एक अधूरी प्यास- 2

Post Reply
rajan
Expert Member
Posts: 3353
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

शुभम भी अपनी मां की रसीली पुर की तड़प को भाप गया और एक पल की देरी किए बिना फिर से दोनों टांगों के बीच आ गया और अपने लिए जगह बना कर एक बार फिर से अपनी मां की बुर में समा गया इस बार वह इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया था कि शुरू से ही तेज धक्कों के साथ चोदना शुरु कर दिया उत्तेजना के मारे निर्मला सूखे पत्तों की तरह फड़फड़ा रही थी लेकिन उसे बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी शुभम के धक्के इतनी तेज थी कि निर्मला को कभी-कभी दर्द का अनुभव हो रहा था लेकिन फिर भी उसकी गर्म सिस कारीयो में उसकी वेदना खो। जा रही थी।

निर्मला पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी उसकी आंखों में खुमारी का नशा छाया हुआ था वह हर धक्के के साथ मस्त हुए जा रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि आज उसका बेटा और ज्यादा ताकत के साथ उसकी चुदाई कर रहा है वह आनंद से भाव विभोर हुए जा रही थी

एक बार फिर से पूरे कमरे में निर्मला की गर्म सिसकारियां गुंजने लगी और उन गरम से इस कार्य को सुनने वाला इस समय घर में उन दोनों के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था इसलिए तो दोनों बेफिक्र होकर एक दूसरे के मस्ती में खोते चले जा रहे थे।
शुभम अपनी मां की दोनों मत मस्त चूचियों को थाने उसके ऊपर झुक गया और दोनों चुचियों को बारी-बारी से अपने मुंह में भर कर पीते हुए अपनी कमर को हिला दे रहा जिससे निर्मला को दुगने मजे का अनुभव हो रहा था वह भी अपने बेटे को अपनी बाहों में लेकर उसके हर धक्के का स्वागत करने लगी रह रहे कर वह नीचे से भी अपनी गांड को ऊपर की तरफ उछाल दे रही थी।

दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे।दो बार निर्मला झड़ चुकी थी और तीसरी बार झड़ने के कगार पर थी और यही हाल शुभम काफी था वह तेज धक्के लगा रहा था क्योंकि उसे पता था कि उसका भी पानी निकलने वाला है दोनों एक दूसरे को कसकर अपनी बाहों में जकड़े हुए थे। शुभम के हर धक्के के साथ पलंग चरमरा जा रही थी।

दोनों एक दूसरे की तेज चलती सांसो की गति से अंदाजा लगा लिए थे कि दोनों झड़ने के बिल्कुल करीब थे इसलिए दोनों इस पल का और ज्यादा मजा लेते हुए एक दूसरे की बाहों में खो जाना चाहते थे निर्मला अपने दोनों हाथों के नीचे की तरफ लाकर शुभम के नितंबों को अपनी हथेली में जकड़ कर उसे और ज्यादा अपनी बुर पर दबाना शुरू कर दी जिससे शुभम को और ज्यादा मजा आ रहा था और वह और तेज धक्के लगा रहा था देखते ही देखते कुछ देर बाद दोनों एक साथ भला कर झड़ गए।


दोनों संपूर्ण लगना अवस्था में उसी तरह से एक दूसरे को बांहों में लिए बिस्तर पर लेटे रहे शुभम को हटने का मन नहीं कर रहा था इसलिए उसी तरह से अपनी मां की नंगे बदन पर लेटा रहा वह भी उसे सबासी देते हुए उसकी पीठ को थपथपा रही थी।
दोनों बुरी तरह से थक चुके थे समय भी काफी गुजर चुका था इसलिए दोनों बिना कपड़े पहने उसी तरह से लगना अवस्था में ही सो गए।

तनाव भरे पल से निकलते ही निर्मला ने एक बार फिर से अपने बेटे से जमकर चुदवाने के बाद संतुष्टि भरा एहसास लिए अपने बेटे की बाहों में बाहें डाल कर नींद की आगोश में चली गई दूसरी तरफ शीतल जो कि अपने बेडरूम में अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थी और करवटें बदलने की वजह से उसके बिस्तर पर बिछी चादर पर सिलवटें पड़ चुकी थी जो कि उसकी तनाव भरी जिंदगी की कहानी बयां कर रही थी। खूबसूरती और जवानी से भरपूर होने के बावजूद भी शीतल की हालत थी कि उसे शरीर सुख नहीं मिल पा रहा था । वह भी अपने पति से शरीर सुख की प्राप्ति करने का सपना छोड़ दी थी वह जानती थी कि उसके पति से उसकी जवानी नीचोड़ी नहीं जा पाएगी... ऐसी परिस्थिति में वह जिंदगी की हर रात इसी तरह से बिस्तर पर करवटें बदलते हुए गुजार रही थी ।
अधूरी जिंदगी में आशा की एक सुनहरी कर नजर आई थी जो कि उसकी ही गलती के बदौलत उससे दूर जाती हुई नजर आ रही थी। वह अपनी गलती पर ही पछता रही थी क्योंकि अच्छी तरह से जानती थी कि निर्मला की नजर उन दोनों पर बनी हुई थी और ऐसे में शुभम खुद इस बात से आगाह कर चुका था कि उसकी मम्मी ने उसे मिलने से इंकार की है।
यही सोच सोच कर शीतल अपने आप पर ही गुस्सा हो रही थी लेकिन वह कर भी क्या सकती थी आखिरकार अपनी जवानी की गर्मी को बर्दाश्त न कर सकने की स्थिति में थक हारकर वह मजबूरी में शुभम को अपनी क्लास रूम में बुलाई थी । जहां पर वह लगभग अपनी बढ़ती हुई प्यास को थोड़ा बहुत नियंत्रण करने के इरादे से उसके मोटे तगड़े लैंड को मुंह में लेकर चूसना भी शुरू कर दी थी लेकिन ऐन मौके पर निर्मला के आ जाने से उसकी नियंत्रण हो रही प्यास और ज्यादा भड़क गई थी और बदनामी भी हो चुकी थी भले ही वह उसकी सबसे बेस्ट फ्रेंड निर्मला के सामने हुई हो। ऐसे हालात में उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह निर्मला से मिलकर उस से माफी मांगना चाहती थी जिसके लिए वह अपने आप को पहले से ही तैयार कर चुकी थी। शीतल करती भी क्या आखिरकार वह भी निर्मला की तरह ही जिंदगी जी रही थी वह अपनी जवानी की प्यास को अब तक दबाते चली आ रही थी लेकिन जिस दिन से शुभम को देखी थी तब से उसकी यह जवानी की प्यास और ज्यादा भड़क चुकी थी। वह अपनी उफान मारती है जवानी को काबू में रख पाने में असमर्थ होती जा रही थी दिन-रात उसे शुभम ही शुभम नजर आ रहा था शुभम का जवान मर्दाना कद काठी उसकी चौड़ी छाती उसका भोलापन और सबसे खास बात यह कि टांगों के बीच का वह हथियार जिसके लिए हर औरत बेसब्र हो जाती है शीतल यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम के पास जिस तरह का मर्दाना लंड है उसने आज तक जिंदगी में ऐसी लड़की सिर्फ कल्पना ही की थी हकीकत में ऐसे लंड का दीदार कर पाना उसके लिए असमर्थ था और जिस दिन से उसने शुभम के लंड को अपनी आंखों से देख कर उसे हाथों में लेकर उसका स्पर्श की थी उसकी गर्माहट भरी स्पर्श को पाते ही उसकी टांगों के बीच की रसीली बुर पसीजने लगी थी इस बात का एहसास उसे अच्छी तरह से था। शुभम के मोटे तगड़े लंड को हाथ में लेते हैं उसे इस बात का एहसास हो गया था कि जब इसकी गर्मी हाथ में लेने पर भी सही नहीं जा रही है तो जब यह उसकी टांगों को फैला कर उसके कसी हुई बुर के अंदर डालेगा तब उसका क्या हाल होगा और उसी पल को जीने के लिए वह तड़प रही थी मचल रही थी शुभम से चुदवाने के लिए वह दिन-रात मौके की तलाश में थी कि कब शुभम उसकी जवानी का रस अपनी मर्दाना ताकत से नहीं जोड़ डाले जो कि वह बरसों से बचाकर रखी थी।
छुप छुपा कर दुनिया की नजरों से बच कर क्लास रूम में वह अपनी इच्छा पूरी करने हेतु शुभम के मोटे तगड़े लंड को मुंह में लेकर उसके एहसास को महसूस तो कर चुकी थी लेकिन अच्छी तरह से उसके लंड को चूस नहीं पाई थी वह शुभम के लंड को आइसक्रीम कोन की तरह धीरे-धीरे अपने गले में उतारना चाहती थी और उसके पिघलते हुए एहसास से भर जाना चाहती थी। लेकिन एकाएक निर्मला के आ जाने से उसके किए किराए पर पानी फिर चुका था।

गलती तो उसने की थी इस बात का अंदाजा उसे अच्छी तरह से था लेकिन उस गलती का पछतावा उसे इस बात से नहीं था कि वह गलत कर रही थी बल्कि इस बात से था कि वह सही मौका और सही जगह को चुन नहीं पाई थी वरना ऐसा कभी भी नहीं होता वह निर्मला से माफी मांग कर फिर से अपने रिश्ते को पहले की तरह बरकरार रखना चाहती थी क्योंकि अच्छी तरह से जानती थी कि जब दोनों के बीच उसी तरह के पहले जैसे रिश्ते होंगे तभी वह शुभम को अपनी दोनों टांगों के बीच देख पाएगी वरना उसका यह सपना भी सपना ही बनकर रह जाएगा इसलिए वह किसी भी तरह से निर्मला से मिलकर अपनी गलती के पछतावे के रूप में उससे हाथ जोड़कर माफी मांग लेना चाहती थी और उसे उम्मीद थी कि निर्मला उसे जरूर माफ कर देगी।

यह तो बात की बात थी लेकिन इस समय बिस्तर पर शुभम के मोटे तगड़े लंड की तपिश उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ा रही थी जिसकी बदौलत उसकी बुर से लगातार नमकीन रस बह रहा था।
शीतल इस समय बिस्तर पर मचल रही थी और उसकी ट्रांसपेरेंट गाउन जो कि सिर्फ उसकी मोटी मांसल जांघों ता्क ही आ रहे थे और इस समय फिसल कर उसकी कमर तक पहुंच गई थी जिससे उसकी नंगी चिकनी जांघों के दर्शन बराबर हो रहे थे वो ट्यूबलाइट की रोशनी में किसी दूधिया बल्ब की तरह चमक रही थी। शीतल के बदन में इस समय आग लगी हुई थी और जिसके मोटे तगड़े लंड के लिए वह तड़प रही थी वह तो उस लगने से अपनी मां की चुदाई करके उसकी बाहों में सो चुका था और शीतल को तड़पते हुए छोड़ दिया था ।

शीतल ईस समय गर्म सिसकारी लेते हुए अपने हाथ को पेंटिंनुमा तिजोरी में डालकर अपने खजाने को अपनी नाजुक नाजुक उंगलियों से टटोलकर उसका जायजा ले रही थी जो कि इस समय तवे पर रखी हुई गरम रोटी की तरह भूल चुकी थी और उसमें से मधुर रस बह रहा था।

शीतल की मदहोश जवानी अंगड़ाई ले रही थी किसी मर्द की मजबूत बाहों में जाने के लिए उसका अंग-अंग टूट रहा था जो कि इस समय उसका तन मन शुभम के प्रति सम्मोहित हो चुका था और उसकी मर्दाना ताकत को याद करके शीतल अपनी कचोरी जैसी फूली हुई पुर की गुलाबी पत्तियों को अपनी उंगलियों के बीच दबाकर उसे रगड़ रही थी जिससे उसकी याद शांत होने की जगह और ज्यादा भड़क जा रही थी वह अपनी पेंटी में हाथ डाले लगातार अपनी बुर को अपने हाथों से ही मसल रही थी पूरे कमरे में उसकी सिसकारी की आवाज गूंज रही थी वह मस्त हुए जा रही थी।
वह कुछ देर तक ऐसे ही अपनी बुर को अपने हाथों से ही मचलती रही और मन ही मन शुभम का ख्याल करते हुए ऐसी कल्पना करने लगेगी उसकी बुर को मसलने वाली हथेली उसकी नहीं बल्कि शुभम की है जो कि अपनी उंगलियों का कमाल उसकी बुर पर दिखा रहा है। अपने ही हाथों से शीतल मस्त हुए जा रही थी वह अपनी आंखों को बंद करके एक असीम एहसास मैं खुद ही चली जा रही थी लेकिन इस हद तक प्यासी हो कि उसकी आंखों के सामने केवल एक अद्भुत लंबा तगड़ा लंड नजर आ रहा हो तब उसकी प्यास केवल हथेली की रगड़ से कहां बुझने वाली थी और वही हाल शीतल का भी हो रहा था वह अपनी भावनाओं पर काबू कर पाने में असमर्थ साबित हो रही थी अपनी गलती की वजह से शुभम को दूर होता हुआ देखने के बावजूद भी इस समय वहां शुभम को याद करके मस्त हुए जा रही थी उसे समझते देर नहीं लगी कि उसकी प्यास ऊंगली से बिल्कुल भी बुझने वाली नहीं है इसलिए वह तुरंत बिस्तर पर से उठ कर खड़ी हुई और किचन की तरफ चली गई।....
rajan
Expert Member
Posts: 3353
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

जिस तरह की मादक चाल वही समय चल रही थी अगर कोई उसे चलते हुए देख लेता तो उसका लंड तुरंत खड़ा हो जाता क्योंकि वह अपनी मदमस्त गोल-गोल गांड को मटका ते हुए किचन की तरफ जा रहे थे हालांकि इस समय उसकी अद्भुत चाल को देखने वाला घर पर कोई भी नहीं था वह बेफिक्र होकर अपने किचन की तरफ चली जा रही थी।
और किचन में पहुंचते ही फ्रिज खोलकर उसमें से एक लंबा मोटा तगड़ा बैगन निकाल कर उसको अपने हाथों में लेकर अपनी उंगली और अंगूठे से गोल बनाकर उसमें डालकर उसकी मोटाई को चेक करके प्रसन्नता के साथ वह वापस अपने कमरे में आ गए और अपने कमरे में आते ही वह अपने बदन पर से ट्रांसपेरेंट गाउन को उतार फेंकी जो कि उसने ब्रा नहीं पहनी थी जिसकी वजह से उसकी गोल-गोल चूचियां सीना ताने खड़ी थी और बिस्तर पर लेटने से पहले वह अपनी पेंटी को भी उतार कर फेंक दी बिस्तर पर वह पूरी तरह से नंगी होकर अपनी दोनों टांगों को फैला ली और एक बार फिर से उस बैगन की मोटाई का जायजा लेने के लिए .. उसे मुंह में लेकर चूसने लगी मानो कि जैसे वह बैगन नहीं शुभम का मोटा तगड़ा लंड हो... वह अपने मुंह में उस बैगन को लेकर अंदर बाहर करते हुए उस बैगन का मजा ऐसे लेने लगी मानो कि वह जीता जागता शुभम का लंड हो वह पूरी तरह से उसे अपने थूक से गीला कर ली और एक हाथ से लगातार अपनी बुर को मसले जा रही थी जिससे उसमें से नमकीन रस बह रहा था।

अपनी हरकतों से शीतल अपनी जवानी की आग पर काबू पाने में असमर्थ हो गई और वह तुरंत अपने मुंह में से बैगन को निकालकर अपनी दोनों टांगों को फैला ली और एक तकिया अपनी मदमस्त गोल-गोल गांड के नीचे रखकर उसे हल्का सा ऊपर उठा दी अब उसे अपनी टांगों के बीच कि वह रसीली पतली सी खुली हुई दरार अच्छी से नजर आ रही थी और उस दरार के गुलाबी छेद में गीले बैगन को धीरे धीरे अंदर डालने लगी...वह अपनी बुर में डाल तो रही थी बेगन को लेकिन उसकी कल्पना में शुभम का मोटा तगड़ा लंड बसा हुआ था उसे ऐसा ही लग रहा था कि जैसे खुद शुभम उसकी दोनों टांगों को फैला कर अपने मोटे तगड़े लंड को धीरे-धीरे ताकत लगाते हुए की बुर में डाल रहा है। जैसे-जैसे बैगन बोर के अंदर प्रवेश कर रहा था वैसे वैसे उसकी सांसों की गति तेज होती जा रही थी उसे मज़ा आने लगा था।
धीरे-धीरे करके आधा बैगन बुर की गहराई में जाने के लिए आतुर हो गया था।उसकी बुर में आधा देवगन भूल चुका था और वह आधी बेगम से ही उसे अंदर बाहर करते हुए बैगन से चुदने का आनंद ले रही थी।

ओहहहह शुभम काश तुम इधर होते तो कितना मज़ा आता तुम अपनी मजबूत बाहों में मुझे भर कर मुझसे प्यार करते हैं मेरी मोटी मोटी टांगों को अपने हाथों में पकड़ कर उसे फैलाते ... मेरी रसीली पंखुड़ियों से सुशोभित गुलाबी बुर को अपने होंठों से स्पर्श करके उसके मधुर रस को अपनी जीभ लगाकर चाटते हैं कितना मजा आ जाता।
ओहहहह शुभम मेरा अंग-अंग टूट रहा है मेरा बदन मीठी चुभन से एक अजीब सा दर्द महसूस कर रहा है तुम्हारी बाहों में आने के लिए शुभम कहां पर हो तुम चले आओ मेरे पास आ जाओ मेरी बाहों में समा जाओ मेरी दोनों टांगों के बीच आकर अपने मजबूत मर्दाना ताकत से मेरी जवानी के रस को निचोड़ डालो।
(शीतल एकदम मस्त हुए जा रही थी और मदहोशी के आलम में अपने मुंह से शुभम के बारे में सोच सोच कर उसे पुकारते हुए लगातार बैगन को अपनी बुर की गहराई में उतारती चली जा रही थी अब बैगन उसकी बुर की गहराई नाप रहा था वह पूरी तरह से शीतल की कसी हुई बुर में दस्तक दे चुका था। शीतल की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी वह धीरे-धीरे करके बैगन को अंदर बाहर करते हुए अपनी बुर की चुदाई करना शुरू कर दी थी।
बेगाना पूरी तरह से उसकी बुर की गहराई लापता हुआ उसे चुदाई का आनंद दे रहा था वह लगातार शुभम का नाम लेते हुए मस्त हुए जा रही थी।
ओहहहह शुभम मेरे राजा ऐसे ही चोदते रहो मुझे जोर जोर से धक्के लगाए बस ऐसे ही पूरी गहराई में उतार दो अपने मोटे लंड को मुझे मस्त कर दे मेरे राजा औहहहहहह शुभम। .....आहहहहहहहह। ...आहहहहहहहह....

शीतल की गर्म सिसकारियो से पूरा कमरा गूंज रहा था।वह पहले भी इसी तरह से बैगन से अपनी प्यास बुझाती थी लेकिन उसे उतना मजा नहीं मिलता था जितना कि आज शुभम कि कल्पना करते हुए और उसका नाम लेकर बैगन से चुदाई करते हुए जो आनंद उसे आ रहा था ऐसा अनुभव उसे पहले कभी नहीं हुआ था और कुछ ही देर में वह भी भलभला कर झड़ गई।....

कुछ देर में वह बिल्कुल शांत हो गई लेकिन आज इस तरह का आनंद का लुफ्त उसने उठाई थी उस अनुभव को लेकर वह अपने मन में दृढ़ निश्चय कर ली कि वह एक ना एक दिन अपनी बुर में शुभम का लंड जरूर लेगी क्योंकि उसे इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो गया कि जब उसका नाम लेने से बैगन से इतना मजा आ रहा है तो जब वह खुद अपना मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में डालेगा तो उसे कितना मजा आएगा. उसका स्त्रीत्व शुभम के मर्दाना अंग से तृप्त हो जाएगा।
वह मन ही मन सोचने लगी कि भले ही उसे आपत्तिजनक अवस्था में उसकी मां ने अपनी आंखों से उसे देख ली है लेकिन एक न एक दिन जरूर भाई शुभम को अपनी बाहों में ले जाएगी और उससे शारीरिक संबंध बनाकर अपने अरमान पूरा करेंगी।
आखिर कब तक बकरे की मां खैर मनाएगी यह सोचते हुए वह मंद मंद मुस्कुराने लगी।

एक बार फिर से निर्मला और शुभम के लिए सब कुछ सामान्य हो चुका था उन दोनों के बीच किसी भी बात को लेकर किसी भी प्रकार का विवाद और तनाव बिल्कुल भी नहीं था शीतल से निर्मला को अपने बेटे को का डर बना हुआ था जो कि शुभम की बात और उसके दिलाए विश्वास से वह डर निकल चुका था. । हालांकि अभी भी उसके मन के किसी कोने में शीतल को लेकर असमंजस बना हुआ था क्योंकि वह मर्दों की फितरत से अच्छी तरह से वाकिफ थी लेकिन फिर भी दोनों के बीच सब कुछ सामान्य ही चल रहा था।
शीतल किसी भी तरह से निर्मला से माफी मांग लेना चाहती थी लेकिन निर्मला थी कि जब भी उसके सामने आ जाती थी नजर फेर लेती थी इतने बरसों से दोनों एक दूसरे के सुख दुख में हमेशा साथ देते आए थे दोनों सच्चे मायने में एक पक्की सहेलियां थी लेकिन शुभम को लेकर दोनों के बीच तकरार हो चुकी थी दोनों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही थी निर्मला अब बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि उसकी आंखों के सामने दोबारा हुआ दृश्य नजर आए जो कि वह अपने दिल पर पत्थर लेख रख कर देख चुकी थी इसलिए वह शीतल से काफी दूरी बनाए हुए थी और शुभम को भी उससे दूर रहने की हमेशा सलाह देती रहती थी और शुभम भी अपनी मां की बात मानते हुए उससे दूरी बनाए हुए था क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि जब घर में ही इतनी खूबसूरत औरत की खूबसूरत बदन को भौगने का सुख मिल रहा है तो वह दूसरी औरतों में वह सुख क्यों जुड़े और अपना जुगाड़ खराब करें... हालांकि आते जाते व शीतल पर नजर फिर ही लेता था क्योंकि उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी औरत की खूबसूरत नितंब जिसके आकर्षण से वह कभी भी अपने आप को बचा नहीं पाता था।
आती-जाती अक्षर व शीतल की खूबसूरत नितंबों को देखकर गर्म आप भर ले रहा था उसके मुंह में उसके खूबसूरत जिस्म को देखकर पानी आ जाता था क्योंकि उसने शीतल को बेहद करीब से देखा था उसके खूबसूरत जिस्म से आती मादक खुशबू को अपनी छातियों में भरकर उसे महसूस कर चुका था।
वैसे भी जिस तरह की स्थिति दोनों के बीच बनी हुई थी शुभम को लगने लगा था कि अब उसे एक नई रसीली कसी हुई बुर चोदने को मिलने वाली है और ऐसा हो भी जाता अगर शीतल जल्दबाजी दिखाते हुए उसे अपनी क्लास रूम में बुलाकर उसका लंड मुंह में लेकर ना चुस्ती और उसी समय उसकी मम्मी ना आ जाती तो शुभम का यह सपना भी पूरा हो जाता और उसकी बाहों में शीतल नाम की खूबसूरत औरत मचल रही होती लेकिन सब कुछ धरा का धरा रह गया था एन मौके पर निर्मला ने उसका काम बिगाड़ दिया था।
लेकिन जब से निर्मला ने कड़क शब्दों में उसे शीतल से दूर रहने की हिदायत दी है तब से वह शीतल से दूर ही रहता था लेकिन दूर रहने के बावजूद भी उसके बदन पर अपनी नजरों को फिर ही लेता था भले ही हाथों से ना सही नजर के स्पर्श से वह शीतल की खूबसूरत बदन का जायजा ले लेता था और इस हरकत पर ना तो कभी दुनिया वालों को सब हो पाता और ना ही कभी निर्मला को इसलिए वह मौका मिलते ही शीतल के खूबसूरत बदन को अपनी आंखों से ही नाप लेता था और इस बात का एहसास शीतल को भी अच्छी तरह से था आते जाते वह शुभम की नजरों को भाप लेती थी कि उसकी नजर उसके बदन के कौन से हिस्से पर घूम रही है और वह मंद मंद मुस्कुरा देती थी क्योंकि उसके मन में यही चल रहा था कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी उसे अपने ऊपर पूरा विश्वास था कि एक ना एक दिन वह अपने हुस्न के जादू से शुभम को अपनी दोनों टांगों के बीच ले आएगी और तब निर्मला से नजर से नजर मिला कर बात कर पाएगी जो कि इस समय बिल्कुल भी संभव नहीं हो पा रहा था एकाद बार शीतल आगे से चलकर निर्मला से इस बारे में बात करके माफी मांगने चाही लेकिन निर्मला यह कहकर इंकार कर दी कि उस बारे में मुझसे कोई भी बात करने की जरूरत नहीं हो रहा इंदा से मेरे और मेरे बेटे के करीब आने की बिल्कुल भी कोशिश मत करना वरना मैं तुम्हारी हरकत को सारे स्कूल को बता दूंगी और तुम्हारी शिकायत में प्रिंसिपल से करूंगी इज्जत के साथ-साथ तुम्हारी नौकरी भी जाती रहेगी।

निर्मला की बातें सुनकर शीतल को हिम्मत नहीं हुई कि उस बारे में वह शीतल से कोई बात कर सके लेकिन उसे विश्वास था कि एक न एक दिन वह जरूर इस बारे में बात करेगी और उससे माफी मांगेगी।

शीतल को छोड़कर शुभम और निर्मला की जिंदगी अच्छे से कट रही थी रोज रात उनके लिए हसीन होती थी दिन तो अच्छे से कट ही रहे थे। अशोक अपनी बहन मधु के साथ आए दिन रंगरेलियां मनाने पहुंच जाता था जिसके बदले में मधु पैसे और अपनी जरूरत के सारे सामान ले लेती थी‌ । रोज रात को निर्मला से बम को या तो अपने कमरे में बुला लेती थी या तो खुद उसके कमरे में पहुंच जाती थी और संपूर्ण रूप से निर्वस्त्र होकर संभोग सुख का आनंद लूट रही थी जो सुख से जवानी के दिनों नहीं मिली थी वह सुख इस उम्र के पड़ाव पर आकर उसे भरपूर मिल रही थी और वह भी एकदम जवान लंड से जिससे चोदने के बाद उसका रोम-रोम पुलकित हो जाता था और एक अद्भुत तृप्ति का अहसास उसके तन बदन को तरोताजा कर देता था।
अब तक दोनों मां बेटी के संबंध के बारे में किसी को भनक तक नहीं लगी थी यहां तक कि अशोक को भी इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ था कि उसके पीठ पीछे उसकी औरत उसके ही बेडरूम में और उसके ही बिस्तर पर अपने बेटे के साथ भरपूर चुदाई का आनंद ले रही है।
लेकिन अब निर्मला और शुभम के संबंध की दस्तक उसके बीच की उस्मा उसके ही पड़ोस में रहने वाली सरला चाची को होने लगी थी । उसे इस बात का एहसास तो हो चुका था कि उसके पड़ोस में निर्मला कुछ तो गुल खिला रही है और यह सक उसे यूं ही नहीं हो गया था। उसने अपनी आंखों से उसी दृश्य को देखी थी जिसको देखने के बाद उसके दिमाग में शंका के बीच उपज ने लगे थे जिसको लेकर वह रात दिन परेशान सी हो गई थी और परेशानी वाली बात भी थी क्योंकि अब तक उसे ऐसा ही लगता था कि निर्मला बेहद संस्कारी और गुणवान औरत है लेकिन जिस देश को उसने अपनी आंखों से देखी थी उसे देखने के बाद उसकी विचारधारा पूरी तरह से बदल चुकी थी और वह पूरी तरह से अपने शंके को मजबूत कर लेना चाहती थी और इसी फिराक में हमेशा लगी हुई थी और वह इसीलिए छत पर आकर बार-बार निर्मला के कमरे की तरफ उसके घर की तरफ ताका झांकी लगाए रहती थी यहां तक कि अपनी कमरे की खिड़की में से भी वह लगातार निर्मला पर ही नजर बनाए हुए थी लेकिन उस दिन के बाद से उसे ऐसा कुछ भी देखने को नजर नहीं आया था जिसकी उसे उम्मीद थी लेकिन फिर भी उस दृश्य को देखने के बाद उसे पूरी तरह से विश्वास था कि निर्मला कुछ तो गड़बड़ कर रही है।
उसे इस बात की भनक बिल्कुल भी नहीं लगती अगर वह उस दिन दोपहर के समय उसके घर एक कटोरी दही मांगने ना गई होती क्योंकि आए दिन निर्मला और सरला चाची के बीच कटोरी के लेनदेन का संबंध बना हुआ था ज्यादातर इस संबंध को सरलाही निभा रही थी क्योंकि वही आए दिन कुछ ना कुछ लेने निर्मला के घर पहुंच जाती थी और ऐसा उस दिन भी हुआ दोपहर के समय जब वह निर्मला के घर एक कटोरी दही लेने को गई तो देखी कि दरवाजा बंद था। वह बार-बार घर की बेल बजाए जा रही थी लेकिन अंदर से किसी प्रकार का हलचल उसे महसूस नहीं हो रही थी वह दरवाजे पर दस्तक भी दे रही थी लेकिन कोई मतलब नहीं निकल रहा था तो वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिरकार ऐसा क्यों हो रहा है क्योंकि निर्मला की गाड़ी पार्क की हुई थी जिससे साफ जाहिर था कि वह घर पर ही है इसलिए वह उसे देखने के लिए थोड़ा पीछे की तरफ गई जहां शीशे का पार्टीशन बना हुआ था और अंदर से परदे लगे हुए थे लेकिन एक जगह से पर्दा हल्का से खुला हुआ था वह शीशे पर अपनी नजर गड़ा कर अंदर देखने की कोशिश करने लगी तो कुछ सेकंड तक तो उसे अंदर कुछ भी नजर नहीं आया लेकिन थोड़ी ही देर में उसकी आंखों के सामने निर्मला संपूर्ण लगना अवस्था में केवल हाथ में एकता बल लिए हुए और वह भी अपने बदन पल्लपेटी नहीं थी उसे अपने हाथ से पकड़े हुई थी और मुस्कुराते हुए... वह किसी से बात कर रही थी लेकिन कांच की मोटी परत का पार्टीशन होने की वजह से अंदर की बात सरला चाची को बिल्कुल भी सुनाई नहीं दे रही थी। कुछ देर तक तो सरला चाची को पता ही नहीं चला कि अंदर चल क्या रहा है... कुछ सेकंड बाद उसके मानस पटल पर इस बात का एहसास होने लगा कि वह जो कुछ भी देख रही है वही उसकी आंखों का धोखा नहीं बल्कि हकीकत है वह निर्मल आपको घर के अंदर संपूर्ण रूप से नग्न अवस्था में देख रही थी उसकी आंखों के सामने निर्मला एकदम नंगी खड़ी थी एक पल को तो वह उसे नंगी देखकर एकदम से चोंक गई...उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वहां से हट जाए या वही खड़ी होकर उसे दृश्य का आनंद लें क्योंकि एक औरत होने के नाते वह एक औरत के नंगे बदन को देख रही थी जो कि स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी.. सरला चाची को अपनी आंखों पर और अपने आप पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक औरत इस कदर खूबसूरत हो सकती है और अभी इस उम्र में वैसे तो वह भी अच्छी तरह से जानती थी कि निर्मला काफी खूबसूरत औरत है लेकिन एकदम नंगी होने पर इतनी ज्यादा खूबसूरत लगती है वह उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था क्योंकि इस उम्र में भी उसके अंग के कटाव जवानी के दिनों वाले थे और उसकी खूबसूरत बदन के अंगो का कसाव खास करके उसकी नंगी छाती की शोभा बढ़ाते उसके दोनों बड़े बड़े दूध की गोलाई और उसका कसाव देखकर सरला चाची एकदम हैरान थी उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था वह एकटक शीशे में से निर्मला के नंगे बदन को देखे जा रही थी।
rajan
Expert Member
Posts: 3353
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

वह निर्मला के घर क्या करने आई थी यह एकदम भूल गई वह तो बस निर्मला की खूबसूरती के आकर्षण में खोते चली जा रही थी। एक औरत होने के नाते हुए वह इतना तो जानती ही थी कि इस उम्र में औरत कितनी भी खूबसूरत हो उसके अंग का कसाव कमजोर पड़ जाता है और उसकी छातियों झूले लगती है लेकिन निर्मला को देखकर वह चकाचौंध हो चुकी थी उसे तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था उसे ऐसा ही लग रहा था कि जैसे वह 40 साल की निर्मला को नहीं बल्कि 25 साल की निर्मला को देख रही है निर्मला की खूबसूरती में उम्र किसी भी रूप से बाधा रूप नहीं बन रही थी बल्कि जैसे-जैसे उम्र गुजरती जा रही थी वैसे वैसे जैसे निर्मला की खूबसूरती में और ज्यादा निखार आता जा रहा था खुले बालों में और खूबसूरत लग रही थी हाथ में टावल लिए वह ऐसा लग रहा था मानो किसी से बातें कर रही हो।
सरला चाची को ऐसा ही लग रहा था कि जैसे वह अपने पति से ही बात कर रही है लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी दोपहर में निर्मला नंगी होकर क्या कर रही है लेकिन वह मर्दों की हरकत से भी वाकिफ थी अच्छी तरह से जानती थी कि मर्द कभी भी शुरू पड़ जाते हैं और उसे ऐसा ही लग रहा था कि हो सकता है आज दीन में ही दोनों ने प्रोग्राम बना लिया हो।
क्योंकि यह बात वह भी अच्छी तरह से जानती थी कि इसी तरह से उसके साथ भी होता था दिन में भी मौका मिलने पर उसके पति उसके साथ इसी तरह की हरकत करते थे और उसके बदन से मजा लेने में बिल्कुल नहीं चूकते थे उसे अपनी जवानी के दिन याद आ गए जब वह भी इसी तरह से घर में एकदम नंगी होकर इधर से उधर घूमती रहती थी और अपने पति को तड़पाती रहती थी और ऐसे ही तड़पाते तड़पाते अपने पति से चुदवाने का आनंद लेते थे इस बात को याद करते ही सरला चाची की टांगों के बीच सुरसुरी से फैलने लगी।
वह इससे भी ज्यादा देखने की उम्मीद रखती थी इसलिए वहां से जाने का नाम नहीं ले रही थी वह मन ही मन सोच रही थी कि जल्द ही उसकी आंखों के सामने निर्मला की चुदाई वाला दृश्य पेश हो जाए लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था निर्मला काफी देर से सीढ़ियों के पास खड़ी होकर किसी से बातें कर रही थी जो कि इस समय पर्दे की ओट में दिखाई नहीं दे रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे वह उधर खड़े खड़े निर्मला के ऊपर पानी की बूंदे फेकरा और जिस से बचकर वह अपने ऊपर टवाल से ढक ले रही थी और हंस रही थी।
दोनों में हंसी मजाक चल रही थी इस दृश्य को देखने के बाद सरला को यही लग रहा था। सरला चाचा की निगाहें निर्मला की मस्त कड़क चूचियों पर टिकी हुई थी जो अपनी हंसने की वजह से हल्का-हल्का उछल रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे पानी भरे गुब्बारे उछल रहे हो।... इस उन्मादम दृश्य को देखकर सरला चाची इस उम्र में भी मचल रही थी।
निर्मला की कड़क और चलती हुई चूचियों को देख कर अपने आप ही अनायास सरला चाची के हाथ अपने चुचियों पर चले गए जो कि इस समय ब्लाउज के अंदर ही थे। अंदर का दृश्य देखकर सरला चाची के बदन में भी हलचल मची हुई थी। वह एक टक अपनी नजरों को शीशे के पार टिकाए हुए थी।
सरला चाची के बदन में उस समय और ज्यादा हलचल मचने लगी जब वह किसी बात पर अपनी आंखों को बंद करके अपनी हथेली को अपनी टांगों के बीच ले जाकर बड़ी बेशर्मी के साथ अपनी रसीली बुर की गुलाबी पत्तियों को मसल ना शुरू कर दी जिसका असर निर्मला के बदन में भी हो रहा था और उस नजारे को देखकर सरला चाची की हालत खराब होने लगी उसे अपनी आंखों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा था कि वहां निर्मला का एक और रूप देख रही है हालांकि इस बात सेवर अच्छी तरह से वाकिफ थी कि समाज के सामने औरत भले ही कितनी सीधी साधी और संस्कारी हो जाए लेकिन पति के सामने पति के साथ चुदवाते समय एकदम रंडी हो जाती है तभी तो दोनों को मजा मिलता है और वही इस समय निर्मला के घर में भी हो रहा था और निर्मला एकदम बेशर्म होते हुए अपनी रसीली पूर्व को अपनी हथेली से रगड़ रही थी और सरला के देखते ही देखते वह अपनी बीच वाली उंगली को अपनी बुर के अंदर डालकर उसे अंदर बाहर करने लगी और लगातार मुस्कुराते हुए किसी से बातें कर रही थीजोकि सरला यही समझ रही है कि वह अंदर अशोक सही बातें कर रही थी क्योंकि कोई भी औरत अपने घर में किसी गैर मर्द से इस तरह से तो बेशर्मी की हद पार करते हुए इस तरह की हरकत नहीं करेगी और वैसे भी निर्मला के चरित्र सेवा चित्र सेवा की थी इसीलिए उसे इतना पक्का यकीन था कि अंदर घर में अशोक ही है लेकिन अभी तक उसे अशोक नजर नहीं आया था वह चाहती थी कि जल्द ही अशोक उसे नजर आए वह भी उसे देखना चाहती थी।ज्यादातर उत्सुकता उसे इस बात से लेकर थी कि ऐसी खूबसूरत औरत के नंगी होने पर एक मर्द का लंड कितना ज्यादा खड़ा होता है और इसीलिए वह अशोक को देखना चाहती थी उसके लंड को देखना चाहती थी उसके मन में हलचल मची हुई थी।
लेकिन तभी उसके दिमाग में एक झटका सा लगा क्योंकि जब वह गेट के अंदर प्रवेश कर रही थी तो वहां सिर्फ निर्मला की ही गाड़ी थी अशोक की गाड़ी नहीं थी इस बात को जेहन में आते ही सरला चाची एकदम सकते में आ गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है क्योंकि अक्सर जब भी अशोक घर पर होता था तो उसकी गाड़ी हमेशा पार्क होती थी लेकिन इस समय केवल एक ही गाड़ी घर में पार्टी थी जो कि निर्मला की थी इसका मतलब हुआ किसके सामने एकदम नंगी होकर इस तरह की हरकत कर रही है अब उसकी उत्सुकता एकदम पड़ने लगी थी और इस उत्सुकता के कारण उसकी दिल की धड़कन और ज्यादा तेज चलने लगी थी।
अंदर का दृश्य लगातार मादक होता जा रहा था निर्मला उसी तरह से अपनी बीच वाली उंगली को जोर जोर से अपनी पूर्ण के अंदर बाहर कर रही थी और अपनी चूची को एक हाथ से मसल रही थी। साला को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके सामने वाला व्यक्ति जिसे वह अशोक समझ रही थी लेकिन अब उसका मन भी शंका के घेराव में आ चुका था वह उसे इशारा करके उसे उस तरह की हरकत करने को कह रहा था और निर्मला भी मस्त होते हुए उसके बताए निर्देश के हिसाब से ही हरकत कर रही थी अब सरला उस शख्स को देखना चाहती थी जो कि इस समय घर में मौजूद था।
लेकिन निर्मला के चरित्र को देखते हुए उसे ऐसा भी लग रहा था कि हो सकता है उसे सोचने में कुछ धोखा हो रहा हो ऐसा भी हो सकता है कि अंदर और सो कहीं हो और वह अपनी गाड़ी कहीं और पारित किया हो लेकिन फिर भी वह उसे देखना चाहती थी जो कि इस समय बिल्कुल भी नजर नहीं आ रहा था वह सब सोच रही थी कि तभी उसे एक शख्स नजर आया जोकि टावर लपेटे हुआ था और डावल के आगे वाला भाग एकदम तंबू बना हुआ था जिसके नजर आते ही सरला चाची को समझते देर नहीं लगी की निर्मला की मदमस्त जवानी को देखकर उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया है।
उस शख्स का चेहरा उसे नजर नहीं आ रहा था केवल पीठ ही नजर आ रही थी जो कि टावर लपेटे हुए उस शख्स को देखकर इतना तो अंदाजा लगा दी थी कि वह कोई उम्र वाला शख्स नहीं था बल्कि नौजवान लड़का ही था लेकिन यह लड़का कौन हो सकता है व उसके चेहरे को देखना चाहती थी लेकिन वह सीडीओ से होता हुआ ऊपर की तरफ चला गया जिससे उसकी उम्मीद पर पानी फिर गया और देखते ही देखते उसकी आंखों के सामने ही निर्मला भी उसके पीछे-पीछे जाने लगी लेकिन जाते-जाते जब वह सिढ़ीया चढ़ रही थी इसलिए उसकी बड़ी-बड़ी मदमस्त गांड का घेराव और उसकी लचक देखकर इस उम्र में भी सरला की बुर नमकीन पानी से भर गए जो कि यह उसके साथ पहली बार हुआ था कि वह किसी ऐसी मादक दृश्य को देखकर इस तरह से उत्तेजित हो गई थी वह निर्मला को सीढ़ियां चढ़ते हुए देखती रह गई जो कि उस जवान लड़के की पीछे पीछे जा रही थी।
दोनों को इस हालात में देखकर सरला चाची को समझते देर नहीं लगी कि अब क्या होने वाला है वह अच्छी तरह से जान गई थी कि अब निर्मला जबरदस्त चुदाई के लिए तैयार हो चुकी थी लेकिन वह शख्स कौन था इस बात का खुलासा सरला के सामने बिल्कुल भी नहीं हो पाया था लेकिन तभी उसे तेज झटका सा लगा... उसके मन में शंका होने लगी कि कहीं वह जवान लड़का उसका खुद का बेटा शुभम तो नहीं क्योंकि उसकी भी कद काठी बिल्कुल वैसी ही थी जैसा कि उसने शीशे में से देखी थी हालांकि उसका चेहरा नजर नहीं आया था लेकिन कद काठी उसका गठीला बदन बिल्कुल शुभम की तरह ही थी।
अब उसका मन उत्सुकता से भरने लगा उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या समझे क्या हुआ अपने बेटे के सामने से पूरी नंगी होकर इस तरह की गंदी हरकत कर रही थी कि कोई और लड़का था जिसके साथ निर्मला रंगरलिया मना रही है।
नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता कोई मां अपने बेटे के सामने इस तरह की गंदी हरकत और वह भी एकदम पूरी तरह से नंगी होकर कैसे कर सकती है। एक तरफ उसका मन कह रहा था कि अंदर टावर लपेटे हुए वह शक्स उसका बेटा ही था तो दूसरा मन कहता था कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता भला निर्मला इस तरह की हरकत कैसे कर सकती है और वह भी अपने ही बेटे के साथ लेकिन इस बात को झुठला भी नहीं पा रही थी कि इस समय घर पर केवल निर्मला और शुभम ही होते हैं और कभी-कभी अशोक भी होता है लेकिन उस शख्स की कद काठी अशोक के उम्र से बिल्कुल भी मैच नहीं कर रही थी इसलिए सरला चाची के मन में सवालों का बवंडर उठने लगा था कि अगर वह शख्स शुभम नहीं था तो वह कोई और लड़का था और अगर वह कोई और लड़का था तो इसका मतलब है कि निर्मला जिस तरह से दिखती है उस तरह की बिल्कुल भी नहीं है वह किसी के लड़के को अपने घर बुलाकर उसे चुदाई करवा रहे हैं और अगर वह कोई गैर लड़का नहीं है तो वह शुभम ही था और अगर शुभम ही था तो यह कैसे मुमकिन हो सकता है कि एक मां खुद अपने बेटे के सामने इस तरह की गंदी हरकत कर रही हो और वह भी हंस-हंसकर और उसके सामने उसका लड़का इस अवस्था में खड़ा हो जो कि टावल लपेटे होने के बावजूद भी उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था।
सरला अपने मन में उठ रहे सवालों का जवाब खुद से ही ढूंढना चाहती थी इसलिए गेट पर आंख दिखाकर घंटों बैठी रही वह देखना चाह रही थी कि अगर दूसरा कोई लड़का होगा तो थोड़ी ही देर में घर से बाहर जरूर जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ वह शाम तक बैठे रहे गई लेकिन घर से कोई भी दूसरा शख्स बाहर नहीं निकला और ना ही घर का दरवाजा ही खुला इसका मतलब पक्का था कि घर के अंदर शुभम ही था लेकिन फिर भी वह अपने मन को बार-बार झूठे लाने के लिए झूठी दिलासा दे रही थी कि एक मां भले अपने बेटे के साथ ऐसा कैसे कर सकती है लेकिन फिर भी जो नजारा उसकी आंखों में देखा था उसे वह भी कतई तौर पर चुटकुला नहीं सकती थी क्योंकि शाम तक अगर घर से कोई बाहर नहीं निकला और वह शख्स शुभम नहीं था तो शुभम कहां गया अगर उसे बंद नहीं होता तो 1 घंटे बाद 2 घंटे बाद शुभम जरूर अपने घर वापस तो लौटता लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ ना तो कोई घर से बाहर ही निकला और ना ही कोई घर के अंदर ही आया इसका मतलब साफ था कि अंदर जो दृश्य उसके सामने नजर आ रहा था । उस दृश्य में दोनों मां-बेटे ही थे अब इस बात से सरला जांच एकदम रोमांचित हो उठी थी वह अपने संघ के को पूरी तरह से विश्वसनीय कर लेना चाहती थी इसलिए अब दिन-रात उन दोनों के ताका झांकी में लगाए रहती थी वह बार-बार घंटों बैठकर निर्मला के घर की तरफ देखती रहती थी।
rajan
Expert Member
Posts: 3353
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

जो कि इस ताका झांकी का एहसास निर्मला को भी अच्छी तरह से हो गया था उसे समझते देर नहीं लगी कि सरला चाची उस पर नजर रख रही है क्योंकि दोपहर वाली बात वह 2 दिन बाद उससे एक बहाने से पूछ ही ली थी कि वह दोपहर में उसके घर दही लेने आई थी तो बेल बजाने के बावजूद भी दरवाजा नहीं खुला था। सरला चाची के इस बात का जवाब देते हुए निर्मला बोली थी कि उसकी बेल खराब हो गई है इसलिए आवाज नहीं आई थी जो कि यह बात सच है कि निर्मला के डोरबेल में खराबी हो गई थी लेकिन अगली बात सुनकर वो एकदम से चौंक गई थी कि उसके घर कोई और आया था क्या कोई लड़का जिसे वह शीशे मै से देखी थी। लेकिन निर्मला यह कहकर टाल गई थी कि नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है कोई नहीं आया था जबकि निर्मला यह बात नहीं जानती थी कि सरला चाची ने उसे नग्न अवस्था में देख ली थी।और ना ही सरला ने इस बात का जिक्र की थी कि वह कमरे में नंग धड़ंग क्यों घूमती है। सरला नहीं चाहती थी कि उसे इस बात से आगाह कर दिया जाए ताकि वह आगे से संभल कर रहे क्योंकि वह उसे रंगे हाथ पकड़ना चाहती थी।
लेकिन सर ना जाने की बात सुनकर निर्मला सकते में आ गई थी और इस बारे में शुभम से भी बात कर चुकी थी और उसे समझा दि थी कि सरला चाची को हम पर शक हो गया है इसलिए आइंदा कमरे के बाहर कहीं भी इस तरह की कोई भी हरकत नहीं होनी चाहिए कि सरला चाची का शक यकीन में बदल जाए।
अपनी मां की बातें सुनकर शुभम भी कुछ हद तक घबरा गया था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि दोनों की करतूत किसी भी रूप में सबके सामने आए इसलिए वह कदम फूंक-फूंक कर रखना चाहता था लेकिन अपने मन में यह बात बना लिया था कि कुछ ऐसा करना पड़ेगा ताकि सरला चाची अगर यह बात जान भी जाए कि उन दोनों में क्या चल रहा है तो भी वह किसी से भी कह सकने में समर्थ ना हो इसलिए वह अपने मन में ही प्लान बनाने लगा।


जबसे शुभम को उसकी मां ने यह बात बताई थी कि उसकी बाजू वाली सरला चाची उन दोनों पर नजर रख रही है तब से शुभम पूरी तरह से चौकन्ना हो गया था और कुछ ऐसा करना चाहता था कि अगर उसे इस बात का पता भी चल जाएगी शुभम खुद अपनी मां की चुदाई करता है तो भी वह किसी को कुछ भी बताने लायक ना रहे और ऐसा तभी हो सकता है जब वह वही करें जो कि गांव में अपनी मामी और मामी की लड़की के साथ किया था उनके साथ भी संबंध बनाकर वह उन दोनों की बोलती बंद कर दिया था और मामी की लड़की को यह बात अच्छी तरह से मालूम होने के बावजूद भी की शुभम अपनी मां को चोदता है फिर भी वह यह बात किसी को बता नहीं सकी क्योंकि शुभम खुद उसकी मां की चुदाई कर चुका था जो कि उसकी मामा की लड़की ने खुद अपनी आंखों से देखी थी।
अब शुभम को इधर भी वही करना था जो वह गांव में किया था इसलिए वह किसी भी तरह से बस अपनी बाजू वाली सरला चाची के घर में प्रवेश करना था लेकिन कैसे यह उसे भी पता नहीं था।
सरला चाची का एक लड़का था जिसकी अभी 3 साल ही हुए थे शादी को और वह अक्सर शहर के बाहर ही रहता था जिसकी वजह से घर में केवल सरला चाची और उनकी जवान बहू ही रहती थी सरला चाची के पति का काफी समय पहले ही देहांत हो चुका था।
शुभम के लिए यह बात राहत दिलाने वाली थी कि घर में केवल सरला चाची और उनकी जवान बहू हुई थी बाकी कोई भी नहीं था उनका लड़का जो कि शहर के बाहर रहता था वह कभी-कभी ही घर पर आता था उसी काम के सिलसिले में हमेशा बाहर ही रहना पड़ता था। शुभम को इतना तो पता ही था लेकिन अब सवाल यह था कि उसके घर में प्रवेश कैसे किया जाए इसी जुगाड़ में वह लगा हुआ था।
इसी तरह से दिन गुजरने लगे निर्मला और शुभम अब कमरे के अंदर ही और वह भी खिड़की और पर्दे लगाने के बाद ही एक दूसरे मैं समाने की भरपूर प्रयास में लगे रहते थे जो कि दोनों चुदाई का भरपूर मजा लेने के बावजूद भी हमेशा प्यासे ही रहते थे।
दोनों की प्यास एक दूसरे से पूछती ही नहीं थी हालांकि दोनों को तृप्ति का अहसास अद्भुत होता था लेकिन जब कभी भी एकांत पाते थे तो शुरू पड़ जाते थे एक दूसरे के बदन को नोचने खसोटने लगते थे।

शाम के वक्त शुभम के पास कोई काम ना होने की वजह से वह घूमने निकल गया था। संभोग सुख की प्राप्ति करते करते उसके बदन में काफी बदलाव आ गया था अब वह पहले से भी ज्यादा और हैंडसम और मजबूत शरीर वाला लगने लगा था या यूं कह सकते हैं कि वह पूरी तरह से मर्द हो चुका था।
वह काफी समय गुजरने के बाद अपने घर की तरफ लौट रहा था तो रास्ते में ही उसे सरला चाची नजर आ गई जो कि दोनों हाथ में थैला लिए घर की तरफ चले जा रहे थे। सरला को देखते ही शुभम के दिमाग में हलचल होने लगी वह तुरंत दौड़ते हुए सरला के पास गया और उनके हाथों में से जबरदस्ती दोनों थेले लेते हुए बोला।

क्या कर रही हो चाची मेरे होते हुए आप इतना वजन उठाकर घर ले जा रही हो मैं किस दिन काम आऊंगा।


नहीं नहीं रहने दे मैं उठा लूंगी अभी मेरे में काफी दम बाकी है। (ऐसा कहते हुए सरला सब्जियों से भरे हुए थे वे को पीछे की तरफ खींचने लगी। क्योंकि शुभम को देखते ही उसकी आंखों के सामने उस दिन वाला नजारा घूमने लगा जब हुआ एक कटोरी दही लेने गई थी और उसकी आंखों ने वह दृश्य को देख ली थी जिसकी वह सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी तुरंत उसकी आंखों के सामने निर्मला का नंगा बदन और टावर में लिपटा हुआ मजबूत शरीर वाला लड़का नजर आने लगा लेकिन वह अभी भी पक्के तौर पर नहीं कह सकती थी कि वह सुबह में था लेकिन उसे संघ का पूरा था कि वह शुभम ही था और वैसे भी उसकी मां इतनी ज्यादा खूबसूरत है कि कोई भी हो उसकी जवानी और वह भी नंगी जवानी देखकर फिसल जाए।इसलिए वह शुभम को खेला नहीं लेने देना चाहती थी लेकिन सुबह हाथ में आई इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था इसलिए जबरजस्ती करते हुए सरला के हाथों से थेला ले लिया और बोला।)

मैं अच्छी तरह से जानता हूं चाची की अभी आप बुरी नहीं हुई है पक्के तौर पर मैं कह सकता हूं कि आप जैसी खूबसूरत औरत पूरे सोसाइटी में नहीं है सच कहूं तो आपने अपने बदन को इतना संभाल कर रखी है कि अभी भी मुझे ऐसा लग रहा है कि आप 28 या 30 साल की हैं। ,,( इतना कहकर वह सरला चाची के साथ साथ चलने लगा शुभम की बातें सुनकर एक पल के लिए सरला चाची अंदर ही अंदर खुश होने लगी और वैसे ही भी औरतों को अपनी तारीफ सुनना सबसे अच्छा लगता है लेकिन फिर मन में सोचे कि है कल का छोकरा कितना चालाक है एक औरत की तारीफ उसके ही मुंह पर कैसे बेशर्म होकर कह रहा है इसलिए वह शुभम से बोली। )

कैसा बेशर्म है रे तू इस तरह से औरत की तारीफ कर रहा है...।

सरला चाची इसमें बेशर्म वाली कौन सी बात आ गई आखिर चलो आप ही एक बात बताओ अगर आप किसी गुलाब के फूल को देखेंगे तो क्या कहेंगी...(शुभम की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए)
नहीं नहीं बताइए आप क्या कहेंगी... यह कहेंगी कि यह कितना गंदा फुल है। ....ऐसा तो नहीं कहेंगी ना आप यह कहेंगे कि कितना खूबसूरत फूल है बस यही . ....यही मैं कह रहा हूं...।

तू बड़ा बेशर्म है । (इस बार शुभम की चालाकी देखकर सरला के चेहरे पर मुस्कान फैल गई और यह मुस्कान केवल शुभम के द्वारा की गई उसकी तारीफ की वजह से ही थी... औरतों की संगत की वजह से शुभम काफी चालाक हो गया था औरतों को किस तरह से अपने बस में करना है यह वह अच्छी तरह से जानता था इसी हथकंडे को अपनाते हुए अब तक वह कई औरतों के साथ संभोग सुख का मजा ले चुका था बातों से हुई शुरुआत उस औरत के बिस्तर पर ही जाकर खत्म होती थी और यही उद्देश्य लेकर के वह सरला चाची से चिकनी चुपड़ी बातें कर रहा था। पीछे से आते समय ही बस अल्लाह चाची की खूबसूरत बदन के साथ-साथ उसके भरपूर पिछवाड़े का जायजा वह अपनी नजरों से ले चुका था कमर के नीचे का घेराव देखकर शुभम की टांगों के बीच हलचल शुरू हो गई थी और वह दूर से सरला चाची को जाते हुए देख कर उसकी मटकती हुई गांड के आकर्षण में बंधता चला जा रहा था। जब से उसकी मां ने यह बताई थी कि वह उन दोनों को नजर रख रही है तब से वह इसी फिराक में था कि कब वह सरला के साथ भी हमबिस्तर हो और और उसका मुंह उसके राज से राज ही रह जाए लेकिन अब वह दृढ़ निश्चय कर चुका था की सरला चाची की चुदाई वह करके ही रहेगा क्योंकि उसकी मटकती हुई गांड ने शुभम को पूरी तरह से दीवाना बना दिया था। पड़ोस में रहने के बावजूद भी अब तक शुभम ने सरला चाची पर नजर नहीं डाली थी हालांकि कभी-कभार दोनों के बीच मुलाकात होती थी लेकिन कभी भी शुभम ने सरला चाची को उस नजरिए से नहीं देखा था क्योंकि वैसे भी उसकी 10 की 10 उंगलियां निर्मला नाम की एक ही में जो थी इसलिए दूसरी औरतों को देखने का उसका कोई मन भी नहीं था लेकिन आज सरला चाची की मटकती हुई गांड और उसकी खूबसूरती और खास करके ब्लाउज के अंदर का भरपूर भार देखकर उसके तन बदन में हलचल होने लगी थी और उसे भोगने के लिए वह तड़पने लगा था जिसके पीछे उसका इरादा भी सरला चाची को उनके राज से एकदम से शांत करने को था। शुभम हाथों में थैला लिए सरला चाची के कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़ रहा था सरला को यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या समझे जिस तरह से वह उसकी मदद कर रहा था उसे अच्छा तो लग ही रहा था और खास करके उसके द्वारा की गई उसकी खूबसूरती और इस उम्र में भी शरीर को अच्छी तरह से संभाल कर रखने की तारीफ सुनकर उसका मन गदगद हुए जा रहा था।..... दोनों अब एक दूसरे से बिना बोले ही आगे बढ़ रहे थे शुभम सोच रहा था कि बात की शुरुआत कहां से की जाए वह पूरी तरह से सरला को अपनी बातों के जाल में फंसा लेना चाहता था इसलिए ऐसे ही बात को आगे बढ़ाते वह बोला।)

सरला चाची आपके दोनों थैले काफी वजनदार हैं जरूर इसमें कुछ अच्छी सी चीज खरीद के ले जा रही है।

ज्यादा वजन हो तो ला एक थैला मुझे दे दे....

नहीं नहीं चाहती ऐसी कोई भी बात नहीं है मैं तो यूं ही कह रहा था कि आप इसमें ढेर सारी सब्जियां लेकर जा रही हैं आज लगता है कुछ खास है।

खास कुछ भी नहीं है मैं ऐसे ही सप्ताह की सब्जियां खरीद कर ले जाती हूं।

वैसे चाची सब्जियों में क्या-क्या है।

कुछ खास नहीं है मटर है करेला है बैंगन है और कद्दू है। (बैगन का नाम सुनते ही शुभम मन में ही सोचने लगा कि घर पर कोई नहीं है इसलिए लगता है बैगन घर पर ले जाकर के खुद ही अपनी बुर की प्यास बुझाती है क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मा भी जब उसके पास अपनी प्यास बुझाने का कोई रास्ता ना था तो वह भी बाजार से लंबे मोटे बैगन खरीद कर लाती थी और उसी से अपनी बुर की प्यास बुझाती थी। हालांकि कद्दू का जिक्र सुनते ही वह बोला।)

चाची सच कहूं तो मुझे कद्दू बहुत पसंद है कद्दू की सब्जी मेरी सबसे ज्यादा फेवरेट है।

कोई बात नहीं सुबह जब बनेगी तो मैं तुझे बुला लूंगी। (सरला के ना चाहते हुए भी उसके मुंह से यह बात निकल गई वह साफ तौर पर शुभम को खाने का न्योता दे रही थी जोकि शुभम द्वारा की गई उसकी तारीफ का ही नतीजा था।)

मैं जरूर आऊंगा चाची बस जब बनाना तो मुझे मत भूल जाना।

इसमें भूलने वाली कौन सी बात है सब्जी ही तो तुझे खाना है की जमीन जायदाद खा जाएगा जो मैं तुझे ना बुलाऊ।
(सरला की बात सुनते ही शुभम अपने आप से ही बात करते हो बोला एक बार घर में तो आने दो उसके बाद तो मैं क्या-क्या खा जाऊंगा तुम्हें खुद पता नहीं चलेगा और अभी तुम्हारी आंखों के सामने)

चलो अच्छी बात है कि इसी बहाने मैं आपका घर भी देख लूंगा वैसे भी इतनी पड़ोस में होने के बावजूद भी मैं कभी आपके घर नहीं आया।

तू अपना ही घर समझना जब जी करे चला आना।
Post Reply