“ओके … कोई बात नहीं … तुम्हें जैसे पसंद हो वैसे ही करेंगे.”
अब सुहाना अपनी आँखें बंद करके बेड पर लेट गई।
मैंने उसके पायजामे को नीचे सरकाना शुरू किया तो सुहाना ने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर कर दिए। मैंने पायजामे को उसके घुटनों तक नीचे कर दिया। गुलाबी कच्छी में उसके पपोटों और चीरे वाली जगह कुछ गीली सी लग रही थी।
अब मैंने उसकी पैंटी को थोड़ा सा साइड में से सरका दिया।
मेरा लंड तो उसे सलामी पर सलामी देने लगा था और आज तो यह बहुत ही खूंखार हो चला था। अब मैंने फिर से एक चुम्बन उसकी बुर पर ले लिया तो सुहाना ने अपनी मुट्ठियाँ भींच ली।
मन तो कर रहा था एक ही झटके में अपना लंड इस कमसिन बुर में डाल दूं मैं इस फुलझड़ी पर इतना बेरहम भी नहीं होना चाहता था।
मैंने पास में पड़ी क्रीम की डिब्बी से थोड़ी क्रीम लेकर पहले तो अपने लंड पर लगाईं और फिर सुहाना की बुर के चीरे के अन्दर भी लगा दी।
सुहाना एक पल के लिए थोड़ा कुनमुनाई और उसने अपनी जांघें भींच ली।
एक गुनगुना सा अहसास मेरी अँगुलियों पर महसूस होने लगा। लंड तो झटके पर झटके खाने लगा था। ये तो शुक्र था कि सुहाना ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी अगर वह मेरे इस मोटे और लम्बे लंड को देखकर घबरा ही जाती और हो सकता है मेरी बांहों से निकल कर भाग जाती।
मैंने थोड़ी और क्रीम अपनी अँगुलियों पर लगाईं और अपनी एक अंगुली उसकी बुर के छेद पर लगाकर थोड़ा सा अन्दर करने की कोशिश की तो सुहाना की एक आह सी निकली और वह अपनी जांघें भींचने लगी।
“बेबी रिलेक्स हो जाओ … कुछ नहीं होगा … अपने आप को ढीला छोड़ दो मैं तुम्हें बिल्कुल भी दर्द नहीं होने दूंगा.” मैंने उसे फिर से समझाया।
“आह..” सुहाना के मुंह से तो बस इतना ही निकला।
मैं अपनी एक अंगुली उसकी बुर में डाल कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। सुहाना ने अपनी मुट्ठियाँ और दांत और जोर से भींच लिए। अब मैं उसके ऊपर आ गया और उकडू होकर उसकी जाँघों पर बैठ गया। अब मैंने अपने एक हाथ की अँगुलियों से उसकी बुर के पपोटों को खोला और फिर अपने लंड को उस पर घिसने लगा।
सुहाना का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। मेरी भी हालत वैसी ही हो रही थी। कितने दिनों की प्यास आज बुझने वाली थी। लंड तो अब ठुमकने ही लगा था और बार-बार उछलकर मेरे हाथों से फिसलता ही जा रहा था।
अब मैंने अपने लंड को सही निशाने पर लगाया और फिर धीरे से अपना सुपारा उसके छेद में डालने की कोशिश करने लगा। छेद इतना तंग और कसा हुआ था कि एक बार तो मुझे लगा यह इसके अन्दर जा ही नहीं सकता। इसका एक कारण तो यह था कि सुहाना डरी हुई भी थी और उसने अपनी जांघें और बुर को भींच सा रखा था।
“रिलेक्स बेबी … इतना डरने की कोई जरूरत नहीं है … अपने आप को ढीला छोड़ दो … डरो नहीं कुछ नहीं होगा … मैं तुम्हें दर्द बिल्कुल नहीं होने दूंगा.”
“आह …” सुहाना ने अपना सिर दूसरी ओर घुमा लिया।
अब मैंने फिर से अपने लंड को 2-3 बार घिसते हुए उसकी बुर के चीरे पर फिराया और फिर से छेद पर लगाकर अन्दर घुसाने के लिए थोड़ा जोर लगाया।
दोस्तो … खेली खाई औरत हो तो इस समय एक ही धक्के में किला फ़तेह किया जा सकता है. पर सुहाना जैसी कमसिन कलि के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता था।
मेरे थोड़े प्रयास के बाद मुझे लगा सुहाना की बुर ने थोड़ा रास्ता देना शुरू कर दिया है और मेरा लंड थोड़ा अन्दर सरकने लगा है।
“आआईईई … आमी मर जाबे … आह …” सुहाना अपना हाथ बढ़ाकर अपने बुर को टटोलने की कोशिश करने लगी और अपना एक हाथ मेरे सीने पर लगाकर मुझे दूर हटाने की कोशिश करने लगी।
“बस मेरी जान … हो गया.” कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ कर हटा दिया।
“आईईइ … सर.. बहुत दर्द हो रहा है … प्लीज अब निकाल लो.”
“रिलेक्स बेबी रिलेक्स … बस-बस हो गया … तुम हिलो मत … बिल्कुल ढीला छोड़ दो अपने आप को! शाबास गुड गर्ल!”
सुहाना ने अपने आप को थोड़ा ढीला छोड़ दिया था। मैंने उसके पेडू और पेट पर हाथ फिराना चालू कर दिया।
सुहाना की बंद आँखों से आंसू निकल कर उसकी कनपटियों पर आने लगे थे। मैंने एक हाथ बढ़ाकर उन्हें पौंछ दिया और फिर अपने लंड को थोड़ा सा बाहर करते हुए फिर से अन्दर डाल दिया।
इस बार मुझे लगा सुहाना की बुर ने थोड़ा रास्ता और दे दिया है और मेरा आधा लंड अन्दर चला गया है।
“आई … प्लीज … रुको … ओह … बहुत दर्द हो रहा है.”
अब मैं कोहनियों के बल होकर उसके ऊपर आ गया। मैंने ध्यान रखा मेरे शरीर का पूरा बोझ उस पर नहीं पड़े।
“बस बेबी … अब तो पूरा चला गया है अब दर्द नहीं होगा.”
“क्या पूरा चला गया?”
“हाँ बेबी …” शायद उसे विश्वास नहीं हो रहा था। और सच तो यह था कि मेरा आधा लंड अभी भी बाहर ही था। आप मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं मैंने किस प्रकार अपने आपको रोक कर रखा था।
अब मैंने सुहाना के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और पहले तो उनपर चुम्बन लिया और फिर उनपर अपने होंठों को फिराने लगा। सुहाना ने कोई ज्यादा ऐतराज नहीं किया अलबता आँखें बंद किए चुपचाप लेटी रही।
“सुहाना तुम बहुत खूबसूरत हो.”
“आह … सर.. अब निकाल लो … प्लीज!”
“ओहो … बस एक मिनट और रुको … मैं अपने आप बाहर निकाल दूंगा. तुम चिंता मत करो।”
अब मैंने अपने हाथ उसके उरोजों पर रख दिए और कुर्ती के ऊपर से ही उन्हें धीरे-धीरे मसलने लगा।
“आह …” जिस प्रकार से उसके मुंह से आवाज निकल रही थी मुझे लगता है उसे अब ज्यादा दर्द नहीं हो रहा है।
अब तो उसे बातों में उलझाए रखना होगा- अरे सुहाना?
“हम्म?”
“तुम्हारा जो प्रोजेक्ट है ना?”
“हम्म?”
“उसमें एक और करेक्शन अगर हो जाए तो तुम्हारी क्लास का यह सबसे बेस्ट प्रोजेक्ट होगा.”
“कैसा करेक्शन?”
“वो जो तुमने अलग-अलग कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के डाटा दिए हैं अगर उनको ग्राफ की शेप में दिखाया जाए तो बहुत अच्छा रहेगा. और अगर तुम कहो तो यह सब काम तो मैं खुद ही कर दूंगा.”
“थैंक यू सर …” अब तो सुहाना रिलेक्स हो गई थी।
“सर प्लीज … अब बाहर निकाल लो ना?”
“क्या तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा?” कहते हुए मैंने अपने लंड को थोड़ा सा और अन्दर सरका दिया।
अब तक सुहाना की बुर ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था और मेरे लंड को आगे सरकने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी।
“वो.. वो …” कहते हुए सुहाना चुप हो गई।
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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मुझे लगता है उसे यह सब अच्छा तो जरूर लग रहा होगा पर डर के मारे अभी वह इसे स्वीकार नहीं कर पा रही है। उसकी बुर तो अब संकोचन भी करने लगी है।
“सुहाना सच में तुम बहुत खूबसूरत हो!”
अब मैंने उसकी कुर्ती को थोड़ा सा ऊपर करते हुए उसके उरोजों के ऊपर तक कर दिया। सुहाना ने ब्रा की जगह समीज पहनी थी। गोरे रंग की दो नारंगियाँ और उनके ऊपर गुलाबी रंग के चूचुक और उनके शिखर पर चने के दाने जितने निप्पल।
मैंने पहले तो एक उरोज पर जीभ लगाई और फिर उसके निप्पल को मुंह में भर कर चूमने लगा।
“आ..ह … क्या कर रहे हो सर … आईई. आह … ऐसे मत करो सर … आह!” सुहाना का प्रतिरोध कम होने लगा था।
मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को अन्दर बाहर करते हुए पूरा अन्दर सरका दिया। सुहाना की बुर के अन्दर क्रीम भी लगी थी और उसकी बुर अब तक पानी भी छोड़ने लगी थी तो मेरे लंड को अन्दर जाने में कोई ज्यादा दिक्कत भला कैसे हो सकती थी।
अब तो सुहाना शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से तैयार हो चुकी थी। अब तो मैंने उसके उरोजों को चूसने के साथ-साथ अपने लंड से हल्के धक्के लगाते हुए अपने लंड को अन्दर बाहर भी करना चालू कर दिया था। अब तो सुहाना की भी हल्की-हल्की सीत्कारें निकलने लगी थी।
वैसे प्रकृति ने हर प्राणी में काम भावना को कूट-कूट कर भरा है। बस इसे ज़रा सी चिंगारी दिखाने की जरूरत होती है. फिर तो यह दावानल की तरह भड़कने लगती है।
सुहाना की भी इस समय यही हालत थी। उसे भी इस क्रिया में उतना ही आनंद आ रहा था जितना मुझे!पर वह प्रत्यक्ष रूप से इसे दर्शाना नहीं चाह रही थी।
उसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थी और उसके मुंह से आह … ऊंग ईईइ … सीईई की आवाजें निकलती जा रही थी। मुझे लगा कि सुहाना का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है। उसकी सांसें बहुत तेज हो गई और उसने अपनी मुट्ठियाँ और जोर से भींच ली।
मुझे लगा मेरे लंड पर उसकी बुर ने शिकंजा सा बना लिया है।
मैंने अपने लंड को 2-3 बार और अन्दर-बाहर किया।
“सर मुझे चक्कर से आ रहे हैं … आह … उईई … मॉम … आह …”
“बस बस मेरी जान … रिलेक्स हो जाओ … कुछ नहीं होगा तुम्हें तो अब बहुत बड़े आनंद की अनुभूति होने वाली है.”
“अईईईई ईईईई …” और उसके साथ सुहाना का शरीर ढीला सा पड़ने लगा.
वह जोर-जोर से साँसें लेने लगी जैसे किसी पहाड़ पर चढने के बाद होता है।
मैंने उसके होंठों को फिर से चूम लिया।
“सुहाना सच बताना तुम्हें अच्छा लगा ना?”
“वो मुझे चक्कर से क्यों आ रहे थे?”
“अरे बेबी … इसे ओर्गास्म कहते हैं यही तो उस परम आनंद की पराकाष्ठा है जिसे जो हर स्त्री और पुरुष दोनों ही हर सम्भोग में पाना चाहते हैं।” कहते हुए मैंने 2-3 धक्के और लगा दिए।
सुहाना की तो अब मीठी सीत्कारें और आहें निकलने लगी थी। उसने अपने पैर थोड़े ऊपर करने की कोशिश की तो उसके पैरों में पायजामा उलझ सा गया।
अब सुहाना ने अपने पजामे को दोनों पैरों में फंसाकर निकाल दिया और फिर अपनी जांघें और ज्यादा खोलकर अपने नितम्ब उचकाने लगी।
लगता है सुहाना को भी अब अच्छा लगने लगा है।
“सुहाना … मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … अगर तुम अपनी यह कुर्ती भी निकाल दो तो तुम्हें और ज्यादा आनंद की अनुभूति होगी।”
“आह … प्लीज … अब मुझे जाने दो … प्लीज … आह … ईईईईईइ …” कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखते हुए जोर से भींच लिए। मुझे लगता है उसका एक बार फिर से ओर्गास्म हो गया है।
उसके शरीर ने 3-4 झटके से खाए और वह फिर से ढीली पड़ गई।
थोड़े देर बाद उसने मेरे सीने पर अपने हाथ लगाकर मुझे अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की।
“क्या हुआ बेबी?”
“वो … वो … कुर्ती.”
“क्या हुआ कुर्ती को?”
“यह गले में फंस रही है.”
“तो फिर इसको निकाल ही दो.”
सुहाना मेरी ओर देखते हुए कुछ सोचने लगी थी।
थोड़ी देर बाद उसने एक लम्बी साँस लेते हुए अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर उठाई और फिर कुर्ती और समीज निकालने की कोशिश करने लगी।
मैं तो चाहता था वह अपनी इस कच्छी को भी निकाल फेंके पर साथ में मुझे यह भी डर सता रहा था कि कच्छी निकालने के चक्कर में मुझे अपना लंड बाहर निकालना पड़ेगा और हो सकता है फिर सुहाना इसे दुबारा अन्दर डलवाने से मना कर दे।
और फिर हो सकता है मुझे बीच मझधार में ही छोड़ कर रफ्फूचक्कर हो जाए।
मैं कतई ऐसी जोखिम नहीं उठा सकता था, मैंने हाथ बढ़ाकर उसकी समीज और कुर्ती निकाल दी और सुहाना फिर से तकिए पर अपना सिर लगाकर लेट गई।
अब तो सुहाना का पूरा नग्न सौन्दर्य मेरी आँखों के सामने था। गोल नितम्बों के ऊपर पतली सी कमर और उभरे हुए से पेडू के ऊपर गोल गहरी नाभि। दोनों उरोज तो ऐसे लग रहे थे जैसे दो नन्हे परिंदे आजादी की राह ही तक रहे थे। उनकी फुनगियाँ तो अकड़कर और भी नुकीली हो गई थी। पतली सुराहीदार गर्दन और लम्बे छछहरी बांहों की रोम विहीन कांख।
एक बार तो मुझे धोखा सा हुआ शायद उसकी कांख में अभी बाल आये ही नहीं होंगे पर लगता है उसने या तो वैक्सिंग की होगी या कोई हेयर रिमूवर लगाया होगा।
आह … मैं तो उससे निकलती गंध से मदहोश ही हो चला था।
मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और मैंने अपनी जीभ उसकी कांख से लगा दी।
“सुहाना सच में तुम बहुत खूबसूरत हो!”
अब मैंने उसकी कुर्ती को थोड़ा सा ऊपर करते हुए उसके उरोजों के ऊपर तक कर दिया। सुहाना ने ब्रा की जगह समीज पहनी थी। गोरे रंग की दो नारंगियाँ और उनके ऊपर गुलाबी रंग के चूचुक और उनके शिखर पर चने के दाने जितने निप्पल।
मैंने पहले तो एक उरोज पर जीभ लगाई और फिर उसके निप्पल को मुंह में भर कर चूमने लगा।
“आ..ह … क्या कर रहे हो सर … आईई. आह … ऐसे मत करो सर … आह!” सुहाना का प्रतिरोध कम होने लगा था।
मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को अन्दर बाहर करते हुए पूरा अन्दर सरका दिया। सुहाना की बुर के अन्दर क्रीम भी लगी थी और उसकी बुर अब तक पानी भी छोड़ने लगी थी तो मेरे लंड को अन्दर जाने में कोई ज्यादा दिक्कत भला कैसे हो सकती थी।
अब तो सुहाना शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से तैयार हो चुकी थी। अब तो मैंने उसके उरोजों को चूसने के साथ-साथ अपने लंड से हल्के धक्के लगाते हुए अपने लंड को अन्दर बाहर भी करना चालू कर दिया था। अब तो सुहाना की भी हल्की-हल्की सीत्कारें निकलने लगी थी।
वैसे प्रकृति ने हर प्राणी में काम भावना को कूट-कूट कर भरा है। बस इसे ज़रा सी चिंगारी दिखाने की जरूरत होती है. फिर तो यह दावानल की तरह भड़कने लगती है।
सुहाना की भी इस समय यही हालत थी। उसे भी इस क्रिया में उतना ही आनंद आ रहा था जितना मुझे!पर वह प्रत्यक्ष रूप से इसे दर्शाना नहीं चाह रही थी।
उसने अपनी आँखें बन्द कर रखी थी और उसके मुंह से आह … ऊंग ईईइ … सीईई की आवाजें निकलती जा रही थी। मुझे लगा कि सुहाना का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है। उसकी सांसें बहुत तेज हो गई और उसने अपनी मुट्ठियाँ और जोर से भींच ली।
मुझे लगा मेरे लंड पर उसकी बुर ने शिकंजा सा बना लिया है।
मैंने अपने लंड को 2-3 बार और अन्दर-बाहर किया।
“सर मुझे चक्कर से आ रहे हैं … आह … उईई … मॉम … आह …”
“बस बस मेरी जान … रिलेक्स हो जाओ … कुछ नहीं होगा तुम्हें तो अब बहुत बड़े आनंद की अनुभूति होने वाली है.”
“अईईईई ईईईई …” और उसके साथ सुहाना का शरीर ढीला सा पड़ने लगा.
वह जोर-जोर से साँसें लेने लगी जैसे किसी पहाड़ पर चढने के बाद होता है।
मैंने उसके होंठों को फिर से चूम लिया।
“सुहाना सच बताना तुम्हें अच्छा लगा ना?”
“वो मुझे चक्कर से क्यों आ रहे थे?”
“अरे बेबी … इसे ओर्गास्म कहते हैं यही तो उस परम आनंद की पराकाष्ठा है जिसे जो हर स्त्री और पुरुष दोनों ही हर सम्भोग में पाना चाहते हैं।” कहते हुए मैंने 2-3 धक्के और लगा दिए।
सुहाना की तो अब मीठी सीत्कारें और आहें निकलने लगी थी। उसने अपने पैर थोड़े ऊपर करने की कोशिश की तो उसके पैरों में पायजामा उलझ सा गया।
अब सुहाना ने अपने पजामे को दोनों पैरों में फंसाकर निकाल दिया और फिर अपनी जांघें और ज्यादा खोलकर अपने नितम्ब उचकाने लगी।
लगता है सुहाना को भी अब अच्छा लगने लगा है।
“सुहाना … मेरी जान … तुम बहुत खूबसूरत हो … अगर तुम अपनी यह कुर्ती भी निकाल दो तो तुम्हें और ज्यादा आनंद की अनुभूति होगी।”
“आह … प्लीज … अब मुझे जाने दो … प्लीज … आह … ईईईईईइ …” कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखते हुए जोर से भींच लिए। मुझे लगता है उसका एक बार फिर से ओर्गास्म हो गया है।
उसके शरीर ने 3-4 झटके से खाए और वह फिर से ढीली पड़ गई।
थोड़े देर बाद उसने मेरे सीने पर अपने हाथ लगाकर मुझे अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की।
“क्या हुआ बेबी?”
“वो … वो … कुर्ती.”
“क्या हुआ कुर्ती को?”
“यह गले में फंस रही है.”
“तो फिर इसको निकाल ही दो.”
सुहाना मेरी ओर देखते हुए कुछ सोचने लगी थी।
थोड़ी देर बाद उसने एक लम्बी साँस लेते हुए अपनी गर्दन थोड़ी सी ऊपर उठाई और फिर कुर्ती और समीज निकालने की कोशिश करने लगी।
मैं तो चाहता था वह अपनी इस कच्छी को भी निकाल फेंके पर साथ में मुझे यह भी डर सता रहा था कि कच्छी निकालने के चक्कर में मुझे अपना लंड बाहर निकालना पड़ेगा और हो सकता है फिर सुहाना इसे दुबारा अन्दर डलवाने से मना कर दे।
और फिर हो सकता है मुझे बीच मझधार में ही छोड़ कर रफ्फूचक्कर हो जाए।
मैं कतई ऐसी जोखिम नहीं उठा सकता था, मैंने हाथ बढ़ाकर उसकी समीज और कुर्ती निकाल दी और सुहाना फिर से तकिए पर अपना सिर लगाकर लेट गई।
अब तो सुहाना का पूरा नग्न सौन्दर्य मेरी आँखों के सामने था। गोल नितम्बों के ऊपर पतली सी कमर और उभरे हुए से पेडू के ऊपर गोल गहरी नाभि। दोनों उरोज तो ऐसे लग रहे थे जैसे दो नन्हे परिंदे आजादी की राह ही तक रहे थे। उनकी फुनगियाँ तो अकड़कर और भी नुकीली हो गई थी। पतली सुराहीदार गर्दन और लम्बे छछहरी बांहों की रोम विहीन कांख।
एक बार तो मुझे धोखा सा हुआ शायद उसकी कांख में अभी बाल आये ही नहीं होंगे पर लगता है उसने या तो वैक्सिंग की होगी या कोई हेयर रिमूवर लगाया होगा।
आह … मैं तो उससे निकलती गंध से मदहोश ही हो चला था।
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और मैंने अपनी जीभ उसकी कांख से लगा दी।
“आआई ईईईई …” सुहाना के मुंह से एक किलकारी सी निकल गई। वह अपने नितम्ब उचकाने लगी थी। अब मैंने फिर से हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए। सुहाना ने रोमांच के मारे अपनी जांघें और भी खोल दी। अब तो मेरा लंड सरपट दौड़ाने सा लगा था।
“सुहाना कैसा लग रहा है?”
“आह … अब कुछ मत पूछो … आह … आपने मुझे पागल सा कर दिया है आह … उईईईईइ … मा …” सुहाना पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थी।
और फिर उसने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और मेरे होंठों को चूमने लगी। मैंने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरे हाथ से उसके उरोजों को दबाने लगा। सुहाना मदहोश हुई मुझे चूमे जा रही थी और साथ में सीत्कारें लेती अपने नितम्बों को भी मेरे धक्कों के साथ हिलाती जा रही थी।
दोस्तो! मैं तो चाहता था हमारा यह प्रेम मिलन अनंत काल तक चलता जाए!
पर आखिर शरीर की एक सीमा होती है। मुझे लगाने लगा था मैं अब उत्तेजना के उच्चतम शिखर पर पहुँचने वाला हूँ और अब किसी भी समय मेरा स्खलन हो सकता है।
सुहाना का इस दौरान उसका 2 बार और ओर्गास्म हो गया था। और अब तो वह आँखें बंद किए मस्त मोरनी बनी सपनों की दुनिया में खोई इस आनंद को भोगते जा रही थी।
मैंने अपने धक्कों की गति थोड़ी बढ़ा दी और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की तैयारी करने लगा।
अचानक सुहाना ने अपनी बाहें मेरी पीठ पर जोर से कस लीं और अपने दोनों घुटने ऊपर उठा लिए।
“आह … आआ … ईईइ …” की आवाज के साथ उसने अपने पैर धड़ाम से नीचे कर दिए और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी।
और उसके साथ ही मेरी भी पिचकारियाँ निकल कर निरोध को भरती चली गई। काश! इस समय इस निरोध की दीवार हम दोनों के बीच ना होती। 2-3 मिनट मैं उसके ऊपर ही लेटा रहा। मुझे हैरानी हो रही थी सुहाना को मेरे शरीर का भार बिल्कुल नहीं लग रहा था। मैंने उसके होंठों को चूमते हए उसका धन्यवाद किया और फिर उसके ऊपर से उठ खड़ा हुआ।
सुहाना लम्बी लम्बी साँसें लेती हुई ऐसे ही लेटी रही। बेचारी पतली सी कच्छी की हालत देखकर तो उसकी बुर की हालत का अंदाज़ा लगाया ही जा सकता था। उसकी बुर से निकले कामरज से वह भीग सी गई थी। उसके पपोटे सूज कर और भी मोटे हो गए थे और उसकी लीबिया (अंदरूनी होंठ) तो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी गुलाब की अध खिली कलि को बेदर्दी से मसल दिया हो ।
मैंने नीचे होकर एक बार उन कलिकाओं को चूमने की कोशिश की तो सुहाना ने थोड़ा चौंकते हुए कहा- हट! की कोरचे? (हटो! क्या कर रहे हो?)
और फिर उसने अपने हाथ अपनी बुर पर रखते हुए उसे ढक लिया।
थोड़ी देर बाद सुहाना अपने कपड़े उठाकर लंगड़ाती हुई बाथरूम में चली गई।
हे भगवान् गोल कसे हुए नितम्बों की लचक तो कोमल और सिमरन से भी अधिक मादक थी। मेरा मन तो उसके साथ ही बाथरूम में जाने का कर रहा था पर मैंने अपने आप को रोक लिया।
थोड़ी देर में सुहाना बाथरूम से वापस आ गई। उसने अपने कपड़े पहन लिए थे। जब तक मैं बाथरूम से वापस आया सुहाना बाहर हॉल में आ गई थी और मेरे लैपटॉप से फाइल्स डिलीट करने की कोशिश में लगी हुयी थी।
“सर … वो फाइल्स डिलीट कर दो ना अब?”
“ओह … हाँ मेरी बुलबुल … लो मैं तुम्हारे सामने सारी फाइल्स डिलीट कर देता हूँ।”
और फिर मैंने सच में फाइल्स और फोटोज को परमानेंटली डिलीट कर दिया।
“वो … मोबाइल में भी थी ना?”
“लो तुम अपने हाथों से पूरी गैलरी की सारी पिक्चर और फाइल्स ही डिलीट कर दो!” कहते हुए मैंने उसे अपना मोबाइल पकड़ा दिया।
सुहाना ने सारी फोटो और विडियोज डिलीट करने के बाद पूछा- वो … मेरा प्रोजेक्ट?
“अरे बेबी! तुम क्यों चिंता कर रही हो? तुम थक गई होगी … आओ … पहले हम दोनों नाश्ता कर लेते हैं फिर मैं फ़टाफ़ट तुम्हारा प्रोजेक्ट कम्पलीट कर देता हूँ।”
और फिर सुहाना अपना प्रोजेक्ट कम्पलीट करवा कर अपने घर चली गई.
और मैं सोफे पर ही आराम से पसर गया।
मेरा मन तो पीहू नामक उस फुलझड़ी का भी प्रोजेक्ट इसी प्रकार कम्पलीट करने का कर रहा था पर यह सब कहाँ संभव हो सकता था। हे लिंग देव मैंने जो चाहा और जो माँगा तुमने अपनी रहमत के सारे खजाने मेरी झोली में डाल दिए हैं।
अगले दिन नये बॉस ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया और मेरे लिए 3 दिन बाद का बंगलुरु जाने का प्रोग्राम बना दिया। भरतपुर से सीधी फ्लाइट नहीं है इसलिए मैंने आगरा से बंगलुरु के लिए फ्लाइट की टिकट बुक करवा ली।
10 बजे की बंगलुरु के लिए फ्लाइट थी तो सुबह जल्दी आगरा के लिए निकलना होगा। नताशा तो पहले ही ट्रेन से बंगलुरु चली भी गई थी। मेरा मन तो नताशा के साथ ही जाने का कर रहा था पर वक़्त की नजाकत देखते हुए उसे पहले ही भेजना सही था।
सानिया का फोन आया था कि कल सुबह वह काम पर आ जायेगी। मेरा मन तो जाते-जाते बस एक-बार फिर से सानिया मिर्ज़ा को जी भर के चोद लेने को करने लगा था। पर सब कुछ अपने मन के मुताबिक़ कहाँ हो पाता है।
मैं सानिया का इंतज़ार कर रहा था और सोच रहा था आज एक बार से फिर से उन्ही पलों को दोहरा लिया जाए.
पर मैंने देखा उसके साथ गुलाबो भी आ धमकी है।
आप सोच सकते हैं मुझे मधुर और गुलाबो पर कितना गुस्सा आया होगा। साली यह किस्मत भी लौड़े लगाने से बाज नहीं आने वाली। अब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। कल मधुर का भी फोन आया था तो मैंने उसे बंगलुरु जाने के प्रोग्राम के बारे में बता दिया था।
ओह … तो यह सब उस मधुर की बच्ची का कारनामा है लगता है उसी ने गुलाबो को मेरे बंगलुरु जाने वाली बात गुलाबो को बताई होगी. और रसोई में जो राशन आदि बचा है उसे भी ले जाए और कुछ पैसे भी ले जाए।
बेचारी सानिया तो उदास नज़रों से बस मेरी ओर ताकती ही रह गई थी।
काश! आज एक घंटा इस फुलझड़ी के साथ बिताने को मिल जाता तो 3-4 दिनों की कसर इसी एक घंटे में ही पूरी हो जाती।
“आआई ईईईई …” सुहाना के मुंह से एक किलकारी सी निकल गई। वह अपने नितम्ब उचकाने लगी थी। अब मैंने फिर से हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए। सुहाना ने रोमांच के मारे अपनी जांघें और भी खोल दी। अब तो मेरा लंड सरपट दौड़ाने सा लगा था।
“सुहाना कैसा लग रहा है?”
“आह … अब कुछ मत पूछो … आह … आपने मुझे पागल सा कर दिया है आह … उईईईईइ … मा …” सुहाना पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थी।
और फिर उसने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और मेरे होंठों को चूमने लगी। मैंने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगा लिया और दूसरे हाथ से उसके उरोजों को दबाने लगा। सुहाना मदहोश हुई मुझे चूमे जा रही थी और साथ में सीत्कारें लेती अपने नितम्बों को भी मेरे धक्कों के साथ हिलाती जा रही थी।
दोस्तो! मैं तो चाहता था हमारा यह प्रेम मिलन अनंत काल तक चलता जाए!
पर आखिर शरीर की एक सीमा होती है। मुझे लगाने लगा था मैं अब उत्तेजना के उच्चतम शिखर पर पहुँचने वाला हूँ और अब किसी भी समय मेरा स्खलन हो सकता है।
सुहाना का इस दौरान उसका 2 बार और ओर्गास्म हो गया था। और अब तो वह आँखें बंद किए मस्त मोरनी बनी सपनों की दुनिया में खोई इस आनंद को भोगते जा रही थी।
मैंने अपने धक्कों की गति थोड़ी बढ़ा दी और मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर होने की तैयारी करने लगा।
अचानक सुहाना ने अपनी बाहें मेरी पीठ पर जोर से कस लीं और अपने दोनों घुटने ऊपर उठा लिए।
“आह … आआ … ईईइ …” की आवाज के साथ उसने अपने पैर धड़ाम से नीचे कर दिए और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी।
और उसके साथ ही मेरी भी पिचकारियाँ निकल कर निरोध को भरती चली गई। काश! इस समय इस निरोध की दीवार हम दोनों के बीच ना होती। 2-3 मिनट मैं उसके ऊपर ही लेटा रहा। मुझे हैरानी हो रही थी सुहाना को मेरे शरीर का भार बिल्कुल नहीं लग रहा था। मैंने उसके होंठों को चूमते हए उसका धन्यवाद किया और फिर उसके ऊपर से उठ खड़ा हुआ।
सुहाना लम्बी लम्बी साँसें लेती हुई ऐसे ही लेटी रही। बेचारी पतली सी कच्छी की हालत देखकर तो उसकी बुर की हालत का अंदाज़ा लगाया ही जा सकता था। उसकी बुर से निकले कामरज से वह भीग सी गई थी। उसके पपोटे सूज कर और भी मोटे हो गए थे और उसकी लीबिया (अंदरूनी होंठ) तो ऐसे लग रहे थे जैसे किसी गुलाब की अध खिली कलि को बेदर्दी से मसल दिया हो ।
मैंने नीचे होकर एक बार उन कलिकाओं को चूमने की कोशिश की तो सुहाना ने थोड़ा चौंकते हुए कहा- हट! की कोरचे? (हटो! क्या कर रहे हो?)
और फिर उसने अपने हाथ अपनी बुर पर रखते हुए उसे ढक लिया।
थोड़ी देर बाद सुहाना अपने कपड़े उठाकर लंगड़ाती हुई बाथरूम में चली गई।
हे भगवान् गोल कसे हुए नितम्बों की लचक तो कोमल और सिमरन से भी अधिक मादक थी। मेरा मन तो उसके साथ ही बाथरूम में जाने का कर रहा था पर मैंने अपने आप को रोक लिया।
थोड़ी देर में सुहाना बाथरूम से वापस आ गई। उसने अपने कपड़े पहन लिए थे। जब तक मैं बाथरूम से वापस आया सुहाना बाहर हॉल में आ गई थी और मेरे लैपटॉप से फाइल्स डिलीट करने की कोशिश में लगी हुयी थी।
“सर … वो फाइल्स डिलीट कर दो ना अब?”
“ओह … हाँ मेरी बुलबुल … लो मैं तुम्हारे सामने सारी फाइल्स डिलीट कर देता हूँ।”
और फिर मैंने सच में फाइल्स और फोटोज को परमानेंटली डिलीट कर दिया।
“वो … मोबाइल में भी थी ना?”
“लो तुम अपने हाथों से पूरी गैलरी की सारी पिक्चर और फाइल्स ही डिलीट कर दो!” कहते हुए मैंने उसे अपना मोबाइल पकड़ा दिया।
सुहाना ने सारी फोटो और विडियोज डिलीट करने के बाद पूछा- वो … मेरा प्रोजेक्ट?
“अरे बेबी! तुम क्यों चिंता कर रही हो? तुम थक गई होगी … आओ … पहले हम दोनों नाश्ता कर लेते हैं फिर मैं फ़टाफ़ट तुम्हारा प्रोजेक्ट कम्पलीट कर देता हूँ।”
और फिर सुहाना अपना प्रोजेक्ट कम्पलीट करवा कर अपने घर चली गई.
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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- jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
सानिया सफाई में लग गई और गुलाबो रसोई में मेरे लिए नाश्ता चाय बनाने लगी।
मैंने तो मना भी किया पर वह मानी ही नहीं।
अनमना सा होकर मैं बेड रूम में आकर लेट गया। मैं सोच रहा था काश! एकबार बस 2 मिनट के ही सानिया कमरे में आ जाए। मैं एक बार उसे गले से लगाकर चूम लेना चाहता था।
इतने में सानिया हाथों में झाडू लिए सफाई के लिए आ गई और उसने दरवाजे का पल्ला थोड़ा भिड़ा दिया।
मैंने झट से उसे बांहों में भर लिया और चूमने लगा।
“सानू मेरी जान … इन 4 दिनों में मैंने तुम्हें बहुत याद किया.”
सानिया बेचारी क्या बोलती वह तो मेरे सीने से लगी बस रोने ही लगी थी।
“सर … मैं आपके बिना मल जाऊंगी … आप जल्दी आ जाओगे ना?”
“हाँ मेरी जान मैं भी अब तुमसे दूर नहीं रह सकता मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगा।” कहते हुए मैंने उसके गालों पर लुढ़कते हुए आसुओं को चूम लिया। सानिया मेरे सीने से लगी रोती रही। मेरी बेबसी देखो मैं तो उसे ठीक से सांत्वना भी नहीं दे पाया।
साली समस्याएं पीछा ही नहीं छोड़ती। मुझे नहीं लगता मधुर का जल्दी आने का कोई प्रोग्राम है। 3-4 महीनों के लिए घर खाली छोड़ना भी मुश्किल काम होता है। यह तो अच्छा हुआ कि मेरे साथ ऑफिस में काम करने वाले गुलाटी का कोई जानकार हमारे मकान में रहने के लिए तैयार हो गया था तो दोनों कमरों में पड़ा सामान एक कमरे में शिफ्ट कर दिया। और फिर घर की एक चाबी गुलाटी को भिजवा दी।
गुलाबो रसोईघर में रखा बचाखुचा राशन और फ्रिज़ में रखी मिठाई, सब्जियां और आइसक्रीम आदि लेकर चली गई।
मैंने उसे मधुर के कहे अनुसार 4000 रुपए भी दे दिए।
सानिया ने जाते समय उदास आँखों से मुझे एक बार देखा। उसके हृदय की असीम पीड़ा मेरे अलावा कोई ओर कैसे जान सकता था।
एक मन तो कर रहा था कि मैं मुंबई होते हुए निकल जाऊं। पता नहीं आज क्यों बार-बार कोमल की याद आ रही थी। साली मधुर ने तो एक बार भी मुंबई होते हुए निकल जाने के लिए नहीं बोला था।
कोई बात नहीं मुंबई की बाद में सोचेंगे मैं जल्दी से जल्दी बंगलुरु पहुँचना चाहता था वहाँ वह पूरी बोतल का नशा पलक पांवड़े बिछाए हमारा इंतज़ार कर रही है।
उसका तो 2-3 बार फोन भी आ चुका है।
पहले बंगलुरु एयरपोर्ट और बाद में होटल पहुंचते-पहुंचते 4 बज गए थे। रॉयल ऑकिड होटल में एक डीलक्स रूम मैंने पहले ही बुक करवा लिया था। मैंने अपने पहुँचने की खबर नताशा को दे दी और उसे रूम नंबर भी बता दिया था। फिर मैं चाय का आर्डर देकर मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला आया।
मैं अभी फ्रेश होकर रूम में आया ही था कि कॉल बेल बजी। मैं समझा वेटर चाय लेकर आया होगा। जैसे ही मैंने रूम का दरवाजा खोला तो सामने नताशा जलवा अफरोज थी।
नताशा ने अपने खुले बालों को एक चोटी की शक्ल में रबड़ बैंड से बाँधकर अपने उरोजों पर डाल रखा था। माथे पर छोटी सी बिंदी लगा रखी थी और और कानों के ऊपर सोने की छोटी छोटी डबल बालियाँ पहन रखी थी।
उसने स्पोर्ट्स शूज, सफ़ेद रंग की जीन पैंट और खुला टॉप पहन रखा था। इस कपड़ों में तो उसके नितम्ब इतने कसे हुए लग रहे थे जैसे अभी पैंट को फाड़कर बाहर आ जायेंगे। जीन पैंट के पीछे हिप्स के ऊपर एक तीर का निशान भी बना हुआ था।
वाह … क्या रबड़ बैंड की तरह टाईट गांड है। टॉप के अन्दर झांकते गोल उरोजों की घुन्डियाँ तो बहुत नुकीली सी लग रही थी। लगता था जैसे नीम की पकी हुयी निम्बोलियाँ हों।
उसने शायद काले रंग की ब्रा पहनी हुयी थी जिसकी पट्टियां साफ़ दिख रही थी।
हे भगवान् लगता है इसने पैंटी भी काले रंग की ही पहनी होगी। होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक और लम्बी सुतवां बांहों के नीचे कलाइयों में एक एक चूड़ी … कजरारी नशीली आँखों के ऊपर पतली पतली पैनी कटार सी आई ब्रो (भोंहें) … कानों में छोटी-छोटी बालियाँ उफ्फ … शरीर से मदहोश कर देने वाली जवान जिस्म और परफ्यूम की मिलीजुली खुशबू …
मैं तो टकटकी लगाए बस उसे देखता ही रह गया। मुझे तो लगा उसके इस रूप की गर्मी से मैं तो पिंघल ही जाउंगा।
“गुड इवनिंग सर!” नताशा की मखमली आवाज सुनकर मैं चौंका।
“अरे … ओह … हाँ … नताशा … तुम? ओह … प्लीज आओ अन्दर आओ.”
नताशा ‘थैंक यू’ कहते हुए अन्दर आ गई।
मैंने कमरे की चिटकनी लगा दी। नताशा थोड़ा सा हट कर खड़ी हो गई।
“आओ नताशा … प्लीज बैठो!” मैंने सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा.
तो नताशा सुस्त कदमों से चलते हुए सोफे पर बैठ गई और अपने हाथ में पकड़ा काले रंग का ऑफिस बैग टेबल पर रख दिया।
वह एक हाथ से अपने लम्बे बालों की चोटी को सहलाती हुयी पता नहीं क्या सोचे जा रही थी।
“आपने तो सुबह चलने से पहले मुझे फोन ही नहीं किया?”
“ओह.. हाँ … वो दरअसल फ्लाईट थोड़ा लेट थी.”
“आप मुझे पहले बता देते तो मैं एयरपोर्ट पर आपको लेने आ जाती.” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
हे भगवान्! उसकी नशीली आँखों में तो लाल डोरे से तैर रहे थे लगता था जैसे 2-3 रातों से नींद ही ना आई हो। सच कहूं तो इस समय मेरे कानों में भी सीटियाँ सी बजने लगी थी और मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था।
“ओह … थैंक यू … डिअर, मैंने सोचा तुम्हें परेशानी होगी.”
“आपने तो मुझे याद ही नहीं किया?” नताशा ने उलाहना सा दिया और अपने हाथों की अंगुलियाँ चटकाने सी लगी।
“ओह … हाँ … वो ऑफिस का चार्ज देने में ही सारा टाइम निकल गया। मधुर को भी फोन करने का समय नहीं मिला। अब यहाँ पहुँचते ही सबसे पहले तुम्हें ही फोन किया।”
“आपको मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा क्या?”
मैंने तो मना भी किया पर वह मानी ही नहीं।
अनमना सा होकर मैं बेड रूम में आकर लेट गया। मैं सोच रहा था काश! एकबार बस 2 मिनट के ही सानिया कमरे में आ जाए। मैं एक बार उसे गले से लगाकर चूम लेना चाहता था।
इतने में सानिया हाथों में झाडू लिए सफाई के लिए आ गई और उसने दरवाजे का पल्ला थोड़ा भिड़ा दिया।
मैंने झट से उसे बांहों में भर लिया और चूमने लगा।
“सानू मेरी जान … इन 4 दिनों में मैंने तुम्हें बहुत याद किया.”
सानिया बेचारी क्या बोलती वह तो मेरे सीने से लगी बस रोने ही लगी थी।
“सर … मैं आपके बिना मल जाऊंगी … आप जल्दी आ जाओगे ना?”
“हाँ मेरी जान मैं भी अब तुमसे दूर नहीं रह सकता मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगा।” कहते हुए मैंने उसके गालों पर लुढ़कते हुए आसुओं को चूम लिया। सानिया मेरे सीने से लगी रोती रही। मेरी बेबसी देखो मैं तो उसे ठीक से सांत्वना भी नहीं दे पाया।
साली समस्याएं पीछा ही नहीं छोड़ती। मुझे नहीं लगता मधुर का जल्दी आने का कोई प्रोग्राम है। 3-4 महीनों के लिए घर खाली छोड़ना भी मुश्किल काम होता है। यह तो अच्छा हुआ कि मेरे साथ ऑफिस में काम करने वाले गुलाटी का कोई जानकार हमारे मकान में रहने के लिए तैयार हो गया था तो दोनों कमरों में पड़ा सामान एक कमरे में शिफ्ट कर दिया। और फिर घर की एक चाबी गुलाटी को भिजवा दी।
गुलाबो रसोईघर में रखा बचाखुचा राशन और फ्रिज़ में रखी मिठाई, सब्जियां और आइसक्रीम आदि लेकर चली गई।
मैंने उसे मधुर के कहे अनुसार 4000 रुपए भी दे दिए।
सानिया ने जाते समय उदास आँखों से मुझे एक बार देखा। उसके हृदय की असीम पीड़ा मेरे अलावा कोई ओर कैसे जान सकता था।
एक मन तो कर रहा था कि मैं मुंबई होते हुए निकल जाऊं। पता नहीं आज क्यों बार-बार कोमल की याद आ रही थी। साली मधुर ने तो एक बार भी मुंबई होते हुए निकल जाने के लिए नहीं बोला था।
कोई बात नहीं मुंबई की बाद में सोचेंगे मैं जल्दी से जल्दी बंगलुरु पहुँचना चाहता था वहाँ वह पूरी बोतल का नशा पलक पांवड़े बिछाए हमारा इंतज़ार कर रही है।
उसका तो 2-3 बार फोन भी आ चुका है।
पहले बंगलुरु एयरपोर्ट और बाद में होटल पहुंचते-पहुंचते 4 बज गए थे। रॉयल ऑकिड होटल में एक डीलक्स रूम मैंने पहले ही बुक करवा लिया था। मैंने अपने पहुँचने की खबर नताशा को दे दी और उसे रूम नंबर भी बता दिया था। फिर मैं चाय का आर्डर देकर मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला आया।
मैं अभी फ्रेश होकर रूम में आया ही था कि कॉल बेल बजी। मैं समझा वेटर चाय लेकर आया होगा। जैसे ही मैंने रूम का दरवाजा खोला तो सामने नताशा जलवा अफरोज थी।
नताशा ने अपने खुले बालों को एक चोटी की शक्ल में रबड़ बैंड से बाँधकर अपने उरोजों पर डाल रखा था। माथे पर छोटी सी बिंदी लगा रखी थी और और कानों के ऊपर सोने की छोटी छोटी डबल बालियाँ पहन रखी थी।
उसने स्पोर्ट्स शूज, सफ़ेद रंग की जीन पैंट और खुला टॉप पहन रखा था। इस कपड़ों में तो उसके नितम्ब इतने कसे हुए लग रहे थे जैसे अभी पैंट को फाड़कर बाहर आ जायेंगे। जीन पैंट के पीछे हिप्स के ऊपर एक तीर का निशान भी बना हुआ था।
वाह … क्या रबड़ बैंड की तरह टाईट गांड है। टॉप के अन्दर झांकते गोल उरोजों की घुन्डियाँ तो बहुत नुकीली सी लग रही थी। लगता था जैसे नीम की पकी हुयी निम्बोलियाँ हों।
उसने शायद काले रंग की ब्रा पहनी हुयी थी जिसकी पट्टियां साफ़ दिख रही थी।
हे भगवान् लगता है इसने पैंटी भी काले रंग की ही पहनी होगी। होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक और लम्बी सुतवां बांहों के नीचे कलाइयों में एक एक चूड़ी … कजरारी नशीली आँखों के ऊपर पतली पतली पैनी कटार सी आई ब्रो (भोंहें) … कानों में छोटी-छोटी बालियाँ उफ्फ … शरीर से मदहोश कर देने वाली जवान जिस्म और परफ्यूम की मिलीजुली खुशबू …
मैं तो टकटकी लगाए बस उसे देखता ही रह गया। मुझे तो लगा उसके इस रूप की गर्मी से मैं तो पिंघल ही जाउंगा।
“गुड इवनिंग सर!” नताशा की मखमली आवाज सुनकर मैं चौंका।
“अरे … ओह … हाँ … नताशा … तुम? ओह … प्लीज आओ अन्दर आओ.”
नताशा ‘थैंक यू’ कहते हुए अन्दर आ गई।
मैंने कमरे की चिटकनी लगा दी। नताशा थोड़ा सा हट कर खड़ी हो गई।
“आओ नताशा … प्लीज बैठो!” मैंने सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा.
तो नताशा सुस्त कदमों से चलते हुए सोफे पर बैठ गई और अपने हाथ में पकड़ा काले रंग का ऑफिस बैग टेबल पर रख दिया।
वह एक हाथ से अपने लम्बे बालों की चोटी को सहलाती हुयी पता नहीं क्या सोचे जा रही थी।
“आपने तो सुबह चलने से पहले मुझे फोन ही नहीं किया?”
“ओह.. हाँ … वो दरअसल फ्लाईट थोड़ा लेट थी.”
“आप मुझे पहले बता देते तो मैं एयरपोर्ट पर आपको लेने आ जाती.” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
हे भगवान्! उसकी नशीली आँखों में तो लाल डोरे से तैर रहे थे लगता था जैसे 2-3 रातों से नींद ही ना आई हो। सच कहूं तो इस समय मेरे कानों में भी सीटियाँ सी बजने लगी थी और मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था।
“ओह … थैंक यू … डिअर, मैंने सोचा तुम्हें परेशानी होगी.”
“आपने तो मुझे याद ही नहीं किया?” नताशा ने उलाहना सा दिया और अपने हाथों की अंगुलियाँ चटकाने सी लगी।
“ओह … हाँ … वो ऑफिस का चार्ज देने में ही सारा टाइम निकल गया। मधुर को भी फोन करने का समय नहीं मिला। अब यहाँ पहुँचते ही सबसे पहले तुम्हें ही फोन किया।”
“आपको मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा क्या?”
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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