Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

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josef
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Re: Holi sexi stories-होली की सेक्सी कहानियाँ

Post by josef »

Behad hi shandaar or jabardast kahaniyaan hain bhai.
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jay
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होली का असली मजा--10

Post by jay »

होली का असली मजा--10


हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "

मेरे कजिन का घर स्टेशन के पास ही था , इसलिए वो जाने लगा , और हम लोगो ने रिक्शा पकडा।

जाने के पहले वो इनसे गले मिला , तो ये बोले , साले ये सिर्फ सुहागरात थी. गर्मियों कि छुट्टी में आना तो पूरा हनीमून होगा। "

"एकदम जीजा जी ये कोई कहने कि पन्द्रह दिन के लिए आउंगा कम से कम। " वो बोला।

मुझसे मिलते हुए कान में बोला , " दी तेरी ससुराल में तेरी छोटी नन्द बहुत मस्त है , लेकिन सबसे मस्त हैं तुम्हारी सासु , क्या रसीला भोंसड़ा है उनका , एकदम शहद। आना तो पड़ेगा ही। "

५ मिनट में ही मैं अपने मायके में पहुँच गयी और दरवाजे पे छुटकी मिली मेरी सबसे छोटी बहन, जो ९ वें में पढ़ती थी।

छुटकी , मेरी सबसे छोटी बहन। सबसे छोटी हम तीन बहनो में , लेकिन सबसे नटखट। मुझसे ४ साल छोटी और मंझली से डेढ़ साल। नौंवी में थी ( उमर का अंदाजा आप लगा लें , वैसे ही लड़कियों औरतों से उम्र पूछी नहीं जाती ).

एक छोटी सी पुरानी फ्राक में ( होली के दिन वैसे ही पुराने कपडे पहने जाते हैं , लेकिन उसका असर कई बार खतरनाक हो जाता है ), जो कई जगहो पे घिस भी गयी थी और टाइट भी।

उसको देख के तो उसके जीजा को जैसे मूठ मार गयी। एक दम ठिठक गए।

और बात भी तो थी।

लड़कियों पे जब जवानी आती है न तो झट से आ जाती है , बस वही छुटकी के साथ हो रहा था। चेहरा , आँखे उनमें तो भोलापन और शरारत थी लेकि देह जवानी ने दस्तक कब की दे दी है , उसकी चुगली कर रहीथी।

और उसके जीजा कि निगाहें बस वहीँ चिपकी थी।

उसके कच्चे टिकोरे , अब बड़े हो गए थे , कच्ची हरी अमिया की तरह और टाइट फ्राक से उछल , छलक रहे थे। कमर तो उसकी पतली थी ही , लेकिन अब हिप्स भरे भरे , पर तब भी छोटे , ब्वायिश।

लेकिन वो तो थे ही इस तरह के चूतड़ के शौक़ीन।

मुझे उनकी और उनके नंदोई से हुयी बात याद आगयी , जब उन्होंने बोला था कि वो छुटकी को ले आयेंगे और फिर दोनों मिल के लेंगे।

और अब उसके बड़े बड़े टिकोरों को देख के उनके इरादे पक्के हो गए थे।



"कच्चे टिकोरों को दबाने , नोचने , मसलने का मजा ही अलग है। एकदम खटमिठवा स्वाद ,…

और दूसरे , जो लौंडिया , इस उम्र में , चूंचिया उठान में दबवाने मिंजवाने लगती है , उसे के एक तो जोबन बहुत जल्दी खूब गद्दर हो जाते हैं और दूसरे , वो कभी को मसलने मिसवाने से मना नहीं करती , चाहे गाँव का मेला हो या शहर की बस हो।

और फिर सारे लौंडो के बीच सबसे पापुलर हो जाती है। और अगर इसी उमर में उसे दो तीन बार रगड़ के चोद दो न , भले बहुत परपराएगी उसकी , बिलबिलाएगी , चीखेगी , लेकिन एक बार जो लंड की आदत लग गयी न , तो फिर पूरी जिंदगी बुर में चींटे काटेंगे , वो भी लाल वाले।

कभी , किसी को मना नहीं करेगी। खुद टांग खोल देगी। "


ये बात इन्होने ही मुझे एक दिन समझायी थी।

उनकी निगाह अभी भी छुटकी के खटमिठवा टिकोरों पे ही अटकी थीं , की छुटकी ही आगे बढ़ी और उनके आँख के आगे चुटकी बजाते बोली ,

" क्या हो गया , जीजा जी , मैं वहीँ हूँ , आपकी सबसे छोटी साली , छुटकी। पहचान नहीं रहे हैं " और छुटकी ने उन्हें खुद अंकवार में भीच लिया।


उन्होंने भी उसे खूब कस के अपनी बाहों में भीचते हुए , पहले तो गाल सहलाये , और फिर हथेली वहीँ पहुँच गयी , जहाँ थोड़ी देर पहले नदीदी निगाहें चिपकी थी। और बोले ,

" अरे तू बड़ी हो गयी है , बल्कि बड़ा हो गया है " और हलके से फ्राक फाड़ते टिकोरों को दबा दिया।

मैं एक पल के लिए डर गयी। कहीं वो बिचक ना जाए , या कुछ उल्टा सीधा बोल न दे , होली की शुरुआत ही गड़बड़ हो जायेगी।


लेकिन छुटकी बिना उनका हाथ हटाये , बस बोली ,

" धत्त , जीजू " उसके गोरे गुलाबी गाल शर्म से लाल हो रहे थे।


उठते उभारों को उन्होंने जोर से दबाया और उसके कान में होंठ लगा के पुछा ,

" हे सच बता , इन टिकोरों का स्वाद तो किसी ने चखा तो नहीं। "


" लगे रहो मुन्ना भाई " हँसते हुए वो बोले और उनकी हंसी से साफ लग रहा था की उन्होंने 'सब कुछ ' देख लिया है।

मेरे ममेरे भाई के चिकने मक्खन ऐसे लौंडिया मार्का गाल को सहलाते वो बोले ,

" अरे यार थोड़ी देर पहले जब गाडी रुकी थी न तो मैं डिब्बे में चढ़ गया था। टी टी ने बोला की इस केबिन में तुम लोग हो और उसके अलावा , पूरा डिब्बा खाली है , फर्स्ट क्लास का। उसे मैंने १०० का नोट पकड़ाया होली की गिफ्ट और वो उतर के सेकेण्ड क्लास में चला गया। मैंने डिब्बा ही अंदर से बंद कर दिया। रात में कोई स्टापेज भी नहीं है। बस अब हम तीन है। "

और बोलते हुए उन्होंने मेरी ओर जोर से आँख भी मारी।

मैं सब समझ गयी। थोड़ी देर पहले मैं अपने ममेरे भाई के साथ बर्थ पे उसकी अधलेटी , उसका लीची ऐसा सुपाड़ा चूस रही थी। और ये उन्होंने देख लिया था (अब सुबह उसने मुझे मेरी जिठानी , ननदों और नंदोई के सामने चोदा ही था। और मेरे सामने मेरे नंदोई ने उसकी हचक हचक कर गांड भी मारी थी। तो अब हम में क्या शरम बचती। )

और जैसे ये काफी न हो उन्होंने मेरे अधखुले ब्लाउज के पूरे बटन खोल दिए और मेरे गोरे गोरे जोबन छलक के बाहर आए गए। उन्होंने सीधे से मेरे भाई के हाथ पकड़ के मेरी चूंची पे रख दिया और बोला , " क्यों साल्ले , मस्त मम्मे है ना मेरी बीबी के जरा दबा के देखो न , शर्माओ अपना ही माल है। "

उन्होंने मुझे फिर आँख मारी और कहा , " हे मेरे डब्बे में आने से पहले जो चल रहा है , चलता रहना चाहिए। "

अब मैं उनका इरादा साफ समझ गयी उनकी नियत फिर मेरे भाई पे डोल गयी थी। और उन्हें मेरा सपोर्ट चाहिए था।

दिन भी जब में भी जब वो उसकी कच्ची गांड खोल रहे थे तो नंदोई जी उनका साथ दे रहे थे। नंदोई जी ने पहले तो मेरी भाई को देशी दारु पिलायी और उसके बाद उसके मुंह में अपना मोटा लौंडा ठूंसा था , तभी वो चीख नहीं पाया। उसके बाद जब नंदोई जी ने उसकी गांड मारी तो नीचे से मैंने उसे अपना देवर समझ के कस के कैंची की तरह पैर उसके पीठ पे बाँध रखा था और होंठ अपने होंठ से सील किये हुए थे।

मैं कौन होती थी अपने साजन की बात टालने वाली।

मैंने फिर से उसका नेकर सरकाया और उसका आधा खड़ा लंड अपने होंठो के बीच गपक लिया और चूसने चुभलाने लगी।

मेरे पैरों ने उसके पैरों में फंसे नेकर को पूरा निकाल दिया।

कुछ देर में उसने भी हिम्मत कर के मेरी चूंचिया हलके हलके दबानी शुरू कर दीं।

वो उसके बाल और गाल प्यार से सहला रहे थे।
मैंने 'उनकी' ओर प्यार से देखा और अपने भाई की शर्ट के नीचे के बटन खोल दिए। मेरे भाई ने इशारा समझ लिया और उसने अपनी शर्ट की बाकी बटने भी खोल के शर्ट नीचे उतार के गिरा दी। उसकी नेकर मैं पहले ही उतार चुकी थी।

उसकी पूरी नंगी देह देख के 'उनकी ' आँखे चमक गयीं।

अब आँख मारने की बारी मेरी थी।

वो मुझे देख के मुस्कराये और उनकी उस मुस्काराहट के लिए मैंने कुछ भी न्यौछावर कर सकती थी। मेरे छोटे भाई का पिछवाड़ा कौन सी चीज थी।

उनका बाल सहलाता हुआ हाथ पीठ पे उतर गया और थोड़ी देर में ही नितम्बो की दरार के ठीक ऊपर था।

मैंने अपने भाई के चिनिया केले ऐसे लिंग कि चुसाई तेज कर दी थी। मेरा मुंह अब तक उनके बित्ते भर के लंड का आदी हो चूका था। सुबह नंदोई के कलाई ऐसे मोटे लंड को चूस चुकी थी। भाई का लिंग तो ५-६ इंच का मुश्किल से था। आसानी से मैं जड़ तक चूस रही थी। मस्ती से उसकी आँखे बंद हो रही थी और अब जोर जोर सेवो मेरी चूंची के निपल वो दबा रहा था , मसल रहा था।
उन्होंने भी अब अपनी शर्ट उतार दी थी। उनका चौड़ा सीना मेरे आँखों के सामने था। कुछ देर में ही उन्होंने मेरे भाई के सर को अपनी जांघो पे रख दिया।

मेरे हाथ तो खाली ही थे , मैंने शरारत से उनकी जींस का जिपर खोल दिया। ' वो ' कुनमुना रहा था। मेरी शैतान उँगलियों ने अंदर घुस के उसे जगाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में वो फुफकारने लगा। और मैंने उसे निकाल के बाहर कर दिया।

पूरे एक बित्ते का मोटा कड़ियल नाग , बिल तलाशता ,…

उनकी उंगलिया भाई के चिकने गाल को टटोलतीं तो कभी उसके रसीले होंठो को। और अब वो मोटा लिंग भी गाल सहला रहा था।

उसके गाल दबा के मुंह चियरवा के , होंठ खोलते हुए बोले वो ,

" साल्ले , बहनचोद , तेरी बहन का मुंह तो तेरे साथ बीजी है मेरा काम कौन चलायेगा , चल तू ही घोंट। "

और जब तक मेरा भाई कुछ समझता , सुपाड़ा , उसके मुंह के अंदर था।

मैं उसका लंड चूस रही थी और उस की हालत देख के मुस्करा रही थी।

अब वो लाख चूतड़ पटक ले ये उसे पूरा लंड घोंटा के ही मानेंगे।
मैंने एक मिनिट के लिए उसका लंडनिकाला और उसे समझाया ,

" अरे भैया , मुंह पूरा खोलो , एकदम आ आ कर के , जबड़े को लूज रखो "

और उसने मेरी सलाह मान ली। कुछ ही देर में 'उनका ' आधा लंड अंदर था और अब मेरा भाई जोर जोर से लंड चूस रहा था।
मैं कभी अपने भाई के बॉल्स सहलाती , कभी पी हॉल जीभ से सुरसुराती , और उसका हौसला बढाती।

अब वो अपने साले का सर पकड़ के जोर जोर से उसका मुंह चोद रहे थे। उनके चेहरे से लग रहा था की उन्हें कितना मजा आ रहा है।

वो बिचारा गों गों कर रहा था , लेकिन साथ में चूस भी रहा था।

" साल्ला , बहुत मस्त लंड चूसता है " मुझसे वो बोले।
"
मैं भी मुस्करा के बोली , " अरे आखिर भाई किसका है , मैं भी तो इतना जबरदस्त लंड चूसती हूँ ".


उनकी निगाह बार सरक के उसकी दुबदुबाती गांड की और जा रही थी। और मैं समझ गयी थी कि उन का मन किधर है।

मैंने बाजी बदली , और उन्हें आँख मार के इशारा किया , फिर बोली

" बिचारे का मुंह थक गया होगा जरा उसे अपनी रसमलाई चटा दूँ "

और थोड़ी देर में मैं और मेरा भाई 69 की पोज में थे , मैं ऊपर वो नीचे।

और उनका लंड जोर से फड़फड़ा रहा था।

मैंने धीरे से बोला "बस थोड़ी देर, फिर दिलवाती हूँ तुझे मजा। "

" क्यों भैया , आ रहा है रस मलायी का मजा " उसके मुंह में चूत रगड़ती हुयी मैं बोली।


" हाँ दीदी , " लपालप चूत चाटते हुए वो बोला। इनकी बात एकदम सही थी , चाटने में मेरा भाई एकदम मस्त था।

" हे जरा एक तकिया देना " मैंने 'इनसे 'कहा औ हलके से आँख मार दी।

वो एक क्या , जीतनी तकिया थीं सब ले आये और वो मैंने अपने भाई के चूतड़ के नीचे लगा दी। अब वो अच्छा ख़ासा ऊपर उठ गया था।

ट्रेन अपनी रफ्तार से चली जा रही थी। ट्रेन की खिड़की से पूनो की चांदनी हम सबको नहला रही थी।

फर्स्ट क्लास की बर्थ अच्छी खासी चौड़ी होती है। और मैं और मेरा ममेरा भाई , मस्ती से 69 के मजे ले रहे थे।

वो आके मेरे सर की और बैठ गए थे , और मुझे अपने साले का लंड चूसते हुए देख रहे थे।

मैंने अपने ममेरे भाई की दोनों टाँगे एकदम ऊपर उठा रखी थीं और मेरे हाथ कभी उसके बॉल्स सहलाते तो कभी गोरी गोरी लौंडिया छाप चूतड़ ,

और एक बार मैंने उन्हें दिखा के अपने भाई के पिछवाड़े के छेद में ऊँगली कर दी।

वास्तव में बड़ी कसी थी। पूरा जोर लगाने पे भी सिर्फ टिप घुस पायी।

वो इशारा समझ गए थे। उनका मोटा लंड बेकरार हो रहा था , मैंने इशारे से बरजा और पल भर के लिए भाई के लंड को छोड़ के पति का लंड गपक लिया।

रोज के आदी मेरे होंठ जम के चूसने चाटने लगे।


ये नहीं था की मैंने , अपने भाई को पति के सामने इग्नोर कर दिया हो।

अब उसके लंड कि हाल चाल मेरी गोरी उंगलिया ले रही थी , जोर जोर से मुठिया के। और अंगूठा और उंगली दूसरे हाथ की खूब थूक लगा के , उसके गांड के छेद को चौड़ा करने पे तुली थी।

मेरे पति की निगाहने उसी गोल छेद पे टिकी थीं।

मैंने अपने दोनों पैरों को अपने भाई के हाथों पे टिकाया , पूरी देह का जोर उसे पे डाल दिया , और अपनी चूत से उसका मुंह अच्छी तरह सील कर दिया। दोनों जाँघों ने उसके सर को दबोच लिया।


और अब मैंने उनके उनके वावरे तड़इपते लंड को आजाद किया और अपने हाथो से ही ममेरे भाई के गांड के दुबदुबाते छेद पे सटा दिया।

फिर क्या था ' वो ' तो पागल हो रहे थे , उन्होंने उस के गोल मटोल छोटे छोटे चूतड़ों को पकड़ के हचाक से पूरा करारा धक्का दिया।

ऐसे धक्के का मतलब मुझसे अच्छा कौन समझ सकता था।

मेरे नीचे दबा मेरा भाई तड़प रहा था , मचल रहा था। दर्द से पिघल रहा था।

उसके इस दर्द को मुझसे अच्छा कौन समझ सकता था।

लेकिन ये समय बेरहमी का था , जोर जबरदस्ती का था , और मैंने नहीं चाहती थी की मेरे पति के मजे में कोई विघ्न पड़े।

मैंने जोर से अपनी बुर उसके मुंह पे भींच दी , अपने पूरे देह से उसे और जोर से दबाया और अपने दोनों हाथो से उसके तड़पते ,फड़फड़ाते पैरों को फ़ैला के अलग रखा।

वो जोर से धक्के मारते रहे , उसके गोल मटोल चूतड़ों को पकड़े हुए , सुपाड़ा थोडा घुस गया था।

नीचें वो चूतड़ पटक रहा था , लेकिन मेरे और उनके मिले जुले जोर के आगे बिचारे की क्या चलती।


दोचार धक्को के बाद , अब पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया और ऩीने चैन कि साँस ली , अब वो लाख गांड पटके , लंड बाहर नहीं निकल सकता था।

उन्होंने भी हमला रोक दिया।

मैंने अपनी देह का दबाव हल्का कर दिया और एक बार फिर से अपने छोटे ममेरे भाई का लंड मुंह में ले के चुभलाने चूसने लगी।

वो भी कम नहीं था , उसने फिर मेरी चूत रस मलायी का मजा लेना शुरु कर दिया।


यही तो हम दोनों चाहते थे।

उसका ध्यान , दुखती गांड पर से एक पलके लिए हट गया।
गांड के छल्ले को भी मेरे मर्द के मोटे लंड की आदत पड़ गयी।

और 'उन्होंने ' फिर एक जबरदस्त धक्का मारा और लंड गांड के अंदर पेलना शुरू कर दिया।

वो बिचारा गों गों कर रहा था।

उन्होंने इशारा किया और मैं हट गयी। मैं जा के अपने भाई के सर के पास बैठ गयी और उसका सर सहलाने लगी।

वो अब खूब मजे से हलके हलके लंड पेल रहे थे।
'उन्होंने ' अपना मूसल जैसा लंड , जो एक तिहाई अंदर घुस चुका था , सुपाड़े तक बाहर खिंचा और मैं समझ गयी क्या होनेवाला है।

मैंने उन्हें आँख से इशारा किया कि , क्या मैं अपने मोटे मोटे मम्मे , इसके मुंह में डाल के इसका मुंह बंद करा दूँ , लेकिन उन्होंने सर हिला के मना कर दिया।

फिर भी मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कलाई पे रख के कस के दबा दिया और अगले पल तूफान आ गया।

उन्होंने पूरी ताकत से लंड अंदर पेला , और रगड़ता , दरेरता , घिसटता , वो अंदर घुसा।

और जोर की चीख केबिन में गूंजी। अगर मैंने पूरी ताकत से उसके हाथ न पकड़ रखा होता तो वो शायद उछल जाता।

लेकिन पूरे कोच में कोई नहीं था और मेरे भाई बिचारे कि दर्द भरी चीख किसी ने नहीं सुनी।
दूसरा धक्का पहले से भी तेज था और चीख भी और , ह्रदय विदारक।

बिना रुके वो धक्के पे धक्का मार रहे थे।

मुझे याद आया , किसी कि बात की जब तक जिसकी गांड मारी जाय वो दर्द से बिलबिलाए नहीं , चीखे , चिल्लाये नहीं और गांड उसकी दर्द से परपराए नहीं , जब तक वो दिन तक टांग फैला के न चलें , न गांड मारने वाले को मजा आता है और ना गांड मरवाने वाले को।
चीखें कम हो गयी थी लेकिन दर्द अभी भी झलक रहा था।

अचानक मुझे आया , सुबह जब इन्होने इसकी ली थी और बाद में नंदोई जी ने भी , बस आधे लंड से लिया था वो भी बहुत हौले हौले।

ये मैं सुहागरात में ही सीख गयी थी की पहली दो बार तो प्यार मुहब्बत से होता है , असली हमला तो तीसरी बार ही होता है जब दोनों एक दूसरे के आदि हो जाते हैं , और यही हो रहा था।


अचानक वो रुक गए। अब उनका ३/४ लंड बेसाख्ता मेरे ममेरे भाई के गांड में धंस गया था और वो उसकी लम्बाई मोटाई का आदी हो रहा था।

अब वो उसके गालों को चूम रहे थे , उसके बाल सहला रहे थे। और उससे अचानक जोर से बोला ,
" चल साल्ले बन कुतिया , तुझे कातिक में कुतिया जिस तरह , चुदती है उस तरह चोदुंगा। "

मुझे अचरज हुआ , कि बिना कुछ देर किये वो कुतिया बन गया।
और अब जो उन्होंने धक्का मारा , तो पूरा लंड अंदर।

आधे घंटे हचक के उसे चोद के ही वो झड़े , और सारी मलायी गांड में।

और उसे नीचे दबोच के लेट गए

कुछ देर तक जीजा साले उसी तरह लेटे रहा।

और फिर उठ के अपने बैग से उन्होंने दारु की एक बोतल निकाली।
वो फ
वैसी ही जिसे सुबह उन्होंने और नंदोई जी ने मिलकर पिया था और छोटे भाई को पिलाया था। और मेरी ननदो ने मुझे पिलाया था और मैंने नशे में रंग से रेंज अपने भाई को देवर समझ के उसके ऊपर चढ़ गयी , और मौके का फायदा उठा के मेरे नंदोई जी ने भी , उसे सैंडविच बना दिया।

एक बार फिर उन्होंने आधे से ज्यादा बोतल उसे पिला दी और बाकी मैं और वो चट कर गए और कुछ ही देर में उसका दर्द गायब था।

मैं नशे में बिना सैंया और भैया में भेदभाव किये बिना दोनों के लिंग की सेवा अंगुलियो और होंठो से कर रही थी।

थोड़ी देर में उन्होंने मेरे भाई को जोश दिला के मेरे ऊपर चढ़ा दिया। सुबह की तरह। सुबह धोके में हुआ था अबकी नशे में।

और सुबह की ही तरह जैसे नंदोई जी पीछे से उसके ऊपर चढ़ गए थे , वो उसके ऊपर चढ़ गए , और हचक हचक कर ली।

जब वो उतरे तो बस सुबह होने वाली थी और मेरे मायके का स्टेशन आने वाला था।

हम लोग जल्दी जल्दी तैयार हुए। गाडी वो धीमी हो रही थी , वो फ्रेश होने बाथरूम गए तो मैंने , अपने ममेरे भाई से आँखा नचाकर पुछा ,

" हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "

RE: मजा पहली होली का, ससुराल में - amolgavale - 31-05-2014

हे बोल , ज्यादा मजा किसके साथ आया , मेरे साथ या जीजू के साथ। "
वो हंसने लगा और बोला , " दी बुरा मत मानना , जीजू के साथ। "

मेरे कजिन का घर स्टेशन के पास ही था , इसलिए वो जाने लगा , और हम लोगो ने रिक्शा पकडा।

जाने के पहले वो इनसे गले मिला , तो ये बोले , साले ये सिर्फ सुहागरात थी. गर्मियों कि छुट्टी में आना तो पूरा हनीमून होगा। "

"एकदम जीजा जी ये कोई कहने कि पन्द्रह दिन के लिए आउंगा कम से कम। " वो बोला।

मुझसे मिलते हुए कान में बोला , " दी तेरी ससुराल में तेरी छोटी नन्द बहुत मस्त है , लेकिन सबसे मस्त हैं तुम्हारी सासु , क्या रसीला भोंसड़ा है उनका , एकदम शहद। आना तो पड़ेगा ही। "

५ मिनट में ही मैं अपने मायके में पहुँच गयी और दरवाजे पे छुटकी मिली मेरी सबसे छोटी बहन, जो ९ वें में पढ़ती थी।


छुटकी , मेरी सबसे छोटी बहन। सबसे छोटी हम तीन बहनो में , लेकिन सबसे नटखट। मुझसे ४ साल छोटी और मंझली से डेढ़ साल। नौंवी में थी ( उमर का अंदाजा आप लगा लें , वैसे ही लड़कियों औरतों से उम्र पूछी नहीं जाती ).

एक छोटी सी पुरानी फ्राक में ( होली के दिन वैसे ही पुराने कपडे पहने जाते हैं , लेकिन उसका असर कई बार खतरनाक हो जाता है ), जो कई जगहो पे घिस भी गयी थी और टाइट भी।

उसको देख के तो उसके जीजा को जैसे मूठ मार गयी। एक दम ठिठक गए।

और बात भी तो थी।

लड़कियों पे जब जवानी आती है न तो झट से आ जाती है , बस वही छुटकी के साथ हो रहा था। चेहरा , आँखे उनमें तो भोलापन और शरारत थी लेकि देह जवानी ने दस्तक कब की दे दी है , उसकी चुगली कर रहीथी।

और उसके जीजा कि निगाहें बस वहीँ चिपकी थी।

उसके कच्चे टिकोरे , अब बड़े हो गए थे , कच्ची हरी अमिया की तरह और टाइट फ्राक से उछल , छलक रहे थे। कमर तो उसकी पतली थी ही , लेकिन अब हिप्स भरे भरे , पर तब भी छोटे , ब्वायिश।

लेकिन वो तो थे ही इस तरह के चूतड़ के शौक़ीन।

मुझे उनकी और उनके नंदोई से हुयी बात याद आगयी , जब उन्होंने बोला था कि वो छुटकी को ले आयेंगे और फिर दोनों मिल के लेंगे।

और अब उसके बड़े बड़े टिकोरों को देख के उनके इरादे पक्के हो गए थे।



"कच्चे टिकोरों को दबाने , नोचने , मसलने का मजा ही अलग है। एकदम खटमिठवा स्वाद ,…

और दूसरे , जो लौंडिया , इस उम्र में , चूंचिया उठान में दबवाने मिंजवाने लगती है , उसे के एक तो जोबन बहुत जल्दी खूब गद्दर हो जाते हैं और दूसरे , वो कभी को मसलने मिसवाने से मना नहीं करती , चाहे गाँव का मेला हो या शहर की बस हो।

और फिर सारे लौंडो के बीच सबसे पापुलर हो जाती है। और अगर इसी उमर में उसे दो तीन बार रगड़ के चोद दो न , भले बहुत परपराएगी उसकी , बिलबिलाएगी , चीखेगी , लेकिन एक बार जो लंड की आदत लग गयी न , तो फिर पूरी जिंदगी बुर में चींटे काटेंगे , वो भी लाल वाले।

कभी , किसी को मना नहीं करेगी। खुद टांग खोल देगी। "


ये बात इन्होने ही मुझे एक दिन समझायी थी।

उनकी निगाह अभी भी छुटकी के खटमिठवा टिकोरों पे ही अटकी थीं , की छुटकी ही आगे बढ़ी और उनके आँख के आगे चुटकी बजाते बोली ,

" क्या हो गया , जीजा जी , मैं वहीँ हूँ , आपकी सबसे छोटी साली , छुटकी। पहचान नहीं रहे हैं " और छुटकी ने उन्हें खुद अंकवार में भीच लिया।


उन्होंने भी उसे खूब कस के अपनी बाहों में भीचते हुए , पहले तो गाल सहलाये , और फिर हथेली वहीँ पहुँच गयी , जहाँ थोड़ी देर पहले नदीदी निगाहें चिपकी थी। और बोले ,

" अरे तू बड़ी हो गयी है , बल्कि बड़ा हो गया है " और हलके से फ्राक फाड़ते टिकोरों को दबा दिया।



मैं एक पल के लिए डर गयी। कहीं वो बिचक ना जाए , या कुछ उल्टा सीधा बोल न दे , होली की शुरुआत ही गड़बड़ हो जायेगी।


लेकिन छुटकी बिना उनका हाथ हटाये , बस बोली ,

" धत्त , जीजू " उसके गोरे गुलाबी गाल शर्म से लाल हो रहे थे।


उठते उभारों को उन्होंने जोर से दबाया और उसके कान में होंठ लगा के पुछा ,

" हे सच बता , इन टिकोरों का स्वाद तो किसी ने चखा तो नहीं। "




" धत्त जीजू , उम्हह , हटिये ,… नहीं , आप भी न , छुआ भी नहीं " और छुटकी ने खुद उनके हाथो के ऊपर अपने हाथ रख दिए।

" मैं चख लूँ , मुझे तो मना नहीं करेगी " और उनके होंठ फ्राक के ऊपर से ही सीधे टिकोरों के नोक पे , और हलके से कचाक से उन्होंने काट लिया।

जीजा साली की होली शुरू हो गयी थी।

बिना छुड़ाने की कोशिश किये , छुटकी ने हलकी से सी सिसकारी भरी और बोली , " आप तो मेरे जीजा हैं , इकलौते जीजा। आप का इत्ता इंतज़ार कर रही थी मैं। "

तब तक अंदर से माँ की आवाज आयी , " अरे जीजा को अंदर भी घुसने देगी या बाहर ही खड़ा रखेगी। "

" अरे किसकी हिम्मत है जो मुझे अंदर घुसने से रोके, वो भी ससुराल में " .
द्विअर्थी डायलाग बोलने में तो ये सबसे आगे थे।

छुटकी ने अटैची पकड़ी , और हम तीनो अंदर आँगन में।

और ये फिर कैच कर लिए गए स्लिप में। उनकी मझली साली के द्वारा।



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होली का असली मजा--11

मझली का कुछ दिनों में हाईस्कूल बोर्ड का इम्तहान शुरू होने वाला था। लम्बी हो गयी थी। ५ फिट तो डांक ही रही थी। गोरी गुलाबी देह तो हम तीनो बहनो की थी ,

लेकिन जहां छुटकी पे जवानी बस आ रही थी , मंझली पे उसका कब्ज़ा पूरा था। उभार 30 -31 सी के बीच रहे होंगे और पिछवाड़ा भी भरा भरा था। उसने भी एक पुराना टॉप पहना था , जिसकी ऊपर की बटन पहले से टूटी थी। और टीन ब्रा साफ दिख रही थी।

और इस बार भी बिना इस बात कि परवाह किये कि मम्मी भी खड़ी हैं , उन्होंने साली के गदराते जोबन की नाप जोख शुरू कर दी।

और मम्मी ने मुझे अंकवार में भर लिया , जोर से भींच लिया।

मम्मी मेरे लिए माँ से ज्यादा , बहन की तरह , एक सहेली की तरह थीं।

ये पहली बार था कि होली की तैयारियों में मैं उनके साथ नहीं थी।
शादी के बाद मैं पहली बार मायके आयी थी।
कुछ देर हम दोनों एक दूसरे को ऐसे ही भिंचे खड़े रहे।


फिर वो मेरे कान में बोली , " सुन , समधन ने शरबत पिलाया की नहीं। "



मैं खिलखिला उठी। मम्मी भी ना ,…

" हाँ पिलाया था , लेकिन ग्लास में। और सिर्फ उन्होंने ही नहीं , ननद , और जेठानी ने भी " मैं बोली।

" तुम बेवकूफ हो और मेरी समधन , सीधी संकोची। सीधे कुप्पी से पिलाना चाहिए था ' वो बोलीं।


हँसते हुए मैंने पुछा ,"

मम्मी , और आप अपने दामाद को ,"


" एकदम पिलाऊंगी , और सीधे कुप्पी से " मेरी बात काट के वो बोली और जोड़ा बल्कि चटनी भी चखाऊंगी। 'मम्मी ने हँसते हुए कहा।

उधर आँगन में में जीजा साली में धींगामस्ती चल रही थी। इनका हाथ मंझली के उभारो पे था और दूसरी छुटकी के टिकोरों के मजे ले रहा था।

मम्मी ने छेड़ा।
" अरे नए माल के आगे , … जरा इधर भी तो आओ। "

वो आये और मम्मी के पैर छूने को झुके तो मम्मी ने उन्हें पकड़ के उठा लिया और खुद गले लगाती बोलीं ,


"हमारे यहाँ सास दामाद गले मिलते हैं और होली में तो ,… "

जैसे उन्होंने मम्मी की बात समझ कर तुरंत मम्मी को गले लगा के भींच लिया।

मैंने उन्हें चिढ़ाया ,

" मम्मी , आप कि कुछ चीजें बहुत पसंद है "

और जैसे इशारा पा के अपने सीने से मम्मी के भारी भारी बूब्स ( 38 डी डी ) जोर से दबाये और हाथ , मम्मी के चूतड़ सहलाने लगे।

" आनी भी चाहिए " मम्मी ने भी इन्ही का साथ लेते हुय मुझे झिड़का। और जोर से अपना 'सेण्टर ' उनके ' सेंटर ' पे दबाया। फिर इन्हे चिढाते बोलीं ,

" क्यों मेरा जोरदार है या मेरी समधन का "

" मम्मी , आप दोनों के जोरदार है। दोनों का एक दूसरे से बढ़कर है " वो जोर से दबाते बोले।

" तूझे तो पॉलिटिक्स में होना चाहिए था " मम्मी ने जोर से उनके गाल पिंच कर के बोला बहनो फिर मेरी छोटी को डांटा।

" हे तेरे जीजा इतने खड़े हैं बैठने को तो ,… "

बात काट के मैंने बहनो का साथ दिया , डबल मीनिंग डायलाग में

" अरे मम्मी ससुराल में नहीं खड़े होंगे तो फिर कहाँ होंगे "

मम्मी तो पूरी दलबदलू निकली और बोली

" तेरी बात आधी सही है , खड़े होने का काम तो मेरे दामाद का है ,लेकिन बैठाने का काम तो तेरी बहनो का है ".

हम तीनो बहने हँसते हँसते लोट पोट हो गए।

छुटकी उनका सामान ले के , मेरे कमरे में गयी।

मैंने मम्मी के साथ किचेन में और मंझली उन्हें बिठाने में लग गयी।


औरतों का प्राइवेट रूम बेड रूम के अलावा कोई होता है तो वो उनका किचेन , जहाँ वो मन की बातें कर सकती हैं। के
मम्मी ने एक एक बात कुरेद के पूछी।

फिर मैंने मम्मी से अपने मन की बात पूछी ,

"मम्मी मैं सोच रही हूँ छुटकी को ,… "

" क्या हुआ छुटकी को। ।" मम्मी ने इनके लिए नाश्ता निकालते पुछा।

" मैं सोच रही थी , .... " मेरे समझ में नहीं आ रहा था की कैसे कहूं कि मम्मी हाँ कर दें और इनके मन कि मुराद और नंदोई जी से किया इनका वायदा पूरा हो जाया।

फिर मम्मी बोली , " कहानी मत बना बोल न "

" मैं सोच रही थी कि जब हम लौटेंगे तो छुटकी को भी अपने साथ ले चलूँ , आखिर अभी तो उस कि छुट्टियां ही हैं और वहाँ मेरा भी मन लगा रहेगा। " मैंने रुकते रुकते बोला /




" अरे यही तो मैं भी सोच रही थी लेकिन सोच नहीं पा रही थी कैसे कहूं तेरी नयी नयी ससुराल , और फिर दामाद जी जाने क्या सोचें। बात ये है की , मंझली के बोर्ड के इम्तहान है और छुटकी है चुलबुली। उसको तंग करती रहेगी। और अगर मंझली या मैंने कुछ बोल दिया तो मुंह फुला के बैठ जायेगी। और मैं भी अपने काम में बीजी रहती हूँ , इसलिए "

" अरे मम्मी , आप भी न , मैं बोल दूंगी न इनसे। मेरी आज तक कोई बात टाली है इन्होने , और फिर उनकी सबसे छोटी साली है , १५-२० दिन के बाद मंझली के इम्तहान ख़तम हो जायेंगे तो वापस भेज दूंगी। " अपनी खुशी छिपाते मैं बोली।

" अरे तेरी छोटी बहन है जब चाहे तब भेजना। इसका स्कूल तो एक महीने के बाद ही खुलेगा। " मम्मी बोली।


तब तक बाहर से जीजा सालियों की छेड़खानी , होली की शुरुआत की आवाज आ रही थी। और मेरे लिए बुलावा भी।

वो दोनों चाह रही थी की मैं भी होली के खेल में उनके साथ शामिल हो जाऊं। मैंने साफ बरज दिया।


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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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होली का असली मजा--12

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होली का असली मजा--12

वो दोनों चाह रही थी की मैं भी होली के खेल में उनके साथ शामिल हो जाऊं। मैंने साफ बरज दिया। बोला।

" तुम दोनों , किस्मत वाली हो तेरे जीजा जी हैं , मेरे तो कोई जीजा थे नहीं। तो मैं क्यों खेलूं , हाँ चल अम्पायर का काम कर देती हूँ। "

और फिर उनको नियम बताये ,
" हे ये मेरी प्यारी बहने , तुमसे छोटी है , इसलिए पहले ये रंग डालेंगी और तुम चुपचाप बिना ना नुकुर किये डलवा लेना। "

" और जब मैं डालूंगा , और इन दोनों ने न डलवाया तो , " उन्होंने सवाल उठाया।

" वाह जीजू आप इत्ते भोले हैं ना , हमारे मना करना पे बिना डाले छोड़ देंगे "

आँख नचाकर , पूरी बाल्टी गाढ़ा लाल रंग उन पे डालते हुए मंझली बोली। छुटकी तो पहले ही अपनी छोटी सी हथेली पे पक्के लाल काही रंगो का कॉकटेल लगा के तैयार खड़ी थी। उसके जीजू के गाल अगले पल उसके हाथों में थे।



यही तो हर जीजा का सपना होता है , कुँवारी रस से पगी , सालियों की हथेलियां उसके गालों पे और उसके हाथ साली के शरमाते , कपोलों पे।

छुटकी अपने हाथों का इस्तेमाल कर रही थी तो मंझली , कभी रंग भरी पिचकारी का तो कभी सीधे बाल्टी का और साथ में उसके आँखों की , जोबन कि पिचकारियाँ जो चल रही थी सो अलग।


लेकिन कुछ ही देर में उनका नंबर आ गया , तो सबसे पहले पकड़ी गयी मंझली।

उन्होंने अपने हाथों में छुटकी गाढ़े रंग लगा लिए थे। शुरुआत साली के मालपुआ मीठे और नरम गालों से हुयी। गलती गालों की थी , वो इतने चिाकने जो थे।



हाथ सरक के टॉप पे , और टॉप का एक बटन पहले ही टूटा था , इसलिए आसानी से एक लाल रंगा लगा हाथ अंदर , जोबन मर्दन में।

ऊईईईईईईइ जीजू , मंझली ने सिसकी भरी , जब जोबन रस लेने के साथ , उन्होंने उसके निपल पिंच कर लिए।

पहले उन्होंने हलके से सहलाया , दबाया , और फिर जब देखा साली , बहुत नहीं उचक रही है , तो जोर जोर से रगड़ने मसलने लगे। नतीजा ये हुआ की टॉप के दो और बटन टूट गए और दूसरा हाथ भी अंदर।

" नहीं , जीजू यहाँ नहीं , प्लीज हाथ बाहर निकालो न , " मंझली मजे से सिसकी लेते बोली।

साली , वो भी एक हाईस्कूल में पढ़ने वाली किशोरी के उठते उभारों से , होली में किसी जीजा ने हाथ हटाया है कि वही हटाते।


उन्होंने उसकी चूंची और जोर से दबाई और चिढ़ाया , ""अरे साल्ली जी , ई का मेरे साले के लिए बचा के रखी हो "
और अब दोनों हाथ चूंची मर्दन में लग गए और लगे हाथ बीच बीच में निपल भी पिंच कर रहे थे। "

मंझली जोर जोर से सिसकारी भर रही थी ,उचक रही थी।


और कुछ जीजू का हाथ स्कर्ट के अंदर , गोरी किशोर जांघो को रगड़ने मलने में लग गया। और जब तक मंझली की चड्ढी के ऊपर से , उन्होंने उसकी चुन्मुनिया दबा दी और रस लेंने लगे।

मझली का तन और मन दोनों गिनगिना रहा था.

और उसके जीजू , उसको आज छोड़ने वाले भी नहीं थे। उंगली तो सिर्फ ट्रेलर था। अभी तो प्यारी साली जी की कुँवारी , किशोर चुन्मुनिया में बहुत कुछ जाना था।

उनकी ऊँगली की टिप अब गुलाबी परी के अंदर घुस गयी थी और गोल गोल घूम रही थी और ऊपर दूसरा हाथ उभरते जोबन की घुंडियों को गोल गोल घुमा रहा था। क्या मस्त चूंचिया हैं साली की , वो सोच रहे थे। साथ में अपना मोटा खड़ा खूंटा , उसके उठी स्कर्ट के अंदर , बार बार रगड़ रहे थे।

मंझली ने अब सारे रेस्जिस्टेन्स छोड़ दिए थे , बहाने के तौर पे भी। इतने दिनों से यही तो ये सोच रही थी , जब से उसने जीजू को देखा था , कोहबर में घुसते समय जब जीजू उसे रगड़ते हुए घुसे थे, और उस के कान में बोला था , होली में बचोगी नहीं और उस ने भी मुस्करा के जवाब दिया था ,


बचन कौन साल्ली चाहती है। जीजू बड़े रसीले थे , एकदम कलाकार। ऊँगली अंदर बाहर हो रही थी , साथ में उनकी हथेलियां भी उसकी रामपियारी को रगड़ रही थीं , मसल रही थीं।


छुटकी पीछे से जीजा की शर्ट उठा के उनके पीठ में रंग पोत रही थी , तो कभी बाल्टी से रंग उठा के सीधे उन्हें नहला देती।
मंझली झड़ने के कगार पे थी , और बस एक मिनट का बहाना बना के , वो चंगुल से छूटी और सीधे स्टोर में , रंगो की सप्लाई लेने,

बस आँगन में छुटकी बची , और उसके जीजू।

छुटकी छोटी थी लेकिन अब बच्ची नहीं थी , और वो देख रही थी की जीजू के हाथ मझली के साथ कहाँ सैर सपाटा कर रहे थे।

और अगले ही पल उसके किशोर गाल जीजू के हाथ में थे। छुटकी कुछ रंग से लाल हो रही थी , कुछ लाज से।

लेकिन लालची हाथ जो एक साली का जोबन रस ले चुके , दूसरी को क्यों छोड़ते। और उन्होंने छोड़ा भी नहीं।

लेकिन गलती छुटकी की थी , बल्कि उसकी पुरानी घिसी हुयी टाइट फ्राक की , जैसे उनका हाथ घुसा ,…


चररररर चरररररर,.... फ्राक का ऊपरी हिस्सा फट गया।

और छुटकी के टिकोरे , … एक टिकोरा आलमोस्ट बाहर ,




इसी के लिए तो वो तड़प रहे थे ,और सिर्फ वही क्यों , मेरे नंदोई भी.
भोर की लालिमा की तरह , ललछौहाँ , बस एक गुलाबी सी आभा।

लेकिन उभार आ चुके थे , अच्छे खासे , वही चूंचिया उठान के दिलकश उभार जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते है।

और उठती चूंचियो की घुन्डियाँ भी,



एक पल तो उन्हें लगा की कही छुटकी नाराज न हो जाय , लेकिन फिर सामने एक किशोरी की जवानी के दस्तक दे रहे जोबन दिख जायं तो फिर तो सब डर निकल जाता है।

और वहीँ आंगन में , उन्होंने उन मस्त टिकोरों का रस लेना शुरु कर दिया। पहले ओ झिझक के हलके हलके सहलाया , दबाया फिर जोर जोर से मसलने रगड़ने लगे।



छुटकी कुछ सिसकी , कुछ चीखी , कुछ हाथ पैर चलाये , लेकिन उनके पकड़ के आगे मैं नहीं बची , मेरा भाई नहीं बचा , मझली नहीं बची , तो उस कि क्या बिसात थी।

उनकी शैतान उँगलियों ने अब उसके छोटे छोटे निपल्स से खेलना शुरू कर दिया और दूसरा हाथ फ्राक उठा के सीधे , उस कच्ची कली के भरते हुए नितम्बो पे मसलने , मजे लेने लगा.

और आगे से जैसे ही हाथ दोनों जांघो के बीच में पहुंचा , छुटकी कि सिसकियाँ तेज हो गयीं।

और मंझली भी दोनों हाथों में पेंट पोते, अपनी स्कर्ट में रंगो के पाउच लटकाये , फिर से रंग स्थल पे पहुँच गयी थी। लेकिन जीजू तो छुटकी के साथ ,


उसने मुड़ के मेरी ओर देखा ,
मैं चौखट पे बैठ के अपने 'उन की ' सालियों के साथ होली का नजारा ले रही थी।

मैंने मंझली को उसके जीजू के कमर के नीचे की ओर इशारा किया , उसने हामी में सर हिलाया , मुस्करायी और चालु हो गयी।

" इनके 'दोनों हाथ तो फंसे थे ही , एक छुटकी के टिकोरों पे और दूसरा उसकी रेशमी जाँघों के बीच। बस मंझली को मौका मिल गया। उसके दोनों हाथ जीजू के पिछवाड़े , पैंट में घुस गए। आखिर थी तो मेरी ही बहन।


उसे कौन सिखाने की जरूरत थी। थोड़ी देर तक तो उसने नितम्बो पे हाथ रगड़ा , रनग लगाया और फिर एक ऊँगली , पिछवाड़े के सेंटर में।

अब दोनों सालियाँ आगे पीछे और वो सैंडविच बने ,

छुटकी को भी मौका मिला गया और उसने अपने छोटे छोटे हाथो से उनके हाथों को अपने उरोजों और जांघो के बीच दबोच लिया। बस। अब वो मंझली के हाथ हटा भी नहीं सकते थे।


मंझली के दोनों हाथ उनके पैंट के अंदर थे। आखिर थोड़ी ही देर पहले तो उसकी जीजू पैंटी के अंदर हाथ डाल के उसकी चुनमुनिया रगड़ रहे थे , कच्ची चूत में ऊँगली कर रहे थे , वो भला क्यों मौका छोड़ देती।
बस उसका एक हाथ जीजा के गोल मटोल नितम्बो की हाल ले रहा था तो दूसरे ने आगे खूंटे को रंगना रगड़ना शुरू किया।

खूंटा तो पहले ही तना था , छुटकी के छोटे छोटे चूतड़ो पे रगड़ते हुए ,और अब जब साली का हाथ पड़ा तो एकदम फुंफकारने लगा। पूरे बित्ते भर का हो गया। मंझली ने एक और शरारत की , आखिर शरारत पे सिर्फ उसके जीजू कि ही मोनोपोली तो थी नही।

उसने एक झटके से चमड़ा पकड़ के खीच दिया और , सुपाड़ा बाहर।

पता नहीं जिपर उन्होंने खोला , छुटकी से खुलवाया या मंझली ने मस्ती की।

रंग पेंट में लीपा पुता चरम दंड बाहर था और मंझली अब खुल के उसके बेस पे पकड़ के रंग लगा रही थी , कभी मुठिया रही थी।

उन्होंने छुटकी का हाथ पकड़ के उसपे लगाया , थोड़ी देर तक वो झिझकती रही , न न करती रही , फिर उसने भी अपने जीजू के लंड को ,
आब आगे से छुटकी हलके सुपाड़े को दबा रही थी अपनी नाजुक उँगलियों से और पीछे से मंझली।

किसी भी जीजा के औजार को होली के दिन उसकी दो किशोर सालियाँ मिल के एक साथ रंग लगाएं तो कैसा लगेगा ?

उनकी तो होली हो गयी , लेकिन टिकोरे का मजा लेना उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा।

पर रंग में भंग पड़ा , या कहूं मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का।



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होली का असली मजा--13

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होली का असली मजा--13


मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का।

बाहर से भाभियों के गाने की होली के हुड़दंग की जोर जोर से आवाज आ रही थी। बस लग रहा था वो हम लोगो के घर की और आ रही हैं।

उसने जल्दी से जीजू के पैंट से हाथ निकाला , और बोला , अरे जीजू भाभियाँ कालोनी वाली

और , दुछत्ती की ओर भागी।

उसके जीजू उसके पीछे पीछे , लेकिन वो उनके पहले छत पे पहुँच गयी।

इस बीच अब ये लग रहा था , वो बजाय हमारे यहाँ आने के सामने वाले घर में पहुंचगयी है और अब १०-१५ मिनट में हम लोगों के यहाँ आ धमकेगी।

और वो भाभियाँ थी तो पहला हमला उनके नए नंदोई होते , लेकिन हम ननदे भी कहाँ बचती। और मैं तो ससुराल से आयी ही इसलिए थी वहाँ ननदो को रगड़ा यहाँ भाभियों को।

मैंने और छुटकी ने जल्दी जल्दी बाल्टियों में रंग भरा , अबीर गुलाल , रंग पेंट रखा और भांग वाली गुझिया और दहीबड़े निकाले।

छुटकी ने अपनी फटी फ्राक की ओर इशारा किया।

मैंने पहली बार इतनी नजदीक से देखा , वास्तव में एकदम चुन्चिया उठान। इनकी निगाह एकदम सही थी।

" दीदी , क्या करूँ। " वो निगाह उठा के बोली।





" अरे यार जीजा साली की होली में होता है , रुक " और मैंने एक सेफ्टी पिन लगा दी।

मैं मन ही मन सोच रही थी , मेरी बहन अभी तो तेरी बहुत कुछ फटनी बाकी है।


ऊपर जीजा साली की होली चालु हो गयी थी। देह की होली।


दुछत्ती ऐसी जगह पे थी , जहाँ से आंगन दिखता था , लेकिन वो आँगन क्या कही से भी नहीं दिखता था।

मंझली के पीछे पीछे जो वो पहुंचे तो पहला काम उन्होंने ये किया कि सीढ़ी का दरवाजा बंद कर दिया।
रंगो में डूबी , भीगी , गीली मंझली छत पे दुबक के बैठी थी , लेकिन साली होली के दिन जीजू से बच जाए ,

वो अगले ही पल उनकी बांहो में थी , उनके नीचे दबी और उसका टॉप कंधे तक उठा , ब्रा के हुक तो उन्होंने नीचे ही खोल दिए थे।

हाँ साली की ये जिद उन्होंने मान ली थी की टॉप और स्कर्ट न उतारे , उन्होंने नहीं उतारा , लेकिन टॉप कंधे तक और स्कर्ट कमर पे चिपकी मुड़ी।

थोडा मान , नखड़ा तो करना ही था तो वो कर रही थी ,


" जीजू छोड़ो न , प्लीज "

" अरे साली , छोड़ तो रहा ही हूँ , तेरे ये साले हाईस्कूल के इम्तहान न होते न तो तुझे अपने साथ ले जाता " वो बोले और कस कस के उसकी खुली छोटी छोटी चूंचिया दबाने लगे। "




उसने भी जीजू को बांहो में भर लिया और हामी भरी" सच में जीजू ये इम्तहान भी न , ये इम्तहान न होते तो मैं आपको एक दिन में जाने न देती " वो बोली।

' चल लेकिन ये प्रामिस कर अपनी गर्मी की पूरी छूट्टी तू मेरे साथ बिताना , गाँव में असली मजा आता है , हमारी खूब बड़ी आम कि बाग़ है " वो बोले।

" एकदम जीजू , जिस दिन इक्जाम ख़तम होंगे न बस उस के दिन दीदी के गाँव , आप के पास , लेकिन आप वहाँ भी इसी तरह तंग तो नहीं करेंगे "

खिलखिलाते हुए मंझली बोली।

" नहीं ,एकदम नहीं , इतना तंग नहीं करेंगे , इससे बहुत ज्यादा तंग करेंगे ' उसकी परी में एक साथ ऊँगली ठूंसते वो बोले।

मंझली उन्हें नखड़े में छाती पे मुक्के मार रही थी , लेकिन उसका दूसरा हाथ अपने जीजू के चर्मदण्ड को आगे पीछे कर रहा था।

भले ही वो पहली बार पकड़ रही थी लेकिन सहेलियों और उससे बढ़कर भाभियों ने तो उसे सब बता ही रखा था।

उनसे भी नहीं रहा जा रहा था , उन्होंने साली की लम्बी गोरी टाँगे , अपने कंधे पे रखीं लंड को चूत पे सेट किया और दोनों निचले होंठो को फैलाया।

" जीजू , दर्द ,.... " उससे आगे वो बोल नहीं पायी। उन्होंने अपने होंठो के बीच ,मंझली के कुंवारे होंठो को जोर से दबा दिया और साली के खुले मुंह में अपनी जुबान डाल के सील कर दी।

और फिर जोर से करारा धक्का मारा।


बिचारी मंझली दर्द से सिहर रही थी , लेकिन बिना रुके उन्होंने एक हाथ चुन्ची और दूसरा चूतड़ पे , पकड़ के और जोर से धक्का मारा।

अब सुपाड़ा घुस गया था। वो लाख चूतड़ पटके अब बिना चुदे नहीं बच सकती थी।


अंगूठे से थोड़ी देर तक उन्होंने चूत के दाने को सहलाया , थोडा दम लिया , टांग फिर सेट की और और अबतक का सबसे जोर दार धक्का ,



मंझली , पानी के बाहर मछली की तरह तड़प रही थी , दर्द से मचल रही थी। उसकी आँखों में दर्द से आंसू भर आये थे।

चूत फट गयी थी।

खून की कुछ बूंदे बाहर भी निकल आयी थी।



उन्होंने अभी भी उसके होंठो को आजाद नहीं किया और चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

थोड़ी देर में लंड दरेरता , घिसटता साली की चूत में जा रहा था , और कुछ देर में उसे भी लंड की आदत पड़ गयी। दर्द ख़तम तो नहीं हुआ लेकिन कम हो गया।


और उन्होंने उसके होंठो को आजाद कर दिया , उसी समय नीचे कालोनी की भाभियाँ घुसीं और उन के हंगामें में तो मंझली जोर जोर से भी चिल्लाती तो सुनायी नहीं देता।

उन्होंने उसे होंठ पे ऊँगली रख के चुप रहने का इशारा किया और अब उनके होंठ , साली की रसीली चूचियों का मजा लेने लगे , निपल चूसने लगे।

लंड आधे से ज्यादा घुसा हुआ था।

थोड़ी देर में मस्ती से चूर मंझली भी नीचे से अपने चूतड़ हिलाने लगी , फिरक्या था उन्होंने धका पेल चुदाई शूरु कर दी।


दो बार वो झड़ने के कगार पे पहुंची तो वो रुक गए।

अब लंड वो एकदम सुपाड़े तक बाहर निकाल कर , एक झटके में पूरा पेल देते।

चूंची और क्लिट दोनोकी रगड़ाई साथ साथ करते।

मंझली ने जब झड़ना शुरू किया तो उसके साथ ही वो भी ,…
उन्होंने उसको दुहरा कर रखा था और सारी मलायी अंदर।

कुछ देर तक वो दोनों ऐसे ही पड़े रहे , और ऊपर से आंगन में चल रही होली का नजारा देखते रहे।



उन्हें नहीं पता चला , लेकिन मंझली ने सुन लिया ,

" जीजू उन्हें शायद शक हो गया है , आप यहाँ है , हम दोनों ,...."


जल्दी से दोनों ने कपडे पहने और पहले वो नीचे आये और जब तक भाभियों का झुण्ड उन्हें घेरे था , चुपके से मंझली भी छत से उतर आयी। बिना किसी के देखे.

….
और दरवाजा खुलते ही भाभियों का हुजूम अंदर ,

कम से कम दर्जन भर , और सबसे आगे रीतू भाभी , उम्र में सबसे कम लेकिन बदमाशी में अव्वल। मुझसे सिर्फ दो साल बड़ी , अभी २१ वां लगा है।


रीतू भाभी , पे गजब का का जोबन था।

गोरी चिट्टी , भरे भरे देह की , लम्बी तडंगी , छरहरी लेकिन 'उन ' जगहों पे कुछ ज्यादा ही कटाव , भराव था और ऊपर से जोबन उनका चोली से छलकता ही रहता था , 36 डी डी साइज , और उनकी २८ की पतली कमर पे जोबन और गद्दर लगता था।


चोली भी हमेशा लो कट , खूब टाइट और आलमोस्ट बैकलेस लेकिन उससे भी खतरनाक थे उनके हिप्स , कसर मसर कसर मसर करते , और बाजार में चलती तो और चूतड़ मटकाती , लौंडो का दिल लूटती।

साइज भी 38 से ऊपर ही रही होगी। और साडी भी इतनी कस के, नाभी से कम से कम एक बालिश्त नीचे बाँध के पहनती की हिप्स का कटाव तो दिखता ही , पिछवाड़े की दरार भी दिख जाती।

पर रीतू भाभी का जो अंदाज था , असली चीज वो थी।

मेरी भाभी होने के साथ ही मेरी पक्की सहेली भी थी। जब मेरी शादी तय हुयी तो मम्मी ने उनके हवाले कर दिया ,

" तेरी छोटी ननद है , तू जरा उसको सब बात खोल के सिखा दे वरना कही शादी के बाद ,… "


और रीतू भाभी ने क्या क्या नहीं सिखाया , सिर्फ बता के या किताब में दिखा के नहीं , बल्कि कई बार तो प्रैक्टिस भी करा के ( वो कन्या प्रेमी भी गजब की थी ).

इसलिए शादी के बाद इतनी जबरदस्त ससुराल होने पे भी मुझे कोई 'परेशानी ' नहीं हुयी।


ऐन शादी वाले दिन 'सब कुछ ' खोल के उन्होंने ने सिर्फ चेक किया , बल्कि अपने हाथ से 'वहाँ के ' सब बाल साफ किये और ये भी बोला कि सुहाग रात के पहले मैं खुद थोड़ी सी वैसलीन अपने अंदर लगा लूँ , की कई बार मर्द इतने जल्दी में होते हैं ,… और सिर्फ मुझसे ही नहीं , वो छुटकी और मझली से भी उत नी ही खुली हुयी थीं।

लेकिन भाभियों की इस मंडली की कप्तान थीं , मिश्राइन भौजी।


करीब ३३-३४ की होंगी , मम्मी से एक ही दो साल छोटी। उनकी लड़की भी छुटकी के साथ पढ़ती थी। लेकिन ननद भाभी के रिश्ते में , वो रीतू भाभी से एक कदम पीछे नहीं थी और चाहे कुँवारी हो या शादी शुदा सब उन से पनाह मांगती थी।

और मुझे सबसे पहले पकड़ा रीतू भाभी ने। जोर से अंकवार में भरा, आँचल मेरा हटाया और हाथ सीधे ब्लाउज पे ,

" देखूं इतने दिन में ससुराल में ननदोई से दबवा दबवा के चूंचिया कितनी और बड़ी हो गयी है "

भाभियो का हमला कभी अकेले नहीं होता। रानू भाभी ( जो मेर्रे घर के सामने रहती थीं ) ने पीछे से पकड़ा और बोलीं ,

" अरे ननद के जोबन की नाप जोख क्या सिर्फ ब्लाउज के उपर से करोगी "और पल बाहर में सारे बटन खुल गए।






और एक जोबन रीतू भाभी के और दूसरा रानू भाभी के कब्जे में , फिर वो रगड़ाई मसलाई हुयी की,…
और साथ में रंग पेंट भी ,

लेकिन मैं क्यों पीछे रहती , आखिर रीतू भाभी की ही सिखायी पढ़ाई ननद थी। मैंने भी रीतू भाभी के ब्लाउज पे झपट्टा मारा और उनके बड़े बड़े गदराये उभार मेरे हाथ में ,

और थोड़ी देर में हाथ अलग हो गए. सीधे चूंचियों से चूंचियां होली खेल रही , रंग लगा रही थीं।

मैं अपने जोबन में लगा रंग , रीतू भाभी के जोबन पे जोर जोर से रगड़ रही थी और वो भी जैसे कोई मर्द अपने चौड़े चकले सीने से नयी बहुरिया के उभार कुचले मसले , बस उसी तरह।


एक दो और भाभियाँ मेरे पीछे पड़ गयीं एक ने साया , उठा के कमर तक कर दिया और दूसरे ने सीधे चूतड़ो पे रंग लगाने शुरू कर दिए।



मैं क्यों पीछे रहती मैंने रीतू भाभी का साया उठा दिया और अब चूंची के बाद हम दोनों कि बुर ,… चूत पे घिस्सा देना मैंने उन्ही से सिखा था।


जोर जोर से हम दोनों एक दूसरे की चूत पे चूत रगड़ रहे थे।
एकदम फ्री फार आल हो रहा था।

रीतू भाभी साथ में मेरे चूतड़ पे अब रंग लगा रही थी और दोनों तरबूज की फांको को फैला के पूछ रही थीं ,



" क्यों बिन्नो , पिछवाड़े का बाजा बजा "

मैंने बोला " भाभी , आपके नंदोई इत्ते सीधे नहीं है जो छोड़ देंगे "

तो मिश्राइन भाभी ने और आग लगायी ,

"रीतू , कैसी भौजाई हो जो पूछ रही हो। अरे ननद ससुराल से पहली बार आयी है , भौजाई को सब चीज चेक करके देखना चाहिए।'

बस फिर क्या था , मेरे गांड तो उन्होंने पहले से ही फैला रही थी ,बस गचाक से दो ऊँगली एक साथ घुसेड़ दी और अपना फैसला भी सूना दिया दिया सारी
भौजाइयों को ,


" हचक के मारी गयी है गांड , वहाँ ननदोई से बिना नागा मरवाती थी , और यहाँ हम भाभियों की ऊँगली पे नखड़ा दिखा रही हो "



रीतू भाभी की दो एक्सपर्ट उंगलिया मेरी गांड में गोल गोल घूम रही थीं और एक दूसरी भाभी ने चूत में सेंध लगा दी।



आगे भी दो ऊँगली घुस गयी और साथ साथ सटासट गांड और बुर दोनों भाभियों की उंगलियो से चुद रही थी।
लेकिन तभी एक गड़बड़ हो गयी। मुझे बचाने मेरी छोटी बहन छुटकी आ गयी और वो पकड़ ली गयी।


दी तीन भाभियों ने उसे ले जा के आंगन में जहाँ खूब रंग बह रहा था वहाँ लिटा दिया और सबसे पह्ले मिश्राइन भाभी ने नंबर लगाया।



जीजा तो तब भी कुँवारी सालियों से कुछ झिझकते हैं , सोचते हैं ,

लेकिन भाभियाँ तो कुँवारी रसभीनी ननदों को देख के और बौरा जाती हैं , और इस बार भी वही हुआ।

तीन तीन भाभियाँ एक साथ छुटकी पे ,

कुछ ही देर में उसके दोनों टिकोरे , और गुलाबी परी फ्राक से बाहर थे और भाभियों के हाथ में ,

लेकिन मिश्राइन भाभी , जो भाभियों में सबसे प्रौढ़ा थीं , उन्होंने असली मोर्चा खोला ,

" अरे होलियों के दिन ननद को बुर का स्वाद न चखाया तो क्या मजा। " उन्होंने साडी साया , अपना उठाया , कमर में लपेटा और सीधे छुटकी के ऊपर ,

मुझे अपनी ससुराल की होली याद आगयी ,

मेरी जेठानी ने एक कच्ची कली का , जो छुटकी से भी छोटी लग रही थी , न सिर्फ चूत चटवाई थी बल्कि 'सुनहला शरबत 'भी पिलाया था , और ऩीने खुद अपनी सगी छोटी ननद को जो इस छुटकी की ही समौरिया ही होगी , को चूत चटाई थी और , ' सुनहला शरबत ' भी पिलाया था।

छुटकी थोडा इधर उधर कर रही थी , लेकन एक भाभी ने दोनों हाथो से उसका सर जोर से पकड़ लिया और अब वो मिश्राइन भाभी कि जाँघों के बीच फँसी , दबी , किकिया रही थी।

लेकिन वो अभी भी मुंह खोलने में नखड़े कर रही थी। बस , मिश्राइन भाभी ने जोर से उसके नथुने दबा दिए , " बोल छिनार खोलेगी मुंह की नहीं , खोल साली , "

और थोड़ी देर में जैसे ही उसने मुंह खोला अपनि रसीली खेली खायी बुर उन्होंने छुटकी के खुले मुंह पे चिपका दी और लगी रगड़ने।

किसी और भाभी ने कुछ बोला कि अकेले अकेले नयी बछेड़ी पे सवारी कर रही हो तो वो हंस के बोली , " अरे तब तक तुम इसकी रस् मलायी का रस निकालो , मेरे बाद तुम भी चटवा लेना। "

वो भाभी बस अपनी गदोरियों से छुटकी की चूत जोर जोर से रगड़ने लगी। और छुटकी की चूत भी थोड़ी देर में पानी फेंकने लगी।

कुछ देर छुटकी के मुंह पे अपनी बुर रगड़ के , मिश्राइन भाभी शांत हो के बैठ गयी और छुटकी से बोलीं

" सन मैं ननदो को बस पांच मिनट का टाइम देती हूँ पानी निकालने के लिए , तू नयी है चल छह मिनट ले ले। लेकिन एक मिनट भी ज्यादा लगा न , तो कुहनी तक हाथ गांड में पेल दूंगी , चाहे फटे चाहे जो हो। और अब मैं कुछ नहीं करुँगी , तू चाट चूस , चाहे जो कर।



थोड़ी ही देर में छुटकी , लप लप भाभी की बुर चाट रही थी , जीभ पूरी ऊपर से नीचे तक सपड़ सपड़, और दोनों होंठो को बुर में लगा के पूरी ताकत से चूसने लगी।

मैं तारीफ से उसे देख रही थी , और छः नहीं बल्कि पांच मिनट में ही मिश्राइन भाभी को झाड़ दिया।

लेकिन उससे भी उसे छुट्टी नहीं मिली।

अब मिश्राइन भाभी उचक के थोड़ी और सरक गयी थीं और उससे अपनी गांड चटवा रही थीं।


मेरी हालत भी ख़राब थी , मेरी छिनार भौजाइयां , मुझे झाड़ने के कगार पे ले जा के छोड़ दे रही थीं , रीतू भाभी तो क्या कोई मर्द गांड मारेगा , जिस तरहसे उनकी उंगलिया अंदर बाहर हो रही थीं।

मिश्राइन भाभी ने छुटकी को गांड चटाते , वहीँ से आवाज लगायी ,

" अरे रीतू , ननद को मन्जन कराया की नहीं "

बस इशारा बहुत था , रीतू भाभी की उंगलिया अब मेरी गांड में , करोचते हुए चम्मच की तरह , गांड की सारी भीतरी दिवालो पे और जब उन्होंने ऊँगली निकाली , बाकी दोनों भाभियों ने जोर से मेरे गाल दबाये और मेरा मुंह खुल गया।

रीतू भाभी की उंगली सीधे मुंह के अंदर , दांतो पे, ऊपर नीचे।
और चार पांच मिनट 'मन्जन ' कराने के बाद जो बचा खुचा था , सीधे मेरे गालों पे और बोलीं

" रूप निखार आया है मेरी ननद का , हल्दी और चन्दन से "

तीन चार भाभियाँ मेरे साथ थी , तीन छुटकी के साथ , और बाकी की मम्मी के पास ,… आखिर सास बहु की होली भी तो ,… (और मैं अपने ससुराल में देख ही चुकी थी , मेरी मम्मी कौन सी कम थी। )

देर तक ये होली चलती रही , बस मुझे ये लगा रहा था की इन का ध्यान मेरी और छुटकी के चक्कर में , अभी ' इनकी ' ओर नहीं गया।
लेकिन रानू को याद आ गया और वो बोल पड़ी ,

" हे नंदोई को कही अपने बुर में छिपा रखा है क्या "

तो दूसरी जो छुटकी के पास थी बोली , अरे पहले उनकी साली कि बुर चेक करो ,

लेकिन तब तक वो सीढ़ियों से आ गए और , मुझे और छुटकी को छोड़ सारी भाभियाँ बस उनके पीछे पद गयीं और उनकी जम के रगड़ाई शुरू हो गयी।
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