एक अधूरी प्यास- 2

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rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

शुभम सरला की बातें सुनकर मंद मंद मुस्कुरा रहा था उन दोनों को चलते हुए काफी देर हो चुकी थी लेकिन शुभम को इतनी देर में ऐसा कभी भी नहीं लगा कि सरला को उन पर शुभम और निर्मला के रिश्ते को लेकर किसी भी प्रकार का शक हो वरना वह कह चुकी होती लेकिन ऐसा कुछ भी साला चाची ने नहीं कहा था कि जिससे यह पता चलता कि वाकई में उन्हें उन दोनों पर शक है।और सलाह के मन में भी यही उत्तल पुथल चल रहा था वह अपनी शंका वाली बात शुभम से कहे भी तो कैसे कहे अगर वाकई में उसकी आंखों ने धोखा खा गई हो तो इस तरह का लांछन लगाना भी अच्छी बात नहीं है इसलिए वह शांत रह गई लेकिन उसकी तरफ से निर्मला और शुभम को चरित्रवान होने का सर्टिफिकेट नहीं मिल गया था वह मैंने फैसला कर चुकी थी कि वह सच्चाई का पता लगाकर रहेगी... दोनों के बीच काफी बातचीत होती रही।
शाम ढल चुकी थी दूर आसमान में सूरज अपनी लालिमा भी खेलते हुए अस्त होने जा रहा था जिसकी वजह से वातावरण में अंधेरा पन छाने लगा था। शुभम रह-रहकर चोर नजरों से निर्मला के कमर के नीचे के भराव दार हिस्से को देख ले रहा था और मन ही मन में गर्म आ भर ले रहा था और उसकी नजरें सुगंधा के ब्लाउज पर भी चली जा रही थी जो कि बड़ी-बड़ी चुचियों को अंदर समाने की वजह से ब्लाउज में से बीच की लकीर साफ नजर आ रही थी। वह मन ही मन सोचने लगा कि सरला चाची के उम्र में और उसकी मां की उम्र में कुछ ज्यादा फर्क नहीं था तीन-चार साल का ही फर्क था जोकि सरला ने भी अपने बदन को अच्छे से मेंटेन की हुई थी तभी तो इस उम्र में भी कसी हुई लग रही थी हालांकि निर्मला के सामने फीकी ही थी फिर भी खूबसूरत थी। शुभम को और क्या चाहिए था। वह मन ही मन खुश हो रहा था कि सपना चाची ने उसे अच्छे से बात की थी और उसे अपने घर आने का आमंत्रण भी दे दी थी लेकिन इतनी जल्दबाजी करना उसके लिए ठीक नहीं था इसलिए वह सही समय का इंतजार कर रहा था चलते चलते दोनों का घर आ गया सरला अपने हाथों से गेट खोल कर अंदर आते हुए बोली।

चल अंदरर आजा चाय पी कर जाना वैसे भी तूने मेरी बहुत मदद की है।

क्या चाची आप तो मुझे शर्मिंदा कर रही हैं यह कोई मदद नहीं थी यह तो मेरा फर्ज था एक पड़ोसी होने के नाते वैसे भी आप की जगह पर मेरी मम्मी होती तो क्या मैं उन्हें इस तरह से खेले उठाकर घर ला दे देता नहीं ना मैं तो बस अपना फर्ज निभा रहा था।

बातें बहुत बनाता है (सरला हंसते हुए बोली )चल अच्छा आज आप चाय पी कर जाना।

नहीं-नहीं चाची किसी और दिन मैं जरूर आपके हाथ की चाय पीने आऊंगा अभी मुझे जाना है ..(इतना कहते हुए शुभम दोनों थैले को सरला आंटी को पकड़ाने लगा कि तभी अंदर का दरवाजा खुला और सरला आंटी की बहू बाहर आ गई।)

लाइए माजी में रख देती हूं। (इतना कहते हुए उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाई और सरला ने शुभम के हाथों से थैला लेते हुए अपनी बहू को पकड़ते हुए बोली।)


ले रुचि बहू इसे किचन में संभाल कर रख देना...

ठीक है मम्मी जी (इतना कहते हुए वह सरला के हाथों से दोनों थेली पकड़ ली और एक नजर शुभम की तरफ फेरकर वापस अंदर जाने लगी। इतना शुभम के लिए बहुत था। वह सरला चाची के बहू की खूबसूरती देखा तो देखता ही रह गया इतना खूबसूरत गोल चेहरा ऐसा लग रहा था कि जैसे चांद जमीन पर आ गया हो वह कुछ सेकंड तक उसे जाते हुए देखता रहा और कसी हुई साड़ी में उसकी चूसत गांड को देखकर अपने मन को बेकरार करने लगा। वह वापस घर के अंदर चली गई तो सरला शुभम से बोली।

यह मेरी बहू है रुचि बहुत प्यारी है। (शुभम अब वहां पर ज्यादा देर खड़ा रहना उचित नहीं समझ रहा था इसलिए अपने संस्कार दिखाते हुए अपने दोनों हाथ जोड़कर सरला से इजाजत मांगते हुए बोला ।

अच्छा तो चाची में अब चलता हूं अगर किसी भी प्रकार का कोई भी छोटा मोटा काम हो तो मुझे जरुर याद करिएगा आपको परेशानी नहीं होगी मैं आपका काम कर दूंगा।

ठीक है शुभम बेटा तो कितना अच्छा है मुझे आज पता चला कोई भी काम होगा तो मैं तुझे जरूर याद करूंगी।

बेफिक्र होकर याद करिएगा चाची।
(इतना कहकर वह अपने घर की तरफ चला गया आज सरला से मिलकर वह काफी उत्तेजित नजर आ रहा था और खास करके उसकी बहू रुचि से मिलकर हालांकि उसकी एक झलक भर देखा था लेकिन उसकी खूबसूरती देखकर उसकी आंखें चकाचौंध हो चुकी थी वह आपने कमरे में बैठकर सरला और उनकी बहू रुचि के बारे में सोच रहा था और इन सभी बातों को वह अपनी मां से बिल्कुल भी नहीं बताना चाहता था क्योंकि एक बार वह भुगत चुका है इसलिए किसी भी औरत की बात अब वह अपनी मां से नहीं बताएगा यह निश्चय कर चुका था। सरला की मटकती हुई गांड के बारे में सोचकर व काफी उत्तेजित हो चुका था दीवार घड़ी में 8:00 बज रहा था वह समझ गया था कि खाना बन रहा है और उसकी मां किचन में ही होगी इसलिए वह उत्तेजना बस किचन की तरफ जाने लगा।



सरला चाची के भराव दार बदन और उसकी बहू रुचि के खूबसूरत चेहरे को देखकर शुभम पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था बार बार उसकी आंखों के सामने सरला चाची की बड़ी-बड़ी मटकती गांड नजर आ रही थी। अब तक के अपने सेक्स जीवन के सफर को देखते हुए उसे इतना तो ज्ञान हो ही गया था कि हर औरत अंदर से प्यासी होती है उसके अंदर मोटे तगड़े लंड से चोदने का सपना हमेशा बना होता है बस उसे जगाना होता है और यही काम अब सरला के साथ उसे करना था।
लेकिन इस समय उसे एक रसीली बुर की आवश्यकता थी जिसके लिए वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था इसलिए वह किचन की तरफ जाने लगा उसे पूरा यकीन था कि उसकी मां किचन में खाना बना रही होगी और घर में उन दोनों के सिवा तीसरा कोई भी नहीं था माहौल और मौका सब कुछ शुभम के पक्ष में था। वैसे कई औरतों के साथ संभोग सुख पाने के बाद उसे इतना तो यकीन था कि वह दुनिया के किसी भी औरत के साथ संभोग कर ले लेकिन जो मजा उसे उसकी मां के साथ संभोग करने में आता था वैसा मजा किसी और औरत के साथ कभी नहीं मिला। और वैसे भी उसकी नजरों में उसकी ही नजरों में क्या निर्मला को जानने वाला हर कोई व्यक्ति की नजर में निर्मला बेहद खूबसूरत और हसीन औरत थी क्योंकि इस उम्र में भी उसके बदन की बनावट और अंगों का ढांचा एकदम जवान और कसा हुआ था जितना कसा हुआ बदन उसका वस्त्रों में लगता था उससे भी कहीं ज्यादा चुस्त उसका बदन नग्न अवस्था में लगता है और उन्हीं कसाव भरे अंगो के साथ खेल खेल कर शुभम जवान मर्द हो चुका था।
अगले ही पल सुभम किचन के बाहर खड़े होकर दीवार से अपना कंधा टेक कर अंदर के नजारे को देख रहा था। किचन के अंदर का नजारा पूरी तरह से कामुकता से भरा हुआ था...। उसकी मां रोटियां बेल रही थी... गर्मी का असर कुछ ज्यादा ही था जिसकी वजह से वह अपनी साड़ी को उतार कर हैंगर में टांग दी थी और इस समय उसके बदन पर मात्र ब्लाउज और पेटीकोट ही था ब्लाउज भी ऐसा की पीछे की उसकी चिकनी पीठ पूरी तरह से नंगी नजर आ रही थी बस उसके ऊपर पतली सी डोरी बनी हुई थी जिससे उसके पूरे ब्लाउज का हिस्सा टिका हुआ था और उस पतली सी रस्सी के वजह से ही निर्मला की मदमस्त दोनों जवानियां छलकने से बची हुई थी अगर जरा सी भी डोरी ढीली हो जाए तो देखते ही देखते निर्मला की दोनों जवानियां किसी भरे हुए पेमाने की तरह छलक जाए... निर्मला ने अपनी पेटीकोट को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठाकर उसे कमर पर खुश रखी थी जिससे नीचे से उसकी दोनों चिकनी मोटी टांगे पिंडलियों से नंगी थी उसकी मजबूत गोरी गोरी पिंडलियों देखकर शुभम का दिल बहक रहा था।
शुभम के पैंट में तंबू बना हुआ था दिल तो कर रहा था कि अभी किचन में घुस जाए और पेटीकोट उठाकर खड़े लंड को उसकी बुर में पेल कर चुदाई करना शुरू कर दें लेकिन उसकी आंखों के सामने जो अद्भुत और किसी चित्रकार की चित्रकारी की तरह नजर आने वाले दृश्य से वह अपना मन बहला रहा था। इसलिए वह वही खड़े होकर कुछ देर तक अपनी मां की मदमस्त जवानी का रसपान अपनी आंखों से कर रहा था

निर्मला रोटी बेलने के लिए जैसे जैसे अपने हाथों को आगे पीछे करके बैलेंस घुमा रही थी उसकी वजह से उसके बदन में एक अद्भुत तरंग नुमा लहर पैदा हो रही थी जिसकी वजह से उसके कमर के नीचे वाले भाग में उसकी मदमस्त नितंबों में एक अजीब सी थीरकन हो रही थी मानो की किसी बड़े बड़े दो गुब्बारों में पानी भरकर उसे हिलाया जा रहा हो। निर्मला की गांड की धड़कन शुभम के दिन पर छुरियां चला रही थी।
अपनी मां के भजन की पीछे की खूबसूरती को देखकर शुभम अपने आपसे ही बातें करते हुए बोला इसलिए कहता हूं कि मेरी मां से खूबसूरत इस दुनिया में कोई दूसरी औरत नहीं है भले ही मेरा मन इधर उधर की औरतों में भटक जाए लेकिन आखिरकार जो सुकून मुझे अपनी मां के साथ मिलता है वैसा सुकून मुझे किसी औरत के साथ नहीं मिलता।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

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अपनी मां के मदमस्त बदन को देखकर शुभम पैंट के ऊपर से अपने लंड को सहला ना शुरू कर दिया जो कि पैंट में तंबू बनाए हुए था । निर्मला इन सबसे बेखबर रोटियां बनाने में व्यस्त थे उसे तो इसका आभास तक नहीं हुआ था कि उसके पीछे उसका बेटा खड़े होकर उसके मदमस्त यौवन का रसपान अपनी आंखों से कर रहा है। निर्मला इस समय पीछे से एक अद्भुत मुरत की तरह लग रही थी। जैसे कि खजुराहो की कलाकृति हो वैसे भी निर्मला का पिछवाड़ा कुछ ज्यादा ही आकर्षक था और पेटीकोट कशी होने के नाते उसका हर एक काटा उसका हर एक उपांग साफ साफ नजर आ रहा था शुभम तो यह देखकर एकदम उत्तेजित हो गया था उससे रहा नहीं जा रहा था पहले से ही सरला और उसकी बहू ने जिस तरह से उसके तन बदन में उत्तेजना की आग लगाई थी उसे बुझाना बहुत जरूरी था।
अपनी मां की मदमस्त भराव दार जवानी को देखकर शुभम के लिए अपने आप पर काबू पाना अब मुमकिन नहीं था इसलिए वह किचन में घुस गया और पीछे से जाकर अपनी मां को अपनी बाहों में भर लिया यू एकाएक अपने आप को किसी के बाहों में भरा हुआ देखकर वह एकदम से चौंक गई हालांकि उसे मालूम था कि ऐसी हरकत शुभम के सिवा कोई नहीं कर सकता लेकिन फिर भी वो डर गई थी। और ऊपर से तुरंत वह अपनी गांड के बीचोबीच ठोस अंग की चुभन महसूस करने लगी लेकिन शुभम कुछ बोल पाता इससे पहले ही उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसे इस तरह से पीछे से अपनी बाहों में भरने वाला उसका बेटा नहीं है तो वह मन ही मन मुस्कुराने लगी।
शुभम उत्तेजना बस अपनी दोनों हथेली में अपनी मां की बड़ी-बड़ी चुचियों को ब्लाउज के ऊपर से पकड़कर दबाते हुए बोला।

वह मम्मी तुम ब्लाउज और पेटीकोट में कितनी खूबसूरत और सेक्सी लग रही हो और वैसे सच कहूं तो अगर तुम इसे उतारकर नंगी होकर खाना बनाती तो अभी कोई हर्ज नहीं था वैसे भी घर में मेरे और तुम्हारे सिवा कोई नहीं है।

धत कैसी बातें कर रहा है मैं नंगी होकर खाना नहीं बनाती। (निर्मला उसी तरह से तवे पर रोटियां सेकते हुए बोली।)

तुम सिर्फ नंगी होकर चुदवाती हो खाना नहीं बना सकती। (शुभम अपनी कमर को अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर दबाते हुए और धीरे-धीरे ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोला।)

तुझे क्या हो गया है शुभम जरा भी सब्र नहीं होता।

सब्र कैसे होगा मेरी रानी जब मेरी आंखों के सामने एक बेहद खूबसूरत औरत केवल ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी होकर अपनी बड़ी बड़ी गांड ( एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर पेटीकोट के ऊपर से ही अपनी मां की गांड दबाते हुए) खिलाते हुए खाना बना रही हो तो बना मेरे जैसा लड़का बेसब्र क्यों ना हो।

चल अच्छा बातें मत बना और अपना यह (एक हाथ पीछे की तरफ ले जाकर पैंट के ऊपर से ही अपने बेटे के खड़े लंड़ को पकड़ते हुए) इसे पीछे कर मेरी गांड में चुभ रहा है।

अच्छा गांड में चुभ रहा है और जब अपनी बुर में लेती हो तब नहीं चुभता।

तब तो बहुत मजा आता है। (तवे पर फूल रही रोटी को हाथ से गोल-गोल घुमाते हुए बोली।)

देख रही हो मम्मी जैसे तवे पर गर्म होकर रोटी फूलती है वैसे ही तुम जब गर्म होती हो तो तुम्हारी भूल भूल जाती है ऐसा लगता है कि जैसे गरम गरम रोटी हो।

बातें बहुत बनाने आता है तुझे अगर तुझे मेरी बुर भी गरम गरम रोटी लगती है तो खा जाया कर।

सच कहूं तो तुम्हारी बुर को खा जाने का बहुत मन करता है लेकिन उस में लंड डालने का भी बहुत मन करता है अगर उसे खा जाऊंगा तो लंड किस में डालूंगा।

(शुभम की ऐसी गंदी गंदी बातें सुनकर निर्मला को मज़ा आ रहा था और वह अपने बेटे की इस बात पर हंसते हुए बोली।)

चल अब तो बहुत बड़ा हो गया है और इस तरह की गंदी गंदी बातें करने लगा है अब तो मुझे खाना बना दे दे वरना रात को खाने के लिए कुछ नहीं रहेगा।

चलेगा मम्मी खाने के लिए कुछ नहीं रहेगा तो पेलने के लिए तुम्हारी ( पेटीकोट के ऊपर से ही अपनी मां की बुर दबाते हुए )यह तो है ना इसी से पेट भर लूंगा....

आहहहहहहहह..... क्या कर रहा है।(शुभम के द्वारा इस तरह से बुर दबाने की वजह से निर्मला के मुंह से सिसकारी की आवाज छूट गई हालांकि उसकी हरकतों की वजह से निर्मला भी काफी गर्म हो चुकी थी।)

वही कर रहा हूं जो एक खूबसूरत औरत के साथ करना चाहिए।

आज बहुत ज्यादा उतावला हो गया है तू खाना तो बना लेने दे।

नहीं मुझसे रहा नहीं जा रहा है।(शुभम काफी उत्तेजित हो गया था और बातों ही बातों में उसने अपनी मां की ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए थे और राहत वाली बात यह थी कि आज निर्मला ने ब्लाउज के अंदर अपनी ब्रा नहीं पहनी थी पसीने की वजह से वह काफी चिपचिपी हो गई थी जिसे पकड़ कर दबाने में शुभम को काफी आनंद की अनुभूति हो रही थी।शुभम अपनी मां की गर्दन को चुमते हुए जोर-जोर से चूची को दबाना शुरू कर दिया जिसका असर निर्मला के बदन पर भी काफी हद तक मादकता का एहसास दिला रहा था।

ससससज्हहहहहहह आहहहहहहहह.... शुभम यह क्या कर रहा है कुछ तो सब्र कर मुझे खाना बना लेने दे।(निर्मला ऊपरी मन से अपनी बेटी को रुकने के लिए कह रही थी...जबकि अंदर से वह यही चाहती थी कि उसका बेटा बिना रुके अपना काम करते रहें क्योंकि शुभम की हरकतों ने उसकी लहसुन में भी आग लगाना शुरू कर दिया था जिसमें से मधुर रस बह रहा था।)

तुम खाना बनाती रहो मम्मी तुम्हें रोका किसने है मुझे अपना काम करने दो और इतना कहते हुए शुभम दोनों हाथों से अपनी मां की पेटीकोट पकड़कर ऊपर की तरफ उठाने लगा और अगले ही पल वो अपनी मां की पेटीकोट को कमर तक उठा दिया था।.....अपनी मां की नंगी गोरी गोरी बड़ी गांड देखते ही उसकी आंखों में चमक आ गई उसे इस बात की खुशी थी कि आज उसकी मां ने पेंटी नहीं पहनी हुई थी इसलिए वह अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर चपत लगाते हुए बोला।

वाह मम्मी आज तो ऐसा लग रहा है कि तुम पहले से ही तैयारी करके रखी हो तभी तो देखो आज तुमने चड्डी भी नहीं पहनी हो अपनी गांड एकदम नंगी रखी हो शायद मेरे लिए ही।

ऐसा कुछ नहीं है आज गर्मी ज्यादा थी इसलिए मैं ना तो ब्रा पहनी हूं और ना ही चड्डी समझ गया ना तू (निर्मला जानबूझकर इतराते हुए बोली।)

कुछ भी हो मुझे तो खजाना मिल गया है।

खजाना तभी हाथ लगता है जब पहरेदार की रजामंदी हो मेरी रजामंदी है इसलिए तू खजाने तक आराम से पहुंच जाता है। (इतना कहते हुए निर्मला तवे पर फूली हुई रोटी को उठाकर बर्तन में रखने लगी तब तक शुभम अपनी पेंट घुटनों तक सरकार कर अपने मोटी खड़े लंड को हाथ में लेकर ही लाना शुरू कर दिया था जो कि इस समय काफी तगड़ा और कठोर नजर आ रहा था।निर्मला को भी इस बात का एहसास हो गया था कि अब सुभम क्या करने वाला है इसलिए वह पीछे नजर करके अपने बेटे के खड़े लंड को देखने लगी जिस पर नजर पड़ते ही उत्तेजना के मारे उसकी बुर कचोरी की तरह फूलने पीचकने लगी। शुभम एक हाथ में अपने लंड को पकड़ कर अपने लिए जगह बना रहा था जिसका साथ देते हुए निर्मला हल्के से नीचे की तरफ झुकी और अपनी गांड को ऊपर उठा दी जिससे उसकी बुर की गुलाबी छेद शुभम की आंखों के सामने साफ-साफ नजर आने लगी।
शुभम को अपनी मंजिल साफ नजर आने लगी बस अपनी गाड़ी को आगे बढ़ाना था और बा अपने लंड को एक हाथ में पकड़ कर उसके गर्म सुपाड़े को अपनी मां की बुर की गुलाबी छेद पर रख दिया जिससे निर्मला के बदन में आग लग गई वह सिहर उठी उसकी गुलाबी बुर भी जैसे लंड को अंदर लेने के लिए मचल रही हो इस तरह से सिकुड़ रही थी।
देखते ही देखते शुभम धीरे-धीरे करके अपने लंड को अपनी मां की बुर की गहराई में उतार दिया।
कुछ ही सेकंड में शुभम का मोटा तगड़ा लैंड निर्मला की गुलाबी पुर की गहराई में खो गया और शुभम की जांग निर्मला की जांघों से सट गई शुभम ने अपनी लंड को पूरी तरह से अपनी मां की बुर में उतार दिया था और दोनों का बदन आपस में इतना सड़ गया था कि दोनों के बीच से हवा भी गुजर नहीं रही थी।
यही पोजीशन इसी अवस्था में रोहन को चुदाई करना बेहद पसंद था वह अपने दोनों हाथों से अपनी मां की कमर को थामकर हल्के हल्के धक्के लगाने लगा और निर्मला भी अपने बदन की गर्मी दिखाते हुए अपने बेटे के हर धक्के के साथ गर्म सिसकारी छोड़ रही थी। एक बार फिर से सारे जग से अनजान मां बेटे दोनों अपने रिश्तो की मर्यादा भूल कर एक दूसरे में समाने के भरपूर प्रयास में लगे हुए थे शुभम हल्के धक्कों से शुरू करते हुए धक्कों की रफ़्तार बढ़ाने लगा। रसोई घर में जहां निर्मला खाना बना रही थी अब वहां चुदाई का खेल शुरू हो गया था। एक अद्भुत नजारा रसोई घर में नजर आ रहा था निर्मला किचन के फ्लोर पर झुकी हुई थी और शुभम अपनी मां की साड़ी को कमर तक उठाए हुए उसकी रसीली बुर में लंड पेल रहा था और साथ ही एक हाथ आगे बढ़ा कर उसके बड़े बड़े दूध को दबा रहा था निर्मला मस्त हुए जा रहे थे उसके मुंह से सिसकारी की आवाज लगातार पूरे रसोईघर में गूंज रही थी हालांकि इस मादक भरी सिसकारी को सुनने वाला शुभम के सिवा वहां कोई नहीं था और यही तो दोनों चाहते ही थे कि घर में केवल उन्हीं दो रहे ताकि वह जब चाहे तब चुदाई का सुख भोग सकें।
अशोक अपने काम में व्यस्त था और उसके पीठ पीछे उसका ही बेटा उसकी बीवी को चोद कर मस्त कर रहा था। शुभम के कमर की रफ्तार बढ़ने लगी वह तेज झटकों के साथ अपनी मां की चुदाई कर रहा था और उसके हर धक्के के साथ निर्मला की बड़ी बड़ी गांड पानी से भरे हुए गुब्बारे की तरह लहर जा रही थी। दोनों की सांसो की गति तेज चल रही थी। शुभम अपनी मां की बुर में लंड डालते हुए एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर अपनी मां की एक टांग को घुटनों से पकड़ कर ऊपर उठाते हुए बोला।

वैसे मम्मी आज तुम बना कर रही हो।

कद्दू की सब्जी। (शुभम के तेज धक्कों की वजह से निर्मला के मुख से हर एक शब्द सीहरते हुए निकले।)

कद्दू की सब्जी मम्मी तुम जानती हो कि मुझे कद्दू की सब्जी बिल्कुल भी नहीं पसंद है।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

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मैं अच्छी तरह जानती हूं बेटा लेकिन तू ही तो कह रहा था कि पहले खाने को कुछ ना हो चोदने के लिए बुर तो मिलेगी ना तु इसी से पेट भर लेना। .....

चलेगा मम्मी मैं तो कह रहा हूं कि खाने को भले कुछ ना हो बस चोदने के लिए बुर चाहिए। चोद कर ही पेट भर जाता है ।(इतना कहते हुए और जोर जोर से धक्के लगाने लगा कद्दू की सब्जी का नाम सुनकर शुभम को सरला चाची की बात याद आ गई क्योंकि वह झूठ बोला था कि उसे कद्दू की सब्जी बहुत पसंद है वह किसी बहाने से सरला के घर में प्रवेश करना चाहता था। जबकि उसे कद्दू की सब्जी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।)

मेरे बेटे पर चिंता मत कर तेरे लिए मैंने सूजी का हलवा बनाकर रखी हूं। तू मेरा इतना ख्याल रखता है तो इतना तो मैं तेरा ख्याल रख ही सकती हूं।
(शुभम जिस टांग को पकड़ कर थोड़ा सा उठाए हुआ था निर्मला उसी काम को थोड़ा सा और उठाकर उसे किचन पर रख दी ताकि और ज्यादा आराम से शुभंकर लंड उसकी बुर में अंदर बाहर हो सके।)

क्या बात कर रही है मम्मी तुम सच कह रही हो आज तो मजा आ जाएगा। (शुभम को इस तरह से खुश होता देखकर वह भी मुस्कुराने लगी और खुशी और उत्तेजना का मिलाजुला असर शुभम के धक्के पर पड़ने लगा वह जोर जोर से धक्के लगाते हुए अपनी मां को चोदने लगा। निर्मला अपने बेटे के हर धक्के का मजा लेते हुए जोर जोर से सिसकारी की आवाज निकाल रही थी। और देखते ही देखते दोनों एक साथ झड़ गए। शुभम झड़ने के साथ ही अपनी मां के ऊपर एक दम से पसर गया। कुछ देर तक निर्मला भी उसी तरह से झुकी रही।
जब थोड़ी देर बाद निर्मला की सांसे शांत हुई तो वह शुभम को पीछे की तरफ धक्का देते हुए बोली।

अब हटे गा भी कि ऐसे ही मेरे ऊपर पड़े रहेगा चल हट मुझे खाना बनाने दे बहुत देर हो गई है।
(शुभम अपनी मां के ऊपर से हटा और पेंट पहनने लगा निर्मला भी अपनी पेटीकोट को व्यवस्थित करके ब्लाउज के बटन लगाने लगी। इसी तरह से एकाएक हुई चुदाई में निर्मला को काफी मजा आता था इसलिए उसके चेहरे पर संतुष्टि भरा एहसास साफ नजर आ रहा था वह वापस खाना बनाने लगी और शुभम अपने कमरे में चला गया।

रात को अपने बिस्तर पर सरला शुभम की कही बातें याद कर करके करवट बदल रही थी यह उसके साथ पहली बार हुआ था कि कोई जवान लड़का उसकी खूबसूरती की तारीफ किया था जिससे वह गदगद हुए जा रही थी। कुछ घंटों पहले वह शुभम के ऊपर एकदम शक कर दी थी कि वह खुद अपनी मां को चोदता है और इस बात को लेकर हुआ है उसे से काफी नाराज भी थी लेकिन आज बाजार में जिस तरह से उसने थैला उठाकर उसकी मदद किया था और बातों ही बातों में उसकी खूबसूरती उसके बदन की तारीफ किया था उसे सुनकर सरला के तो जैसे होश उड़ गए थे वह सपनों की दुनिया में खोने लगी थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि शुभम जैसा जवान लड़का उसकी खूबसूरती की तारीफ कर रहा है। वह बार-बार बिस्तर पर करवट बदल रही थी सरला को अपनी टांगों के बीच हलचल सी महसूस होने लगी और इसी तरह की हलचल उसे उस दिन महसूस हुई थी जब वह निर्मला के घर पर शीशे की दीवार से अंदर का दृश्य देखी थी जहां पर खड़ी होकर निर्मला एकदम नग्न अवस्था में अपनी बुर के साथ खेल रही थी उस दृश्य को याद करके सरला का इमान भी गड़बड़ाने लगा।
उसके मन में तुरंत यह ख्याल आया कि निर्मला की उम्र में और उसकी उम्र में कुछ ज्यादा फर्क नहीं था केवल तीन चार साल का ही फर्क था । हां थोड़ा यह बात था कि वह निर्मला से शरीर में कुछ ज्यादा भारी थी और वह भी ज्यादा नहीं बल्कि बदन का हर हिस्सा कसा हुआ ही था और वह यह भी बात जानती थी कि निर्मला उससे ज्यादा ही खूबसूरत है लेकिन वह भी किसी से कम नहीं थी इसलिए वह अपने बदन की तुलना निर्मला के बदन से करने हेतु बिस्तर पर से होती और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई वह इधर-उधर घूमकर आईने में अपने अक्स को देखने लगी। उसे अपने बदन पर अपने चेहरे पर उम्र का प्रभाव ज्यादा नहीं लग रहा था उसका चेहरा गोल मटोल एकदम गोरा हॉट एकदम लाल-लाल थे और हर तरह से आकर्षक चेहरा था रही बात बाकी के इसे की तो वह अपने कंधे पर से साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा कर अपनी छातियों को देखने लगी जो कि ब्लाउज के अंदर काफी आकर्षक लग रहे थे और ऊपर का एक बटन खुला होने की वजह से दोनों के बीच की लकीर किसी नहर की तरह नजर आ रही थी।उससे अभी भी रहा नहीं किया तो वह आईने में देखते हुए अपने हाथों से अपने ब्लाउज के बटन खोल कर अपने दोनों चुचियों को आजाद कर दी वह ब्रा नहीं पहनती थी जिसकी वजह से उसकी चुचियों में हल्का सा लटक पना गया था जिसे वो खुद अपने हाथों से ऊपर की तरफ उठाते हुए बोली की
यह मेरी ही गलती है अगर मैं हमेशा ब्रा पहनती तो आज भी मेरी चूचियां एकदम टाइट रहती। वह मन में निश्चय कर ली कि आगे से वह हमेशा ब्रा पहनेगी।


वह अपनी नजर नीचे की तरफ ले गई तो उसे अपने पेट को देखकर अपने आप ही इस बात का ख्याल आ गया कि अगर थोड़ा सा मेहनत की होती तो उसका पेट और आकर्षक लगता जो कि उस दिन चिकना दूधिया रंग का था। वह अपने हाथों से अपने पेट को सहलाने लगी।
सरना अपने पेट को चलाते हुए आईने में अपने आप को देख रही थी जो कि सांस लेने की वजह से उसकी भारी-भरकम चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देखकर उसके मन में कुछ-कुछ हो रहा था और उससे रहा नहीं गया और वह अपने एक हाथ से अपनी चूची पकड़ कर दबाना शुरू कर दी यह शुभम की कही बातों का ही असर था कि आज वह इस कदर अपने आपको आईने में अर्धनग्न अवस्था में देख रही थी। सरला को अपनी ही हरकत पर मजा आ रहा था उसे अपने मन में यह सवाल उठ रहा था कि जरूर उसके बदन में कुछ बात होगी तभी तो शुभम जैसा जवान लड़का उसकी खूबसूरती की तारीफ कर रहा था। इसलिए अपने आप को जांचने के उद्देश्य से वह कमर से पति अपनी साड़ी को खोलकर नीचे फर्श पर गिरा दी अब हुआ आईने के सामने केवल पेटीकोट में खड़ी थी जिसकी डोरी उसकी नाजुक नाजुक उंगलियों में थी और उसे खींचकर अगले ही पल पेटीकोट को भी नीचे गिरा दी।
आईने में अपने आप को एकदम नंगी देखकर वह शरमा गई पहली बार वह अपने आप को नंगी देख रही थी और वह भी खुद ही अपने हाथों से ही अपने आप को नंगी की थी।
अपने पति के देहांत के बाद वह अपने आप को कभी भी नग्न अवस्था में नहीं देखी थी वह नहाती भी थी तो कपड़े पहने हुए ही होते थे लेकिन आज पहली बार वह आईने के सामने अपने आप को पूरी तरह से निर्वस्त्र करके आईने के सामने नंगी खड़ी थी।
वह आदम कद आईने में अपने आप को देख रही थी उसके बदन की बनावट और खूबसूरती देखकर उसे पहली बार ऐसा लग रहा था कि वह भी किसी से कम नहीं है। वह ना चाहते हुए भी अपने दोनों हाथों से अपनी बड़ी-बड़ी चुचियों को पकड़ कर दबाने लगी उसे निर्मला की हरकत याद आ रही थी और उसकी हरकत को याद करके आईने में अपनी टांगों के बीच के उस पतली दरार की तरफ नजर घुमाई तो वहां पर उसे ढेर सारा झांटों का झुरमुट देखने को मिला। उसे देखकर वह एक हाथ नीचे की तरफ ले गई और अपने झांटो के रेशमी बालों में उंगली फिराते हुए मन ही मन बोली की बालों वाली ही उसके पति को पसंद थी इसलिए वह जल्दी साफ नहीं करती थी।

अपने बुर के बाल में उंगली घुमाते हुए उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी बुर पूरी तरह से गीली हो चुकी थी जिस की बूंदे उसकी उंगली को भिगो रही थी। वह मस्त होने लगी और निर्मला वाला दृश्य याद करके वह अपने आप ही अपनी बुर को मसल ना शुरू कर दी जैसे कि निर्मला कर रही थी और देखते ही देखते वह शुभम की बातों के असर में और निर्मला की हरकत की वजह से अपनी बुर के अंदर अपनी एक उंगली डालकर उसे अंदर बाहर करने लगी जिसमें उसे मजा आने लगा बरसों से सूखी पड़ी बुर में सावन भादो बरसने लगा। सूखी पड़ी बंजर जमीन में पानी की बौछार पड़ने लगी उसका बदन करेगा तो हमें लगा थोड़ी ही देर में उसकी सांसों की गति तेज होने लगी अपनी बुर को उंगली से ही चोदने में उसे मजा आने लगा हालांकि इस तरह की हरकत उसने अभी तक बिल्कुल भी नहीं की थी। लेकिन आज वह मजबूर थी एक छोकरे ने उसे अपनी जवानी के दिन याद दिला दिए थे।
उत्तेजना बस और बदन में आनंद की लहर उठता हुआ देखकर उसकी उंगली रोक नहीं रही थी और वह जोर-जोर से अपनी एक उंगली को बुर में डालकर अंदर बाहर कर रही थी उसे मज़ा आने लगा था आईने में अपने आप को देख कर वह मस्त हुए जा रही थी वह हल्के से अपनी दोनों काम को थोड़ा सा और फैला दी जिससे उंगली डालने में उसे आसानी हो।

आज पहली बार बार इस तरह से बहक गई थी और जोर जोर से अपनी बुर में उंगली पर रही थी थोड़ी ही देर में उसकी बुर से भलभलख कर नमकीन रस बहने लगा।
वह आनंद के सागर में गोते लगा रही थी उसे मजा आ गया था और वह अपने ऊपर दी सांसों को व्यवस्थित करने के लिए बिस्तर पर आकर बैठ गई।
थोड़ी ही देर में उसे ऐसा महसूस होने लगा कि तूफान गुजर चुका है वह काफी शांत हो चुकी थी लेकिन एक अद्भुत अहसास से गुजर चुकी थी जिसका एहसास उसके चेहरे पर संतुष्टि का प्रभाव छोड़ गया था वह मस्त हो चुकी थी।
वह नंगी ही बिस्तर पर लेट गई और कब उसकी आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला।



शुभम की नजर अब तीन औरतों पर थी एक तो थी उसकी शीतल मैडम जिसकी मदहोश जवानी को वह एकदम करीब से देख पाया था उसकी मदहोश कर देने वाली खुशबू हर पल उसके बारे में सोचने से ही मादकता का एहसास दिलाती थी वह किसी भी हाल में शीतल से संभोग सुख प्राप्त करना चाहता था हालांकि उसे मंजिल दूर लग रही थी लेकिन नामुमकिन नहीं।अच्छी तरह से जानता था कि एक ना एक दिन शीतल को अपनी बाहों में लेकर उसकी भरपूर चुदाई का सुख भोगेगा।



शीतल के साथ-साथ आप उसकी नजर उसकी पड़ोस की सरला चाची और उसकी बहू रुचि थी जिसे देखते ही उसके तन बदन में झंकार बजने लगे थे वह रुचि का केवल मुखड़ा ही देख पाया था और जाते समय उसके नितंबों का सीमित घेराव जिस पर नजर पड़ते ही उसे इस बात का आभास हो चुका था कि रुचि की मदहोश जवानी अभी तक पंखुड़ियों के भीतर ही छुपी हुई है वह पंख लेकर बाहर उड़ने के लिए तड़प रही है। और सरला चाची जिसकी परिपक्व जवानी का रस पीना चाहता था। उसके बड़े बड़े नितंबों को अपनी दोनों हथेली में भर कर उसे अपने लंड पर बिठाकर जवानी की शेर कराना चाहता था।अब उसके सामने सवाल ये था कि आप यह काम कैसे पूरा किया जाए और उसे उम्मीद थी कि वह अपनी मंजिल को जरूर प्राप्त कर लेगा क्योंकि अभी तक उसकी जिंदगी में सब कुछ अच्छा ही होता आ रहा था जो शुरुआत उसने अपनी मां के साथ संभोग करके शुरू किया था उस कारवा में अब तक उसकी तीनों मामी और बड़ी मामी की खूबसूरत लड़की के साथ साथ खुद उसकी बुआ जुड़ी हुई थी। और जब से उसकी मुलाकात सर लाचारी और उसकी बाहों से हुई थी तब से उसे लगने लगा था कि उसके कारवां में शीतल सरला और रुचि के भी जुड़ने की उम्मीद हो गई है। अब वह इसी ताक झांक में हमेशा लगा हुआ था।
आए दिन वह हमेशा जब भी चलना चाची को देखता था तो किसी ना किसी बहाने उनसे मुलाकात कर लेता था और आए दिन उनके छोटे-मोटे काम भी कर दिया करता था।अब तो ऐसा लगने लगा था कि सरला चाची जैसे खुद उत्सुक थी उससे अपना काम कराने के लिए क्योंकि जिस तरह का अनुभव शुभम के द्वारा उसे महसूस हुआ था उम्र गुजर गई थी उस तरह का अनुभव उसे कभी नहीं हुआ था शुभम की कही बातों की वजह से वह बरसों के बाद अपनी सूखी पड़ी बुर में नमी महसूस कर पाई थी उसे भी यह सब अच्छा लगने लगा था तभी तो वह दूसरे दिन से ही ब्रा और पैंटी पहनना शुरू कर दी थी और अब तो वह अपना कुछ ज्यादा ही ध्यान देती थी पहले वह साधारण रूप से तैयार होती थी लेकिन अब थोड़ा सा बदलाव लाई थी। और थोड़ा सा बदलाव लाने के बाद वह और ज्यादा सुंदर लगने लगी थी यह सब देख कर उसकी बहू खुद टोकते हुए बोलती थी कि।

वाह मम्मी अब तो तुम बहुत खूबसूरत लगने लगी हो क्या बात है।...
वह अपनी बाहों की बात सुनकर हंस देती थी और इतना कहती थी कि क्या मैं सजने सवरने लायक नहीं हूं क्या तो जवाब नहीं उसकी बहू यह कहकर उसका हौसला बढ़ा दी थी कि

क्यों नहीं मम्मी आप तो बहुत खूबसूरत लगती हो आजकल तो कितनी उम्र होने के बाद भी औरतें सजना सवरना नहीं छोड़ती लेकिन अभी तो आप मेरी बड़ी बहन जैसी लगती हो मैं भी यही चाहती थी कि आप सज संवर कर अच्छी तरह से रहे।

अपनी बहू की बातें सुनकर वह जवाब में मुस्कुरा देती थी।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

उसकी जिंदगी में यह बदलाव शुभम के द्वारा आया था लेकिन फिर भी वह निर्मला के घर पर ताक झाक बनाए हुए थी। कोई और बात होती तो वह कब से भूल जाती लेकिन उसकी संका मां बेटे के बीच में अनैतिक संबंध को लेकर था इसलिए ना चाहते हुए भी उसके मन की उत्सुकता उसे बार बार उन दोनों पर नजर रखने को उकसा रही थी और वह लगातार उन पर नजर बनाए हुए थी इस बात से वाकिफ निर्मला अब कदम कदम पर बचकर चलती थी उसे इस बात का डर बराबर बना हुआ था कि कहीं उसके और उसके बेटे के बीच के संबंध के बारे में सरला को कुछ पता ना चल जाए।

दूसरी तरफ शीतल जो कि अपनी गलती के कारण अब हाथ मलने के सिवा उसके पास कोई दूसरा रास्ता ना होता देखकर वह बार-बार निर्मला से माफी मांगने की कोशिश कर रही थी लेकिन निर्मला थी कि उसकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं दे रही थी। आखिरकार निर्मला भी एक औरत थी और एक औरत होने के नाते वा चित्र से जानती थी कि मर्दों का झुकाव हमेशा औरतों की तरफ बढ़ता ही रहता है भले ही उनकी झोली में दुनिया की सबसे हसीन औरत ही क्यों ना हो। इसलिए वह यही चाहती थी कि शीतल से वह और उसका बेटा जितना दूर रहेंगे उतना खुश रहेंगे और उतना ही निर्मला खुद निश्चिंत रहेगी। इसलिए शीतल के लाख कोशिश के बावजूद भी वह निर्मला से ना तो बात ही कर पा रही थी और ना ही उससे माफी मांग पा रही थी वह अंदर ही अंदर घुट रही थी।
हालांकि जब भी उसकी आंखों के सामने शुभम नजर आता था उसके अंदर के सारे दुख दर्द गायब हो जाते थे उसके चेहरे पर मुस्कान तैरने लगती थी और यही हाल शुभम का भी था जब भी वह शीतल को देखता तो उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगती थी वह शीतल के मजबूत बदन को अपनी बाहों में भर कर उन्हें प्यार करने के लिए मचलने लगता था लेकिन अपनी मां की उपस्थिति में वह केवल नजरों से ही शीतल के सुंदरता का रसपान कर पा रहा था।
ऐसे ही एक दिन सीढ़ियों से उतरते समय शीतल की मुलाकात शुभम से हो गई और उसका दिल फिर से जोरो से धड़कने लगा क्योंकि उस समय सीढ़ियों पर दूसरा कोई नहीं था क्योंकि क्लास चालू था और किसी काम की वजह से शीतल ऊपर की तरफ जा रही थी और शुभम नीचे आ रहा था और दोनों की मुलाकात सीढ़ीयो के बीच हो गई दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे ....
Sheetal or Shubham sidhiyo par kuch is tarah se


क्या शुभम तू तो अब मुझ पर ध्यान ही नहीं देता क्या मैं तुझे खराब लगने लगी हूं या ....(इतना कहने के साथ है उसके चेहरे पर उदासी की लकीर साफ नजर आने लगी)

नहीं नहीं मैडम ऐसी कोई भी बात नहीं है। (शुभम उसके ब्लाउज में से झांकते दोनों कबूतरों को देखते हुए बोला)

नहीं ऐसी ही बात है तभी तो तू मुझे मैडम कह रहा है वरना मैं तुझे कितनी बार कहीं हूं कि तुम मुझे अकेले में शीतल बोला कर।

देखो शीतल तुम भी अच्छी तरह से जानती हो कि अभी हालात कुछ ठीक नहीं है मम्मी ने जिस दिन से हम दोनों को उस अवस्था में देखी है तब से वह मुझसे और तुमसे दोनों से खफा है इसलिए अभी हम दोनों का मिलना और मुश्किलें बढ़ा सकता है।

मैं जानती हूं शुभम मेरी गलती की वजह से हम दोनों आज इतनी दूर है वरना हम दोनों का मिलन अब तक हो चुका होता (शीतल तिरछी नजरों से शुभम के पेंट में बन रहे तंबू को देखते हुए बोली और उस तंबू को देखकर उसकी बुर कुल बुलाने लगी)

देखो शीतल अपने आप को दोषी मत ठहराओ जो होना था हो गया....

लेकिन मैं तो तुमसे दूर हो गई ना पहले तो मैं तुमसे बात भी कर लेती थी लेकिन अब वह भी मुश्किल होता जा रहा है। (शीतल बात तो कर रही थी शुभम से लेकिन उसकी नजरों पर अपनी नजर गड़ाए हुए थे क्योंकि वह अच्छी तरह से जान रहे थे कि शुभम उससे बात करते समय उसकी चूचियों को घूर घूर कर देख रहा था जो कि इस समय ट्रांसपेरेंट साड़ी में से साफ साफ नजर आ रही थी और यह देखकर वह खुश भी हो रही थी।)

देखो शीतल सब कुछ ठीक हो जाएगा बस सब्र करो मुझे भी तुमसे मिले बिना चैन नहीं मिलता लेकिन क्या करूं मजबूर हूं। (काफी समय बाद शीतल को अपने इतने करीब पाकर शुभम काफी उत्तेजित होने लगा था शीतल के बदन से उठ रही माधव खुशबू का अहसास शुभम को उत्तेजना के सागर में लिए जा रहा था वह अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा था और इसीलिए इतना बोलते समय वह एक कदम आगे बढ़ाकर शीतल के और करीब आने की कोशिश करने लगा और शीतल भी उसके बढ़ाए कदम को देखकर अपने चारों तरफ नजर दौड़ाते ही तुरंत उसे अपनी बाहों में कस ली और बिना एक पल गांव आए ही अपने होठों को उसके होठों पर रखकर चूसना शुरू कर दी .. शीतल के मन में और उसके बदन में अजीब सी भावनाएं उठ रही थी कि एक शिक्षिका होने के बावजूद स्कूल के अंदर वह एकांत पाकर शुभम के सामने वह अपनी भावनाओं पर बिल्कुल भी काबू नहीं कर पाई थी और इसी के चलते वह उसे अपनी बाहों में लेकर लोक लाज शर्म सब कुछ त्याग कर उसके होठों का रसपान कर रही थी शीतल की इस कामुक हरकत की वजह से शुभम के तन बदन में आग लग गई थी और वह भी तुरंत शीतल के मजबूत खूबसूरत बदन को अपनी बाहों में करते हुए अपनी दोनों हथेलियों को पीठ पर से फीसलाते हुए नीचे की तरफ लेकर आया और तुरंतअपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था उतना साड़ी के ऊपर से ही सीतल की मत मस्त बड़ी बड़ी गांड को भर कर दबाना शुरू कर दिया रुई से भी नरम मुलायम गांड को अपनी हथेली भरकर दबाते हुए शुभम पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था और उसके पेंट में तुरंत तंबू बन गया था जो कि इस समय उसकी ठोकर शीतल को अपनी टांगों के बीच अपनी रसीली फूली हुई बुर के ऊपर बराबर हो रही थी जिसका अहसास होते ही उसकी बुर ने समर्पण की भावना के अधीन होकर अपनी बुर में से मधुर रस की दो बूंदे नीचे टपका दी जो कि उसके बदन की स्वीकृति थी।
करीब-करीब केवल दोनों के मिलन मैं अभी 1 मिनट भी नहीं हुआ था कि सीढ़ियों पर किसी के कदमों की आहट सुनते ही दोनों फिर से अलग हो गए ना तो शीतल ही उसे अपनी बाहों से अलग करना चाहती थी और ना ही शुभम शीतल को अपने से जुदा करना चाहता था लेकिन मजबूरी थी दोनों अलग हो गए और अपने अपने रास्ते पर चलते बने लेकिन दोनों पीछे पलट कर एक दूसरे को देखने लगे जोकि शुभम तो काफी खुश नजर आ रहा था लेकिन इस बिछड़ने के पल की वेदना शीतल की आंखों में साफ नजर आ रही थी। वह भारी मन से अपने रास्ते चली गई और शुभम अपने रास्ते शुभम को इस बात से राहत थी कि मौका मिलते ही जब चाहे तब शीतल के खूबसूरत बदन कुआं भोग सकता था लेकिन खासा मेहनत उसे सरला चाची और उसकी बहू को पाने में करनी थी इस बात का अंदाजा उसे अच्छी तरह से था इसलिए वह अपने काम में जुटा हुआ था।

आए दिन वह छत पर टहलने के लिए चला जाया करता था जहां से सरला चाची की छत आपस में जुड़ी हुई थी और एक दूसरे की छत पर बिना अड़चन के आया जा सकता था । क्योंकि छत पर ढेर सारे कपड़े हमेशा सूखने के लिए तंगी रहते थे और वह चित्र से जानता था कि उन्हें लेने के लिए सरला चाची या उनकी बहू जरूर आएगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था।
वह रोज छत पर इसी तरह से टहलने के लिए चला जाया करता था कि उन दोनों का दीदार हो जाए और उनसे बातें करके कुछ रास्ता निकले लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा था एक दिन ऐसे ही वह छत पर टहल रहा था उसे उम्मीद थी कि आज सरला चाची जरूर कपड़े उतारने के लिए आएगी। वह ईसी ताक में इधर से उधर छत पर टहल रहा था। कि तभी उसे सरला चाची की बहू रुचि नजर आ गई जोकि आते ही कपड़े उतारने लगी रस्सी पर टंगे हुए सारे कपड़ों को एक-एक करके उतार कर संभाल कर रख रही थी मौका देख कर शुभम तुरंत रुचि के करीब गया। उसका कसा हुआ और सीमित पिछवाड़ा देखकर वह एकदम पागल हो गया था।
अब तक कई औरतों के संगत और उनसे संभोग के कारण वह काफी परिपक्व हो चुका था और खास करके औरतों के मामले में तो कुछ ज्यादा ही परित कहो गया था उनसे बात करने का ढंग से किया था उन्हें कैसे अपनी बातों के जादू में उलझाना है यह उसे अच्छी तरह से आने लगा था इसलिए वह रुचि के करीब पहुंचते ही बोला।

और भाभी क्या कर रही हो...

(यू एकाएक आवाज सुनते ही रुचि एकदम से डर गई और चौक ते हुए बोली।)

बाप रे तुम तो मुझे डरा ही दिया इस तरह से कोई बोलता है क्या।

मैं तो इसी तरह से बोलता हूं।

अरे मेरा मतलब है अपने आने का कुछ तो आहट देते मैं तो डर ही गई कि यह कौन सी बला टपक पड़ी। (रुचि रस्सी पर से कपड़ों को उतारते हुए बोली।)

अच्छा भाभी तो मैं आपके लिए बला हो गया। (शुभम रुचि के सामने तकरीबन 3 _ 4 की फीट की दूरी पर रस्सी पकड़कर खड़े होते हुए बोला)

इस तरह से आकर किसी को डर आओगे तो वह तुम्हें बला ही कहेगी।

अच्छा चलो कोई बात नहीं बला ही सही...(शुभम रुचि के खूबसूरत चेहरे को देख रहा था रुचि किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी पतली सी काया चर्बी ओ का नामोनिशान नहीं था चर्बी उतनी ही थी जितनी की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे ब्लाउज में कैद दोनों कबूतर अभी खा पीकर बड़े नहीं हुए थे लेकिन इतने बड़े तो हो ही गए थे कि हवा में उड़ सके जिन्हें देखकर शुभम को ऐसा लग रहा था कि जैसे भाभी ने हथेली में आ सके उतने साइज के संतरे अपनी ब्लाउज में कैद करके रखे हो. होठों की लालीमां बदन के लहू की तरह लग रही थी.. जिसे शुभम अपने होंठों में भर कर पीना चाहता था... कलाइयों में लाल रंग की चूड़ी बेहद खूबसूरत लग रही थी और उससे भी ज्यादा खूबसूरत चूड़ियों की खनक से उठ रही मधुर ध्वनि की थी जो कि उसके कानों में मादकता का एहसास दिला रही थी। शुभम रुचि की खूबसूरती के रसपान करने में इतना खो गया कि वह एकटक बस उसे ही देखे जा रहा था और रुचि सुभम की इस हरकत से शर्मा आ रही थी। इसलिए वह बोल दी।)


ऐसे क्या देख रहे हो?
(रुचि की बात सुनते ही शुभम हड़बड़ाते हुए बोला)

ककककक... कुछ नहीं बस यह देख रहा हूं कि मेरे बगल में इतनी खूबसूरत औरत है और मेरी नजर उस पर पड़ी ही नहीं। (शुभम अपनी बातों का जाल बुनता हुआ बोला। शुभम की ऐसी बातें सुनते ही रूचि एकदम से जीत गई वह रस्सी पर से कपड़े उतारते उतारते वैसे ही खड़ी रह गई उसे समझ में नहीं आया कि यह शुभम ने क्या कह दिया वह आश्चर्य से शुभम की तरफ देखने लगी तो शुभम अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)

क्यों क्या हुआ ऐसे क्यों देख रही हो मैं जो कुछ भी कह रहा हूं एकदम सच कह रहा हूं मेरी बातों में इतनी सी भी झूठा पर नहीं है एक एक शब्द शतप्रतिशत खरा है...

ऐसे मत कहो कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा...(रुचि अपने चारों तरफ नजर दौड़ आते हुए बोली जिसका मतलब एकदम साफ था कि शुभम की कही बातें उसे अच्छी लग रही थी..)

मुझे तुम पागल समझी हो क्या कि मैं किसी के सामने तुम से ऐसी बातें कहूंगा मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि घर में बहू की क्या मर्यादा होती है इसलिए मैं दुनिया की नजरो से बचकर तुमसे यह बात कह रहा हूं अगर मेरी बात से तुम्हें जरा भी दुख पहुंचा हो या बुरा लगा हो तो मैं माफी चाहता हूं (शुभम जानबूझकर हाथ जोड़कर माफी मांगते हैं बोला।)


नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । देखो मुझे इस तरह की बातें पसंद नहीं अगर मम्मी जी आ गई और इस तरह की बातें करते हुए सुन ली तो क्या कहेंगी।

चलो कोई बात नहीं अगर तुम्हें इस तरह की बातें पसंद नहीं है तो मैं अब कभी नहीं कहूंगा लेकिन जो मैंने कहा वह बिल्कुल सच है तुम बहुत खूबसूरत हो।

(इस बार रुचि के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई और वह मंद मंद मुस्कुराने लगी उसकी मुस्कुराहट में भी एक अद्भुत आकर्षण था जिस के आकर्षण में शुभम पूरी तरह से बंधता चला जा रहा था। रुचि को हंसता हुआ देखकर शुभम तुरंत बोला ।)

तुम हंसती मतलब कि तुम्हें मेरी बात अच्छी लग रही है और वैसे भी कही हुई सच्ची बात हमेशा अच्छी ही लगती है यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानती हो।

चलो सब बात छोड़ो तुम मुझे यह बताओ कि यहां क्या करने आए हो। (रुचि उसी तरह से अपने स्थान पर खड़े होकर बोल रही थी वह रस्सी से कपड़े उतारना भूल चुकी थी ऐसा लग रहा था कि उसे भी शुभम का यह साथ अच्छा लग रहा है इसलिए तो वह उसी तरह से खड़े होकर उससे बातें कर रही थी।)

कुछ नहीं बस ऐसे ही छत पर डाल रहा था थोड़ा व्यायाम कर रहा था। और तुमको देखा तो सोचा चलो अपनी भाभी से थोड़ी गपशप कर लिया जाए वैसे भी मैं पहली बार तुमसे मिल रहा हूं जबकि हम दोनों इतने पास में रहते हैं फिर भी।

अच्छा तो जनाब मुझसे मिलने आए हैं और तुम व्ययाम करते हो लगता तो बिल्कुल भी नहीं है कि तुम व्यायाम करते हो.. ( रुचि शुभम को ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए बोली।.... रुचि की बात सुनकर शुभम को यही सही मौका लगा अपना खूबसूरत और गठीला बदन दिखाने के लिए ... क्योंकि यह बात शुभम अच्छी तरह से जानता था कि औरतें हमेशा गठीले बदन को पसंद करती हैं उन्हें हट्टी कट्टी चौड़ी और मजबूत शरीर वाले मर्द पसंद होते हैं और वह उनके प्रति आकर्षित भी होती हैं। और शुभम को अपनी जवान मजबूत बदन पर भरोसा और विश्वास दोनों था वह अच्छी तरह से जानता था कि अगर वह किसी तरह से अपनी चौड़ी छाती खूबसूरत शरीर को वह रुचि को दिखा दे तो रुचि उसके प्रति आकर्षित हो जाएगी और रुचि कि कहीं बात का फायदा उठाते हुए बिना एक शब्द बोले वह तुरंत अपनी टीशर्ट को ऊपर की तरफ करते हुए बोला।)

तुम्हें विश्वास नहीं होता ना रुको रुको मैं बताता हूं कि मैं व्ययाम करता हूं कि नहीं...(शुभम को अपनी टीशर्ट निकालता हुआ देखकर वह उसे रोकते हुए बोली।)


अरे अरे अरे यह क्या कर रहा है अरे मत निकाल टीशर्ट कोई देखेगा तो क्या कहेगा ...(रुचि अपने चारों तरफ नजर दौड़ते हुए बोली।.. वह अपनी बात पूरी कर पाती इससे पहले ही फुर्ती दिखाते हुए शुभम अपनी टीशर्ट निकाल दिया और टीशर्ट निकालते ही वह दोनों हाथ फेरते हुए अपने बदन को रुचि को दिखाते हुए बोला..)

लो देख लो भाभी क्या मैं झूठ कह रहा था ।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

(रुचि अभी भी इधर उधर देख ले रही थी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि कोई यह देखकर कुछ भी कहे लेकिन चारों तरफ देखने के बाद वह जब सुभम की तरफ नजर दौड़ाई तो वह उसे देखते ही रह गई.... मजबूत शरीर आकर्षक चेहरा चौड़ी छाती चर्बी का नामोनिशान नहीं एकदम किसी हीरो की तरह उसका बदन एकदम फिट देखकर रूचि के तन बदन में एक अजीब सी हलचल होने लगी उसके मन के कोने के साथ-साथ उसकी टांगों के बीच भी झंकार बजने लगी जैसे मर्दे कि वह कल्पना करते आ रहे थे उस कल्पना को साक्षात रुप शुभम देता हुआ नजर आ रहा था वह उसे एकटक देखती ही रह गई । शुभम के लाजवाब और मजबूत शरीर को देखकर उसे अपना पति याद आ गया जिसके पतले शरीर की ओट में वह अपनी जवानी पिघला नहीं पा रही थी उसकी कमजोर भुजाओं में अपनी प्यास नहीं बुझा पा रही थी इस दौरान उसकी नजर उसके पैंट में बने हल्के से तंबू की तरफ गई जो कि हल्का सा उठा हुआ था जो इस बात को साबित कर रहा था कि शुभम रुचि के संदिग्ध में उत्तेजित हुआ जा रहा था रुचि शुभम के पेंट में बने हल्के से उठाव को देखकर उत्तेजित होने लगी उसकी टांगों के बीच पेंटी के अंदर हलचल होने लगी। वह शुभम की खूबसूरत बदन को देखती ही जा रही थी कभी चौड़ी छाती को देखती तो कभी पेंट में बने उभार को देखती रहती जोकि हल्का-हल्का ऊठ रहा था यह देख कर रुचि शर्म से लाल हो गई उसके गालों पर सूर्ख लालिमा छाने लगी।
दूर आसमान में सूरज ढल रहा था जिसकी पीली रोशनी छत पर बिक्री हुई थी और पीली रोशनी में रुचि का खूबसूरत बदन सोने की तरह चमक रहा था और साथ ही शुभम की नंगी छाती मर्दाना ताकत को उजागर कर रही थी रुचि तो शुभम को देखती रह गई उस पर से नजर हटाने का उसका मन नहीं हो रहा था वह उसी तरह से रस्सी पकड़े खड़ी होकर शुभम की जवानी भरे बदन को देख रही थी।
शुभम भी जानबूझकर उसी तरह से खड़ा था वह अच्छी तरह से जानता था कि रुचि की नजर उसके पैंट में बने उभार पर भी चली जा रही थी जिससे शुभम भी अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रहा था और वह इस पल को जी लेना चाहता था इसलिए अपने बदन को ढकने की बिल्कुल भी दरकार नहीं ले रहा था रुचि ही इस तंद्रा को भंग करते हुए बोली।

बस बस शुभम टी शर्ट पहन ले मैं अच्छी तरह से समझ गई हूं कि तू बहुत कसरत करता है तभी तेरा बदन इतना गठीला हो गया है। (रुचि के मुंह से अपने बदन की तारीफ सुनकर शुभम पूरी तरह से गदगद हो गया हुआ अच्छी तरह से समझ गया कि थोड़ी सी और मेहनत करने पर रुचि उसके जाल में आ जाएगी। इसलिए वह खुद रस्सी पर से कपड़ों को उतारते हुए रुचि को दबाने लगा और रुचि भी शुभम की मदहोश जवानी के आकर्षण में आकर्षित होते हुए उसके हाथ से कपड़े ले रही थी।

भाभी तुम रोज शाम को इसी तरह से कपड़े उतारने आती हो।...

क्या कह रहा है तू तुझे जरा भी अंदाजा है।
(रुचि की बात सुनकर वह अपने कहे गए शब्दों पर ध्यान देता हुआ बोला।)

मुझे माफ करना मेरा मतलब वह नहीं था मैं कहना चाहता हूं कि तुम इसी तरह से रस्सी पर से सूखे हुए कपड़े उतारने आती हो।(शुभम रस्सी पर से रुचि की साड़ी को उतारते हुए बोला... और रूचि भी शुभम की हड़बड़ाहट देख कर मुस्कुराते हुए बोली।)

हां मेरा तो काम ही यही है मैं रोज इसी तरह से शाम को रस्सी पर से सूखे हुए कपड़े इकट्ठे करके वापस ले जाते हैं क्यों कोई काम है क्या।


नहीं काम तो नहीं है बस तुमसे मुलाकात होती रहेगी तो मुझे भी अच्छा लगेगा। (शुभम साड़ी को रुचि के हाथों में थमाते हुए बोला।)

लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगेगा तुम्हारी इस तरह की मुलाकात के बारे में अगर मम्मी जी को पता चल गया तो वह क्या समझेंगी।

अरे कुछ नहीं समझेंगी मैं सब संभाल लूंगा...(इतना कहते हुए शुभम रस्सी पर से रुचि की सूखी हुई पेटीकोट को उतारने लगा जो कि यह देखकर रुचि शर्मिंदा होने लगी लेकिन वह कुछ कह पाती इससे पहले ही वह रस्सी पर से पेटिकोट उतार कर रुचि को थमाने लगा लेकिन तभी पेटिकोट के नीचे रखी हुई जोकि रुचि ने खुद अपने हाथों से सूखने के लिए रखी थी वह पैंटी और ब्रा हाथ से छूट कर नीचे गिर गई। जिस पर नजर पड़ते ही रूचि एकदम से हड़बड़ा गई लेकिन वह कुछ कह पाती इससे पहले ही शुभम नीचे झुक कर उसे अपने हाथों में उठा लिया और अपने दोनों हाथ में उसे पकड़ कर रुचि को थमाने लगा जो कि रुचि तुरंत अपना हाथ आगे बढ़ाकर एक झटके से शुभम के हाथ में से अपनी ब्रा और पेंटी को खींचकर कपड़ों में छुपा ली और हंसते हुए वहां से चली गई... शुभम पूरी तरह से उसकी खूबसूरती के आकर्षण में जकड़ चुका था उसे इस बात का अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि वह नीचे झुककर जिससे कपड़े को उठा रहा है वह रोजी की पैंटी और ब्रा थी जब इस बात का एहसास उसे हुआ तो वह पूरी तरह से उत्तेजित हो गया कि रुचि के खूबसूरत बदन को ढकने वाले अंग वस्त्र जो कि वह उसके बदन से लिपटे हुए रहते थे उन कपड़ों को अपने हाथों में उठाया था इस बात का एहसास उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर गया और जो उधार उसकी पेंट में हल्का सा उठा हुआ था वह पूरी तरह से तंबु बन गया।
रुचि जिस तरह से उसके हाथ से अपनी ब्रा और पेंटी को छीन कर हंसते हुए गई थी उसे देखते हुए शुभम को इस बात का अंदाजा लग गया कि उसके जाल में एक और नई चिड़िया फंसने वाली है बस अब दाना डालने की जरूरत है। रुचि से बात करता हुआ पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था। पेंट में उसका लंड पूरी तरह से तन कर खड़ा हो गया था अब उसको शांत करना उसके लिए बेहद जरूरी हो गया था और वह तुरंत अपने कमरे में गया जो कि वह अच्छी तरह से जानता था कि इस समय उसकी मां बाजार से सब्जी लेने गई थी।
वह अपने कमरे में जाते ही दरवाजा बंद करके एकदम नंगा हो गया और रूचि के खूबसूरत बदन की कल्पना करते हुए अपने लंड को हिलाने लगा और तब तक हिलाता रहा जब तक की रुचि के नाम से उसके लंड ने पानी नहीं फेंक दिया।........



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