कैसे कैसे परिवार

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Masoom
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Re: कैसे कैसे परिवार

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नया दिन नया प्रारम्भ:


सुबह ६ बजे सब जाग चुके थे. गौतम ने शालिनी को एक बार बहुत प्यार से चोदा और फिर कपड़े पहनकर अपने कमरे में चल दिया. उसे ये रात जीवन पर्यन्त याद रहने वाली थी. उधर अदिति ने भी अनन्या की चूत को चूसकर एक बार स्खलित किया और फिर अजीत ने उसे पूरे प्यार के साथ एक बार फिर चोदा। फिर अनन्या अपने कपडे पहनकर अपने कमरे की ओर चल दी. दोनों भाई बहन अपने कमरे में पहुँचने के पहले एक दूसरे से भिड़ गए. और दोनों को ये समझने में देर नहीं लगी कि वे अपने कमरे में क्यों नहीं थे.

गौतम: "अनन्या, तुम्हें मेरी बधाई."

अनन्या की ऑंखें फ़ैल गयीं.

अनन्या: "दादा आप?"

गौतम: "मैं दादी के साथ था. अब घर में सब कुछ बदल गया है. चलो तैयार होकर मिलते हैं."

अनन्या ने सिर हिलाया और दोनों अपने अपने कमरे में चले गए.

जब सब लौट कर बैठक में आये तो घर में एक अलग ही वातावरण का अनुभव किया. अनन्या अजीत की ओर ऑंखें चुराकर देख रही थी. और गौतम शालिनी को ताक रहा था. अजीत और अदिति ने इस बदले हुए समीकरण को समझ लिया और सब कुछ वापिस पहले जैसा करने का प्रयत्न करने लगे. शालिनी ने इसे समझ लिया. घर में अब कोई असहजता नहीं होनी चाहिए थी.

शालिनी: “अदिति, राधा कहाँ है.”

अदिति: “अपना काम करने के बाद अपने कमरे में गई है. अब बारह बजे ही लौटेगी. कुछ काम है क्या?”

शालिनी ने कोई उत्तर नहीं दिया, उसके मन में एक विचार आया था और वो उठी और किचन और घर के दरवाजे अंदर से लॉक कर दिए.

शालिनी: “नहीं, कोई काम नहीं है, पर हम सब जो बातें अब करने वाले हैं उसका सुनना उचित नहीं होगा.”

ये कहते हुए वो गौतम की बगल में बैठ गयी.

शालिनी: “हम सबने कल एक नए जीवन का आरम्भ किया है. सच ये भी है कि आज जो हमारे बीच में कुछ असहजता है, मानो सब एक दूसरे से डरे हुए हैं. पर मेरे विचार में ये सही नहीं है.”

सब चौंक गए.

शालिनी: “हमने पारिवारिक प्रेम को बढ़ावा ही दिया है. जीवन में उन्माद और रोमांच होना चाहिए. अब मेरे विचार से गौतम और अनन्या ही एक दूसरे से अंतरंग नहीं हुए हैं. पर इसमें अधिक समय नहीं लगेगा. जब हम एक दूसरे से इतने अच्छे से परिचित हो चुके हैं तो शर्म किस बात की है? वर्षों पहले जब मैंने अजीत को अपने बिस्तर में बुलाया था, न मुझे तब इस बात की कोई ग्लानि हुई थी और न ही मुझे कल अपने प्यारे पोते गौतम से चुदवाने के बाद हुई है.” ये कहकर शालिनी ने गौतम के होठों पर अपने होंठ रखे और उसे एक प्रगाढ़ चुम्बन दिया.

“जब हम सब एक दूसरे से हर प्रकार से प्रेम कर सकते हैं, तो अपने आप को क्यों रोकना. मैं शेष जीवन इस प्यार और सहवास के बिना नहीं बिताना चाहती.” शालिनी ने अजीत को पास बुलाया और उसे भी एक चुम्बन दिया. “क्या तुम सबको मेरे इस व्यहवार में किसी भी प्रकार से प्रेम के सिवाय कुछ और दिखा?”

सबने न में सिर हिलाया.

“और इसीलिए, अब मैं चाहूंगी कि हम जब भी चाहें, जहां भी चाहें और जिसके साथ भी चाहें, चुदाई कर सकें. राधा इसमें बाधक बन सकती है और हमें इसका उपाय ढूँढना ही होगा. पर उसे जब तक कोई समाधान नहीं मिलता किसी भी प्रकार से कोई शक नहीं होना चाहिए. ठीक है?”

सबने इस बार हाँ में सर हिलाया.

“तो घर की सबसे बड़ी होने के नाते मैं इस उन्मुक्त जीवन शैली का शुभारम्भ करती हूँ.” ये कहते हुए शालिनी खड़ी हुई और अपने कपड़े उतारने लगी. पल भर में ही वो सबके सामने नंगी खड़ी थी. और उसके चेहरे पर किसी प्रकार की शर्म नहीं थी. बल्कि आँखों में एक नयी चमक थी.

“दादी, आप कितनी सुन्दर हो!” अनन्या के मुंह से निकल पड़ा.

“क्यों न हो, दादी जो है मेरी.” अब तक गौतम सम्भल चुका था और उसने शालिनी के नितम्ब पकड़कर उन्हें दबाते हुए अधिकार भरे शब्दों में कहा.

अजीत भी कहाँ पीछे रह सकता था. “ये मत भूलो कि ये मेरी माँ है.” शालिनी के पीछे से उसके स्तन दबाते हुए उसने भी अपना अधिकार जमाया.

“उँह” शालिनी ने अपने स्तन दबते हुए एक दबी हुई आह भरी.

अजीत: “और ये मत भूलो कि इस चूत और गांड में गौतम से पहले मेरा लंड गया था.”

गौतम: “पर डैड, मैंने अभी तक दादी की गांड नहीं मारी है. इसीलिए इस में आप इकलौते ही हैं.”

अजीत: “क्यों माँ, अपने पोते को आधा ही सुख दिया क्या?”

शालिनी: “मेरी बूढी हड्डियां चटका दीं इसने रात में. मेरी तो हिम्मत ही नहीं हुई आगे कुछ करने की. पर आज की रात गांड भी मरवा लूंगी अपने पोते से.”

अनन्या: “दादी वो सब ठीक है. पर मैं पापा और आपकी चुदाई देखना चाहती हूँ. क्योंकि इस पूरे नए समीकरण का आरम्भ वहीँ से हुआ था.”

गौतम ने भी अनन्या के स्वर में स्वर जोड़ा.

अदिति: “अब लगता है कि आप दोनों को बच्चों की बात माननी ही पड़ेगी.”

अदिति: “अनन्या, बिटिया इधर आ और अपने पापा के लंड को थोड़ा अच्छे से कसकर खड़ा कर. फिर हम उधर बैठकर इस खेल को देखेंगे.”

अनन्या को इससे अधिक निमंत्रण की आवश्यकता नहीं थी. वो तपाक से उठी और अजीत के सामने खड़ी हो गयी. फिर उसने अजीत की पैंट खोली और उसे नीचे सरका दिया.

अजीत: “रुक थोड़ा.”

ये कहकर अजीत ने पूरी पैंट निकाली और फिर अपनी टी-शर्ट और अंडरवियर भी उतार फेंका. अब वो भी अपनी माँ के समान नंगा खड़ा था.

अनन्या घुटनो के बल बैठी और लंड मुंह में लेने ही लगी थी कि अदिति बोल उठी, “कपड़े पहनकर चूसेगी? इन्हें निकाल ही दे तो अच्छा है. तेरे भाई को भी तो तेरी सुंदरता का दर्शन करने दे.”

अनन्या ने गौतम की ओर देखा और कुछ शर्माई फिर उसे अपनी माँ की कल रात की बात याद आ गयी और उसने तुरंत अपनी शर्म छोड़ी और गौतम की आँखों में देखते हुए कपड़े निकालने लगी. गौतम उसके शनैः शनैः अनावृत होते संगमरमरी शरीर को ललचाई आँखों से देख रहा था.

अदिति: “हम्म्म, ये ठीक है. पर तू क्यों बैठा टुकुर टुकुर देख रहा है. तेरी दादी की चूत तेरे सामने है. अपने पापा के लिए उसे भी अच्छे से तैयार कर दे. पर मेरे विचार से हमें शयनकक्ष में चलना चाहिए.”

गौतम ने अनन्या के ऊपर से हटाकर शालिनी की ओर देखा. “चलो, मेरी नयी गर्लफ्रेंड।”

ये कहते हुए गौतम ने शालिनी को थामा और अदिति के कमरे को ओर बढ़ चला. पीछे पीछे अनन्या और अजीत भी आ गए. अदिति ने बैठक से बिखरे पड़े कपड़े समेटे और वो भी कमरे में आ गयी और कमरा लॉक कर दिया. अनन्या ने समय व्यर्थ नहीं किया था, पर अब वो बिस्तर पर बैठी हुई अजीत के लंड को चूस रही थी. गौतम को कुछ समय लगा क्योंकि उसने भी अपने कपड़े उतारे थे. और अदिति की ऑंखें उसके लंड पर पड़ीं और उसे अपने बेटे पर गर्व हो उठा. शालिनी तो पहले से ही उत्तेजित थी, सो वो बिस्तर पर टाँगे फैलाये लेटी थी और अपनी चूत में ऊँगली कर रही थी. गौतम ने उसकी उँगलियों को हटाया और अपने मुंह को उसकी चूत पर मलने लगा.

************************

ये सब इस बात से अनिभिज्ञ थे की राधा अभी तक घर में ही थी. वो किसी काम से ऊपर छत पर गयी थी, परन्तु सब ये माने हुए थे कि वो अपने घर गयी है. राधा जब नीचे उतरी तो वो सीढ़ी पर ही रुक गयी थी, और उनकी बातें सुन रही थी. उसकी शंका सही सिद्ध हुई. बाप बेटे शालिनी को चोद रहे थे. हालाँकि गौरव ने कल रात ही पहली बार चोदा था शालिनी को. जब अजीत के लंड को चूसने के लिए अदिति ने कहा तो राधा अपने आप को रोक नहीं पायी और छुपकर झाँका. अजीत के लंड को देखकर उसका मन मचल गया. उसके पति के लंड से दुगना रहा होगा अजीत. उसकी चूत पनिया गयी.

जैसे ही सब कमरे में गए और दरवाजे को लॉक किये, राधा दबे पांव अपने घर की ओर चली गयी. वो ये भूल गयी कि शालिनी ने दरवाजा अंदर से बंद किया था राधा को अंदर न आने देने के लिए. उसने तो इसे सामान्य दिनों के समान ही समझा और क्योंकि कई बार दरवाजा खुला भी रहता था तो इस पर ध्यान नहीं दिया. अपने कमरे में जाकर वो बिस्तर पर लेट गयी और जो घर में चल रहा था उसकी कल्पना में लीन हो गयी. जब उससे सहन नहीं हुआ तो उसने अपने कपड़े उतारे और किचन से एक बैंगन लेकर अपनी चूत में डालकर उसे शांत करने लगी. उसकी आँखों के सामने अजीत का मोटा लम्बा लंड घूम रहा था. वो किसी प्रकार उससे चुदवाने की कल्पना करने लगी. पर उसके पति को इसका आभास नहीं होना चाहिए था.

क्रमशः

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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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दूसरा घर: सुनीति और आशीष राणा
अध्याय २.२


जीवन का गाँव
कोई एक महीने पहले:

जीवन राणा इस आयु में भी वही रोब रखते थे जो ४० साल पहले था. इनके लम्बे और बलिष्ठ शरीर को जैसे उम्र ने छुआ तक नहीं था. उनकी पत्नी की मृत्यु को अब कोई दस वर्ष हो चुके थे. आज भी उसकी याद में उनकी ऑंखें भर आती थीं. परन्तु जीवन का यही नियम है कि किसी के जाने के बाद भी ये नहीं रुकता. आज भी वो अपने गांव और खेतों से उतना ही प्यार करते थे जितना पहले. साल में दो बार १० दिनों के लिए वो हरियाणा के अपने गाँव अवश्य जाते थे. अपने पुराने मित्रों के साथ मिलने बैठने का आनंद ही कुछ और था. उस गाँव से जुडी उनकी यादें ताजा करके उनके मन को एक शांति मिलती थी.

इस बार भी उन्हें आए हुए दो दिन हो चुके थे. अपने मित्र और सम्बन्धी बलवंत के घर पर उनके चार मित्रगण जमा थे. वो जब भी आते थे तो पास के शहर से एक मंहगी शराब की दो पेटियाँ साथ लाते थे. उनके मित्र भी इस समय की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे. सब मित्र अहाते में बैठे बातें कर रहे थे. बलवंत की पत्नी गीता उन्हें खाने का सामान परोस रही थी. अंदर अन्य मित्रों की पत्नियाँ बनाने में जुटी थीं. सब एक दूसरे के परिवारों से बहुत खुले हुए थे, बचपन के साथी जो थे. उन सबकी पत्नियां भी एक दूसरे की अंतरंग सहेलियाँ थीं. जीवन की पत्नी की मृत्यु का शोक सबको समान रूप से ही लगा था.

“भाई साहब, आपका समय कैसे काट पाता है हम सब के बिना. सच कहें तो आपकी बहुत याद आती है.” गीता ने जीवन की प्लेट में चिकन के पकवान परोसते हुए पूछा.
“सच भाभी, मन नहीं लगता. तभी तो चला आता हूँ. अब सोचता हूँ कि छह महीने में नहीं हर तीन महीने में आ जाया करूँ। और आप दोनों भी आया करो तो मन लगा रहेगा.”
“मैनें तो इन्हे कई बार कहा कि चलते हैं, सुनीति की हमें भी बहुत याद आती है.”

कुछ देर बाद सभी मित्र अपने घर चले गए. बलवंत और जीवन वहीँ बैठे रहे. फिर गीता भी आ गई.

बलवंत: “तुम लोगी?”
गीता के हाँ कहने पर बलवंत ने उसके लिए भी एक पेग बनाया और उसमे थोड़ा कोका कोला मिला दिया किससे अगर कोई देखे तो पता न लगे कि गीता क्या पी रही है.

गीता: “आप सुनीति को क्यों नहीं लेकर आते?”
जीवन: “उसने काम बहुत फैला लिया है. अब आना कठिन है. उसने ये कहा है कि मैं आप दोनों को साथ ले कर लौटूँ। मैं भी यही चाहता हूँ.”
बलवंत: “खेती कौन संभालेगा?”
जीवन: “मेरा जो मैनेजर मेरे खेत देखता है, वहीँ देखेगा. उसे हम इसके लिए दोगुने पैसे देंगे. और मैं नहीं समझता की वो मन करेगा. फिर एक महीने बाद जैसा समझो वैसा ही करना.”
बलवंत: “इस बारे में विचार किया जा सकता है. क्यों गीता.?”
गीता: “आप जो कहेंगे मुझे सब स्वीकार है.”

बलवंत: “इस बार तुम सलोनी को भी लेकर आये हो?”
जीवन: “हाँ, तुम तो जानते हो कि मेरा एक दिन भी चुदाई के बिना रहना कितना मुश्किल है. अब पिछली बार भाभी की तबियत ठीक नहीं थी, तो सोचा कि इस बार अपने प्रबंध के साथ आऊं.”
गीता: “पूछ तो लेते एक बार, अब मैं पूरी ठीक हूँ.”
जीवन: “ठीक है, तो बलवंत का स्वाद बदल जायेगा.”
गीता: “इनकी इतनी चिंता न करें भाई साहब. इनके स्वाद बदलने वाली तीन तो अभी ही अपने घरों को गई है.”
बलवंत हँसते हुए: “बोल तो ऐसे रही है जैसे मुझे ही सब मजे मिलते है. तू भी उन तीनों के पतियों के साथ मजा लेती है.”
जीवन ठहाका लगते हुए: “एक दूसरे की पोल न खोलो, चलो अंदर चलें यहाँ किसी ने सुन लिया तो बेकार बदनामी होगी.”

गीता ने सलोनी को बुलाया और दोनों सारा सामान अंदर ले गयीं. बलवंत और जीवन बैठक में सोफे हुए थे. गीता जाकर साथ बैठ गई. जीवन ने सलोनी को भी बुलाकर साथ बैठा लिया. बलवंत और गीता सलोनी का स्थान जानते थे और उन्हें इसमें कोई भी आपत्ति नहीं थी. कल तो सलोनी अपने घर अपने माता पिता से मिलने रुकी थी. उनको उसने ५० हजार रूपये दिए जो कि सुनीति ने उसे दिए थे. वो मना करते रहे, पर सलोनी कहाँ मानने वाली थी.

बातों में फिर एक बार सेक्स पर चर्चा होने लगी.

जीवन: “भाभी, वैसे गांव के जीवन का आनंद अलग है. शहर में भीड़ भाड़ और दौड़ भाग के बीच समय यूँ भी बीत जाता है. आशीष ने बहुत परिश्रम किया है. आज जब सब कुछ अच्छे से संभल गया है, तो उसने अपन समय घर और परिवार में अधिक बिताने का निश्चय किया है. अब तीनों बच्चे ही लगभग सँभालते हैं. ये बात अलग है कि उसकी अनुमति बिना लिए वो कोई बड़ा निर्णय नहीं लेते.”

गीता: “हाँ भाई साहब. हम लोग तो यहीं खुश हैं. हम पांचों का जो समूह था उसमे से भाभी के जाने के बाद अब वो रस नहीं रह गया.”
जीवन: “हाँ, रसीली तो बहुत थी वो. न जाने क्यों इतनी जल्दी चली गई. और भाभी, रस तुममें भी बहुत है.”
गीता: “अरे कहाँ, अब इन बूढी हड्डियों में वो बात नहीं रह गई.”
जीवन: “अरे भाभी, जब हम अभी बूढ़े नहीं हुए तो तुम कैसे हो गयीं?” ये कहकर जीवन उठा और गीता के बगल में जाकर बैठ गया.
उसके मम्मे दबाते हुए कहा, “बलवंत तो कहता है कि तेरी जैसी कोई हो ही नहीं सकती. और बाकी तीन भी यही सोचते है.”
गीता उससे लिपट गई, “क्यों चले गए यहाँ से, हम सब इतने खुश थे.”
जीवन: “निर्मला के जाने के बाद कुछ अच्छा ही नहीं लगता था. हर दृश्य में वही दिखती थी. आशीष और सुनीति इसीलिए ही मुझे अपने साथ ले गए क्योंकि मुझे वो कमी खाये जा रही थी.”

बलवंत के संकेत पर सलोनी उठकर उसकी गोद में जा बैठी. और अपनी बाहें बलवंत के गले में डाल दीं। बलवंत ने उसके होंठ चूमते हुए उसके शरीर पर अपने हाथों से सहलाते हुए उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए. कुछ ही क्षणों में सलोनी ऊपर ने नंगी हो चुकी थी. फिर वो उठी और बिना हिचक के अपनी साड़ी और पेटीकोट उतारकर नंगी हो गई. फिर दोबारा बलवंत की गोद में जा बैठी.

जीवन गीता के मम्मे दबाते हुए बोला: “उधर देखो भाभी, सलोनी अपनी जवानी दिखा रही है तुम्हारे पतिदेव को. आपका क्या मन है?”

गीता: “अब उसके जैसा तो मेरा शरीर रहा नहीं. फिर भी आपके लिए मैं भी कपडे निकाल ही देती हूँ.”
गीता खड़ी होकर अपने कपडे निकलने लगी तो साथ में जीवन ने भी खड़े होकर अपने कपडे उतार दिए. उसका कसरती शरीर चमक रहा था. और उसके पांवों के बीच में उसका आधा तना लंड झूल रहा था.
गीता: “मुझे कभी कभी इसकी कमी बहुत सताती है.”
जीवन: “क्यों बहलाती हो भाभी, बलवंत के सामने तो ये उन्नीस ही होगा.”
गीता: “बात वो नहीं है, बस कभी कभी याद आती है जब निर्मला और मैं मिलकर आप दोनों से चुदवाती थी.”
जीवन की ऑंखें नम हो गयीं. गीता ने ये देखा तो उसके सीने से लग गई.

गीता: “ मुझे क्षमा करो भाईसाहब.”
जीवन: “नहीं भाभी, आप सही कह रही हो. उसकी बात कुछ और ही थी.” फिर उसने गीता की ठुड्डी पकड़कर सिर उठाकर उसके होंठ चूम लिए. “जैसे आपकी बात अलग है.”

उधर बलवंत भी अपने कपडे उतार कर सलोनी को जमीन पर लिटा कर उसकी चूत की पूरी श्रध्दा से चूस रहा था. सलोनी कसमसा रही थी और अपनी गांड उठा उठाकर बलवंत को प्रोत्साहित कर रही थी. बलवंत ने उसके पांव इतने फैलाये हुए थे की चूत पूरी तरह से खुलकर उसके सामने थी. और वो उसके रोम रोम को कभी चाटता, कभी सहलाता और कभी हल्के से काट रहा था. सलोनी अपना वश खो चुकी थी. पर उसे पता था कि आज की रात उसकी और गीता दीदी की धुआंधार कुटाई होनी है. दोनों की चूत और गांड इतनी बार मारी जाएगी कि सुबह चलना भी कठिन होगा. इन दोनों की चुदाई कई बार इतनी दुर्दांत हो जाती थी कि मन कांप उठता था. पर उसमे जो आनंद आता था उसका वर्णन भी असंभव था.

सलोनी ये सब सोचते हुए अपनी चूत में चल रही उंगली और जीभ से आनंदातिरेक सिसकारियां ले रही थी. फिर बलवंत ने उसके पांव उठाकर ऊपर तक मोड़ दिए. इस आसन में सलोनी की चूत और गांड दोनों ही ऊपर आ गए. बलवंत ने अपनी जीभ को गांड के छेद से चूत के भगनासे तक चलाना शुरू किया. सलोनी की तो अब जैसे जान ही निकल गई. बलवंत उसकी गांड के छेद पर जीभ से खेलता, फिर अपनी जीभ के ऊपर ले जाता और फिर भगनासे को जीभ से चाटकर अपने होठों से दबा देता. और फिर यही क्रम दोहराता. सलोनी की चूत और गांड दोनों में कुनमुनाहट होने लगी. चूत ने अपना रस बहाना शुरू किया तो बलवंत ने उस रस के सहारे अपने क्रम को और गतिशील कर दिया.

सलोनी हल्की चीख के साथ सिसकती हुई बोल पड़ी: “भाई साहब, मेरा पानी छूटने वाला है.”
पर बलवंत ने अपने आक्रमण में कमी करने के स्थान पर और भी तेजी कर दी. और सलोनी का बांध टूट गया. उसने लम्बी पिचकारियों के साथ अपन ढेर सारा पानी बलवंत के मुंह और चेहरे पर उड़ेल दिया. पर बलवंत रुका नहीं. और जब सलोनी पूरी झड़ नहीं गई, तब तक उसने अपना खेल बंद नहीं किया. जब सलोनी निढाल हो गई, तब बलवंत ने अपना चेहरा उठाया जो इस समय पूरी तरह से भीगा हुआ था.

“जीवन, इसकी चूत तो बहुत मीठी है, यार.”
“मेरे घर की हर चूत मीठी है, तेरी बेटी की चूत मिला कर.” जीवन अपने लंड को गीता के मुंह में अंदर बाहर करते हुए हंस कर बोला.

“ये सब हमारी पत्नियों की कृपा है, जिन्होंने ऐसी संतानें जो दी हैं.” बलवंत भी हंसकर बोला।

गीता पूरी आत्मीयता से जीवन के लंड को चूस रही थी. अब वो पहले वाला समय तो था नहीं कि जब चाहते तब अपने किसी भी मित्र के घर चले जाते और चूत, लंड या गांड चूस लेते। जीवन का लंड तो अब साल में कोई १५-१६ दिन ही उसके हिस्से में आ पता था. और इसका वो पूरा लाभ उठाना चाहती थी. जीवन भी अपनी भाभी रूपी समधन से लंड चुसवाने के लिए लालायित रहता था. तभी वो चाहता था कि ये दोनों साथ चलें और आनंद लें. जीवन ने गीता का सिर पीछे से पकड़कर उसके मुंह को लंड से चोदने की प्रक्रिया प्रारम्भ की. गीता को उसकी ये सब लीलाएं पता थीं और वो बलवंत के लंड को भी गले तक निगल लेती थी. और अब भी जीवन का लंड उसके गले को छू कर अंदर बाहर हो रहा था.

“भाभी, अब मुझे आपकी चूत चोदनी है.”

गीता: “क्यों भाईसाहब, मेरा रस नहीं पीना?”
जीवन: “नहीं भाभी, अभी रुका नहीं जा रहा, बहुत दिन हो गए इस चूत का भोग किये हुए. और अभी तो मैं कई दिन हूँ यहाँ.’

गीता वहीं जमीन पर लेट गई और अपने पांव फैला दिए.
जीवन: “नहीं भाभी, यहाँ नहीं, बिस्तर पर ही चलो. अब घुटने थक जाते हैं.”

ये सुनकर गीता उठी और वैसे ही नंगी अपनी गांड मटकाते हुए शयनकक्ष की ओर चल पड़ी. जीवन उसके पीछे हो गया. फिर उसने पीछे मुड़कर बलवंत को देखा.

जीवन: “तुम भी अंदर ही आ जाओ”

बलवंत ने सिर हिलाकर ठीक है कहा और सलोनी को लेकर शयनकक्ष की ओर चल दिया. चलते समय उनके हाथ सलोनी की गांड पर था और उसने चुहल करने के लिए एक उंगली उसकी गांड में पेल दी. सलोनी चलते हुए ठिठक गयी.

सलोनी: “भाईसाहब, आपके लक्ष्य गलत छेद पर है.”
बलवंत: “नहीं, लक्ष्य भी सही है और लक्ष्य भेदने के लिए बाण भी उत्सुक है. पर अभी समय है वहाँ अतिक्रमण में. पहले तुम्हारी चूत का भोग लगाना चाहूंगा.”
सलोनी: “फिर ठीक है. चूत की खुजली बहुत अधिक बढ़ गई है, पर अब अपने गांड में भी आग लगा दी.”
बलवंत: “कहे तो मैं और जीवन तेरी चूत और गांड की आग एक साथ बुझा दें?”

अब सलोनी इस खेल के लिए नयी तो थी नहीं. उसे पता था कि उसके दोनों छेदों की पिलाई होनी ही है. जैसे की गीता दीदी की होगी. उसका शरीर उत्तेजना से सिहर उठा.

गीता: “ अभी नहीं भाईसाहब, उसका जब समय आएगा तब देखेंगे.”

वो जानती थी कि जीवन को इस तरह की चुदाई कितनी पसंद है. और अब वो भी इसकी अभ्यस्त हो चुकी थी और उसे भी इसमें आनंद आता था. कमरे में पहुंचे तो देखा की गीता पहले से ही बिस्तर पर टाँगें फैलाये पड़ी थी और जीवन अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखकर खड़े थे.

जीवन: “आ जा बलवंत. तेरे ही लिए रुका हूँ. साथ में जुगलबंदी करेंगे. देखें इनमे से कौन पहले हार मानती है. और जीतने वाली को हम दोनों कुछ विशेष देंगे.”

ये सुनते ही गीता और सलोनी दोनों के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. आज हारने में ही भलाई लग रही थी. पर जीवन की बात अभी समाप्त नहीं हुई थी.

“और हारने वाली को सजा.”
अब गीता और सलोनी को काटो तो खून नहीं. इधर गिरीं तो कुंआ उधर गिरीं तो खाई. अब बलवंत ने सलोनी को बिस्तर पर लिटा दिया गीता के साथ और अपने लंड को सलोनी की चूत पर लगाया और जीवन को संकेत दिया शुरू करने का.

एक साथ दो मोटे लम्बे कड़क लंड दो चूतों के अंदर एक ही झटके में समा गए. अब गीता की तो चूत कई सावन देख चुकी थी पर गीता की आंखे तिरछा गयीं. ये खेल बलवंत और जीवन का पुराना शौक था और जब वो जुगलबंदी करते थे तो उनका एक एक धक्का और गति एक समान होती थी. गीता तो इस खेल में कई बार खिलौना बन चुकी थी पर सलोनी के लिए ये उतना पुराना नहीं था. पर इससे कुछ अंतर नहीं पड़ना था. चूत तो उसकी अलग से ही चुदनी थी.

जीवन और बलवंत जुगलबंदी में गीता और सलोनी की चूतों में अपने लंड पेल रहे थे. बिस्तर के स्प्रिंग चूं चूं की ध्वनि से चरमरा रहे थे. उनके चोदने की तीव्रता इतनी अधिक थी कि अगर पलंग मजबूत लकड़ी का न होता तो संभवतः अब तक टूट गया होता. उनके नीचे अपनी चूत का भोसड़ा बनवाती हुई गीता और सलोनी इस भीषण चुदाई में पीड़ा और आनंद दोनों अनुभव कर रही थीं. गीता को तो ऐसी ही चुदाई पसंद थी, अगर चोदने वाला बलवंत न हो तो. बलवंत से उसे प्यार से चुदना अधिक पसंद था. पर दूसरों से उसे ऐसी ही चुदाई की इच्छा रहती थी. विशेषकर जीवन से जिसके लंड और पाशविक चुदाई की तो वो दीवानी थी. उधर बलवंत भी गीता के अलावा दूसरी औरतों को इसी निर्ममता से चोदता था.

सलोनी की चूत तो इस समय अगर नदी के समान बह रही थी तो गीता की समुद्र की तरह. दोनों इस समय चरमोत्कर्ष की ऊंचाई पर थीं और उनकी आँखों में चाँद तारे जगमगा रहे थे. शारीरिक संवेदना अब पूर्ण रूप से उनकी योनि पर केंद्रित थी.

गीता: “अब और नहीं, बस अब झड़ जाओ. मेरी चूत अब और नहीं झेल पायेगी. मुझ पर दया करो.”
गीता की विनती भरे स्वर सुनकर सलोनी ने भी विनती दोहराई.
बलवंत और जीवन ने एक दूसरे को देखा और सिर हिलाकर अपने धक्के और तेज कर दिए. बस कुछ ही पल निकले होंगे कि उन दोनों ने अपने गाढ़े सफ़ेद रस से दोनों चूतों को भर दिया. फिर दोनों मित्र परिवारजन हटकर अपने साथी की बगल में लेट कर लम्बी साँसों के साथ विश्राम करने लगे.

“आज कुछ अधिक ही जोश में थे भाई साहब.” गीता ने पूछा.
जीवन: “नहीं भाभी, बस आपके साथ इतने समय बाद जो किया, तो मन की इच्छा पूरी करनी थी. मैं फिर कहता हूँ, आप लोग मेरे साथ चलो.”
बलवंत: “जीवन, अभी चलना कठिन होगा. मैं सब काम एक बार संभाल दूँ फिर अगले महीने हम दोनों आ जायेंगे. अभी चलने से हमेशा मन में कुछ न कुछ कुरेदता रहेगा. अगले महीने आएंगे तो आराम से २ महीने तक रह पाएंगे. तुम मेरी बात समझ तो रहे हो न?”
जीवन ने कुछ देर सोचा फिर बोला, “तुम्हारी बात ठीक है. अगले महीने आओ फिर.”
गीता: “ये ठीक है, मैं भी सुनीति और बच्चों से कितने दिनों बाद मिलूंगी.”
जीवन हंस पड़ा, “जिन्हें तुम बच्चा कह रही हो वो तुम्हारी चूत और गांड की धज्जियाँ उड़ा देने वाले हैं.”
गीता: “क्या कह रहे हैं भाईसाहब!”

जीवन: “सच कह रहा हूँ. तो लाओ भाभी अब मैं तुम्हारी गांड का भी भोग लगा लूँ।”
बलवंत: “बिल्कुल, मेरा तो लंड सलोनी की गांड के बारे में सोचते ही फिर खड़ा हो गया है. क्यों सलोनी क्या कहती हो.”
सलोनी: “जब कमरे में आते हुए आपने मेरी गांड में उंगली की थी तब से ये खुजला रही है आपके लंड से खुजली मिटाने के लिए.”

ये कहते हुए चारों अगले चरण के लिए अग्रसर हो गए.

*****************

सुनीति के घर
अगले दिन सुबह:

सुनीति और अग्रिमा किचन में थे और खाना बना रहे थे. सुनीति को तो इसमें कोई कठिनाई नहीं थी पर अग्रिमा के हाथ पांव फूले हुए थे. उधर लगातार उसके मित्रों के फोन आये जा रहे थे. शर्म और घमंड में ये बता नहीं पा रही थी कि वो घर में अपनी माँ का काम में हाथ बंटा रही है. कुछ ही देर में शंकर भी आ जाता है, सब्जी और अन्य वस्तुओं के साथ. उसे अग्रिमा को किचन में काम करते देख बहुत अचरज हुआ.

शंकर: “अरे अग्रिमा बिटिया, तुम! चलो अब रहने दो मैं आ गया हूँ.”
अग्रिमा: “थैंक यू , मौसाजी.”
सुनीति: “ ए मैडम, मौसा के आने से तुम जा सकती हो, ये किसने कहा?”
अग्रिमा: “मम्मी, मम्मी, मम्मी, प्लीज प्लीज. मेरे सब फ्रेंड्स मेरा वेट कर रहे हैं. मुझे जाने दो न प्लीज.” अग्रिमा के ये शब्द सुनकर सुनीति हंसने लगी. उसका मन भी लाड़ से भर गया.
सुनीति: “ठीक है जा. और मौसा के लिए कुछ उपहार लाना.”
अग्रिमा: “ओके, मॉम. जो उपहार मौसाजी को पसंद है, वो मैं रात में दे दूंगी. और आप इन्हे अभी दे देना मेरी ओर से.”
सुनीति: “चल, शैतान. अब जा, मुझे काम करना है.”
अग्रिमा: “हाँ जी. इस काम के बाद भी तो काम करना है.” उसने अपने बाएं हाथ के अंगूठे और ऊँगली से गोला बनाकर उसमे दाएं हाथ की ऊँगली चलते हुए चुदाई का संकेत दिया और भाग गयी.

सुनीति भी हँसते हुए अपने किचन के काम में लग गयी और शंकर सामान लगाने लगा. और फिर सुनीति का हाथ बँटाने लगा.

सुनीति: “बात हुई सलोनी से? ठीक से है.”
शंकर: “हाँ दीदी, सुबह हुई थी. सब अच्छा है. अपने घर भी गई थी. आपने जो पैसे दिए थे अपने घर वालों को दे दिए.”
सुनीति: “और कुछ?”
शंकर: “आपके बाबूजी और माँ जी के यहाँ आने की बात हो रही है. अगले महीने आएंगे कह रही थी. दादाजी ने मना लिया उन्हें।”
सुनीति: “सच. और ये बात मुझे अब बता रहे हो. ओह माँ. ये तो बड़ी ख़ुशी का समाचार है.”
ये कहते हुए सुनीति ने शंकर को बाँहों में भरकर चूम लिया.

थोड़े ही समय में नाश्ता और खाना दोनों बन गए. शंकर से नाश्ता टेबल पर लगा दिया और घर के सदस्यों की प्रतीक्षा करने लगे. आधे घंटे में आशीष, असीम और कुमार आ गए और सब बैठकर नाश्ता करने लगे. आशीष ने देखा की सुनीति बहुत खिली हुई है.

आशीष: “क्या बात है, बहुत खुश लग रही हो.”
सुनीति: “बाबूजी ने पापा मम्मी को यहाँ आने के लिए मना लिया है. अगले महीने आएंगे.”
आशीष: “ये तो सच में बहुत ख़ुशी की बात है.”
कुमार: “मम्मी, नानी क्या अभी भी उतनी ही सुन्दर हैं?
सुनीति: “हाँ. और तेरे जैसे चार को संभाल सकती हैं इस उम्र में भी.”
असीम: “ठीक है माँ. हम दोनों संभाल लेंगे उन्हें.” कहते हुए दोनों भाइयों ने अपने एक एक हाथ जोड़कर ताली बजाई (हाई ५ किया).

आशीष सुनीति से: “ये साले नहीं सुधरेंगे। जहाँ चूत की बात हो, उछलने लगते हैं.”
असीम: “अरे पापा, आप भी मन मन में खुश हो रहे हो. है न.”

बस यूँ ही चुहल में नाश्ता समाप्त करने के बाद सब अपने काम के लिए निकल पड़े. अब शंकर और सुनीति घर में अकेले ही थे. सामान समेटकर, किचन की सफाई करने के बाद शंकर ने अपने लिए एक और चाय बनाई. शंकर चाय लेकर बैठक में गया जहाँ सुनीति फोन पर गीता से बात कर रही थी.

सुनीति: “.. अगर अभी आने को बोल रहे थे तो आ ही जाते.”
गीता:””
सुनीति: “बात तो पापा की भी सही है, चलो अब जितना जल्दी हो सके आ जाओ. बहुत याद आती है, सच में.”
गीता:””
सुनीति: “अरे रे रे रे. पापा और बाबूजी जब भी मिलते हैं हमेशा ऐसा ही करते हैं. चलो ऐसा करो तुम मालिश करवा लो नाऊन को बुलाकर. सलोनी की भी करा देना. और आराम करो. बाद में फिर बात करेंगे.”

शंकर: “क्या हुआ दीदी, सब कुशल मंगल है न?”
सुनीति चाय की चुस्की लेते हुए : “हाँ सब ठीक है. पापा और बाबूजी जब साथ होते हैं तो कई बार बहुत बेदर्दी से चोदते है. मम्मी वही कह रही थीं. दोनों ने रात भर मम्मी और सलोनी के सारे बदन को तोड़ डाला. मम्मी की उम्र भी वैसी नहीं कि ऐसी पहलवानी करें. पर सलोनी ठीक है, मम्मी ने बताया.”

शंकर अपनी चाय पीते हुए: “सलोनी तो और खिल गई होगी. जब असीम और कुमार के पास से आती है तब उसकी चाल भी बदली होती है और चेहरे की चमक भी. और ये दोनों भी बहुत बेरहमी से चोदते है, आप तो जानती ही हो.”

सुनीति की चाय समाप्त हो चुकी थी, उसने प्याला एक ओर रखा.
सुनीति: “हाँ जानती हूँ. कल तो मैंने दोनों मुश्टण्डों के लंड अपनी चूत में एक साथ लिए थे. सोचकर फिर पनियाने लगी है.” सुनीति ने अपने नाईट गाउन को घुटनों के ऊपर उठाकर अपनी चूत पर हाथ फिराते हुए कल की चुदाई को याद किया.

“मैं कुछ सहायता करूँ, दीदी” शंकर ने अपना प्याला एक और रखकर पूछा. उसे समझ आ चुका था की ये वृत्तांत किस ओर अग्रसर है.
“इसमें पूछने जैसी कोई बात ही नहीं है.”
शंकर ने सुनीति के पांवों के बीच में बैठकर जांघों को अलग करते हुए चूत का अवलोकन किया.
“हम्म्म, लगता है कल तगड़ी चुदाई हुई है, दीदी. बहुत सूजी हुई लग रही है ये तो.”
“सूजेगी नहीं क्या. दो दो लंड एक साथ पेले थे इसमें.”

शंकर ने चूत की फांकों पर अपनी जीभ फिराई। और फिर धीरे धीरे चाटने शुरू किया. सुनीति ने सोफे पर अपना सिर पीछे करते हुए अपने पांव और फैलाये और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया. शंकर ने अपना कार्यक्रम चालू रखते हुए अब सुनीति की गांड से चूत तक चाटना शुरू किया. सुनीति के शरीर में एक झुरझुरी से उठी. और उसने अपने आसन को बदल कर अपनी गांड उठाकर शंकर के कार्य को सरल कर दिया. शंकर ने भी अपनी चाटने की प्रक्रिया को थोड़ा और तेज किया और अब वो अपनी जीभ से गांड और चूत की फांकों को कुरेद रहा था. पहले वो गांड के भूरे सितारे पर अपनी जीभ से चाटता और फिर चूत और गांड के बीच की लकीर को चाटते हुए चूत पर पहुँचता जहाँ वो पंखुडियों को चाटकर, जीभ से चूत के अंदर थोड़ी सी चटाई करता और भग्नासे के दाने को होंठों से दबाकर मसलता. और यही क्रिया वो फिर से दोहराता.

अब सुनीति भी पूरी गर्मी में आ चुकी थी. उसकी चूत के पट खुल चुके थे और अब उसे कुछ बड़ी और कठोर वास्तु की अभिलाषा थी जो उसकी चूत को ठीक से भर सके.

“शंकर, अब तू मुझे चोद दे, बहुत बेचैन हो रही है ये.”

ये सुनकर शंकर ने अपने कपडे उतारे, उसका लंड इस घर के अन्य लोगों की तरह विशालकाय तो नहीं था पर छोटा भी नहीं था. उसने अपने लंड को सुनीति की चूत पर रखा और एक ही बार में पूरा अंदर धकेल दिया.

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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: कैसे कैसे परिवार

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जीवन का गाँव
पिछली रात:

जीवन: “सलोनी, जाकर जरा रसोई से तेल लेकर आओ.”

सलोनी काँपते पाँवों से रसोई में गई और दो कटोरियों में सरसों का तेल ले आई. उसने एक एक कटोरी बिस्तर के दोनों ओर रख दी. बलवंत उसे बड़ी ललचाई हुई आँखों से देख रहा था. जब तेल रखकर वो मुड़ी तो बलवंत ने उसे खींच कर अपनी गोदी में बिठा लिया. उसके मम्मों को दबाते हुए उसके चेहरे और होठों को चूमने लगा. इस प्रक्रिया से सलोनी का शरीर भी उसका साथ देने लगा और उसने भी अपने आप को बलवंत के शरीर से लपेट लिया.

जीवन: “बलवंत, इसकी गांड बहुत प्यार और कोमलता से मारना। इसको गांड मरवाने में मज़ा बहुत आता है, पर थोड़ी तंग गली है, तेरी मोटर ज्यादा तेज मत चलाना नहीं तो दोनों को मजा नहीं आएगा. एक बार खुल जाये फिर जैसे चाहो वैसे चला सकते हो अपनी गाड़ी.”

बलवंत: “इतनी मुलायम गांड को मैं कैसे दर्द दे सकता हूँ. सलोनी, चलो घोड़ी बन जाओ, पहले तेरी इस गांड को प्यार तो कर लूँ .”

सलोनी ने घोड़ी का आसान ग्रहण किया और बलवंत ने उसके पीछे आकर उसकी गांड को चाटते हुए उसकी चूत में एक उँगली डाल दी और उसे चोदने लगा. सलोनी की रोमांच से आह निकल गई. उधर जीवन ने भी गीता से उसी आसान में आने को कहा और गीता की गांड को चाट कर ढीला और गीला करने लगा.

जब बलवंत को लगा कि सलोनी की गांड अपेक्षित रूप से गीली हो चुकी है तो उसने तेल उठाया और अपने एक हाथ से गांड को फैला दिया. इससे गांड का भूरा छेद थोड़ा खुल गया. फिर बलवंत ने कटोरी से तेल की एक पतली धार के द्वारा सलोनी की गांड में तेल भरने का काम शुरू किया. ठन्डे तेल के प्रवेश से सलोनी की गांड कुलबुलाने लगी और उसे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. पर बलवंत इस खेल का अनुभवी खिलाडी था. उसने कटोरी एक ओर रखी फिर दोनों हाथों से सलोनी के नितम्ब जोड़े और गांड को सील करते हुए दोनों नितम्बों को एक दूसरे से विपरीत दिशा में हिलने लगा. इससे तेल गांड की गहराईओं में चला गया. फिर उसने अपनी एक ऊँगली गांड में डालकर उसे अंदर अच्छे से चलते हुए तेल को गांड की अंदरूनी त्वचा पर अच्छे से मला. तीन चार बार उसने तेल डालते हुए ये क्रिया दोहराई.

इसके बाद रुकते हुए उसने अपनी पारखी आँखों से अवलोकन किया और पाया कि अब सलोनी की गांड चुदने की स्थिति में आ गई है. फिर उसने तेल से अपने लंड की अच्छी मालिश की और इतना तेल लगा लिया जैसे नहा दिया हो. अब उसने अपने लंड को सलोनी की गांड पर रखा.

बिस्तर में दूसरी ओर भी गीता की गांड के साथ लगभग यही कर्म हुआ था. पर गीता की गांड पर इतना समय नहीं लगना था तेल से चिपड़ने में इसीलिए जीवन ने अपनी जीभ और उँगलियों से अधिक समय श्रम किया. और जब तक सलोनी की गांड पर बलवंत ने लंड रखा, जीवन ने भी उसी समय गीता की गांड पर अपने लंड को बैठाया. पर इस बार जुगलबंदी नहीं थी. और इसीलिए बलवंत बड़े संतोषी गति से सलोनी की गांड में अपना लंड उतारने लगा. अभी उसके सुपाड़े ने अंदर प्रवेश पाया ही था कि जीवन ने तीन चार धक्कों में ही अपना लंड गीता की वृद्ध गुदा में पेल दिया.

बलवंत: “सलोनी, ठीक तो है न तू?” जब लंड पूरा गांड में अच्छे से बैठ गया तब उसने पूछा.
सलोनी: “बिल्कुल भाई साहब. और सुनिए, मैं पहली बार गांड में नहीं ले रही हूँ, आप अपने ढंग से मारिये. मुझे गांड मरवाने में मजा तो बहुत आता है, पर बेरहम तरीके से नहीं.”

बलवंत ये सुनकर खुश हो गया. उसने अपने अपने लंड को आगे पीछे करते हुए मिनट भर में ही सलोनी की गांड को अपने पूरे लंड से पैक कर दिया. अब सलोनी को ऐसा लग रहा था कि ये चला तो गया पर अब चलेगा कैसे? पर इसके लिए उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. तेल से सनी गांड में लंड आसानी के साथ चलने लगा. उसकी तंग गली में इस घर्षण से एक अजीब सी अनुभूति होने लगी. जब लंड बाहर होता तो जिस स्थान को छोड़ता वहां सलोनी को खुजली सी लगती, जिसे तत्क्षण बलवंत का लौड़ा वापिस घुसते हुए मिटा देता.

पर जीवन के ऊपर ऐसा कोई अंकुश नहीं था, और गीता भी गांड मरवाने में महारथ प्राप्त किये हुए थी. उसने बलवंत और उनके मित्र मंडल के अन्य चार मित्रों के लंड अपनी गांड से निकाले थे. और उसे जीवन का ये वहशियाना चुदाई का ढंग बहुत रास आता था. सिर्फ जीवन ही उसके गांड के पेंच ढीले करता था, अन्य सभी उसे एक गुड़िया या बुढ़िया के रूप में ही चोदते थे. पर जीवन में ऐसी कोई दया नहीं थी. यही कारण था कि वो उसके आने की राह देखती थी. और इस समय जीवन उसके इस लम्बे अंतराल का एक एक पल वसूल रहा था. उसके लंड के लम्बे और भयावह धक्के किसी और स्त्री की आत्मा कँपा देते. पर गीता इस समय कामान्धता के स्वर्ग में विचरण कर रही थी.

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अग्रिमा का खेल:

अब ये तो हो नहीं सकता कि सारा परिवार रंगरेलियों में लिप्त हो और अग्रिमा इससे दूर रहे. उसने ये तो सच ही कहा था कि उसके मित्र उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे, पर वो कौन थे ये उसने नहीं बताया.

अग्रिमा अपनी सहेली मोना और तीन पुरुष मित्रों के साथ इस समय एक घर की बैठक में थे. ये घर उनमे से किसी का भी नहीं था और मोना ही उन्हें यहाँ लेकर आयी थी. तीनों लड़के उनके ही साथ के थे. जब ये तय हुआ कि सेक्स किया जाये तो मोना ने तीनों लड़कों को कपडे उतार कर एक कमरे में जाने के लिए कहा.

“तुम लोग कपडे निकालकर उस बेडरूम में चलो, मैं और अग्रिमा बस ५ मिनट में आते हैं.” मोना ने कहा.

लड़कों को तो जैसे मिठाई मिल गई हो, उन्होंने तुरंत अपने कपड़े आनन फानन निकाले और जल्दी से कमरे में घुस गए. पर वहां का दृश्य देखकर वो ठिठक गए.

“हैलो बॉयज़! क्या मुझे ढूंढ रहे हो?” बिस्तर पर बैठी हुई एक अति सुन्दर अधेड़ स्त्री ने लुभावनी और आमंत्रण भरे स्वर में पूछा.
एक लड़का, “हमें मोना ने यहाँ आने को कहा और बोली कि वो भी आ रही है.”

स्त्री: “वो आएगी, पर जो पाने के लिए तुम तीनों आतुर हो वो मोना से नहीं, मुझसे मिलेगा.” उसने तीनों लड़कों की आँखों में ऑंखें मिलकर बताया. “क्या है न कि मोना लेस्बियन है, उसे लड़कों में कोई रूचि नहीं है. और मुझे तुम्हारी आयु के लड़कों में बहुत रूचि है. मेरा अर्थ समझ रहे हो न? उसने एक हाथ से अपने मम्मे और एक से अपनी चूत के पाटों को हटाकर सहलाते हुए बोला। “

लड़कों ने एक दूसरे की ओर देखा, और जैसा कि इस उम्र में होता है उनका निर्णय उनके खड़े होकर सलाम करते हुए लौंड़ों ने लिया, क्योंकि मिलती हुई चूत को ठुकराना बेवकूफी होती है.

“हम्म्म, लगता है तुम सबके लंड इसके लिए हाँ कह रहे हैं.” स्त्री ने मुस्कुराकर कहा. “क्या है न, मैं अपने किसी भी छेद से पक्षपात नहीं करती हूँ. इसीलिए ये सब तुम लोगों के लिए है.” उसने अश्चार्यजनक अंदाज़ में अपने दोनों पांव ऊपर उठाये और अपनी चूत और फिर गांड में ऊँगली डालकर अपना आशय साफ कर दिया. तीनों लड़कों की बांछे खिल गयीं. लड़कियाँ चुदवा तो लेती थीं पर मुंह में लेने में बहुत नखरे करती थीं. और गांड! उसे तो भूल ही जाओ. कोई बिरली ही होती थी जो उसे छूने भी देती थी.

“तो क्या कहते हो? खेलोगे या जा रहे हो?”

तीनों ने एक स्वर में उत्तर दिया: “खेलेंगे!”

लगभग तभी मोना और अग्रिमा ने भी निर्वस्त्र उस कक्ष में प्रवेश किया. और कुछ ही समय में सब अपने अपने खेल में व्यस्त हो गए. इस समय अग्रिमा अपनी अंतरंग सखी मोना के बिस्तर में थी. मोना और वो दोनों इस समय नंगी अवस्था में एक दूसरे की चूत चाट रहे थे. दोनों की घुटी सिसकियाँ कमरे में गूंज रही थी. कमरे में थप थप की ध्वनि में इनकी सिसकियाँ दब जा रही थीं. और ये थप थप मोना के ही पास चल रहे एक द्वन्द युद्द के कारण आ रही थीं जहाँ मोना की ताईजी इस समय तीन लड़कों से एक साथ चुदवा रही थी.

मोना की ताईजी उसे नए नए लड़के फंसा कर उसकी शरीर की भूख शांत करने के लिए प्रयोग में लाती थी. मोना को लड़कों में कोई भी रूचि नहीं थी क्योंकि वो पूर्ण रूप से समलैंगी थी. और इसी कारण वो लड़कों को चूत का प्रलोभन देकर लाती थी. उसकी ताई को जवान लड़कों का चस्का तब लगा था जब वो कॉलेज प्रोफ़ेसर थीं. परन्तु उनकी इस बात का पता लगने पर उन्हें हटा दिया गया था. पर उनकी आग आज भी वैसे ही प्रज्ज्वलित थी. और उन्होंने मोना को अपने इस शौक को पूरा करने में उपयोग किया. लड़कों को ये नहीं पता होता था कि वो चूत उसकी ताई की है. और तो और इसके लिए मोना को उसकी ताई पैसा भी देती थी जो उसकी माँ उसे नहीं देती थी. लड़कों को भी पैसा मिलता था अगर वो ताईजी की भूख को शांत कर पाते थे. और वापिस लौटने का न्योता भी. इस कारण वो ये रहस्य सदैव गुप्त ही रखते थे. और मोना नए नए शिकार लाने में कोई समस्या नहीं होती थी.

जहाँ तक अग्रिमा की बात थी तो उसे घर में ही इतने लंड मिले हुए थे कि बाहर देखने जी कोई आवश्यकता ही नहीं थी. पर उसे मोना की साथ सम्बन्ध में कोई परेशानी नहीं थी. एक तो ये कि मोना इस कला में निपुण थी और दूसरा ये कि उसे ऐसे वातावरण में इस प्रकार के सेक्स में आनंद आता था जब उसे पता होता था कि हर लड़का उसे लालच भरी आँखों से देख तो सकता था पर इससे अधिक और कुछ पाना उसके लिए संभव नहीं था. उस समय भी मोना की जीभ एक साँप की जीभ की भांति उसकी चूत में उथल पुथल मचा रही थी. और यही सुख अग्रिमा भी मोना को दे रही थी.

मोना की ताईजी के मुंह में एक लंड था तो एक उसकी चूत में. और तीसरा उसकी गांड के परखच्चे उड़ा रहा था. ये लंड सामान्य आकार के ही थे और ताईजी को एक अच्छी ताल में चोद रहे थे. उनके मोटे और लम्बे लौडों की भूख मिटाने के लिए उन्होंने अन्यत्र आयोजन किया हुआ था. परन्तु उनके शरीर की आग इतनी धधकती थी कि उन्हें बीच बीच में दूसरे लौंड़ों से भी अपनी भूख मिटानी पड़ती थी.

अग्रिमा की इस वातावरण से इतना उत्तेजना बढ़ती थी और यहाँ भी उसे मोना की उँगलियाँ, होंठ और जीभ एक स्तर तक संतुष्ट कर देते थे.

(१. यह प्रकरण आगे की कहानी में एक अहम् भूमिका निभाएगा, परन्तु यहाँ इसका उपयोग बस इतना ही है.
२. अनाम ताईजी से या तो आप मिल चुके हैं या जल्द ही दोबारा मिलेंगे.)

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सुनीति के घर

शंकर जानता था की इस समय की चुदाई में सुनीति को एक तेज और जल्दी वाली चुदाई की कामना होती है. और वही वो उसे प्रदान कर रहा था. सुनीति ने केवल अपना गाउन ऊपर किया हुआ था और शंकर ने भी केवल अपनी पैंट ही निकाली थी. और शीघ्र ही सुनीति और शंकर दोनों ही झड़ गए. सुनीति उठकर बाथरूम में नहाने चली गई और शंकर अपने आउट हाउस में. दोनों का ये एक प्रकार से नित्यकर्म था. सुनीति को दिन में न कितनी बार चुदाई की भूख लगती थी. ये तो घर में इतने पुरुष थे जो उसकी इस आग को बुझा पाते थे अन्यथा न जाने क्या न कर बैठती.

अपने कमरे में नहा धोकर वो थोड़ी देर के लिए टीवी देखने लगा की तभी भाग्या का फोन आ गया. उसने बताया कि सूरज तीन दिन के लिए किसी काम से बाहर जा रहा है तो उसने अपनी सास से घर आने की अनुमति ले ली है. उसने ये भी कहा कि वो शाम के पहले आ जाएगी और किसी से बताये नहीं क्योंकि वो अपने ही कमरे में रहना चाहेगी. बात समाप्त होने के बाद शंकर टीवी देखते हुए कुछ देर के लिए सो गया और फिर उठकर मुख्य घर में शेष कार्य संपन्न करने के लिए आ गया.

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जीवन का गाँव
रात अभी बाकी है

“मारो मेरी गांड, फाड़ दे इसे. तेरे जैसा लौड़ा पाकर ये धन्य हो गई. जोर से कर हरामी. बुढ्ढा हो गया क्या तू? अपने नातियों से मरवानी है ये गांड, उसके लिए तो खोल दे.” गीता भावावेश में चिल्ला रही थी. ये तो अच्छा हुआ कि वो शयनकक्ष में थे नहीं तो मोहल्ले वाले खिड़की से झांक रहे होते.

सलोनी के मुंह से इस स्थिति में भी हंसी निकल गई. उसकी गांड में बलवंत लम्बे धक्के लगा रहा था, पर जहाँ उनकी लम्बाई पूरी थी उनमें वो तीव्रता नहीं थी. एक लय से वो गांड में अपने लंड को चला रहा था. हालाँकि सलोनी इससे तेज गति भी झेल सकती थी और वस्तुतः उसमें आनंदित भी होती, परन्तु उसने अधिक वीरता न दिखाने में ही अपनी भलाई समझी.

सलोनी की हंसी सुनकर धक्कों से उखड़ी साँस के बीच गीता चिढ़ कर बोली,”तू . . क्यों . . हंस .. रही .. है… माँ .. की…. लौड़ी?”

सलोनी: “माँ जी, आप जो बाबूजी को कह रही हो न नातियों से गांड मरवाने की बात, सच कहूँ तो आप वैसा न ही करना अगर खैरियत चाहती हो. उनके नीचे आकर अगर आपने उन्हें अगर ऐसे ललकारा तो समझ लेना कि आपको बाथरूम जाने लायक भी नहीं छोड़ेंगे. सच कहूँ तो बाबूजी उनके आगे आपको दया की मूर्ति लगेंगे.”

गीता की गांड ये सुनकर फट गई, पर उसे इसका रोमांच भी आया. उसकी गांड, चूत और पूरे शरीर में उस समय के बारे में सोचकर एक सिहरन दौड़ गई. अब ऐसा नहीं था कि बलवंत और जीवन उसकी गांड दबा के नहीं मारते थे. पर ये भी सच था की उनकी उम्र के कारण वो झड़ने के बाद ठहर जाते थे. पर जवान लौंडे रुकने वाले नहीं थे, और न ही जल्दी झड़ने वाले थे. यही सोचकर गीता ने निश्चय किया कि समय आने पर वो उस आग में अवश्य घी डालेगी. और इस सोच के साथ उसकी चूत ने ढेर सारा छोड़ दिया. गांड भी अब उत्तेजना से लप्लपाने लगी.

जीवन ने भी ये स्पंदन अनुभव किया. उसे भी अब लग रहा था कि वो शीघ्र ही झड़ेगा. और इसीलिए वो लंड को गांड के पूरा बाहर लेकर छेद को खुलते बंद देखकर फिर लौड़ा पेलने लगा. पर अभी गति पर अंकुश लगा लिया था. कभी छोटे तो कभी लम्बे धक्कों के साथ ही उसका ज्वालामुखी फूट गया और उसने गीता की गांड मलाई से भर दी. लंड बाहर निकाल कर गीता की चौड़ाये हुए गांड के छेद को संतुष्ट भाव से देखते हुए वो उठकर एक ओर बैठ गया.

बलवंत भी अब कुछ ही देर और रुक पाया और फिर उसने भी अपनी मलाई से सलोनी की गांड को भर दिया. सलोनी को इस चुदाई से बहुत सुख मिला था. उसे गांड मरवाना बहुत पसंद था, और बलवंत ने जिस विधि से उसकी ली थी, उसमें प्यार और व्यभिचार का अनोखा संगम था. बड़ा लंड होने के बाद भी जिस आसानी से बलवंत ने उसकी गहराइयाँ नापी थीं वो सचमुच इस कला की चरम सीमा थी.

जीवन और बलवंत उठकर बाथरूम चले गए और धोकर नंगे ही बाहर बैठक में चले गए. गीता और सलोनी ने भी अपनी सूजी हुई गांड उठायीं और बाथरूम की और बढ़ी. जहाँ सलोनी साधारण गति से चल रही थी, गीता की चाल में एक लचक थी जिसका कारण संभवतः गांड की हालत थी. सलोनी ने उन्हें दया भरी आँखों से देखा और उनको सहारा देते हुए अंदर ले गई और सफाई करवाई.

“ये हरामी थोड़ा भी जोश दिलाओ तो जानवर ही बन जाता है.” गीता बोली.
सलोनी: “तो क्यों करतीं है ऐसा.”
गीता: “उसके बिना मजा भी नहीं आता. ये समझ कि गांड के कीड़े साफ कर दिए. और जो दर्द की टीस है, वही तो इस खेल का असली सुख है.”

सलोनी ने भी सफाई की और दोनों नंगी ही बाहर बैठक में चली गयीं.

*****************

सुनीति के घर

४ बजे दोपहर को भाग्या आ गयी और सीधे अपने घर में चली गई. इस समय शंकर घर में अकेला ही था. भाग्या जाकर उसके गले लग गई.
शंकर: “ क्या हुआ बेटी, सब कुशल मंगल तो है?”
भाग्या: “सब ठीक है. आप दोनों की बहुत याद आयी तो चली आयी.”
परन्तु शंकर समझ गया कि भाग्या कुछ छुपा रही है.
शंकर: “सच कह बिटिया, अभी तुझे गए हुए चार दिन भी नहीं हुए हैं.”
भाग्या: “जब ये चले जाते हैं तो देवर बहुत तंग करता है. मुझे डर है कि कहीं मेरी इज्जत न लूट ले किसी दिन.”
शंकर: “सूरज को बताया?”
भाग्या: “सीधे तो नहीं. वो मानेंगे नहीं कि ऐसा कुछ है.”
शंकर: “जा, तू आराम कर, मैं कुछ सोचकर बताता हूँ. अब चिंता मत कर.”
भाग्या इधर उधर देखते हुए : “माँ कहाँ है? इस समय तो घर पर ही रहती है.”
शंकर: “बाबूजी के साथ उनके गांव गई है. अगले हफ्ते लौटेगी.”
भाग्या: “ तब तो बेचारी की हालत ख़राब कर देंगे। आपने जाने क्यों दिया?”
शंकर : “पहली बात, कि मना करना ठीक नहीं था. और दूसरी कि सलोनी भी जाना चाहती थी. तेरे नाना नानी को भी बहुत दिन हो गए हैं किसी से मिले हुए.”
भाग्या: “बात तो ठीक है. पर यहाँ आप अकेले पड़ गए.”
शंकर: “अब तू जो आ गयी है. सब ठीक रहेगा. थोड़ा आराम कर ले फिर चाय बनता हूँ. मेरा काम पर जाने का समय हो जायेगा तब तक.”

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जीवन का गाँव
रात अभी भी बाकी है

बैठक में बैठे हुए सब बातें कर रहे थे.

जीवन: “वैसे तुम्हारे अगले महीने आने की योजना सही है. मैं कल सुबह अपने मैनेजर को बुला लूंगा और उसे काम समझा देना. उसकी मासिक आय को मैं संभाल लूंगा. मुझे नहीं लगता कि वो मना करेगा.”
गीता: “मेरी सुनीति से बात हुई, वो भी बहुत खुश हुई ये जानकर कि हम लोग आ रहे हैं.” फिर कुछ सोचते हुए, “भाईसाहब, आपको अगर कोई परेशानी न हो तो मैं कुछ कहूँ?”
जीवन: “क्यों नहीं भाभी, इसमें पूछने जैसी कोई बात ही नहीं.”
गीता: “मैं सोच रही थी कि सलोनी के माता पिता को भी ले चलें. वो भी कुछ दिन रह लेंगे अपने बच्चों के साथ. हफ्ते १० दिन में फिर लौट आएंगे.”
सलोनी की ऑंखें नम हो गयीं, पर वो कुछ बोली नहीं.
जीवन: “बिल्कुल ले कर आना. मैं बड़ी गाड़ी भेज दूंगा। पर ये ध्यान रहे कि हमारे संबंधों के बारे में उन्हें कोई भी शक न हो. और जब तक वो रहें तब तक इन तीनों को अपने खेलों से दूर ही रहना होगा. ठीक है न सलोनी.”
सलोनी: “बाबूजी, आप सचमुच देवता हैं. मैं कल ही माँ से बात करूँगी। “
गीता: “वो तुम मुझपर छोड़ दो, मुझे विश्वास है कि वो मेरी बात नहीं टालेंगे.”

कुछ देर और यूँ ही बातें करने के बाद सलोनी ने सोने जाने की अनुमति मांगी और जाकर अपने कमरे में लेट कर सो गई.

“तो भाभी, अब हम दोनों के बीच में तुम अकेली ही बची हो.”
“तो क्या हुआ, मैं अभी भी तुम दोनों को धूल चटा सकती हूँ. चलो मैदान में.”

और इसी के साथ सब लौट कर शयन कक्ष में आ गए और अपने कपडे उतारकर नंगे हो गए.

गीता बिस्तर पर बैठकर सामने खड़े दोनों विशालकाय लौंड़ों को चूस रही थी. एक बार एक और दूसरी बार दूसरा. पहले को मुंह से निकालकर वो उसे अपने हाथों से रगड़ देती और दूसरे को चूसती. इस प्रकार उसने लगभग ५-७ मिनट दोनों को अच्छे से चूस और चाटकर तान दिया. अब दोनों ही लंड उसके शरीर के दो छेदों में प्रविष्ट होने के लिए उत्सुक थे.
जीवन: “तुझे क्या चाहिए, बलवंत ?”
बलवंत अनकहे प्रश्न को समझ गया.
बलवंत: “तुमने तो इस बुढ़िया की गांड मार ही ली है एक बार, अब मुझे मारने दे.”
जीवन: “बिल्कुल ठीक.”
उसने गीता को खड़ा किया और उसका एक गहरा चुम्बन लिया.
जीवन: “भाभी, अब तुम्हारा सर्वप्रिय खेल खेलें?”
गीता: “अरे भाई साहब, जब से आप आये हो मैं इसी समय की राह देख रही थी. अब लेट जाओ जिससे मैं अपनी चूत में आपके लौड़े को डाल सकूँ। फिर सुनीति के बाबूजी मेरी गांड में अपना लंड डाल देंगे.”

जीवन बिस्तर पर लेट गया जहाँ उसका लंड छत को ताक रहा था. गीता ने उसके ऊपर दोनों पांव फैलाकर बैठते हुए उसका लंड अपनी चूत में ले लिया. और पूरा अंदर जाने के बाद आगे की ओर झुक गई. जीवन ने उसकी पीठ पर अपने हाथों से शिकंजा बनाया और उसे अपनी ओर खिंच लिया. गीता के स्तन जीवन के मजबूत सीने से जाकर जुड़ गए. बलवंत ने कटोरी में बचा तेल अपने लंड पर मला और थोड़ा तेल गीता की गांड पर डालकर उसे भी चिकना कर दिया.

बलवंत: “इस बुढ़िया के आज सारे पेंच ढीले करने हैं, जीवन. बहुत फुदकती है ये लंड के लिए.”

ये कहते हुए बलवंत ने अपना सुपाड़ा अंदर डाला और सुपाड़ा फिट होते ही एक तगड़ा धक्का मारा. धक्का इतना तीव्र था कि उसका पूरा लौड़ा एक ही बार में गीता की गांड में पूरा जड़ तक घुस गया. इतना खेली खिलाई होने के बावजूद गीता की चीख निकल गई. बलवंत हमेशा बहुत प्यार से गांड मरता था, पर आज उसने ऐसी दरिंदगी दिखाई कि गीता की आँखों के आगे तारे नाचने लगे. उसकी चीख से बगल के कमरे में सो रही सलोनी की आंख खुल गई. परन्तु उसे समझ आ गया कि क्या चल रहा है और वो मुस्कुराते हुए दोबारा सो गई.

अब जब दोनों लंड गीता की चूत और गांड में पूरे धंसे हुए थे तो गीता को एक अलग ही अनुभव हो रहा था. यही वो अनुभव था जिसके लिए उसका शरीर इतने समय से व्याकुल था. दोनों छेदों के बीच की पतली झिल्ली इस समय दो ओर से दबी हुई थी और उस समय की प्रतीक्षा कर रही थी जब उसकी दोनों ओर से घिसाई होगी.

बलवंत: “जीवन कैसे चलना है?”
जीवन: “उल्टा सीधा.”

बलवंत समझ गया कि इसका क्या अर्थ है. उल्टा अर्थात जब एक लंड अंदर जायेगा तब दूसरा बाहर आएगा. सीधा अर्थात दोनों एक साथ अंदर बाहर होंगे. और इन दोनों के जोड़ का अर्थ ये कि कुछ बार उल्टा चलेगा और फिर सीधा. उनके इतने वर्ष के अनुभव में ये मिश्रण चुदने वाली महिला को अत्यधिक सुख देता था, क्योंकि उसका शरीर लगातार एक उधेड़बुन में रहता था कि आक्रमण किस प्रकार का होगा. जीवन और बलवंत ५ धक्कों से इस विविधता का आरम्भ करते थे और हर परिवर्तन में उसे दो धक्कों से बढ़ा देते थे. अर्थात ५ उल्टे , ७ सीधे, ९ उलटे ११ सीधे. इसको पांच बार दोहरा कर फिर ५-७-९-११ शुरू हो जाता था.

गीता इस मेल में कई बार चुद चुकी थी और अथाह आनंद अनुभव कर चुकी थी. और इन दोनों के सिवाय कोई और नहीं था जो इस लय को इतनी सटीकता से निभा सकता. आज वो फिर उसी सुख के लिए अपने को तैयार कर रही थी.

और इसी के साथ जीवन और बलवंत ने अपना समागम प्रारम्भ किया. जीवन का लंड चूत में घुसता तो बलवंत का लंड गांड से बाहर निकलता. निश्चित गणना के पश्चात्, दोनों के लंड एक साथ अंदर जाते और बाहर निकलते. यही क्रम एक बढ़ते हुए क्रम में चलता फिर अचानक निचले क्रम को पकड़ लेता. गीता इस समय कामोत्कर्ष की चरम सीमा पार कर चुकी थी. उसकी चूत से बहती हुई धार उसकी जांघों और बिस्तर को भिगा रही थी. पर न उसका मन अभी भरा था न ही उसका शरीर हार मान रहा था.

दूसरी ओर जीवन और बलवंत भी अपने लौंड़ों को गीता की चूत और गांड के बीच की पतली झिल्ली अनुभव कर रहे थे. और ये कहना गलत नहीं होगा कि ये घर्षण उनके आनंद में चार चाँद लगा रहा था. गीता का मस्तिष्क इस विविधता का गणित समझने में सक्षम नहीं था. वो तो केवल उस केंद्र से उठती हुई आनंद की अनंत संवेदनाओं से ही अपने आप को प्रफुल्लित कर रहा था.

जीवन ने तभी बलवंत से कहा: “भाई, अब बस सीधे.” और इसी के साथ दोनों लौड़े अपने अपने गंतव्य में एक साथ अंदर और बाहर होने लगे. इसका अर्थ ये भी था कि जीवन का अब रस निकलने वाला ही था. जब इस क्रम के १० -१५ धक्के हो चुके तो जीवन ने कहा.

“भाभी, कहाँ छोड़ना है?”
“हम्प्फ हम्प्फ मेरे हम्प्फ मुंह में हम्प्फ हम्प्फ हम्प्फ।”

ये सुनकर दोनों ने अपनी गति सामन्य की और फिर धीमी करते हुए पहले बलवंत ने अपने लौड़े को गीता की गांड से निकाला और हट गया. गीता ने भी रूककर अपने आपको बहुत संभाल कर जीवन के लंड से अलग किया और बिस्तर के किनारे बैठ गयी. जीवन भी उठा और उठकर गीता के सामने फिर खड़ा हो गया. अब दोबारा से गीता ने दोनों के लंड चाटते हुए चूसना शुरू कर दिया. पर अब दोनों अपने लक्ष्य पर पहुँच चुके थे. पहले जीवन ने अपने गाढ़े सफ़ेद रस से गीता का मुंह भर दिया. गीता ने एक बूँद भी बेकार नहीं जाने दी. और जब तक उसने उसका सेवन पूरा करके बलवंत के लंड को मुंह में डाला तो बलवंत ने भी उसके मुंह को मलाई से भर दिया.

अंततः, सब अपने अपने लक्ष्य को पाकर संतुष्ट थे. कुछ मिनट यूँ ही सुख की अनिभूति करने के बाद गीता बोल उठी.

गीता: “यहाँ सोना संभव नहीं, पूरा बिस्तर गीला है, चलिए दूसरे शयनकक्ष में सोते हैं.”

तीनों यूँ ही नंगे दूसरे कमरे में सोने के लिए चले गए.

*****************


अग्रिमा का खेल:

अग्रिमा २ बजे तक अपने घर पहुँच गयी. मोना और उसने एक दूसरे को कई बार संतुष्ट किया था. फिर जब तीनों लड़के चले गए तो मोना की अतृप्य ताई ने भी दोनों की चूत चूसकर उन्हें एक बार और तृप्त किया. आने के पहले ताईजी ने मोना को ५००० रुपये भी दिए. तीनों लड़कों को भी उन्होंने २-२००० दिए थे. ये इस बात की भी गारंटी थे कि वे बात फैलाएंगे नहीं. और उन्हें अगले सप्ताह इसी दिन फिर आमंत्रित किया था.

अग्रिमा घर आकर स्नान करके अपने कमरे में जाकर सो गई. आज न वो कॉलेज गई न काम पर.

*****************

सुनीति के घर

शाम हो चुकी थी. अब आज क्या होगा ये बताना इस समय संभव नहीं. पर आज कुछ न कुछ तो होगा ही.


क्रमशः
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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Re: कैसे कैसे परिवार

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तीसरा घर: शीला और समर्थ सिंह
अध्याय ३.२


शीला का घर:

दिंची क्लब के आयोजन के लगभग एक सप्ताह बाद, सांय काल में समर्थ और शीला अपने घर की बैठक में बैठे हुए थे. उनका ६५” का OLED टीवी इस समय चल रहा था और दोनों उसपर चल रहे कार्यक्रम को देख रहे थे. ये कार्यक्रम उनके ही घर के एक कमरे से प्रसारित हो रहा था. और जैसा कि आप जानते हैं कि समर्थ के घर का हर कमरा वीडियो कैमरों से सज्जित था. और इस कार्यक्रम के कलाकार भी उनके ही परिवारजन थे.

टीवी पर इस समय उनकी छोटी बेटी का फिल्मांकन हो रहा था. सुरेखा की चूत में नितिन ने अपना लौड़ा डाला हुआ था और उसका मुंह निखिल के लंड से भरा हुआ था. सुप्रिया पीठ के बल लेटी हुई थी और उसका चेहरा बहुत ही समीप से दिख रहा था. दोनों भाई उसे बड़े प्यार से चोद रहे थे और सुरेखा भी इसका आनंद ले रही थी. सुप्रिया आज ऑफिस अपने ही घर चली गई थी. परन्तु सुरेखा आ गयी थी दोपहर में ही. और निखिल और नितिन के आने के पश्चात् सुरेखा उनके साथ एक शयनकक्ष में चली गई थी.

शीला: “सुरेखा ने किसी प्यासी मछली के समान हमारी जीवन शैली को अपना लिया है. अब उसे भी चुदवाने में बहुत आनंद आता है. बेचारी न जाने कितने दिनों से प्यार की भूखी थी.”

समर्थ: “मुझे तुम्हें कुछ बताना है.” उसका स्वर गंभीर था.
शीला: “ऐसा क्या है जो बताने के पहले पूछ रहे हो. सब ठीक तो है.”
समर्थ खड़ा होते हुए: “नहीं, सब ठीक नहीं है.” ये कहकर वो अपने घर में बने ऑफिस में गया और एक लिफाफा ले कर आया और शीला के हाथ में दिया.
समर्थ: “मैंने अपनी सिक्युरिटी कंपनी के द्वारा नागेश की जासूसी करवाई, पिछले दस दिनों में. अभी भी चल रही है.”

शीला ने लिफाफा खोला तो हतप्रभ रह गई. इसमें नागेश अपने विदेश दौरे पर अन्य लोगों के साथ सम्भोग में सलग्न था. पर आश्चर्य की बात ये थी कि वो स्त्रियों नहीं बल्कि दूसरे आदमियों के साथ लिप्त था. कहीं वो लंड चूस रहा था तो कहीं गांड मरवा रहा था.

समर्थ: “मैंने अपने वकील से सुरेखा की ओर से तलाक का नोटिस बनवा दिया है. जब वो वापिस आएगा तब उसे वो सौंप दिया आएगा. इन चित्रों के साथ. मुझे नहीं लगता कि वो कोई आपत्ति करेगा. उसे शहर छोड़ने के लिए मैंने कुछ राशि का प्रबंध किया है. उसकी कंपनी के MD से भी बात की है, वो उसे दूसरे शहर स्थानांतरित कर देंगे. मैंने उन्हें कारण नहीं बताया पर उन्होंने मेरी विनती स्वीकार कर ली है.”

शीला: “पर सुरेखा?”
समर्थ: “तुम्हें उससे बात करनी है. मेरा कुछ कहना अभी सही नहीं होगा. मुझे नहीं लगता कि सुरेखा वैसे भी उसके साथ रहना चाहती है, और ये देखकर तो बिल्कुल ही नहीं. मुझे एक बात की संतुष्टि है.”
शीला: “क्या?
समर्थ: “अब चूँकि इन दोनों में कई महीनों से शारीरिक सम्बन्ध नहीं हैं, तो सुप्रिया किसी भी प्रकार के सेक्स रोग से बच गई.”
शीला: “मैं आज ही रात को सुरेखा से बात करती हूँ.”

************

सुप्रिया का घर:

सुप्रिया अपने घर आज एक अलग ही आशय से गई थी. उसने आज अपनी भांजी संजना को अपने घर कुछ बात करने के लिए आमंत्रित किया था. संजना, मौसी के घर निर्धारित समय पर पहुँच गई. सुप्रिया मौसी को वो बहुत पसंद करती थी. उनका स्वभाव और उनकी सुंदरता ने उसे सदा प्रभावित किया था. पर आज अकेले बुलाये जाने का उसे रहस्य नहीं समझ में आया.

सुप्रिया ने उसे घर में अंदर बुलाया और दोनों बैठकर पहले तो संजना की पढाई के बारे में बातें करते रहे. संजना की बातों से उसके बिज़नेस में रूचि तो समझ में आ गई. फिर सुप्रिया ने अपनी बात उस ओर मोड़ी जिसके लिए संजना को बुलाया था.

सुप्रिया: “आजकल सुरेखा का मूड कैसा है. मैंने देखा था कि कुछ दिन पहले तक वो बहुत उखड़ी हुई रहती थी.”
संजना: “पता है मौसी, अब तो लगता है की मम्मी बिल्कुल बदल गयी हैं. जहाँ हम दोनों को बात बात पर डाँट देती थीं, अब तो बहुत प्यार और संयम से समझाती हैं. जो भी हुआ है, उनके लिए बहुत अच्छा है.”
सुप्रिया: “हम्म्म्म, मेरे विचार से मुझे पता है क्या हुआ है.”
संजना: “क्या मौसी?”
सुप्रिया: “मैं वो भी बता दूँगी। और तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड वगैरह है या नहीं?”
संजना: “नहीं मौसी, दोस्त तो बहुत हैं, पर बॉयफ्रेंड लायक कोई नहीं. और वो दोस्त भी हैं या नहीं मुझे पता नहीं. हमेशा ऐसे देखते हैं जैसे मुझे नंगा कर रहे हैं.” कहते हुए संजना ने अपने मुंह पर हाथ रख दिया अपितु कोई गलत बात निकल गई हो मुंह से.”
सुप्रिया: “इसमें शर्माने वाली कोई बात नहीं, संजना. इस आयु में लड़कों को हर लड़की में एक ही आकर्षण होता है. और आजकल ऐसा भी नहीं कि लड़कियां इससे दूर भागती हैं. तुम्हारी कुछ सहेलियां तो अवश्य इसका लाभ उठाती ही होंगी.”
संजना: “जी मौसी, कुछ ने तो ४-४ बॉयफ्रेंड रखे हुए हैं.”
सुप्रिया: “इसमें कोई गलत नहीं है. ये जवानी दोबारा तो आनी नहीं, तो जितना हो सके उसका मज़ा लेना चाहिए.”
संजना ने आश्चर्य से मौसी को देखा.
संजना: “मौसी, आपको ये गलत नहीं लगता?”
सुप्रिया: “किंचित भी नहीं. जब मैं तुम्हारी उम्र की थी तो मेरे तो ६ बॉयफ्रेंड थे.” और फिर थोड़ा आगे झुककर संजना के पास आकर कुछ षड्यंत्रकारी स्वर में, “और इतनी ही गर्लफ्रेंड भी थीं.”
संजना स्तब्ध रह गई.
संजना, “मौसी, गर्लफ्रेंड यानि?”
सुप्रिया ने अपने हाथ को संजना की जांघ पर हल्के हल्के चलते हुए उत्तर दिया, “हम्म्म्म! जो तुम समझ रही हो वो सच है. और पता है मेरी सबसे अच्छी गर्लफ्रेंड का नाम क्या था?”
संजना: “नहीं.”
सुप्रिया ने फुसफुसाकर बोला, “सुरेखा. सुरेखा था नाम उसका.”
संजना को काटो तो खून नहीं.
संजना: “मम्मी!”
सुप्रिया ने सिर हिलाकर मुस्कुराकर हामी भरी.
संजना: “आप तो बहनें हैं फिर कैसे.”
सुप्रिया: “क्योंकि सबसे बड़ा सुख शारीरिक होता है. और हम साथ ही सोती थीं, तो कोई समस्या ही नहीं थी.”
संजना सोच में डूब गई. उसे कभी सपने में भी ये विचार नहीं आया था की उसकी माँ लेस्बियन सम्बन्ध में कभी रही होगी. और तो और वो भी उसकी मौसी के साथ. तभी उसे दूर से किसी के बोलने की आवाज़ आयी. शायद मौसी उससे कुछ कह रही थीं. उसने उनकी बात पर ध्यान दिया.

सुप्रिया: “कहाँ खो गयीं, मेरी बात सुनी?”
संजना: “नहीं मौसी, सॉरी मैं कुछ सोच रही थी.”
सुप्रिया ने संजना की जांघ पर हाथ चलते हुए उसकी चूत के ऊपर रोक दिया. संजना उनकी ओर एकटक देख रही थी.
सुप्रिया: “मैंने कहा कि मैं चाहती हूँ की हम दोनों भी वैसे ही प्यार करें.” ये कहकर वो रुक गई और संजना की प्रतिक्रिया देखने लगी. संजना ने उत्तर नहीं दिया पर सुप्रिया के हाथ को हटाया भी नहीं.

फिर संजना हकलाते हुए बोली, “पर मम्मी को पता लगा तो.....”
सुप्रिया ने अपने हाथ से संजना को चूत पर दबाव बनाकर कहा, “ कौन बताएगा? और सच कहूँ तो वो स्वयं तुम्हारी इस मिठास को चखना चाहेगी.” ये कहते हुए सुप्रिया ने संजना के होंठ चूम लिए.

कुछ ही क्षणों में ये चुम्बन प्रगाढ़ हो गया. संजना की प्रतिक्रिया को स्वीकारात्मक समझते हुए सुप्रिया खड़ी हो गई और अपना हाथ संजना की ओर बढ़ाया.

सुप्रिया, “बेबी, ये सही स्थान नहीं है. मेरे कमरे में चलते हैं.”
संजना वशीभूत सी होकर सुप्रिया के साथ उसके कमरे में जा पहुंची. सुप्रिया ने दरवाजा बंद किया और अपने कपडे निकालने लगी और पालक झपकते ही वो संजना के सामने पूरी नंगी खड़ी थी.

फिर वो संजना की ओर बढ़ी और उसका चेहरा हाथ में लेकर प्यार से बोली, “शर्मा मत मेरी गुड़िया, तुमने कभी किसी स्त्री के साथ कुछ भी नहीं किया न?”
संजना ने न में सिर हिलाया.
सुप्रिया: “तुम्हें आज से मैं वो सब सिखाऊँगी जो तुम्हें सीखना चाहिए.” कहते हुए सुप्रिया ने संजना के वस्त्र उतारने शुरू किये. पर जब सुप्रिया का हाथ उसकी पैंटी पर पड़ा तो संजना ने उसका हाथ पकड़ लिया.

संजना: “मौसी, ये गलत नहीं है न?”
सुप्रिया: “बिल्कुल भी नहीं.” ये कहकर उसने संजना को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी पैंटी भी अलग कर दी. संजना की एकदम मलाईदार बुर अब उसके सामने थी. और उसे देखकर ये भी समझ आ गया की संजना एक अछूती कली है. उसने अपने भाग्य को धन्य माना जो उसे ऐसी बुर को भोगने का पहला अवसर मिला था.

उसने दोनों पंखुड़ियों को थोड़ा सा खोला और अपनी जीभ से बुर पर चमक रही नमी को चाट लिया.

************

शीला का घर:

निखिल कुछ देर में नंगे ही बैठक में आया, उसके चेहरे पर पसीना चमक रहा था और एक संतुष्टि का भाव भी.

निखिल: “मौसी बहुत कमाल की हैं. मेरे लंड का पानी पूरा निचोड़कर पी गयीं.”
शीला: “क्या हुआ, तूने उसे चोदा नहीं.”
निखिल: “अपने छोटे भाई के लिए छोड़ दिया. आज उसी को सेवा करने दो उनकी.” ये कहकर उसने बार से अपने लिए एक पेग बनाया और टीवी पर चल रहे कार्यक्रम को देखने लगा.
निखिल: “नाना, जो कैमरे आपने लगाए हैं उनसे पिक्चर इतनी साफ आती है कि ऐसा लगता है कि हम वहीं हैं.”
समर्थ: “हाँ, बहुत उच्च कोटि के कैमरे लगाए हैं. पर अब मैं कुछ और करने के बारे में विचार कर रहा हूँ.”
निखिल: “इससे अधिक क्या करेंगे नानाजी?”
समर्थ: “3D, ये सबसे नए कैमरे हैं, और ये टीवी भी 3D पिक्चर दिखा सकता है. जो अभी कमी लग रही है वो भी नहीं रहेगी.”
निखिल: “वाओ, पर सारे घर में लगाने में बहुत खर्चा नहीं आएगा?”
समर्थ: “हाँ, २८ लाख का बजट दिया है. अगले हफ्ते में उन्हें लगाने के लिए उनका दल आएगा.”
निखिल: “ओके, मैं तो अभी से उसके द्वारा बने वीडियो के बारे में सोच रहा हूँ.”

समर्थ और शीला हंसने लगे.
निखिल: “नानी, पार्थ का फोन आया था. आपका दिंची क्लब का प्रवेश की प्रक्रिया पूरी करने हेतु उसने आपसे कोई दिन चुनने के लिए कहा है.”
शीला समर्थ से, “आप क्या कहते हो, कब जाऊँ?”
समर्थ: “ऐसा करो जिस दिन ये लोग कैमरे लगाने आ रहे हैं उसी दिन चली जाओ. उस दिन मेरे सिवाय यहाँ किसी की आवश्यकता नहीं है.”
शीला: “निखिल, जैसा नानाजी ने कहा है, वही आगे बता दे.”
निखिल: “जी नानी.”

शीला टीवी की ओर संकेत करते हुए: “और इन दोनों को बोल, अब बस करें खाना भी खाना है.”
निखिल ये सुनकर उठकर उस कमरे में चला गया.

************

सुप्रिया का घर:

सुप्रिया के शयनकक्ष के बिस्तर पर संजना कसमसा रही थी. उसके दोनों पाँव पूरी तरह से फैले हुए थे और उसकी मौसी उसकी चूत में अपना चेहरा घुसाए हुए थी. सुप्रिया जैसी अनुभवी चूत चाटने वाली स्त्री के सामने संजना ने हाथ डाल दिए थे. उसने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा थे कि इस प्रकार के सेक्स में इतना सुख है. और अब उसने ठान लिया था कि सेक्स के हर आयाम का वो सुख लेगी. परन्तु अभी उसे अपनी चूत में जो संवेदना हो रही थी उसके सामने उसकी आगे की किसी भी प्रकार की सोच पर पर्दा डल गया था.

सुप्रिया को भी इस अनछुई बुर के स्वाद ने विह्वल किया हुआ था. ऐसा स्वाद, ऐसी मिठास, ऐसी खुशबू उसे अपनी जवानी के दिनों की याद दिला रही थी. उसने ये निश्चय किया कि जब तक उसका मन इस रस से भर नहीं जाता, वो इसे अपने लिए बचा के रखेगी. हालाँकि उसे ये पता था कि एक बार ये सुख पाने के पश्चात् संजना जल्दी ही इसके आगे बढ़ना चाहेगी. और तो और उन्होंने अभी ये भी निश्चित नहीं किया था कि संजना का उद्घाटन कौन करेगा। इस पंक्ति में समर्थ अवश्य सबसे आगे थे, पर वो इस शुभ कार्य को किसी और को भी सौंप सकते थे.

संजना की अनचुदी बुर इस समय अश्रुधार बहा रही थी जिसके स्वाद से सुप्रिया अपने जीवन को धन्य मान रही थी.

“मौसी, मुझे अब बहुत अजीब लग रहा है, मौसी, ये क्या हो रहा है?”

मौसी तो अपने भोग में लीन थी, उसने कोई उत्तर नहीं दिया. वो जानती थी कि कुछ प्रश्न अपना उत्तर स्वयं ही ढूंढ लेते हैं. और यही हो भी रहा था.

“मौसी, मेरा सूसू निकल जायेगा मौसी. मुझे बहुत अजीब लग रहा हैं वहां. मौसी ..... मौ......सीईईईई....मम्मीईईई उउउह आऊवोह मौसी मेरी सूसू निकल गई मौसी आपके मुंह में. ये क्या हो गया!”

संजना के पूरा झड़ने के बाद सुप्रिया ने अपना कामरस से ओतप्रोत चेहरा उठाकर उसकी ओर देखा.
“कैसा लगा मेरी लाडो?”
“बहुत मजा आया मौसी, पर अपने मेरा सूसू क्यों पिया.”

सुप्रिया ने उसकी चूत पर एक बार फिर जीभ चलते हुए कहा, “पहली बात तो ये है कि ये तुम्हारी सूसू नहीं थी. जब हम औरतें सेक्स के समय चरम पर पहुँचती है, तब उनका शरीर ये रस छोड़ता है. इसे कामरस भी कहते हैं. और जो तुमने आज अनुभव किया है, उसके लिए इस संसार की हर स्त्री व्याकुल रहती है. अब ये समझ लो कि तुमने आनंद के उस द्वार को देख लिया है जिसके लिए हर मनुष्य क्या नहीं करता.”

“मौसी, हम ये फिर कर सकते हैं.” संजना ने उत्सुकता से पूछा.
“बिल्कुल, आज तुम मेरे ही साथ रुक जो रही हो. मैंने सुरेखा से अनुमति ले ली थी.”
“और भैया लोग, वो भी तो आते होंगे?”
“नहीं आज नाना नानी ने उसे किसी विशेष अभियान में लगाया हुआ है. वो दोनों वहीं रहेंगे. आज हम दोनों अकेले ही हैं. चल अब खाने की तयारी करते हैं.”

ये कहते हुए सुप्रिया ने कपडे डाले और कमरे के दरवाजे पर रुक गई. संजना भी शीघ्र कपड़े पहन कर आ गई और दोनों किचन में चले गए. जाते जाते सुप्रिया ने एक sms किया, “ मिशन सफल”

************

सुरेखा का घर:

सजल आज अपने घर जल्दी पहुँच गया था. सुरेखा ने उसे पहले ही बता दिया था की वो नाना नानी के घर जा रही है. और बाद में संजना का फोन आया कि वो भी मौसी के घर जा रही है. सजल को ऐसा अवसर कम ही मिलता था जब ये दोनों घर से इतनी देर एक साथ बाहर हों. उसने घर में जाकर फटाफट अपने कपडे बदले और बाथरूम में घुस गया जहाँ पर वाशिंग मशीन लगी थी. खंगालकर उसने सुरेखा की एक पैंटी ढूंढ निकली और तुरंत अपने कमरे में घुसकर दरवाज़ा बंद कर लिया. फिर टीवी पर उसने एक इन्सेस्ट (पारिवारिक सम्भोग) की वीडियो लगाई जो उसने नेट से डाउनलोड की थी. और ये सब करके वो अपने बिस्तर पर बैठकर मस्ती से मूवी देखते हुए मुठ मारने लगा.

जब उसका एक बार झड़ गया तो उसने थोड़ी सफाई की और फिर दोबारा अपने लंड को खड़ा करने के लिए हिलाने लगा. कुछ ही देर में वो फिर तैयार था और उसने एक बार फिर अपनी माँ की पैंटी में मुठ मारकर अपना वीर्य छोड़ दिया. इस समय वो इतना आराम से था कि उसकी झपकी लग गई और वो सो गया.

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शीला का घर:

कमरे में पहुंचा तो देखा कि नितिन का वीर्य उसकी मौसी की चूत से बह रहा था जिसे अपनी उँगलियों में समेटकर खाने का प्रयास कर रही थी. उसके बाद सुरेखा फिर से नितिन का लंड चूसने लगी जैसे फिर चुदवाने की इच्छा हो. दोनों भाई एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिए.

निखिल: “क्या हुआ मौसी?”
सुरेखा: “मुझे और चुदवाने का मन है, तुम जाओ.”
निखिल: “अरे मौसी, सारी रात पड़ी है. नानी बुला रही हैं. चलिए.”
नितिन और सुरेखा उसी अवस्था में बैठक की ओर बढ़ गए.
सुरेखा: “मम्मी, आपने बुलाया?”
शीला ने सुरेखा की चूत से बहता हुआ वीर्य देखा तो उसे हंसी आ गई.

शीला: “ये ठीक है कि सालों से तेरी अच्छी चुदाई नहीं हुई, पर ये भी नहीं कि तू सब कुछ भूल जाये. चलो, खाने का समय है, खाने के बाद मुझे तुझसे कुछ आवश्यक बात भी करनी है.”

सुरेखा ने हाथ मुंह धोकर एक गाउन पहन लिया और खाने के लिए बैठ गई. तभी उसे ध्यान आया कि आज सजल घर में अकेला है क्यूंकि संजना भी सुप्रिया के घर पर है.

खाना समाप्त करने के बाद शीला सुरेखा को समर्थ के घर में बने ऑफिस में ले गई और दरवाजा बंद कर लिया.
सुरेखा: “क्या हुआ, मम्मी.”
शीला: “सुरेखा, विषय थोड़ा गंभीर है. पहले ये बता कि तेरे और नागेश के सेक्स सम्बन्ध कितने दिन पहले हुए थे.”
सुरेखा: “मम्मी, बात क्या है?”
शीला: “जो पूछा है उसका उत्तर दो, उलटे सवाल मत करो.” शीला का स्वर कठोर था.
सुरझा: “साल से अधिक हो गया. ठीक से याद नहीं पर साल से तो अधिक हो ही गया है.”
शीला ने कहा: “जो मैं अब बताने जा रही हूँ, तुम्हें इससे धक्का लगेगा, पर बताना भी आवश्यक है.” ये कहकर शीला ने वो लिफाफा सुरेखा की ओर बढ़ा दिया.

चित्र देखकर सुरेखा के चेहरे का रंग ही उड़ गया. वो रोने लगी. कुछ समय जब वो रो चुकी तब शीला ने उसे गले से लगाकर ढाढस बंधाया.

“तेरे पापा ने तलाक के पेपर बना लिए हैं. बाहर जाकर उस पर हस्ताक्षर कर देना. पापा ने नागेश का स्थानांतरण दूसरे शहर करवा दिया है. नागेश अगर कुछ न नुकुर करेगा तो ये चित्र हम बहुत जगह भेजेंगे. मेरे विचार से अब तुम उससे अपने आप को मुक्त मानो। ”

सुरेखा ने कुछ नहीं कहा और उठकर बाहर चली गई.
“पापा, पेपर कहाँ हैं?”
समर्थ उसके दुःख को समझ रहा था.
“सॉरी, बेटी.” फिर उसने उठकर अपने ऑफिस से पेपर्स ले आये और सुरेखा ने निश्चित स्थानों पर हस्ताक्षर कर दिए.

सुरेखा: “पापा, मैं घर जा रही हूँ. पता नहीं सजल ने कुछ खाया या नहीं.”
समर्थ: “निखिल, जाकर मौसी को छोड़कर आ.”
सुरेखा: “मैं चली जाऊंगी।”
समर्थ: “बिल्कुल भी नहीं. या तो यहीं रुको नहीं तो निखिल छोड़कर आएगा.”
सुरेखा: “ठीक है.”

ये कहकर वो अपने कपड़े बदलने चली गई और कोई १० मिनट में वापिस लौट आयी. समर्थ और शीला ने उसे गले लगाया.
“तू चिंता मत करना, हम अभी ज़िंदा हैं.”
“मुझे बस इस बात का दुःख है कि मुझे जानने में इतने साल लग गए. पर अब मैं मुक्त हुई.”

निखिल सुरेखा को लेकर निकल गया और उसे छोड़कर वापिस लौट आया.

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सुरेखा का घर:

सुरेखा ने अपने घर के अंदर जाकर देखा तो पूरे घर की बत्तियां जल रही थीं. उसने किचन में जाकर देखा तो पाया कि खाने के लिए कुछ भी नहीं था. उसे सजल की चिंता हुई. फिर वो अपने कमरे की और बढ़ी कि कपडे बदल कर खाने के लिए कुछ बना देगी. अचानक उसके पैर ठिठक गए. सजल के कमरे से कुछ आवाजें आ रही थीं जैसे कोई चुदाई कर रहा हो. उसने देखा कि दरवाजा तो बंद था पर लॉक नहीं था. उसने धीरे से खोलकर अंदर झाँका तो उसके होश उड़ गए. सजल सोया हुआ था पर उसका लंड उसके अंडरवियर से बाहर था और उसके ऊपर सुरेखा की पैंटी थी. उसने धीमे क़दमों से कमरे में प्रवेश किया और टीवी पर चल रहे दृश्य को देखा.

उसे ये समझने में अधिक समय नहीं लगा कि सजल एक इन्सेस्ट मूवी देख रहा था जिसमें संभवतः एक लड़का अपनी माँ की चुदाई कर रहा था. टीवी को देखा तो उसमें एक USB लगी हुई थी.उसने कमरे से बाहर जाकर दरवाजा बंद किया और अपने कमरे में जाकर एक पतली झीनी नाइटी पहन ली. उसके मन में सुप्रिया के विचार आ रहे थे. अगर घर में ही लंड उपलब्ध है तो उसका उपयोग करना चाहिए. कपड़े बदलकर उसने सजल का दरवाजा खटखटाते हुए उसे खाने के लिए आने के लिए कहा.

अपनी माँ की आवाज़ से सजल की आंख खुल गई. उसने देखा कि कमरा बंद है, पर मम्मी ने पुकारा था. उसने तुरंत टीवी बंद किया, अपना अंडरवियर ठीक किया, सुरेखा के पैंटी को तकिये के नीचे रखकर बाथरूम में जाकर मुंह धोया और कमरे से बाहर निकला. उसने किचन में कुछ आवाज सुनी तो समझ गया कि मम्मी कुछ बना रही है. धड़कते मन से वो किचन की ओर चल पड़ा.

किचन में पहुंचा तो देखा की सुरेखा कुछ बना रही है. पर उसने जो पहना था उसे देखकर सजल के लंड में फिर तनाव आ गया और उसके शार्ट में एक टेंट बन गया. इससे पहले कि वो कुछ समझता या करता सुरेखा उसकी ओर मुड़ी और उसकी भी ऑंखें सजल के टेंट पर पड़ीं.

“मैं आयी तो देखा तुम सो रहे थे.” सुरेखा ने सजल के शक को और बढ़ाते हुए कहा. अब सजल को ये नहीं समझ आया कि उसकी माँ ने क्या और कितना देखा है.
“मेरी आंख लग गई थी, थक कर. आप कब आयीं? आपने तो कहा था आज नाना के हर ही रहोगे.”
“अब बिस्तर पर लेट तुम ऐसा क्या कर रहे थे जो थक गए थे? कोई मूवी भी लगी थी तुम्हारे टीवी पर, कौन सी थी. चलो खाने के बाद साथ देखेंगे.” सुरेखा को सजल को छेड़ने में कुछ अधिक ही आनंद आ रहा था.

“पता नहीं, टीवी पर कोई चल रही होगी. मैं तो टीवी चलकर सो गया था.”
“चलो, कभी और सही. लो अब खाना खा लो, बस हल्का सा ये बना दिया है. वैसे भी थके होने पर कम ही खाना चाहिए.”

सजल ने प्लेट ली और डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाने लगा. सुरेखा उठकर किसी कमरे में गई और कुछ ही मिनट में लौट आई. अभी सुरेखा का मन नहीं भरा था सजल को सताने से.

“अरे, ये बताओ, तुमने मेरी पैंटी देखी है क्या वो नीली वाली? मैं वाशिंग मशीन में कपडे धोने डाल रही थी तो देखा वो नहीं है.”
सजल के गले में खाना अटक गया और उसे जोर का ठसका लगा. सुरेखा ने जल्दी से उठकर उसे पानी दिया और उसकी पीठ ठोकी. सजल की जब साँस सँभली तो उसने थोड़ा और पानी पिया.

“मुझे कैसे पता होगा आपकी पैंटी का? हो सकता है संजना ने ले ली हो गलती से.”
“हाँ, हो तो सकता है.”

सजल ने किसी तरह खाना खाया और प्लेट किचन में रखी और गुड नाइट कहकर अपने कमरे की ओर दौड़ गया. सुरेखा के चेहरे पर इस समय एक कुटिल मुस्कान नाच रही थी. सजल ने अपना कमरा लॉक किया और जल्दी से टीवी से USB निकला जिसमे मूवी थी. फिर उसने अपनी तकिया के नीचे से पैंटी निकालने के लिए हाथ बढ़ाया तो वहाँ कुछ नहीं था. वो परेशान हो गया. उसे याद था कि उसने पैंटी को तकिया के नीचे ही रखा था. उसे लगा कि शायद उसने वाशिंग मशीन में डाल दी हो. यही सोचकर उसने दरवाजा खोला तो हक्का बक्का रह गया.

दरवाजे पर उसकी माँ खड़ी थी और वो अपने हाथ में एक नीले रंग की पैंटी घुमा रही थीं.
“कुछ ढूंढ रहे थे क्या?”

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सुप्रिया का घर:

सुप्रिया ने खाने के बाद फिर एक बार संजना का रस चूसा और पिया. उसके मन को आत्मतृप्ति मिली.

सुप्रिया: “संजना, मुझे एक वचन दो.”
संजना: “क्या मौसी?”
सुप्रिया: “यही कि तुम अभी किसी भी आदमी से नहीं चुदवाओगी। मैं इस कली का रस जी भर कर पीना चाहती हूँ. और भी कुछ लोग हैं जो इस कुंवारी चूत का रस पीना चाहेंगे. क्या है न आजकल अनछुई कली मिलना असंभव है. क्या वचन देती हो. हाँ, ये अवश्य है कि तुम्हें हम अधिक दिनों तक नहीं रोकेंगे, और संभव हुआ तो तुम्हारी चूत का उद्घाटन भी एक विशिष्ट व्यक्ति से ही करवाएंगे, जिससे कि तुम्हें जीवन भर के लिए एक मधुर स्मृति मिल जाये.”

संजना: “मौसी, सच कहूँ तो मैं यही सोच रही थी. पर मैं आपको वचन देती हूँ की आपके बताये बिना मैं किसी भी पुरुष से नहीं चुदवाऊँगी।”
सुप्रिया: “अब तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि तुम्हें भी जानना चाहिए कि मुझे तुम्हारे रस में ऐसा क्या स्वाद आया कि मैं न्योछावर हो गई.”
संजना: “हाँ, पर मैं क्या करूँ ?”

सुप्रिया ने अपने पाँवों को फैला कर अपनी चूत की पंखुड़ियों को सहलाते हुए कहा, “वही जो मैं अब तक कर रही थी. मेरी चूत को चूस और चाटकर अब तुम मुझे सुख दो और जानो कि क्या जादू है इसके रस में.”
संजना: “पर मुझे तो कुछ आता ही नहीं.”
सुप्रिया: “तुम शुरू तो करो, कुछ मैं बताती रहूंगी, और कुछ तुम स्वयं ही सीख लोगी.”

संजना ने अपना चेहरा सुप्रिया की जांघों के बीच में डाला और सेक्स के ज्ञान का दूसरा अध्याय पढ़ना शुरू किया.

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शीला का घर:

निखिल जब वापिस पहुंचा तो देखा कि नाना और नानी दोनों गायब हैं. नितिन बड़े टीवी पर कोई शो देख रहा था.

निखिल: “नानी कहाँ हैं?”
नितिन: “सोने चली गयीं.”
निखिल: “तो हम भी चलते हैं.”
नितिन: “नहीं, आज मना किया है आने को. दोनों अकेले ही रहेंगे.”
निखिल: “यार पता होता तो मैं मौसी के ही घर रुक जाता.”

शीला और समर्थ अपने कमरे में लेटे हुए थे और आने वाली शादी के बारे में बात कर रहे थे.

समर्थ: “सोच रहा हूँ, कल सुमति को बुला लेते हैं. कल हमारे सिवाय कोई और तो रहेगा नहीं, उसे बुला कर देखते हैं, कि शादी में क्या आयोजन ठीक रहेगा. शोनाली और जॉय से सीधे पूछना अच्छा नहीं लगेगा.”
शीला: “ठीक है, कल बुला लूंगी। “
समर्थ: “क्या हुआ आज बच्चों को मना कर दिया आने के लिए.”
शीला: “रोज रोज की चुदाई से एक दो दिन छुट्टी भी चाहिए होती है. और हम दोनों को इस तरह लेटकर बातें किये हुए कितना समय हो गया.”
समर्थ: “सच है.”
शीला: “सुप्रिया ने संजना का भोग लगा लिया आज.”
समर्थ: “अच्छा है. चलो अब सो ही जाते हैं.”

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सुरेखा का घर:

सजल को काटो तो खून नहीं. अपनी माँ के हाथ में अपने वीर्य से सनी पैंटी देखकर उसके होश उड़ गए.

“अंदर चलो.” सुरेखा ने कठोर शब्दों में कहा.

सजल डरता हुआ कमरे में अंदर आ गया.
“बैठो” ये कहकर सुरेखा ने दरवाजा लॉक कर दिया.

उसके बाद वो टीवी को देखने लगी. उसने देख लिया की उसमें में USB नहीं लगी है.

“USB कहाँ है?”
“कौ क कौ कौन सी USB”
“मैंने पूछा की USB कहाँ है, तो मुझे पता होगा कि कौन सी. अब बताओ कहाँ है.?”
सजल ने अपने पैंट से USB निकल कर दे दी.
सुरेखा ने उसे टीवी में लगाकर टीवी चालू किया. सजल एकदम से सुरेखा के पांवों में लोट गया.
“मम्मी, नहीं. मुझे क्षमा कर दो. प्लीज. मत देखो.”

“तो तुम्हें अपनी मम्मी की पैंटी अच्छी लगती हैं?”
सजल पांव पकडे लेटा रहा.
“बोलो?”
सजल ने सिर हिलाकर झुका लिया.
“और तुम ये माँ बेटे की चुदाई की फिल्म देखते हो और मेरी पैंटी को गन्दा करते हो?” सुरेखा को इस खेल में बहुत आनंद आ रहा था.
“मुझसे गलती हो गई. अब ऐसा नहीं करूंगा.”

अब तक सुरेखा अपने शरीर से वो झीनी नाइटी उतार चुकी थी और केवल एक लाल रंग की पैंटी में खड़ी थी. सजल उसके पांवो में पड़ा हुआ था.
“हम्म्म, तो तुम्हें क्या दंड मिलना चाहिए?”
सजल अपना सर नीचे ही किये हुए बोला , “बस मुझे माफ़ कर दो, जो दंड देना है दो, पर माफ़ कर दो.”

“ठीक है, मेरी ओर देखो.” ये कहते हुए सुरेखा ने अपने दोनों पांव फैला दिए.

सजल ने ऊपर देखा तो उसकी आंखे फट गयीं. उसके ऊपर उसकी माँ दोनों पांव फैलाये केवल एक पैंटी में खड़ी थी. उसे उस पैंटी में कुछ गीलापन भी दिख रहा था. और उसके ऊपर माँ के दो पहाड़ जैसे मम्मे अपने पूरे सौंदर्य में तने हुए थे.

“तुम्हें मेरी पैंटी पसंद है न?आकर इसे चूसो. ख़बरदार जो उतारने की कोशिश की.” ये कहते हुए सुरेखा बिस्तर के किनारे पैर फैलाकर बैठ गई.

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सुप्रिया का घर:

संजना अपनी बुद्धि अनुसार सुप्रिया कि चूत चाटने का प्रयास कर रही थी. अब एक नौसखिये और अनुभवी में अंतर तो होता ही है. वो ये ध्यान करते हुए कि मौसी ने क्या किया था उसका ही अनुशरण कर रही थी. पर समस्या ये थी कि वो अपने आनंद में इतनी व्याप्त थी कि उसे ठीक से कुछ याद ही नहीं था. परन्तु, वो जितना संभव हो उतने प्यार से अपने काम में लगी थी.

सुप्रिया यही सोच रही थी कि इस कच्ची कली को तो अपने आप सीखने में अभी बहुत समय लगेगा. उसने इसी कारण संजना को युक्तियाँ सुझाईं. संजना भी अब इस काम में आनंद पा रही थी. सुप्रिया ने अपनी चूत के कपाट खोलकर संजना को बताया कि किस प्रकार से उसे अपनी जीभ से भीतर का विश्लेषण करना है. अब संजना थी तो नयी पर जैसे ही उसने अपनी जीभ अंदर सरकाई मानो उसे ज्ञान प्राप्त हो गया. उसने हर छिद्र, हर बिंदु को अपनी जीभ से टटोलना जब प्रारम्भ किया तो सुप्रिया के शरीर में आनंद की लहर दौड़ गई.

“हाँ, यूँ ही, बहुत अच्छा लग रहा है. उउउह व्वाआह संन्न ज न्नन्ना।”
संजना ने जब ये सुना तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई की उसके उपक्रम से मौसी इतनी खुश है. उसने अपने प्रयास को और बढ़ा दिया.”

अचानक ही सुप्रिया का शरीर अकड़ गया, और संजना को अपनी जीभ पर कुछ खारे से पानी का अनुभव हुआ.
“उउउह व्वाआह संन्न ज न्नन्ना, मैं गईईई “
और संजना का पूरा मुंह सुप्रिया के रस से भर गया. सुप्रिया ने उसका सिर पकड़कर अपनी चूत में दबा लिया था इसीलिए संजना हट न पायी और उसे पूरा पानी पीना पड़ गया. पर उसे इसका स्वाद बुरा बिल्कुल भी नहीं लगा. जब सुप्रिया पूरी झड़ गई तो उसने बड़े प्यार से संजना के सिर पर हाथ फिराया और थपकी देकर संतोष व्यक्त किया.

संजना ने अपना चेहरा उठाकर सुप्रिया को देखा.
“तू तो बहुत जल्दी सीख गई मेरी गुड़िया रानी. आ मौसी को एक पप्पी दे.”

संजना सुप्रिया के पास लेट गयी और दोनों एक दूसरे को चूमते हुए प्यार करते रहे. और कुछ देर यूँ ही प्यार करते हुए दोनों एक दूसरे से नंगी ही लिपटी हुईं नींद की गोद में चली गयीं.

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सुरेखा का घर:

घुटनों के बल चलकर सजल सुरेखा के पाँवों के बीच में आ गया. फिर उसने पैंटी पर अपनी नाक रगड़ते हुए एक गहरी साँस ली. सुरेखा की चूत की भीनी सुगंध उसके नथुनों में भर गई और उसे जैसे एक नशा सा हो गया. उसने ३-४ बार यही क्रिया दोहराई, जब तक उसके फेफड़े सुरेखा की मादक गंध से भर नहीं गए. फिर उसने अपना मुंह पैंटी पर लगाया जो इस समय गीली हो चुकी थी. एक बार अपना मुंह उस पर लगाकर उसने लम्बा घूंट सा लिया जिससे की उसके मुंह में सुरेखा का अविरल बहता रस चला गया. उस रस को पीते ही सजल का नियंत्रण समाप्त हो गया. वो किसी भूखे मनुष्य की तरह जोर जोर से चूस कर मानो अपना मन और पेट दोनों ही भर लेने का प्रयास कर रहा हो.

सुरेखा इस समय आनंद के सागर में हिलोरें ले रही थी. सुप्रिया न जाने कब से इसका आनंद ले रही है. अब उसका क्रम है, और उसने जीवन में खोये हुए सुख के हर क्षण को वापिस पाने का निर्णय लिया. उसने प्रेम से अपनी जांघों के बीच अपने बेटे को देखा. उसने एक हाथ बढाकर उसके सिर को सहलाया. उसने अब तक कठोरता दिखाई थी, परन्तु वो नहीं चाहती थी कि उसका बेटा दब्बू बन जाये. उसने खेल समाप्त करने का निर्णय किया.

“तुम चाहो तो पैंटी उतार सकते हो.” ये कहते हुए सुरेखा ने अपनी गांड उठा ली. सजल ने इसे शुभ संकेत मानकर धीरे से पैंटी को सरकाकर उतार दिया. अब उसकी माँ की सुन्दर गुलाबी चूत उसकी आँखों के समक्ष थी. इस दृश्य की चाह में उसने न जाने कितनी रातों को मुठ मारी थी.

“मैं छू कर देखूं?”

“बिल्कुल “

सजल ने अपने हाथ को बढ़ाते हुए सुरेखा की चूत के कपाल छुए. फिर उसे प्यार से सहलाने लगा. ऐसा करने से सुरेखा की चूत पर कामरस के मोती चमकने लगे. सजल ने अपना मुंह आगे किया और उस सुगन्धित जीवन रस को जीभ से चाट लिया. सुरेखा का शरीर काँप उठा. तो यही वो संवेदना थी जो सुप्रिया अनुभव करती होगी. उसका लाड़ला बेटा ही आज उस स्थान का अवलोकन कर रहा था जहाँ से उसने जन्म लिया था. सुरेखा से अब और संयम नहीं हुआ. उसने सजल का सिर पकड़कर अपनी चूत पर जोर से दबा लिया. सजल की तो साँस ही रुक गयी. सुरेखा ने उसके सिर को छोड़ा और खड़ा होने के लिए कहा.

सुरेखा: “अगर तुम्हें मेरी पैंटी ही चाहिए थी तो अलग बात है, पर अगर तुम्हें और कुछ भी इच्छा है, तो मैं उसे पूरी करने के लिए तत्पर हूँ. ये मैं तुम्हें इसीलिए कह रही हूँ क्योंकि तुम्हारे पापा से मुझे डेढ़ साल से छुआ भी नहीं है. और मैं चुदास से विह्वल हूँ. क्या तुम मुझे प्यार करोगे? बुझाओगे मेरी प्यास?”

सजल को मानो कुबेर का खजाना मिल गया. उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि आज के दिन ये चमत्कार लेकर आएगा. उसने सिर उठाकर अपनी माँ को एक प्रेमी की दृष्टि से देखा तो उसे अद्वितीय सौंदर्य की साक्षात् अप्सरा के दर्शन हुए. इस आयु में उसकी माँ का यौवन खिला हुआ था. अगर लड़कियों में सुंदरता होती है, तो उसकी माँ में एक अनूठा आकर्षण था.

सजल: “मम्मी, मेरा वश चले तो मैं संसार का आपको हर सुख देना चाहूंगा जो आपको मिलना चाहिए. आपके तन और मन दोनों को मैं अपने प्यार से ओतप्रोत कर दूंगा. आप जो भी इच्छा रखती हैं, मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा. परन्तु, मुझे अभी कुछ आता नहीं है, बस फ़िल्में देखकर जो ज्ञान अर्जित किया है मेरा अनुभव वहीँ तक सीमित है. आप अगर इसमें मेरी शिक्षिका बनेंगी तो मैं अवश्य अच्छा शिष्य भी बनूँगा.”

सुरेखा की ऑंखें भीग गयीं. अपने पति के तिरिस्कार से व्यथित उसके मन में जीवन की एक नयी उमंग जग गयी. वो उठकर सोफे पर जा बैठी और उसने सजल को अपने पास बैठने का संकेत किया. सजल के पास बैठते ही उसने उसके सीने पर अपना सिर रख दिया और सुबकने लगी. सजल को समझ नहीं आया कि वो क्या करे. बड़े से बड़े अनुभवी पुरुष भी स्त्री के रोने का अर्थ नहीं समझे तो ये तो एक प्रकार से नादान था.

“मम्मी, रो क्यों रही हो.”
“मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे कभी दोबारा प्यार मिलेगा.” ये कहते हुए उसे इस बात की ग्लानि थी.

इस बात की कि उसने अपने शरीर को अपने पिता और भांजों को समर्पित किया, न कि उससे अथाह प्रेम करने वाले पुत्र को. पर उसने एक बात का निश्चय किया। आज तक उसकी गांड कोरी थी, और ये वो अपने बेटे को भेंट में देगी, समय आने पर. और तब तक वो इसमें किसी भी और पुरुष का प्रवेश वर्जित ही रखेगी. उसने एक मुस्कराहट से सोचा कि उसके पिता और भांजों में जो शर्त लगी है उसके इस कुंवारी गांड को लेकर, वो तीनों ही हार जायेंगे. ये सोचकर वो ठहठहा कर हंस पड़ी. अब सजल को फिर समझ नहीं आया की रोते रोते उसकी माँ हंसने क्यों लगी. पर उसने मूर्ख सिद्ध होने के स्थान पर चुप रहने ही श्रेयस्कर समझा.

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