बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी complete

Post Reply
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

दूसरी और से भी कुछ इसी प्रकार की आवाजे उभर रही थीं । आवाजें दोनो ओर से अभी कुछ अस्पष्ट सी थी । जब स्पष्ट होगई तो राबर्ट ने पूछा…"हेलो हैलो. आप कौन लोग हैं ओबर !"


"आप लोग धरती के किस देश से बोल रहे हैं…ओवर !", दूसरी ओर से उल्टा प्रश्न किया गया ।


"अमेरिका से ओबर! " राबर्ट ने जोर से कहा ।


" वेरी गुड ।” इस तरह की प्रसन्नता भरी आवाज आई! मानो दुसरी ओर से सुनने वाला अमेरिका शब्द पर बेहद खुश हो, आवाज पुन आई…" हम लोग वापस आ रहे हैं ।"



" आप कौन लोग हैं?" राबर्ट ने प्रश्न किया ।


"मुझें भाइक कहते हैं ।" दूसरी ओर से आबाज उभरी-" कदाचित आपको मालूम होगा कि हम यानी विश्व के जासूसों का ग्रुप मंगल ग्रह के लिए बिकास को गिरफ्तार करने हेतु रवाना हुआ था ।"


" क्या आप लोगों ने विकास को गिरफ्तार कर लिया है--ओवर ।" राबर्ट ने प्रश्न किया !


" विकास को नहीं बल्कि मुजरिम को गिरफ्तार कर लिया है ।" उधर से माइक की आवाज आई------" असल मुजरिम विकास ऩहीँ था । उसका तो केवल नाम-हीं-नाम था । वास्तविक मुजरिम सिगंही था । सिगंही ने विकास को अपनी केद में डाल रखा था ! उसे विश्व मे बदनाम करने के लिए अपना हर अपराध उसके नाम से कर रहा था ।"


" तो क्या जाप लोगों ने सिगंही को, गिरफ्तार कर लिया है--ओवर!" राबर्ट ने प्रश्न किया ।


" हम मंगल ग्रह पर स्थित सिगंही का अड्डा समाप्त कर आए हैं " दूसरी ओर से स्वंर उभरा-- “सिगंही को हम अपने साथ उसके ही इस ग्लोब में बैठाकर अमेरिका ला रहे हैं । आप लोग हमारे स्वागत की तैयारी रखें ।"

"तो इसका मतलब यह हुआ कि अमेरिका अब खतरे से बाहर है?” राबर्ट ने प्रसन्नता से डूबे स्वर, में पूछा ।



"एकदम बाहर ।" दूसरी ओर से आवाज आई…"घबराने की जरा भी बात नहीं है [ सारे देश में यह खबर फैला दो कि देश खतरे से बाहर है । सिंगही को कैद करके ला रहे है ।"



और इफ प्रकार…


एन डी राबर्ट ने पूरी बातें की।


फिर यह सारी सूचना उसकी प्रयोगशाला से निकलकर रेडियो के स्टेशन तक पहुची और रेडियो स्टेशन से अमेरिका के ही नहीं बल्कि विश्व के जन जन तक पहुच गई ।



सिंगही के कैद हो जाने की खुशी से सारा विश्व खुशी से नाच उठा लेकिन…



अमेरिका तो जैसे झूम उठा ।



ऐसा लगा जैसे समाप्त होते-होता अमेरिका एकदम बंच हो । अमेरिका के बच्चे-बच्चे ने खुशी मनाई । भारत में जैसे खुशी के उपलक्ष्य में दीवाली मनाई जाती है, इसी प्रकार वहां भी खुशी मनाई गई ।


सारा अमेरिका झूम उठा ।


सरकारी दफ्तरों एक दिन का अवकाश मनाया गया ।


सरकार ने अपनी ओर से मिठाइयां बंटवाईं ।


हर तरफ़ खुशी… खुशी ही थी लेकिन…



वे क्या थे कि शेतानों ने कितनी भयानक चाल चली है ।
...........................

" लेकिन इसका मालम तो ये हुआ कि अमेरिका की धरती पर हमारा विशेष स्वागत किया जाएगा!" अशरफ कह रहा है, था--"जब देखेगे कि माइक के स्थान पर हम लोग है तो जो हाथ हमे पुष्प मालाएं पहनाते , वे ही हमे गोली से उडा देगें ।"



"मूर्खता की बात मत क़रो ।" यह बात डायरी पर लिखकर धनुषटंकार ने अशरफ को डायरी थमा दी

खा जाने वाली दृष्टि से अशरफ ने धनुषटंकार को ,फिर बोला-----" तुम अपने आपको कुछ ज्यादा बुद्धिमान समझते हो ?"



"हमारे शिष्य ने आपकी बिलकुल ठीक उपाधि दी है झानाझरोखे अंकल! " जबाब विकास ने दिया…"बात दरअसल यह है कि तुम मंगत ग्रह पर जांते समय देख चुके हो कि सिगंही का ये , ग्लोब कितना करामाती है । तुंम जानते हो कि यह ऐसी धातु का बना है कि जिस पर धरती का बोई शस्त्र प्रभाव नहीं डाल पाता । आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दु कि इसे जब चाहे अदृश्य भी किया जा सकता है ।"


" क्या मालव? अशरफ थोडा उलझा ।


… "मतलब के चक्कर में मत पडो प्यारे झानझरोखे ! वरना खाओगे खूबसूरत धोखे, यानीकि मतलब तो साला पहले ही मिट्टी के तेल की लेइन में लग चुका है और कसम वनस्पति धी की तीन महीने से वहीं पड़ा है।"



"अभी तक इस यान को अदृश्य नहीं किया गया है ।" अलफांसे बोला-" अत: धरती के श्रेष्ठ खगोलशास्त्री सरलता के साथ अपनी स्क्रीन पर इसे देख सकते हे.....यानी पता लगा सकते हैं कि हम किस समय कहाँ उतरेगे लेकिन जब हम अदृश्य हो जाएंगे, तो उनकी कोई भी स्क्रीन उन्हें हमारी स्थिति नहीं बता सकेगी अत: वे यह भी नहीं जान पाएंगे कि हम लोग कहा उतर रहे है।"



उन लोगों. के इसी प्रकार की बाते होती रहीं और ग्लोबल धरती की ओर अग्रसर रहा अब उनके धरती पर पहुचने में अधिक समय नही था ।




कुछ ही देर बाद एक बटन दबाकर ग्लोब को अदृश्य कर दिया गया । उसी क्षण कक्ष में रखी एक टी वी स्क्रीन का बिजय ने बटन दबा दिया ।


स्क्रीन ऑन हो गई और उस पर एन डी राबर्ट की प्रयोगशाला का दृश्य उभर आया ।स्क्रीन पर साफ़ देखा जा सकता था कि अपनी प्रयोगशाला में राबर्ट एक स्क्रीन के सामने बैठा था । उस स्क्रीन पर कहीं कोई चिंह नहीं था ।

राबर्ट बड़े ध्यान से स्क्रीन को घूर रहा था । उसके चेहरे पर बौखलाहट के भाव थे ।



" देखा मियाँ लूमड खान! साला कैसा चौंका है?” विजय बोला… यहीं बैठा हुआ साला स्क्रीन पर हमारा और हमारे बाप का ग्लोब देख रहा था । ये नहीं जानता कि हम भी खलीफा है । अब स्क्रीन पर धतूरा भी नजर नहीं-जाएगा । "



और वास्तब मे विज़य की यह बात सत्य र्थी।


अभी तक आराम से राबर्ट ग्लोब को अपनी स्कीन पर देख रहा था लेकिन अचानक ही इस प्रकार गायब हो जांने पर वह बुरी तरह बौखला गया । उसने स्कीन के बटन इत्यादि दबाए लेकिन व्यर्थ! ग्लोब उसकी स्कीन पर अव न उभरना था न उभरा ।



उसने अन्य वैज्ञानिकों से संबंध स्थापित किए।।


लेकिन…


प्रत्येक की यही रिपोर्ट थी कि अचानक ये ग्लोब स्क्रीन से गायब होगया ।।



और ग्लोब मे बैठे हुए ये शातिर अपनी स्क्रीन पर उभरने वाले दृश्यों के जरिए राबर्ट की बौखलाहट का मजा लूट रहे थे ।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

राबर्ट जब सब कामों से थक गया तो उसी शक्तिशाली ट्रांसमीटर परे झपटा जिसके जरिए उसने ग्लोब यात्रियों से संबंध स्थापित करके बाते की थीं ।



वह पुन उसी मीटर पर संबंध स्थापित करने का प्रयास करता रहा ।


इधर… ग्लोब के इस कक्ष मे रखा ट्रांसमीटर स्पार्क करने लगा लेकिन प्लान के मुताबिक कोई उधर नहीं बढा ।


बह स्पार्क करता रहा ।


किसी ने उसे स्पर्श तक करने का कष्ट नहीं उठाया ।


उधर स्क्रीन पर उन्होंने देखा कि राबर्ट लगातार तीस मिनट तक संबंध स्थापित करने की चेष्टा करने के बाद भी जब सफल न हुआ तो बुरी तरह झुंझला उटा ।



उसके बाद. , .स्क्रीन के दृश्य को वे धुमाते चले गए। उन्होंने देखा-अचानक उनके ग्लोब के अदृश्य हो जाने पर सारे अमेरिका में खलबली मच गई थी ।


कोई सोच भी नहीं पा रहा था, अचानक ग्लोब कहाँ गायब हो गया?


सबका एक ही ख्याल था ।


कहीँ सिंगही ने फिर कोई हरकत तो नहीं दिखा दी है?


सारा अमेरिका उस ग्लोब के लिए परेशान था जबकि अमेरिका के शातिर दुश्मनों का यह ग्लोब निरंतर घरती की ओर बढ रहा था ।



पता नहीं अमरिका की धरती पर पहुचते ही ये क्या करें? उसके बाद उन्होंने स्क्रीन साफ कर दी ।




सुभ्रांत ने बता दिया था कि पंद्रह घंटे पश्चात ग्लोब धरती को स्पर्श करेगा ।


दस घंटे की नीद लेने के लिए सब आराम से सो गए । केवल एक ही इंसान था जिसकी सोने की जरा भी इच्छा नहीं थी , वह था विजय । वह अकेला ही चालक सीट पर जमा हुआ ग्लोब का न केवल चालन कर रहा था बल्कि खुद को अपनी ही बनाई हुई नई-नई झकझकियां भी सुना रहा था ।


और तब ......



उनके ग्लोब ने अमेरिका की धरती को’स्पर्श किया ।


उस समय तक न केवल सब जाग चुके थे, बल्कि सभी एकंदम अलर्ट थे क्योंकि वे भली भाँति जानते थे कि वे ऐसी धरती पर पहुच . चुके है जहाँ पग-पग पर उनके खुन के प्यासे लोग हैं ।


कमाल यह था कि ग्लोब के इंजन की आवाज भी केवल ग्लोब के अदंर तक ही गुंजकर रह जाती थी ।


ग्लोब एक जंगल में लैंड कर लिया गया था ।

उसके बाद वे सब बाबर आगए ।

हैरी के संपुर्ण जिस्म पर सफेद लिबास था । चेहरे पर काली नकाब थी ।

उसे सी आई ए के साथ-साथ न्यूयार्क की पुलिस भी बराबर तलाश कर रही थी । लेकिन लडके पर सबूत एकत्र करने का भूत सबार था ।


इस समय रात के दो बज रहे थे रात काली मगर शांत थी ।


हैरी फुर्ती के साथ उस गंदे पानी के पाइप के सहारे ऊपर चढता जा रहा था । जल्दी ही वह उस ऊंची इमारत की छत पर पहुच गया ।


विना किसी विध्न के वह इमारत की दूसरी मंजिल की गैलरी तक पहुंच गया। उस समय हैरी के हाथ में रिवॉल्वर थी जो किसी भी क्षण नि:संकोच आग उगलने के लिए तत्पर थी ।


वह इस तरह आगे बढ रहा था । जैसे उसे निश्चित रूप से सब कुछ मालूम हो।


गैलरी के एक मोड पर वह रुक गया । पहले जेब से साइलेंसर निकालकर रिवॉल्वर की नाल पर फिट किया, फिर पूर्णतया तैयार होने के बाद बडी सतर्कता के साथ उसने गैलरी के दूसरी और झाका । दूसरी और का दुश्य देखते ही नकाब के पीछे छुपे उसके चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई।



गैलरी के बीचो बीच उनमे शायद एक कर्नल था । शेष दो सधारण मिलिट्री सेनिक ।


कर्नल एक कमरे के आगे स्टूल पर बैठा था और शेष दोनो सैनिक मुस्तैदी के साथ-हाथ में मशीनगन थामे उस कमरे के दाएँ-बांएं पहरेदार वाली मुद्रा मेँ खड़े थे। हैरी ने विलंब करना उचित नहीं समझा ।



उसने अपना रिवाॅल्बर सीधा किया और फिस..... . फिस की हल्की ध्वनि केवल तीन बार गूंजी'। तीन वार हैरी के रिवॉल्वर ने आग उँगली और वह तीन पहरेदार अपने अपने सीने पकड़े चीख पडे ।


अंतिम चीख के साथ वे फर्श पर गिर गए ।


हैरी रिवॉल्वर संभालकर उसी तेजी के साथ उस कमरे की ओर झपटा । तभी उस कमरे में से भागते दो सेनिक बाहर आए लेकिन हैरी तो मानो इसं समय पागल हो गया था ।

बिना सोचे-समझे उसने साइलेसर-युक्त रिवॉल्वर से उन्हें भी उडा दिया ।


लेकिन तभी सारी इमारत में सायरन की आवाज गुज उठी । हैरी समझ गया । खतरा सिर पर आ पहुचा है । यह सोचकऱ उसके
जिस्म में अधिक फुर्ती भर गई । इस पर वहाँ उसने एक सेनिक की मशीनगन उठा ली रिबॉंत्वर जेब के हवाले करके अंदर जंप लगा दी ।



तभी एक ही मशनीनगन से किसी ने लगातार दो…तीन फायर उस पर किए ।


लेकिन हैरी पूरी तरह सतर्क था । वह फ़र्श पर लुढ़कता ही चला गया । वह सीधा एक टार्चर चेयर के पीछे जाकर स्थिर हुआ ।


उसकी दृष्टि ९क सेनिक पर पडी और उसी क्षण हैऱी की गन गरज उठी ।


बुरी तरह घायल होकर सैनिक धाराशायी हो गया ।


सायरन अब भी लगातार बज रहा था । सारी इमारत भारी बूटों की ध्वनि से गूंज़ रही थी।


कमरा इस समय खाली था मगर शीघ्र ही वहां दुश्मन पहुंचने ।


हैरी तेजी के साथ अपने स्थान से उठा । उसने देखा-वह जिस टार्चर चेयर के पीछे छुपा हुआ था, उस परं बंधनों में कसा हुअ सोबर वैठा हुआ था । वही सोबर जिसे खुद हैरी ने गिरफ्तार करवाया था ।


" आप कौन हैं?” सोबर ने हैरी से प्रश्न किया ।


" मैं तुम्हारा मददगार हूं । इस कैद से तुम्हें निकालने आया हू।”


“तो जल्दी से यह बटन दबाओ ।" सोबर ने एक बटन की और संकेत करके कहा ।


हैरी ने जल्दी से वह बटन दबा दिया ।


बटन दबते ही इलेक्ट्रिक सिस्टम के सारे बंधन एक साथ खुल गए । सोबर वेहद फुर्ती के साथ टॉर्चर चेयर से कूदा और कमरे मे पड़े एक सेनिक की गन उठा ली ।


हैरी बोला---"मेरे साथ आओ !"


सोबर और हैरी हाथ में गन थामे तेजी परंतु सतर्कता के साथ कमरे से बाहर में आए । भागते कदमों की आहट से इमारत थर्रा रही थी ।


हैरी आगे सोबर उसके पीछे भागता जा रहा था । अचानक एक मोड़ पर घूमते ही सैनिकों का एक जत्था-का-जत्था हैरी के सामने आ गया ।


हैरी तुरंत फर्श पर लेट गया गन ने अपना भयानक जबडा खोल दिया । चीखों के साथ सारे सेनिक मारे गए।



और इस प्रकार...... ।


हैरी जिस रास्ते से ऊपर आया था, उसी रास्ते से सोबर को भी सुरक्षित इमारत से बाहर निकलकर ले गया ।


सोबर उसके साथ जाता हुआ सुनसान सडक के दाई ओर लंबी झाड्रिर्यो में आ गया ।



झाडियों में छुपी हुई एक कार खडी थी । कार के समीप पहुंचकर हेरी तेजी से बोला--- "मिस्टर सोबर । आप कार ही ड्राइविंग सीट पर पहुचे-मैं एक कांम समाप्त करुके आता हूं।"


" ओके......!" तेजी से कहकर सोबर ड्राइविग सीट पर जम गया ।



"अब तुम ठीक से पहुँच जाओगे?" हैरी बोला ।


"लगता है आप पहली वार सोबर से मिल रहे हैं ।" सोवर ने कहा-" जब सोबर के पास गन होती है तो दुनिया की कोई ताकत उसे अपनी मंजिल तक पहुचने से नहीं रोक सकती । उस लडके हैरी से जरूर बदला लेना है । उसने ऐसा फसाया कि कुछ करने का मौका हीँ नही मिला।"


"खैर तुम चलो !" यह कहकर हैरी एक तरफ की झाडियों में घुस गया ।


सोबर ने कार स्टार्ट कर दी लेकिन उसके फेरिश्ते भी यह नही जान सके कि वही नकाबपोश जो उसे बचाकर यहां तक लाया है, कार के स्टार्ट होने की आवाज के साथ ही डिक्की में पहुच चुका है ।


सोवर ने कार झाडियों से निकालकर सडक पर डाल दी ।



हैरी अपनी सफ़लता पर खुश था ।

न्यूयार्क स्थित रूसी, जासूसी संस्था के जी बी का हेडक्वार्टर विजय को पता था ! वह सबको लेकर वहीं पहुच गया । उस हेडक्वार्टर का चीफ़ पहले से ही विजय को पहचानता था । के जी बी के इस हैडक्वार्टर पर सब लोगों के छिपने में बड़ा अच्छा स्थान था ।


आने-जाने की औपचारिकता के बाद विजय अशरफ और अलफासे एक कमरे में बैठे सोच रहे थे कि अब उन्हें क्या-क्या करना है और किस-किसं काम के लिए कौन-कौन उपयुक्त रहेगे ।


"लूमड़ प्यारे! ” विजय कह रहा था---" मेरे विचार से हमें अपने कार्य जल्दी से निबटा लेने चाहिए क्योंकि अगर पीछे से विश्व के जासूस, अब्बा सिगंही, जैक्सन, टुम्बकटू मे से कोई आगया तो फिर लफडेबाजी कुछ ज्यादा फैल जाएगी ।”


"मजा तो तभी आएगा !” अलफांसे कुछ मुस्कराकर बोला ।


विजय कुछ कहना ही चाहता था कि के जी बी का एजेंट लगभग भगता हुआ उस कमरे मे प्रविष्ट हुआ ।


तीनों ने चौंककर उसकी तरफ देखा । उसकी फूली हुई सांस देखकर विजय बोला…"क्यो प्यारे क्या ड्रामा है?”


" गजब हो गया मिस्टर विजय! ”

"जरूर हो गया होया प्यारे ।" विजय शांति के साथ अपने ही मूड में बोला-" बैसे भाई ये साला गज़ब हुआ कैसे?"


"मिस्टर विकास हमारे अड्डे से गायब हो गए !"


" क्या? ” तीनो एक साथ उछल पड़े ।


"जी हा ।” वह बोला-----"उनकै साथ उनका बंदर धनुषटंकार भी गायब है ।”
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

"अवे लूमड़ .. !” विजय इस प्रकार बोला जैसे कोई वहुत गंभीर बात कहने जा रहा हो…… "इस लड़के को उठाकर ले जाने यानी गायब करने की ताकत किसमे हो सकती है?”



"नही मिस्टर विजय । के जी-बी. का,वह एजेंट तुरंत बोला "उन्हें किसी ने गायब नहीं किया, बल्कि वे यहाँ से खुद गायब हो गए है । अवश्य ही वे किसी विशेष काम से गए है ।"


"तुम्हें यह ज्ञान की बाते कैसे पता?”



"उनके कमरे में से यह पत्र मिला है ।" उसने कहते हुए अपनी जेब से एक कागज निकालकर विजय को थमा दिया । विजय वह पत्र खोलकर पढने लगा । लिखा था :


आदरणीय गुरूदेव ।


चरण स्पर्श,


क्षमा चाहुगां कि कुछ कार्य अपनी मर्जी से कर रह्वा हूँ । में जानता हू गुरू कि आप यह प्लान बना रहे है कि मुझे किस तरह बचाया जा सकता है? यानी अपराधी होने का वह कलंक जो मेंरे माथे पर लग चूका है, अब किस तरह धुल सकता है लाकिन एक बार फिर कहूगा गुरू इस बात को दिमाग से निकाल दो । वह सब मैं खुद कर लूगा और उन्हीं कुछ कार्यों को पुरा करने जा रहा हूं । आप वह कार्य करे जिसका आपने मुझसे वायदा किया है यानि आप अपने ढंग से भारत से सीआईए. के एजेंटों का सफाया करे । मैं अपने साथ अपने प्यारे शिष्य धनुष्टंकार को भी ले जा रहा हूँ । चिंता करने की कोई -आवश्यकता नही है । मेरा सबने शिकार न्यूयॉर्क में स्थित सिगंही दादा का दूसरा अड्डा हौगा और यह कार्य इतना सरल है कि गुरू लोगों को ये छोटे-छोटे काम करने शोभा नहीं देते इसलिए अब आपकै बच्चे यह कार्य काने जा रहे हैं । वैसे मैंनै यह इसलिए लिख दिया है ताकि आप चितां न करें । आपको सिगंही का यह अड्डा पता नहीं है इसलिए आप आ तो सकेंगे नहीं । वैसे तो मंगल पर सिगंही बनकर कार्य किया है इसलिए मालूम है कि उसके अड्ड़े कहाँ-कहां हैं । कल रात को यहीं मिलना गुरू । उछल कर अलफासे गुरू की एक प्यारी-प्यारी पप्पी लेना ।


आपका बच्चा
विकास ।

पढने के एकदम बाद ही बिजय फुर्ती से उछला और अलफासे का गाल चूमकर बोला--“ वाह प्यारे लूमड़ मियां, मजा आया है । सोलह साल की कन्या के चुंबन में भी इतना मजा नहीं आता । ये साला अपना दिलजला भी खूब है । क्या ध्यान दिलवाया है । कसम, चुंबन ताई की, अगर दिलज़ला नहीं लिखता तो मैं कभी लूमड़ की पप्पी नहीँ लेता और कसम मिट्टी के तेल की, कभी नही जान पाता कि लूमड मियाँ के गाल इतने मीठे है ।"



"विजय ।" झुंझत्ताकर अशरफ बोला…“ये क्या बेबकूफी है?"



"हाय! " विजय एकदम झटका-सा खाकर बोला……" ये बेवकूफी है? प्यारे, एक बार लेकर देखो तो......!"



" जासूस प्यारे!" अलफासे उसकी बात बीच में ही काटकर बोला…"जरा ये तो सोचो कि विकास एक बार फिर उस्तादी दिखा गया । हम सोचते ही रह गए और वह खुद ही सोचकर चला भी गया ।।



अलफांसे के इस कथन पर विजय ने ओर देखकर मुर्खों की भाति पलकें झपकाईं और बोला-"कह तो तुम सोलह आने सच रहे हो लूमड़ भाई किया क्या जाए? गलती है हंमारी और तुम्हारी, न साले को इतना ट्रेंड करते और न आज ये हमारे बाजे बजाता । अब पता नहीं, अमेरिका मे क्या हंगामा मचाएगा ।"



"क्यों न हम भी चलें?" अशरफ ने कहा ।


"एक दम चलो प्यारे!" एक झटके के साथ विजय खडा होता हुआ बोला ।


अलफांसे भी जैसे तैयार था । वे लोग भी अपने अभियान पर चल के लिए तेजी से तैयार होने : लगे ।



विकास के साथ था बंदर धनुषटंकार उस समय रात का अंतिम पहर था यानी तीन बज रहे थे । के .जी .बी के अड्डे से ही वे एक कार होकर गायब हुए थे । इस समय कार विकास ड्राइव कर रहा था !


धनुषटंकार समीप ही बैठा सिंगार के धुएं के छल्ले बनाने मे व्यस्त था । विकस को अपना लक्ष्य विदित था इसलिए वह सूनी पडी हुई सडक पर कार तेजी के साथ दौड़ा रहा था ।


इस समय वह जिस सडक पर बढ़ रहा था, वह न्यूयार्क से बाहर जाने वाली एक सड़क थी ।



शहर से बाहर का यह इलाका एमदम सुनसान था ।



उसी सुनसान इलाके मे एक स्थान पर विकास ने कार रोक ली । उसके बाद कार को वही छोड़कर दोनों पैदल ही आगे बढे , एक विशाल इमारत के समीप पहुंचकर विकास ठिठक गया बोला-" प्यारे धनुषटंकार इमारत तो पते के अनुसार यही होनी चाहिए ।"


गूंगे बच्चे की भाँति संकेत से धनुषटंकार ने इमारत में दाखिल होने के लिए कहा ।


मुस्कराकर विकास आगे बढ गया । कोठी के बाहर एक दीवार खिंची हुई थी । उसके अंदर लाॅन था । कोठी के चारों ओर लान-ही लॉंन था । दीवार के सहारे-सहारे चलते हुए वे कोठी के पीछे पहुच गए । पीछे बंजर खेत इत्यादि पड़े थे । बडी सरलता से दोनो ने एक-एक जंप ली और दीवार को फांद कर कोठी के लॉन में पहुच गए ।



उन्होंने देखा… ।



यू तो सारी कोठी में अंधकार था लेकिन पीछे वाले कमरे की लाइट आॅन थी । एक खिड़की से प्रकाश छनकर बगिया मे पड़ रहा था । उस खिडकी के पट खुले हुए थे । वे दोनों दबे पाव वहाँ पहुचे ।


खिडकी से अंदर झांका ।


कमरे का दृश्य देखते ही विकास चौंक पडा ।



कुछ लोगों ने एक चेयर एक लडके को बांध रखा था दो इंसान उसके सामने खड़े थे और पाच गुंडे से नजर आने वाले इंसान उस चेयर के पीछे खड़े थे ।


" हेरी!" विकास के होंठ बुदबुदा उठे-" और यहां ?"


वास्तव मे वह लड़का हैरी था उन लोगों ने चेयर से बांध रखा था ।


सामने खड़े दो इंसानों ने से एक कह रहा था----- "तुम थोडासा धोखा खा गए मिस्टर सोबर, मैंने अपने किसी आदमी को तुम्हें सी आई ऐ की कैद से मुक्त कराने नहीं भेजा था । नकाबपोश के रूप में इसने ही तुम्हें छुडाया और ऐसी चाल चली कि यह यहां छलने हमारे दूसरे अड्डे तक भी पहुच गया । दरअसल यह उस कार की डिक्की में छुप गया था जिसने ज़रिए तुम यहां आए। यह लडका बहुत चालाक है !"



"यह हमारे लिए बहुत खतरनाक साबित हो रहा है ।" सोबर बोला…अब इसके अंत मे ही हमारी भलाई है !"



" कही ऐसा तो नहीं कि इस बार भी सी आई ए से मिला हुआ हो !" दूसरा बोला ।




"नहीँ!" सोबर ने दृढ स्वर में कहा… ……"इस बाऱ इसने मेरी आखों के आमने सी.आईं.ए एजेंटों को मौत के घाट उतारा है ।"


" हो सकता है ।" दूसरा बोला…" हमें कुछ ऐसा पता लगा है कि इस बार यह अपने पिता से झगडा करके धर से भागा है । इसने अपने पिता से यह वादा किया है कि अब वह उसी समय घर में धुसेगा जब यह सिद्ध कर देगा कि वास्तव में ये सव विनाश विकास नहीं, बल्कि हमारे महामहिम सिगंही कर रहे हैं ।”


"इस लड़के ने महामहिम के सारे इरादों पर पानी फेर दिया ।" सोबर गुर्राया ।

"लेकिन अब हम इसे जिंदा नहीं छोड़ेगे ।" कहते हुए उसने कहा…'"इसे तुरंत गोली से उड़ा दो !"


"मुझे गोली से उडाना इतना आसान नहीं है.।"


“बको मत! " अभी हैरी कुछ कहना ही चाहता था कि सोबर गुर्रा उठा । साथ ही उसने मशीनगन सीधी की ओर बोला----“अब तुम यह असलियत कभी साबित नहीं कर सकोगे कि यह सव विकास नहीं बल्कि महामहिम सिगंही कर रहे है !"


"अब साबित क्या कंरना है?" हेरी बोला-----' "सिंगही तो गिरफ्तार हो चुकाहै ।"


"शायद तुमने उस ग्लोब के अचानक गायब हो जाने की खबर नही सुनी ?"


सोबर बोला----“निश्चित रूप से यह करिश्मा हमारे महामहिम के किसी वैज्ञानिक चमत्कार का होगा ।"
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

और इस बीच ........ !



विकास और धनुष्टंकार ने आखो-ही-आखों मे निर्णय लिया और धनुष्टंकार ने नौ राउंड बाली रिवॉल्वर अपनी जेब से निकाली । एक कश सिगार मे लगाया । कमरे के अदर धुंए का छल्ला छोडा और ।



छल्ले कों बिना तोड़े उसके बीच में से होती गोली ने सोबर की कनपटी तोड़ दी । वह एक चीख के साथ ढेर हो गया । शेष इसान बौखलाए लेकिन धनुषटंकार भला चूकने वाला कब था? इससे पुर्व कि कोई कुछ समझे उसके-रिचांलवर ने दनादन छ: शोले और उगले तथा शेष इंसान भी चीखकर वीरगति क्रो प्राप्त हो गए ।



"ज़य छप्पन छुरी की!" एक नारा-सा लगाता हुआ विकास खिडकी के रास्ते से, जंप लगाता हुआ कमरे मे पहुच गया। हैरी कुर्सी पर हैरान-सा बैठा था । कदाचित वह यह सोच रहा था कि वह अचानक उसका मददगार कौन पैदा हो गया?

उसने विकास को देखा और पहचानते ही वह आश्वर्य से चीख पड़ा----“विकास !"


"हां पुत्र, हम ही हैं?" एक जंप के साथ विकास सीधा होता हुआ-बोला-----" पहले जल्दी से ये बताओ कि यहाँ कितने मुर्गे और है ताकि उन्हे भी हलाल करे !"


-“जो थे बो हलाल हो गए ।" हैरी ने जवाब दिया है तभी धनुषटकार भी कमरे मे दाखिल होगया । उसे देखते ही हैरी बोला --'"अरै ये बंदर किसका है ?"


हैरी का बंदर कहना-मानो जहर हो गया । धनुषटंकार की आंखें क्रोध से लाल हो गई । इससे पूर्व कि हैरी कुछ समझे धनुषटंकार ने जंप मारकर एक झन्नाटेदार चाटा हैरी के गाल पर रसीद किया ।


हैरी का गाल झनझनाकर रह गया । उसने बौखलाकर धनुषटंकार को देखा, अब भी वह उसके सामने बैठा बड्री खूंखार नजरों से उसे देख रहा था ।



तभी विकास बोला-'हैंरी प्यारे, इन महाशय का नाम धनुषटंकार है । बंदर कहने वाले को फाढ़कर डाल देते है !"



" ओह! " हैरी समझता हुआ बोला-“तो ये हैं वो ,धनुषटंकार-तुम्हारे कारनार्मो के साथ जुडा हुआ? इन महाशय का नाम भी कई बार सुन चुका हूं।"


-“सबसे पहले क्षमा मांगो ।"



हैरी ने मुस्कराकर धनुषटंकार की ओर देखा और बोला-“धनुषटंकार महोदय । हमारी भूल के लिए माफ़ कर दो । वेसे अगर हाथ खुले होते तो निश्चित रूप से हाथ जोड़कर तुमसे माफी मांगते।"


बस हैरी का इतना कहना था कि धनुषटंकार उछलकर न केवल उसकी गोद में पहुच गया बल्कि हैरी के गोरे-गोरे गालों के दो-तीन चुंबन भी ले डाले, फिर खुद ही हैरी को बंधनों से मुक्त कर दिया ।



मुक्त होते ही धनुषटंकारं ने अपना हाथ हैरी की तरफ़ बढाया । हैरी ने भी उससे फौरन हाथ मिलाया और बोला ---“मुझें हैरी कहते हैं । तुम्हारे गुरु का अमेरिकन दोस्त है । आज से तुम्हारा भी दोस्त ।"


"अबे ओं हैरी की दुम! " विकास बोला…"मैं इधर खड़ा हूँ साले, तड़प रहा हू तेरे लिए । जल्दी से आकर गले से लिपट जा ।"कहने के साथ ही विकास ने अपनी बाहे फैला दी ।



दौड़कंर हैरी उन बांहों में समा गया और खुद अपनी बांहों मे उसने विकास को कस लिया।


वह बोला-"वो साला कमीना सिगंही कहता था कि अगर मेने कुछ किया तो वह तुम्हें मार डालेगा । तुम्हारी कसम विकास अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो सिंगही को जिंदा जला डालता में ।"

विकास ने महसूस किया कि वे सहीं विषय से भटककर बहुत गलत विषय पर पहुच गए हैं, अत बोला---“अरे छोडो ये बाते तो सब वक्त के साथ है , फिलहाल तुम इस इमारत की तलाशी लो ।"


"ओके!”



उसके. हैरी तलाशी लेने लगा ।विकास ने जेब से ताजा ब्लेड निकाला और अपना कार्य करने लगा । उसने अपनी जेब से रेशम की डोरी निकाल ली थी ।



धनुष्टंकार आराम से सिंगार फूक रहा था । तब जबकि हैरी इमारत की तलाशी लेकर वापस उस कमरे मे पहुचा, दरवाजे पहुचते ही वह ठिठक गया । दरंवाजे के बीचोबीच रेशम की डोरी की मदद से सोबर की लाश उल्टी लटकी हुई थी । उसके माथे पर ताजे ब्लेड से गोश्त काटकर विकास लिख दिया गया था । हैरी अंदर प्रविष्ट हुआ तो पाया कि कमरे की प्रत्येक खिडकी पर इसी तरह एक लाश लटकी हुई है ।


" कमरा बड़ा अच्छा लग रहा है ।" हैरी बोला




"जब हमने सजाया है तो अच्छा कैसे नहीं लगेगा?” विकास ने कहा-"वेसे तुम्हें तलाशी में कुछ मिला?"


" हां ! न्यूयार्क में स्थित सिगंही के सात अन्य अड्डों का पता लंगा ।"


" आज की रात ये अड्डे हमें खत्म कर देने हैं ।" विकास ने कहा ।


" चलो !" हैरी भी एक नेक कान के लिए एकदम तैयार था ।


“आओ प्यारे धनुषटंकारा" विकास ने कहा और उसके बाद वे तीनों वहाँ से निकल गए । उसके बाद ......... ।



उस सारी रात मानो उन तीनो शैतानों पर खून सवार रहा ।


आज उनके शिकार समस्त न्यूयार्क में स्थित सिगंही के अड्डे थे । वे अड्डे पर पहुचते, रिवाॅल्बर और लगने चीखती और लाशों के देर लगा देते विकास उनका क्रियाकर्म करना एक बार भी नहीं भूला था ।

उसका नाम गोजालो फार्गिन था ! वह सी.आई.ए. की इस अड्डे का चीफ़ था !


सी.ई.ए का जाल विश्व के में हरेक देश मे था । प्रत्येक देश के एजेंटों की रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए न्यूयॉर्क मे एक अलग हैडक्वाटर था । वह इंडिया में स्थित एजेंटों की रिपोर्ट वाले हेडक्वार्टर का चीफ था । इस हेडक्वार्टर पर बैठकर वह केवल भारत में सी-आई-ए की गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट रख़तां था । अंपनी रिपोर्ट सी-आई-ए के हैडक्वाटर को देता था ।


गोजालो फार्गिन एक नंबर का हरामी और ऐयाश व्यक्ति था।


काम-धाम अपने गुर्गो पर छोड़ देता था और खुद एक-नई लडकी को लेकर बिस्तर पर पड़ जाता था ! हर रात उसके गुर्गे उसके लिए एक नई लड़की का प्रबंध करते थे ।

इस समय भी उसके पहलू में एक सुंदर कली थी ।

वह लगभग पिछले तीस मिनट से इस लडकी के साथ इस विस्तर पर था वह लडकी को लिए गर्म करने की चेष्टा कर रहा था । वह लड़की तो पता नहीं गर्म हुई या नहीं लेकिन फार्गिन जरूर गर्म हो गया था कि वह लडकी के गालों, होठों अन्य कोमलांर्गों पर पशु की भांति-दांत गडा देता था ।


लडकी पीडा से बिलबिला उठती लेकिन केवल सिसकाऱी लेकर रह जाती थी । फार्गिन इस सीमा तक. गर्म हो था कि उसने लड़की के जिस्म के सारे कपड़े नोच लिए थे । न उसके कपड़े नोंच लिए थे वल्कि खुद फार्गिन के जिस्म पर भी अब केवल अंडरवियर रह गया था । अव वह लड़की का जिस्म भोगने जा रहा था । जैसे ही वह लडकी को बांहों से बांधकर उसके ऊपर आया ।
User avatar
kunal
Pro Member
Posts: 2731
Joined: 10 Oct 2014 21:53

Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी

Post by kunal »

" धांय! ! ! !"


" उछल पड़ा फार्गिन ।


सारा तहखाचा गोली चलने की जावाज से कांप उठा ।


फार्गिन के सिर पर अभी तक वासना का जो भूत सवार था, वह सिर पर पैर रखकर न जाने कहां भाग गया । लड़की भी बिस्तर से उछलकर खडी हो चुकी थी । एक पल के लिए फार्गिन बुरी तरह बौखला सा गया ।



" -पहली बार यहां गोली चली है !" वह तेजी बुददाया ।



वह लडकी अवाक-सी उसका मुह ताक रही थी । फार्गिन ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा…यह महसूस करके कि वह नंगी है, लड़क्री शरमाकर बड्री अदा के साथ मुस्कराई लेकिन, तभी फार्गिन गुर्राया ।



“कपड़े पहन ।"


वह लड़की काप उठी । बिना एक क्षण का विलंब किए ही वह अपने कपडों पर झपटी लेकिन कपड़े पहनती-पहनती वह यह जरूर सोच रही थी कि कितना खुदगरज है ये आदमी एक ही पल पहले वो उसके प्यार का बखान कर रहा था । वासना के भावावेश में उसके तलवे चाट रहा था । अपनी हवस पूर्ण करने के लिए उसे भगवान से भी ज्यादा मान रहा था । वही अब उस पर गुर्रा रहा था ।



लेकिन इधर--!


गोजालो फार्गिन को तो जैसे अब उस लडकी के विषय में सोचने का समय ही नहीं था । उसका ध्यान तो उस फायर में उलझकर रहं गया था । वह तेजी के साथ अपने कपडों की ओर झपटा और तेजी से अपने कपडे पहनकर बाहर आ गया । वह अपना रिवाॅल्बर साथ लाना नहीं भूला था । गैलरी के वाहर सैनिक गने थामे एक तरफ को भागे चले जा रहे थे । इस फायर की आवाज ने यंहा हंगामा-सा खडा कर दिया था ।


"धांय धांय धांय ।" अचानक अनेक फायरों की आवाज से पुन सारा तहखाना गूंज उठा ।


"क्या बात हैं ?" अचानक फार्गिन गरजा-"ये कौन कुत्ता यहाँ पहुंच गया?"


" दुश्मन अंदर घुस आए हैं सर ।" एक सैनिक ने उसकै समीप ठहरकर कहा-वह हॉल की ओर हैं ।"


" कौन हैं वो?" फार्गिन गरजा ।



" अभी यह पता नहीं लगा सर! " एक सैनिक नें कहा ।


"कोई भी हो, सामने आते ही भूनकर रख दो !" फार्गिन खूनी स्वर में गुर्राया।


यह जादेश देकर वह खुद गेलरी मे दूसरी ओर भागता चला गया , सैनिक गन संभालकर भाग लिया । फार्गिन का दिमाग इस समय काम नहीं कर रहा था । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यहां अचानक कौन दुश्मन आ सकता है । फिर यह दुश्मन अंदर कैसे आ गया? सबसे पहले वह इस घटना की सूचना हैडक्वार्टर देना चाहता था इसलिए वह तेजी के साथ उस कमरे की ओर बढ़ रहा था जिसमें हेडक्वार्टर से संबंध स्थापित करने लिए,ट्रांसमीटर था ।



वह तेजी के साथ उस कमरे में प्रविष्ट हुआ लेकिन उसने तो कभी स्वन में भी नहीँ सोचा था कि दुश्मन उसके इस कक्ष तक पहुच गया है ।



जैसे ही वह अंदर प्रविष्ट हुआ, एक ठोकर किसी ने उसके पीछे से कमर मे मारी ।


इफ ठोकर के लिए वह कतई तैयार नही था ।


इसलिए मुह से एक डकार निकलता हुआ धड़ाम से फर्श पर गिरा ।


तभी उसने ऐसी आवाज सुनी किसी ने उस कमरे का दरवाजा बंद कर दिया हो । अपनी और से वह बेहद फुर्ती के साथ खड़ा होकर पल्टा , तब तक दुश्मन दरवाजा बंद कर चुका था बल्कि अंदर से लॉक करके उसकी ओर मुड़ चुका था । फार्गिन ने देखा कि दुश्मन ठीक उसके सामने केवल दो गज की दूरी पर हाथ में रिवाॅल्बर लिए खडा था । एक पल के लिए उसने दुश्मन की आंखों में आंखें डाल दी, लेकिन उस वह बौखला गया जब उसने अचानक उसे आंख मारी और बोला…“क्यों मियां झाड़झंखाड़! क्या हाल हैं?"


"तुम कौन हो?” फार्गिन गुर्रा कर कहने की चेष्टा करता हुआ बोला ।

" बंदे को विजय कुमार झकझकिया कहते है !" वास्तव में वह विजय ही था । वह अजीब ढंग से सीना फुलाकर कह रहा था ।

" विजय !" फार्गिन के मुंह निकला ।सामने विजय को महसूस करते ही उसकी जुबान लड़खड़ा गई थी । उसके मुंह से एकदम निकला-"तुम विजय हो, वही भारतीय जासूस?"


"क्यों प्यारे, क्या परेशानी है? क्या तुम्हें हमारे विजय होने में संदेह है !"


-"तुप यहां क्यो आए हो ?" फार्गिन ने गुर्राकर कहा !



" देखो प्यारे !" विजय बडे आराम से रिवॉल्वर घूमाता हुआ बोला…"रिबॉंलबर हमारे हाथ मे है गुर्रा तुम हो? अब जरा शराफत से यह बता दो कि भारत स्थित सीआईए. के
एजेंटों के नाम रिकॉर्ड की फाइल कहां हैं ?"



"ओह! " फार्गिन जैसे एकदम समझता हुआ बोला…" तो तुम भारत में स्थित एजेटों के पते लेकर भारत से भी सी.आई.ए का पतन करना चाहते हो । याद रखो! ऐसा नहीं हो सकता ।"


" होगा तो ऐसा ही प्यारे!" विजय-बोले------" या तो शराफत से बता दो वरना भूनकर रख दूंगा ।"


"तुम यहां से जिंदा. ..!"


"धांय !"


फर्गिन की बात बीच में ही रह गई! विजय के रिवॉल्बर से गोली निकली और सीधी फार्गिन के बाएं घुटने में लगी ।


फार्गिन के कंठ से चीख निकल गई और वह त्योराकर धड़ाम से गिरा ।

विजय उसकी ओर बढा तथा गिरेबान पकड़कर ऊपर उठाता हुआ-बोला-" जल्दी से बोल दो प्यारे धतूरा वरना आमलेट वना दूंगा!"


"नही !"


" धांय !"


तभी विजय के रिवॉल्वर ने एक गोली और उगली । इस बार गोली उसके दाएं कंधे के जोड़ पर लगी । कंठ से फिर एक चीख निकल गई । उसकी बांह झूल-सी गई । इस बार विजय ने बडी बेरहमी से उसके बाल पकड़े ऊपर उठाता हुआ बोला…"तुम्हें बता चुका हूं बेटा कटोरीराम कि मेरा नाम विजय है

..........................

या तो अराम से बता दो वरना.....वरना इस बार दूसरा घुटना भी तोड़ दूगा ।"



पीडा के कारण फार्गिन रोने लगा । बिजय ने रिवॉल्वर की नाल उसके घुटने में ठीक उस धाव में धंसा दी जहां गोली लगी थी । यह पीड़ा असहनीय थी । वह मचल उठा, बिलखकर रो पड़ा । विजय ने घाव में नाल देकर एक झटका दिया । पीड़ा के कारण फार्गिन डकरा उठा ।


वह सह न सका ।
Post Reply