्हें जब ढूँढा तो वो मेरे बने आल्मिराह के अंधेरो में छुपी हुई थी उसने कहा उसे धूप पसंद नही.....जब बादल आसमान पे घिरते थे तो वो काफ़ी राहत महसूस करती थी वरना आमतौर पे मैं उसे घर के सबसे ख़ुफ़िया कमरे में रखने लगा....जहाँ रोशनी ना आए....बाजी को मोमबति और लॅंप की रोशनी ही पसंद थी....वो बाहर नही निकलती थी...लेकिन हर रात उसे भूक लगती थी और वो पागलो की तरह फ्रिज से कच्चा माँस निकालके उसे खाती थी...उसे जिस चीज़ की तलब थी वो खून जो उसे हरपल मेरी ओर खींचती थी मैने खुद एक बार अपने कंधे पे हल्का सा चाकू दबाया और जो खून बहा उसे पाने की हसरत में बाजी मुझपे टूट पड़ी और मेरे खून को चूसने लगी...पागलो की तरह दाँत गढ़ाने लगी लेकिन उनकी मुहब्बत उन्हें मुझे यूँ मार देना नही चाहती थी उन्हें जब अहसास होता तो वो अपनी आधे ही प्यास में मुझसे दूर हो जाती और पछताती कि ये मैने क्या किया उनके साथ? धीरे धीरे मेरा सबसे मिलना जुलना बंद हो गया सिर्फ़ सबको यही समझ आता कि मैं एक वीरान घर में रहता हू और मेरे साथ कोई नही रहता जबकि ऐसा नही था....हम दोनो घर में बंद रहते थे और जब मैं रात को आता तो बाजी मुझसे लिपट जाती मैं उनके लिए किसी तरह बकरे या मुर्गे का खून ले आता था मैं अपने घर में एक जानवर को पाल रहा था....धीरे धीरे मैं भी इसका आदि होने लगा बाहर नॉर्मल लाइफ जीता एक इंसान की तरह और घर में आके अपनी ही बेहन की तरह एक दरिन्दा बन जाता माँस के टुकड़ो पे नमक लगाके उसे खाता
और बाजी से लिपटके रात में उन्हें खूब प्यार करता एक रात बाजी ने आँखे खोली और मुझे सोता हुआ पाया...उनकी हिंसक भारी लाल निगाहें जल उठी और उनके दो नुकीले दाँत मुस्कान से बाहर आ गये...और उन्होने मुस्कुरा कर कब बिस्तर से उठके मुझसे खुद को अलग किया और कब निकल गयी पता ना चला...अचानक मैने खिड़की से किसी के कूदने की आवाज़ सुनी और मेरी नींद खुल गयी आँख खुलते ही बाजी सामने ना दिखी मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठा और चारो ओर कमरे की तरफ घरो में बाजी को खोजने लगा "बाजिी दीदी".......बाजी वहाँ नही थी मानो जैसे कहीं गायब हो गयी थी
मैं बाहर की ओर भागा....खिड़की खुली हुई थी जो हवा से कभी बंद हो रही थी कभी खुल रही थी तेज़ हवा चल रही थी और मैं फ़ौरन कूद पड़ा दौड़ता हुआ जंगलों की तरफ भागा "बाजिी बाजीीइई बाजीी".......मैं चिल्लाता रहा चारो ओर के उड़ते चम्गादडो को उड़ते हुए देख सकता था इस घने जंगल में ना जाने कहाँ बाजी गायब थी.....मैं बाजी खोजते हुए जंगल के भीतर आ गया....और जब सामने देखा तो ठिठक गया बाजी अपने हाथो पे लगे खून को चाट रही थी पागलो की तरह उनके पूरे कपड़े और मुँह खून से तरबतर था ताज़ा खून वो भी किसी और का नही एक मरे हुए हिरण का...जिसका शिकार यक़ीनन बाजी ने कुछ देर पहले ही किया था
सिफली अमल ( काला जादू ) complete
- sexi munda
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )
मित्रो नीचे दी हुई कहानियाँ ज़रूर पढ़ें
जवानी की तपिश Running करीना कपूर की पहली ट्रेन (रेल) यात्रा Running सिफली अमल ( काला जादू ) complete हरामी पड़ोसी complete मौका है चुदाई का complete बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete मैं ,दीदी और दोस्त complete मेरी बहनें मेरी जिंदगी complete अहसान complete
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- Rohit Kapoor
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )
congratulations For new thread
Read my all stories
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
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- kunal
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )
बाजी के चेहरे पे संतुष्टि देख कर मैं भागते हुए उनके करीब आया "बाजी ये सब क्या है? आप यहाँ इस वक़्त इस हालत में ये सब?"......मेरे सवाल को अनदेखा करके बाजी उठी और उसने अपनी उंगलियो से खून को चाट कर मेरी ओर देख कर मुस्कुराया "एक तलब उठती है मुझमें भाई जो मुझे खुद पे खुद शिकार करने पे मज़बूर कर देती है मैं तुम्हें नुकसान नही पहुचा सकती लेकिन जानवरों के खून से कही हद्तक मुझे अच्छा महसूस होता है मेरी खुराक पूरी हो जाती है"........बाजी की उन डरावमी बातों को सुनके मेरे चेहरे पे शॉक भाव तो थे ही पर एक डर दिल से उतर चुका था कि बाजी इंसान का तो कभी शिकार नही करेगी..बाजी ने अपने मन को दबा लिया था...मेरी बाजी एक जीती जागती पिसाच बन गयी थी
बाजी मेरे करीब आई और मुझे अपने साथ ले गयी....हम वापिस घर पहुचे मैं बहुत सोच में डूबा था ये सब उस अमल का किया धरा था....बाजी ज़िंदी हुई पर एक खुद पिसाच बनके उठ गयी वो कब बाथरूम में जाके शवर लेके नंगी ही टवल को लपेट के बाहर आई मुझे पता नही चला उसने एक ही झटके में अपना टवल उतार फैका उसके आँखो में वासना थी...."खून की वासना के साथ साथ जिन्सी की भी सख़्त वासना".....मेरा गला सुखता जा रहा था मैं उसकी खूबसूरती की तरफ खुद ब खुद उस सिचुएशन में भी उसके करीब जा रहा था
और उसके बाद उसने मुझे बिस्तर पे धकेल दिया और मेरे उपर सवार हो गयी मैने अपनी आँखे मूंद ली
बाजी मेरे सामने मदरजात नंगी थी और वो होंठो पे ज़बान फिराते हुए अपने नुकीले दांतो पे भी वो ज़ुबान फेर रही थी....उसने एकटक मेरी ओर अपनी एकदम लाल आँखो से देखा और मेरे पाजामे को धीरे धीरे नीचे खिसका दिया...अमालि की हर एक बात दिमाग़ में गूँज़ी थी...पिसाच सिर्फ़ खून के भूके नही होते जिस्म के भी भूके होते है उनके अंदर हर वक्त बेहया और गंदगी की तलब उठती है हमबिस्तरी की चाहत होती है
जबतक सोच में डूबा तब तक एक अज़ीब सा अहसास हुआ अपने लंड पे हुआ बाजी धीरे धीरे मेरे लंड को पूरा मुँह में लेके चुस्स रही थी और अपने नुकीले नाख़ून भरे हाथो से मेरे लंड को सख्ती से पकड़े भीच रही थी उसकी चमड़ी को उपर नीचे कर रही थी...उसके दाँत मेरे चमड़ी पे गढ़ रहे थे रगड़ खा रहे थे...लेकिन मुझे ये दर्द सहना था मुझे अपनी बाजी की हवस में ही मुहब्बत ढूँढनी थी उसमें खो जाना था
बाजी ने मेरे लंड को बहुत प्यार से चूसना शुरू किया और फिर बहुत ज़ोरो से वो मुझे अपनी लाल आँखो से देखते हुए ललचा रही थी मेरे सुपाडे पे ज़बान फेर रही थी लंड को हाथो में लिए उसे सहला रही थी....मैं लेटा लेटा आहें भर रहा था...कुछ देर बाद बाजी मेरे उपर से उठी और मेरे उपर चढ़ते हुए मेरे गाल गले सीने पे निपल्स पे सब जगह चूमती रही उसकी ज़ुल्फो को मैं अपने मुँह पे महसूस कर रहा था.....
उसके बाद उसने ताबड़तोड़ पागलो की तरहा मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया हम पागलो की तरह एक दूसरे से ज़बान भिड़ाते हुए बहुत ज़ोर ज़ोर से स्मूच करने लगे एक दूसरे के होंठो से होंठ गहराई तक मिल रहे थे...वो मेरी पीठ पे नाख़ून गढ़ाने लगी मेरे बदन से खुद के बदन को रगड़ने लगी बीच बीच में उसकी एक टाँग मेरे लंड के हिस्से पे रगड़ती...बाजी का जोश बढ़ चुका था मैने उसके सख़्त निपल्स को मुँह में लेके चूसना शुरू किया उसकी खूबसूरती निखर सी गयी थी उसकी चुचियाँ भी काफ़ी भारी हो गयी और गान्ड भी काफ़ी मोटी हो गयी...बाजी मुझे अपनी चुचियों को चुस्वाती रही मेरे मुँह पे अपनी चुचियों को रगड़ती रही
मैने उन्हें अपने से अलग किया और फिर उनकी ज़ुबान से ज़बान लगाई और फिर उनके चूत पे हल्का सा चुम्मा जड़ा...बाजी कसमसा उठी...रात काफ़ी गहरी हो चुकी थी कहीं कोई जंगली जानवर हॉ हॉ करके रो रहा था...मानो जैसे एक साथ कितनी बलाओ को देख लिया हो उसने और यहाँ मैं एक जीती जागती पिसाच के साथ हमबिस्तर हो रहा था
उसका पूरा शरीर एकदम सफेद हो चुका था उसकी आवाज़ भी भारी सी हो गयी थी....बाजी मेरे सर को अपनी चूत के मुँह पे रखने लगी....मैने उन्हें पलट दिया और उनकी गान्ड की फांको से लेके चूत के मुंहाने तक मुँह डाल दिया...."आहह ओह आहह ससस्स आहह".....बाजी कसमसाती हुई हाथ नीचे करके अपनी क्लाइटॉरिस को रगड़ रही थी...और मैं उनकी गान्ड की फांको में मुँह डाले कुत्ते की तरहा उनकी गान्ड के छेद और सूजी चूत को चाट रहा था..फिर उसमें ज़ुबान घुसाके छेद को भी टटोल देता..मैं बाजी की गान्ड में मुँह रगड़ने लगा बाजी की चूत से लसलसाते हुए रस आने लगा जिसे मैं चाट रहा था
फिर उसकी गान्ड में एक उंगली धीरे से सर्काई...बाजी चिहुक उठी....फिर उस उंगली को गोल घुमाने लगा गान्ड का छेद चौड़ा होने लगा बाजी अपनी गान्ड हवा में उठा लेती....मैने उनकी गान्ड पे थूका और उसमें दो उंगली सरका दी...अब बाजी की गान्ड ढीली पड़ चुकी थी...मैने नीचे से उनकी चूत की दरारों को भी अंगुल करना शुरू कर दिया था बाजी बहुत ज़ोर ज़ोर से सिसकिया लेने लगी....मैने उन्हें फिर पलटा और उनकी गान्ड में उंगली करता हुआ उनकी चूत को चूस्ता रहा उसके दाने को चबाता रहा....बाजी मेरे मुँह को अपनी चूत पे दबाती रही
कुछ ही देर में बाजी ने अपना पानी छोड़ दिया ये पानी गाढ़ा था..इसका स्वाद उत्तेजना भरा नमकीन...मैने अपने लंड को सीधे ही चूत के मुंहाने में फसाया और कस के एक धक्का मारा...बाजी का मुँह खुला का खुला रह गया..और वो मेरे धक्को को सहती रही...मैं उनकी चूत में सटासॅट धक्के मारता रहा....वो लगभग गान्ड भींच लेती लंड के अंदर घुसते ही मैने उनकी चुचियों को फिर दबाना शुरू कर दिया इस बीच उनके होंठ मेरे होंठो के पास थे उन्होने फॅट से मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेके मेरे होंठो से अपने होंठ लगा दिए
हम पागलो की तरह एक दूसरे को चूमते रहे...फिर उसके बाद धक्को की स्पीड भी तेज़ हो गयी....चूत फ़च फ़च की आवाज़ निकालने लगी पर बाजी शांत कहाँ होने वाली थी....उसने मुझे लिटा या और खुद ही मेरे लंड को अपनी चूत पे अड्जस्ट करते हुए कूदने लगी "आहह आहह सस्स आहह"......वो ज़ोर ज़ोर से कूदते हुए सिसक रही थी...मेरे सीने को दबा रही थी....आज इतने दिनो बाद हम फिर एक हुए थे हमारा प्यार फिर अपने मुकाम पे आ गया था....बाजी चुदती रही सिसकती रही आहें भरती रही और मैं बस उसके आगोश में डूबा रहा
जल्द ही मैने खुद उनकी गान्ड भीच दी और उनकी गान्ड को अपने लंड के उपर दबाने लगा नीचे से अपने लंड को बहुत ज़ोर से उनकी गान्ड के अंदर बाहर करने लगा....बाजी चिल्ला रही थी और इतनी ही देर मे उन्होने मुझे कस के पकड़ा और अपना पानी फिर छोड़ दिया जैसे वो पश्त हुई मैने फिर उन्हें चोदना जारी रखा वो दहाड़ती रही उसकी आँखे लाल हो गयी दाँत बाहर निकल आए...वो कांपति रही झडती रही...मेरे उपर सवार रही जबतक मैं ना झड जाउ
फिर वही हुआ बाँध टूट गया और मेरे लंड ने ढेर सारा रस अपनी बाजी की गान्ड में छोड़ दिया बाजी की गान्ड और मेरा लंड दोनो रस से भीगते चले गये फिर भी मैं धक्के मारता रहा...और जल्द ही लंड फिसलके बाहर निकल आया...बाजी ने जल्दी से उठके मुझे बिठाया और मेरे पास झुकके मेरे रस छोड़ते लंड को मुँह में लेके चूसने लगी...मानो जैसे वो एक बूँद भी नही छोड़ना चाहती....उसका एक हाथ ज़बरदस्त तरीके से अपनी चूत पे उंगलिया कर रही थी
कुछ देर बाद उसने मेरे लंड के सारे रस को चूस लिया और फिर अपने होंठ पोंछे और फिर मेरे होंठो से होंठ लगाके मुझे लिटा दिया और खुद मेरे उपर टाँग रखके लेट गयी....कुछ देर बाद वो पश्त पर गयी उसकी आँखे लाल से काली हो गयी उसका रूप सामान्य हो गया..और उसके नुकीले दाँत ठीक वैसे ही अपने रूप में आ गये...वो मेरे छाती के बालों से खेलते हुए अपना सर मेरे छाती पे रखके सो गयी और मैं उसे अपनी बाहों में भरे बस अंजाम की फिकर करने लगा
दिन यूही बीत गये लेकिन बाजी के गर्भ में कोई बच्चा नही ठहरा या यूँ कह लो उन्हें कभी कोई बच्चा नही ठहरेगा वो एक मरी हुई इंसान थी एक पिसाच भला पिसाच को बच्चा कैसे ठहर सकता है?....उस दिन मम्मी पापा की बहुत याद आ रही थी बाजी भी उन्हें याद कर रही थी...पर मैं जानता था अगर वो हमे देख रहे होंगे तो चैन से नही होंगे उनके अंदर सख़्त गुस्सा और नफ़रत होगी कि मैने अपनी बाजी के साथ ये क्या किया?
बाजी का बर्ताव बहुत बदल सा गया था जिससे मुझे डर सताने लगा...एकदिन बाज़ार चौक में किसी से बहस हो गयी थी बाजी को मैं रात के वक़्त ही बाहर ले आता था लेकिन उसे भीड़ भाड़ से घुटन होने लगती थी...लोगो से नज़र चुराती और मुझे फिकर होती थी...अचानक एक आदमी को ग़लती से मेरा धक्का लग गया उसने मेरा कॉलर पकड़ लिया "देख कर नही चल सकता".......मैने उसे धक्का दिया और उससे बहस हो गयी...बाजी जो मेरे संग खड़ी थी उसके अंदर ना जाने क्या होने लगा? वो उस आदमी की ओर बहुत गुस्से भरी निगाहों से देखने लगी ऐसे हालत में ना तो मैं वहाँ और कुछ देर रुक सकता था और ना ही मैं कुछ और कर सकता था...मैने बाजी को अपने साथ लिया और बिना पीछे मुड़े उसे शांत करते हुए भीड़ भाड़ से कोसो दूर ले जाने लगा
बाजी : उसकी हिम्मत कैसे हुई? उसे छोड़ूँगी नही मैं
मैं : जाने दो गुस्सा थूक दो बाजी आओ चलें
बाजी बस सख़्त निगाहो से कुछ सोच रही थी और मुझे उसके इस हिंसक बर्ताव से बेहद डर लग रहा था...आमाली की दी हुई वो किताब उस सब सामान को मैने जला कर गाढ दिया था..ताकि अब मैं ऐसे गुनाह का कोई दोबारा काम ना कर पाऊ...उस रात मौसम ठीक नही था तूफान का अंदेशा था...बाजी के साथ मैं बिस्तर पे लेटा हुआ था....कब नींद लगी पता नही
अचानक बाजी की आँख खुली और उसने मेरी ओर देख कर अपना हाथ हटाया....फिर धीरे से उठके बाहर निकल आई बहुत चालाकी से उसने खिड़की से छलाँग लगाई ताकि उसके भाई को पता ना चल सके...और फिर किसी जानवर की तरह इतनी रफ़्तार में रास्ते पे दौड़ने लगी कि पलक झपकते ही गायब दिखी...जब मुझे महसूस हुआ कि बाजी घर पे नही है तो मैं फिर उठ गया क्या वो फिर शिकार के लिए गयी?
मेरी सोच मेरे डर मुझपे हावी हुए जा रही थी...फ़ौरन टॉर्च लिया और जंगल का एक दौरा किया....बारिश घनी हो गयी...."बाअज्जिई बज्जिि शीबा बाजीी".....मैं सुनसान जंगल में चिल्लाते हुए आगे बढ़ रहा था...अचानक वापिस आया तो देखा कि रास्ते पर पाओ के निशान है...वो पाओ के निशान एक ओर ख़तम होते ही 10 कदम दूर शुरू हो रहे है....बारिश से निशान गायब हो रहे थे...मैने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और बहुत बारीक़ी से उस पाओ के निशान को देखते देखते रास्ते पे चलने लगा....जल्द ही मैं टाउन में था...यहाँ निशान गायब थे...मैं बाजी को हर ओर खोज रहा था डर सता रहा था कहाँ गयी मेरी बाजी कहीं कुछ हो तो नही गया? दिल में अज़ीबो ग़रीब ख़यालात आने लगे घबराहट से उल्टिया लग रही थी दिल कांपें जा रहा था
अचानक कुत्तो की रोने की आवाज़ सुनाई दी एक साथ इतने सारे कुत्ते हॉ हॉ करके रो रहे थे...मैने गाड़ी उसी ओर की और हेडलाइट्स को ऑफ किया...मैं धीरे से गाड़ी से नीचे उतरा अचानक मेरे पैर पे कुछ लगा जुतो की ओर जब देखा तो टॉर्च की रोशनी में दंग रह गया ताज़ा खून और ये खून गली के अंदर जा रहा था...."आअहह"......एक बहुत अज़ीब सी घुट्टी आवाज़ आई....बिजलिया कढ़क रही थी चारो तरफ बंद मार्केट था...कोई घर नही...मैने काँपते हुए गली के पास जाके झाँका....और जो सामने देखा उससे मेरी पैरो तले ज़मीन खिसक गयी मानो काटो तो खून नही
बिजली की गड़गड़ाहट में बीच बीच की रोशनी में मैने साफ देखा बाजी एक आदमी की गर्दन को एक हाथ से जकड़े उसकी गर्दन पे मुँह लगाए हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे उसके माँस को काट काट के उसके अंदर का सारा खून पी रही हो....अचानक बाजी ने उस बेजान शरीर को छोड़ा और उसके बाद इतनी ज़ोर का ठहाका लगाके हँसने लगी कि पूरा माहौल डरावना सा हो गया उसकी ठहाका लगाती आवाज़ उसकी सुकून भरी जीत को दर्शा रही थी मैं काँपते हुए गाड़ी में जैसे आके बैठ गया....दिल को पकड़े मुझे कुछ सूझ नही रहा था
ये मेरी बाजी नही हो सकती नहियिइ...कुछ देर बाद मैने देखा कि बाजी वैसे ही नंगे पाओ इतनी तेज़ी से दौड़ी कि पलक झपकते ही वो गायब काफ़ी देर तक मैं रुका रहा...मेरी गाड़ी से निकलने की हिम्मत नही थी...फिर भी एक एक पाओ बाहर रखते हुए भीगते हुए उस गली की तरफ पहुँचा वहाँ अब एक घना सन्नाटा छाया हुआ था...मैं पास आया उस लाश के पास...बिजलिया कड़क रही थी बार बार उसकी रोशनी में एक बेजान लाश सड़क पे पड़ी दिख रही थी उसने एक काला जॅकेट और जीन्स पहना हुआ था और उसके चारो तरफ खून ही खून मैने जब उस शक्स की ओर देखा...तो मैने मुँह पे हाथ रख दिया ये वही था वही आदमी जिससे बाज़ार में आज बहस हुई थी ..ओह क्या बाजी ने मेरे लिए उसे ये मेरे लिए किसी ख़तरे की बात थी वहाँ रुकना एक सेकेंड भी मुझे ख़तरे में डालने वाला था...मैने उसकी ठहरी आँखो में देखा जो सख़्त ख़ौफ्फ में शायद मारा हुआ था..और फिर उसके बेदर्द ज़ख़्म पे उफ्फ कितना गहरा...पिशाचिनी की तरह ही बाजी बन चुकी थी...मेरी एक दुआ दूसरो के लिए एक सज़ा बन जाएगी सोचा नही था
मैं उल्टे पाओ दौड़ा जल्दी से गाड़ी मे बैठ गया और फिर फ़ौरन तेज़ी से गाड़ी को घर की ओर मोड़ दिया....पूरे रास्ते डर और दहशत से मेरी आँखे काँप रही थी नींद उड़ चुकी थी सुबह के 3 बज चुके थे जब घर लौटा तो देखा सबकुछ वैसा ही था...पाओ के निशान गायब थे शायद बारिश से मिट गये हो..दरवाजा सटा हुआ था इसका मतलब बाजी आ गयी है और मुझे मौज़ूद ना देख कर शायद उसे समझ आ जाएगा...मैं डरते डरते कमरे में दाखिल हुआ चारो ओर अंधेरा था....कमरे की तरफ जब आया तो देखा बाजी गहरी नींद में बिस्तर पे आँखे मुन्दे सोई हुई है...मैं दिल को पकड़े वॉशरूम चला गया काफ़ी उल्टिया की एक डर सता रहा कहीं पोलीस ने कहीं लोगो को कुछ पूछा तो???
मैं अपने मुँह पे पानी मारके बाहर आया और अचानक देखा कि बाजी बिस्तर पे मज़ूद नही है वो कब्से मेरे पीछे खड़ी थी इस बात का मुझे अहसास नही उसके मुँह पे अब भी खून लगा हुआ था उसके नुकीले दाँत उसकी मुस्कुराहट से बाहर निकल आए थे मेरी आँखे भारी हो गयी और उसने उसी वक़्त मेरे एक लफ़्ज कहे बिना ही मेरे कंधे पे हाथ रखके मुझे ज़ोर से दीवार पे धकेल दिया और मुझसे एकदम लिपटके खड़ी हो गयी उसकी आँखे एकदम लाल थी उसके होंठो मे अब भी उसके शिकार का ताज़ा खून लगा हुआ था....उसने मेरी ओर बड़ी भयंकर निगाहो से देखा मेरा दिल काँप रहा था शायद बाजी मुझे उसी तरह मारने वाली थी
मैं एकदम से ठिठक गया...अब जैसे जिस्म एकदम बेजान हो चुका था...बाजी की ठंडी साँसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रही थी....उसके हाथ जो मेरे छाती और कंधे पे टिके हुए थे उससे मेरा पूरा बदन उसके ठंडे जिस्म की ठंडक से अकड़ रहा था...फिर अचानक वो ठंडे हाथ अपने आप मेरे चेहरे की तरफ आने लगे और फिर मेरे पूरे बदन को सहलाते हुए ठंड से कंपकपाते हुए मेरे चेहरे पे....मैने अपनी आँखे खोल ली थी उसकी ऊन भयंकर लाल निगाहो में भी मेरे लिए एक प्यार का अहसास एक दया दिख रही थी
"तुमने जान लिया ना भाई कि मैं कौन हूँ? क्या बन चुकी हूँ मैं? नही रोक पाती खुद को अपने अपनो पर किसी और के गुस्से को मैने सिर्फ़ बदला लिया"..........यक़ीनन उसने मेरे मन की बात पढ़ ली थी आम इंसानो से बिल्कुल हटके बर्ताव थे उसके
"त..तुंन्ने म..मुझी की..उ मेरे लिए".....कहने को शब्द नही बन पा रहा था फिर भी दिल को मज़बूत करते हुए अपने डर पे खुद को काबू किया..."तुमने जो कुछ भी किया ये तुमने ठीक नही किया पर त..तूमम्मने आख़िर उसे मारा क्यूँ?"......
उसकी आँखे इधर उधर घूम रही थी मानो जैसा एक सवाल उसका भी हो
शीबा : म...मुझहहे समझ नही आया भाई बसस्स दि..ल्ल क..इया क..आइ उसे जान से मार दूं उसका खून मुझे अपनी ओर खींच रहा था और मैं खुद की तलब को नही रोक पाई
मैं : तुम्हें इस तलब को रोकना होगा प्लज़्ज़्ज़ तुम किसी और की जान नही लोगि प्रॉमिस मी प्रोमिस मी और अगर तुमने ऐसा किया तो मुझे मार देना
शीबा : भाईईईई (उसकी आँखे एकदम से गंभीर होके मेरी ओर देखने लगी जिन आँखो में सख़्त परेशानी और तक़लीफ़ दिख सकती थी जिन आँखो में खून एक जगह जमा होके लाल सा हो चुका था) आइन्दा ऐसा कभी मत कहनन्ना उस दिन मैं खुद को ख़तम कर लूँगी खुद को
बाजी मेरे करीब आई और मुझे अपने साथ ले गयी....हम वापिस घर पहुचे मैं बहुत सोच में डूबा था ये सब उस अमल का किया धरा था....बाजी ज़िंदी हुई पर एक खुद पिसाच बनके उठ गयी वो कब बाथरूम में जाके शवर लेके नंगी ही टवल को लपेट के बाहर आई मुझे पता नही चला उसने एक ही झटके में अपना टवल उतार फैका उसके आँखो में वासना थी...."खून की वासना के साथ साथ जिन्सी की भी सख़्त वासना".....मेरा गला सुखता जा रहा था मैं उसकी खूबसूरती की तरफ खुद ब खुद उस सिचुएशन में भी उसके करीब जा रहा था
और उसके बाद उसने मुझे बिस्तर पे धकेल दिया और मेरे उपर सवार हो गयी मैने अपनी आँखे मूंद ली
बाजी मेरे सामने मदरजात नंगी थी और वो होंठो पे ज़बान फिराते हुए अपने नुकीले दांतो पे भी वो ज़ुबान फेर रही थी....उसने एकटक मेरी ओर अपनी एकदम लाल आँखो से देखा और मेरे पाजामे को धीरे धीरे नीचे खिसका दिया...अमालि की हर एक बात दिमाग़ में गूँज़ी थी...पिसाच सिर्फ़ खून के भूके नही होते जिस्म के भी भूके होते है उनके अंदर हर वक्त बेहया और गंदगी की तलब उठती है हमबिस्तरी की चाहत होती है
जबतक सोच में डूबा तब तक एक अज़ीब सा अहसास हुआ अपने लंड पे हुआ बाजी धीरे धीरे मेरे लंड को पूरा मुँह में लेके चुस्स रही थी और अपने नुकीले नाख़ून भरे हाथो से मेरे लंड को सख्ती से पकड़े भीच रही थी उसकी चमड़ी को उपर नीचे कर रही थी...उसके दाँत मेरे चमड़ी पे गढ़ रहे थे रगड़ खा रहे थे...लेकिन मुझे ये दर्द सहना था मुझे अपनी बाजी की हवस में ही मुहब्बत ढूँढनी थी उसमें खो जाना था
बाजी ने मेरे लंड को बहुत प्यार से चूसना शुरू किया और फिर बहुत ज़ोरो से वो मुझे अपनी लाल आँखो से देखते हुए ललचा रही थी मेरे सुपाडे पे ज़बान फेर रही थी लंड को हाथो में लिए उसे सहला रही थी....मैं लेटा लेटा आहें भर रहा था...कुछ देर बाद बाजी मेरे उपर से उठी और मेरे उपर चढ़ते हुए मेरे गाल गले सीने पे निपल्स पे सब जगह चूमती रही उसकी ज़ुल्फो को मैं अपने मुँह पे महसूस कर रहा था.....
उसके बाद उसने ताबड़तोड़ पागलो की तरहा मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया हम पागलो की तरह एक दूसरे से ज़बान भिड़ाते हुए बहुत ज़ोर ज़ोर से स्मूच करने लगे एक दूसरे के होंठो से होंठ गहराई तक मिल रहे थे...वो मेरी पीठ पे नाख़ून गढ़ाने लगी मेरे बदन से खुद के बदन को रगड़ने लगी बीच बीच में उसकी एक टाँग मेरे लंड के हिस्से पे रगड़ती...बाजी का जोश बढ़ चुका था मैने उसके सख़्त निपल्स को मुँह में लेके चूसना शुरू किया उसकी खूबसूरती निखर सी गयी थी उसकी चुचियाँ भी काफ़ी भारी हो गयी और गान्ड भी काफ़ी मोटी हो गयी...बाजी मुझे अपनी चुचियों को चुस्वाती रही मेरे मुँह पे अपनी चुचियों को रगड़ती रही
मैने उन्हें अपने से अलग किया और फिर उनकी ज़ुबान से ज़बान लगाई और फिर उनके चूत पे हल्का सा चुम्मा जड़ा...बाजी कसमसा उठी...रात काफ़ी गहरी हो चुकी थी कहीं कोई जंगली जानवर हॉ हॉ करके रो रहा था...मानो जैसे एक साथ कितनी बलाओ को देख लिया हो उसने और यहाँ मैं एक जीती जागती पिसाच के साथ हमबिस्तर हो रहा था
उसका पूरा शरीर एकदम सफेद हो चुका था उसकी आवाज़ भी भारी सी हो गयी थी....बाजी मेरे सर को अपनी चूत के मुँह पे रखने लगी....मैने उन्हें पलट दिया और उनकी गान्ड की फांको से लेके चूत के मुंहाने तक मुँह डाल दिया...."आहह ओह आहह ससस्स आहह".....बाजी कसमसाती हुई हाथ नीचे करके अपनी क्लाइटॉरिस को रगड़ रही थी...और मैं उनकी गान्ड की फांको में मुँह डाले कुत्ते की तरहा उनकी गान्ड के छेद और सूजी चूत को चाट रहा था..फिर उसमें ज़ुबान घुसाके छेद को भी टटोल देता..मैं बाजी की गान्ड में मुँह रगड़ने लगा बाजी की चूत से लसलसाते हुए रस आने लगा जिसे मैं चाट रहा था
फिर उसकी गान्ड में एक उंगली धीरे से सर्काई...बाजी चिहुक उठी....फिर उस उंगली को गोल घुमाने लगा गान्ड का छेद चौड़ा होने लगा बाजी अपनी गान्ड हवा में उठा लेती....मैने उनकी गान्ड पे थूका और उसमें दो उंगली सरका दी...अब बाजी की गान्ड ढीली पड़ चुकी थी...मैने नीचे से उनकी चूत की दरारों को भी अंगुल करना शुरू कर दिया था बाजी बहुत ज़ोर ज़ोर से सिसकिया लेने लगी....मैने उन्हें फिर पलटा और उनकी गान्ड में उंगली करता हुआ उनकी चूत को चूस्ता रहा उसके दाने को चबाता रहा....बाजी मेरे मुँह को अपनी चूत पे दबाती रही
कुछ ही देर में बाजी ने अपना पानी छोड़ दिया ये पानी गाढ़ा था..इसका स्वाद उत्तेजना भरा नमकीन...मैने अपने लंड को सीधे ही चूत के मुंहाने में फसाया और कस के एक धक्का मारा...बाजी का मुँह खुला का खुला रह गया..और वो मेरे धक्को को सहती रही...मैं उनकी चूत में सटासॅट धक्के मारता रहा....वो लगभग गान्ड भींच लेती लंड के अंदर घुसते ही मैने उनकी चुचियों को फिर दबाना शुरू कर दिया इस बीच उनके होंठ मेरे होंठो के पास थे उन्होने फॅट से मेरे चेहरे को अपने हाथो में लेके मेरे होंठो से अपने होंठ लगा दिए
हम पागलो की तरह एक दूसरे को चूमते रहे...फिर उसके बाद धक्को की स्पीड भी तेज़ हो गयी....चूत फ़च फ़च की आवाज़ निकालने लगी पर बाजी शांत कहाँ होने वाली थी....उसने मुझे लिटा या और खुद ही मेरे लंड को अपनी चूत पे अड्जस्ट करते हुए कूदने लगी "आहह आहह सस्स आहह"......वो ज़ोर ज़ोर से कूदते हुए सिसक रही थी...मेरे सीने को दबा रही थी....आज इतने दिनो बाद हम फिर एक हुए थे हमारा प्यार फिर अपने मुकाम पे आ गया था....बाजी चुदती रही सिसकती रही आहें भरती रही और मैं बस उसके आगोश में डूबा रहा
जल्द ही मैने खुद उनकी गान्ड भीच दी और उनकी गान्ड को अपने लंड के उपर दबाने लगा नीचे से अपने लंड को बहुत ज़ोर से उनकी गान्ड के अंदर बाहर करने लगा....बाजी चिल्ला रही थी और इतनी ही देर मे उन्होने मुझे कस के पकड़ा और अपना पानी फिर छोड़ दिया जैसे वो पश्त हुई मैने फिर उन्हें चोदना जारी रखा वो दहाड़ती रही उसकी आँखे लाल हो गयी दाँत बाहर निकल आए...वो कांपति रही झडती रही...मेरे उपर सवार रही जबतक मैं ना झड जाउ
फिर वही हुआ बाँध टूट गया और मेरे लंड ने ढेर सारा रस अपनी बाजी की गान्ड में छोड़ दिया बाजी की गान्ड और मेरा लंड दोनो रस से भीगते चले गये फिर भी मैं धक्के मारता रहा...और जल्द ही लंड फिसलके बाहर निकल आया...बाजी ने जल्दी से उठके मुझे बिठाया और मेरे पास झुकके मेरे रस छोड़ते लंड को मुँह में लेके चूसने लगी...मानो जैसे वो एक बूँद भी नही छोड़ना चाहती....उसका एक हाथ ज़बरदस्त तरीके से अपनी चूत पे उंगलिया कर रही थी
कुछ देर बाद उसने मेरे लंड के सारे रस को चूस लिया और फिर अपने होंठ पोंछे और फिर मेरे होंठो से होंठ लगाके मुझे लिटा दिया और खुद मेरे उपर टाँग रखके लेट गयी....कुछ देर बाद वो पश्त पर गयी उसकी आँखे लाल से काली हो गयी उसका रूप सामान्य हो गया..और उसके नुकीले दाँत ठीक वैसे ही अपने रूप में आ गये...वो मेरे छाती के बालों से खेलते हुए अपना सर मेरे छाती पे रखके सो गयी और मैं उसे अपनी बाहों में भरे बस अंजाम की फिकर करने लगा
दिन यूही बीत गये लेकिन बाजी के गर्भ में कोई बच्चा नही ठहरा या यूँ कह लो उन्हें कभी कोई बच्चा नही ठहरेगा वो एक मरी हुई इंसान थी एक पिसाच भला पिसाच को बच्चा कैसे ठहर सकता है?....उस दिन मम्मी पापा की बहुत याद आ रही थी बाजी भी उन्हें याद कर रही थी...पर मैं जानता था अगर वो हमे देख रहे होंगे तो चैन से नही होंगे उनके अंदर सख़्त गुस्सा और नफ़रत होगी कि मैने अपनी बाजी के साथ ये क्या किया?
बाजी का बर्ताव बहुत बदल सा गया था जिससे मुझे डर सताने लगा...एकदिन बाज़ार चौक में किसी से बहस हो गयी थी बाजी को मैं रात के वक़्त ही बाहर ले आता था लेकिन उसे भीड़ भाड़ से घुटन होने लगती थी...लोगो से नज़र चुराती और मुझे फिकर होती थी...अचानक एक आदमी को ग़लती से मेरा धक्का लग गया उसने मेरा कॉलर पकड़ लिया "देख कर नही चल सकता".......मैने उसे धक्का दिया और उससे बहस हो गयी...बाजी जो मेरे संग खड़ी थी उसके अंदर ना जाने क्या होने लगा? वो उस आदमी की ओर बहुत गुस्से भरी निगाहों से देखने लगी ऐसे हालत में ना तो मैं वहाँ और कुछ देर रुक सकता था और ना ही मैं कुछ और कर सकता था...मैने बाजी को अपने साथ लिया और बिना पीछे मुड़े उसे शांत करते हुए भीड़ भाड़ से कोसो दूर ले जाने लगा
बाजी : उसकी हिम्मत कैसे हुई? उसे छोड़ूँगी नही मैं
मैं : जाने दो गुस्सा थूक दो बाजी आओ चलें
बाजी बस सख़्त निगाहो से कुछ सोच रही थी और मुझे उसके इस हिंसक बर्ताव से बेहद डर लग रहा था...आमाली की दी हुई वो किताब उस सब सामान को मैने जला कर गाढ दिया था..ताकि अब मैं ऐसे गुनाह का कोई दोबारा काम ना कर पाऊ...उस रात मौसम ठीक नही था तूफान का अंदेशा था...बाजी के साथ मैं बिस्तर पे लेटा हुआ था....कब नींद लगी पता नही
अचानक बाजी की आँख खुली और उसने मेरी ओर देख कर अपना हाथ हटाया....फिर धीरे से उठके बाहर निकल आई बहुत चालाकी से उसने खिड़की से छलाँग लगाई ताकि उसके भाई को पता ना चल सके...और फिर किसी जानवर की तरह इतनी रफ़्तार में रास्ते पे दौड़ने लगी कि पलक झपकते ही गायब दिखी...जब मुझे महसूस हुआ कि बाजी घर पे नही है तो मैं फिर उठ गया क्या वो फिर शिकार के लिए गयी?
मेरी सोच मेरे डर मुझपे हावी हुए जा रही थी...फ़ौरन टॉर्च लिया और जंगल का एक दौरा किया....बारिश घनी हो गयी...."बाअज्जिई बज्जिि शीबा बाजीी".....मैं सुनसान जंगल में चिल्लाते हुए आगे बढ़ रहा था...अचानक वापिस आया तो देखा कि रास्ते पर पाओ के निशान है...वो पाओ के निशान एक ओर ख़तम होते ही 10 कदम दूर शुरू हो रहे है....बारिश से निशान गायब हो रहे थे...मैने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और बहुत बारीक़ी से उस पाओ के निशान को देखते देखते रास्ते पे चलने लगा....जल्द ही मैं टाउन में था...यहाँ निशान गायब थे...मैं बाजी को हर ओर खोज रहा था डर सता रहा था कहाँ गयी मेरी बाजी कहीं कुछ हो तो नही गया? दिल में अज़ीबो ग़रीब ख़यालात आने लगे घबराहट से उल्टिया लग रही थी दिल कांपें जा रहा था
अचानक कुत्तो की रोने की आवाज़ सुनाई दी एक साथ इतने सारे कुत्ते हॉ हॉ करके रो रहे थे...मैने गाड़ी उसी ओर की और हेडलाइट्स को ऑफ किया...मैं धीरे से गाड़ी से नीचे उतरा अचानक मेरे पैर पे कुछ लगा जुतो की ओर जब देखा तो टॉर्च की रोशनी में दंग रह गया ताज़ा खून और ये खून गली के अंदर जा रहा था...."आअहह"......एक बहुत अज़ीब सी घुट्टी आवाज़ आई....बिजलिया कढ़क रही थी चारो तरफ बंद मार्केट था...कोई घर नही...मैने काँपते हुए गली के पास जाके झाँका....और जो सामने देखा उससे मेरी पैरो तले ज़मीन खिसक गयी मानो काटो तो खून नही
बिजली की गड़गड़ाहट में बीच बीच की रोशनी में मैने साफ देखा बाजी एक आदमी की गर्दन को एक हाथ से जकड़े उसकी गर्दन पे मुँह लगाए हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे उसके माँस को काट काट के उसके अंदर का सारा खून पी रही हो....अचानक बाजी ने उस बेजान शरीर को छोड़ा और उसके बाद इतनी ज़ोर का ठहाका लगाके हँसने लगी कि पूरा माहौल डरावना सा हो गया उसकी ठहाका लगाती आवाज़ उसकी सुकून भरी जीत को दर्शा रही थी मैं काँपते हुए गाड़ी में जैसे आके बैठ गया....दिल को पकड़े मुझे कुछ सूझ नही रहा था
ये मेरी बाजी नही हो सकती नहियिइ...कुछ देर बाद मैने देखा कि बाजी वैसे ही नंगे पाओ इतनी तेज़ी से दौड़ी कि पलक झपकते ही वो गायब काफ़ी देर तक मैं रुका रहा...मेरी गाड़ी से निकलने की हिम्मत नही थी...फिर भी एक एक पाओ बाहर रखते हुए भीगते हुए उस गली की तरफ पहुँचा वहाँ अब एक घना सन्नाटा छाया हुआ था...मैं पास आया उस लाश के पास...बिजलिया कड़क रही थी बार बार उसकी रोशनी में एक बेजान लाश सड़क पे पड़ी दिख रही थी उसने एक काला जॅकेट और जीन्स पहना हुआ था और उसके चारो तरफ खून ही खून मैने जब उस शक्स की ओर देखा...तो मैने मुँह पे हाथ रख दिया ये वही था वही आदमी जिससे बाज़ार में आज बहस हुई थी ..ओह क्या बाजी ने मेरे लिए उसे ये मेरे लिए किसी ख़तरे की बात थी वहाँ रुकना एक सेकेंड भी मुझे ख़तरे में डालने वाला था...मैने उसकी ठहरी आँखो में देखा जो सख़्त ख़ौफ्फ में शायद मारा हुआ था..और फिर उसके बेदर्द ज़ख़्म पे उफ्फ कितना गहरा...पिशाचिनी की तरह ही बाजी बन चुकी थी...मेरी एक दुआ दूसरो के लिए एक सज़ा बन जाएगी सोचा नही था
मैं उल्टे पाओ दौड़ा जल्दी से गाड़ी मे बैठ गया और फिर फ़ौरन तेज़ी से गाड़ी को घर की ओर मोड़ दिया....पूरे रास्ते डर और दहशत से मेरी आँखे काँप रही थी नींद उड़ चुकी थी सुबह के 3 बज चुके थे जब घर लौटा तो देखा सबकुछ वैसा ही था...पाओ के निशान गायब थे शायद बारिश से मिट गये हो..दरवाजा सटा हुआ था इसका मतलब बाजी आ गयी है और मुझे मौज़ूद ना देख कर शायद उसे समझ आ जाएगा...मैं डरते डरते कमरे में दाखिल हुआ चारो ओर अंधेरा था....कमरे की तरफ जब आया तो देखा बाजी गहरी नींद में बिस्तर पे आँखे मुन्दे सोई हुई है...मैं दिल को पकड़े वॉशरूम चला गया काफ़ी उल्टिया की एक डर सता रहा कहीं पोलीस ने कहीं लोगो को कुछ पूछा तो???
मैं अपने मुँह पे पानी मारके बाहर आया और अचानक देखा कि बाजी बिस्तर पे मज़ूद नही है वो कब्से मेरे पीछे खड़ी थी इस बात का मुझे अहसास नही उसके मुँह पे अब भी खून लगा हुआ था उसके नुकीले दाँत उसकी मुस्कुराहट से बाहर निकल आए थे मेरी आँखे भारी हो गयी और उसने उसी वक़्त मेरे एक लफ़्ज कहे बिना ही मेरे कंधे पे हाथ रखके मुझे ज़ोर से दीवार पे धकेल दिया और मुझसे एकदम लिपटके खड़ी हो गयी उसकी आँखे एकदम लाल थी उसके होंठो मे अब भी उसके शिकार का ताज़ा खून लगा हुआ था....उसने मेरी ओर बड़ी भयंकर निगाहो से देखा मेरा दिल काँप रहा था शायद बाजी मुझे उसी तरह मारने वाली थी
मैं एकदम से ठिठक गया...अब जैसे जिस्म एकदम बेजान हो चुका था...बाजी की ठंडी साँसें मुझे अपने चेहरे पे महसूस हो रही थी....उसके हाथ जो मेरे छाती और कंधे पे टिके हुए थे उससे मेरा पूरा बदन उसके ठंडे जिस्म की ठंडक से अकड़ रहा था...फिर अचानक वो ठंडे हाथ अपने आप मेरे चेहरे की तरफ आने लगे और फिर मेरे पूरे बदन को सहलाते हुए ठंड से कंपकपाते हुए मेरे चेहरे पे....मैने अपनी आँखे खोल ली थी उसकी ऊन भयंकर लाल निगाहो में भी मेरे लिए एक प्यार का अहसास एक दया दिख रही थी
"तुमने जान लिया ना भाई कि मैं कौन हूँ? क्या बन चुकी हूँ मैं? नही रोक पाती खुद को अपने अपनो पर किसी और के गुस्से को मैने सिर्फ़ बदला लिया"..........यक़ीनन उसने मेरे मन की बात पढ़ ली थी आम इंसानो से बिल्कुल हटके बर्ताव थे उसके
"त..तुंन्ने म..मुझी की..उ मेरे लिए".....कहने को शब्द नही बन पा रहा था फिर भी दिल को मज़बूत करते हुए अपने डर पे खुद को काबू किया..."तुमने जो कुछ भी किया ये तुमने ठीक नही किया पर त..तूमम्मने आख़िर उसे मारा क्यूँ?"......
उसकी आँखे इधर उधर घूम रही थी मानो जैसा एक सवाल उसका भी हो
शीबा : म...मुझहहे समझ नही आया भाई बसस्स दि..ल्ल क..इया क..आइ उसे जान से मार दूं उसका खून मुझे अपनी ओर खींच रहा था और मैं खुद की तलब को नही रोक पाई
मैं : तुम्हें इस तलब को रोकना होगा प्लज़्ज़्ज़ तुम किसी और की जान नही लोगि प्रॉमिस मी प्रोमिस मी और अगर तुमने ऐसा किया तो मुझे मार देना
शीबा : भाईईईई (उसकी आँखे एकदम से गंभीर होके मेरी ओर देखने लगी जिन आँखो में सख़्त परेशानी और तक़लीफ़ दिख सकती थी जिन आँखो में खून एक जगह जमा होके लाल सा हो चुका था) आइन्दा ऐसा कभी मत कहनन्ना उस दिन मैं खुद को ख़तम कर लूँगी खुद को
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- sexi munda
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- Joined: 12 Jun 2016 12:43
Re: सिफली अमल ( काला जादू )
ये मुहब्बत ही तो थी जो एक दरिंदे को एक इंसान से जोड़ रही थी ना ही मुझे ख़ौफ्फ था ना ही उसे मुझे मारने की कोई तलब फिर भी वो मेरे गले लग गयी और उसके आँखो से बहते खून के आँसू मेरे गर्दन पे टपक रहे थे...मैने उसे अपने से अलग किया फिर ना पूछो कि क्या हुआ? वही जो मुहब्बत के आगे होता है...एक दूसरे की आगोश में डूब के एक दूसरे से लिपटके अपने मनचाही मुहब्बत को अंजाम देना उस रात मैने शीबा बाजी के साथ खूब सेक्स किया और उनके अंदर की जिन्सी तलब को शांत करने लगा....उस रात कितनी बार मैं उन पर सवार था और वो मुझे नही मालूम बस इतना मालूम है आखरी बार चिड़िया की आवाज़ आ रही थी सुबह हो चुकी थी और हम कब्से इन अंधेरो में एक दूसरे के बिस्तर को गरम कर रहे थे
उस पूरे दिन बाजी मुझसे नंगी लिपटी बस एक चादर ओढ़े जिसके अंदर मैं भी मौज़ूद था बाजी से लिपटा सिर्फ़ बाजी के बालों पे हाथ फेरते हुए सोच रहा था मुझे अपने किए पे शर्मिंदगी थी कि कहीं ना कहीं बाजी की इस हालत का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ...पर फिर भी हालात काबू किए जा सकते थे....बाजी रोज़ रात शिकार के लिए जंगल चली जाती थी और इंसानो से कोसो दूर रहने लगी....धीरे धीरे बाजी को अपनी प्यास पे काबू होने लगा था....लेकिन ना तो वो मज़ार जा सकती थी और सिर्फ़ दिल ही दिल में खुदा से अपनी इस शैतानी ज़िंदगी के लिए माँफी मांगती थी उसने मुझे कभी कोसा नही उलटे मेरी ग़लतियो को नादानी बताके अपने उपर सारी ग़लतियो का बोझ लिया....मैं बाजी से मँफी माँगना चाहता था पर बाजी मुझसे माँफी नही चाहती थी...मैने जो किया उसका खामियाज़ा ज़रूर भुगत रहा था...हमेशा कोई ना कोई नुकसान ज़रूर होता था पर मैं उस नुकसान को अपनी ही किए का ज़िम्मेदार ठहराता बस अल्लाह से दिल ही दिल में माँफी माँगता था....कि मरने के बाद चाहे वो मुझे कोई भी सज़ा दे...और धीरे धीरे हमे इस ज़िंदगी में जीने की आदत सी पड़ गयी
बाजी भी धीरे धीरे नये कारोबार में मेरा साथ देने लगी....हमारा नया कारोबार काफ़ी अच्छे से चलने लगा....बाजी को कभी किसी से मिलने की ज़रूरत ना हुई सबकुछ मैं ही हॅंडल करता था....लेकिन कोई ये नही जानता था कि उनकी मालकिन एक इंसान नही थी...ये राज़ किसी को पता ना चल पाया था कुछ लोगो ने शक़ भी किया कि ये भाई बेहन का जोड़ा अकेले क्यू रहता है?.....लेकिन किसी की हिम्मत नही थी जानने को...उधर पोलीस ने काफ़ी तफ़तीश की और लाश की शिनाख्त में किसी जंगली जानवर का हमला बताया.....उन्हें कोई ख़ास शक़ तो नही हुआ था मेरी बाजी पे पर मुझे अपनी बाजी को उनकी निगाहों से दूर रखना था....बाजी ने मुझे समझाया कि फिकर करने की ज़रूरत नही उन्हें आभास हो जाता है अगर कोई ख़तरा पास हो और अब ऐसा कोई ख़तरा हमारे उपर नही था
बाजी भी अब इंसानो की तरह ज़िंदगी व्यतीत करने की कोशिश करने लगी हमारा कारोबार इतना बड़ा था कि अपने लोगों के दिलो में हमारी इज़्ज़त दुगनी हो गयी हमने एक खूबसूरत जगह पे बड़ा सा बंगला बना लिया....इस बार शायद खुदा का हम पर रहम आ गया था शायद उन्होने हमे मांफ कर दिया...मुझे बहुत खुशी थी अंदर ही अंदर पर कहीं ना कहीं मज़बूर था बाजी की कमज़ोरियो को लेके...धीरे धीरे साल बीतते गये और बाजी पूरी तरीके से जानवरों के ब्लड पे सर्वाइव करने लगी वो बहुत तेज़ इंटेलिजेंट हो गयी थी...कारोबार को भी वही आधे से ज़्यादा संभालने लगी थी...किसी की आँख में आने का कोई सवाल नही था...
धीरे धीरे मुझे इसकी आदत होने लगी लेकिन अचानक एक बढ़ते तूफान ने घर में दस्तक दी....एक अज़ीब सा दर्द बदन में होना शुरू हो गया ये दर्द आजतक तो नही हुआ था पर ये कैसा दर्द था....कभी कभी गुस्सा इतना उबल जाता कि कोई चीज़ को तोड़ देता इस बात को बहुतो ने नोटीस कर लिया था बाजी ने मेरी इस अज़ीबो ग़रीब हरक़त के लिए मुझसे जानना चाहा कि आख़िर मुझे हुआ क्या है? मैने उन्हें बताया कि ना जाने क्यूँ पर मुझे बहुत ज़्यादा अज़ीब सा महसूस होने लगा है आजकल . बाजी ने मेरी हालत को देखते हुए मुझे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी वो मेरे इस अज़ीब बर्ताव को महसूस करते हुए ही ख़ौफ़ खा जाती थी
डॉक्टर को मेरी बातों में कुछ अज़ीब महसूस हुआ उन्हें शायद मैं मानसिक रोगी लगने लगा था....और वो कुछ मेडिसिन्स देते जिनका मुझपे ना के बराबर असर होता हर पल बाजी के साथ कच्चे माँस का शौक और फिर हाथो के बल चलने की एक आदत इन सब को बाजी ने नोटीस किया...एकदिन ब्रश करते वक़्त दाँतों में अज़ीब सी ऐंठन हुई और जैसे ही मैने अपनी उंगली दाँत पे लगाई खच्छ से मेरी उंगली कट गयी और खून निकल गया...मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ये मुझे क्या हो रहा है? क्या ये सब अमल करने का नतीजा था? या फिर क्या मैं भी बाजी के साथ साथ खुद एक पिसाच बन रहा था....लेकिन मुझे तो ना दिन में धूप की रोशनी से बदन जलता महसूस होता और ना ही मुझे कुछ ऐसा फील हो रहा था जो बाजी को होता....एक रात बदन पे अज़ीब सी खुजली सी होने लगी बाजी को ठंडा करके मैं अभी करवट बदले सोया ही था कि मुझे महसूस हुआ कि मेरे पूरे बदन में कुछ काट रहा है जब मैने लाइट ऑन करके आयने के सामने खुद को देखा तो दंग रह गया
धीरे धीरे करके मेरे पूरे बदन पे बाल निकल्ने लगे थे चारो ऑर बगलो में छाती से लेके पेट पे पीठ पे इतने घने....मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ईवन मेरी दाढ़ी से लेके सिर के दोनो सिरो से जुड़ रहा था....मैने सोचा शायद ये मेरा वहाँ है एक बार नहाने के लिए शवर ऑन किया और खुद पे पानी बरसाने लगा....अचानक मेरे पूरे बदन पे जो गर्मी महसूस हो रही थी अब वापिस ठंडक महसूस होने लगी मेरे हथेली और इर्द गिर्द के बाल अपने आप झड्ने लगे...ये बहुत अज़ीब दृश्य था....मैं एकटक पानी में बहते फर्श पे गिरते उन बालों को देखने लगा और जब मेरी निगाह सामने की आयने पे हुई तो मेरी आँखो का रंग ऐसा था मानो जैसे किसी जंगली जानवर का हो और वो धीरे धीरे इंसानी आँखो में तब्दील हो गया मैने अपने मुँह पे हाथ रख लिया ये सब क्या था? आख़िर कार मन बना चुका था कि मुझे एक बार फिर उस आमाली से मिलने जाना होगा वही मुझे इसका तोड़ बता सकते है....क्या ये सब एक पिसाच के साथ हमबिस्तर होने से था या फिर अब मुझे खुदा के कहेर का सामना करना था...इन सब सवालो के साथ मैं दूसरे दिन आमाली के यहा पहुचा
आमाली चुपचाप मेरी बातों को गौर से सुनते हुए उठ खड़ा हुआ खंडहर के अंदर जल रही एक मोमबत्ती और चारो ओर की एक अज़ीब सी गंदी महक गूँज़ रही थी....उस वक़्त मैं पूरा पसीने पसीने हो रहा था....आमाली की आँखे यूँ गहराई में थी मानो जैसे उनसे ये सब कहीं उम्मीद ही ना किया हो...."जिस बात का डर था आख़िर वो सामने आ ही गया"..........आमाली की बातों ने मेरे दिल को ज़ोरो से हिला दिया
"यही कि तुम्हारे उपर धीरे लिलिता के अमल का प्रकोप आने लगा है....उसने तुम्हें तुम्हारी बेहन को ज़िंदगी के नाम पे एक पिशाचिनी तो बना दिया लेकिन उसका खामियाज़ा तुम्हें अब चुकाना है"...........आमाली की बातों ने मुझे सहमा दिया तो क्या इसका मतलब? अब मेरी मौत तय हो चुकी है ये सब जो कुछ हो रहा है
"सवाल का जवाब तो मैं तुम्हें नही दूँगा क्यूंकी जवाब तुम खुद खोज सकते हो सिर्फ़ यही कहूँगा कि आनेवाले उस प्रकोप को तुम्हें हर हाल मे सहना है...ये एक ऐसी रूह है जो तुमपे हावी हो रही है...तुम्हें एक जानवर बना रही है...जब जब तुम्हारे अंदर गुस्सा और बदले की आग पन्पेगि दहेक के उठेगी तुम वही बन जाओगे".......आमाली की उंगली मेरी ओर खड़ी हो गयी मैं चुपचाप बस अपने गाल और गले को पोंछ रहा था
"नहिी नहियिइ य..ई स..एब्ब नैइ ह..ना चाहिई".......मैं उठ खड़ा हुआ...."चले जाओ यहाँ से अब तुम्हारा इंसानो से कोई नाता नही रहा है तुमने जो रास्ता खुद इकतियार किया उसे अब तुम्हें खुद संभालना है जाओ चले जाऊओ".......आमाली की बातों ने मुझे गुस्सा दिला दिया और वो थोड़ा सहम उठा मेरी आँखे एकदम सुर्ख भूरी हो चुकी थी मानो जैसी किसी जानवर की आँख हो....मैं घुर्र्राने लगा...और खुद पे क़ाबू करते हुए बहुत तेज़ी से वहाँ से निकल गया.....आमाली बस हाथ फैलाए अल्लाह से माँफी माँग रहा था वो जानता था दोजख में तो उसे भी कल जाना है
मैं कितनी तेज़ी से दौड़ते हुए गाड़ी में बैठा और कितनी स्पीड में जंगल के रास्ते अंधेरे में गाड़ी को चला रहा था मुझे नही पता.....बस आवाज़ें गूँज़ रही थी कोई मेरे कानो में कुछ कह रहा था आँखे मुन्दता तो बाजी का चेहरा सामने होता वो मुझे बुला रही थी मुझे ढूँढ रही थी उसकी लाल आँखे और नुकीले दाँत मुझे दिख रहे थे....अचानक मैने सामने देखा एक भेड़िया खड़ा था मैने जल्दी से गाड़ी को दूसरी ओर मोड़ दिया और सटाक से गाड़ी ढलान से थोड़ी से नीचे जा गिरी...मैं एकदम से गश ख़ाके गाड़ी से बाहर निकल आया...अगर ज़्यादा गाड़ी ढलान क्रॉस कर जाती तो मैं मौत के आगोश में होता नीचे खाई थी
उस पूरे दिन बाजी मुझसे नंगी लिपटी बस एक चादर ओढ़े जिसके अंदर मैं भी मौज़ूद था बाजी से लिपटा सिर्फ़ बाजी के बालों पे हाथ फेरते हुए सोच रहा था मुझे अपने किए पे शर्मिंदगी थी कि कहीं ना कहीं बाजी की इस हालत का मैं ही ज़िम्मेदार हूँ...पर फिर भी हालात काबू किए जा सकते थे....बाजी रोज़ रात शिकार के लिए जंगल चली जाती थी और इंसानो से कोसो दूर रहने लगी....धीरे धीरे बाजी को अपनी प्यास पे काबू होने लगा था....लेकिन ना तो वो मज़ार जा सकती थी और सिर्फ़ दिल ही दिल में खुदा से अपनी इस शैतानी ज़िंदगी के लिए माँफी मांगती थी उसने मुझे कभी कोसा नही उलटे मेरी ग़लतियो को नादानी बताके अपने उपर सारी ग़लतियो का बोझ लिया....मैं बाजी से मँफी माँगना चाहता था पर बाजी मुझसे माँफी नही चाहती थी...मैने जो किया उसका खामियाज़ा ज़रूर भुगत रहा था...हमेशा कोई ना कोई नुकसान ज़रूर होता था पर मैं उस नुकसान को अपनी ही किए का ज़िम्मेदार ठहराता बस अल्लाह से दिल ही दिल में माँफी माँगता था....कि मरने के बाद चाहे वो मुझे कोई भी सज़ा दे...और धीरे धीरे हमे इस ज़िंदगी में जीने की आदत सी पड़ गयी
बाजी भी धीरे धीरे नये कारोबार में मेरा साथ देने लगी....हमारा नया कारोबार काफ़ी अच्छे से चलने लगा....बाजी को कभी किसी से मिलने की ज़रूरत ना हुई सबकुछ मैं ही हॅंडल करता था....लेकिन कोई ये नही जानता था कि उनकी मालकिन एक इंसान नही थी...ये राज़ किसी को पता ना चल पाया था कुछ लोगो ने शक़ भी किया कि ये भाई बेहन का जोड़ा अकेले क्यू रहता है?.....लेकिन किसी की हिम्मत नही थी जानने को...उधर पोलीस ने काफ़ी तफ़तीश की और लाश की शिनाख्त में किसी जंगली जानवर का हमला बताया.....उन्हें कोई ख़ास शक़ तो नही हुआ था मेरी बाजी पे पर मुझे अपनी बाजी को उनकी निगाहों से दूर रखना था....बाजी ने मुझे समझाया कि फिकर करने की ज़रूरत नही उन्हें आभास हो जाता है अगर कोई ख़तरा पास हो और अब ऐसा कोई ख़तरा हमारे उपर नही था
बाजी भी अब इंसानो की तरह ज़िंदगी व्यतीत करने की कोशिश करने लगी हमारा कारोबार इतना बड़ा था कि अपने लोगों के दिलो में हमारी इज़्ज़त दुगनी हो गयी हमने एक खूबसूरत जगह पे बड़ा सा बंगला बना लिया....इस बार शायद खुदा का हम पर रहम आ गया था शायद उन्होने हमे मांफ कर दिया...मुझे बहुत खुशी थी अंदर ही अंदर पर कहीं ना कहीं मज़बूर था बाजी की कमज़ोरियो को लेके...धीरे धीरे साल बीतते गये और बाजी पूरी तरीके से जानवरों के ब्लड पे सर्वाइव करने लगी वो बहुत तेज़ इंटेलिजेंट हो गयी थी...कारोबार को भी वही आधे से ज़्यादा संभालने लगी थी...किसी की आँख में आने का कोई सवाल नही था...
धीरे धीरे मुझे इसकी आदत होने लगी लेकिन अचानक एक बढ़ते तूफान ने घर में दस्तक दी....एक अज़ीब सा दर्द बदन में होना शुरू हो गया ये दर्द आजतक तो नही हुआ था पर ये कैसा दर्द था....कभी कभी गुस्सा इतना उबल जाता कि कोई चीज़ को तोड़ देता इस बात को बहुतो ने नोटीस कर लिया था बाजी ने मेरी इस अज़ीबो ग़रीब हरक़त के लिए मुझसे जानना चाहा कि आख़िर मुझे हुआ क्या है? मैने उन्हें बताया कि ना जाने क्यूँ पर मुझे बहुत ज़्यादा अज़ीब सा महसूस होने लगा है आजकल . बाजी ने मेरी हालत को देखते हुए मुझे डॉक्टर के पास जाने की सलाह दी वो मेरे इस अज़ीब बर्ताव को महसूस करते हुए ही ख़ौफ़ खा जाती थी
डॉक्टर को मेरी बातों में कुछ अज़ीब महसूस हुआ उन्हें शायद मैं मानसिक रोगी लगने लगा था....और वो कुछ मेडिसिन्स देते जिनका मुझपे ना के बराबर असर होता हर पल बाजी के साथ कच्चे माँस का शौक और फिर हाथो के बल चलने की एक आदत इन सब को बाजी ने नोटीस किया...एकदिन ब्रश करते वक़्त दाँतों में अज़ीब सी ऐंठन हुई और जैसे ही मैने अपनी उंगली दाँत पे लगाई खच्छ से मेरी उंगली कट गयी और खून निकल गया...मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ये मुझे क्या हो रहा है? क्या ये सब अमल करने का नतीजा था? या फिर क्या मैं भी बाजी के साथ साथ खुद एक पिसाच बन रहा था....लेकिन मुझे तो ना दिन में धूप की रोशनी से बदन जलता महसूस होता और ना ही मुझे कुछ ऐसा फील हो रहा था जो बाजी को होता....एक रात बदन पे अज़ीब सी खुजली सी होने लगी बाजी को ठंडा करके मैं अभी करवट बदले सोया ही था कि मुझे महसूस हुआ कि मेरे पूरे बदन में कुछ काट रहा है जब मैने लाइट ऑन करके आयने के सामने खुद को देखा तो दंग रह गया
धीरे धीरे करके मेरे पूरे बदन पे बाल निकल्ने लगे थे चारो ऑर बगलो में छाती से लेके पेट पे पीठ पे इतने घने....मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ईवन मेरी दाढ़ी से लेके सिर के दोनो सिरो से जुड़ रहा था....मैने सोचा शायद ये मेरा वहाँ है एक बार नहाने के लिए शवर ऑन किया और खुद पे पानी बरसाने लगा....अचानक मेरे पूरे बदन पे जो गर्मी महसूस हो रही थी अब वापिस ठंडक महसूस होने लगी मेरे हथेली और इर्द गिर्द के बाल अपने आप झड्ने लगे...ये बहुत अज़ीब दृश्य था....मैं एकटक पानी में बहते फर्श पे गिरते उन बालों को देखने लगा और जब मेरी निगाह सामने की आयने पे हुई तो मेरी आँखो का रंग ऐसा था मानो जैसे किसी जंगली जानवर का हो और वो धीरे धीरे इंसानी आँखो में तब्दील हो गया मैने अपने मुँह पे हाथ रख लिया ये सब क्या था? आख़िर कार मन बना चुका था कि मुझे एक बार फिर उस आमाली से मिलने जाना होगा वही मुझे इसका तोड़ बता सकते है....क्या ये सब एक पिसाच के साथ हमबिस्तर होने से था या फिर अब मुझे खुदा के कहेर का सामना करना था...इन सब सवालो के साथ मैं दूसरे दिन आमाली के यहा पहुचा
आमाली चुपचाप मेरी बातों को गौर से सुनते हुए उठ खड़ा हुआ खंडहर के अंदर जल रही एक मोमबत्ती और चारो ओर की एक अज़ीब सी गंदी महक गूँज़ रही थी....उस वक़्त मैं पूरा पसीने पसीने हो रहा था....आमाली की आँखे यूँ गहराई में थी मानो जैसे उनसे ये सब कहीं उम्मीद ही ना किया हो...."जिस बात का डर था आख़िर वो सामने आ ही गया"..........आमाली की बातों ने मेरे दिल को ज़ोरो से हिला दिया
"यही कि तुम्हारे उपर धीरे लिलिता के अमल का प्रकोप आने लगा है....उसने तुम्हें तुम्हारी बेहन को ज़िंदगी के नाम पे एक पिशाचिनी तो बना दिया लेकिन उसका खामियाज़ा तुम्हें अब चुकाना है"...........आमाली की बातों ने मुझे सहमा दिया तो क्या इसका मतलब? अब मेरी मौत तय हो चुकी है ये सब जो कुछ हो रहा है
"सवाल का जवाब तो मैं तुम्हें नही दूँगा क्यूंकी जवाब तुम खुद खोज सकते हो सिर्फ़ यही कहूँगा कि आनेवाले उस प्रकोप को तुम्हें हर हाल मे सहना है...ये एक ऐसी रूह है जो तुमपे हावी हो रही है...तुम्हें एक जानवर बना रही है...जब जब तुम्हारे अंदर गुस्सा और बदले की आग पन्पेगि दहेक के उठेगी तुम वही बन जाओगे".......आमाली की उंगली मेरी ओर खड़ी हो गयी मैं चुपचाप बस अपने गाल और गले को पोंछ रहा था
"नहिी नहियिइ य..ई स..एब्ब नैइ ह..ना चाहिई".......मैं उठ खड़ा हुआ...."चले जाओ यहाँ से अब तुम्हारा इंसानो से कोई नाता नही रहा है तुमने जो रास्ता खुद इकतियार किया उसे अब तुम्हें खुद संभालना है जाओ चले जाऊओ".......आमाली की बातों ने मुझे गुस्सा दिला दिया और वो थोड़ा सहम उठा मेरी आँखे एकदम सुर्ख भूरी हो चुकी थी मानो जैसी किसी जानवर की आँख हो....मैं घुर्र्राने लगा...और खुद पे क़ाबू करते हुए बहुत तेज़ी से वहाँ से निकल गया.....आमाली बस हाथ फैलाए अल्लाह से माँफी माँग रहा था वो जानता था दोजख में तो उसे भी कल जाना है
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Re: सिफली अमल ( काला जादू )
हाववववववव हावववव.....कुत्तो की रोने की आवाज़ें आ रही थी...जब उपर उठके आया तो चारो ओर एकदम गहरा अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था...रात मे झींघुर की आवाज़ आ रही थी इन खामोश वादियो में रास्ते पे जो भेड़िया देखा वो गायब था तो क्या ये मेरा वेहेम था....मैने गाड़ी को स्टार्ट करनी चाही लेकिन गाड़ी का एंजिन शायद बंद हो चुका था .....मैं उपर उठके आया और गाड़ी के टाइयर के सहारे पीठ किए ज़मीन पे बैठ गया..."या अल्लहह ये क्या हो रहा है मेरे साथ? क्यू मैं शैतान बन रहा हूँ?".......मेरे अंदर गुस्से की आग दहेकने लगी थी आँखे फिर से जलने लगी..और मैं उठ खड़ा हुआ ये क्या? ये मेरे पूरे बदन में फिरसे खुजली हो रही है...मैने अपने पूरे कपड़ों को जैसे तैसे उतार फैंका...उतारते ही मेरे पूरे बदन के बाल अपने आप बढ़ने लगे...मैं ख़ौफ्फ से चिल्ला उठा दाँतों में फिर ऐंठन सी होने लगी...सर भारी होने लगा...."आहह आहह आहह"..........मैं दहाड़ते हुए ज़मीन पे घुटनो के बल बैठ गया कुत्ते ज़ोरो से रो रहे थे.....मेरे हाथो के नाख़ून बढ़ने लगे मैं किसी जानवर में तब्दील हो रहा था...."हावववववववववव".........वो पूर्णिमा की रात थी जब चाँद बादलो से हटके मेरे सामने आया मैं उठके ना जाने क्यू भेड़िया की तरहा रोने लगा....मेरी आवाज़ से भेड़ियों की भी कहीं कहीं से रोने की गूँज़ सुनाई दे रही थी
धीरे धीरे मेरा पूरा शरीर ऐंठने लगा और मैं कब वहाँ से जंगलों के बीचो बीच से दौड़ता हुआ किसी साए की तरह भागा मुझे कुछ मालूम नही...."तुमने वो आवाज़ सुनी?"......पोलिसेवाले ने अपनी गाड़ी से बाहर झाँकते हुए उस आवाज़ को सुना
"हां आजकल शहर में भी ऐसे क़िस्से देखने को मिल रहे है कुछ साल पहले भी एक आदमी को किसी ने बुरी तरीके से मारा था सूत्रो के मुताबिक कोई जानवर था जंगली जानवर"........"ह्म हो सकता है ये वही हो".....दोनो ने आपस में चर्चा किया
दोनो ने अपनी अपनी गन निकाल ली थी और जंगल के इलाक़े में टॉर्च मार रहे थे....सुनसान रात दूर दूर से कहीं क्सिी जानवर की रोने की आवाज़....उन्हें दहशत भी दिला रही थी.."मैं जाके देखता हूँ तू यही ठहर"........एक पोलीस वाला उतरके झाड़ियों के अंदर से होता हुआ उस आवाज़ पे गौर करते हुए जाने लगा "संभाल्ल्ल के"....पीछे से पोलीस वाला हिदायत देते हुए ज़ोर से बोला...धीरे धीरे घास पे ही उसे अपनी आवाज़ सुनाई देने लगी....गन उसके करीब ही थी...अचानक कोई साया एक ओर से दूसरी ओर काफ़ी ज़ोर से दिखता हुआ उसे महसूस हुआ वो चौंक उठा....वो उस साए के पीछे दौड़ा अचानक फिर एक साया उसके पीछे से गायब हो गया झडियो में "उफ़फ्फ़ हे भगवांन ये तो कोई!"....वो जान चुका था ये कोई बहुत ही तेज़ जानवर था और बहुत ही बड़ा उसके आकार से उसे पता लग गया "ज़रूर ये कोई जंगली जानवर है कोई शेर".........उसने अपने दोस्त को ना बुलाके खुद ही इस मामले को हॅंडल करना शुरू किया और उस पुराने तालाब के पास आया....पानी चाँद की रोशनी में उज्ज्वल था....धीरे धीरे वो तालाब के करीब गया वहाँ एक साया था जिसकी गर्दन पानी में थी
पोलीस वाले ने अपनी टॉर्च जलाई और जैसे उस ओर नज़र दौड़ाई एक भयंकर जंगली भेड़िया ज़ुबान पानी पे फिराते हुए चाट रहा था...उसकी निगाह पोलीस वाले की ओर आई उसकी आँखे जो इतनी देहेक्ति आग जैसी सुर्ख भूरी थी उसे देखते ही वो टॉर्च उसके हाथ से छूट गयी उसने चीख कर एक बार उस जानवर के उपर फाइयर एकि ढ़चह आआआआअहह....इस आवाज़ को सुन वो गाड़ी के सामने खड़ा उसका दोस्त दूसरा पोलीस वाला भी धीरे धीरे जंगल के पास आया "शेखावत शेखावत".......वो उसे आवाज़ लगाते हुए उसी पुराने तालाब के करीब आया हाथ में गन थी जो काँप रही थी....जब वो उस ओर आया उसने देखा कि एक लाश लाहुलुहान एक ओर पड़ी हुई है....जिसकी गर्दन से खून बह के तालाब के पानी में जाके बह रहा है.....पोलीस वाला जैसे ही सहम्ते हुए मुँह पे हाथ रखके दूसरी ओर पलटा ही था उस पैड के उपर बैठा वो 6 फुट का भेड़िया अपने नुकीले दांतो से उसको ही घूर्र रहा था...."आआआआआअहह".......उस भेड़िया ने उसके उपर छलाँग लगाई उसके गले पे अपने नुकीले दाँत की पाकड़ बैठा दी...उस अंधेरी वादियो में एक बार बहुत ज़ोर से वो आवाज़ गूँज़ी थी और फिर सुनाई दी एक भेड़िए के आवाज़ हवववववववव....एक पत्थर के उपर इंसान से बने भेड़िए मे तब्दील आसिफ़ की वो आवाज़ गूँज़ी थी...
उसके बाद कब वो भेड़िया झाड़ियों में से ही गुम होके घर लौटा पता नही...अपनी लॅंप की रोशनी को कम करके आयने के करीब खड़ी शीबा अपने भाई का इंतेज़ार कर रही थी उसने सॉफ गौर किया कि आसिफ़ के फटे कपड़ों में आसिफ़ खून से लथपथ सीडियो से उपर दाखिल हुया.....जैसे ही दरवाजा खुला शीबा उसकी तरफ देखी उसके पूरे बदन पे लगे खून को सूंघते हुए उसकी ओर अज़ीब निगाहो से देखने लगी...."ये सब क्या हुआ?"......शीबा की खून से तलब जाग तो रही थी लेकिन उसे अपने भाई का यह हाल देख बेहद सवाल थे
आसिफ़ वही बैठके रोने लगा..."ये सब क्या हो रहा है? क्यउउू कर रहा हूँ मैंन्न्न् मैने जो किया गलात्त्ट"........आसिफ़ रोने लगा उसके चेहरे के आँसुओ को पोंछती हुई शीबा की आँखो में भी खून के आँसू घुलने लगे "धीरे धीरे ये दरिंदगी बढ़ती जाएगी मेरी शीबा बाजी मैं भी एक दरिन्दा बन जाउन्गा और बन गया हूँ दो खून किए मैने ये मैने क्या किया? ये कैसी तलब है बाजीी".......
बाजी ने मुझे उठाया और मेरे बदन पे लगे हर खून के कतरे को अपनी उंगलियो पे लेके चाटने लगी उसमें इंसान का स्वाद था...."आओ तुम डरो नही ऐसा होता है कभी कभी हमे अपने असल रूप के साथ ज़िंदगी बितानी पड़ती है आओ".........उसके बाद बाजी मुझे नहलाने ले गयी बाजी ने मेरे पूरे बदन को पानी से सॉफ किया मेरे बाल को झड्ते देख बदन से उसे भी महसूस हुआ कि मैं क्या बन चुका हूँ?.....जैसे ही मेरा गुस्सा शांत होता है मैं वो दरिन्दा नही रहता और ...बाजी ने कहा की अब हमे दुनिया की नज़रों से कहीं दूर चले जाना चाहिए....पर मुझे वक़्त चाहिए था ताकि मैं इस नये रूप को काबू कर पाता इसका कोई तोड़ नही था झेलना तो हर कीमत पे था इसे...मैं नहा कर कब बिस्तर पे आके पस्त होके सो गया बाजी की बाहों में पता नही...बाजी भी फ़िकरमंद थी उन्हें भी एक डर सता रहा था
धीरे धीरे मुझे अपनी मालूमत का आहेसस हुआ मैं क्या बन चुका हूँ?...आमाली की बातों को गौर करते हुए जब नेट पे सर्च किया तो पाया कि लिलिता का असल गुलाम एक भेड़िया होता है..जो उसका सारा काम करता है उसकी क़ैद में रहता है....तो इसका मतलब जो कामयाबी मैने हासिल की उसके बाद ही मुझे ये रूप एक शाप के तौर पे दिया गया या यूँ कह लूँ खुदा का यह मुझपे कहेर था....मैं अपनी सज़ा को कबुल करने के लिए राज़ी था....बाजी हर बात का ध्यान रखती कि मुझे सख़्त गुस्सा ना आए....मैने धीरे धीरे अपने इस नायाब रूप पे काबू करना शुरू कर दिया ये मुस्किल ज़रूर था पर अगर मुहब्बत साथ हो तो हर जंग आसान है....उधर पोलीस भी अपने कर्मचारियो की मौत से आग बाबूला हो उठी पूरे शहर में जंगली जानवर की तालश होने लगी जो गये रात को लोगो का खून पीता है और उन्हें बेरहमी से मार देता है अब ये शहर सेफ नही था हम दोनो के लिए शक कभी भी हम पर आ सकता था
एक रात बाजी ने मुझे उठाया "चलो शिकार पे चलना है"..........हम अपने खाने के लिए एक नया रास्ता इकतियार कर चुके थे गये रात को जंगल में शिकार करने के लिए...हम दोनो बाहर निकल आए....लेकिन हम नही जानते थे कि पोलीस ने भी अपनी ख़ुफ़िया पोलीस को हमे पकड़ने के लिए लगाया था....जनवरो के खून पे ही हम सर्वाइव कर सकते थे एक यही रास्ता था....यक़ीनन इससे हमारी प्यास तो भुजती थी पर एक यही रास्ता था...अचानक एक हिरण दिखा और बाजी अपनी लप्लपाती ज़ुबान के साथ उसके पीछे दौड़ी...उसकी इतनी तेज़ी थी कि पालक झपकते वो हिरण के बिल्कुल नज़दीक जा रही थी.....अचानक मुझे कुछ आभास हुआ और मैं चिल्ला उठा "बाजीीीइ रकूओ"........
"शूट फाइयर"..........झाड़ियो में छुपे हमारे लिए जो जाल पोलीस ने बिछाया था उसमें फस गये थे हम......धड़ध धढ़ करके आर्मी के 4 जवान पोलीस कर्मी के साथ बाजी की ओर गोली चलाने लगे....बाजी जल्दी से एक पैड पे चढ़के छुप गयी उसके नुकीले दाँत बाहर निकल आए मेरा गुस्सा दहक उठा
"आआहह".......मैं उन लोगो की ओर बढ़ा उन लोगो ने मुझे घैर लिया था...बाजी हमला करना चाहती थी उनका सवर का बाँध टूट रहा था..."कौन हो तुम लोग? कहाँ से आए हो?".......वो लोग मुझे ऐसी निगाहो से देख रहे थे मानो मैं उन्हें कोई पागल नज़र आ रहा था...हमारा राज़ खुल गया था....अचानक कहीं दूर चाँदनी रात की रोशनी मुझपे पड़ी "जीना चाहते हो भाग जाओ".........
एक पोलीस वाला हंस के मेरे पास आया "साले हमे डरा रहा है पोलीस को"....उसने आगे आकें मुझे थप्पड़ मारा ही था कि बाजी एकदम से हवा की भाती उड़के उसके करीब आई और पलक झपकते ही उसे सबकी निगाहो से उड़ा ले गयी..."आआआआअहह"......एक चीख गूँज़ी....मैं जानता था बाजी उसके गले की नस फाड़के उसका ताज़ा खून पी चुकी थी
"हववववववववव"........मेरी इस अज़ीब हरक़त को देख वो पोलीस वाले और आर्मी के जवान थर्र थर्र काँपते हुए पीछे होने लगे
उसके सामने ही मेरी आँखे और शरीर तब्दील होने लगा....वो लोग बस कांपें जा रहे थे..."गनीमत चाहते तो भागगग जाऊओ".....मेरी घूंटति आवाज़ भारी होने लगी और मैं किसी भेड़िए की तरह घुर्राने लगा....जल्द ही उनके सामने एक भेड़िया था "फाइयर".....उन लोगों ने शूट करना चाहा...पर मैं उन पर हमला कर चुका था...किसी का हाथ चीर के उखाड़ दिया तो किसी के गले से ही उसकी गर्दन को अपने दांतो में क़ैद कर लिया ..."भागूऊ भागगूव".........वो लोग अब तक अपनी गाडियो तक पहुच भी पाते सामने बाजी उनके खड़ी थी....एक पिसाच को देख कर वो लोग बहुत डर चुके थे और उसके बाद फिर कितनी बेरहेमी मौत से बाजी ने उन्हें मारा नही पता बस चीखें गूँज़ रही थी....इंसानो ने शैतानो को बुलावा भेजा था....जल्द ही चारो ओर कटी लाषे थी....बाजी मेरे इस नायाब रूप को देख कर मुस्कुराइ और उसने मुझे अपने गले लगा लिया...
भेड़िया उसका मुँह चाटने लगा उसके चेहरे पे अपना मुँह रगड़ने लगा...बाजी उसके बालों से खेलने लगी "चलो हमारा शिकार हमे मिल गया है जल्दी से कहीं खंडहर में आज रात बिता लेते है चलो मेरे साथ"........ना जाने बाजी मुझे कहाँ ले जा रही थी और मैं उनके पीछे पीछे ऊन्ही की तरह तेज़ी में दौड़ते हुए जंगल के किस ओर से निकलके दूसरी ओर दौड़ा.....जल्द ही हम एक पुराने से खंडहर के सामने थे जो यहाँ का पुराना कब्रिस्तान था....बाजी मेरे पंजो को पकड़के अपने साथ उस खंडहर में ले आई.....बिजलिया कडकने लगी और चारो ओर बारिश झमा झम शुरू हो गई...हूओ हो करती हवाओ का शोर गूँज रहा था बाजी को ये आधी रात के वक़्त की बारिश बहुत पसंद थी कब्रिस्तान में एकदम वीरानी छाई थी....क़बरो के बीच से चलते हुए हम कब खंडहर के अंदर दाखिल हुए पता नही चला
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