ये कैसा संजोग माँ बेटे का complete

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Rohit Kapoor
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Re: ये कैसा संजोग माँ बेटे का

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ये अपने आप में बहुत रोमांचकारी था. कॉरिडोर में किसी द्वारा देखे जाने से बचने के लिए उसे मेरी ओर झुकना था. ऐसा करते वक़्त उसे ना चाहते हुए भी अपना जिस्म मेरे जिस्म पर धीरे से दबाना पड़ा. मैं उसे अपनी बाहों में लेना चाहता था मगर मैं ऐसा कर ना सका. मैं उससे उस तरह आलिंगंबद्ध नही हो सकता था. उसने अपना जिस्म उपर को उठाया ताकि उसके होंठ मेरे होंठो तक पहुँच सके, जिससे असावधानी में उसने अपने मम्मे मेरी छाती पर रगडे और फिर मुझे एक चुंबन दिया.


वो एक नाम चुंबन था. हम दोनो ने अपने होंठ गीले किए हुए थे बिना इस बात की परवाह किए के दूसरा इस पर एतराज जाता सकता है. चुंबन में थोड़ा सा दबाब भी था. हमारी दिनचर्या अब एक सादे शुभरात्रि चुंबन की जगह एक आलिंगंबद्ध शुभरात्रि चुंबन में बदल चुकी थी. हमारा चुंबन अब सूखे होंठो का नाममात्र का स्पर्श ना रहकर अब नम लबों का मिलन था जिसमे होंठो का होंठो पर हल्का सा दबाब भी होता था. उसके मम्मे मेरी छाती पर बहुत सुंदर सा एहसास छोड़ गये थे और पकड़े जाने की संभावना का रोमांच अलग से था. हम कुछ ऐसा कर रहे थे जो हमे नही करना चाहिए था और वैसा करते हम आराम से पकड़े भी जा सकते थे. यह बहुत ही रोमांचपुराण था, एक से बढ़कर कयि मायनों में. यह बात कि वो पकड़े जाने से बचने की कोशिश कर रही थी, उसके इस षडयंत्र में शामिल होने की खुलेआम गवाही दे रही थी. यह एक तरफ़ा नही था.


यह बात कि वो मुझसे चिप कर गोपनीयता से चूमना और आलिंगन करना चाहती थी, यह साबित करती थी कि उसकी समझ अनुसार हमारा वैसा करना शरमनाक था. और इस बात के बावजूद, कि हमारा वो वार्ताव उसकी नज़र में शरमनाक था, वो फिर भी मुझे चूमना चाहती थी, मुझे आलिंगन करना चाहती थी, साबित करता था कि वो कुछ ऐसा कर रही थी जो उसे नही करना चाहिए था मतलब वो कुछ ऐसा ऐसा कर रही थी जो एक माँ होने के नाते उसे नही करना चाहिए था मगर वो, वो सब करने की दिली ख्वाइशमंद थी.


मैं कामोत्तेजित था! मेरे अंदाज़े से वो भी पूरी कामोत्तेजित थी. मुझे उसके बदन का मेरे बदन से स्पर्श बहुत आनंदमयी लग रहा था. मगर, यहीं हमारे लिए एक बहुत बड़ी समस्या थी, वो हमारी हद थी, हम उसके आगे नही बढ़ सकते थे. मैं आगे बढ़कर उसके जिस्म को अपनी हसरत अनुसार छू नही सकता था. वो अपनी हसरत मुझ पर जाहिर नही कर सकती थी. हालाँकि सभी संकेत एक खास दिशा में इशारा कर रहे थे, मगर हमे ऐसे दिखावा करना था कि वो दिशा है ही नही.


वो वहाँ मेरे सामने क्षण भर के लिए रुकी थी, जैसे कुछ सोच रही थी. फिर उसने मेरे हाथ अपने हाथों में लिए और उन्हे धीरे से दबाया और फिर वो वहाँ से चली गयी. मैं वहाँ खड़ा रहा और उसे कॉरिडोर के कोने से अपने रूम की तरफ मुड़ते देखता रहा. मैने उसकी भावनाओं की प्रबलता महसूस की थी. मुझे बुरा लग रहा था कि मैं उसे अपने भावावेश की परचंडता नही दिखा सका. मैं उससे कहीं ज़्यादा खुद पर काबू किए हुए था.

हमारे बीच कोई चक्कर चल रहा है, बिना शक फिर से यह बात उभर कर सामने आ गयी थी. उसका मेरे हाथो को थामना और उन्हे दबाना बहुत ही कामुक था. मैं कामना कर रहा था कि काश मैने उसे आज किसी अलग प्रकार से चूमा होता. मगर अब तो वो जा चुकी थी, सो मेरी कामना कामना ही रही. मैं बहुत ही उत्तेजित था. मैने खुद से वायदा किया कि अगली बार मैं सब कुछ बेहतर तरीके से करने की कोशिश करूँगा.


अगली रात, मैं टीवी देखने ड्रॉयिंग रूम में नही गया. मैं देखना चाहता था कि वो मुझे देखने आती है जा नही. मैं देखना चाहता था कि क्या वो हमारे बीच किसी और जिस्मानी संपर्क के लिए आती है जैसे वो उस रात आई थी. मैने दरवाजा थोड़ा सा खुला छोड़ दिया, एक संकेत के तौर पर कि मैं उसके आने की उम्मीद कर रहा हूँ.


मैने ड्रॉयिंग रूम से टीवी की आवाज़ सुनी और बहुत निराश हुआ, बल्कि बहुत हताश भी हो गया. हो सकता है वो मेरे वहाँ आने की उम्मीद लगाए बैठी हो. मगर मैं उसका मेरे कमरे में आने का इंतजार कर रहा था. मुझे ऐसी हसरत करने के लिए बहुत बुरा महसूस हुआ, मगर वो हसरत पूरी ना होने पर और भी बुरा महसूस हुआ. ऐसा नही हो सकता था. अभी रात होने की शुरुआत हुई थी, इतनी जल्दी उसका मेरे कमरे में आना और वो सब होना जिसकी मैं आस लगाए बैठा था बहुत मुश्किल था.


मुझे बहुत जल्द एहसास हो गया कि मैं बहुत ज़्यादा उम्मीदे लगाए बैठा हूँ. यह इतना भी आसान नही था. वो सिर्फ़ एक औरत नही थी जिसके साथ मैं इतनी ज़िद्द पकड़े बैठा था, वो मेरी माँ थी. वो सीधे सीधे वो सब नही कर सकती थी, वो उन आम तरीकों से मुझसे पेश नही आ सकती थी, एक माँ होने के नाते मेरे साथ उसका व्यवहार वो आमतौर पर वाला नही हो सकता था जो मेरे और किसी पार्री नारी के बीच संभव होता. उसने खुद को थोड़ी ढील ज़रूर दी थी मगर वो किसी भी सूरत मैं इसके आगे नही बढ़ सकती थी.


मुझे शांत होने मैं थोड़ा वक़्त लगा, मगर जब मैं एक बार शांत हो गया तो मैं ड्रॉयिंग रूम में चला गया.


“तुम ठीक तो हो ना” उसने चिंतत स्वर में पूछा.

वो मेरी और जिग्यासापूर्वक देख रही थी, मेरा चेहरा मेरे हाव भाव पढ़ने की कोशिश कर रही थी. मगर अब मैं अपने जज़्बातों पर काबू पा चुका था, और अब सब सही था, अब सब सामने था, जैसे होना चाहिए था.

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यह पानी की तरह सॉफ था कि मैं अपनी माँ को पाना चाहता था, उसे पाने के लिए तड़प रहा था. यह भी सॉफ था कि मैं एक ख़तरनाक खेल खेल रहा था. जिस चीज़ को मैं हासिल करने पर तुला हुआ था वो मेरी हो ही नही सकती थी. वो किसी भी कीमत पर मेरी नही हो सकती थी. और इस से भी दिलचस्प बात यह थी कि मैं चाहता था कि माँ भी मुझे उसी तरह चाहे जिस तरह मैं उसे चाहता था! मैं चाहता था उसके अंदर भी मेरे लिए वैसे ही जज़्बात हों जैसे उसके लिए मेरे अंदर थे जो शायद उसके अंदर नही थे. असलियत में वो जज़्बात उसके अंदर थे, मुझे पूरा यकीन था वो थे मगर वो उन्हे जाहिर नही कर सकती थी. यह हमारी दूबिधा थी, कशमकश थी. हमारे अंदर एक दूसरे के लिए जज़्बात थे मगर हम उन्हे एक दूसरे पर जाहिर नही कर सकते थे.


मैं जानना चाहता था कि उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था. मैं जानना चाहता था कि वो क्या सोच रही है. मुझे पूरा आभास था मगर अंततः यह सारी अटकलबाज़ी थी. मैं सब कुछ पूरी तरह सॉफ सॉफ जानना चाहता था. उससे जानने का कोई रास्ता नही था, इस लिए हम दोनो चुपचाप टीवी देखने लगे, हमेशा की तरह. मुझे जिग्यासा हो रही थी कि शायद वो मुझसे किसी इशारे या संकेत की उम्मीद कर रही होगी. मगर फिर यह भी एक अंदाज़ा ही था, कुछ भी स्पष्ट नही था.


मैं इस बार भी उसके साथ ही ड्रॉयिंग रूम से निकला. हम मेरे रूम के आगे खड़े थे और इस बार मैं मेरे कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ा ताकि उसे पिछली बार की तरह मुझे धकेलना ना पड़े. जब वो मेरी ओर बढ़ी और मेरे नज़दीक आई तो मेरा बदन तनाव से कसने लगा.मैं नही जानता था मैं क्या चाहता हूँ क्योंकि मुझे मालूम नही था मैं क्या पा सकता हूँ. मगर एक बात मैं पूरे विश्वास से जानता था कि मैं पहले की तुलना में ज़्यादा पाना चाहता था. मैं बुरी तरह से उत्तेजित था और मेरा लंड पत्थर के समान कठोर हो चुका था.


मैने ध्यान दिया वो आज वोही वाला पर्फ्यूम लगाए हुए है जिसकी मैने उस दिन हमारे कमरे में तारीफ की थी. आज मैं इसे अच्छे से सूंघ सकता था क्योंकि वो उस रात के मुक़ाबले आज बिल्कुल मेरे पास खड़ी थी और वो महक मेरे अंदर कमौन्माद की जल रही ज्वाला को हवा देकर और भड़का रही थी.


“माँ तुम्हारे बदन से कितनी प्यारी सुगंध आ रही है” मैं धीरे से फुसफसाया और अपने होंठ अच्छे से गीले कर लिए. होंठ गीले करना अब हमारे लिए आम बात थी, या मैं कह सकता हूँ कि हम उससे काफ़ी आगे बढ़ चुके थे. होंठो की नमी सुभरात्रि के चुंबन को और भी बेहतर बना देती थी, और क्योंकि इस पर अब तक माँ ने कोई एतराज़ नही जताया था, इसलिए मैने इसे हमारी दिनचर्या का अनिवार्या हिस्सा बना लिया था. मैने हमारे आलिंगन को और भी आत्मीय बनाने का फ़ैसला कर लिया था. यह माँ थी जिसने आलिंगन की सुरुआत की थी इसलिए मुझे लगा कि उसे थोड़ा सा और ठोस बनाने में कोई हर्ज नही है.


उसे अपनी बाहों मे लेते ही उसके मम्मे मेरी छाती से सट गये और मेरे पूरे जिस्म में सनसननाट दौड़ गयी. मुझे डर था वो पीछे हट जाएगी मगर वो नही हटी. मुझे एहसास हुआ कि उसके होंठ भी पूरे नम थे इसलिए मेरा उपर वाला होंठ उसके होंठो में फिसल गया और उसका निचला होंठ मेरे होंठो में फिसल गया. मैने उसे अपनी बाहों में थामे हुए उसके होंठो पर हल्का सा दबाब बढ़ाया. उसके बदन ने एक हल्का सा झटका खाया मगर उसने मुझे हटाया नही और खुद भी पीछे नही हटी. जब उसके बदन ने झटका खाया और उसका जिस्म थोड़ा सा हिला डुला तो मैने भी उसके हिलने डुलने के हिसाब से खुद को व्यवस्थित किया. जब हम फिर से स्थिर हुए तो मैने पाया मेरा लंड उसके जिस्म में चुभ रहा था.

हम जल्द ही जुदा हो गये और वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. मैं नही जानता था कि मेरा खड़ा लंड उसके जिस्म के किस हिस्से पे चुभा था मगर मैं इतना ज़रूर जानता था कि हमारे जिस्मो के बीच उस खास संपर्क को हम दोनो ने बखूबी महसूस किया था. उस चुभन को महसूस करने के बाद उसके मन मे कोई शक बाकी ना रहा होगा कि मैं उत्तेजित था, कि मैं उसकी वजह से उत्तेजित था, कि मैं उसके द्वारा लगाई कमौन्माद की आग में जल रहा था.


मैने अपने जज़्बात उस पर जानबूझकर जाहिर नही किए थे, यह बस अपने आप हो गया था. यह एक संयोग था. मगर मेरा लंड बहुत कठोर था, बहुत ज़्यादा कठोर और उसका इस ओर ध्यान जाना लाज़िम था.


उसके जाने के बाद मैं समझ नही पा रहा था कि मुझे किस तरह महसूस करना चाहिए. क्या मुझे इस बात से डरना चाहिए कि वो हमेशा हमेशा के लिए हमारे बीच दीवार खड़ी कर देगी और हमारे उस देर रातों के साथ का अंत हो जाएगा? क्या मुझे निराश होना चाहिए था कि मेरे आकड़े लंड को महसूस करने के बाद भी उसने कोई प्रतिकिरिया नही दी थी? या मुझे खुश होना चाहिए कि मेरे जज़्बात उसके सामने उजागर हो गये थे चाहे वो एक संयोग ही था.


अगर मैं कुछ कर सकता था तो वो था आने वाले अगले दिन का इंतेज़ार. मगर अगली रात वो मेरे साथ टीवी देखने के लिए ड्रॉयिंग रूम में नही आई.

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मैं उसका इंतेज़ार पे इंतेज़ार करता रहा, वो अब आई कि अब आई, मगर वो नही आई. मैं उसे देखने उसके कमरे में नही जा सकता था क्योंकि वहाँ मेरे पिताजी सोए हुए थे. मुझे लगा उसने फ़ैसला कर लिया था कि अब हमारे उस आनंदमयी, कमौन्माद से लबरेज ख्वाब का अंत करने का समय आ गया है, बल्कि मेरे उस सुंदर, कामुक ख्वाब का अंत करने का समय आ गया है. सभी संकेत सॉफ सॉफ बता रहे थे कि हमारे बीच क्या चल रहा था, मगर जब मेरे लंड की चुबन उसे महसूस हुई होगी तो उसे खुद ब खुद एहसास हुआ होगा कि मेरी तमन्ना क्या थी, मेरी अभिलाषा क्या थी और मैं किस चीज़ की कामना कर रहा था और यह एहसास होते ही उसने सब कुछ बंद कर देने का फ़ैसला किया था. मैं बहुत उदास हो गया और मुझे बहुत हताशा भी हुई. मैने जानबूझकर अपना लंड उसके बदन पर नही दबाया था, वो असावधानी में हो गया था मगर अब मुझे इसकी कीमत तो चुकानी ही थी.


दूसरी रात को माँ टीवी देखने आई ज़रूर मगर वो ज़्यादा देर वहाँ ना रुकी. मुझे मौका ना मिला कि मैं उससे पूछ सकता कि वो पिछली रात क्यों नही आई, या कि सब कुछ ठीक था, या फिर क्या मैने कुछ ग़लत किया था? वो इत्तेफ़ाक़न हो गया था मगर अब उसे ज़रूर हमारे उस खेल की भयावहता का एहसास हो गया होगा. जब वो गयी तो उसने मुझे चूमा नही था. उसने सिर्फ़ जुवानी 'गुडनाइट' कहा था.


वो मुझे बहुत स्पष्टता से इस बात के संकेत दे रही थी कि हमारे बीच वो सब कुछ ख़तम हो चुका था जिसकी हम ने शुरुआत की थी. उसने ज़रूर महसूस किया होगा कि हम हद से आगे बढ़ते जा रहे थे और इसलिए उसे इस ख़तम कर देना चाहिए था इससे पहले कि बात हाथ से निकल जाती जिसकी योजना मैं पहले ही बना चुका था. उसका दृष्टिकोण बिल्कुल सही था इसीलिए उसने सब कुछ वहीं का वहीं ख़तम कर देना उचित समझा था.


मैं बहुत ब्याकुल था, बहुत अशांत था. मुझे एक गेहन उदासी की अनुभूति हो रही थी जो हमारे आसपास और हमारे बीच छाई हुई थी. ऐसा लगता था जैसे हमारे बीच कोई रिश्ता बनने से पहले ही टूट गया था. जो कुछ हुआ था उसकी हम आपस में चर्चा तक नही कर सकते थे क्योंकि वास्तव में कुछ हुआ ही नही था.


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हमारे बीच जो कुछ था उसके खो जाने के बाद मुझे उसकी बहुत याद आ रही थी. मगर वो जो कुछ भी कर रही थी मैने उसे कबूल कर लिया था. मुझे एहसास हो गया था वो खुद किन हालातों से गुज़र रही है. अगर मैं अपनी प्रतिक्रिया को देखता और मेरी तकलीफ़ जैसे अपनी माँ की तकलीफ़ को भी समझता तो मुझे उसके लिए भी बहुत दुख महसूस हो रहा था.


अब ना तो वो नाम शुभरात्रि चुंबन थे और ना ही वो सुखद एहसास करने वाले आलिंगन. उस रात के बाद भी आने वाली रातों को वो मेरे साथ टीवी देखने को आती मगर अच्छी रात गुज़रने की उसकी शुभकामना हमेशा जुवानी होती.


जब अगली बार मेरे पिताजी शहर से बाहर गये, तो मुझे नही मालूम था अगर हम पहले की ही भाँति कोई फिल्म देखेंगे और देर रात तक इकट्ठे समय ब्यतीत करेंगे. मुझे उम्मीद थी कि हम पहले की ही तरह समय बिताएँगे मगर मैने खुद को बदले हालातों के अनुसार छोटे से रात्रि मिलन के साथ के लिए तैयार रखा.


वाकाई में हमारे पिताजी के जाने के बाद उस रात हमारा साथ थोड़े समय के लिए ही था मगर ये मेन था जिसने हमारे उस रात्रि के साथ को छोटा कर दिया था. मैने वहाँ से जल्दी उठने और अपने कमरे में जाने का फ़ैसला कर लिया. मैं हमारे बीच की उस दूरी को बर्दाश्त नही कर सकता था और वैसे भी फिल्म देखने का मेरा बिल्कुल भी मन नही था क्योंकि पहले जैसा कुछ भी नही था या कम से कम जैसा मैं चाहता था वैसा कुछ भी नही था. मैने उसे गुडनाइट बोला और उस अकेले टीवी देखने के लिए छोड़ वहाँ से चल गया.



उसे ज़रूर मालूम था कि मैं परेशान था. उसने महसूस किया होगा कि मैं खुश नही था.


मैं अपने कमरे में गया और दरवाजा बंद कर दिया. अपने बेड पर लेटा मैं करवटें बदल रहा था.


मेरा दिल जोरों से धड़क उठा जब उस रात कुछ समय बाद मैने अपने दरवाजे पर दस्तक सुनी.

अपने दरवाजे पर उस रात थोड़ी देर बाद दस्तक सुन मेरा दिल ज़ोरों से धड़क उठा. मैं लगभग भाग कर दरवाजा खोलने गया. वो मेरे सामने वोही उस रात वाली नाइटी पहने वोही पर्फ्यूम लगाए महकती हुई खड़ी थी, उसने हल्का सा शृंगार किया हुआ था और बहुत ही प्यारी लग रही थी.

उसने अपना हाथ आगे मेरी ओर बढ़ाया और कहा, "आओ बेटा टीवी देखते हैं. इतनी भी क्या जल्दी सोने की!"


मैने अपना हाथ उसके हाथ में दिया और वो मेरा हाथ थामे मुझे वापिस ड्रॉयिंग रूम में ले गयी. मैं इस अचानक बदलाव से अत्यधिक खुश था, हालाँकि मैं नही जानता था इस सबका मतलब क्या है या वो चाहती क्या है. हम उसी सोफे पर बैठ टीवी पर कुछ देखने लगे. मुझे याद नही हम देख क्या रहे थे. मैं अपने विचारों में खोया हुआ हालातों में आए अचानक बदलाव के बारे में सोच रहा था.






हम कुछ देर तक वहाँ बैठे रहे मगर जल्द ही हम ने फ़ैसला किया कि अब सोना चाहिए. हम दोनो एक साथ उठ खड़े हुए, ड्रॉयिंगरूम और रसोई की सभी बत्तियाँ बंद की और कॉरिडोर की ओर चल पड़े जहाँ मेरा कमरा था और जहाँ जायदातर हम एक दूसरे को सुभरात्रि की सूभकामना करते थे. मेरा दिल दुगनी रफ़्तार से धड़क रहा था और मेरा दिमाग़ हसरत पे हसरत किए जा रहा था.


मैने अपने जज़्बातों को दम घुटने की हद तक दबा कर रखा हुआ था. नाम होंठो के सुभरात्रि चुंबन या आलिंगन के दोहराने को लेकर मैं पूरी तेरह से आश्वस्त नही था. मुझे अपनी भावनाओ को इस हद्द तक दबाना पड़ रहा था कि मैं बेसूध सा होता जा रहा था.


मगर जैसा सामने आया वो खुद अपनी भावनाओ को दबाए हुए थी, एक बार जब हम मेरे कमरे के दरवाजे पर पहुँचे तो वो मेरी ओर बढ़ी. उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन में डालने के लिए उपर उठाई. मैने अपनी बाहें उसकी कमर पर लपेट दीं और उसे अपनी ओर खींच कर पूर्ण आलिंगन में ले लिया. हमारी गर्दने आपस में सटी हुई थी, हमारी छातियाँ पूरे संपर्क में थी और मेरी बाहें उसे थोड़े ज़ोर से अपने आलिंगन में लिए हुए थी. मैं उसे कस कर अपने से चिपटाये हुए था. उसने ज़रूर मेरे आलिंगन में मेरी नाराज़गी महसूस की होगी.
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जब हम इतनी ज़ोर से आलिंगंबद्ध हो गये थे तो कुदतरन हमारे होंठो का मिलना भी लाज़मी था. मैने अपनी जीभ अपने होंठो पर रगड़ उन्हे अच्छे से गीला कर लिया. जैसे ही मैने अपना सर पीछे को खींचा ताकि हमारे चेहरे आमने सामने हों, उसका मुख मेरी ओर आया और मेरा मुख उसकी ओर बढ़ गया. मैने अपनी भावनाएँ बहुत दबा कर रखी थी मगर अब उन्हे उभरने का मौका दे दिया था. मैने अपने होंठ माँ के होंठो पर रखे और उन्हे थोड़ा सा खोल कर उसके निचले होंठ को अपने होंठो में ले लिया.

मैं नही जानता कैसे मैं उस अदुभूत एहसास को लफ़्ज़ों में बयान करू, वो एहसास जब मेरी माँ ने मेरा उपर का होंठ अपने होंठो में ले लिया और मुझे हल्के से चूमा. उसके होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाज़ुक थे. मैने उन्हे पहले ऐसे नही महसूस किया था. फिर उसने अपना मुख नीचे को किया और मेरा निचला होंठ अपने होंठो में लेकर मुझे फिर से चूमा. उसके होंठ मेरे होंठो पर फिसलने लगे, वो अपने पीछे मीठे मुखरास की लकीर सी छोड़ते जाते क्योंकि मेरे होंठ उसके दाँतों को स्पर्श कर रहे थे. मैने उसका उपर का होंठ अपने होंठो में भर लिया और उस पर अपने होंठ घूमाते हुए उसे धीरे धीरे चूसने लगा., उसके होंठ को अपने मुख में सहलाने लगा.


चुंबन इतना लंबा था कि हम एक दूसरे की मिठास को अच्छे से चख सकते थे. हमारे जिसम खुद ब खुद और ज़ोर से एक दूसरे से सट गये थे. मैने अपना आकड़ा लंड उसके जिस्म पर दबाया, और इस बार मैने यह जानबूझकर किया था; वो पीछे ना हटी. मगर उसने अपना जिसम भी मेरे लंड पर प्रतिकिरिया में नही दबाया बहरहाल कम से कम वो पीछे तो नही हटी थी.



मगर चुंबन को ख़तम तो होना ही था, जब हम अपनी भावनाएँ खुल कर एक दूसरे से बयान कर चुके थे. उसने अपना सर मेरी छाती पर टिका दिया और मैं उसे नर्मी से बाहों में थामे खड़ा रहा. एक लंबी खामोशी छा गयी थी और हम दोनो एक दूसरे को थामे खड़े थे.


उस खामोशी को माँ ने तोड़ा. "ये मैं क्या कर रही हूँ?" वो फुसफसाई. वो एक ऐसा सवाल था जो वो मुझसे ज़यादा खुद से कर रही थी इसलिए मैने कोई जबाब नही दिया. असल मैं मेरे पास उस सवाल का कोई जबाब था ही नही. फिर से खामोशी छा गयी और फिर वो अलग हो गयी. हम एक दूसरे के सामने खड़े थे और हमारे बीच दूरी बहुत कम थी. उसने अपने हाथ उपर किए और अपने बाल सँवारने लगी. मैं उसे अपने बाल सँवारते देख रहा था साथ ही मेरा ध्यान उसके मम्मो पर था जो बाहें उपर होने के कारण आगे को उभर आए थे. वो इतनी कामुक लग रही थी कि मैं आगे बढ़कर उसे फिरसे अपनी बाहों में भर लेना चाहता था. मगर मुझे किसी अंजान शक्ति ने रोक लिया, एसी शक्ति जिसको शायद मैं कभी स्पष्ट ना कर सकूँ.


उसने अपने बाल सही किए और फिर उसने अपनी निगाहें सही की. फिर उसने मेरा चेहरा अपने दोनो हाथों में थामा और धीमे से मेरे होंठो पर चूमा. उसने उस चुंबन को कुछ देर तक खींचा और फिर मुझे "गॉडगिफ्ट" कहा. और फिर एकदम से वो वहाँ से चली गयी.

वो वहाँ से एकदम से हड़बड़ा कर चली गयी!

अंततः हम एक दूसरे को खुल कर जता चुके थे, बता चुके थे कि हम एक दूसरे से क्या चाहते हैं. और उसी समय वो सवाल कर उसने यह भी जता दिया था कि हमारा ऐसा करना ग़लत था. उसका इस तरह अचानक चले जाना इस बात का संकेत था ये कितना ग़लत था. हमारी उस गहरी आत्मीयता के साथ साथ आतांग्लानि की भावना भी मोजूद थी और आतांग्लानि की उस भावना की तीव्रता इतनी थी कि उसे वहाँ से लगभग भागना पड़ा था.


हमारे पछतावे से बचने का एक ही तरीका था कि हम ऐसे दिखावा करते जैसे कुछ हुआ ही नही था जैसे हम हमेशा पहले करते आए थे जब हमे वो आतांग्लानि की भावना घेर लेट लेती और मैं और माँ दिखावा करते कि कुछ भी ग़लत घटित नही हुआ है. मगर इस बार कुछ ऐसा हुआ था जिसे हम अनदेखा नही कर सकते थे. मेरे पिताजी अभी भी शहर से बाहर रहने वाले थे. हमारे पास एक और रात थी. मैं जानता था यह समय था कि हम उस सवाल का सामना करते जा फिर सब कुछ बंद कर देते. यह संभव नही था कि हम उसी तरह अधर में लटके रहते. हमें फ़ैसला लेना था कि हम हमारे रिश्ते से क्या चाहते हैं.



मगर कैसे? कैसे मैं उसे अपना दिल खोलने को कहता? क्या मैं उसके पास जाता और उससे पूछता कि मेरे द्वारा लंड दबाने पर वो इस तरह भाग क्यों रही है? वो विचार ही बेहूदा था. मैं उसे किसी भी प्रकार हमारे उस रिश्ते को लेकर उसे अपनी मंशा जाहिर करने के लिए नही कह सकता था. मैं सिर्फ़ छिप सकता था.
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