दरवाजे पर वह वैसे ही रखा था। उल्लू बड़े शांत भाव से बैठा हुआ था। रेखा को देखकर उस उल्लू ने अपनी गर्दन जरा-सी टेढ़ी की और एक अजीब सी आवाज निकाली। रेखा को यही लगा था जैसे उल्लू ने उसे देखकर शी दर्शाई हो।
रेखा ने कुछ सोचा और फिर कुण्डा पकड़कर पिन्जरे को उठा लिया। उल्लू ने कोई उछल-कूद न मचाई थी। रेखा पिनजरा उठाए नीचे उतर आई। उसने इधर-उधर देखा। उसे गंगा मौसी की तलाश थी। इस जीने का एक रास्ता घर के अन्दर जाता था और दूसरा रास्ता थोड़ा-सा घूमकर बाहर के लीन की तरफ। उसने पिंजरे को बाहर बाले दरवाजे की • तरफ छोड़ा और खुद गंगा मौसी के कमरे की तरफ भागी ।
गंगा मौसी अभी पूजा करके हटी ही थी कि रेखा को इस तरह बदहवास कमरे में घुसते हुए देखा तो क्षण भर के लिए घबरा गई।
"क्या हुआ रेखा! खैर तो है...?"
"खेर कहां है, मौसी !" वह नीचे कालीन पर ही उनके निकट बैठ गई।
"बीबी आपकी चाय यहीं ले आऊं या बाहर पीएंगी।" माया ने कमरे में आते हुए पूछा।
"माया, देखो वह पिन्जरा सीढ़ियों के करीब रखा है तुम उसे उठाकर बाहर दीवार के साथ रख आओ। कहते हैं-उल्लू
बड़ा मनहूस होता है। जहां बैठता है-दीरानी फैल जाती है।"
"उल्लू...!" गंगा मौसी एकदम चौंकी "कहां है उल्लू..?"
"हाय, बीबी ! मुझे डर लगता है। वह मेरे पिन्जरा उठाते ही मुझ पर झपटता है।” माया सहम सी गई।
" अच्छा तुम इसे रहने दो और मेरी चाय इधर ही ले आओ।" रेखा तेजी से बोली।
"जी, ठीक है बीबी!" माया आदरपूर्ण स्वर में बोली और तेजी से कमरे से निकल गई। यही डर था दिल में कि कहीं उसे पिन्तरा उठाने को न कह दें।
गंगा मौसी का मुंह मारे हैरत के अभी तक खुला हुआ था। यही नहीं समझ पा रही थी कि या अचानक उल्लू कहां से आ गया... और वह भी पिन्जरे में गंगा मौसी ने फिर सवाल करना चाहा कि रेखा ने हाथ के इशारे से उन्हें सब करने को कहा और बोली-
"मैं बताती हूँ, मौसी । आप परेशान न हों।"
और फिर रेखा ने मौसी को उल्लू की कहानी सुना दी कि वह कहां से आया है और कैसे आया है। इस बीच माया चाय दे गई थी।
"अरे, वह कौन मनहूस शख्स था जो अपने लगे सगे को हमारे हवाले करके चला गया।" मौसी की परेशानी, झल्लाहट बन चली थी "रेखा तुम जल्दी से इस मनहूस को अपने घर से निकालो।"
"मौसी, परेशान होने की जरूरत नहीं है, में अभी उसका कुछ बन्दोबस्त करती हूँ।" रेखा ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा- हालाकि खुद उसकी अपनी जान निकली जा रही थी।" मौसी, सुनिये! मैंने यह लिफाफा खोल लिया है- "रेखां ने लिफाफा उनके सामने लहराया।'
"अरे, हां? क्या निकला इसमें..?" मौसी क्षण भर के लिए उस उल्लू को भूल गई ।
" एक कागज है इसमें मौसी उस पर हाथ से दो तस्वीरें बनी हुई हैं।" रेखा ने बताया ।
"लेकिन वह तो तुम्हारे किसी सपने और उसके फल-हल की बात कर रहे थे। रेखा तुमने मुझे बताया नहीं कि कैसा ख्वाब देखा था। "
"बस मौसी में आज आपको बताती। मैं पिछले पांच दिनों से निरन्तर वह सपना देख रही थी।"
स्वाहा
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Re: स्वाहा
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- SATISH
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Re: स्वाहा
"अरे, रेखा क्या कोई डरावना ख्वाब था वह। "
"ऐसा ख्वाब मौसी कि ख्याब देखने के बाद जब मेरी नींद टूटती तो मेरी जान निकली हुई होती।" रेखा सहम गई। "तो पगली मुझे बताय क्यों नहीं। अकेली ऊपर सोती है। अब मत सोना ऊपर...।"
" अरे नहीं मौसी...।" रेखा बे बात मुस्कराई "ऐसा भी क्या डरना बस थोड़ी देर डर लगता है फिर मैं सो जाती हूँ, मैं आपको ख्वाब बताती हूँ, फिर आपको ये तस्वीरें दिखाऊंगी? दादा जी ने लिफाफा अकेले में खोलने की हिदायत की थी और ख्वाब बताने या यह तस्वीरें किसी को दिखाने की तो कोई हिदायत है नहीं उनकी ।"
फिर रेखा ने पूर्व विवरण के साथ अपना वह सपना मौसी के सामने दोहराया।
"अरे यह वही मनहूस उल्लू तो नहीं है, जो तुम्हें झोपड़ी की छत पर बैठा दिखाई देता है।" गंगा मौसी को ख्वाब सुनकर वह उल्लू फिर याद आ गया- "रेखा, तुम भी अजीब लड़की हो, तुम ख्वाब में कोई ढंग की चीज नहीं देख
सकर्ती...।"
"मौसी, ख्वाब अपनी मर्जी से कहां दिखाई देते हैं।" रेखा असहाय-सी बोली।
"अच्छा, लिफाफे में क्या है?"
"यह देखिए मेरे ख्वाव की तस्वीरें।" रेखा ने कागज निकालकर उनके सामने किया। उसने पहले वह तस्वीर दिखाई जिसमें झोपड़ी, उल्लू और सांप बना था।
"अरे, यह तो बिल्कुल तुम्हारा ख्वाब ही है।"
"अब जरा पलटकर देखिये तब आपको इस ख्वाब का हल नजर आएगा। इस पहेली का हल...।"
गंगा मौसी ने कागज पलटा और इस तरफ बनी तस्वीर देख वह एकाएक ही कांप-सी गई। उनके मुंह से बेअख्तयार
निकला- "नहीं।" और चेहरा पीला पड़ता चला गया। "क्या हुआ मौसी ?" रेखा ने पूछा "आपने इस दरवाजे को पहचाना?"
" पहचान ही तो लिया है। इसलिए ही तो ऐसी खौफजदा हो रही हूँ। "
"यह उसी कमरे का दरवाजा है ना जिसे आप हमेशा लाक रखती हैं?" रेखा ने तस्वीक चाही ।
"हां, वही है।" मौसी की जुबान में अभी भी कम्पन था ।
रेखा ने कुछ सोचते हुए पूछा- "मौसी, एक बात बताएं- क्या दादा हरि ओम जी कभी इस घर में आए हैं?"
" आज तक नहीं।" मौसी ने ठण्डी सांस भरकर कहा ।
"फिर यह कितनी हैरानी की बात है मौसी, कि उन्होंने न सिर्फ मेरे ख्याब को जान लिया बल्कि इस कमरे की ठीक-ठीक निशानदेही भी कर दी। वह अगर दरवाजे के हैण्डल पर ताबीज लटका हुआ न दिखाते तो शायद इस दरवाजे को पहचानना मुश्किल होता...।"
"सवाल यह है रेखा, कि तुम्हारे सपने से इस दरवाजे का क्या सम्बन्ध ?" मौसी ने सवाल किया।
"कोई सम्बन्ध तो जरूर है, मौसी, वरना दादा जी को उसकी तस्वीर बनाने की क्या जरूरत थी। "
"तुम उस बंद कमरे के बारे में कुछ जानती हो...?"
''मैं जब से इस घर में आई हूँ.... मैंने उसे हमेशा बन्द ही देखा है और दरवाजे पर काले कपड़े में लिपटा हुआ ताबीज़ जो हैण्डल में लटका आ है। आपने उस कमरे के बारे में यही बताया है कि उस कमरे में काठ कबाड़ पड़ा है और वह स्वाहा
एक तरह का स्टोर है। "
"नहीं रेखा! मैंने गलत कहा था। दरअसल मैं नहीं चाहती थी कि तुम उसकी हकीकत जानकर डर जाओ। लेकिन अब तुमसे कुछ छिपाना बेकार है। अब यह मामला खतरनाक हो गया नजर आ रहा है।"
" अगर वह स्टोर नहीं हैं उसमें कोई सामान नहीं है तो फिर उसमें क्या है?" रेखा ने पूछा।
. "कुछ नहीं है, बिल्कुल खाली है और बिल्कुल सादा...।"
रेखा अपनी जिज्ञासा दबा नहीं पाई, एकदम बोली- "मौसी, उसका ताला खोलें-मैं उसे अन्दर से देखना चाहती हूँ।"
"हाय नहीं, रेखा। ऐसी बात सोचना भी नहीं...?"
"क्या मतलब मौसी ! क्या हो जाएगा...?"
"यह तो मैं नहीं जानती कि क्या हो जाएगा। लेकिन इतना विश्वास जरूर है कि कुछ-न-कुछ जरूर हो जाएगा। हमें इस कमरे को खोलने से मना किया गया है।" मौसी की आवाज में फिर कम्पन भर आया था।
"किसने मना किया है मौसी?" रेखा ने पूछा।
"उस शख्स ने जिससे हमने यह मकान खरीदा था।" गंगा मौसी ने बताया 'बासूदेव नाम के उस शख्स ने इस मकान को बड़े शौक से बनवाया था, लेकिन उसे इसमें रहना नसीब नहीं हुआ। बड़ी अजीब है इस मकान की कहानी।"
"कैसी कहानी ? मुझे सुनाओ ना मौसी।" रेखा बेचैन हो उठी।
और गंगा मौसी ने कहानी सुनाई।
"ऐसा ख्वाब मौसी कि ख्याब देखने के बाद जब मेरी नींद टूटती तो मेरी जान निकली हुई होती।" रेखा सहम गई। "तो पगली मुझे बताय क्यों नहीं। अकेली ऊपर सोती है। अब मत सोना ऊपर...।"
" अरे नहीं मौसी...।" रेखा बे बात मुस्कराई "ऐसा भी क्या डरना बस थोड़ी देर डर लगता है फिर मैं सो जाती हूँ, मैं आपको ख्वाब बताती हूँ, फिर आपको ये तस्वीरें दिखाऊंगी? दादा जी ने लिफाफा अकेले में खोलने की हिदायत की थी और ख्वाब बताने या यह तस्वीरें किसी को दिखाने की तो कोई हिदायत है नहीं उनकी ।"
फिर रेखा ने पूर्व विवरण के साथ अपना वह सपना मौसी के सामने दोहराया।
"अरे यह वही मनहूस उल्लू तो नहीं है, जो तुम्हें झोपड़ी की छत पर बैठा दिखाई देता है।" गंगा मौसी को ख्वाब सुनकर वह उल्लू फिर याद आ गया- "रेखा, तुम भी अजीब लड़की हो, तुम ख्वाब में कोई ढंग की चीज नहीं देख
सकर्ती...।"
"मौसी, ख्वाब अपनी मर्जी से कहां दिखाई देते हैं।" रेखा असहाय-सी बोली।
"अच्छा, लिफाफे में क्या है?"
"यह देखिए मेरे ख्वाव की तस्वीरें।" रेखा ने कागज निकालकर उनके सामने किया। उसने पहले वह तस्वीर दिखाई जिसमें झोपड़ी, उल्लू और सांप बना था।
"अरे, यह तो बिल्कुल तुम्हारा ख्वाब ही है।"
"अब जरा पलटकर देखिये तब आपको इस ख्वाब का हल नजर आएगा। इस पहेली का हल...।"
गंगा मौसी ने कागज पलटा और इस तरफ बनी तस्वीर देख वह एकाएक ही कांप-सी गई। उनके मुंह से बेअख्तयार
निकला- "नहीं।" और चेहरा पीला पड़ता चला गया। "क्या हुआ मौसी ?" रेखा ने पूछा "आपने इस दरवाजे को पहचाना?"
" पहचान ही तो लिया है। इसलिए ही तो ऐसी खौफजदा हो रही हूँ। "
"यह उसी कमरे का दरवाजा है ना जिसे आप हमेशा लाक रखती हैं?" रेखा ने तस्वीक चाही ।
"हां, वही है।" मौसी की जुबान में अभी भी कम्पन था ।
रेखा ने कुछ सोचते हुए पूछा- "मौसी, एक बात बताएं- क्या दादा हरि ओम जी कभी इस घर में आए हैं?"
" आज तक नहीं।" मौसी ने ठण्डी सांस भरकर कहा ।
"फिर यह कितनी हैरानी की बात है मौसी, कि उन्होंने न सिर्फ मेरे ख्याब को जान लिया बल्कि इस कमरे की ठीक-ठीक निशानदेही भी कर दी। वह अगर दरवाजे के हैण्डल पर ताबीज लटका हुआ न दिखाते तो शायद इस दरवाजे को पहचानना मुश्किल होता...।"
"सवाल यह है रेखा, कि तुम्हारे सपने से इस दरवाजे का क्या सम्बन्ध ?" मौसी ने सवाल किया।
"कोई सम्बन्ध तो जरूर है, मौसी, वरना दादा जी को उसकी तस्वीर बनाने की क्या जरूरत थी। "
"तुम उस बंद कमरे के बारे में कुछ जानती हो...?"
''मैं जब से इस घर में आई हूँ.... मैंने उसे हमेशा बन्द ही देखा है और दरवाजे पर काले कपड़े में लिपटा हुआ ताबीज़ जो हैण्डल में लटका आ है। आपने उस कमरे के बारे में यही बताया है कि उस कमरे में काठ कबाड़ पड़ा है और वह स्वाहा
एक तरह का स्टोर है। "
"नहीं रेखा! मैंने गलत कहा था। दरअसल मैं नहीं चाहती थी कि तुम उसकी हकीकत जानकर डर जाओ। लेकिन अब तुमसे कुछ छिपाना बेकार है। अब यह मामला खतरनाक हो गया नजर आ रहा है।"
" अगर वह स्टोर नहीं हैं उसमें कोई सामान नहीं है तो फिर उसमें क्या है?" रेखा ने पूछा।
. "कुछ नहीं है, बिल्कुल खाली है और बिल्कुल सादा...।"
रेखा अपनी जिज्ञासा दबा नहीं पाई, एकदम बोली- "मौसी, उसका ताला खोलें-मैं उसे अन्दर से देखना चाहती हूँ।"
"हाय नहीं, रेखा। ऐसी बात सोचना भी नहीं...?"
"क्या मतलब मौसी ! क्या हो जाएगा...?"
"यह तो मैं नहीं जानती कि क्या हो जाएगा। लेकिन इतना विश्वास जरूर है कि कुछ-न-कुछ जरूर हो जाएगा। हमें इस कमरे को खोलने से मना किया गया है।" मौसी की आवाज में फिर कम्पन भर आया था।
"किसने मना किया है मौसी?" रेखा ने पूछा।
"उस शख्स ने जिससे हमने यह मकान खरीदा था।" गंगा मौसी ने बताया 'बासूदेव नाम के उस शख्स ने इस मकान को बड़े शौक से बनवाया था, लेकिन उसे इसमें रहना नसीब नहीं हुआ। बड़ी अजीब है इस मकान की कहानी।"
"कैसी कहानी ? मुझे सुनाओ ना मौसी।" रेखा बेचैन हो उठी।
और गंगा मौसी ने कहानी सुनाई।
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Re: स्वाहा
इस मकान की कहानी सच ही में बड़ी अजीब थी।
..एक हजार गज में बना हुआ यह एक दो मंजिला मकान था। इस मकान के दांए बांए कोई दूसरा मकान नहीं था। दाई तरफ केवल महज चारदीवारी थी और बांए तरफ वाले प्लाट की सिर्फ नवि भरकर छोड़ दी गई थीं। हां पिछले वाले प्लाट पर मकान बना हुआ था और वह आबाद नहीं था। इस मकान के सामने साठ फुट चौड़ी सड़क थी और इस सड़क के उस तरफ तमाम मकान बने हुए थे।
• बंगलों व मकानों के निर्माण से पहले यहां झोपड़ियां पड़ी हुई थीं जहां भवन निर्माण में लग वे मजदूर परिवार आबाद थे जिनकी औरतें व मर्द दोनों मिलकर रोजी कमाते थे। तब कहीं जाकर शाम को उनके घरों में चूल्हे जलते थे। ये बराबर के तीनों प्लाट तीन भाईयों ने खरीदे थे। दो भाई बाहर थे और तीसरा जिसका घर परिवार यहीं था वह एक फर्नीचर की बड़ी दुकान का मालिक था। सबसे पहले उसने अपने प्लाट पर निर्माण शुरू कराया। उसने तीनों प्लाटों की बाऊंड्री वॉल बनवाई और एक चौकीदार रख दिया जो चौबीस घन्टे इन खाली प्लाटों पर रहता। चौकीदार का नाम अलीखान था।
एक रात जब अलीखान की अचानक आंख खुली तो उसने रात के सन्नाटे में घुंघरुओं की आवाज सुनी। कोई एक बजे का टाईम होगा। तेहरवीं का चांद निकला हुआ था। हर तरह चांदनी छिटकी हुई थी। अलीखान अपनी चारपाई से उठकर अपनी झोपड़ी के दरवाजे पर आया तो उसने सामने राक विचित्र अनूठा नजारा देखा।
वह कोई मलंग किस्म का बन्दा था जो अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए एक टांग से छ: फुट ऊंची दीवार पर नाच रहा था धुंधरुओं की आवाज गूंज रही थी। वह मलंग-सा शख्स दीवार पर पूरी रक्षता व बहुन ही खूबसूरत नाच रहा था। जैसे वह दीवार न होकर जमीन या फर्श पर हो।
हालांकि यह नजारा एक अच्छे-भले आदमी के होश उड़ा देने के लिए काफी था लेकिन अलीखान पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ। वो फौरन पलटकर अपनी झोपड़ी में आया। लालटेन की लौ को जरा तेज किया। चारपाई के सिरहाने रखी अपनी मोटी लाठी उठाई और बाहर आ गया।
बाहर आकर उसने टीन के कनस्तर में जीर-जीर से लाठी मारी। कनस्तर की आवाज से पूरा इलाका गूंज उठा। नाच करता बह मलंग देखते ही देखते दीवार पर से गायब हो गया।
उस मलंग को इस तरह नाच करते हुए अलीखान ने ही नहीं-झोपड़ियों में रहने वाले दूसरे मजदूरों ने भी देखा। उस मलंग का यूं नाचने का क्रम जारी रहा। ये लोग भी इस नाच के आदी हो गए कि अगर कोई शख्स दीवार पर नाचता है। तो नाचा करे... उनका क्या बिगड़ता है। अलीखान ने शुरु-शुरु में इस शख्स की परवाह की लाठी से कनस्तर बजाया, लेकिन जब उस मलंग ने रोज ही नाच दिखाना शुरु कर दिया तो अलीखान ने उस पर सौ बार लानत भेजी और पैर पसार कर आराम से सोने लगा।
जल्दी ही बीच वाले प्लाट पर निर्माण कार्य आरम्भ हो गया। लोगों ने देखा कि रातों-रात खाली जमीन पर एक शानदार मकान ने खड़ा होना शुरू कर दिया। दीवारें उठी फिर जल्दी ही मकान पर छत पड़ गई। छत पड़ते ही एक हादसा हुआ।
एक रात अलीखान अपनी चारपाई पर मुर्दा पाया गया।
और यह मालूम न हो सका कि यह कैसे मरा जाहिरा उसके शरीर पर किसी प्रकार के चिन्ह न थे, न ही उसकी हत्या. की गई थी। जिन लोगों ने उसकी लाश देखी थी, वे बताते हैं कि अलीखान अपनी चारपाई पर इस तरह लेटा हुआ था जैसे सो रहा हो। यह सम्भावना भी थी कि सोते में उसका हार्ट फेल हो गया हो ।
अलीखान के इस दुनिया से उठ जाने के बाद कोई चौकीदार ज्यादा समय तक इस मकान की निगरानी न कर सका। चौकीदार कुछ बताए बिना ही गायब हो जाता और सोचा यही जाता कि शायद की वजह से वे कुछ कहे सुने बिना ही वहां से रफू चक्कर हो जाते हैं।
फिर इस मकान का निर्माण कार्य रुक गया। मालिक मकान बाहर चला गया।
रात के वक्त यह अधूरा मकान बड़ा भयानक नजारा पेश करता। एक भयावह दृश्य। उस लंगड़े मलंग का नाच जारी था.
..एक हजार गज में बना हुआ यह एक दो मंजिला मकान था। इस मकान के दांए बांए कोई दूसरा मकान नहीं था। दाई तरफ केवल महज चारदीवारी थी और बांए तरफ वाले प्लाट की सिर्फ नवि भरकर छोड़ दी गई थीं। हां पिछले वाले प्लाट पर मकान बना हुआ था और वह आबाद नहीं था। इस मकान के सामने साठ फुट चौड़ी सड़क थी और इस सड़क के उस तरफ तमाम मकान बने हुए थे।
• बंगलों व मकानों के निर्माण से पहले यहां झोपड़ियां पड़ी हुई थीं जहां भवन निर्माण में लग वे मजदूर परिवार आबाद थे जिनकी औरतें व मर्द दोनों मिलकर रोजी कमाते थे। तब कहीं जाकर शाम को उनके घरों में चूल्हे जलते थे। ये बराबर के तीनों प्लाट तीन भाईयों ने खरीदे थे। दो भाई बाहर थे और तीसरा जिसका घर परिवार यहीं था वह एक फर्नीचर की बड़ी दुकान का मालिक था। सबसे पहले उसने अपने प्लाट पर निर्माण शुरू कराया। उसने तीनों प्लाटों की बाऊंड्री वॉल बनवाई और एक चौकीदार रख दिया जो चौबीस घन्टे इन खाली प्लाटों पर रहता। चौकीदार का नाम अलीखान था।
एक रात जब अलीखान की अचानक आंख खुली तो उसने रात के सन्नाटे में घुंघरुओं की आवाज सुनी। कोई एक बजे का टाईम होगा। तेहरवीं का चांद निकला हुआ था। हर तरह चांदनी छिटकी हुई थी। अलीखान अपनी चारपाई से उठकर अपनी झोपड़ी के दरवाजे पर आया तो उसने सामने राक विचित्र अनूठा नजारा देखा।
वह कोई मलंग किस्म का बन्दा था जो अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए एक टांग से छ: फुट ऊंची दीवार पर नाच रहा था धुंधरुओं की आवाज गूंज रही थी। वह मलंग-सा शख्स दीवार पर पूरी रक्षता व बहुन ही खूबसूरत नाच रहा था। जैसे वह दीवार न होकर जमीन या फर्श पर हो।
हालांकि यह नजारा एक अच्छे-भले आदमी के होश उड़ा देने के लिए काफी था लेकिन अलीखान पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ। वो फौरन पलटकर अपनी झोपड़ी में आया। लालटेन की लौ को जरा तेज किया। चारपाई के सिरहाने रखी अपनी मोटी लाठी उठाई और बाहर आ गया।
बाहर आकर उसने टीन के कनस्तर में जीर-जीर से लाठी मारी। कनस्तर की आवाज से पूरा इलाका गूंज उठा। नाच करता बह मलंग देखते ही देखते दीवार पर से गायब हो गया।
उस मलंग को इस तरह नाच करते हुए अलीखान ने ही नहीं-झोपड़ियों में रहने वाले दूसरे मजदूरों ने भी देखा। उस मलंग का यूं नाचने का क्रम जारी रहा। ये लोग भी इस नाच के आदी हो गए कि अगर कोई शख्स दीवार पर नाचता है। तो नाचा करे... उनका क्या बिगड़ता है। अलीखान ने शुरु-शुरु में इस शख्स की परवाह की लाठी से कनस्तर बजाया, लेकिन जब उस मलंग ने रोज ही नाच दिखाना शुरु कर दिया तो अलीखान ने उस पर सौ बार लानत भेजी और पैर पसार कर आराम से सोने लगा।
जल्दी ही बीच वाले प्लाट पर निर्माण कार्य आरम्भ हो गया। लोगों ने देखा कि रातों-रात खाली जमीन पर एक शानदार मकान ने खड़ा होना शुरू कर दिया। दीवारें उठी फिर जल्दी ही मकान पर छत पड़ गई। छत पड़ते ही एक हादसा हुआ।
एक रात अलीखान अपनी चारपाई पर मुर्दा पाया गया।
और यह मालूम न हो सका कि यह कैसे मरा जाहिरा उसके शरीर पर किसी प्रकार के चिन्ह न थे, न ही उसकी हत्या. की गई थी। जिन लोगों ने उसकी लाश देखी थी, वे बताते हैं कि अलीखान अपनी चारपाई पर इस तरह लेटा हुआ था जैसे सो रहा हो। यह सम्भावना भी थी कि सोते में उसका हार्ट फेल हो गया हो ।
अलीखान के इस दुनिया से उठ जाने के बाद कोई चौकीदार ज्यादा समय तक इस मकान की निगरानी न कर सका। चौकीदार कुछ बताए बिना ही गायब हो जाता और सोचा यही जाता कि शायद की वजह से वे कुछ कहे सुने बिना ही वहां से रफू चक्कर हो जाते हैं।
फिर इस मकान का निर्माण कार्य रुक गया। मालिक मकान बाहर चला गया।
रात के वक्त यह अधूरा मकान बड़ा भयानक नजारा पेश करता। एक भयावह दृश्य। उस लंगड़े मलंग का नाच जारी था.
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Re: स्वाहा
अब यह नाच उस निर्माणाधीन अधूरे मकान को छत पर होता । सड़क के उस पार झोपड़ियों में रहने वाले
राजस्थानी मजदूर प्राय: मलंग के इस नाच को देखा करते।
सात साल बाद फिर इस मकान का निर्माण शुरू हुआ। दो तीन माह काम हुआ। उसके वाद फिर बंद हो गया। काम बंद होने की वजह भी बड़ी माकूल थी। एक दिन मालिक मकान अपने बीवी बच्चों को बंगले का निर्माण दिखाने लाया। बीवी और उसके बच्चों नं अच्छी तरह मकान को देखा। ये लोग छत पर भी गए।
. कोई आधे फटे के बाद वीवी बच्चे घर जाने के लिए गाड़ी में बैठने लगे तो पता लगा कि चार वर्षीय लड़का अमित
गायब है। मां-बाप ने पहले तो उसे आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब न मिला, घबराये से मां-बाप निर्माणाधीन बंगले के अन्दर भागे। मकान के हर हिस्से, हर कोने में उसे तलाश किया मगर अमित कहीं नहीं मिला। अचानक ख्याल आया कि वाटर टैंक में भी देख लिया जाए। बस देखना ही गजब हो गया। मां टैंक में झांकते ही चीख मारकर बेहोश हो गई। चार वर्षीय अमित टैंक में तैर रहा था। उसे जल्दी से निकलाकर बेहोश मां सहित फौरन
अस्पताल में पहुंचाया गया। लेकिन वह तो कभी का मर चुका था।
बंगले का निर्माण फिर रुक गया। निर्माण सामग्री पड़ी थीं लेकिन वहां कोई चौकीदार दो-तीन दिनों से ज्यादा टिकता ही नहीं था। अब यह वात सावित हो गई थी कि इस भवन पर कोई ऊपरी साया है। स्यानों व टोने-टोटके करने वालों की तलाश आरम्भ हो गई। कितने ही स्थानों को मौका-ए-वारदात पर लाया गया लेकिन कोई भी ऐसा पक्का अमल न कर सका जिससे मकान पर से बुरा प्रभाव दूर हो जाए।
तांत्रिक व आमल की तलाश जारी रही। फिर किसी ने एक 'आमिल' का पता बताया। लेकिन वो पेशेवर आमल न थे सरकार थे रूहानी अलमों में माहिर थे। जरूरतमन्दों की मदद करते थे। तावीज गण्डे देते थे लेकिन वो यह सब काम जनहित के लिये करते थे। बदले में दुआओं के इच्छुक रहते थे रुपये-पैसे के नहीं।
मकान मलिक की परेशानी देखकर उन्होंने इस मकान का 'साया' दूर करने की हामी भर ली। दोपहर को जब बेहद
तेज सख्त धूप थी वो आमिल जिसका नाम रोशन अली था मकान मालिक के साथ इस निर्माणाधीन बंगले पर
आए पूरे बंगले का एक चक्कर लगाया। उसके बाद एक कमरे में आकर खड़े हो गए। मकान मालिक का इशारा
किया कि वो बाहर गाड़ी में जाकर बैठे।
और फिर लगभग आधे घन्टे बाद रोशन अली बंगले से बाहर आए। पसीने से नहाये हुए उन्होंने इशारे से मकान मालिक को अपने साथ आने को कहा। और फिर रोशन अली फिर उसी कमरे में जा खड़े हुए, जहां पहले रुके थे। इम कमरे में अभी चौखट दरवाजे नहीं लगे थे।
"इस कमरे को गौर से देख लें। " रोशन अली ने मकान मालिक से कहा ।
"मैं समझा नहीं।" मकान मालिक ने परेशान होकर पूछा।
"आप चाहते हैं कि इस बंगले की तमीर (निर्माण) मुकम्मल हो जाए?" रोशन अली ने पूछा। "जी! इसीलिए तो मैं आपको यहां लेकर आया हूँ...।"
"फिर एक काम करना होगा।"
" हुक्म दीजिए! मैं हर काम करने के लिए तैयार हूँ...।"
"इस कमरे में कोई खिड़की नहीं होगी...।" पहली हिदायत मिली।
"ठीक है। मैं यह खिड़कियां बन्द करवा दूंगा।" मकान मालिक ने हामी भरी।
"इस कमरे में मैं जो रंग बताऊंगा वही होगा ।" दूसरी हिदायत हुई।
"जी जरूर होगा।"
"जब यह कमरा और पूरा बंगला तैयार हो जाएगा तो एक रात में इस कमरे में गुजारुगा। सुबह दिन निकलते ही मैं बाहर आऊंगा और इस कमरे को लॉक कर दूंगा। इसके हैण्डल में एक ताबीज लटका दूंगा और यूं यह कमरा हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।" रोशन अली ने स्थिति स्पष्ट की थी।
राजस्थानी मजदूर प्राय: मलंग के इस नाच को देखा करते।
सात साल बाद फिर इस मकान का निर्माण शुरू हुआ। दो तीन माह काम हुआ। उसके वाद फिर बंद हो गया। काम बंद होने की वजह भी बड़ी माकूल थी। एक दिन मालिक मकान अपने बीवी बच्चों को बंगले का निर्माण दिखाने लाया। बीवी और उसके बच्चों नं अच्छी तरह मकान को देखा। ये लोग छत पर भी गए।
. कोई आधे फटे के बाद वीवी बच्चे घर जाने के लिए गाड़ी में बैठने लगे तो पता लगा कि चार वर्षीय लड़का अमित
गायब है। मां-बाप ने पहले तो उसे आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब न मिला, घबराये से मां-बाप निर्माणाधीन बंगले के अन्दर भागे। मकान के हर हिस्से, हर कोने में उसे तलाश किया मगर अमित कहीं नहीं मिला। अचानक ख्याल आया कि वाटर टैंक में भी देख लिया जाए। बस देखना ही गजब हो गया। मां टैंक में झांकते ही चीख मारकर बेहोश हो गई। चार वर्षीय अमित टैंक में तैर रहा था। उसे जल्दी से निकलाकर बेहोश मां सहित फौरन
अस्पताल में पहुंचाया गया। लेकिन वह तो कभी का मर चुका था।
बंगले का निर्माण फिर रुक गया। निर्माण सामग्री पड़ी थीं लेकिन वहां कोई चौकीदार दो-तीन दिनों से ज्यादा टिकता ही नहीं था। अब यह वात सावित हो गई थी कि इस भवन पर कोई ऊपरी साया है। स्यानों व टोने-टोटके करने वालों की तलाश आरम्भ हो गई। कितने ही स्थानों को मौका-ए-वारदात पर लाया गया लेकिन कोई भी ऐसा पक्का अमल न कर सका जिससे मकान पर से बुरा प्रभाव दूर हो जाए।
तांत्रिक व आमल की तलाश जारी रही। फिर किसी ने एक 'आमिल' का पता बताया। लेकिन वो पेशेवर आमल न थे सरकार थे रूहानी अलमों में माहिर थे। जरूरतमन्दों की मदद करते थे। तावीज गण्डे देते थे लेकिन वो यह सब काम जनहित के लिये करते थे। बदले में दुआओं के इच्छुक रहते थे रुपये-पैसे के नहीं।
मकान मलिक की परेशानी देखकर उन्होंने इस मकान का 'साया' दूर करने की हामी भर ली। दोपहर को जब बेहद
तेज सख्त धूप थी वो आमिल जिसका नाम रोशन अली था मकान मालिक के साथ इस निर्माणाधीन बंगले पर
आए पूरे बंगले का एक चक्कर लगाया। उसके बाद एक कमरे में आकर खड़े हो गए। मकान मालिक का इशारा
किया कि वो बाहर गाड़ी में जाकर बैठे।
और फिर लगभग आधे घन्टे बाद रोशन अली बंगले से बाहर आए। पसीने से नहाये हुए उन्होंने इशारे से मकान मालिक को अपने साथ आने को कहा। और फिर रोशन अली फिर उसी कमरे में जा खड़े हुए, जहां पहले रुके थे। इम कमरे में अभी चौखट दरवाजे नहीं लगे थे।
"इस कमरे को गौर से देख लें। " रोशन अली ने मकान मालिक से कहा ।
"मैं समझा नहीं।" मकान मालिक ने परेशान होकर पूछा।
"आप चाहते हैं कि इस बंगले की तमीर (निर्माण) मुकम्मल हो जाए?" रोशन अली ने पूछा। "जी! इसीलिए तो मैं आपको यहां लेकर आया हूँ...।"
"फिर एक काम करना होगा।"
" हुक्म दीजिए! मैं हर काम करने के लिए तैयार हूँ...।"
"इस कमरे में कोई खिड़की नहीं होगी...।" पहली हिदायत मिली।
"ठीक है। मैं यह खिड़कियां बन्द करवा दूंगा।" मकान मालिक ने हामी भरी।
"इस कमरे में मैं जो रंग बताऊंगा वही होगा ।" दूसरी हिदायत हुई।
"जी जरूर होगा।"
"जब यह कमरा और पूरा बंगला तैयार हो जाएगा तो एक रात में इस कमरे में गुजारुगा। सुबह दिन निकलते ही मैं बाहर आऊंगा और इस कमरे को लॉक कर दूंगा। इसके हैण्डल में एक ताबीज लटका दूंगा और यूं यह कमरा हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।" रोशन अली ने स्थिति स्पष्ट की थी।
- SATISH
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Re: स्वाहा
"हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।" मकान मालिक हैरान रह गया।
"जी हां-हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।" दृढ़ निर्णायक स्वर में कहा गया। "अजीब बात है, मकान मालिक ने टिप्पणी की, फिर दबे स्वर में पूछा। फिर.... होगा?" फिर उसके बाद तो यहां कुछ नहीं
"कुछ नहीं होगा! हमेशा के लिए शान्ति हो जाएगी।" रोशन अली ने यकीन दिलाया।
" रौशन अली साहब! यह सब है क्या?"
"जो कुछ भी है आपके सामने हैं इतने अर्से से भुगत रहे हैं फिर भी पूछ रहे है?"
"मेरी तो अक्ल दंग है।"
" मियां साहबजादे ... रोशन अली अपनत्वपूर्ण लहजे में और समझाने वाले अंदाज में बोले।" यह दुनिया एक अजायबघर है। जो मैं देखता हूँ-अगर वह तुम देख लो तो पगलाये पगलाये फिरो । आओ, अब यहां से चलें।
रोशन अली ने कुछ न कहा और कह भी गए। वह कुछ कहते-कहते रुक गये थे।
बहरहाल, मकान मालिक वासूदेव ने हौसला किया और निर्माण कार्य फिर शुरू हो गया। दुगनी लेबर लगाई गई और बहुत तेजी से निर्माण कार्य पूरा हुआ। फिर रंग-रोगन शुरु करा दिया। वासूदेव ने उस प्रेत-ग्रस्त कमरे में कोई खिड़की नहीं रखी थी। अब रोशन अली से पूछकर उनकी हिदायत के मुताविक ही इस कमरे में रंग करवाना था। वासुदेव ने रोशन अली से बात की तो रोशन अली ने उसे शाम को अपने घर बुलाया।
वासूदेव उनके घर पहुंचा तो उन्होंने एक छोटी-सी शीशी में काले रंग का कोई घोल दिया और हिदायत दी-
"उस पूरे कमरे में काला रंग करवाना है यहां तक कि छत पर भी काला रंग होगा। इस शीशी का पानी रंग में मिलवा देना। यह मंत्र पढ़ा हुआ पानी है। एक बात का और आल रखना पेस्ट का काम एक दिन में और सूरज डूबने से पहले हर सूरत में खत्म हो जाना चाहिये। रंग होने के बाद दरवाजा बन्द करके लॉक कर देना। उसके बाद कोई भी प्राणी इस कमरे में नहीं जाएगा तुम भी नहीं। जब मकान हर तरह से पूरा हो जाये तो मुझे इत्तला देना। मैं रात को वहीं रहूँगा । समझ गए मेरी बात ?"
“जी बिल्कुल....।" वासूदेव ने कहा और फिर शकित भाव से ही शीशी के पानी को देखते हुए पूछा-
"इसमें क्या है?"
"यह उल्लू के कलेजे का पानी है।" रोशन अली ने लापरवाही से कहा- "इसके अलावा इसमें एक चीज और भी मिलाई गई है। "
"वह क्या...?"
"वह नहीं बताया जा सकता...।" रोशन अली ने कौरा जवाब दिया।
"जैसी आपकी मर्जी । "
बहरहाल, फिर वासूदेव ने रोशन अली के निर्देशानुसार अपनी निगरानी में सारे काम करवा दिए। फिर वह वक्त भी आया, जब मकान पूर्णत: तैयार था। बासुदेव ने उस आमिल रोशन अली को बंगले पर आन का निमन्त्रण दिया।
रोशन अली पहुंचे और रात ठीक बारह बजे उस कमरे में दाखिल हुए। रात भर भीतर ही रहे और सुबह पी फूटते ही. कमरे से बाहर आ गए। अन्दर कमरे में उन्होंने क्या किया वह रात उन्होंने किस तरह गुजारी, इस बारे में उन्होंने नहीं बताया। उन्होंने दरवाजा बंद किया उसे ताला लगाया और अपनी जेब से एक काले रंग का ताबीज निकालकर दरवाजे के हैण्डल पर लटका दिया और मकान मालिक बासूदेव को अपने साथ आने का इशारा किया।
"जी हां-हमेशा के लिए बंद हो जाएगा।" दृढ़ निर्णायक स्वर में कहा गया। "अजीब बात है, मकान मालिक ने टिप्पणी की, फिर दबे स्वर में पूछा। फिर.... होगा?" फिर उसके बाद तो यहां कुछ नहीं
"कुछ नहीं होगा! हमेशा के लिए शान्ति हो जाएगी।" रोशन अली ने यकीन दिलाया।
" रौशन अली साहब! यह सब है क्या?"
"जो कुछ भी है आपके सामने हैं इतने अर्से से भुगत रहे हैं फिर भी पूछ रहे है?"
"मेरी तो अक्ल दंग है।"
" मियां साहबजादे ... रोशन अली अपनत्वपूर्ण लहजे में और समझाने वाले अंदाज में बोले।" यह दुनिया एक अजायबघर है। जो मैं देखता हूँ-अगर वह तुम देख लो तो पगलाये पगलाये फिरो । आओ, अब यहां से चलें।
रोशन अली ने कुछ न कहा और कह भी गए। वह कुछ कहते-कहते रुक गये थे।
बहरहाल, मकान मालिक वासूदेव ने हौसला किया और निर्माण कार्य फिर शुरू हो गया। दुगनी लेबर लगाई गई और बहुत तेजी से निर्माण कार्य पूरा हुआ। फिर रंग-रोगन शुरु करा दिया। वासूदेव ने उस प्रेत-ग्रस्त कमरे में कोई खिड़की नहीं रखी थी। अब रोशन अली से पूछकर उनकी हिदायत के मुताविक ही इस कमरे में रंग करवाना था। वासुदेव ने रोशन अली से बात की तो रोशन अली ने उसे शाम को अपने घर बुलाया।
वासूदेव उनके घर पहुंचा तो उन्होंने एक छोटी-सी शीशी में काले रंग का कोई घोल दिया और हिदायत दी-
"उस पूरे कमरे में काला रंग करवाना है यहां तक कि छत पर भी काला रंग होगा। इस शीशी का पानी रंग में मिलवा देना। यह मंत्र पढ़ा हुआ पानी है। एक बात का और आल रखना पेस्ट का काम एक दिन में और सूरज डूबने से पहले हर सूरत में खत्म हो जाना चाहिये। रंग होने के बाद दरवाजा बन्द करके लॉक कर देना। उसके बाद कोई भी प्राणी इस कमरे में नहीं जाएगा तुम भी नहीं। जब मकान हर तरह से पूरा हो जाये तो मुझे इत्तला देना। मैं रात को वहीं रहूँगा । समझ गए मेरी बात ?"
“जी बिल्कुल....।" वासूदेव ने कहा और फिर शकित भाव से ही शीशी के पानी को देखते हुए पूछा-
"इसमें क्या है?"
"यह उल्लू के कलेजे का पानी है।" रोशन अली ने लापरवाही से कहा- "इसके अलावा इसमें एक चीज और भी मिलाई गई है। "
"वह क्या...?"
"वह नहीं बताया जा सकता...।" रोशन अली ने कौरा जवाब दिया।
"जैसी आपकी मर्जी । "
बहरहाल, फिर वासूदेव ने रोशन अली के निर्देशानुसार अपनी निगरानी में सारे काम करवा दिए। फिर वह वक्त भी आया, जब मकान पूर्णत: तैयार था। बासुदेव ने उस आमिल रोशन अली को बंगले पर आन का निमन्त्रण दिया।
रोशन अली पहुंचे और रात ठीक बारह बजे उस कमरे में दाखिल हुए। रात भर भीतर ही रहे और सुबह पी फूटते ही. कमरे से बाहर आ गए। अन्दर कमरे में उन्होंने क्या किया वह रात उन्होंने किस तरह गुजारी, इस बारे में उन्होंने नहीं बताया। उन्होंने दरवाजा बंद किया उसे ताला लगाया और अपनी जेब से एक काले रंग का ताबीज निकालकर दरवाजे के हैण्डल पर लटका दिया और मकान मालिक बासूदेव को अपने साथ आने का इशारा किया।